Tuesday, September 8, 2015

द्रोणाचार्य पुत्र ..अश्वत्थामा.

.द्रोणाचार्य पुत्र ..अश्वत्थामा.
शारद्वतीं ततो भार्यां कृपीं द्रोणोऽन्वविन्दत्।
अग्रिहोत्रे च धर्मे च दमे च सततं रताम्।। 46 ।। महाभारत (संभव पर्व)

जन्म का रहस्य : अश्‍वत्थामा का जन्म भारद्वाज ऋषि के पुत्र द्रोण के यहां हुआ था। उनकी माता ऋषि शरद्वान की पुत्री कृपी थीं। द्रोणाचार्य का गोत्र अंगिरा था। तपस्यारत द्रोण ने पितरों की आज्ञा से संतान प्राप्‍ति हेतु कृपी से विवाह किया। कृपी भी बड़ी ही धर्मज्ञ, सुशील और तपस्विनी थीं। दोनों ही संपन्न परिवार से थे।

जन्म लेते ही अश्‍वत्थामा ने उच्चैःश्रवा (अश्व) के समान घोर शब्द किया, जो सभी दिशाओं और व्योम में गुंज उठा। तब आकाशवाणी हुई कि इस विशिष्ट बालक का नाम अश्‍वत्थामा होगा:
महाभारत में
अ: श्‍वत्थामा का भय : जब राक्षसों की सेना ने घटोत्कच के नेतृत्व में भयानक आक्रमण किया तो सभी कौरव वीर भाग खड़े, तब अकेले ही अश्‍वत्थामा वहां अड़े रहे। उन्होंने घटोत्कच के पुत्र अंजनपर्वा को मार डाला। साथ ही उन्होंने पांडवों की एक अक्षौहिणी सेना को भी मार डाला और घटोत्कच को घायल कर दिया।

अश्‍वत्थामा कौरव सेना के प्रधान महारथी थे। कुरुराज ने अपने पक्ष की ग्यारह अक्षौहिणी सेना को ग्यारह महारथियों के सेनापतित्व में संगठित किया था। ये थे द्रोण, कृप, शल्य, जयद्रथ, सुदक्षिण, कृतवर्मा, अश्‍वत्थामा, कर्ण, भूरिश्रवा, शकुनि और बाह्‍लीक। अतः अश्‍वत्थामा ग्यारह सेनापतियों में एक प्रमुख स्थान रखता है।

इधर युद्ध में अर्जुन, कृष्ण, युधिष्ठिर, भीम, नकुल, सहदेव, द्रुपद, धृष्टद्युम्न तथा घटोत्कच आदि लड़ रहे थे। उनके रहते हुए भी उनके देखते ही देखते अश्‍वत्थामा ने द्रुपद, सुत सुरथ और शत्रुंजय, कुंतीभोज के 90 पुत्रों तथा बलानीक, शतानीक, जयाश्‍व, श्रुताह्‍य, हेममाली, पृषध्र तथा चन्द्रसेन जैसे वीरों को रण में मार डाला और युधिष्ठिर की सेना को भगा दिया था।

अश्‍वत्थामा द्वारा किए जा रहे इस विध्वंस को देखते हुए पांडव पक्ष में भय और आतंक व्याप्त हो गया था। अब अश्‍वत्‍थामा को रोका जाना बहुत जरूरी हो गया था। सभी इस पर विचार करने लगे थे अन्यथा अगले दिन हार निश्चित थी।

अश्‍वत्‍थामा गज मारा गया : भीष्म के शरशय्या पर लेटने के बाद ग्यारहवें दिन के युद्ध में कर्ण के कहने पर द्रोण सेनापति बनाए जाते हैं। दुर्योधन और शकुनि द्रोण से कहते हैं कि वे युधिष्ठिर को बंदी बना लें तो युद्ध अपने आप खत्म हो जाएगा, तो जब दिन के अंत में द्रोण युधिष्ठिर को युद्ध में हराकर उसे बंदी बनाने के लिए आगे बढ़ते ही हैं कि अर्जुन आकर अपने बाणों की वर्षा से उन्हें रोक देता है। नकुल, युधिष्ठिर के साथ थे व अर्जुन भी वापस युधिष्ठिर के पास आ गए। इस प्रकार कौरव युधिष्ठिर को नहीं पकड़ सके।

लेकिन द्रोण की संहारक शक्ति के बढ़ते जाने से पांडवों के ‍खेमे में दहशत फैल जाती है। पिता-पुत्र ने मिलकर महाभारत युद्ध में पांडवों की हार सुनिश्चित कर दी थी। पांडवों की हार को देखकर श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से छल का सहारा लेने को कहा। इस योजना के तहत युद्ध में यह बात फैला दी गई कि 'अश्वत्थामा मारा गया', लेकिन युधिष्‍ठिर झूठ बोलने को तैयार नहीं थे। तब अवंतिराज के अश्‍वत्थामा नामक हाथी का भीम द्वारा वध कर दिया गया। इसके बाद युद्ध में यह बाद फैला दी गई कि 'अश्वत्थामा मारा गया'।

