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Friday, November 22, 2019

मध्यकालीन भारत के इतिहास की हक़ीक़त


मध्यकालीन भारत के इतिहास की हक़ीक़त ........
बाबर ने मुश्किल से कोई 4 वर्ष राज किया। हुमायूं को ठोक पीटकर भगा दिया। मुग़ल साम्राज्य की नींव अकबर ने डाली और जहाँगीर, शाहजहाँ से होते हुए औरंगजेब आते आते उखड़ गया।
कुल 100 वर्ष (अकबर 1556ई. से औरंगजेब 1658ई. तक) के समय के स्थिर शासन को मुग़ल काल नाम से इतिहास में एक पूरे पार्ट की तरह पढ़ाया जाता है....
मानो सृष्टि आरम्भ से आजतक के कालखण्ड में तीन भाग कर बीच के मध्यकाल तक इन्हीं का राज रहा....!
अब इस स्थिर (?) शासन की तीन चार पीढ़ी के लिए कई किताबें, पाठ्यक्रम, सामान्य ज्ञान, प्रतियोगिता परीक्षाओं में प्रश्न, विज्ञापनों में गीत, ....इतना हल्ला मचा रखा है, मानो पूरा मध्ययुग इन्हीं 100 वर्षों के इर्द गिर्द ही है।
जबकि उक्त समय में मेवाड़ इनके पास नहीं था। दक्षिण और पूर्व भी एक सपना ही था।
अब जरा विचार करें..... क्या भारत में अन्य तीन चार पीढ़ी और शताधिक वर्ष पर्यन्त राज्य करने वाले वंशों को इतना महत्त्व या स्थान मिला है ?
अकेला विजयनगर साम्राज्य ही 300 वर्ष तक टिका रहा। हीरे माणिक्य की हम्पी नगर में मण्डियां लगती थीं
महाभारत युद्ध के बाद 1006 वर्ष तक जरासन्ध वंश के 22 राजाओं ने ।
5 प्रद्योत वंश के राजाओं ने 138 वर्ष ,
10 शैशुनागों ने 360 वर्षों तक ,
9 नन्दों ने 100 वर्षों तक ,
12 मौर्यों ने 316 वर्ष तक ,
10 शुंगों ने 300 वर्ष तक ,
4 कण्वों ने 85 वर्षों तक ,
33 आंध्रों ने 506 वर्ष तक ,
7 गुप्तों ने 245 वर्ष तक राज्य किया ।
फिर विक्रमादित्य ने 100 वर्षों तक राज्य किया था ।
इतने महान् सम्राट होने पर भी भारत के इतिहास में गुमनाम कर दिए गए ।
उनका वर्णन करते समय इतिहासकारों को मुँह का कैंसर हो जाता है। सामान्य ज्ञान की किताबों में पन्ने कम पड़ जाते है। पाठ्यक्रम के पृष्ठ सिकुड़ जाते है। प्रतियोगी परीक्षकों के हृदय पर हल चल जाते हैं।
वामपंथी इतिहासकारों ने नेहरूवाद का मल भक्षण कर, जो उल्टियाँ की उसे ज्ञान समझ चाटने वाले चाटुकारों...!
तुम्हे धिक्कार है !!!
यह सब कैसे और किस उद्देश्य से किया गया ये अभी तक हम ठीक से समझ नहीं पाए हैं और ना हम समझने का प्रयास कर रहे हैं।
एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत हिन्दू योद्धाओं को इतिहास से बाहर कर सिर्फ मुगलों को महान बतलाने वाला नकली इतिहास पढ़ाया जाता है। महाराणा प्रताप के स्थान पर अत्याचारी व अय्याश अकबर को महान होना लिख दिया है। अब यदि इतिहास में हिन्दू योद्धाओं को सम्मिलित करने का प्रयास किया जाता है तो कांग्रेस शिक्षा के भगवा करण करने का आरोप लगाती है।

Thursday, October 29, 2015

chatrapati shiva ji

ये फ़िल्म मुगलो के जुल्म और हिन्दुओ की ताक़त से धर्म की रक्षा करते हुए छत्रपति शिवा जी महराज और संभा जी को दिखाया गया है
~~~~~
लेकिन कांग्रेस की सेकुलरिज्म की वजह से इसे पूरे भारत में रिलीज नही होने दिया गया
ये हमारे देश के धर्म रक्षक(छत्रपति शिवा जी और संभा जी) की कहानी पर बनी है जिसे अभी सभी हिन्दू जानते ही नही उनकी वीरता को इसलिए शेयर करके ये वीडियो सभी हिन्दुओ तक पहुचाओ
इसमें दिखाया गया है की कैसे धर्म वीरो ने मुगलो को धुल चटाया था


https://www.facebook.com/506492396155774/videos/550429008428779/

Thursday, October 1, 2015

Execution of Sambhaji by Aurangzeb

Execution of Sambhaji by Aurangzeb
ShankhNaad's photo.

