Wednesday, July 2, 2014

हिंदू राष्ट्र क्यों आवश्यक है ? - (प.पू.) डॉ . आठवलेजी

(प.पू.) डॉ. आठवलेजीप्रश्न - हिंदू राष्ट्र आवश्यक है ? सारे धर्म साथ लेकर क्यों नहीं चलते ? समाजके अनेक व्यक्तियोंके मनमें निरंतर यह प्रश्न रहता है । तथा इस प्रश्नद्वारा यह ध्यानमें आता है कि हिंदू कितने अंधे, बहरे एवं गूंगे हैं ।

१. विविध कारण

हिंदू राष्ट्र स्थापित करनेका ध्येय रखनेके निम्नांकित कुछ कारण :
अ. केवल हिंदू धर्म ही `जितने व्यक्ति, उतनी प्रकृति और उतने साधनामार्ग’, सिद्धांतानुसार हर व्यक्तिको आवश्यक, अलग-अलग साधना बताता है । डॉक्टर हर रुग्णको उसकी प्रकृतिनुसार तथा बीमारीनुसार अलग-अलग औषधि देते हैं । यह बिलकुल वैसा ही है । दूसरे धर्मोंमें सबको एक ही साधना करनेको कहा जाता है । अत: उनकी अध्यात्मिक उन्नति नहीं होती ।
आ. दूसरे धर्मांनुसार स्वर्गसुख अंतिम ध्येय है, किंतु हिंदू धर्मानुसार सुख नहीं, किंतु चिरंतन आनंद देनेवाली मोक्षप्राप्ति, ईश्वरप्राप्तिका ध्येय ही अंतिम है ।
इ. हिंदू धर्म कुराणके अनुसार अन्य धर्मियोंकी हत्या करें, अथवा ईसाईयों जैसे धोखा देकर अन्य धर्मियोंका धर्मांतरण करें, ऐसी सीख नहीं देता ।

२. हिंदुओंकी दयनीय स्थिति

भारतमें प्रतिदिन घटनेवाली हिंदुविरोधी घटनाएं पढकर भी हिंदुओंके मनमें प्रश्न उठता है कि सारे धर्मोंको साथ लेकर क्यों नहीं जाते ? इसका किसीको भी आश्चर्य लगेगा । इसके दो महत्त्वपूर्ण कारण है, हिंदुओंको धर्मशिक्षा प्राप्त नहीं होती तथा उनपर किया गया सर्वधर्मसमभावका संस्कार ! अन्य धर्मीय सर्वधर्मसमभाव नहीं मानते , अपितु अपना ही धर्म सर्वश्रेष्ठ मानते हैं, यह बात यहां ध्यानमें रखनी चाहिए ।

३. हिंदुओंकी दयनीय स्थितिका उपाय

हिंदू यदि हिंदू धर्मका चिंतन करें तथा साधना करें, तो उनकी सर्वधर्मसमभावकी विषबाधा अथवा उनके सिरपर सवार सर्वधर्मसमभावका भूत तत्काल दूर होनेसे वे शारीरिक, मानसिक एवं अध्यात्मिकदृष्टिसे बलवान होंगे ।

४. हिंदू राष्ट्रकी स्थापना होनेसे सारे मानव आनंदकी दिशामें अग्रसर होने लगेंगे !

हिंदू राष्ट्र स्थापित होनेपर केवल भारतके हिंदुओंको ही नहीं, अपितु दुनियाभरके मानवोंको उनकी वर्तमान नैराश्यसे बाहर आने हेतु साधनामार्ग दिखाया जा सकेगा । अत: सारे मानव आनंदकी दिशामें  अग्रसर होने लगेंगे तथा हिंदू धर्ममें आगे दी गई प्रार्थना सफल होगी ।
सर्वेऽत्र सुखिनः सन्तु सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा क्वश्चिद् दुःखमाप्नुयात् ?
अर्थ : सारे प्राणीमात्र सुखी हों । सबको अच्छे स्वास्थ्यका लाभ हों । सारे लोग एकदूसरेका कल्याण चाहें । कोई भी, कभी भी दुख न पाए ।

श्री बिमलेश्वरका झुकनेवाला मंदिर

श्री भुवनेश्वर एवं श्री कपिलेश्वर मंदिर

श्री बिमलेश्वरका झुकनेवाला मंदिर

श्री बिमलेश्वरका मंदिर
श्री बिमलेश्वरका मंदिर
बाहरसे सदाके मंदिर प्रांगणके समान दिखनेवाली वास्तुमें हमने प्रवेश करनेपर हमें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि उस प्रांगणके श्री बिमलेश्वरके मुख्य मंदिरके साथ अन्य सभी छोटे मंदिर, दीपमाला तथा मंदिरकी सुरक्षा दीवार सबकुछ विशिष्ट कोणमें झुके हुए दिखाई दिए ! इस विषयमें पूछनेपर उन्होंने कहा कि यही इस मंदिरकी विशेषता है । मंंदिरका निर्माणकार्य संपूर्ण रुपसे पथरीला होते हुए भी वह अपनेआप झुक रहा है । 

महानदीमें दैवी मछलियां 

महानदीमें दैवी मछलियां
महानदीमें दैवी मछलियां
उन्हें मंदिरका इतिहास पूछनेपर उन्होंने कहा, ‘हम प्रथम मंदिरकी पिछली ओर जाकर एक और आश्चर्य देखेंगे, पश्चात इतिहास बताते हैं ।’ इसके अनुसार मंदिरकी पिछली ओर ३०० मीटर दूरीपर एक बडा तट एवं नामके समान ही रहनेवाली महानदीका प्रवाह दिखाई दिया । तटसे उतरकर नदीके पात्रके समीप जानेपर ताम्र एवं तमाकूके रंगकी अलग ही प्रकारकी दैवी प्रतीत होनेवाली मछलियां भारी संख्यामें वहां दिखाई दी । उन्होंने कहा कि इन मछलियोंको भगवानकी मछलियोंके नामसे जाना जाता है तथा कोई भी उन्हें पकडने अथवा मारनेका प्रयास नहीं करता ।
बरसातकी कालावधिमें जिस समय नदीका प्रवाह बडा होता है, उस समय ये मछलियां प्रवाहके साथ न जाकर पानीके नीचेसे मंदिरतक एक गुफा है, उसमें जाकर रहती हैं तथा कार्तिक माह समाप्त होनेके पश्चात वे पुनः दिखाई देती हैं । इन मछलियोंको प्रसादके रूपमें लड्डू खिलाए जाते हैं । आपने पानीमें हाथ डालकर उसमें लड्डू रखा, तो मछलियां आकर आपके हाथसे लड्डू लेकर जाती हैं !