जब गुरु द्रोणाचार्य ने धर्मराज युधिष्ठिर से अश्वत्थामा की सत्यता जानना चाही तो उन्होंने जवाब दिया 'अश्वत्थामा मारा गया, परंतु हाथी।' श्रीकृष्ण ने उसी समय शंखनाद किया जिसके शोर के चलते गुरु द्रोणाचार्य आखिरी शब्द 'हाथी' नहीं सुन पाए और उन्होंने समझा कि मेरा पुत्र मारा गया। यह सुनकर उन्होंने शस्त्र त्याग दिए और युद्ध भूमि में आंखें बंद कर शोक में डूब गए। यही मौका था जबकि द्रोणाचार्य को निहत्था जानकर द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न ने तलवार से उनका सिर काट डाला। यह समाचार अश्‍वत्थामा के लिए भयंकर रूप से दुखद था। पिता की छलपूर्वक हत्या के बाद अश्‍वत्थामा युद्ध के सभी नियमों को तोड़कर ताक में रख देता है।

महाभारत के 18वे में ब्रह्मास्त्र का प्रयोग : अठारहवें दिन कौरवों के तीन योद्धा शेष बचते हैं- अश्‍वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा। इसी दिन अश्वत्थामा द्वारा पांडवों के वध की प्रतिज्ञा ली गई। लेकिन समझ में नहीं आता कि कैसे पांडवों को मारा जाए।

एक उल्लू द्वारा रात्रि को कौवे पर आक्रमण करने पर एक उल्लू उन सभी को मार देता है। यह घटना देखकर अश्‍वत्थामा के मन में भी यही विचार आता है और वह घोर कालरात्रि में कृपाचार्य तथा कृतवर्मा की सहायता से पांडवों के शिविर में पहुंचकर सोते हुए पांडवों के 5 पुत्रों को पांडव समझकर उनका सिर काट देता है। इस घटना से धृष्टद्युम्न जाग जाता है तो अश्‍वत्थामा उसका भी वध कर देता है।

अश्वत्थामा के इस कुकर्म की सभी निंदा करते हैं। अपने पुत्रों की हत्या से दुखी द्रौपदी विलाप करने लगती है। उसके विलाप को सुनकर अर्जुन उस नीच-कर्म हत्यारे ब्राह्मण पुत्र अश्‍वत्थामा के सिर को काट डालने की प्रतिज्ञा लेते हैं। अर्जुन की प्रतिज्ञा सुन अश्वत्थामा भाग निकलता है, तब श्रीकृष्ण को सारथी बनाकर एवं अपना गाण्डीव-धनुष लेकर अर्जुन उसका पीछा करता है। अश्वत्थामा को कहीं भी सुरक्षा नहीं मिली तो भय के कारण वह अर्जुन पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर देता है।

मजबूरी में अर्जुन को भी ब्रह्मास्त्र चलाना पड़ता है। ऋषियों की प्रार्थना पर अर्जुन तो अपना अस्त्र वापस ले लेता है लेकिन अश्वत्थामा अपना ब्रह्मास्त्र अभिमन्यु की विधवा उत्तरा की कोख की तरफ मोड़ देता है। कृष्ण अपनी शक्ति से उत्तरा के गर्भ को बचा लेते हैं।

अंत में श्रीकृष्ण बोलते हैं, 'हे अर्जुन! धर्मात्मा, सोए हुए, असावधान, मतवाले, पागल, अज्ञानी, रथहीन, स्त्री तथा बालक को मारना धर्म के अनुसार वर्जित है। इसने धर्म के विरुद्ध आचरण किया है, सोए हुए निरपराध बालकों की हत्या की है। जीवित रहेगा तो पुनः पाप करेगा अतः तत्काल इसका वध करके और इसका कटा हुआ सिर द्रौपदी के सामने रखकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी करो।'

श्रीकृष्ण के इन वचनों को सुनने के बाद भी अर्जुन को अपने गुरुपुत्र पर दया आ गई और उन्होंने अश्वत्थामा को जीवित ही शिविर में ले जाकर द्रौपदी के समक्ष खड़ा कर दिया। पशु की तरह बंधे हुए गुरुपुत्र को देखकर द्रौपदी ने कहा, 'हे आर्यपुत्र! ये गुरुपुत्र तथा ब्राह्मण हैं। ब्राह्मण सदा पूजनीय होता है और उसकी हत्या करना पाप है। आपने इनके पिता से इन अपूर्व शस्त्रास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया है। पुत्र के रूप में आचार्य द्रोण ही आपके सम्मुख बंदी रूप में खड़े हैं। इनका वध करने से इनकी माता कृपी मेरी तरह ही कातर होकर पुत्रशोक में विलाप करेगी। पुत्र से विशेष मोह होने के कारण ही वह द्रोणाचार्य के साथ सती नहीं हुई। कृपी की आत्मा निरंतर मुझे कोसेगी। इनके वध करने से मेरे मृत पुत्र लौटकर तो नहीं आ सकते अतः आप इन्हें मुक्त कर दीजिए।'