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Chatrapati Shivaji Maharaj was one of the first persons who presented an open threat to Aurangzeb, harassing the Mughals with his guerilla tactics. He was one of the few who stood up to Aurangzeb's harassment of Hindus, opposed the re introduction of Jiziya tax, and was a thorn in his flesh, in the Deccans,turning the Marathas from a fighting force into a full fledged kingdom.
...
When Shivaji passed away in 1680, his son Sambhaji took over as the ruler, and continued his father's relentless struggle against the Mughal empire. Sambhaji giving shelter to Md.Akbar, Aurangzeb's 4th son, during his revolt against his father, only aggravated the hatred he had for the Marathas.
After his defeat at Wai in 1687, Sambhaji took refuge in the Western Ghats along with his friend and advisor Kavi Kalash. However when some of the Marathas betrayed Sambhaji's position, he was captured by the Mughals and bought before Aurangzeb. Sambhaji along with Kavi Kalash was dressed as a buffoon, and made to endure mockery and insults from the Mughal soldiers there.
Sambhaji was given a choice to convert to Islam and spare his life, which he refused. Sambhaji was tortured to death, in the worst possible manner, his eyes and tongue plucked out first,nails removed, then being skinned alive. And finally along with Kavi Kalash, his limbs were hacked one by one, and finally his corpse being thrown. The severed heads of Sambhaji and Kavi Kalash were stuffed with straw and displayed as a warning.
Post independence, our history was written by leftists. They referred to the cruel Aurangzeb as the - Last Great Mughal Emperor, in our school books. Aren't we insulting our great warrior Chatrapati Sambhaji Maharaj and every Hindu by allowing them to do this ?

Monday, March 9, 2015

शिवाजी महाराज ,Great chatrapati Shiva ji

'भारत माँ के महान सपूत हिन्दू ह्रदय सम्राट क्षत्रपति शिवाजी महाराज को उनके जन्मदिवस पर शत् शत् नमन_/\_  

क्षत्रपति शिवाजी राजे भोंसले का जन्म 19 फ़रवरी 1630 को पश्चिमी महाराष्ट्र के शिवनेरी दुर्ग में हुआ था। उनके पिता शाहजी भोंसले और माता जीजाबाई थी जो जाधव(यदुवंशी) वंश के क्षत्रियोँ की पुत्री थीं जिन्होंने महाराष्ट्र में कई सदियोँ तक राज किया था। भोंसले वंश मराठा देश के क्षत्रियो का प्रमुख वंश है जिसका निकास मेवाड़ के गहलोत/सिसोदिया वंश से हुआ है। इस तरह भारत के दो महान सुपुत्र और क्षत्रियों के गौरव महाराणा प्रताप और शिवाजी राजे एक ही वंश से संबंध रखते हैँ।

शिवाजी राजे के पिता शाहजी राजे दक्षिण भारत के एक शक्तिशाली सामंत थे और उनकी माता जीजाबाई एक आदर्श क्षत्राणी और असाधारण महिला थी। उनका बचपन अपनी माता के संरक्षण में ही बीता। शिवाजी महाराज बचपन से ही बहुत तेज दिमाग और प्रतिभाशाली थे। उनकी माता जिजाऊ ने एक आदर्श क्षत्राणी की तरह उनमे देशभक्ति और बलिदान की भावना कूट कूट कर भर दी थी। बचपन से ही शिवाजी राजे के ह्रदय में स्वतंत्रता की लौ प्रज्वलित हो गई थी और विदेशी शाशन की बेड़िया तोड़ने का उन्होंने संकल्प ले लिया था।