मंदिरका प्राचीन इतिहास

हम तटसे पुनः मंदिरकी ओर जाने लगे । वहां मंदिरका इतिहास प्रसिद्ध करनेवाले एक शिक्षक श्री. क्षीरूद्र प्रधान मंदिरका इतिहास बताने लगे । श्री बिमलेश्वरका वर्तमान समयका मंदिर संबलपुरके चौहान वंशके ५ वें राजे बलियारसिंह देवने वर्ष १६७० में बांधा । एक गोमाता समूहसे बाहर आकर महानदीका पात्र तैरते हुए पार कर एक विशेष स्थानपर दुधसे अभिषेक किया करती थी । एक चरवाहेके ध्यानमें आनेपर उसने उस स्थानका पता लगाया तो वहां श्री बिमलेश्वरका दर्शन हुआ । वह नियमित रूपसे वहां पूजन अर्चन करने लगा । एक रात्री उसे ऐसा दृष्टान्त हुआ कि वहांका राजा बलराम देव उसके दर्शनके लिए आया है । तदुपरांत यह वार्ता वहांके राजा बलराम देवको समझी, तो उसने पूरे राजघरानेके साथ वहां आकर दर्शन एवं पूजा की । राजाको नदीके किनारेका निसर्ग-परिसर बहुत अच्छा लगा । इसलिए उसने वहां एक छोटासा मंदिर बांधा । आगे इसी वंशके बलियारसिंह देव नामक राजाने आजका मंदिर बांधा ।
कुछ इतिहासकारोंके मतके अनुसार राजा अनंगभीम देवने मुख्य पथरीले मंदिरका निर्माणकार्य किया । मंदिरका निर्माणकार्य पूरा होनेको आया, तो एकाएक मंदिर वायव्य दिशामें झुक गया । सभीको इस बातका बहुत आश्चर्य प्रतीत हुआ । राजाने निर्माणकार्य पुनः करनेका विचार किया, तो उसे श्री बिमलेश्वरने स्वप्नमें दृष्टांत देकर सूचित किया, ‘मैं इस झुके मंदिरमें ही रहना चाहता हूं ।’ अतः यह मंदिर आज भी वैसी ही झुकी स्थितिमें खडा है ।

श्री बिमलेश्वरका पाताललिंग

श्री बिमलेश्वर पाताल लिंग
श्री बिमलेश्वर पाताल लिंग
श्री बिमलेश्वरका शिवलिंग पाताललिंगके रूपमें जाना जाता है । इस शिवलिंगको उपरकी ओर पिंड नहीं है, बलि्क मध्यभागमें बडी रिक्ती है । इस रिक्तीमें ५ फूटपर पानी है, जो पूरा वर्ष इसी स्थितिमें रहता है । नदीका पात्र पिंडसे न्यूनतम २०-२५ फूट नीचे है; परंतु इस पानीके स्तरका यहांपर कोई परिणाम नहीं होता । मंदिरके पुजारी शिवलिंगकी रिक्तीमेंका पानी निकालकर प्रसादके रूपमें प्राशन करनेके लिए देते हैं ।

बुद्धिवादियाेंको अनुत्तरित करनेवाला मंदिर

इस मंदिरके संदर्भमें एक इतिहासकार स्व. शिवप्रसाद दासने अपना मत प्रस्तुत करते हुए कहा कि महानदीके प्रचंड प्रवाहके परिणामके कारण यह मंदिर झुक गया है । कुछ कालावधिके पश्चात उन्होंने कहा कि वहांकी मिट्टी सदोष होनेसे मंदिर झुक गया है; परंतु इस संदर्भमें थोडासा विचार किया, तो इस दावेकी निरर्थकता ध्यानमें आएगी ।
१. यदि सदोष मिट्टीके कारण मंदिरका निर्माणकार्य झुक गया होगा, तो मंदिरके समीपके अन्य निर्माण कार्य एवं घर भी झुके हुए रहना चाहिए थे ।
२. महानदीके प्रवाहके कारण यदि यह किनारेपरका मंदिर झुक गया होगा, तो नदीके किनारेपर स्थित अन्य अन्य मंदिर भी  झुकी स्थितिमें रहने चाहिए थे ।
इस विषयमें प्रा. पंडाका कहना है कि मंदिरके शिल्पकाराेंने गुरुत्वाकर्षणका भार हलका कर मंदिरका भार न्यून करने हेतु ऐसी रचना की होगी अथवा कुछ सदोष पद्धतिके निर्माणकार्यके कारण ही मंदिर झुक गया होगा; परंतु यह कहते समय ही वे इस बातको स्वीकार करते हैं कि उडीसाके शिल्पकलाका यह अद्भुत नमूना आजके आधुनिक विज्ञानके तंत्रज्ञोंके लिए एक चुनौती ही है ।
ईश्वरद्वारा दिए गए इस अवसरसे सीखने मिला कि वास्तवमें बुद्धि अथवा तर्कसे यह समझ लेना कठिन है । इसके लिए यदि श्री बिमलेश्वरपर श्रद्धा है, तो उससे ही सिखनेको मिलेगा । 
- श्री. रमेश शिंदे, राष्ट्रीय प्रवक्ता, हिंदू जनजागृति समिति

रशियाके गुप्तचर तंत्रद्वारा भारतकी कांग्रेसका सच्चा स्वरुप उजागर किया गया !

रशियाके गुप्तचर तंत्रद्वारा भारतकी कांग्रेसका सच्चा स्वरुप उजागर किया गया !शियाके के.जी.बी. (कोमिटैट गोसुदास्टॅवेनॉय बिजोपास्नोस्ती)  गुप्तचर संगठनके एक वरिष्ठ अधिकारी वासिली मित्रोखिनद्वारा  लिखित ‘मित्रोखिन अर्काइव - २ केजीबी एंड वर्ल्ड’ बहुचर्चित पुस्तक प्रसिद्ध की गई है । इस पुस्तकमें भारतीय जनमानसपर पूरा प्रकाश डाला गया है । इस पुस्तकको पढनेके उपरांत कलतक सर्वसाधारण भारतीय जिन्हें राष्ट्रका उद्धार करनेवाले नेताओंके रूपमें देखते थे, वे सभी नेता राष्ट्रघाती एवं खलनायक प्रतीत होते हैं । 

वर्ष १९९२ में मित्रोखिनने कुछ महत्त्वपूर्ण दस्तावेज लेकर रशियासे ब्रिटन पलायन किया । इस पुस्तकके ‘द ओपननेस ऑफ इंडियन डेमोक्रसी’ प्रकरणमें मित्रोखिनद्वारा स्पष्ट किया गया है कि उस समय भारतके सभी सत्ताधिकारी किसीके दास बन गए थे । भारतकी प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधीके साथ कांग्रेसके अनेक बडे-बडे नेता एवं अनेक अधिकारी बिक गए थे । इसमें तत्कालीन मंत्रीमंडलके रेल्वेमंत्री डॉ. ललित नारायण मिश्र एवं वी.के. कृष्णमेननके भी नाम हैं । तत्पश्चात ललित नारायण मिश्रकी रहस्यमय हत्या हो गई । तदुपरांत उनके पुत्र डॉ. जगन्नाथ मिश्रको भारतकी राजनीतिमें अनेक महत्त्वपूर्ण पदोंकी प्राप्ति हुई । चारा घोटाला एवं अन्य अनेक भ्रष्टाचारोंमें जगन्नाथ मिश्रका हाथ था । वे बिहारके मुख्यमंत्री होनेके उपरांत भी उनके पिता डॉ. ललित नारायण मिश्रकी हत्याका कारण उन्हें ज्ञात नहीं हो सका ।  तत्कालीन रेल्वेमंत्रीका बिक जाना !

