Wednesday, November 18, 2015

JADEJA RAJPUTS AND THE HISTORICAL BATTLE OF BHUCHAR MORI (भूचर-मोरी का ऐतिहासिक युद्ध सम्वत 1648)

जाडेजा राजपूतों की शौर्यगाथा का प्रतीक भूचर-मोरी का ऐतिहासिक युद्ध (सम्वंत 1648)---------------

राजपूत एक वीर स्वाभिमानी और बलिदानी कौम जिनकी वीरता के दुश्मन भी कायल थे, जिनके जीते जी दुश्मन राजपूत राज्यो की प्रजा को छु तक नही पाये अपने रक्त से मातृभूमि को लाल करने वाले जिनके सिर कटने पर भी धड़ लड़ लड़ कर झुंझार हो गए।
आज हम आपको एक ऐसे युद्ध के बारे में बताएँगे जहा क्षात्र-धर्म का पालन करते हुए एक शरणार्थी मुस्लिम को दिए हुए अपने वचन के कारण हजारो राजपुतो ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए | भूचर-मोरी का युद्ध सौराष्ट्र के इतिहास का सबसे बड़ा युद्ध माना जाता हे ,जहा पश्चिम के पादशाह का बिरुद मिलने वाले जामनगर के शासक और जाडेजा राजपुत राजवी जाम श्री सताजी से अपने से कई गुना अधिक बड़े और शक्तिशाली मुग़ल रियासत के सामने नहीं झुके | यह युद्ध इतना भयंकर था की इसे सौराष्ट्र का पानीपत भी कहा जाता है |इस युद्ध में दोनों पक्षों के एक लाख से ज्यादा सैनिक शहीद हुए.

युद्ध की पृष्ठभूमि-----

विक्रम सवंत १६२९ में दिल्ही के मुग़ल बादशाह जलालुदीन महमद अकबर ने गुजरात के आखिरी बादशाह मुज्जफर शाह तृतीय से गुजरात को जीत लिया | जिसके परिणाम स्वरुप मुजफ्फर शाह राजपिपला के जंगलो में जाकर कुछ समय के लिए छिप गया, फिर उसने  गुजरात के सौराष्ट्र में स्थित जामनगर के राजा जाम सताजी तथा जूनागढ़ के नवाब दौलत खान और कुंडला के काठी लोमान खुमान के पास जाकेर उनसे सहायता लेकर ३०,००० हजार घुड़सवार और २०,००० सैनिक लेकर अहमदाबाद में भारी लुटपाट मचाई और अहमदाबाद, सूरत और भरूच ये तीन शहर कब्जे कर लिए | उस समय अहमदाबाद का मुग़ल सूबेदार मिर्ज़ा अब्दुल रहीम खान (खानेखाना) था | पर वो मुज्जफर शाह के हमले और लूटपाट को रोक नहीं सका | जिसकी वजह से अकबर ने अपने भाई मिर्ज़ा अजीज कोका को गुजरात के सूबेदार के रूप में नियुक्त किया | सूबेदार के रूप में नियुक्त होने के साथ ही उसने मुजफ्फर शाह को कद कर लिया, पर सन १५८३ (वि.सं. १६३९ )को मुजफ्फर शाह मुग़ल केद से भाग छुटा और सौराष्ट्र की तरफ भाग गया | मुजफ्फर शाह ने सौराष्ट्र के कई राजाओ से सहायता की मांग की, पर किसी ने उसकी मदद नहीं की, 

आखिर में जामनगर के जाम सताजी ने उसको ये कह के आश्रय दिया की “ शरणागत की रक्षा करना क्षत्रिय का धर्मं है “ और उसके रहने के लिए बरडा डुंगर के क्षेत्र में व्यवस्था कर दी |



     
  इस बात की खबर अहमदाबाद के सूबेदार मिर्ज़ा अजीज कोका को मिलते ही उसने मुजफ्फर शाह को पकड़ने के लिए एक बड़ा लश्कर तैयार किया और विरमगाम के पास में पड़ाव डाला, नवरोज खान तथा सैयद कासिम को एक छोटा लश्कर देकर उसने मोरवी की और इन दोनों को मजफ्फर शाह की खोज करने के लिए भेजा | मुजफ्फर शाह जामनगर में हे इस बात की खबर मिलने पर नवरोज खान ने जाम श्री सताजी को पत्र लिखा कि----