उन्होंने कम उम्र में ही विदेशियों से अपनी मातृभूमि को मुक्त कराने का अभियान छेड़ दिया और जीवन भर संघर्ष करते हुए अपनी शूरवीरता और बुद्धिमता के बल पर दक्षिण भारत में विजयनगर साम्राज्य के बाद पहला स्वतंत्र हिन्दू राज्य स्थापित कर लिया। उन्होंने मराठा देश के सभी क्षत्रियोँ को ही नहीँ बल्कि सभी हिन्दू जातियों के लोगो को संगठित कर के विशाल और अपराजेय सेना का निर्माण किया। हालांकि उन्हें बचपन में कोई ख़ास शिक्षा नही मिली लेकिन दादा कोंडदेव उनके राजनितिक गुरु थे और राजे शुक्राचार्य और कौटिल्य की नीतियों को आदर्श मानते थे। उनकी सफलता में उनकी बुद्धिमता और कूटनीति का बहुत बड़ा योगदान था। चाहे अफजल खान से भिड़ंत हो या आगरा के दरबार में नजरबन्द होने के बाद वहॉ से निकलना या फिर अनेको  किलो को बिना रक्त बहाए जीतना या विशाल सेनाओ के विरुद्ध छापामार शैली में लड़कर जीतना,इस तरह के शिवाजी राजे की बुद्धिमता और कूटनीति के अनेको उदाहरण है। इतिहास में शिवाजी राजे जैसा बुद्धिमान और कूटनीतिज्ञ शाशक शायद ही कोई रहा होगा जिन्होंने बहुत कम संसाधनों के साथ अपने से कहीँ विशाल साम्राज्यो से संघर्ष करते हुए बुद्धि और कूटनीति के बल पर एक विशाल और ताकतवर साम्राज्य स्थापित किया।

शिवाजी राजे महान सेनानायक के साथ ही एक कुशल और प्रबुद्ध सम्राट के रूप में भी जाने जाते है। प्रशाशन की बागडोर वो सीधे अपने हाथो में ही रखते थे। राज्याभिषेक होने के बाद उन्होंने हिन्दू शास्त्रो के आधार पर एक सुदृढ़ प्रशासनिक और न्याय तंत्र विकसित किया। वो एक कट्टर हिन्दू थे लेकिन उन्होंने सहिष्णुता की नीती अपनाई। हिन्दू स्वराज स्थापित करने के बाद भी मुसलमानो को पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता दी।

~~भोंसले वंश के क्षत्रियत्व का प्रमाण~~
शिवाजी राजे के राज्याभिषेक की प्रक्रिया जब शुरू हुई तो महाराष्ट्र के ब्राह्मणों ने दुर्भावनावष उनके क्षत्रिय होने पर सवाल उठाकर उनका राज्याभिषेक करने से मना कर दिया। उनके क्षत्रियत्व पर वो ही लोग आज तक भी दुष्पचार कर रहे है जबकि उनके बनाए हुए साम्राज्य का सबसे ज्यादा लाभ इन्हीं लोगो ने उठाया। जब महाराष्ट्र के ब्राह्मणों ने उनका राज्याभिषेक करने से मना कर दिया तो बनारस के एक ब्राह्मण गागभट्ट को बुलाया गया जिनके सामने भोंसले वंश के मेवाड़ के गहलोत/सिसोदिया वंश की शाखा होने के प्रमाण रखे गए। इनसे संतुष्ट होकर पंडित गागभट्ट ने शिवाजी का राज्याभिषेक किया। इन प्रमाणो के अनुसार महाराणा हम्मीर सिंह के छोटे पुत्र सज्जन सिंह अपने साथियों के साथ दक्षिण चले गए और वहॉ उनके वंशजो से मराठा क्षत्रियोँ के भोंसले और घोरपड़े वंश चले। इनकी वंशावली निम्न प्रकार से है-
 
1. रावल बप्पा ( काल भोज ) - 734 ई० मेवाड राज्य में गहलौत शासन के सूत्रधार।
2. रावल खुमान - 753 ई०
3. मत्तट - 773 - 793 ई०
4. भर्तभट्त - 793 - 813 ई०
5. रावल सिंह - 813 - 828 ई०
6. खुमाण सिंह - 828 - 853 ई०
7. महायक - 853 - 878 ई०
8. खुमाण तृतीय - 878 - 903 ई०
9. भर्तभट्ट द्वितीय - 903 - 951 ई०
10. अल्लट - 951 - 971 ई०
11. नरवाहन - 971 - 973 ई०
12. शालिवाहन - 973 - 977 ई०
13. शक्ति कुमार - 977 - 993 ई०
14. अम्बा प्रसाद - 993 - 1007 ई०
15. शुची वरमा - 1007- 1021 ई०
16. नर वर्मा - 1021 - 1035 ई०
17. कीर्ति वर्मा - 1035 - 1051 ई०
18. योगराज - 1051 - 1068 ई०
19. वैरठ - 1068 - 1088 ई०
20. हंस पाल - 1088 - 1103 ई०
21. वैरी सिंह - 1103 - 1107 ई०
22. विजय सिंह - 1107 - 1127 ई०
23. अरि सिंह - 1127 - 1138 ई०
24. चौड सिंह - 1138 - 1148 ई०
25. विक्रम सिंह - 1148 - 1158 ई०
26. रण सिंह ( कर्ण सिंह ) - 1158 - 1168 ई०