अमेरिकाके गुप्तचर संस्थासे इंदिरा गांधीने रिश्वत लेनेके संदर्भमें अमेरिकाके राजदूतद्वारा बताया जाना 

भारतमें काम किए अमेरिकाके राजदूत डेनियल योश्नि हनद्वारा इस बातको स्वीकार किया गया है कि अमेरिकी गुप्तचर संस्थाद्वारा तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधीको रिश्वत दी गई है । इंदिरा गांधीके निजी सचिव आर.के. धवन तो इस कृत्यमें लथपथ डूबे थे । और भी एक वरिष्ठ मंत्रीने इसमें हाथ काले किए हैं । जिस समय राजनीतिमें उनके बुरे दिन आए, उस समय उन्हें राज्यपालपद दिया गया ! शेष जीवन उन्होंने अपने विदेशी गुप्तचर संस्थाके लिए समर्पित किया । इसे जानकर भी लोगोंको आश्चर्य नहीं प्रतीत होता; क्योंकि कांग्रेसका इतिहास ही वैसा है ।

कांग्रेसके आरंभके कार्यकालमें मेकॉले पद्धतिसे शिक्षित व्यक्तियोंको अध्यक्षपद देनेकी कांग्रेसकी नीति रहना 

कांग्रेसके रोम-रोममें देशद्रोह भरा हुआ है । कांग्रेसके ग्रहोंके अनुसार उनमें प्रबल राष्ट्रद्रोह है । परिणामतः फांसी किसी औरको होगी, परंतु सत्ता कांग्रेसकी ही रहेगी । कांग्रेसके जनक सर एलन आक्टोविचन ह्युमने वर्ष १८८५ में ‘इंडियन नैशनल कांग्रेस’की स्थापना की । कांग्रेसकी नीति ऐसी थी कि कांग्रेसके आरंभके कार्यकालमें मेकॉले पद्धतिसे शिक्षित (अर्थात शरीरसे भारतीय एवं मन तथा आचार विचारसे पश्चिमी सभ्यताके ) व्यक्ति ही कांग्रेसमें कार्य करेंगे । इसलिए मुंबईके गवर्नरको कांग्रेसका प्रथम अध्यक्ष करनेके स्थानपर व्योमेशचंद्र बैनर्जीको अध्यक्षपद दिया गया । व्योमेशचंद्र बैनर्जी बंगालके एक ब्राह्मण कुलसे थे; परंतु पश्चिमी सभ्यताकी शिक्षाके प्रभावसे वे ईसाई बन गए थे । कांग्रेसको इससे अधिक अच्छा अध्यक्ष मिलना कैसे संभव है ? डॉ. पट्टाभी सीतारामैयाके ‘द हिस्ट्री ऑफ इंडियन नैशनल कांग्रेस’ पुस्तकमें इस विषयपर विस्तृत रुपसे विचार-विमर्श किया गया है । तत्पश्चात सर सुरेंद्रनाथ बैनर्जी एवं दादाभाई नौरोजी समान अनेक अध्यक्षोंका चयन करते समय यही निकष रखा गया । इन महान व्यक्तियोंका अध्यक्षीय भाषण पढकर आज भी प्रत्येक भारतीयके मनमें उनके विषयमें घृणा उत्पन्न होगी । ये सभी लोग प्रतिभा संपन्न थे; परंतु अंग्रेजी साम्राज्य एवं ब्रिटनकी महारानीके समक्ष उनकी प्रतिभा कुंठित हो गई थी । जिस समय लोकमान्य तिलकके रूपमें भारतीय संस्कृतिका सूर्य उदित हुआ, उस समय ये अपना पक्ष बदलकर स्वयंको राष्ट्रवादी कहने लगे ।

‘मुस्लिम लीग’की स्थापनाके पश्चात कांग्रेसद्वारा मुसलमानोंकी चापलूसी करनेकी नीतिका अवलंब करना

दिसंबर १९०६ में आगा खान एवं ढाकाके नवाबने ‘मुस्लिम लीग’ सिद्ध कर अपना अलग पक्ष स्थापित किया एवं वर्ष १९१६ में ‘मुस्लिम लीग’ कांग्रेससे अलग हो गई । तबसे राष्ट्रघाती मुसलमानोंके तुष्टिकरणकी नीति चालू हो गई । मुस्लिम लीगके साथ लखनौमें मुसलमान एवं सिक्खोंके लिए अलग मंडल स्थापित करनेका निर्णय लिया गया । कांग्रेसके नेताओंमें केवल मदन मोहन मालवीयने इस निर्णयको विरोध किया ।   

‘खिलाफत आंदोलन’का समर्थन करनेवाला गांधीजीका प्रस्ताव तुर्कस्तानके मुस्तफाने कचराकुंडीमें फेंकना ।

मुसलमानोंका तुष्टिकरण करनेकी देशविघाती मानसिकताके कारण वर्ष १९२० में कोलकाताके अधिवेशनमें मोहनदास गांधीजीने ‘खिलाफत आंदोलन’का प्रस्ताव संम्मत किया । इस प्रस्तावको देशबंधु चित्तरंजन दास, विपिनचंद्र पाल, एसनी बेजंट, रविंद्रनाथ टागोर आदि नेताओंने विरोध किया था । महत्त्वपूर्ण बात यह कि तुर्कस्तानके मुस्तफा कमालपाशाने प्रस्तावके लिए भेजी गई तार कचराकुंडीमें फेंक दी ! उसे मिलने हेतु गए आगा खान एवं अमीर अलीको उसने ‘आप खोजा (मुसलमानोंकी एक जात) हो । तुर्की मुसलमानोंसे आपका संबंध ही क्या है ?’ ऐसा कह अपमानित किया ।

स्वामी श्रद्धानंदकी हत्या करनेवाले लोगोंको कांग्रेसने नजदीक करना एवं भगतसिंह, चंद्रशेखर आजादको मात्र आतंकवादी सिद्ध करना 

आर्य समाज तथा हिंदु महासभाके नेता स्वामी श्रद्धानंदकी हत्या करनेवाले अब्दुल रशीदको मोहनदास गांधी ‘रशीद भाई’ कहते थे । कांग्रेसके नेताओंद्वारा सुरक्षा दी जानेके कारण ही स्वामीजीकी हत्याके सूत्रधार दंडविधानके (कानूनके) चंगुलसे मुक्त हुए । एक महत्त्वपूर्ण अपराधीको पाकिस्तानकी निर्मिति करनेमें जिन कांग्रेसी नेताओंकी सहायता मिली, वह आगे भारतका राष्ट्रपति हो गया ! इन कांग्रेसियोंने छत्रपति शिवाजी महाराज, महाराणा प्रताप तथा गुरु गोविंदसिंहको पथभ्रष्ट कहनेका पाप किया था । सरदार भगतसिंहको फासी देनेके लिए पूरे लाहौर नगरका विरोध था; परंतु कांग्रेसके वरिष्ठ नेताओंने उसकी मुक्तिके लिए वाइसरायसे चर्चा नहीं की; क्योंकि उनकी दृष्टिमें भारतमाताके लिए अपने प्राणका बलिदान करनेवाले भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद एवं पंडित रामप्रसाद बिस्मिल आतंकवादी थे ! 
ऐसे अनेक विषयोंपर चर्चा कर सकते हैं । सत्याग्रह आंदोलन, असहकार आंदोलन, राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रगीत, राष्ट्रभाषा, गोहत्या, शिक्षणविषयक धोरण, स्वा. सावरकरजीको विरोध करना, जिनाको समर्थन देना ऐसे कुकृत्योंके साथ सबसे बडा कुकृत्य  सुभाषचंद्र बोसको अंतरराष्ट्रीय स्तरपर ‘अपराधी’ घोषित करना । ‘मेरे शरीरके ऊपरसे जानेके पश्चात पाकिस्तानकी निर्मिति होगी’, ऐसा कहनेवाले लोगोंने पाकिस्तानकी निर्मितिके निमित्त मिठाई खाई तथा पाकिस्तानको ५५ करोड रुपयोंकी (अभीके १४ सहस्र करोड रुपए) सहायता करने हेतु अनशन भी किया । परिणामतः पाकिस्तानमें ३ लाख हिंदुओंकी क्रूरतासे हत्या की गई तथा २ करोड लोग अपनी प्रिय मातृभूमिसे पराये हो गए । ये कांग्रेसके तथाकथित देशभक्तिके उदाहरण हैं 
(संदर्भ : सीमा मालवीय, मासिक हिंदु वॉइस : नोव्हेंबर २००५)

संशोधनद्वारा तंत्रज्ञानका प्रभावी उपयोग करनेवाला इसरायल !