“आप गद्दार मुजफ्फर शाह को अपने राज्य में से निकल दो “ परंतु अपने पास शरणागत के लिए आये हुए को संकट के समय त्याग देना राजपूत धर्मं के खिलाफ है” ये सोच कर जाम श्री सताजी ने नवरोज खान की इस बात को ठुकरा दिया | 

इस बात से गुस्से होकर नवरोज खान ने अपने लश्कर को जामनगर की और कुच करने का आदेश दिया | इस बात का पता चलते ही जाम साहिब ने बादशाह के लश्कर को अन्न-पानी की सामग्री उपलब्ध करानी रोक दी, और लश्कर की छावनियो पे हमला करना शुरु कर दिया तथा उनके हाथी, घोड़े व ऊंट को कब्जे में करके लश्कर को काफी नुकशान पहुँचाया |

सोरठी तवारीख में लिखा गया था की “ जाम शाहीब ने मुग़ल लश्कर को इतना नुकशान पहुँचाया और खाध्य सामग्री रोक दी थी की लश्करी छावनी में अनाज की कमी की वजह से उस समय में एक रूपये के भाव से एक शेर अनाज बिकने लगा था”

       इस बात की खबर मिर्ज़ा अजीज कोका (जो विरामगाम के पास अपना लश्करी पड़ाव डालके पड़ा था) को मिलते ही उसने भी अपने बड़े लश्कर के साथ जामनगर की और कुछ कर दी और नवरोज खान और सैयद कासिम के सैन्य के साथ जुड़ गया | जाम श्री सताजी ने अपने अस्त्र-शस्त्र और अन्न सामग्री तो जामनगर में ही रखी थी इसलिए अजीज कोका ने अपने लश्कर को जामनगर की और कुच किया | जाम साहिब को जब इस बात की खबर मिली की अजीज कोका अपने सैन्य के साथ जामनगर की तरफ आ रहा हे तब उन्होंने भी अपने सैन्य को मुग़ल लश्कर की दिशा में कुच करवाया |

जामनगर से ५० किमी के अंतर पर स्थित ध्रोल के पास भूचर-मोरी के मैदान में जाम साहिब के लश्कर और मुग़ल लश्कर का आमना-सामना हुआ | उस समय जाम श्री सताजी की मदद के लिए जूनागढ़ के नवाब दौलत खान और कुंडला के काठी लोमा खुमान भी अपने सैन्य के साथ पहुच गए थे.


युद्ध की घटनाएँ----

इस ध्रोल के पास स्थित भुचर-मोरी के मैदान में दोनों लश्करो की और से छोटे छोटे हमले हुए लेकिन इन सभी हमलो में जाम साहिब का लश्कर जीत जाता था | २-३ माह तक ऐसा चलता लेकिन हर हमले में जाम साहिब के लश्कर की ही जीत होती थी | अजीज कोका समझ गया था की उसका लश्कर यहाँ नहीं जीत पाएगा | जिसके कारण उसने जाम साहिब को समाधान करने के लिए पत्र भिजवाया | इस बात की खबर जूनागढ़ के नवाब दौलत खान और काठी लोमा खुमान को पता चलने पर उन्होंने सोचा की “ अगर जाम साहिब ने समाधान से मना कर दिया और लड़ाई हुई तो जाम श्री सताजी की ही जीत होगी और वो हमारे राज्य भी अपने कब्जे में ले लेंगे, इसलिए हमे बादशाह के मुग़ल लश्कर के साथ मिल जाना चाहिए” | उन्होंने सूबे अजीज कोका को गुप्तचर द्वारा खबर भिजवाई की “ आप वापस हमला करो, लड़ाई शुरु होते ही हम आपके लश्कर के साथ मिल जाएँगे और जाम शाहीब के लश्कर पे हमला बोल देंगे” | ये खानगी खबर दौलत खान को मिलते ही उसने समाधान से मन हटाकर जाम साहिब को दुसरे दिन युद्ध का कह भिजवाया |