27. क्षेम सिंह - 1168 - 1172 ई०
28. सामंत सिंह - 1172 - 1179 ई०
29. कुमार सिंह - 1179 - 1191 ई०
30. मंथन सिंह - 1191 - 1211 ई०
31. पद्म सिंह - 1211 - 1213 ई०
32. जैत्र सिंह - 1213 - 1261 ई०
33. तेज सिंह -1261 - 1273 ई०
34. समर सिंह - 1273 - 1301 ई० (एक पुत्र कुम्भकरण नेपाल चले गए नेपाल के राज वंश के शासक कुम्भकरण के ही वंशज हैं) 

35.रतन सिंह ( 1301-1303 ई० ) - इनके कार्यकाल में अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौडगढ पर अधिकार कर लिया। प्रथम जौहर पदमिनी रानी ने सैकडों महिलाओं के साथ किया। गोरा - बादल का प्रतिरोध और युद्ध भी प्रसिद्ध रहा।

36. महाराणा हमीर सिंह ( 1326 - 1364 ई० ) - हमीर ने अपनी शौर्य, पराक्रम एवं कूटनीति से मेवाड राज्य को तुगलक से छीन कर उसकी खोई प्रतिष्ठा पुनः स्थापित की और अपना नाम अमर किया महाराणा की उपाधि धारं किया। इसी समय से ही मेवाड नरेश महाराणा उपाधि धारण करते आ रहे हैं। इनके वंसज सिसोदिया कहलाये इनके छोटे पुत्र सज्जन सिंह सत्तार दक्षिण (महाराष्ट्र) में चले गए

**A – मेवाड़ सिसोदिया (क्षेत्र सिंह)
**B – महाराष्ट सिसोदिया (सज्जन सिंह)

A (क्षेत्र सिंह से)
37.A महाराणा क्षेत्र सिंह,
38.A महाराणा लाखा सिंह 
39.A महाराणा मोकल सिंह 1421/1433 
40.A महाराणा कुम्भकर्ण सिंह 1433/1468 
41.A महाराणा उदय सिंह I 1468/1473 
42.A महाराणा रैमल सिंह 1473/1508, 
43.A महाराणा संग्राम सिंह I 1508/1528 
44.A महाराणा रतन सिंह 1528/1531, 
45.A महाराणा विक्रमादित्य सिंह 1531/1536 
46.A महाराणा उदय सिंह II, 1537/1572, -
47.A महाराणा प्रताप सिंह II, 1572/1597, 

B (सज्जन सिंह से)
37.B सज्जन सिंह (सिम्हा1310) 
38.B दिलीप सिंह -
39.B शिवाजी प्रथम 
40.B भोसजी 
41.B देवराजजी -
42.B उग्रसेन -
43.B माहुलजी -
44.B खेलोजी
45.B जानकोजी
46.B संभाजी
47.B बाबाजी
48.B मालोजी
49.B शहाजी 
50.B छत्रपति शिवाजी

कर्नाटक में मूढोल रियासत के घोरपोडे परिवार के पास आज भी वो फ़ारसी फरमान सुरक्षित है जिनमे भोंसले और घोरपोड़े वंशो को मेवाड़ के सिसोदिया वंश से निकला हुआ बताया गया है। मूढोल के घोरपोडे पहले राणा उपाधी लगाते थे।

यहाँ तक की शिवाजी महाराज से भी पहले उनके पिता शाह जी खुद को सिसोदिया राजपूतो का वंशज बताते थे। शिवाजी राजे के राज्याभिषेक से भी बहुत पहले शाहजी राजे के दरबारी कवि जयराम ने उनको राजा दलीप का वंशज और धरती पर सब राजाओं में श्रेष्ठ हिंदुआ सूरज मेवाड़ के महाराणाओं के परिवार में पैदा होना बताया है। वो लिखते है-
महिच्या महेंद्रामध्ये मुख्य राणा।दलिपास त्याच्या कुळी जन्म जाणा।।
त्याच्या कुळी माल भूपाळ झाला।जळाने जये शंभू सम्पूर्ण केला।।

उस समय के कई यूरोपीय और अन्य रिकॉर्ड में शिवाजी राजे को राजपूत लिखा गया है जिससे ये पता चलता है कि उस समय उत्तर भारत के क्षत्रियो की तरह मराठा देश के क्षत्रियो को भी राजपूत कहा जाने लगा था।

ईस्ट इंडिया कंपनी के 28 नवंबर1659 के एक लेख के अनुसार- "Sevagy, a great Rashpoote issues forth from his fort Rayguhr to strike blows on the Emperor, Duccan, Golconda and the Portuguese." 

जयपुर आर्काइव में सुरक्षित उस समय के एक लेख में शिवाजी राजे के राजपूती स्वभाव और आचरण की तारीफ़ करी है। उसके अनुसार- "Shivaji is very clever; he speaks the right word, after which nobody need say anything on the subject. He is a good genuine Rajput....and says appropriate things marked by the spirit of a Rajput."