द्रौपदी के इन धर्मयुक्त वचनों को सुनकर सभी ने उसकी प्रशंसा की। इस पर श्रीकृष्ण ने कहा, 'हे अर्जुन! शास्त्रों के अनुसार पतित ब्राह्मण का वध भी पाप है और आततायी को दंड न देना भी पाप है अतः तुम वही करो जो उचित है।'

उनकी बात को समझकर अर्जुन ने अपनी तलवार से अश्वत्थामा के सिर के केश काट डाले और उसके मस्तक की मणि निकाल ली। मणि निकल जाने से वह श्रीहीन हो गया। बाद में श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को 6 हजार साल तक भटकने का शाप दिया। अंत में अर्जुन ने उसे उसी अपमानित अवस्था में शिविर से बाहर निकाल दिया।

अश्वत्थामा द्रोणाचार्य के पुत्र थे। द्रोणाचार्य ने शिव को अपनी तपस्या से प्रसन्न करके उन्हीं के अंश से अश्वत्थामा नामक पुत्र को प्राप्त किया। अश्‍वत्थामा के पास शिवजी के द्वारा दी गई कई शक्तियां थी। वे स्वयं शिव का अंश थे।

जन्म से ही अश्वत्थामा के मस्तक में एक अमूल्य मणि विद्यमान थी, जोकि उसे दैत्य, दानव, शस्त्र, व्याधि, देवता, नाग आदि से निर्भय रखती थी। इस मणि के कारण ही उस पर किसी भी अस्त्र-शस्त्र का असर नहीं हो पाता था।

द्रौपदी ने अश्‍वत्थामा को जीवनदान देत हुए अर्जुन से उसकी मणि उतार लेने का सुझाव दिया। अत: अर्जुन ने इनकी मुकुट मणि लेकर प्राणदान दे दिया। अर्जुन ने यह मणि द्रौपदी को दे दी जिसे द्रौपदी ने युधिष्ठिर के अधिकार में दे दी।

शिव महापुराण (शतरुद्रसंहिता -37) के अनुसार अश्वत्थामा आज भी जीवित हैं और वे गंगा के किनारे निवास करते हैं किंतु उनका निवास कहां हैं, यह नहीं बताया गया है।

श्री छत्रपति शिवाजी.

 
ॐ...श्री छत्रपति शिवाजी..शासन और व्यक्तित्व

शिवाजी को एक कुशल और प्रबुद्ध सम्राट के रूप में जाने जाते है हँलांकि उनको अपने बचपन में पारम्परिक शिक्षा कुछ खास नहीं मिली थी। पर वे भारतीय इतिहास और राजनीति से वाकिफ़ थे। उनने शुक्राचार्य तथा कौटिल्य को आदर्श मानकर कूटनीति का सहारा लेना कई बार उचित समझा था। अपने समकालीन मुगलों की तरह वह् भी निरंकुश शासक थ, अर्थात शासन की समूची बागडोर राजा के हाथ में ही थी। पर उस्के प्रशासकीय कार्यों में मदद के लिए आठ मंत्रियों की एक परिषद थी जिन्हें अष्टप्रधान कहा जाता था। इसमें मंत्रियों के प्रधान को पेशवा कहते थे जो राजा के बाद सबसे प्रमुख हस्ती था। अमात्य वित्त और राजस्व के कार्यों को देखता था तो मंत्री राजा की व्यक्तिगत दैनन्दिनी का खयाल रखाता था। सचिव दफ़ातरी काम करते थे जिसमे शाही मुहर लगाना और सन्धि पत्रों का आलेख तैयार करना शामिल होते थे। सुमन्त विदेश मंत्री था। सेना के प्रधान को सेनापति कहते थे। दान और धार्मिक मामलों के प्रमुख को पण्डितराव कहते थे। न्यायाधीश न्यायिक मामलों का प्रधान था।

न्यायव्यवस्था प्राचीन पद्धति पर आधारित थी। शुक्राचार्य, कौटिल्य और हिन्दू धर्म शास्त्रों को आधार मानकर निर्णय दिया जाता था। गाँव के पटेल फौजदारी मुकदमों की जाँच करते थे। राज्य की आय का साधन भूमिकर था पर चौथ और सरदेशमुखी से भी राजस्व वसूला जाता था। चौथ पड़ोसी राज्यों की सुरक्षा की गारंटी के लिया वसूलेजाने वाला कर था। शिवाजी अपने को मराठों का सरदेशमुख कहता थ और इसी हैसियत से सरदेशमुखी कर वसूला जाता था।

