Thursday, January 15, 2015

मुंढाड राजपूत वंश,history of rajput in Haryana

न्याय का पर्याय'' मुंढाड चबूतरा , कलायत (हरियाणा) ::-- मुंढाड 360 गांव का पवित्र चबूतरा........
मुंढाड राजपूत वंश परिचय----
.........न्याय का पर्याय'' मुंढाड चबूतरा , कलायत (हरियाणा) ::-- मुंढाड 360 गांव का पवित्र चबूतरा........

मुंढाड राजपूत वंश परिचय----

कलायत नगर और मुंढाड राजपूत वंश प्राचीनकाल से ही प्रसिद्ध है।अंग्रेजो द्वारा लिखित सरकारी गजेटियर करनाल के पृष्ठ नं 74 पर इसका वर्णन मिलता है। महान इतिहासकर ठाकुर ईश्वर सिंह मुंढाड द्वारा राजपूत वंशावली में इस वंश का सुंदर वर्णन मिलता है।
इसके अलावा राजस्थान के प्रसिद्ध जग्गेभटो के बहीखातों में भी शक सम्वत् सहित क्षत्रिय मडाढों के 360 गांव के अधिकार के साम्राज्य का विस्तृत वर्णन मिलता है। राजपूत वंशावली के अनुसार क्षत्रिय मुंढाड आदि पुरुष मर्यादा पुरुषोत्तम राम के अनुज भ्राता ‘लक्ष्मण’ के वंशज है। मुंढाड राजपूत प्रतिहार वंश की शाखा हैं जिनका कभी पुरे गुजरात पर शासन था।गुजरात पर शासन करने के कारण यह क्षत्रिय राजपूत वंश गुर्जर प्रतिहार और बाद में बडगूजर कहलाया।

राजौरगढ़ भी इन्ही के शासन में था।वहां का शासन छूटने के बाद ये मेवाड़ होते हुए हरियाणा आये। यहाँ पहले जिंद्रा ने जींद बसाया।1100 ई. में मडाढों के महाराजा साढदेव ने जीन्द को ब्राह्मणों को दान करके चंदेल गोत्र के राजपूतों से सातों दुर्ग जीतकर कलायत को अपनी नई राजधानी बनाया और 360 गांव को अपने अधीन कर लिया। वराहा राजपूतो को सालवन से हटाकर कब्जा किया।इनके क्षेत्र को नरदक धरा और मुंढाड वंश को नरदक धरा का राजवी कहा जाता है।
मुंढाढ़ों के राजा साढ्देव ने कलायत को अपनी राजधानी बनाया और तीन सौ साठ गाँवों को अपने आधीन कर लिया.

परिहार(प्रतिहार),बडगूजर,सिकरवार,मुंढाड,खड़ाड ये चारो राजपूत वंश एक ही शाखा से हैं और राघव(रघुवंशी)कहलाते हैं इसलिए आपस में शादी ब्याह नही करते।परिहारों(प्रतिहारो)ने कन्नौज को राजधानी बनाकर पुरे उत्तर भारत पर शासन किया।कन्नौज के प्रतिहार(परिहार)राजपूत राजाओं में नागभट्ट और मिहिरभोज बहुत प्रतापी हुए हैं जिन्होंने अरबो को भारत में घुसने नही दिया।

मुंढाड राजपूतो ने तैमूर का डटकर सामना किया,बाबर के समय मोहन सिंह मुंढाड ने इसी परम्परा को आगे बढ़ाया।समय समय पर ये महाराणा मेवाड़ की और से भी मुगलो के खिलाफ लड़े।जोधपुर के बालक राजा अजीत सिंह राठौर को ओरंगजेब से बचाकर ले जाने में इन्होने दुर्गादास राठौर का सहयोग किया।अंग्रेजो के खिलाफ भी इन्होंने जमकर लोहा लिया।
तभी इनके बारे में कहा जाता है,,
"मुगल हो या गोरे,लड़े मुंढाडो के छोरे"।

धर्म परिवर्तन ने इस वंश को बहुत सीमित कर दिया।हरियाणा में अधिकांश राजपूतो द्वारा इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया और विभाजन के बाद मुस्लिम राजपूत रांघड पाकिस्तान चले गए।जिससे हरियाणा में राजपूतो की संख्या बेहद कम हो गयी और जो हरियाणा राजपूतो का गढ़ था वो आज जाटलैंड बन गया है।
अब मुंढाड राजपूत वंश हरियाणा के 60 गांव में बसता है। 

अन्य जातियों में मुंढाड वंश-----
कुछ मुंढाड राजपूतो द्वारा दूसरी जातियों की स्त्रियों से विवाह के कारण उनकी सन्तान वर्णसनकर होकर दूसरी जातियों में मिल गए।धुल मंधान जाट इन्ही मुंढाड राजपूतो के वंशज हैं इसी प्रकार गूजर और अहिरो में भी मडाड वंश मिलता है। 