कृष्णाजी अनंत सभासद जो शिवाजी राजे की सेवा में थे, उन्होंने सभासद बाखर नामक ग्रन्थ में आँखों देखा हाल लिखा है। उसमे लिखा है की राजा जय सिंह ने शिवाजी राजे को राजपूत माना और राजपूत होने के नाते धर्मांध औरंगजेब के सामने उनका सहयोग करने का वचन दिया। इसके अलावा इस ग्रन्थ में शिवाजी राजे द्वारा खुद को राजपूत कहने का वर्णन भी मिलता है। जब शाइस्ता खान ने विशाल सेना के साथ आक्रमण किया तो शिवाजी ने अपने सभी कारकूनो, सरनोबत और महत्वपूर्ण लोगो को रायगढ़ बुलाकर उनकी राय लेनी चाही। सभी लोगो ने मुग़लो से संधि करने की राय दी क्योंकि उनके अनुसार उनके पास मुग़लो की विशाल सेना का सामना करने की क्षमता नही है। शिवाजी राजे उनसे सहमत नही हुए और उन्होंने कहा की- " If peace is decided on, there is no influential Rajput, (with the Khan) as would, (considering the fact that) we are Rajputs and he too is a Rajput, protect the Hindu religion and guard our interests. Saista Khan is a Mahomedan, a relation of the Badshah ; bribe and corruption cannot be practised on him. Nor will the Khan protect us. If I meet him in peace, he will bring about (our) destruction. It is injurious to us."

इस तरह भोंसले वंश का सिसोदिया वंश से निकास और असली क्षत्रिय वंश होना प्रमाणित होता है।

प्रौढप्रताप पुरंदर क्षत्रिय कुलावतांश सिंहासनाधीश्वर महाराजाधिराज छत्रपति शिवाज़ीमहाराज़ !!!!
राजाधिराज महाराज शिवराय राज श्री छत्रपती
कर्तव्यदक्ष सिंहासिनाधीश्वर छत्रपती शिवराय
दुर्गपती गज अश्व पती ! सुवर्ण रत्न श्रीपती !
अष्टावधान प्रेष्टीत ! अष्टप्रधान वेष्टित !
राजनीती धुरंदर ! प्रौढप्रताप पुरंदर !
क्षत्रिय कुलावतंस सिहासानाधीश्वर महाराजाधिराज 
छत्रपती शिवाजी महाराज कि जय!

सन्दर्भ-
1.चिन्तामण विनायक वैद्य की शिवाजी-दी फाउंडर ऑफ़ मराठा स्वराज पुस्तक के पृष्ठ क्रमांक ६ से १०
2.कोल्हापुर राजपरिवार का इतिहास। 3.मेवाड़ राजपरिवार का इतिहास।
4.कर्नल टॉड द्वारा लिखित इतिहास। 5. http://horsesandswords.blogspot.in/2012/01/shivajis-rajput-ancestry.html?m=13'भारत माँ के महान सपूत हिन्दू ह्रदय सम्राट क्षत्रपति शिवाजी महाराज को उनके जन्मदिवस पर शत् शत् नमन_/\_
क्षत्रपति शिवाजी राजे भोंसले का जन्म 19 फ़रवरी 1630 को पश्चिमी महाराष्ट्र के शिवनेरी दुर्ग में हुआ था। उनके पिता शाहजी भोंसले और माता जीजाबाई थी जो जाधव(यदुवंशी) वंश के क्षत्रियोँ की पुत्री थीं जिन्होंने महाराष्ट्र में कई सदियोँ तक राज किया था। भोंसले वंश मराठा देश के क्षत्रियो का प्रमुख वंश है जिसका निकास मेवाड़ के गहलोत/सिसोदिया वंश से हुआ है। इस तरह भारत के दो महान सुपुत्र और क्षत्रियों के गौरव महाराणा प्रताप और शिवाजी राजे एक ही वंश से संबंध रखते हैँ।
शिवाजी राजे के पिता शाहजी राजे दक्षिण भारत के एक शक्तिशाली सामंत थे और उनकी माता जीजाबाई एक आदर्श क्षत्राणी और असाधारण महिला थी। उनका बचपन अपनी माता के संरक्षण में ही बीता। शिवाजी महाराज बचपन से ही बहुत तेज दिमाग और प्रतिभाशाली थे। उनकी माता जिजाऊ ने एक आदर्श क्षत्राणी की तरह उनमे देशभक्ति और बलिदान की भावना कूट कूट कर भर दी थी। बचपन से ही शिवाजी राजे के ह्रदय में स्वतंत्रता की लौ प्रज्वलित हो गई थी और विदेशी शाशन की बेड़िया तोड़ने का उन्होंने संकल्प ले लिया था।