दूसरी दिन सुबह होते ही जाम साहिब श्री सताजी अपने लश्कर के साथ मुग़ल लश्कर पर टूट पडे और भयंकर युद्ध हुआ उसके परिणाम स्वरुप मुग़ल सैन्य हारने की कगार पर आ गया | ये देखकर नवाब दौलत खान और काठी लोमा खुमान जो जाम साहिब के लश्कर हरोड़ में खड़े थे , वो अपने २४,००० सैनिक के साथ जाम साहिब श्री सताजी को छोडकर मुग़ल लश्कर में मिल गए | जिसके वजह से लड़ाई तीन प्रहर तक लम्बी चली , 

उस समय जेसा वजीर ने जाम श्री सताजी को कहा की “ धोखेबाजो ने हमसे धोखा किया हे, हम लोग जीवित हे तब तक युद्ध को चालू रखेंगे आप अपने परिवार, वंश और गद्दी को बचाय रखने के लिए जामनगर चले जाइए | जाम साहिब को जेसा वजीर की ये सलाह योग्य लगने पर वे हाथी से उतरकर घोड़े पर चढ़ गए और अपने अंगरक्षक के साथ जामनगर की और चले गए, इस तरफ जेसा वजीर और कुमार जसाजी ने मुग़ल लश्कर के साथ लड़ाई को चालू रखा |

दूसरी तरफ इस युद्ध से अनजान जाम साहिब के पाटवी कुंवर अजाजी की शादी हो रही थी इसलिए वे भी जामनगर में ही थे | उनको जब जाम श्री सताजी के जामनगर आने की खबर मिली और पता चला की युद्ध अभी भी चालू ही हे , वे अपने ५००  राजपुत जो जानैया(शादी में दुल्हे की जान में साथ में होने वाले लोग ) थे तथा नाग वजीर को साथ में लेकर भूचर मोरी के मैदान में आ पहोचे | गौर तलब देखने वाली बात ये हे की इस जगह से अतीत साधू की जमात जो हिंगलाज माता की यात्रा पे जा रहे थे वे लश्कर को देखकर जाम साहिब के लश्कर में मिल गए थे |

दुसरे दिन सुबह दोनों लश्करो के बीच युद्ध शुरु हो गया | मुग़ल शाही लश्कर की दाईनी हरावल के सेनापति  सैयद कासिम, नवरंग खान और गुजर खान थे | वही बाई हरावल के सेनापति मशहुर सरदार महमद रफ़ी था | हुमायूँ के बेटे मिर्ज़ा मरहम बिच की हरावल का सेनापति था और उसके आगे मिर्ज़ा अनवर और नवाब आजिम था |

जाम श्री साहिब सताजी के सैन्य के अग्र भाग का आधिपत्य जेसा वजीर और कुंवर अजाजी ने किया था | दाईनी हरावल में कुंवर जसाजी और महेरामणजी दुंगरानी थे,वही बाई हरावल में नागडा वजीर , दाह्यो लाड़क, भानजी दल थे | दोनों और से तोपों के गोले दागने के साथ ही युद्ध शुरु हुआ ,जिसके साथ ही महमद रफ़ी ने अपने लश्कर के साथ की जाम श्री के लश्कर पे हमला किया | दूसरी तरफ नवाब अनवर तथा गुजर खान ने कुंवर अजाजी और जेसा वजीर और अतीत साधू की जमात जिसकी संख्या १५०० थी उन पर हमला बोल दिया |

एक लाख से ज्यादा सैनिक मुग़ल के शाही के लश्कर में थे ,जिसमे हिन्दू और मुस्लिम दोनों थे | जाम साहिब के सैनिक की संख्या इनके मुकाबले बहुत कम होने साथ ही में अपने २४,००० साथियो द्वारा धोखा होने पर मुग़ल लश्कर धीरे धीरे जीत की तरफ बढ़ रहा था | इस बात को देखकर कुंवर श्री अजाजी ने अपने घोड़े को दौड़ाकर मिर्ज़ा अजीज कोका के हाथी के पास ला खड़ा किया | उन्होंने अपने घोड़े से लम्बी छलांग मराके घोड़े के अगले दोनों पाव अजीज कोका के हाथी के दांत पर टिका दिए, और अपने भाले से सूबेदार पर ज़ोरदार वार किया जिसके ऊपर एक प्राचीन दोहा भी है की:-
अजमलियो अलंधे, लायो लाखासर धणि  ||
दंतूशळ पग दे, अंबाडी अणिऐ हणि || १ ||

