Friday, December 5, 2014

महाराणा प्रताप /MAHARANA PRATAP

"महाराणा प्रताप जी के भाले का वजन 80 किलो था और कवच का वजन 80 किलो था और कवच भाला,कवच,ढाल,और हाथ मे तलवार का वजन मिलाये तो 207 किलो"

*आज भी महा राणा प्रताप जी कि तलवार कवच आदि सामान उदयपुर राज घराने के संग्रालय में सुरक्षित है
*अकबर ने कहा था कि अगर राणा प्रताप मेरे सामने झुकते है तो आदा हिंदुस्तान के वारिस वो होंगे पर बादशाहट अकबर कि रहेगी
*हल्दी घाटीकी लड़ाई में मेवाड़ से 20000 सैनिलथे और अकबर कि और से 85000 सैनिक

*राणाप्रताप जी के घोड़े चेतक का मंदिर भी बना जो आज हल्दी घटी में सुरक्षित है
*महाराणा ने जब महलो का त्याग किया तब उनके साथ लुहार जाति के हजारो लोगो ने भी घर छोड़ा और दिन रात राणा कि फोज के लिए तलवारे बनायीं इसी समाज को आज गुजरात मध्यप्रदेश और राजस्थान में गड़लिया लोहार कहा जाता है नमन है ऐसे लोगो को

हल्दी घाटी के युद्ध के 300 साल बाद भी वह जमीनो में तलवारे पायी गयी। … आखिरी बार तलवारों का जखीरा 1985 हल्दी घाटी के में मिला
*महाराणा प्रताप अस्त्र शत्र कि शिक्सा जैमल मेड़तिया ने दी थी जो 8000 राजपूतो को लेकर 60000 से लड़े थे। …. उस युद्ध में 48000 मारे गए थे जिनमे 8000 राजपूत और 40000 मुग़ल थे|

#जय _महाराणा_प्रताप"महाराणा प्रताप जी के भाले का वजन 80 किलो था और कवच का वजन 80 किलो था और कवच भाला,कवच,ढाल,और हाथ मे तलवार का वजन मिलाये तो 207 किलो"
*आज भी महा राणा प्रताप जी कि तलवार कवच आदि सामान उदयपुर राज घराने के संग्रालय में सुरक्षित है
*अकबर ने कहा था कि अगर राणा प्रताप मेरे सामने झुकते है तो आदा हिंदुस्तान के वारिस वो होंगे पर बादशाहट अकबर कि रहेगी
*हल्दी घाटीकी लड़ाई में मेवाड़ से 20000 सैनिलथे और अकबर कि और से 85000 सैनिक
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*राणाप्रताप जी के घोड़े चेतक का मंदिर भी बना जो आज हल्दी घटी में सुरक्षित है
*महाराणा ने जब महलो का त्याग किया तब उनके साथ लुहार जाति के हजारो लोगो ने भी घर छोड़ा और दिन रात राणा कि फोज के लिए तलवारे बनायीं इसी समाज को आज गुजरात मध्यप्रदेश और राजस्थान में गड़लिया लोहार कहा जाता है नमन है ऐसे लोगो को
हल्दी घाटी के युद्ध के 300 साल बाद भी वह जमीनो में तलवारे पायी गयी। … आखिरी बार तलवारों का जखीरा 1985 हल्दी घाटी के में मिला
*महाराणा प्रताप अस्त्र शत्र कि शिक्सा जैमल मेड़तिया ने दी थी जो 8000 राजपूतो को लेकर 60000 से लड़े थे। …. उस युद्ध में 48000 मारे गए थे जिनमे 8000 राजपूत और 40000 मुग़ल थे|
 

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