अधिकांश लोग इसरायलको युद्ध अथवा युद्धके संदर्भमें विविध कथाओंसे संलग्न देश मानते हैं । १४ मईको इसरायलका 

स्वातंत्र्यदिन मनाया गया । इस निमित्तसे इस देशका प्रगतिका लेखाचित्र प्रसिद्ध कर रहे हैं ।

१. पानी एवं अनाजके उत्पादनका अकाल होते हुए भी ६० वर्षोंमें बडी उन्नति भरनेवाला इसरायल

इसरायलके प्रत्येक नागरिकने अपना व्यक्तिगत भविष्य अपने देशके साथ जोडा, यही इसरायलकी प्रगतिका रहस्य है । इसरायलकी लडाईके पीछे २ सहस्र वर्षोंका इतिहास है; परंतु उनको मिली स्वतंत्रता केवल ६० से ६२ वर्षोंकी है । यह कहना अचूक होगा कि दि.१४.५.१९४८ को इसरायल नामक देशका अस्तित्व हुआ । इन ६० वर्षोंमें इसरायलने बडी उन्नति की । पानी एवं अनाजके उत्पादका अकाल होते हुए भी इस प्रकारकी उन्नति करनेकी घटना वास्तवमें प्रशंसा करने एवं भारतके साथ विश्वके अन्य देशोंके लिए अनुसरण करनेयोग्य है ।

२.इसरायलद्वारा अत्याधुनिक तंत्रज्ञानकी सहायतासे तांत्रिक प्रगतिकी दिशामें की गई उन्नति

२.अ. पानी
२.अ.१. समुद्रके पानीसे पीनेका पानी सिद्ध करना : समुद्रके नीरस एवं खारे पानीसे सीधे पीनेका पानी उत्पन्न करनेका तंत्रज्ञान इसरायलने प्रगत किया । हम उनका ‘वाईट हाऊस’ नामक बडा प्रकल्प देखने गए थे । किसी शक्कर उद्योगालय (कारखाना) समान यह प्रकल्प है । अवास्तव यंत्रसामग्री, रासायनिक मिश्रणका अत्यधिक बडा सिलेंडर, बडे-बडे ‘वॉटरबेड‘ इन सब वस्तुओंमेंसे पानीका प्रवाह जाता आता रहता है । पश्चात उसमें पुनः पीनेके पानीके लिए कुछ उचित द्रव्य मिलाकर पीनेका पानी सिद्ध होता है । इस प्रकल्पमें प्रतिदिन कुछ दशलक्ष लिटर पानी सिद्ध होता है ।
२ अ. २. पानीकी प्रक्रिया करते समय बिजली भी उत्पन्न होनेके कारण बिजलीके लिए अलगसे व्यय करनेकी आवश्यकता न रहना : इसरायलियोंसे पूछा गया, ‘इतनी सारी प्रक्रियाओंसे सिद्ध पानी बहुत महंगा रहनेके कारण सर्वसाधारण लोगोंको कैसे बन पडेगा ?’ इस समय उन्होंने जानकारी दी कि पानीकी प्रक्रिया करते समय उसी पानीके उपयोगसे बिजली उत्पन्न होती है । इस बिजलीपर ही पूरा प्रकल्प चलता था । इसके लिए बिजलीका अलगसे व्यय करनेकी आवश्यकता नहीं थी । कच्ची सामग्री अर्थात समुद्रका पानी निःशुल्क उपलब्ध होता था । इसके अतिरिक्त यह प्रक्रिया चालू रहतेमें पीनेके लिए अयोग्य पानी खेतीके लिए उपलब्ध करा दिया जाता है, जिसका इस प्रतिष्ठानको अलगसे उत्पन्न मिलता है ।
२ अ.३.गंदे पानीका शुदि्धकरण कर उसका खेतीके लिए उपयोग करना : गंदे पानीपर प्रक्रियाके व्यवसायमें भी उन्होंने ऐसी ही प्रगति की । कालेभोर एवं बदबूवाले पानीका सभी अनावश्यक भाग (तेल, ग्रीस एवं कूडा आदिसे युक्त पानी ) यांत्रिक प्रक्रियाके माध्यमसे निकाला जाता है, जिससे कुछ मात्रामें शुद्ध होकर वह पानी भूमिमें संग्रहित किया जाता है । इसमें खेतीके लिए अनुकूल खनिज मिलाकर खेतीके लिए उसका विक्रय किया जाता है । ये सब प्रक्रियाएं यंत्रद्वारा की जाती है  । इसके लिए भूमिके नीचे विद्युतपंप होते हैं । जिनपर यंत्रद्वारा ही ध्यान रखा जाता है । कुल प्रयुक्त पानीका ७५ प्रतिशत हिस्सा पुनः उपयोगमें लाया जाता है । आगामी कुछ वर्षोंमें इस अनुपातको ९५ प्रतिशततक बढानेका प्रयास चल रहा है । इसके लिए प्रयोगशालामें संशोधन चालू रहता है ।
२ आ. कूडा
२ आ.१. कूडेकी कच्ची सामग्रीपर हवाकी प्रक्रिया करना : कूडेके व्यवस्थापनमें इसरायलने बडी क्रांति की है । इसके लिए अलग अलग आस्थापनोंके बडे-बडे व्यक्तिगत उद्योगालय हैं, जहां कूडा जमा होता है । कूडा डालनेसे इन आस्थापनोंके आसपास कूडेके बडे पहाड सिद्ध हो गए हैं । कूडेकी कच्ची सामग्री आनेपर उसपर प्रथम हवाकी प्रक्रिया की जाती है । अर्थात एक बडे घुमते हुए पैनेलद्वारा कूडेको हवाके झोंकके समक्ष लाया जाता है, जिसके कारण हवाकी सहायतासे कूडेमें सि्थत उडकर जानेसमान जो कुछ है (प्लासि्टक, कागज अथवा डोरीके टुकडे आदि ) उडकर एक बडे बरतनमें /(पिंपमें) गिरता है । पश्चात शेष कूडेपर पानीकी प्रक्रिया होकर कूडेमें सि्थत जड पदार्थोंकीr गंदगी निकल जाती है । गंदगीके हटनेके पश्चात वह कूडा डाला जाता है ।
२ आ.२. भूमिकी भरती करने हेतु इस कूडेका उपयोग करना : भूमिकी भरतीके लिए इस कचरेका उपयोग किया जाता है । अपने देशमें भूमिको समतल करने हेतु किसी स्थानकी मिट्टी खोदकर वहां गड्ढा किया जाता है । इसरायलमें इसके लिए कूडेका उपयोग किया जाता है । एकत्रित कूडेका ७५ प्रतिशत कूडा ‘लैंडफिल्ड‘ के लिए उपलब्ध किया जाता है अर्थात उसका विक्रय किया जाता है, जो आस्थापनके आयका प्रमुख भाग होता है । कूडा उपयोगमें आनेसे पूर्व सडकर उसका मिट्टीमें रुपांतर हो जाता है, जिसके कारण यह कूडा भूमिके लिए   उपयुक्त सिद्ध होता है ।
२ आ.३. सडाए गए कूडेपर प्रक्रिया कर खेतीके लिए खाद बनाना : कूडा व्यवस्थापनका और एक नया तंत्र है ‘यौगिक खाद’ बनाना । सडाया गया कूडा मिट्टीसदृश होते ही उसपर पुनः रासायनिक प्रक्रिया कर उसमें खाद मिलाई जाती है । पश्चात खेतीके लिए इस मिट्टीका खादके रूपमें विक्रय किया जाता है ।
२ आ.४. शेष कूडेका उपयोग अर्थात बेकार वस्तुसे टिकाऊ वस्तु बनाना : शेष कूडा अर्थात प्लासि्टककी रिक्त बोतलोंसे अनेक शोभाकी वस्तुएं सिद्ध की जाती हैं । मानो उन्होंने कूडेका कोई हिस्सा व्यय न होने देनेकी शपथ ली हो । कुर्सीपर डाली जानेवाली फोमकी गादियां भी कूडेसे सिद्ध की गई है । प्रथम बार देखनेपर विश्वास नहीं होता ; परंतु जब उन वस्तुओंको सिद्ध होते समय देखते हैं, तो विश्वास रखना पडता है । देखनेके लिए यह उद्योगालय खूला रखा गया है । वहां बच्चोंके लिए खिलौने हैं, जो इस प्रकारकी बेकार वस्तुओंसे बनाए गए थे ।