      पर अजीज कोका हाथी की अंबाडी की कोठी में छुप गया, जिससे भाला अंबाडी के किनारे को चीरते हुए हाथी की पीठ के आरपार निकल के निचे जमीन में घुस गया | उसी समय एक मुग़ल सैनिक ने अजाजी के पीछे से आके तलवार का वार कर दिया इसे देखकर सभी राजपुत हर हर महादेव के नाद के साथ मुग़ल सैनिक पर टूट पडे | युद्ध में हजारो लोगो की क़त्ल करने के बाद जेसा वजीर , महेरामणजी दुंगराणी, भानजी दल, दह्यो लाडक, नाग वजीर और तोगाजी सोढा वीरगति को प्राप्त हुए | वही उसी तरफ मुग़ल शाही लश्कर में महमद रफ़ी, सैयद सफुर्दीन, सैयद कबीर, सैयद अली खान मारे गए |
      शाही लश्कर में मुख्य सूबा मिर्ज़ा अजीज कोका और जाम श्री के लश्कर में कुमार श्री जसाजी और थोड़े सैनिक ही बचे थे |
      युद्ध के बारे में वहा पे एक शिलालेख भी जाम अजाजी की डेरी में हे , वही बाजूमे दीवार पर एक पुरातन चित्र भी है जिसमे जाम अजाजी अपने घोड़े को कुदाकर हाथी के ऊपर बैठे हुए सूबे की तरफ भाला का प्रहार करते हे... 
                                      
                                        

सवंत सोळ अड़तालमें , श्रावण मास उदार |
          जाम अजो सुरपुर गया, वद सातम बुधवार || १ ||
                        ओगणीसे चौदह परा, विभो जाम विचार |
          महामास सुद पांचमे कीनो जिर्नोध्धार || २ ||
          जेसो, दाह्यो, नागडो, महेरामण, दलभाण |
          अजमल भेला आवटे, पांचे बौध प्रमाण || ३ ||
          आजम कोको मारिओ, सुबो मन पसताईं |
          दल केता गारत करे, रन घण जंग रचाय || ४ ||

निजामुदीन अहमद लिखते हे की ये लड़ाई हिजरी सवंत १००१ के रजब माह की तारीख ६ को हुई थी | और जामनगर के पुरातन दस्तावेज में भुचर-मोरी की लड़ाई की तारीख विक्रम सवंत १६४८ में हालारी श्रावन वाद ७ को होने को लिखी हे...|
      युध्ध में नागडा वजीर ने भी अदभुत शौर्य दिखाया था | कहते हे की जब वह छोटा था तब जब उसकी माँ बैठी हुई होती थी तब उसके स्तन को पीछे खड़ा होकर स्तन से दूध पिता था | इस घटना को एक बार जाम सताजी ने देखा तो उनको बहुत हसी आई थी |  जब नागडा वजीर युद्ध में लड़ने के लिए आया था तब उसके पिता जेसा वजीर ने कहा था की “हे नागडा तू जब छोटा था तब जाम साहिब ने तुझे तेरी मा को खड़े होकर स्तनपान करता हुआ देखा था और हस पडे थे, अब समय आ गया हे अपनी मा के दूध की ताकत दिखने का, वो दूध एक शेरनी का हे इस बात को रणभूमि में साबित करना” | 

जब युद्ध चल रहा था तब नागडा वजीर ने अदभुत शौर्य दिखाया था | उसके दोनों हाथ के पंजे कट चुके थे लेकिन उसने अपने दोनों हाथ की कलाई की हड्डी में भाले को ठुसकर दुश्मनों को मरना चालू रखा था, इतना ही नही उसकी ऊंचाई भी बहुत होने के कारण उसने बादशाही लश्कर के हाथी के पेट में अपने कटे हुए हाथ को घुसाकर हाथी के पेट में बड़े बड़े घाव(खड्डे की तरह) कर दिए थे जिसके कारण हाथी के पेट से लहू की धारा बहने लगी थी...नागडा वजीर के ऊपर दुहे भी रचे हुए हे की...

