Thursday, October 29, 2015

कहानी मीरपुर की

कहानी मीरपुर की – जिसे पाकिस्तान के हाथो बर्बाद होने दिया भारतीय रहनुमाओं ने…..
1947 में हुए भारत-पाकिस्तान विभाजन की कई दर्दनाक कहानियां है।
ऐसी ही एक कहानी है तत्कालीन कश्मीर रिसायसत के एक शहर मीरपुर की। पर मीरपुर की कहानी इस मायने में ज्यादा दर्दनाक है की यहाँ के हिन्दू वाशिंदों की खुद को पाकिस्तानी सेना से बचाने की गुहार को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और तत्कालीन कश्मीर रियासत के प्रमुख शेख अब्दुल्ला ने अनसुना कर दिया और उन्हें पाकिस्तानी सेना के हाथो मरने को छोड़ दिया।
परिणामतः पाकिस्तानी सेना ने मीरपुर पर आक्रमण कर के 18000 हिन्दुओं और सीखो की हत्या कर दी।
पाकिस्तानी फौज करीब पांच हजार युवा लड़कियों और महिलाओं का अपहरण कर पाकिस्तान ले गई।
इन्हें बाद में मंडी लगाकर पाकिस्तान और खाड़ी के देशों में बेच दिया गया।
आइए घटनाक्रम को विस्तार पूर्वक जानते है …………
बटवारे के समय मीरपुर के सभी मुसलमान 15 अगस्त के आसपास बिना किसी नुकसान के पाकिस्तान चले गए थे।
देश के विभाजन के समय पाकिस्तान के पंजाब से हजारों हिंदू और सिख मीरपुर में आ गए थे।
इस कारण उस समय मीरपुर में हिंदुओं की संख्या करीब 40 हजार हो गई थी। मीरपुर जम्मू-कश्मीर रियासत का एक हिंदू बहुल शहर था।
मुसलमानों के खाली मकानों के अलावा वहां का बहुत बड़ा गुरुद्वारा दमदमा साहिब, आर्य समाज, सनातन धर्म सभा और बाकी सभी मंदिर शरणार्थियों से भर गए थे।
यही हालत कोटली, पुंछ और मुजफ्फराबाद में भी हुई।
मीरपुर और आसपास के इलाकों के रियासत भारत में विलय की घोषणा
(27 अक्टूबर) से पहले ही अगस्त में पाकिस्तान में शामिल किए जा चुके थे।
यह क्षेत्र महाराजा की सेना की एक टुकड़ी के सहारे था।
पाकिस्तानी इलाकों से भागे हुए हिंदू और सिख यहां आ रहे थे।
नेहरू सरकार ने यहां अपना कब्जा मजबूत करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया और न ही कश्मीर की तत्कालीन सरकार ने हिंदुओं की रक्षा के लिए सेना की टुकड़ी ही यहां भेजी।
इधर 16 नवंबर तक बड़ी संख्या में भारतीय सेना कश्मीर आ चुकी थी।
13 नवंबर को शेख अब्दुल्ला दिल्ली पहुंच गए।
14 नवंबर को नेहरू ने मंत्रिमंडल की जल्दी में बैठक बुलवाई और सेना मुख्यालय को सेना झंगड़ से आगे बढ़ने से रोकने के आदेश दिए।
मीरपुर की ओर पीर पंचाल की ऊंची पहाड़ी है।
यहां तक भारतीय सेनाओं का नियंत्रण हो चुका था।
परंतु आदेश न मिलने के कारण सेना आगे नहीं बढ़ी।
मीरपुर के हालात लगातार बिगड़ते जा रहे थे।
मेहरचंद महाजन ने शेख अब्दुल्ला को बताया कि मीरपुर में 25 हजार से ज्यादा हिंदू-सिख फंसे हुए हैं।
उन्हें सुरक्षित लाने के लिए कुछ किया जाना चाहिए।
जम्मू-कश्मीर की जो आठ सौ सैनिकों की चौकी थी, जिसमें आधे से अधिक मुसलमान थे, वे अपने हथियारों समेत पाकिस्तान की सेना से जा मिल थे। मीरपुर के लिए तीन महीने तक कोई सैनिक सहायता नहीं पहुंची।
शहर में 17 मोर्चों पर बाहर से आए हमलावरों को महाराजा की सेना की छोटी-सी टुकड़ी ने रोका हुआ था, सैनिक मरते जा रहे थे, 16 नवंबर को पाकिस्तान को पता चला कि भारतीय सेनाएं जम्मू से मीरपुर की ओर चली थीं, उनको उड़ी जाने के आदेश दिए गए हैं।
मीरपुर में शेख अब्दुल्ला ने सेना नहीं भेजी।
मीरपुर की हालत का जानकार जम्मू का एक प्रतिनिधि मंडल 13 नवंबर को दिल्ली गया।
नेहरूजी ने पूरे प्रतिनिधि मंडल को कमरे से बाहर निकलवा दिया और अकेले मेहरचंद महाजन से बात की।
नेहरू ने शेख अब्दुल्ला से बात करने कहा।
इसके बाद यह लोग सरदार वल्लभ भाई पटेल के पास गए।
सरदार ने कहा कि वह बेबस हैं।