२ इ. खेती

२ इ १. ‘ठिबक सिंचन’ ( ‘ड्रीप इरिगेशन’) द्वारा खेती करना : इसरायलकी खेती संशोधनका विषय है । हमारे पास खेतीके लिए भारी मात्रामें पानीका उपयोग किया जाता है । आजकल बिजलीकी कोई  निशि्चती नहीं रहती । आना-जाना चालू रहता है । इसकारण कुछ लोगोंने पंपका बटन चालू ही रखकर सोनेका उपाय ढूंढ निकाला, जिससे  बिजलीके आते ही पंपद्वारा खेतमें पानी बिलकुल बह जाता है । पानीका ऐसा अपव्यय नहीं बन पडेगा, यह ध्यानमें लेकर इसरायलने ‘ड्रीप इरिगेशन’ अर्थात ‘ठिबक सिंचन’ ढूंढ निकाला । इसका सूत्र है जितना आवश्यक है, उतना ही पानी प्रयुक्त करना । इसका तंत्र है कि तनिक भी पानी व्यर्थ न जाने देना ।
२ इ २. अत्याधुनिक तंत्रज्ञानसे उत्पादनमें वृदि्ध करना :  इसी पद्धतिसे सब प्रकारकी खेतीको पानी दिया जाता है । अनेक प्रकारके फलशाक, सबि्जयां तथा अनाज भी उत्पन्न किया जाता है । खेतीमें बोना, पेरना, कृषिकर्म एवं फसलमें सतत संशोधन कर अत्याधुनिक तंत्रज्ञानका उपयोग कर उत्पादनमें वृदि्ध की । वहांके अधिकांश कार्य यंत्रद्वारा ही किए जाते हैं ।
२ ई. तांत्रिक प्रगति
२ ई १. यंत्रद्वारा अल्प जनसंख्याके अभावकी पूर्ति करना : इसरायलकी जनसंख्या केवल ७० लाख है । फलस्वरुप वहां कामकी तुलनामें मनुष्यबल न्यून है । परंतु इस अभावको इसरायलियोंने यंत्रके माध्यमसे दूर किया है । एक जलशुदि्धकरण आस्थापनमें विचार-विमर्श चालू था । उस समय सहज रुपसे श्रमिकोंकी संख्याके विषयमें पूछनेपर समझमें आया कि केवल ५० लोग मिलकर एक बडा उद्योगालय चलाते हैं । रात्रिके समय तो केवल दो ही लोग आस्थापनका पूरा काम देखते हैं । वे केवल परदेपर ( सि्क्रन) देखते हैं । इसलिए आस्थापनमें जो चालू है, पूरा दिखाई देता है । किसी अडचनके आनेपर संगणकके माध्यमसे उसपर तत्काल समाधान ढूंढा जाता है । ५० श्रमिकोंमें भी केवल १० लोग ही केमिकल इंजिनियर थे । इसका अर्थ यह कि जलशुदि्धकरणके लिए आवश्यक रसायनोंका प्रमाण एक बार निशि्चत किया तो काम पूरा हो गया । तदुपरांत उसपर केवल ध्यान देना होता है ।
२ ई.२. यंत्रद्वारा मार्गकी सफाई करना : इसरायलमें मार्गोंको भी यंत्रके माध्यमसे ही स्वच्छ किया जाता है । सवेरे गाडियां आकर ये काम कर जाती हैं । इन गाडियोंको भी केवल एकेक व्यक्ति ही चलाते हैं ।
- राजू इनामदार, (दैनिक लोकसत्ता, २९.५.२०११)

राष्ट्र-धर्मके रक्षक श्री गुरु गोविंदसिंह !

श्री गुरु गोविंदसिंहक्षात्रतेज तथा ब्राह्मतेजसे ओतप्रोत  श्री गुरु गोविंदसिंहजीके विषयमें ऐसा कहा जाता है कि, ‘यदि वे  न होते, तो सबकी सुन्नत होती ।’ यह  शतप्रतिशत सत्य भी  है । देश तथा धर्मके लिए कुछ करनेकी इच्छा गुरु गोविंदसिंहमें बचपनसेही  पनप रही थी । इसीलिए धर्मके लिए उनके पिताजी अद्वितीय बलिदानकी सिद्धता कर रहे थे, तब उन्होंने धर्मरक्षाका दायित्व स्वीकार किया, वह भी केवल ९ वर्षकी आयुमें ! एक ओर युद्धकी व्यूहरचना तथा दुसरी ओर वीररस एवं भक्तिरससे परिपूर्ण चरित्रग्रंथ एवं काव्योंकी निर्मिति, इस प्रकार दोनों ओरसे गुरुजीने राष्ट्र-धर्मकी रक्षा की ।

१. श्री गुरु गोविंदसिंहजीकी क्षात्रवृत्ति दर्शानेवाले उनके जीवनके कुछ प्रसंग !

१ अ. गोविंदजीको  युद्ध करनमें बहुत रुचि थी । इसलिए  बचपनमें वे अपने  बालमित्रोंके दो  गुट  कर उनमें कृत्रिम युद्ध खेला करते थे ।
१ आ. पटनाके मुसलमान सत्ताधीशोंके आगे सिर झुकाकर अभिवादन न करनेका साहसभरा कृत्य  वे बचपनसे करते  थे ।

१ इ. धर्मरक्षाके लिए स्वयंका बलिदान देनेकी इच्छा रखनेवाले गुरु तेगबहादूरको भविष्यमें

धर्म रक्षाके कार्यके लिए अपनी समर्थताको अपनी ओजस्वी वाणीसे प्रमाणित करनेवाले गुरू गोविंद !