               भलीए पखे भलां, नर नागडा निपजे नहीं ||
               जोयो जोमांना,  कुंताना जेवो करण || १ ||

अर्थ:- कुंताजी से जैसे कर्ण जैसा महा पराक्रमी पुत्र उत्पन हुआ, वैसे ही जोमा से नागडा वजीर जैसा महा पराक्रमी पुत्र उत्पन हुआ, इसिलिए कहेते हे की वीरांगनाओ के सिवा महापराक्रमी वीर पुरुष उत्पन नहीं होते...||

              जहां पड़ दीठस नाग जबान, सकोकर उभगयंद समान ||
            पड़ी सहजोई सचीपहचाण, पट्टकिय नागह लोथ प्रमाण || १ ||

अर्थ:- भुचर-मोरी के मैदान में जब नागडा वजीर के लोथ अर्थात मृत शरीर को उठाया तब गयंद नामके हाथी के समान उसकी उंचाय मालुम होने से सूबेदार को उसकी ऊँचाई का विश्वास हुआ था | 

  कुमार श्री अजाजी  युद्धभूमि में शहीद हो गए और बादशाह का लश्कर नगर की तरफ आ रहा हे यह खबर मिलते ही जाम सताजी ने जनान की सभी राणी को जहाज़ में बिठाकर सुचना दी की अगर मुस्लिम सैन्य आपकी तरफ आए तो अपने जहाज़ को समुद्र में डूबा देना, और अपने कुछ बाकि बचे सैन्य के साथ पहाड़ी इलाके में बदला लेने के लिए निकल पडे क्योकि ज़्यादातर सैन्य भूचर मोरी में शहीद हो गया था |
      इस तरफ राणियो का जहाज बंदरगाह  से निकले इससे पहेले सचाणा के बारोट इसरदासजी के पुत्र गोपाल बारोट ने कुमार श्री अजाजी (जो रणक्षेत्र में शहीद हुए थे उनकी) की पगड़ी को लाकर राणी को दिखा दी | ये देखकर राणी को सत चड़ा और उन्होंने सैनिको को आज्ञा देकर अपना रथ लेकर भूचर-मोरी के रणक्षेत्र की और चल पड़ी | इस तरफ बादशाह के मुस्लिम सैनिक नगर की और आ रहे थे | उन्होंने राणी के रथ को देखकर उनपर आक्रमण कर दिया, लेकिन उस समय ध्रोल के ठाकोर साहिब अपने भायती राजपुतो के साथ वहा आ पहुचे और मुस्लिम सैन्य को बताया की ये राणी सती होने के लिए आई हे उन्होंने मुस्लिम सैन्य के साथ समझौता  करके कुंवर अजाजी की राणी जिनकी शादी भी पूरी नहीं हुई थी उनको सती होने में पूरी मदद की |

      इस युद्ध के अंत में सूबा अजीज कोका जामनगर में आया, और वह पर आके उसने भारी लुटफात मचाई | बाद में उसे पता चला की मुज्जफर शाह जूनागढ़ की और भाग गया हे | उसने नवरंग खान, सैयद कासम और गुज्जरखान को साथ में लेकर जूनागढ़ की और प्रयाण किया | इस बात की खबर जाम सताजी को मिलते ही उसने मुज्जफर शाह को बरडा डुंगर के विस्तार में शरणागत दी...