लाल चबूतरे की स्थापना---

इसके बाद इसी वंश ने तीन सौ साठ गाँवों की छतीस बिरादरियों को एकता के सूत्र में पिरोने के लिए मुग़ल शाशक औरंगजेब के शाशनकाल में बड़े मुंढाड चबूतरे की नींव रखी। यह बड़ा चबूतरा मडाढ 360 वर्तमान में जिसे लाल चबूतरा भी कहते हैं, 
जब भी इन गाँवों में किसी भी जाति वर्ग का विवाद होता था तो इस चबूतरे को साक्षी मानकर विभिन्न गाँवों के प्रतिनिधियों की पंचायत होती थी और फैसले किये जाते थे यही कारण है की आज भी इस चबूतरे को न्याय का पर्याय माना जाता है और इसे पुराने ज़माने की कचहरी कहा जाता है।

यह बड़ा चबूतरा पुराने जमाने की कोर्ट से कम नहीं था। हर वर्ग का आरोपी इस पवित्र व न्यायप्रिय चबूतरे के ऊपर पांव रखने पर स्वयं की अत्मा की सच्चाई उगलने पर मजबूर हो जाता था। आज भी यह बड़ा चबूतरा हर वर्ग के न्याय व शक्ति का प्रतीक है। आजादी से पहले इस बड़े चबूतरे का प्रचलन खूब चला और आजादी के बाद यह प्रचलन आसपास के कुछ गांव तक ही सिमट कर रह गया। 
अगर किसी वर्ग के व्यक्ति ने अपनी लापरवाही के कारण झूठ भी बोल दिया तो उस व्यक्ति का वंश ही मिट जाता था। यह सच कई वर्ग के व्यक्तियों पर साबित हुआ। आज भी इस चबूतरे के सामने से 36 बिरादरी का कोई भी नर या नारी निकलता है तो वह अपना शीश झुकाकर निकलता है।

बड़े बड़े राजनेता इस चबूतरे पर माथा टेककर राजनीती में विधायक सांसद और मंत्री,सीएम बने हैं जिनमे लाला बृजभान मुनक वाले, ओमप्रभा जैन,गीता भुक्कल,जयप्रकाश प्रमुख हैं।

आज भी कलायत गांव व अन्य किसी भी गांव पर कोई आपत्ति आती है तो इस चबूतरे पर ही हल किया जाता है। कलायत के क्षत्रिय मुडाढों ने काफी वर्षों से क्षत्रिय मडाढ सभा रजिस्टर्ड का गठन किया हुआ है, 
समय-समय पर क्षत्रिय मडाढों की सभा होती रहती है तथा इस कलायत क्षत्रिय मडाढ सभा के संस्थापक रविन्द्र सूर्यवंशी व पूर्व प्रधान मोहन राणा तथा वर्तमान प्रधान सलिन्दर राणा हैं। इसी बड़े चबूतरे पर आज भी हरियाणा राज्य व अन्य राज्यों की महापंचायतों के फैसले सुनाए जाते हैं।
note-यह पोस्ट ठाकुर ईश्वर सिंह मुंढाड जी की राजपूत वनशावली के पृष्ठ संख्या 93 से 96,ब्रिटिश कालीन करनाल गजेटियर,Thakur's era page की कलायत लाल चबूतरा आर्टिकल के आधार पर तैयार की गयी है।कोई त्रुटि हो या पूरक जानकारी हो तो कमेंट में जानकारी देने की कृपा करें।हम तथ्य का परीक्षण कर आर्टिकल एडिट कर देंगे।
निवेदन-कृपया पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।कॉपी पेस्ट न करें। कलायत नगर और मुंढाड राजपूत ...वंश प्राचीनकाल से ही प्रसिद्ध है।अंग्रेजो द्वारा लिखित सरकारी गजेटियर करनाल के पृष्ठ नं 74 पर इसका वर्णन मिलता है। महान इतिहासकर ठाकुर ईश्वर सिंह मुंढाड द्वारा राजपूत वंशावली में इस वंश का सुंदर वर्णन मिलता है।
इसके अलावा राजस्थान के प्रसिद्ध जग्गेभटो के बहीखातों में भी शक सम्वत् सहित क्षत्रिय मडाढों के 360 गांव के अधिकार के साम्राज्य का विस्तृत वर्णन मिलता है। राजपूत वंशावली के अनुसार क्षत्रिय मुंढाड आदि पुरुष मर्यादा पुरुषोत्तम राम के अनुज भ्राता ‘लक्ष्मण’ के वंशज है। मुंढाड राजपूत प्रतिहार वंश की शाखा हैं जिनका कभी पुरे गुजरात पर शासन था।गुजरात पर शासन करने के कारण यह क्षत्रिय राजपूत वंश गुर्जर प्रतिहार और बाद में बडगूजर कहलाया।