        वह काल मुघल सम्राट औरंगजेबके क्रूर शासनका था । कश्मीरके मुघल शासक अफगाण शेरके अत्याचारोंसे कश्मीरी पंडित त्रस्त हुए थे ।  उच्चवर्णिय तथा ब्राह्मणोंका बलपूर्वक  धर्मपरिवर्तन किया जा रहा था ।  गुरु तेगबहादूरने पूरे देशमें भ्रमण किया था; इसलिए उन्होंने सर्वत्रकी परिस्थितिका निकटसे अवलोकन किया था । तब स्वरक्षा हेतु कश्मीरी पंडितोंका  एक प्रतिनिधिमंडल पंडित कृपाराम दत्तजीके नेतृत्वमें आनंदपूरमें गुरु तेगबहादूरकी शरणमें आया । एक ओर औरंगजेब हिंदुओंके मतपरिवर्तनके  लिए सर्व प्रकारके अत्याचार एवं  कठोर उपायोंका अवलंब कर  रहा था, तो  दूसरी ओर हिंदू समाजमें दुर्बलता तथा आपसी मतभेदोंने उच्चांक प्रस्थापित किया था । समाजमें संगठितता नहीं थी तथा राष्ट्रीयताकी भावना न्यून हो गई थी । गुरु तेगबहादूरने पंडितोंसे कहा, ‘जबतक कोई महापुरुष इन अत्याचारोंके विरोधमें  खडा नहीं होता, तबतक देश एवं धर्मकी रक्षा होना संभव नहीं । ’ सभामें  स्मशानजैसी शांति फ़ैल गई । उस समय बाल गोविंदने कहा, ‘‘पिताजी, ये कश्मीरी पंडित आपकी शरणमें आए हैं । बिना आपके  इन्हें कौन साहस बंधाएगा ?’’ पुत्रकी निर्भय वाणी सुनकर पिताने उसे अपनी गोदमें बिठाकर पूछा, ‘‘यदि इनकी  रक्षा  करते समय मेरा सिर कटकर मुझे परलोकमें जाना पडा, तो तुम्हारी रक्षा कौन करेगा ?’ गुरुनानकके अनुयायीयोंकी रक्षा कौन करेगा ? सिक्खोंका नेतृत्व कौन करेगा ? आप तो अभी बच्चे हो । ’’ इसपर बाल गोविंदने उत्तर दिया, ‘‘जब मैं ९ मास मांके गर्भमें था, तो उस समय उस कालपुरुषने मेरी रक्षा की, अब तो मैं ९ वर्षका हूं, तो अब क्या मैं मेरी रक्षा करनेके लिए  समर्थ नहीं हूं ?’’ पुत्रकी यह ओजस्वी वाणी सुनकर ‘गोविंद अब भविष्यका दायित्व संभालनेमें समर्थ है’, इस बातपर उनका  विश्वास हुआ । गुरु तेगबहादूरने तुरंत पांच पैसे तथा नारियल मंगवाकर उसपर अपने पुत्रका सिर टिकाया और गोविंदको गुरुपदपर नियुक्त कर भारतदेशकी अस्मिताकी रक्षा हेतु अपनी देह बलिवेदीपर समर्पण करनेके लिए प्रस्थान किया ।

१ ई. शांति एवं अहिंसाके मार्गसे प्राणोंका बलिदान

करनेकी अपेक्षा दुष्प्रवृत्तियोंसे लडनेकी प्रतिज्ञा लेनेवाले श्री गुरु गोविंदसिंह !

        पिताके महान बलिदानके उपरांत श्री गुरु गोविंदसिंहने सिक्ख पंथकी शांति एवं अहिंसाके मार्गसे प्राणोंका बलिदान करनेकी नीतिको निरस्त करनेवाली प्रतिज्ञा की । यही प्रतिज्ञा  देश तथा धर्मके लिए शत्रुओंपर निर्णायक विजय पानेके लिए श्री गुरु गोविंदसिंहके जीवनकी प्रेरणा बनी । इतिहास इसका साक्षी है ।

१ उ. औरंगजेबके शाही आदेशको प्रतिआदेश देनेवाले

तथा उससे दो हाथ करनेकी सिद्धता करनेवाले श्री गुरु गोविंदसिंह !

        गुरुजीका रौद्ररूप देखकर देहलीका मुगल शासक चिंतित हुआ । औरंगजेबने सरहिंदके नबाबको आदेश दिया, ‘गुरु गोविंदसिंह यदि साधूका जीवन व्यतीत करना चाहता होगा, स्वयंको बादशाह कहलाना तथा  सैनिकोंको इकठ्ठा करना बंद करता होगा, अपने सिरपर राजाओंसमान सिरपेंच रखना छोड देता होगा, किलेके छतपर  खडा रहकर सेनाका निरीक्षण करना तथा अभिवादन स्वीकारना बंद करता होगा, तो ठीक । वह एक सामान्य ‘संत’के रुपमें जीवन व्यतीत कर सकता है; किंतु यह चेतावनी देनेके पश्चात भी वह अपनी कार्यवाहियां बंद नहीं करता होगा, तो उसे सीमापार करे, उसे बंदी बनाए अथवा उसकी हत्या करें ।  आनंदपूरको पूर्णत: नष्ट करे ।’  औरंगजेबके इस शाही आदेशका गुरुजीपर कुछ भी परिणाम नहीं हुआ । तब फरवरी १६९५ में औरंगजेबने एक और आदेश निकाला, ‘एक भी हिंदू  (जो मुगल राजसत्ताके  कर्मचारी हैं उन्हें छोडकर ) सिरपर चोटी न रखे, पगडी न पहने, हाथमें शस्त्र न ले । उसी प्रकार पालकीमें, हाथियोंपर तथा अरबी घोडोंपर न बैठे । ’ गुरुजीने इस अवमानकारक आदेशको आव्हान देकर प्रतिआदेश निकाला, ‘मेरे सिक्ख बंधु केवल चोटीही नहीं  रखेंगे , वे संपूर्ण केशधारी होंगे तथा वे केश नहीं कटवाएंगे । मेरे सिक्ख बंधु  शस्त्र धारण करेंगे, वे हाथियोंपर, घोडोंपर तथा  पालकीमें भी बैठेंगे । ’

२. गुरु गोविंदसिंहका ज्ञानकार्य !

२ अ. उत्कृष्ट योद्धा श्री गुरु गोविंदसिंहके ब्राह्मतेजका 

प्रत्यय देनेवाला वीररस तथा भक्तिरससे परिपूर्ण साहित्य !

१. ‘नाममाला’ ( १२ वर्षकी आयुमें रचा ग्रंथ)
२. ‘मार्कंडेय पुराण’ का हिंदीमें  अनुवाद
३. तृतीय चण्डी चरित्र
४. चौबीस अवतार
५. विचित्र नाटक
६. रामावतार
        इन प्रमुख ग्रंथोंकी रचनाओंके साथ-साथ ‘श्रीकृष्णावतार कथा’, ‘रासलीलाका भक्तिरस ’ एवं ‘युद्धनीति ’जैसे विषयोंपर भी  गुरुजीने  लेखन किया है ।

२ आ. इतिहास तथा प्राचीन ग्रंथोंको सुलभ

भाषामें लिखकर उनका पुनरुत्थान करनेवाले गुरुजी !