उन्होंने कम उम्र में ही विदेशियों से अपनी मातृभूमि को मुक्त कराने का अभियान छेड़ दिया और जीवन भर संघर्ष करते हुए अपनी शूरवीरता और बुद्धिमता के बल पर दक्षिण भारत में विजयनगर साम्राज्य के बाद पहला स्वतंत्र हिन्दू राज्य स्थापित कर लिया। उन्होंने मराठा देश के सभी क्षत्रियोँ को ही नहीँ बल्कि सभी हिन्दू जातियों के लोगो को संगठित कर के विशाल और अपराजेय सेना का निर्माण किया। हालांकि उन्हें बचपन में कोई ख़ास शिक्षा नही मिली लेकिन दादा कोंडदेव उनके राजनितिक गुरु थे और राजे शुक्राचार्य और कौटिल्य की नीतियों को आदर्श मानते थे। उनकी सफलता में उनकी बुद्धिमता और कूटनीति का बहुत बड़ा योगदान था। चाहे अफजल खान से भिड़ंत हो या आगरा के दरबार में नजरबन्द होने के बाद वहॉ से निकलना या फिर अनेको किलो को बिना रक्त बहाए जीतना या विशाल सेनाओ के विरुद्ध छापामार शैली में लड़कर जीतना,इस तरह के शिवाजी राजे की बुद्धिमता और कूटनीति के अनेको उदाहरण है। इतिहास में शिवाजी राजे जैसा बुद्धिमान और कूटनीतिज्ञ शाशक शायद ही कोई रहा होगा जिन्होंने बहुत कम संसाधनों के साथ अपने से कहीँ विशाल साम्राज्यो से संघर्ष करते हुए बुद्धि और कूटनीति के बल पर एक विशाल और ताकतवर साम्राज्य स्थापित किया।

शिवाजी राजे महान सेनानायक के साथ ही एक कुशल और प्रबुद्ध सम्राट के रूप में भी जाने जाते है। प्रशाशन की बागडोर वो सीधे अपने हाथो में ही रखते थे। राज्याभिषेक होने के बाद उन्होंने हिन्दू शास्त्रो के आधार पर एक सुदृढ़ प्रशासनिक और न्याय तंत्र विकसित किया। वो एक कट्टर हिन्दू थे लेकिन उन्होंने सहिष्णुता की नीती अपनाई। हिन्दू स्वराज स्थापित करने के बाद भी मुसलमानो को पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता दी।
~~भोंसले वंश के क्षत्रियत्व का प्रमाण~~
शिवाजी राजे के राज्याभिषेक की प्रक्रिया जब शुरू हुई तो महाराष्ट्र के ब्राह्मणों ने दुर्भावनावष उनके क्षत्रिय होने पर सवाल उठाकर उनका राज्याभिषेक करने से मना कर दिया। उनके क्षत्रियत्व पर वो ही लोग आज तक भी दुष्पचार कर रहे है जबकि उनके बनाए हुए साम्राज्य का सबसे ज्यादा लाभ इन्हीं लोगो ने उठाया। जब महाराष्ट्र के ब्राह्मणों ने उनका राज्याभिषेक करने से मना कर दिया तो बनारस के एक ब्राह्मण गागभट्ट को बुलाया गया जिनके सामने भोंसले वंश के मेवाड़ के गहलोत/सिसोदिया वंश की शाखा होने के प्रमाण रखे गए। इनसे संतुष्ट होकर पंडित गागभट्ट ने शिवाजी का राज्याभिषेक किया। इन प्रमाणो के अनुसार महाराणा हम्मीर सिंह के छोटे पुत्र सज्जन सिंह अपने साथियों के साथ दक्षिण चले गए और वहॉ उनके वंशजो से मराठा क्षत्रियोँ के भोंसले और घोरपड़े वंश चले। इनकी वंशावली निम्न प्रकार से है-
1. रावल बप्पा ( काल भोज ) - 734 ई० मेवाड राज्य में गहलौत शासन के सूत्रधार।
2. रावल खुमान - 753 ई०
3. मत्तट - 773 - 793 ई०
4. भर्तभट्त - 793 - 813 ई०
5. रावल सिंह - 813 - 828 ई०
6. खुमाण सिंह - 828 - 853 ई०
7. महायक - 853 - 878 ई०
8. खुमाण तृतीय - 878 - 903 ई०
9. भर्तभट्ट द्वितीय - 903 - 951 ई०
10. अल्लट - 951 - 971 ई०
11. नरवाहन - 971 - 973 ई०
12. शालिवाहन - 973 - 977 ई०
13. शक्ति कुमार - 977 - 993 ई०
14. अम्बा प्रसाद - 993 - 1007 ई०
15. शुची वरमा - 1007- 1021 ई०
16. नर वर्मा - 1021 - 1035 ई०
17. कीर्ति वर्मा - 1035 - 1051 ई०
18. योगराज - 1051 - 1068 ई०
19. वैरठ - 1068 - 1088 ई०
20. हंस पाल - 1088 - 1103 ई०
21. वैरी सिंह - 1103 - 1107 ई०
22. विजय सिंह - 1107 - 1127 ई०
23. अरि सिंह - 1127 - 1138 ई०
24. चौड सिंह - 1138 - 1148 ई०
25. विक्रम सिंह - 1148 - 1158 ई०
26. रण सिंह ( कर्ण सिंह ) - 1158 - 1168 ई०