राजौरगढ़ भी इन्ही के शासन में था।वहां का शासन छूटने के बाद ये मेवाड़ होते हुए हरियाणा आये। यहाँ पहले जिंद्रा ने जींद बसाया।1100 ई. में मडाढों के महाराजा साढदेव ने जीन्द को ब्राह्मणों को दान करके चंदेल गोत्र के राजपूतों से सातों दुर्ग जीतकर कलायत को अपनी नई राजधानी बनाया और 360 गांव को अपने अधीन कर लिया। वराहा राजपूतो को सालवन से हटाकर कब्जा किया।इनके क्षेत्र को नरदक धरा और मुंढाड वंश को नरदक धरा का राजवी कहा जाता है।
मुंढाढ़ों के राजा साढ्देव ने कलायत को अपनी राजधानी बनाया और तीन सौ साठ गाँवों को अपने आधीन कर लिया.

परिहार(प्रतिहार),बडगूजर,सिकरवार,मुंढाड,खड़ाड ये चारो राजपूत वंश एक ही शाखा से हैं और राघव(रघुवंशी)कहलाते हैं इसलिए आपस में शादी ब्याह नही करते।परिहारों(प्रतिहारो)ने कन्नौज को राजधानी बनाकर पुरे उत्तर भारत पर शासन किया।कन्नौज के प्रतिहार(परिहार)राजपूत राजाओं में नागभट्ट और मिहिरभोज बहुत प्रतापी हुए हैं जिन्होंने अरबो को भारत में घुसने नही दिया।
मुंढाड राजपूतो ने तैमूर का डटकर सामना किया,बाबर के समय मोहन सिंह मुंढाड ने इसी परम्परा को आगे बढ़ाया।समय समय पर ये महाराणा मेवाड़ की और से भी मुगलो के खिलाफ लड़े।जोधपुर के बालक राजा अजीत सिंह राठौर को ओरंगजेब से बचाकर ले जाने में इन्होने दुर्गादास राठौर का सहयोग किया।अंग्रेजो के खिलाफ भी इन्होंने जमकर लोहा लिया।
तभी इनके बारे में कहा जाता है,,
"मुगल हो या गोरे,लड़े मुंढाडो के छोरे"।
धर्म परिवर्तन ने इस वंश को बहुत सीमित कर दिया।हरियाणा में अधिकांश राजपूतो द्वारा इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया और विभाजन के बाद मुस्लिम राजपूत रांघड पाकिस्तान चले गए।जिससे हरियाणा में राजपूतो की संख्या बेहद कम हो गयी और जो हरियाणा राजपूतो का गढ़ था वो आज जाटलैंड बन गया है।
अब मुंढाड राजपूत वंश हरियाणा के 60 गांव में बसता है।
अन्य जातियों में मुंढाड वंश-----
कुछ मुंढाड राजपूतो द्वारा दूसरी जातियों की स्त्रियों से विवाह के कारण उनकी सन्तान वर्णसनकर होकर दूसरी जातियों में मिल गए।धुल मंधान जाट इन्ही मुंढाड राजपूतो के वंशज हैं इसी प्रकार गूजर और अहिरो में भी मडाड वंश मिलता है।
लाल चबूतरे की स्थापना---
इसके बाद इसी वंश ने तीन सौ साठ गाँवों की छतीस बिरादरियों को एकता के सूत्र में पिरोने के लिए मुग़ल शाशक औरंगजेब के शाशनकाल में बड़े मुंढाड चबूतरे की नींव रखी। यह बड़ा चबूतरा मडाढ 360 वर्तमान में जिसे लाल चबूतरा भी कहते हैं,
जब भी इन गाँवों में किसी भी जाति वर्ग का विवाद होता था तो इस चबूतरे को साक्षी मानकर विभिन्न गाँवों के प्रतिनिधियों की पंचायत होती थी और फैसले किये जाते थे यही कारण है की आज भी इस चबूतरे को न्याय का पर्याय माना जाता है और इसे पुराने ज़माने की कचहरी कहा जाता है।
यह बड़ा चबूतरा पुराने जमाने की कोर्ट से कम नहीं था। हर वर्ग का आरोपी इस पवित्र व न्यायप्रिय चबूतरे के ऊपर पांव रखने पर स्वयं की अत्मा की सच्चाई उगलने पर मजबूर हो जाता था। आज भी यह बड़ा चबूतरा हर वर्ग के न्याय व शक्ति का प्रतीक है। आजादी से पहले इस बड़े चबूतरे का प्रचलन खूब चला और आजादी के बाद यह प्रचलन आसपास के कुछ गांव तक ही सिमट कर रह गया।
अगर किसी वर्ग के व्यक्ति ने अपनी लापरवाही के कारण झूठ भी बोल दिया तो उस व्यक्ति का वंश ही मिट जाता था। यह सच कई वर्ग के व्यक्तियों पर साबित हुआ। आज भी इस चबूतरे के सामने से 36 बिरादरी का कोई भी नर या नारी निकलता है तो वह अपना शीश झुकाकर निकलता है।
बड़े बड़े राजनेता इस चबूतरे पर माथा टेककर राजनीती में विधायक सांसद और मंत्री,सीएम बने हैं जिनमे लाला बृजभान मुनक वाले, ओमप्रभा जैन,गीता भुक्कल,जयप्रकाश प्रमुख हैं।
आज भी कलायत गांव व अन्य किसी भी गांव पर कोई आपत्ति आती है तो इस चबूतरे पर ही हल किया जाता है। कलायत के क्षत्रिय मुडाढों ने काफी वर्षों से क्षत्रिय मडाढ सभा रजिस्टर्ड का गठन किया हुआ है,
समय-समय पर क्षत्रिय मडाढों की सभा होती रहती है तथा इस कलायत क्षत्रिय मडाढ सभा के संस्थापक रविन्द्र सूर्यवंशी व पूर्व प्रधान मोहन राणा तथा वर्तमान प्रधान सलिन्दर राणा हैं। इसी बड़े चबूतरे पर आज भी हरियाणा राज्य व अन्य राज्यों की महापंचायतों के फैसले सुनाए जाते हैं।
note-यह पोस्ट ठाकुर ईश्वर सिंह मुंढाड जी की राजपूत वनशावली के पृष्ठ संख्या 93 से 96,ब्रिटिश कालीन करनाल गजेटियर,Thakur's era page की कलायत लाल चबूतरा आर्टिकल के आधार पर तैयार की गयी है

