Tuesday, October 20, 2015

सूर्य वंश का संक्षिप्त परिचय

___सूर्य वंश का संक्षिप्त परिचय___________________________
पहले अयोध्या भारतवर्ष की राजधानी हुआ करती थी बाद में हस्तीनापुर हो गई।
इक्ष्वाकु के दूसरे पुत्र निमि मिथिला के राजा थे। इसी इक्ष्वाकु वंश में बहुत आगे चलकर राजा जनक हुए। राजा निमि के गुरु थे- ऋषि वसिष्ठ। निमि जैन धर्म के 21वें तीर्थंकर बनें।
इस तरह से यह वंश परम्परा चलते-चलते हरिश्चन्द्र रोहित, वृष, बाहु और सगर तक पहुंची। राजा सगर के दो स्त्रियां थीं-प्रभा और भानुमति। प्रभा ने और्वाग्नि से साठ हजार पुत्र और भानुमति केवल एक पुत्र की प्राप्ति की जिसका नाम असमंजस था।
असमंज के पुत्र अंशुमान तथा अंशुमान के पुत्र दिलीप हुए। दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए। भगीरथ ने ही गंगा को पृथ्वी पर उतार था। भगीरथ के पुत्र ककुत्स्थ और ककुत्स्थ के पुत्र रघु हुए। रघु के अत्यंत तेजस्वी और पराक्रमी नरेश होने के कारण उनके बाद इस वंश का नाम रघुवंश हो गया। तब राम के कुल को रघुकुल भी कहा जाता है।
रघु कुल : सूर्य वशं को आगे बढ़ाया रघु कुल ने। रघु के पुत्र प्रवृद्ध हुए। प्रवृद्ध के पुत्र शंखण और शंखण के पुत्र सुदर्शन हुए। सुदर्शन के पुत्र का नाम अग्निवर्ण था। अग्निवर्ण के पुत्र शीघ्रग और शीघ्रग के पुत्र मरु हुए। मरु के पुत्र प्रशुश्रुक और प्रशुश्रुक के पुत्र अम्बरीष हुए। अम्बरीष के पुत्र का नाम नहुष था। नहुष के पुत्र ययाति और ययाति के पुत्र नाभाग हुए। नाभाग के पुत्र का नाम अज था। अज के पुत्र दशरथ हुए और दशरथ के ये चार पुत्र- राम, , तथा शत्रुघ्न हैं। राम के पुत्र हुए लव और कुश।
राजा लव से राघव राजपूतों का जन्म हुआ। जिनमें बर्गुजर, जयास और सिकरवारों का वंश चला। इसकी दूसरी शाखा थी सिसोदिया राजपूत वंश की। जिसमें गैहलोत (गुहिल) वंश के राजा हुए। कुश से कुशवाह (कछवाह) राजपूतों का वंश चला।
एक शोधानुसार लव और कुश की 50वीं पीढ़ी में राजा शल्य हुए ‍जो महाभारत युद्ध में कोरवों की ओर से लड़े थे। राम के आगे के सूर्य वंश की वंशावली पढ़ेंगे अगले अंक में।-
महाभारत में सूर्य वंश (hindu suryavanshi) वंशावली मिलती है। वैवस्वत मनु से सूर्य वंश की शुरुआत मानी गई है। में पुलस्त्य ने भीष्म को सूर्य वंश का विवरण बताते हुए कहा कि वैवस्वत मनु के दस पुत्र थे और 10. पुत्र थे।
इल की कथा : मनु ने ज्येष्ठ पुत्र इल को राज्य पर अभिषिक्त किया और स्वयं तप के लिए वन को चले गए। इल अर्थसिद्धि के लिए रथारूढ़ होकर निकले। वह अनेक राजाओं को बाधित करता हुआ भगवान शिव के क्रीड़ा उपवन की ओर जा निकले। उपवन से आकृष्ट होकर वह अपने अश्वारोहियों के साथ उसमें प्रविष्ट हो गए।
पार्वती द्वारा विदित नियम के कारण इल और उसके सैनिक तथा अश्वादि स्त्री रूप हो गए। यह स्थिति देखकर इल ने पुरुषत्व के लिए भगवान शिव की स्तुति आराधना की। भगवान शिव शंकर प्रसन्न तो हुए परन्तु उन्होंने इल को एक मास स्त्री और एक मास पुरुष होने का विधान किया।
स्त्री रूप में इस इल के बुध से पुरुरवा नाम वाले एक गुणी पुत्र का जन्म हुआ। इसी इल राजा के नाम से ही यह प्रदेश ‘इलावृत्त’ कहलाया। इसी इल के पुरुष रूप में तीन उत्कल गए और हरिताश्व-बलशाली पुत्र उत्पन्न हुए।
अन्य पुत्र के पुत्र : वैवस्वत मनु के अन्य पुत्रों में से नरिष्यन्त का शुक्र, नाभाग (कुशनाम) का अम्बरीष, धृष्ट के धृष्टकेतु, स्वधर्मा और रणधृष्ट, शर्याति का आनर्त पुत्र और सुकन्या नाम की पुत्री आदि उत्पन्न हुए। आनर्त का रोचिमान् नामक बड़ा प्रतापी पुत्र हुआ। उसने अपने देश का नाम अनर्त रखा और कुशस्थली नाम वाली पत्नी से रेव नामक पुत्र उत्पन्न किया। इस रेव के पुत्र रैवत की पुत्री रेवती का बलराम से विवाह हुआ।
इक्ष्वाकु कुल : मनु के दूसरे पुत्र इक्ष्वाकु से विकुक्षि, निमि और दण्डक पुत्र उत्पन्न हुए। इस तरह से यह वंश परम्परा चलते-चलते हरिश्चन्द्र रोहित, वृष, बाहु और सगर तक पहुंची। राजा सगर के दो स्त्रियां थीं-प्रभा और भानुमति। प्रभा ने और्वाग्नि से साठ हजार पुत्र और भानुमति केवल एक पुत्र की प्राप्ति की जिसका नाम असमंजस था।
यह कथा बहुत प्रसिद्ध है कि सगर के साठ हजार पुत्र कपिल मुनि के शाप से पाताल लोक में भस्म हो गए थे और फिर असमंजस की परम्परा में भगीरथ ने गंगा को मनाकर अपने पूर्वजों का उद्धार किया था। इस तरह सूर्य वंश के अन्तर्गत अनेक यशस्वी राजा उत्पन्न हुए.!

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