27. क्षेम सिंह - 1168 - 1172 ई०
28. सामंत सिंह - 1172 - 1179 ई०
29. कुमार सिंह - 1179 - 1191 ई०
30. मंथन सिंह - 1191 - 1211 ई०
31. पद्म सिंह - 1211 - 1213 ई०
32. जैत्र सिंह - 1213 - 1261 ई०
33. तेज सिंह -1261 - 1273 ई०
34. समर सिंह - 1273 - 1301 ई० (एक पुत्र कुम्भकरण नेपाल चले गए नेपाल के राज वंश के शासक कुम्भकरण के ही वंशज हैं)
35.रतन सिंह ( 1301-1303 ई० ) - इनके कार्यकाल में अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौडगढ पर अधिकार कर लिया। प्रथम जौहर पदमिनी रानी ने सैकडों महिलाओं के साथ किया। गोरा - बादल का प्रतिरोध और युद्ध भी प्रसिद्ध रहा।
36. महाराणा हमीर सिंह ( 1326 - 1364 ई० ) - हमीर ने अपनी शौर्य, पराक्रम एवं कूटनीति से मेवाड राज्य को तुगलक से छीन कर उसकी खोई प्रतिष्ठा पुनः स्थापित की और अपना नाम अमर किया महाराणा की उपाधि धारं किया। इसी समय से ही मेवाड नरेश महाराणा उपाधि धारण करते आ रहे हैं। इनके वंसज सिसोदिया कहलाये इनके छोटे पुत्र सज्जन सिंह सत्तार दक्षिण (महाराष्ट्र) में चले गए
**A – मेवाड़ सिसोदिया (क्षेत्र सिंह)
**B – महाराष्ट सिसोदिया (सज्जन सिंह)
A (क्षेत्र सिंह से)
37.A महाराणा क्षेत्र सिंह,
38.A महाराणा लाखा सिंह
39.A महाराणा मोकल सिंह 1421/1433
40.A महाराणा कुम्भकर्ण सिंह 1433/1468
41.A महाराणा उदय सिंह I 1468/1473
42.A महाराणा रैमल सिंह 1473/1508,
43.A महाराणा संग्राम सिंह I 1508/1528
44.A महाराणा रतन सिंह 1528/1531,
45.A महाराणा विक्रमादित्य सिंह 1531/1536
46.A महाराणा उदय सिंह II, 1537/1572, -
47.A महाराणा प्रताप सिंह II, 1572/1597,
B (सज्जन सिंह से)
37.B सज्जन सिंह (सिम्हा1310)
38.B दिलीप सिंह -
39.B शिवाजी प्रथम
40.B भोसजी
41.B देवराजजी -
42.B उग्रसेन -
43.B माहुलजी -
44.B खेलोजी
45.B जानकोजी
46.B संभाजी
47.B बाबाजी
48.B मालोजी
49.B शहाजी
50.B छत्रपति शिवाजी
कर्नाटक में मूढोल रियासत के घोरपोडे परिवार के पास आज भी वो फ़ारसी फरमान सुरक्षित है जिनमे भोंसले और घोरपोड़े वंशो को मेवाड़ के सिसोदिया वंश से निकला हुआ बताया गया है। मूढोल के घोरपोडे पहले राणा उपाधी लगाते थे।
यहाँ तक की शिवाजी महाराज से भी पहले उनके पिता शाह जी खुद को सिसोदिया राजपूतो का वंशज बताते थे। शिवाजी राजे के राज्याभिषेक से भी बहुत पहले शाहजी राजे के दरबारी कवि जयराम ने उनको राजा दलीप का वंशज और धरती पर सब राजाओं में श्रेष्ठ हिंदुआ सूरज मेवाड़ के महाराणाओं के परिवार में पैदा होना बताया है। वो लिखते है-
महिच्या महेंद्रामध्ये मुख्य राणा।दलिपास त्याच्या कुळी जन्म जाणा।।
त्याच्या कुळी माल भूपाळ झाला।जळाने जये शंभू सम्पूर्ण केला।।
उस समय के कई यूरोपीय और अन्य रिकॉर्ड में शिवाजी राजे को राजपूत लिखा गया है जिससे ये पता चलता है कि उस समय उत्तर भारत के क्षत्रियो की तरह मराठा देश के क्षत्रियो को भी राजपूत कहा जाने लगा था।
ईस्ट इंडिया कंपनी के 28 नवंबर1659 के एक लेख के अनुसार- "Sevagy, a great Rashpoote issues forth from his fort Rayguhr to strike blows on the Emperor, Duccan, Golconda and the Portuguese."
जयपुर आर्काइव में सुरक्षित उस समय के एक लेख में शिवाजी राजे के राजपूती स्वभाव और आचरण की तारीफ़ करी है। उसके अनुसार- "Shivaji is very clever; he speaks the right word, after which nobody need say anything on the subject. He is a good genuine Rajput....and says appropriate things marked by the spirit of a Rajput."