17 comments:

  1. जय राजपुताना 🚩 ...100% pure nd valuable content 👌👏

    ReplyDelete
  2. अगर आज हमारे 360 गाॅव होते तो हरियाणा मे आज हमारी अलग ही धाक होती । धाक तो आज भी 12% आबादी के साथ वैसी की वैसी ही है। जय माॅ भवानी ।


    Thakur Tushar Rana from Muana

    ReplyDelete
  3. Mandhad Rajput lav ke vanshaj hai na ki laxman ke or wo partihar nahi hai wo budgujar Rajput ki ek shakha hai jo ram ke son Lav ke vanshaj hai

    ReplyDelete
    Replies
    1. Bhai ma madad rajput hu .aur hum lazman k vansaj hai

      Delete
  4. Sikarwar rajput jo agrame hai 120 villege me niwas karte hai wo kis vansh ke hai please comment

    ReplyDelete
  5. Jai rajputana jai maharana partap
    Jai maa bhwani

    ReplyDelete
  6. Jo Karnal me hai mudad Rajput unka
    Wo konse hai badgujar
    Ya fir konse Rajput

    ReplyDelete
  7. मुधाड़ राजपूत के कुलदेवता व कुलदेवी का क्या नाम है

    ReplyDelete
  8. Kya name h mudhad rajput ki kul devi or kul devta ka nam

    ReplyDelete
  9. Mudhad kul devi ka mandir kaha hai

    ReplyDelete
  10. Gharonda haryana ke baba ka kya name tha pleess batana

    ReplyDelete
  11. बरसोला गांव में भाबर गोत्र भी राजपूतों (मुंढाड)से जाटों में बदला गया जो बहारी-बिघाणा से बरसोला चले गए और राजपूत से जाट जाति में शादी करके जाति परिवर्तन कर लिया। इसका संपूर्ण वर्णन बहारी मंदिर में पुस्तक में है।

    ReplyDelete
  12. मान्यवर,
    आपके द्वारा डाली गई पोस्ट में विरोधाभास है एक तरफ तो आप बडगुजर और मुडाढ को एक ही शाखा में बता रहे हैं जो कि सत्य भी है, दुसरी तरफ मुडाढो को लक्ष्मन वंशी बता रहे हैं, जबकि बडगुजरों को महाराज लव के वंशज , निसंदेह बडगुजर लव वंशी है परन्तु अब तो ये बात जागेभाटों की पोथियों और शोधकर्ताओं द्वारा प्रमाणित किया जा चुकी है कि मुडाढ विशुद्ध रूप से महाराज लव के वंशज हैं। आपसे अनुरोध है कि इस तरह की विरोधाभासी बातें पोस्ट में डालने से बचें और सत्य को स्वीकार कर अपनी आने वाली पीढ़ी को अपने वंश का साफ सुथरा इतिहास देकर जाएं।

    ReplyDelete