धार्मिक नीति संपादित करें
शिवाजी एक समर्पित हिन्दु थे तथा वह् धार्मिक सहिष्णु भी थे। उस्के साम्राज्य में मुसलमानों को धार्मिक स्वतंत्रता थी। कई मस्जिदों के निर्माण के लिए शिवाजी ने अनुदान दिया। हिन्दू पण्डितों की तरह मुसलमान सन्तों और फ़कीरों को भी सम्मान प्राप्त था। उन िक सेना में मुसलमान सैिनीक भी थे । शिवाजी हिन्दू संकृती को बढ़ावा देते थे। पारम्परिक हिन्दू मूल्यों तथा शिक्षा पर बल दिया जाता था। वह् अपने अभियानों का आरंभ भी अक्सर दशहरा के मौके पर करते थे

शिवाजी महाराज को अपने पिता से स्वराज कि शिक्शा ही मिली जब बीजापुर के सुल्तान ने शाहजी राजे को बन्दी बना लिया तो एक आदर्श पुत्र ती तरह उस्ने बीजापुर के शाह से सन्धि कर शाहजी राजे को छुड़वा लिया। इससे उनके चरित्र में एक उदार अवयव ऩजर आता है। उसेक बाद उन्होने पिता की हत्या नहीं करवाई जैसाकि अन्य सम्राट किया करते थे। शाहजी राजे के मरने के बाद ही उन्होने अपना राज्याभिषेक करवाया हँलांकि वो उस समय तक अपने पिता से स्वतंत्र होकर एक बड़े साम्राज्य के अधिपति हो गये थे। उनके नेतृत्व को सब लोग स्वीकार करते थे यही कारण है कि उनके शासनकाल में कोई आन्तरिक विद्रोह जैसी प्रमुख घटना नहीं हुई थी।

वह् एक अच्छे सेनानायक के साथ एक अछा कूटनीतिज्ञ भी थे। कई जगहों पर उन्होने सीधे युद्ध लड़ने की बजाय भग लिया था। लेकिन येही उनकी कुट निती थी, जो हर बार बडेसे बडे शत्रुको मात देनेमे उनका साथ देती रही।

शिवाजी महाराज की "गनिमी कावा" नामक कुट निती, जिसमे शत्रुपर अचानक आक्रमण करके उसे हराया जाता है, विलोभनियतासे और आदरसहित याद किया जाता है।

शिवाजी महाराज के गौरव मे ये पन्क्तियान लिख गई है :-

"शिवरायांचे आठवावे स्वरुप। शिवरायांचा आठवावा साक्षेप।
शिवरायांचा आठवावा प्रताप। भूमंडळी ॥
 Meenu Ahuja

