Wednesday, September 9, 2015

श्री गुरु गोविन्द सिंह जी

परम् वीर श्रद्धेय श्री गुरु गोविन्द सिंह जी..🙏

गुरु गोबिन्द सिंह (जन्म: २२ दिसम्बर १६६६, मृत्यु: ७ अक्टूबर १७०८) सिखों के दसवें गुरु थे। उनका जन्म बिहार के पटना शहर में हुआ था। उनके पिता गुरू तेग बहादुर की मृत्यु के उपरान्त ११ नवम्बर सन १६७५ को वे गुरू बने। वह एक महान योद्धा, कवि, भक्त एवं आध्यात्मिक नेता थे। उन्होने सन १६९९ में बैसाखी के दिन उन्होने खालसा पन्थ की स्थापना की जो सिखों के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है।

उन्होने मुगलों या उनके सहयोगियों (जैसे, शिवालिक पहाडियों के राजा) के साथ १४ युद्ध लड़े। धर्म के लिए समस्त परिवार का बलिदान उन्होंने किया जिसके लिए उन्हें 'सरबंसदानी' भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त जनसाधारण में वे कलगीधर, दशमेश, बाजांवाले आदि कई नाम,उपनाम व उपाधियों से भी जाने जाते हैं।

गुरु गोविंद सिंह जहां विश्व की बलिदानी परम्परा में अद्वितीय थे, वहीं वे स्वयं एक महान लेखक, मौलिक चिंतक तथा कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे। उन्होंने स्वयं कई ग्रंथों की रचना की। वे विद्वानों के संरक्षक थे। उनके दरबार में ५२ कवियों तथा लेखकों की उपस्थिति रहती थी, इसीलिए उन्हें 'संत सिपाही' भी कहा जाता था। वे भक्ति तथा शक्ति के अद्वितीय संगम थे।

1695 में, दिलावर खान (लाहौर का मुगल मुख्य) ने अपने बेटे हुसैन खान को आनंदपुर साहिब पर हमला करने के लिए भेजा । मुगल सेना हार गई और हुसैन खान मारा गया। हुसैन की मृत्यु के बाद, दिलावर खान ने अपने आदमियों जुझार हाडा और चंदेल राय को शिवालिक भेज दिया। हालांकि, वे जसवाल के गज सिंह से हार गए थे। पहाड़ी क्षेत्र में इस तरह के घटनाक्रम मुगल सम्राट औरंगज़ेब लिए चिंता का कारण बन गए और उसने क्षेत्र में मुगल अधिकार बहाल करने के लिए सेना को अपने बेटे के साथ भेजा।

एक ही बाण से औरंगजेब पराजित
खालसा पंथ की स्थापना के बाद औरंगजेब ने पंजाब के सूबेदार वजीर खां को आदेश दिया कि सिखों को मारकर गोविन्द सिंह को कैद कर लिया जाये। गोविंद सिंह ने अपने मुट्ठी भर सिख जांबाजों के साथ मुगल सेना से डटकर मुकाबला किया और मुगलों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।

तभी गोविंद सिंह ने कहा 'चिड़िया संग बाज लड़ाऊं, तहां गोबिंद सिंह नाम कहाऊं'। गोविंद सिंह ने मुगलों की सेना को चिड़िया कहा और सिखों को बाज के रूप में संबोधित किया। औरंगजेब इससे आग-बबूला हो गया। औरंगजेब के क्रोध को शांत करने के लिए मुगलों के सेनापति पाइंदा खां ने कहा कि 'मै गोविन्द सिंह से अकेला लडूंगा'। हमारी हार जीत से ही फैसला माना जाये।

पाइंदा खां का निशान अचूक था इसलिए औरंगजेब इस बात पर राजी हो गया। सिखों और मुगलों की सेना आमने-समाने डट गयी। गुरु गोविन्द सिंह ने पाइंदा खां से कहा कि चूंकि चुनौती तुम्हारी ओर से है, इसलिए पहला वार तुम करो। पाइंदा खां ने कहा, “ठीक है। तुमने मौत को न्योता दिया है। मेरा पहला वार ही आखिरी वार होगा।” फिर उसने धनुष पर बाण चढ़ाकर छोड़ा। गोविन्द सिंह ने पाइंदा खां का बाण बीच में ही काट दिया। अब बारी गोविन्द सिंह की थी। उन्होंने एक तीर छोड़ा और पाइंदा खां का सिर धड़ से अलग हो गया। सिख जीत गए, मुगलों को हार स्वीकार करनी पड़ी।Meenu Ahuja

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