        गुरु गोविंदसिंहने अपने सैनिकी, साहित्यिक एवं शिक्षासे संबंधित उपक्रमोंमें गति लानेके लिए हिमाचल प्रदेशके नाहन राज्यमें  यमुना नदीके दक्षिण तटपर ‘पावटा’ नामक नगर बसाया । पूरे देशके चुने हुए  ५२ कवियोंको ‘पावटा’में आमंत्रित कर देशका इतिहास एवं प्राचीन ग्रंथोंका सुलभ भाषामें लेखन करवाया । अमृतराय, हंसराय, कुरेश मंडल एवं अन्य विद्वान कवियोंको संस्कृत भाषाके ‘चाणक्यनीति,’ ‘हितोपदेश’ एवं ‘पिंगलसर’ इत्यादि ग्रंथोंका भाषांतर करनेका कार्य सौंपा । गुरुजी स्वयं उत्कृष्ट साहित्यकार थे ।  गुरुजींके हिंदी, ब्रज तथा पंजाबी भाषाके अनेक ग्रंथ वीररससे भरे हैं।

२ इ. गुरु गोविंदसिंहने प्राचीन ग्रंथोंके  गहन अध्ययनका मह्त्व जानकर  पांच सिक्खोंको संस्कृत

भाषाकी विधिवत शिक्षाके लिए काशी भेजना तथा उसीके द्वारा ‘निर्मल परंपरा’ की अधारशिला स्थापित करना

        गुरुजी अपने सिक्ख खालसा पंथमें संस्कृतके प्राचीन काव्य तथा ग्रंथोंके भावार्थके माध्यमसे नई चेतना जागृत करना चाहते थे । केवल पौराणिक ग्रंथ भाषांतरित कर काम नहीं चलेगा, उनका गहन अध्ययन भी  आवश्यक है, यह बात वे जान गए थे । इस हेतु गुरुजीने पांच सिक्खोंको ब्रह्मचारी वेश धारण करनेका आदेश देकर विशेषकर संस्कृत भाषाकी  विधिवत शिक्षा  हेतु काशी भेजा । यहींसे  ‘निर्मल परंपरा’ का आरंभ हुआ । इसके उपरांत ‘निर्मल परंपरा’ तथा संस्थाको धर्मप्रसारका कार्य सौंपा ।

२ ई. श्री गुरु गोविंदसिंहके ग्रंथ एवं कविता !

        ‘हिंदु तथा सिक्ख भिन्न नहीं हैं । उनकी शिक्षा भी भिन्न नहीं है । सिक्ख पंथ महान हिंदु धर्मका एक अविभाज्य अंग है ।  हिंदुओंके धर्मगं्रथ, पुराण एवं दर्शनोंद्वारा प्राप्त  ज्ञान श्री गुरु गोविंदसिहने ‘गुरुमुखी’में प्रस्तुत किया है । यदि हिंदू जीवित रहे, तो ही सिक्ख जीवित रहेंगे । क्या हम अपनी धरोहर (पूर्वापार  परंपराएं) छोड देंगे ?’ - मास्टर तारासिंह
(२९.८.१९६४ को मुंबई स्थित सांदिपनी आश्रममें विश्व हिंदु परिषदकी स्थापनाके  समय किए भाषणका अंश) (गीता स्वाध्याय, जनवरी २०११)

३. औरंगजेबको भेजे गए मृत्यु-संदेशके

राजपत्रसे उनकी स्पष्टोक्ति, आत्मविश्वास तथा वीरताका परिचय !

        औरंगजेब ! मैं यह मृत्यु-संदेश तुम्हें उस शवितका स्मरण कर भेज रहा हूं, जिसका  स्वरूप तलवार एवं खंजीर है । जिसके  दांत तीक्ष्ण हैं तथा जिसके दर्शन खंजीरकी नोंकपर स्पष्ट हो रहे हैं  । वह युद्धमें जीवनदान देनेवाले योद्धामें है । तुमपर वायुवेगसे कूदकर तुम्हें नष्ट करनेवाले अश्वमें है । हे मूर्ख ! तू स्वयंको ‘औरंगजेब’ (सिंहासनकी शोभा) कहलाता है; किंतु क्या  तुम्हारे जैसा पाखंडी, हत्यारा, धूर्त क्या कभी ‘सिंहासनकी शोभा’ बन सकता है ?  हे विध्वंसक  औरंगजेब, तुम्हारे नामका ‘जेब’ शोभा नहीं बन सकता ।  ‘तुम्हारे हाथकी माला कपटका जाल है, ’यह बात सब जानते हैं । जिसके मनमें केवल जालमें फांसनेवाले आखेटक (शिकारी) दाने हैं । तुम्हारी वंदना केवल दिखावा है तथा तुमने किए पापोंपर पर्दा डालने जैसा है । अरे पापी ! तुम वही हो, जिसने केवल राज्यकी लालसासे अपने वृद्ध पिताके साथ कपट किया  । तुम वही हो, जिसने अपने सगे भाईको  मारकर  उसके खूनसे अपने हाथ रंगे हैं ।
        तुम्हारी नसनससे निरपराध लोगोंके खूनकी बू आ रही है ।  हे क्रूरकर्मा ! वह दिन अब दूर नहीं, ‘कारागृहसे उठनेवाली तुम्हारे पिताजीकी ध्वनि, पीडितोंके खूनसे रंगी तुम्हारी इस अत्याचारी सत्ताको जलाकर भस्म करेगी । ’ (गीता स्वाध्याय, जानेवारी २०११)

स्वामी श्रद्धानंद : स्वधर्मार्थ प्राण त्याग करनेवाले हिंदू नेता !

१. परिचय   

        स्वामी श्रद्धानंद एक ऐसे हिंदू नेता थे, जिनका प्राणहरण अब्दुल रशीद नामक एक कट्टरपंथी द्वारा, हिंदू घृणाकी प्राणहारी हत्यारी परंपराके कारण २३ दिसंबर १९२६ में हुआ । हिंदू अपने नेताकी हत्या होनेकी स्थितिमें, दिशाहीन हो जाते हैं, इस तथ्यको समझकर हिंदू नेताओंकी हत्यायें हिंदू घृणाके कारण बहुत सूझ-बूझके साथ की जा रहीं हैं । संघ परिवारके १२५ लोगोंकी हत्यायें केरल राज्यमें पिछले कुछ वर्षोंमे की जा चुकी हैं । स्वामी लक्ष्मणानंदकी हत्या ओडीशामें सन् २००८ की गई थी ।

२. संपूर्ण जीवन वैदिक परंपरा एवं वैदिक धर्मके

उत्कर्षके लिए समर्पित कर, अपना नामकरण स्वामी श्रद्धानंद किया

        स्वामी श्रद्धानंद उर्फ लाला मुंशीरामने अपनी आयुके ३५वें वर्षमें वानप्रस्थ आश्रम (मानव जीवनका तृतीय सोपान ) कर वे महात्मा मुंशीराम बने । उन्होंने हरिद्वारके समीप कांगडी क्षेत्रमें सन् १९०२ में एक गुरुकुलकी ( पुरातन भारत की परंपराके अनुसार एक निवासी शैक्षणिक संस्थान, जहां अध्यात्मके साथ-साथ शिक्षाके अन्य विषयभी पढाये जाते हैं ।) स्थापना की । प्रारंभमे उनके दो पुत्र हरिशचंद्र एवं इंद्र उनके विद्यार्थी तथा महात्मा स्वयं उनके आचार्य थे । वर्तमानमें सैकडों विद्यार्थी वहां शिक्षा ले रहे हैं एवं गुरुकुल कांगडी अब एक विश्वविद्यालय है ।
        महात्मा मुंशीराम गुरुकुलमें लगातार १५ वर्षोंतक कार्यरत रहे । तदुपरांत सन् १९१७ मे उन्होंने सन्यास आश्रम ( मानव जीवनके चार आश्रमोंका अंतिम सोपान - सर्वत्यागकी अवस्था ) स्वीकार किया । सन्यास आश्रमके स्वीकार समारोहमें भाषण देते समय वे बोले, मैं स्वयं अपना नामकरण करूंगा । चुकी मैने अपना संपूर्ण जीवन वेद एवं वैदिक धर्मके उत्कर्षमें व्यतीत किया है, तथा भविष्यमें भी वही कार्य करूंगा, इसलिये मैं अपना नामकरण; श्रद्धानंद कर रहा हूं ।

३. स्वामी श्रद्धानंदका स्वतंत्रता संग्राममें सक्रिय सहभाग !   