लाहिरी महाशय - संक्षिप्त परिचय

ॐ..🙏योगिराज श्यामा चरण लाहिरी महाशय - संक्षिप्त परिचय
पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट , मिलिटरी ईन्जीनीयरिंग वर्क्स का आफिस. स्थान - दानापुर.
आफिस के लाहिरी महाशय कुछ फाईलें लेकर बड़े साहब के कमरे के पास आकर कहा-``क्या मैं अन्दर आ सकता हूँ, सर?``
भीतर से कोई जवाब नहीं आया तो लाहिरी महाशय ने धीरे से भीतर जाकर उनकी मेज पर फाईलें रख दी. साहब दार्शनिकों की तरह खिडकी के बाहर का दृश्य देख रहे थे.
आधे घंटे बाद पुनः कुछ फाईलें लेकर लाहिरी महाशय आये तो देखा- साहब पहले की तरह खोये खोये से हैं.
``सर``
साहब ने गौर से लाहिरी महाशय की ओर देखते हुए कहा-`` आज मन नहीं लग रहा है. आप फाईलें रख कर जा सकते हैं.``
लाहिरी महाशय ने नम्रतापूर्वक पूछा ``क्षमा करें सर. आखिर क्या बात है? मेरे योग्य कोई सेवा हो तो हुक्म कीजिए.``
साहब ने गहरी सांस लेते हुए कहा``ईनग्लेंड से पत्र आया है मेरी पत्नी सख्त बीमार है. समझ नहीं आ रहा कि क्या करूँ. ? वहां होता तो देखभाल करता.``
लाहिरी महाशय ने कहा-`` तभी सोच रहा हूँ कि क्या बात है जो साहब फाईल में हाथ नहीं लगा रहे हैं. मैं थोड़ी देर बाद आता हूँ.``
लाहिरी महाशय की बातें सुनकर साहब का उदास चेहरा मुस्कान में बदल गया. आफिस के सभी बाबू इस करानी बाबू को पगला बाबू कहते थे. हमेशा न जाने कहाँ खोये से रहते थे. बातें करते समय हमेशा मुस्कुराते रहते थे. आँखें ढापी ढापी सी रहती थीं. अपने में मस्त रहते थे.
थोड़ी देर बाद साहब के कमरे का दरवाजा खुला और लाहिरी महाशय भीतर आये. साहब ने कहा-``आज मैं कुछ भी नहीं करूँगा. आप कृपया मुझे तंग न करें. अब फाईलों का काम कल होगा.``
साहब की बातें सुनकर लाहिरी महाशय ने कहा-``सर, आप बिलकुल बेफिक्र रहिये. मेम साहब स्वस्थ हो गयीं हैं. वे आपको आज की तारीख में पत्र लिख रहीं हैं. अगली मेल से आपको पत्र मिल जाएगा. सिर्फ यही नहीं, टिकट मिलते ही वे अगले जहाज़ से भारत के लिए रवाना हो जायेंगी. ``
इधर लाहिरी महाशय अपनी बात कह रहे थे उधर साहब मुस्कुरा रहे थे. साहब ने कहा-`` आप तो इस तरह कह रहे हैं जैसे मेरी पत्नी से मिलकर आ रहे हों. पगला बाबू आपकी बातों से निःसंदेह मुझे सांत्वना मिली है. इसके लिए आपको धन्यवाद, अब आप अपनी टेबुल पर चले जाईये.``
लाहिरी महाशय मुस्कुरा कर अपने टेबुल पर चले गए. गोरे साहब ने बात पर ध्यान नहीं दिया.
एक महीने बाद साहब के चपरासी ने लाहिरी महाशय को कहा कि साहब ने याद किया है.
साहब इन्हें देखते ही बोले-`` पगला बाबू क्या आप ज्योतिष वगैराह जानते हैं.?? आप कमाल के आदमी हैं. आपकी बात सही निकली.``
श्यामाचरण जी अनजान बनते हुए बोले-``कौन सी बात सर जी``
साहब बड़ी प्रसन्नता से बोले-`` आपने मेरी पत्नी के बारे में जो कुछ कहा सब सच निकला. वो बिलकुल ठीक हो गयी है. और भारत के लिए रवाना हो चुकी हैं. मैं बहुत चिंता में था. मैडम को आने दो. उनकी मुलाक़ात आपसे करवाऊंगा. ``
इस घटना के २०-२५ दिन बाद एक दिन लाहिरी महाशय को फिर साहब ने बुलवा भेजा. साहब के कमरे में पहुँचते ही साहब बोले-``आओ पगला बाबू येही हैं मेरी मैडम और ये हैं.......``
``माई गाड``कहने के साथ ही मेम साहिबा अपनी कुर्सी से उछल पड़ी जैसे करेंट लगा हो.
साहब ने चौंक कर पूछा``क्या बात है?``
मेम साहब लाहिरी महाशय को देखते बोली-``आप कब आये?``
साहब ने कहा-``ये क्या कह रही हो, क्या मजाक है? पगला बाबू कब आये मतलब. ये तो यहीं काम करते हैं.``
लाहिरी महाशय मुकराते हुए बिना कुछ बोले बाहर निकल गए. उनके जाने के बाद मेम साहिबा बोलीं-`` बड़े आश्चर्य की बात है जैसे मैं यहाँ आकर जादू देख रही हूँ. घर में जब बीमार थी तब एक दिन यही आदमी मेरे सिरहाने खडा होकर सर पर हाथ फेरता रहा. मुझे घोर आश्चर्य हुआ कि ये आदमी आखिर घर में घुस कैसे गया. लेकिन दुसरे ही क्षण इसने मुझे सहारा देकर बिस्तर पर जब बैठाया तो मेरी सारी बीमारी दूर हो गयी. मुझे अजीब सा लगा. इसने कहा- बेटी तुम बिलकुल ठीक हो गयी हो. अब तुम्हें कोई कष्ट नहीं होगा. भारत में तुम्हारे पति बड़े बेचैन हैं. उन्हें अभी पत्र लिख कर पोस्ट कर दो. कल ही जहाज़ का टिकट बुक करा कर भारत चली जाओ, वरना साहब नौकरी छोड़ कर वापिस आ जायेंगे.- इतना कहकर आपके पगला बाबू गायब हो गए. और आज इस आदमी को यहाँ देख कर डर गयी हूँ.``
मेम साहिबा की बातें सुनकर साहब को भी कम आश्चर्य नहीं हुआ.

Aurangjeb

हमारे पूर्वजो ने ये अत्याचार भोगा था ये त्रासदी झेली थी मृत्यु तुल्य कष्ट और अनाचार से को सनातन को छोड़कर इस्लाम कबूलने के लिए मजबूर हुए वो ही मुसलमान है इस देश में इस लिए दोनो को संबोधित किया है)
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हमारे पूर्वजो पर हुए अत्याचार....

