Tuesday, November 17, 2015

jadeja rajput and muslim war

यदुवंशी क्षत्रिय जाम सत्रसाल उर्फ़ सता जी जाडेजा और मुगलों से तमाचन का युद्ध(सम्वत 1639)-------
जय श्रीकृष्ण----
मजेवाड़ी के मैदान में सम्वत 1633 में जाडेजा राजपुतो ने भान जी दल जाडेजा और जेसा जी वजीर के नेत्रत्व में मुग़ल लश्कर को पस्त कर दिया था |भान जी दल जाडेजा ने मजेवाड़ी में अकबर के शिविर से 52 हाथी, 3530 घोड़े और पालकियों को अपने कब्जे में लिया था और मुगल सेनापति मिर्जा खान तथा अकबर सौराष्ट्र से भाग खड़े हुए थे. सरदार मिर्ज़ा खान ने अहमदाबाद जाकर सूबेदार शाहबुदीन अहमद खान को बताया की किस तरह जाम साहिब की फ़ौज ने उनके लश्कर का बुरी तरह नाश कर दिया और वो अपनी जान बचाकर वहा से भाग निकला | खुद अकबर भी इस हार से बहुत नाराज था | अब मुगल सेना नवानगर को नष्ट करने के प्रयोजन पर लग गई और जल्दी ही कुछ वर्ष बाद सम्वत 1639 में शाहबुदीन ने खुरम नामके सरदार को एक प्रचंड सैन्य के साथ जामनगर पर चढाई करने के लिए भेजा |

मुग़ल सूबे का बड़ा लश्कर जामनगर(नवानगर) के ऊपर आक्रमण करने के लिए आ रहा हे ये बात जाम श्री सताजी साहिब को पता चलते ही उन्होंने जेसा वजीर और कुंवर अजाजी को एक बड़ा लश्कर लेकर उनके सामने युद्ध करने के लिए चल पडे | इस सैन्य में पाटवी कुंवर अजाजी,कुंवर जसाजी,जेसा वजीर, भाराजी, रणमलजी, वेरोजी, भानजी दल, तोगाजी सोढा ये सब भी थे | जाम साहिब सताजी अपने सेना को लेकर तमाचन के गाव के पादर मे उंड नदी ने के किनारे आके अपनी सैन्य छावनी रखी | मुग़ल फ़ौज भी सामने गोलिटा नामके गाव के पास आ कर रुक गई |

मुग़ल फ़ौज के जासूसों ने सूबेदार को कहा की जाम साहिब के लश्कर में तोपे और वीर योद्धाओ का भारी मात्रा में ज़ोर हे, इसिलिए अगर समाधान हो सके तो अच्छा रहेगा | ये बात सुनकर खुरम भी अंदर से डर गया और उसने जाम सताजी को पत्र लिखा:-
“ साहेब आप तो अनामी है, आपके सब भाई, कुंवर और उमराव भी युद्ध से पीछे हठ करे ऐसे कायर नहीं हे | हम तो बादशाह के नोकर होने की वजह से बादशाह जहा हुकुम करे वह हमको जाना पड़ता हे, उनके आदेश के कारण हम यहाँ आए हुए है, पर हमारी इज्जत रहे ये अब आपके हाथ में है |”

इस पत्र को पढ़ते ही जाम साहेब ने जेसा वजीर से सलाह मशवरा करने के बाद जवाब भेजा की “ आप लोग एक मंजिल पीछे हट जाइए” ये जवाब मिलते ही खुरम ने दुसरे दिन सुबह होते ही पड़धरी गाव की दिशा में कुच की , वो एक मंजिल पीछे हट गया | ये देखकर जाम साहिब ने जाम साहिब ने उसे कुछ पोशाक-सोगात देकर उसे कुछ किए बिना अपने लश्कर को लेकर जामनगर की और रवाना हो गए | ये देखते ही कुंवर जसाजी ने जाम साहिब से कहा की हुकुम अगर आपकी अनुमति हो तो हम यहाँ पे थोड़े दिन रुकना चाहते हे | इस बात को कबुल करके जाम साहिब ने भारोजी, महेरामनजी, भानजी दल, जेसो वजीर और तोगाजी सोढा इन सब सरदारों के साथ २०,००० के सैन्य को वह पे रुकने दिया और खुद जामनगर की तरफ रवाना हो गए | कुंवर जसाजी ने तमाचन के पादर में अपना डेरा जमकर वहा पर खाने-पीने की बड़ी मिजबानी करने की तयारी करने लगे |

इस तरफ खुरम का जासूस ये सब देख रहा था | उसने फ़ौरन जाकर खुरम को बताया की जाम साहिब का लश्कर जामनगर जा चूका हे, यहाँ पर सिर्फ २०,००० का सैन्य हे | ये सब लोग मेजबानी में शराब की महफ़िल में व्यस्त हे, ये सही समय हे उनपे आक्रमण करने का | बाद में हम कुंवर को पकडके जाम साहिब को बोलेंगे की मजेवाडी के युद्ध में हुए हमारे नुकशान की भरपाई करो हमारा सामान वापस दो वरना हम आपके कुंवर को मुसलमान बना देंगे | इससे हमारी इज्जत भी रहेंगी और अहमदाबाद जाकर शाहबुदीन सूबेदार और बादशाह को भी खुश कर देंगे .|