धन्य हे ऐसे राजपुत जाम सत्रसाल (सताजी) को जिन्होंने क्षत्रिय धर्म का पालन करते हुए अपने राजपाट को त्याग करके एक शरणार्थी की रक्षा की |
      बादशाही लश्कर का बारूद और अन्न सामग्री पूरी होने के वजह से उन्होंने जूनागढ़ से लश्कर हटाकर जामनगर में सूबा रखकर बाकि के लश्कर को अहमदाबाद भेज दिया | मुजफ्फर शाह को अहसास हुआ की मेरे लिए जिसने अपने लाखो को शहीद कर दिया और इतनी तकलीफ उठाई उनको अब ज्यादा परेशान नहीं करना चाहिए, इसलिए वो बरडा डुंगर से भाग गया और कच्छ में राव भारमल के शरण में गया |


      जामनगर में जाम सताजी की गैरहाजरी का लाभ लेकर राणपुर के जेठवा राणा रामदेवजी के कुंवर राणा भाणजी के राणी कलाबाई ने अपनी फ़ौज से अपना गया हुआ प्रदेश जो जाम साहब में जीत लिया था उसको वापस कब्जे में कर लिया और छाया में राजधानी की स्थापना कर कुंवर खिमाजी को गद्दी पे बिठा दिया |

      जब सूबेदार को ऐसी खबर मिली की मुजफ्फर शाह जुनागढ़ में हे तो उसने वहां पर फ़ौज को भेजकर जाम सताजी को पत्र मारफत संदेसा भिजवाया की “जूनागढ़ के नवाब के ऊपर जब तक हमारा सैन्य रहे तब तक आपको शाही लश्कर के अन्न-पानी और राशन की सामग्री मोहैया करानी होगी और इस बात से जाम सताजी के साथ सुलह करके जाम सताजी को वापस वि.सं. १६४९ के माह सुद ३ को जामनगर की गद्दी को सताजी पर बिठाया |
      सूबेदार को जब पता चला की मुज्जफर शाह कच्छ में हे तो उन्होंने कच्छ के राव भारमल को संदेसा भिजवाया कच्छ के राव भारमल ने संदेसा मिलते ही मुजफ्फर शाह को अबदल्ला खान की फ़ौज में हाजिर होने के लिए भेजा, और उसे अहमदाबाद की और भेजा लेकिन रास्ते में मुज्जफर शाह ने ध्रोल के पास आत्महत्या कर ली.|

      इस तरह जाम सताजी ने एक मुस्लिम सरणार्थी को दिए हुए वचन को निभाते हुए अपनी राजपाट गवाकर और हजारो राजपूतों  की सेना के शहीद होते हुए भी अपने क्षात्र-धर्म का पालन किया |||
      ध्रोल के पादर में भुचर-मोरी के मैदान में आज भी हर साल श्रावण वद सातम को हज़ारों की संख्या में राजपुत इकठ्ठे होते हे और इन वीर शहीदों की श्रधांजली अर्पण करते हे यहाँ पर बड़ी मात्र में अन्य जाती के लोग भी इन शहीदों को श्रंधाजली अर्पण करते हे | युध्ध में इतनी भारी मात्रा में शहादत हुई थी की आज की तारीख में भी भूचर-मोरी के मैदान की मिट्टी लहू के लाल रंग की है |||


संदर्भ:-  
1. “यदुवंश प्रकाश” -- लेखक जामनगर स्टेट राजकवि “मावदानजी भीमजी रत्नु” -- पृष्ठ संख्या 191 से 228…
                2. विभा-विलास” -- देवनागरी लिपि में लिखा हुआ यदुवंश का पुष्तक जिसके लेखक हे -- चारण कवि “व्रजमालजी परबतजी माहेडू”
      3. “नगर-नवानगर-जामनगर”--- लेखस इतिहासकार हरकिशन जोषी – पृष्ठ संख्या71 से 76...
       4.  सौराष्ट्र का इतिहास” – लेखक इतिहासकार शंभूप्रसाद हरप्रसाद देसाई – पृष्ठ संख्या 563 से 567…
                5.  निजामुदीन अहमद लिखित मुग़लो के शाही दस्तावेज
      6. तारीखे सोरठ” – जूनागढ़ के नवाबी शाशन का इतिहास
      7. “मिरांते सिकंदरी” – मुग़ल शाही दस्तावेज

8-http://rajputanasoch-kshatriyaitihas.blogspot.in/2015/09/the-historical-battle-of-bhuchar-mori.html

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