1- हम कैसे भूल जाएँ... उस कामपिपासु अलाउद्दिन खिलजी को, जिससे अपने सतीत्व को बचाने के लिये रानी पद्ममिनी 14000 महिलाओं के साथ जलते हुए अग्निकुंड में कूद गयी थीं।

2- हम कैसे भूल जाएँ... उस जालिम औरंगजेब को, जिसने संभाजी महाराज को इस्लाम स्वीकारने से मना करने पर तडपा तडपा कर मारा था।

3- हम कैसे भूल जाएँ... उस जिहादी टीपु सुल्तान को, जिसने एक एक दिन में लाखों हिंदुओ का नरसंहार किया था।

4- हम कैसे भूल जाएँ... उस जल्लाद शाहजहाँ को, जिसने 14 बर्ष की एक ब्राह्मण बालिका के साथ अपने महल में जबरन बलात्कार किया।

5- हम कैसे भूल जाएँ... उस बर्बर बाबर को, जिसने मेरे श्री राम प्रभु का मंदिर तोड़ा और लाखों निर्दोष हिंदुओ का कत्ल किया था।

6- हम कैसे भूल जाएँ... उस शैतान सिकन्दर लोदी को, जिसने नगरकोट के ज्वालामुखी मंदिर की माँ दुर्गा की मूर्ति के टुकड़े कर उन्हें कसाइयों को मांस तोलने के लिये दे दिया था।

7- हम कैसे भूल जाएँ... उस धूर्त ख्वाजा मोइन्निद्दिन चिस्ती को, जिसने संयोगीता को इस्लाम कबूल ना करने पर नग्न कर मुगल सैनिको के सामने फेंक दिया था।

8- हम कैसे भूल जाएँ... उस निर्दयी बजीर खान को, जिसने गुरूगोविंद सिंह के दोनों मासूम बच्चों फतेहसिंह और जोरावार को मात्र 7 साल और 5 बर्ष की उम्र में इस्लाम ना मानने पर दीवार में जिन्दा चुनवा दिया था।

9- हम कैसे भूल जाएँ... उस जिहादी बजीर खान को, जिसने बन्दा बैरागी की चमडी को गर्म लोहे की सलाखों से तब तक जलाया जब तक उसकी हड्डियां ना दिखने लगी मगर उस बन्दा वैरागी ने इस्लाम स्वीकार नहीं किया।

10- हम कैसे भूल जाएँ... उस कसाई औरंगजेब को, जिसने पहले संभाजी महाराज की आँखों मे गरम लोहे के सरिये घुसाए, बाद में उन्हीं गरम सरियों से पुरे शरीर की चमडी उधेडी, फिर भी संभाजी ने हिंदू धर्म नही छोड़ा था।

11- हम कैसे भूल जाएँ... उस नापाक अकबर को, जिसने हेमू के 72 वर्षीय स्वाभिमानी बुजुर्ग पिता के इस्लाम कबूल ना करने पर उसके सिर को धड़ से अलग करवा दिया था।

12- हम कैसे भूल जाएँ... उस वहशी दरिंदे औरंगजेब को, जिसने धर्मवीर भाई मतिदास के इस्लाम कबूल न करने पर बीच चौराहे पर आरे से चिरवा दिया था।

हम सनातनियो और आज के मुसलमानो पर हुए अत्याचारो को बताने के लिए शब्द और स्थान कम हैं....!!

इस पोस्ट को पढ़कर मेरी तरह आपका खून भी खौला ही होगा इसलिए आओ मिलकर इस पोस्ट को अपने मित्रों के साथ शेयर ज़रूर करें।
सब समुदायो हिन्दू मुस्लिम जैन सिख बौद्ध सबको बताये..! 