इस बात को सुनने के बाद खुरम तैयार होकर अपने शस्त्र के साथ हाथी पर बैठा अपनी तोपों को आगे बढाया अपने सैन्य और घुड़सवार को लेकर तमाचन की तरफ चल पड़ा |

इस बात की जाम साहिब की छावनी में किसी को भनक तक नहीं थी | वह पर सभी आनंद-प्रमोद में मस्त थे | वही परअचानक आसमान में धुल उडती देख जेसा वजीर ने अपने चुनिदा सैनिको को आदेश दिया की “ये धुल किसकी हे पता करके आओ, मुझे लगता हे इन तुर्कों ने हमसे दगा किया हे | सैनिक तुरंत खबर लेके आए की खुरम की फ़ौज हमारे तरफ आगे बढ़ रही हे | इस बात को सुनते ही जेसा वजीर ने कुंवर जसाजी को कहा की “ आप जामनगर को पधारिए हम आपके सेवक यहाँ पे युद्ध करेंगे” कुंवर जेसाजी ने जवाब दिया की “ इस समय अगर में पीठ दिखा कर चला गया तो में राजपुत नहीं रहूँगा, जीतना हारना सब उपरवाले के हाथ में है, पर रणमैदान छोड़ कर चला जाना क्षात्र-धर्मं के खिलाफ है |”

कुंवर जसाजी ने ये कहकर अपनी फ़ौज को तैयार किया और उंड नदी को पार करते हुए सामने की तरफ आ पहोचे | दोनों तरफ से तोपों और बंदुके चलने लगी और कई सैनिक मरने लगे | ये देखकर बारोट कानदासजी रोह्डीआ ने जेसा वजीर से कहा की “हे वजीर तु सब युद्ध कला जनता हे, फिर भी हमारे लोग यहाँ मर रहे है, और तू कुछ बोल क्यों नहीं रहा ? इस तरह लड़ने से हमारी जीत नहीं होगी, मेरी मानो तो हर हर महादेव का नारा बुलाकर अब केसरिया करने का वक़्त आ गया हे, अपने घोड़े पर बैठकर मुग़ल सेना से भिड़ जाओ , फिर उन तुर्कों की क्या औकाद है हम देखते ही उनका संहार कर डालेंगे”

ये सुनकर जेसा वजीर और कुंवर जसाजी, भानजी दल, मेरामणजी, भाराजी सब हर हर महादेव का नारा लगाकर केसरिया करने को तैयार हो गए | हाथ में भाले लेकर सब मुग़ल सेना से भीड़ पडे तलवारे निकल कर सबको काटने लगे चारो तरफ खून ही दिख रहा था, मांसाहारी पक्षी आसमान में दिखने लगे, पुरा रणमैदान रक्त से लाल हो गया था | इतना बड़ा राजपुतो और मुगलो के बीच में युद्ध हुआ था की देखते ही देखते वह १५,००० लाशो से रणमैदान भर गया | खुरम की फ़ौज के सैनिक डर के मारे भागने लगे | खुरम खुद अपने हाथी में से उतरकर घोड़े पर बैठ के भाग गया | जाम श्री सताजी साहिब के सैन्य ने विसामण नाम के गाव तक मुग़ल फ़ौज का मारते मारते पिछा किया | वहां से वे रुक गए जीत के ढोल बजाते हुए रणमैदान में वापस आ कर बादशाही खजाने तंबू, मुग़ल के नगारे, ३२ हाथी, सेंकडो घोड़े, तोपे, रथ आदि लेकर कुंवर जसाजी के साथ जामनगर पधारे |

इतनी सी छोटी उमर में कुंवर जसाजी का ये अदभुत पराक्रम देखकर जाम सताजी बहुत खुश हो गए | उन्होंने जेसा वजीर, महेरामणजी, भाराजी , भानजी दल तथा तोगाजी सोढा आदि सरदारों को अमूल्य भेट अर्पण की इसके साथ ही जो सैनिक युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गए थे उनके परिवार को जागीर में जमीने और अमुक रमक देने का वचन दिया |

जाडेजा राजपुतो ने अपने राजा की गैरहाजरी में भी उनके सरदारों ने सूझ-बूझ का परिचय देकर और अपने से ज्यादा बड़ी मुगल फ़ौज जिससे लड़ने से भी बड़े-बड़े राजा महाराजा डरते थे उसको न केवल हराकर बल्कि रण-मैदान से भगाकर अदम्य शाहस और राजपुती शौर्य का परिचय दिया था |

References:
1- Yaduvansh prakash...pratham khand... page no 185,
2- Saurastra ka itihas page no.559
3---
http://rajputanasoch-kshatriyaitihas.blogspot.in/2015/09/the-battle-of-tamacha.html
4- भंवर अभिजीत सिंह जाडेजा जी 

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