इस बात पर पंडित जी से बात बिगड़ चुकी है। पटेल ने कहा कि पंडित नेहरू कल (15 नवम्बर, 1947) जम्मू जा रहे हैं।
आप वहां उनसे मिले सकते हैं।
15 नवंबर को जब पंडित नेहरू जम्मू पहुंचे तो हजारों लोग उनका इंतजार कर रहे थे।
नेहरूजी बिना किसी से बात किए चले गए।
इधर, दिल्ली में ये लोग महात्मा गांधी से मिले तो उन्होंने जवाब दिया कि मीरपुर तो बर्फ से ढंका हुआ है।
उनको यह भी नहीं पता था कि मीरपुर में तो बर्फ ही नहीं पड़ती।
25 नवबंर को हवाई उड़ान से वापस आए एक पायलट ने बताया कि मीरपुर के लोग काफिले में झंगड़ की ओर चल पड़े हैं।
शहर से आग की लपटें उठ रही हैं।
इसके बाद जो हुआ, वह बहुत ही दर्दनाक है।
रास्ते में पाकिस्तान की फौज ने घेर कर उनका कत्लेआम कर दिया।
किसी परिवार का एक व्यक्ति मारा गया था, किसी के दो व्यक्ति।
कई ऐसे थे जिनकी आंखों के सामने उनके भाइयों, माता-पिता और बच्चो को मार दिया गया था।
कई ऐसे थे जो रो-रो कर बता रहे थे कि कैसे वे लोग उनकी बहन-बेटियों को उठाकर ले गए।
25 नवंबर को भारतीय सेनाओं को पता चल गया था कि मीरपुर से हजारों की संख्या में काफिला चल चुका है और पाकिस्तानी सेना ने शहर लूटना शुरू कर दिया है।
मीरपुर में उत्तर की ओर गुरुद्वारा दमदमा साहिब और सनातन धर्म मंदिर थे। इनके बीच में एक बहुत बड़ा सरोवर और गहरा कुआं था।
लगभग 75 प्रतिशत लोग कचहरी से आगे निकल चुके थे।
शेष स्त्रियों, लड़कियों और बूढ़ों को पाकिस्तानी कबाइलियों (सैनिकों) ने इस मैदान में घेर लिया।
आर्य समाज के स्कूल के छात्रावास में 100 छात्राएं थीं।
छात्रावास की अधीक्षिका ने लड़कियों से कहा अपने दुपट्टे की पगड़ी सर पर बांधकर और भगवान का नाम लेकर कुओं में छलांग लगा दें और मरने से पहले भगवान से प्रार्थना करें कि अगले जन्म में वे महिला नहीं, बल्कि पुरुष बनें।
बाद में उन्होंने खुद भी छलांग लगा दी।
कुंआ इतना गहरा था कि पानी भी दिखाई नहीं देता था।
ऐसे ही सैकड़ों महिलाओं ने अपनी लाज बचाई।
बहुत से लोग अपनी हवेली के तहखानों में परिवार सहित जा छुपे, लेकिन वहशियों ने उन्हें ढूंढ निकाला।
मर्दों और बूढ़ों को मार दिया।
उस दौरान पाकिस्तानी सेना ने सारी हदें पार कर चुकी थी।
25 नवंबर के आसपास पांच हजार हिंदू लड़कियों को वे लोग पकड़ कर ले गए। बाद में इनमें से कई को पाकिस्तान, अफगानिस्तान और अरब देशों में बेचा गया।
कबाइलियों ने बाकी लोगों का पीछा करने के बजाय नौजवान लड़कियों को पकड़ लिया और शहर को लूटना शुरू कर दिया।
इसी दौरान वहां से भागे हुए मुसलमान मीरपुर वापस आ गए और शाम तक शहर को लूटते रहे।
उन सबको पता था कि किस घर में कितना माल और सोना है।
मीरपुर को लूटने में लगे पाकिस्तानी सैनिकों ने यहां से करीब दो घंटे पहले निकल चुके काफिले का किसी ने पीछा नहीं किया।
काफिला अगली पहाड़ियों पर पहुंच गया।
वहां तीन रास्ते निकलते थे।
तीनों पर काफिला बंट गया।
जिसको जहां रास्ता मिला, भागता रहा।
पहला काफिला सीधे रास्ते की तरफ चल दिया जो झंगड़ की तरफ जाता था। दूसरा कस गुमा की ओर चल दिया।
पहला काफिला दूसरी पहाड़ी तक पहुंच चुका था, परंतु उसके पीछे वाले काफिले को कबाइलियों ने घेर लिया।
उन दरिंदों ने जवान लड़कियों को एक तरफ कर दिया और बाकी सबको मारना शुरू कर दिया।
कबाइली और पाकिस्तानी उस पहाड़ी पर जितने आदमी थे, उन सबको मारकर नीचे वाले काफिले की ओर बढ़ गए।
इस घटनाक्रम में 18,000 से ज्यादा लोग मारे गए।
र्तमान में मीरपुर पाकिस्तान में है लेकिन वहां पुराने मीरपुर का नामोनिशान बाकी नहीं है।
पुराने मीरपुर को पाकिस्तान ने झेलम नदी पर मंगला बाँध बना कर डुबो दिया है ………

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