नेताजी और हिटलर के कारण मिली भारत को आज़ादी

 
सत्य जो हमे नहीं बताया गया! (भाग 1)
नेताजी और हिटलर के कारण मिली भारत को आज़ादी
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सुभाषचन्द्र बोस जी ने सिर्फ आजाद हिन्द फ़ौज का नहीं
बल्कि आजाद हिन्द सरकार का भी कर लिया था
जिसे विश्व के 11 देशो ने मान्यता भी दे दी थी
अप्रैल 1944 में रंगून में उन्होंने आज़ाद हिन्द बैंक (Bank of Independence)
की स्थापना कर मुद्रा भी छापना शुरू कर दिया था
जिस से आजाद हिन्द फ़ौज के लिए भारत के लोगो द्वारा दिया जा रहे धन को सुरक्षित रखा जा सके
फ़रवरी 1946 में भारतीय नोसेना ने विद्रोह कर दिया था
अप्रैल 1946 में ब्रिटिश पुलिस ने हड़ताल कर दी थी
जुलाई 1946 में डाक विभाग ने हड़ताल कर दी थी
अगस्त 1946 में भारतीय रेल ने हड़ताल का नोटिस दे दिया था
1964 में भारत की आज़ादी के समय ब्रिटेन के प्रधान मंत्री रहे क्लेमेंट एटली (Clement Attlee) भारत आये और बंगाल के राज्यपाल भवन में उन्होंने कहा की
"भारत को आजादी देना हमारी मजबूरी थी"
क्योंकि हिटलर ने द्वितीय विश्व युद्ध में अगर वो ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को ध्वस्त कर दिया और उनकी कमर तोड़ दी थी
ऊपर से नेताजी के द्वारा इतने बड़े स्तर पर फौज बना लेना भी बहुत बड़ा कारण रहा
हिटलर ने जापान को निर्देश देकर बाध्य किया की वो नेताजी की आजाद हिन्द फौज बनाने सहायता करे
इसीलिए भारत की आज़ादी में बहुत बड़ा योगदान हिटलर का है
भूल जाइये की अमेरिका की फिल्मो में हिटलर को केवल एक खलनायक के रूप में दिखाया जाता है लेकिन भारत के लिए नेताजी जी की तरह हिटलर एक नायक है यह बात हर भारतीय को पता होनी चाहिए
नेताजी के प्रयास और हिटलर द्वारा ब्रिटेन की कमर तोड़ देना इसका बड़ा योगदान है हमारी आजादी में
नहीं तो आज भी भारत गुलाम होता
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स्त्रोत: श्री योगेश मिश्र (राजीव भाई के मित्र)
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जय हिन्द
स्वदेशी रक्षक

क्या है हिन्दू होने का मतलब

 
ॐ..🙏..चिंतन...
हिन्दू की परिभाषा

क्या है हिन्दू होने का मतलब , माथे पर तिलक लगाना ,हाँथ में सूता बंधना ,ढोगी बाबाओं से आशीर्वाद लेना, मंदिर जाना , जातिवाद का ढोंग फैलाना , अपनी संस्कृति को छोड़ कर पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण करना क्या यही है हिंदुत्व ?

हिंदू शब्द कि उत्पति का इतिहास “ सिंधु ” नदी के नाम से जुड़ा हुआ है | प्राचीन काल में सिंधु नदी के पार के वासियों को इरान वासी हिंदू कहतें थें | वे “स” का उच्चारण “ह” करते थे | “हिंदू” शब्द के जुड़ने के पहले यह धर्म “सनातन” धर्म कहलाता था | “सनातन” मतलब शाश्वत या हमेशा बने रहने वाला होता है |
हिंदू कि परिभाषा क्या कि जाए , मेरे हिसाब से जिस धर्म के अनुआयी “ब्रह्म” को जानतें हों हिंदू कहलाने के योग्य हैं | “ब्रह्म” यानी जहाँ तक अपनी कल्पना न जाए सिर्फ अनुभव हीं शेष रह जाए | पूर्ण शून्यता का अनुभव | “ब्रह्म ज्ञान ” अर्थात अपने अहंकार को विस्तृत कर देना यानी परमात्मा में विसर्जित कर देना या यूँ कहें अपने अहंकार को समाप्त कर देना , अपने होने के आस्तित्व को भूला देना | “ब्रह्म” शब्द को परिभाषित नहीं किया जा सकता क्यों? क्योंकि इसके अंदर कल्पना का जगत तो आ हीं जाता है कल्पनातीत जगत भी आ जाता है | ब्रह्म ज्ञान जैसा दुर्लभ ज्ञान अन्य किसी धर्म में नहीं |

प्रेम है जिसका स्वभाव वह है हिन्दू जितने भी सच्चे “ब्रह्म” ज्ञानी हुएं सबने प्रेम को महता दी है और सबने एक सुर में प्रेम को हीं परमात्मा के मार्ग में प्रथम सोपान बतलाया है | “ब्रह्म” को जानने वालों का कहना है “ब्रह्म” ज्ञानी मनुष्य पृथ्वी पर मौजूद सभी जीवों से एकात्म मह्शूश करता है यानी सभी जीवों को अपना अंग समझता है , अपने से भिन्न नहीं समझता पेड पौधें सभी से जुडाव मह्शूश करता है | सबसे एकात्म मह्शूश करने वाला किसी को अपने से अलग न मानने वाला मनुष्य सबसे प्रेम न करेगा भला | प्रेम के कारण था भारत कभी विश्व गुरु अरे कुछ तो बात हो भारत के हिन्दूओं में ताकि विश्व के कोने कोने में बसे लोग यहाँ के हिन्दूओं के प्रेम से खींचे चलें आये और इनकी प्रेम गाथा पुरे विश्व में प्रसिद्ध हो | और प्रेम हीं ऐसा मंत्र है जिसकी बदौलत भारत फिर से एक बार सदा के लिए विश्व गुरु बन सकता है | प्राचीन काल में भारत विश्व गुरु क्यों था ? सम्पूर्ण विश्व के लोग यहाँ के ज्ञान के कारण यहाँ खींचे चले आते थें | प्राचीन काल में शिक्षा का सर्वोच्च केन्द्र “तक्षशिला ” ,“नालंदा” , “विक्रमशिला ” विश्वविद्यालय भारत में थें | कौन सा ज्ञान दिया जाता था यहाँ “तत्व ज्ञान ”या कहें “ब्रह्म ज्ञान” | ब्रह्म ज्ञानी कौन जिसके नस नस में प्रेम दौड़े |