        राष्ट्रको स्वतंत्र करवाना स्वामी श्रद्धानंदका अमूल्य संकल्प था । भारतीय जनसमुदायपर पजाबमें ’मार्शल ला ‘ एवं ‘रोलेट ऐक्ट ’ थोप दिये गये थे । दिल्लीमें दमनकारी रोलेट ऐक्टके विरोधमें जनआक्रोश चरमपर था और आनंदोलन हो रहे थे । स्वामी श्रद्धानंद जनांदोलनकी नेतृत्व कर रहे थे । उस समय जुलूस निकालनेपर बंदी लगादी गई थी । स्वामीजीने बंदीको चुनौती देकर दिल्लीमें जुलूस निकालनेकी घोषणा की । तदानुसार सहस्त्रोंकी संख्यामें देशभक्त जुलूसमें सहभागी हुए । जब तक जुलूस चांदनी चौक में पहुंचता, गुरखा रेजिमेंटकी टुकडी बंदूकों आदिके साथ अंग्रेजोंके आदेशपर तैयार थी । साहसी श्रद्धानंद हजारों अनुयायियोंके साथ सभा स्थलपर पहुंचे । जब सैनिक गोलियां चलाने वालेही थे, कि वह निर्भय होकर आगे बडे और जोर से गर्जना करते हुए ललकारा कि, निरीह जनसमुदायको मारनेके पहले, मुझे मारो । बंदूकें त्वरित नीचे झुकादी गयीं तथा जुलूस शांतिपूर्वक आगे बढ गया ।

४. साहसी त्यागमुर्ति का दिल्लीकी जामा मस्जिदमें वैदिक मंत्रोंके पठनसे ओत प्रोत भाषण   

        सन् १९२२ में स्वामी श्रद्धानंदने दिल्लीकी जामा मस्जिदमें एक भाषण दिया था । उन्होंने प्रारंभमें वेद मेंत्रोंका पठन किया तदनंतर प्रेरणादायी भाषण दिया । स्वामी श्रद्धानंद ही मात्र एक ऐसे वक्ता थे, जिन्होंने वैदिक मंत्रोच्चारके साथ अपना भाषण दिया । जागतिक इतिहासका यह अभूतपूर्व क्षण था ।

५. कांग्रेस छोडकर हिंदू महासभामें शामिल होना   

        स्वामी श्रद्धानंदने जब परिस्थितिका गहराईसे अध्ययन किया तो उन्हें इसका बोध हुआ कि, मुसलमान कांग्रेसमें शामिल होनेपर भी मुसलमान ही रहता है । वे नमाज पढनेके लिए कांग्रेस सत्रको भी रोक सकते थे । हिंदू धर्मपर कांग्रेसमें अन्याय हो रहा था । जब उन्हें सत्यका पता लगा, उन्होंने त्वरित कांग्रेसका त्याग किया एवं पं. मदन मोहन मालवीयकी सहायतासे ‘हिंदू महासभा’ की स्थापना की ।

६. स्वामी श्रद्धानंदका धर्मांतरित हिंदुओंको स्वधर्ममे वापस लानेका महान कार्य   

        हिंदुओंके सापेक्ष मुसलमानोंकी बढती संख्याको रोकने के लिए, उन्होंने धर्मांतरित हिंदुओंके शुदि्धकरणका पवित्र अभियान प्रारंभ किया । उन्होंने आगरामें एक कार्यालय खोला । आगरा, भरतपूर, मथुरा आदि स्थानोंमे अनेक राजपूत थे, जिन्हें उसी समय इस्लाममें धर्मांतरित किया गया था किन्तु वे हिंदू धर्ममें वापस आना चाहते थे । पांच लाख राजपूत हिंदू धर्म स्वीकारने के लिए तैयार थे । स्वामी श्रद्धानंद इस अभियानका नेतृत्व कर रहे थे । उन्हों इस प्रयोजनार्थ एक बहुत बडी सभाका आयोजन किया एवं उन राजपूतोंका शुद्धीकरण किया । उनके नेतृत्वमें अनेक गांवोंका शुद्धिकरण हुआ । इस अभियानने हिंदुओंमे एक नवीन चेतना, शक्ति एवं उत्साहका निर्माण किया । इसके साथ ही हिंदु संस्थांओंका भी विस्तार हुआ । कराची निवासी एक मुसलमान महिला जिनका नाम अजगरी बेगम था, उन्हें हिंदू धर्ममें समाहित किया गया । इस घटनाने मुसलमानोंके बीच एक हंगामा खडा कर दिया एवं स्वामीजी विश्वमें प्रसिद्ध हो गए ।

७. प्राणहारी परंपराके शिकार   

        अब्दुल रशीद नामक एक कट्टरपंथी मुसलमान स्वामीजीके दिल्ली स्थित निवासपर २३ दिसंबरको पंहुंचा और उसने कहा कि, उसे स्वामी जीके साथ इस्लामपर चर्चा करनी है । उसने अपने आपको एक कंबलसे ढक रखा था । श्री धर्मपाल जो स्वामीजीकी सेवामें थे, वे स्वामीजीके साथ थे, फलस्वरूप वह कुछ न कर सका । उसने एक प्याला पानी मांगा । उसे पानी देकर जब धर्मपाल प्याला लेकर अंदर गए, रशीदने स्वामीजीपर गोली दागदी । धर्मपालने रशीदको पकड लिया । जबतक अन्य लोग वहांपर पहुचते स्वामीजी प्राणार्पण कर चुके थे । रशीदके विरुद्ध कार्यवाही हुई । इस प्रकार स्वामी श्रद्धानंदजी इस्लामकी हत्यारी परंपराके शिकार हुए किन्तु उन्होंने शहादत देकर अपना नाम अमर कर दिया ।

स्वामी श्रद्धानंदने जैसे ही इस्लाममें धर्मांतरणका विरोध किया,

गांधीजी एवं मुसलमानोंकी उनके प्रति रुचि समाप्त एवं कट्टरवादी द्वारा उनकी हत्या

        गांधीजी स्वामी श्रद्धानंदको बहुत चाहते थे, किंतु जबसे उन्होंने हिंदुओंका हिंदुत्वमें पुर्नपरिवर्तन करनेका अभियान प्रारंभ किया, गांधीजी और मुसलमानोंकी उनमें रुचि समाप्त हो गई । इतना ही नहीं अब्दुल रशीदने बंदूकसे उनकी अति समीपसे हत्या कर दी । स्वामी श्रद्धानंदके हत्यारे अब्दुल रशीदको, गांधीजीने अति सन्मानसे संबोधित करते हुए ‘मेरा भाई !‘ कहा । इससे यह स्पष्ट होता है कि, यदि एक हिंदूभी किसी घटनामें मारा जाता तो गांधीजी उसे राजनैतिक मुद्दा बना देते ।

        स्वयंका संपूर्ण जीवन वैदिक परंपरा एवं वैदिक धर्मके उत्कर्षके लिए समर्पित करनेवाले तथा धर्मांतरित हिंदुओंको स्वधर्ममे वापस लानेवाले साहसी त्यागमुर्ति स्वामी श्रद्धानंदजी का महान कार्य आगे बढाना, यहीं उनके चरणोंमें यथार्थ रूपसे श्रद्धांजली अर्पण करने जैसे होगी !