ऐसा नहीं कि सिर्फ प्रेम के कारण विश्व गुरु था यह देश बल्कि एक से बढ़ कर वैज्ञानिक भी थे प्राचीन काल में | चौंकिए नहीं भारतीय ऋषि , मुनि, मनीषी क्या थे | एक से बढ़ कर एक विद्याओं के धनी थे ये लोग | आयुर्वेद ,सर्जन चिकित्सा ,रस सिद्धांत विज्ञान, सूर्य विज्ञान ,कुण्डलिनी विज्ञान, गणित का ज्ञान (शून्य का आविष्कार), पातंजली का योग सूत्र और न जाने क्या क्या | क्या नहीं है हमारे पास हमारे वेदों उपनिषदों पुराणों में | आज भी विदेश से लोग दुर्लभ ज्ञान के तलाश में भारत खिंचे चले आतें हैं | किन्तु रसातल में जा रहा है यह सब अपनी विद्याओं अपनी संस्कृति का इज्जत नहीं है दिल में पाश्चात्य संस्कृति के पीछे भागम भाग मचा हुआ है और छाती ठोंक कर कहेंगे कि हम हिंदू हैं |

हिंदुत्व प्रसिद्ध है अपनी संस्कृति ,अपने त्यौहार ,अपने संस्कारों, अपने शुद्धतम खान पान, अपने आदर्श परिवारवाद ,अपने सर्वोच्च नैतिकता के लिए | किन्तु दुखद अब इनका ह्रास होता जा रहा है | पारिवारिक रिश्तों के लिए यह धर्म मिशाल था | पिता पुत्र का धर्म , माता पिता के लिए पुत्र का उतरदायी होना , भाई भाई का प्रेम , इस धर्म कि खासीयत थी | “अतिथि देवो भव: ” आदर्श वाक्य हुआ करता था कभी भारत में | हमें अपनी संस्कृति को पुन: स्थापित करना होगा अन्यथा पूरा मनुष्य जाती एक दुर्लभ और अति मूल्यवान धरोहर से वंचित रह जायेगी |

मैं सेक्युलर नहीं हूँ । मैं हिन्दू हूँ ! मेरा धर्म ही मुझे सिखाता है की.. निर्दोष चींटी को ना मारो पेड़ ना काटो सभी धर्मो का आदर अवं सम्मान करो दृष्टो के साथ कभी न रहो बल्कि देश,धर्म और अपनी सभ्यता संस्कृति के लिए अन्याय एंव दृष्टो के सामने जंग करो लोगो का कल्याण करो नदी,पर्वत,वृक्षसब इस प्रकृति हिस्सा है इसका सम्मान करो अगर मैं धर्म निरपेक्ष हो गई तो ये सब भूल जाउंगी जो मुझे मेरे धर्म ने सिखाया है मैं धर्म निरपेक्ष बन गई तो असत्य का साथ लुंगी निर्दोष लोगो को मरने लगूंगी और में हेवान बन जाउंगी प्राणी आदिओ का सहार करके प्रकृति ख़त्म कर दूंगी तो मैं धर्म निरपेक्ष नहीं हूँ .,
मैं हिन्दू हूँ।।...
By Meena Ahuja

Monday, September 7, 2015

KALI "Kilo Ampere Linear Injector" - WORLD'S DEADLIEST MISSILE DEFENCE SYSTEM

Secret weapon in developing stage by Indian system is basically strong microwave system that destroy missile's like attack by killing it's computer system. This is a high-power microwave gun to destroy incoming aircrafts and missiles.The USA attempted to develop the same technology for its defence as well but could not succeed. India, on the other hand, is believed to have conducted a successful test of the first phase of the KALI in 2012. Pakistani news channels blame India for the Siachen Glacier avalanche of 2012 when reportedly 135 Pakistani soldiers were buried alive and many injured. They say that Indian scientists emitted high energetic beams of electronic rays which melted some ice-sheets of Siachen glacier and artificially created this catastrophe using 'KALI' technology. 
defencenews