कृष्णाजी अनंत सभासद जो शिवाजी राजे की सेवा में थे, उन्होंने सभासद बाखर नामक ग्रन्थ में आँखों देखा हाल लिखा है। उसमे लिखा है की राजा जय सिंह ने शिवाजी राजे को राजपूत माना और राजपूत होने के नाते धर्मांध औरंगजेब के सामने उनका सहयोग करने का वचन दिया। इसके अलावा इस ग्रन्थ में शिवाजी राजे द्वारा खुद को राजपूत कहने का वर्णन भी मिलता है। जब शाइस्ता खान ने विशाल सेना के साथ आक्रमण किया तो शिवाजी ने अपने सभी कारकूनो, सरनोबत और महत्वपूर्ण लोगो को रायगढ़ बुलाकर उनकी राय लेनी चाही। सभी लोगो ने मुग़लो से संधि करने की राय दी क्योंकि उनके अनुसार उनके पास मुग़लो की विशाल सेना का सामना करने की क्षमता नही है। शिवाजी राजे उनसे सहमत नही हुए और उन्होंने कहा की- " If peace is decided on, there is no influential Rajput, (with the Khan) as would, (considering the fact that) we are Rajputs and he too is a Rajput, protect the Hindu religion and guard our interests. Saista Khan is a Mahomedan, a relation of the Badshah ; bribe and corruption cannot be practised on him. Nor will the Khan protect us. If I meet him in peace, he will bring about (our) destruction. It is injurious to us."
इस तरह भोंसले वंश का सिसोदिया वंश से निकास और असली क्षत्रिय वंश होना प्रमाणित होता है।
प्रौढप्रताप पुरंदर क्षत्रिय कुलावतांश सिंहासनाधीश्वर महाराजाधिराज छत्रपति शिवाज़ीमहाराज़ !!!!
राजाधिराज महाराज शिवराय राज श्री छत्रपती
कर्तव्यदक्ष सिंहासिनाधीश्वर छत्रपती शिवराय
दुर्गपती गज अश्व पती ! सुवर्ण रत्न श्रीपती !
अष्टावधान प्रेष्टीत ! अष्टप्रधान वेष्टित !
राजनीती धुरंदर ! प्रौढप्रताप पुरंदर !
क्षत्रिय कुलावतंस सिहासानाधीश्वर महाराजाधिराज
छत्रपती शिवाजी महाराज कि जय!
सन्दर्भ-
1.चिन्तामण विनायक वैद्य की शिवाजी-दी फाउंडर ऑफ़ मराठा स्वराज पुस्तक के पृष्ठ क्रमांक ६ से १०
2.कोल्हापुर राजपरिवार का इतिहास। 3.मेवाड़ राजपरिवार का इतिहास।
4.कर्नल टॉड द्वारा लिखित इतिहास। 5. http://horsesandswords.blogspot.in/…/shivajis-rajput-ancest…

Wednesday, December 3, 2014

Photo: Torna Fort:

Torna Fort or Prachandagad is a large fort located in Pune district in the state of Maharashtra, India. It is historically significant because it is the first fort captured by Shivaji in 1643, at the age of 16 forming the nucleus of the Maratha empire. The hill has an elevation of 1,403 metres (4,603 ft) above sea level, making it the highest hill-fort in the district. The name derives from Prachanda (Marathi for huge or massive) and gad (Marathi for fort).

This fort is believed to have been constructed by the Shaiva Panth, followers of the Hindu god Shiva, in the 13th century. A Menghai Devi temple, also referred to as the Tornaji temple, is situated near the entrance of the fort.

In 1643, Shivaji Maharaj captured this fort at the age of sixteen, thus making it one of the first forts in what would become the Maratha empire. Shivaji renamed the fort Torna, and constructed several monuments and towers within it.

In the 18th century, the Mughal empire gained control of this fort after assassination of Shivaji Maharaj's son Sambhaji. Aurangzeb, then Mughal emperor, renamed this fort Futulgaib (Language unknown: Divine victory), in recognition of the difficult defense the Mughals had to overcome to capture this fort. It was restored to the Maratha confederacy by the Treaty of Purandar.

WikiTorna Fort or Prachandagad is a large fort located in Pune district in the state of Maharashtra, India. It is historically significant because it is the first fort captured by Shivaji in 1643, at the age of 16 forming the nucle...us of the Maratha empire. The hill has an elevation of 1,403 metres (4,603 ft) above sea level, making it the highest hill-fort in the district. The name derives from Prachanda (Marathi for huge or massive) and gad (Marathi for fort).

This fort is believed to have been constructed by the Shaiva Panth, followers of the Hindu god Shiva, in the 13th century. A Menghai Devi temple, also referred to as the Tornaji temple, is situated near the entrance of the fort.

In 1643, Shivaji Maharaj captured this fort at the age of sixteen, thus making it one of the first forts in what would become the Maratha empire. Shivaji renamed the fort Torna, and constructed several monuments and towers within it.

In the 18th century, the Mughal empire gained control of this fort after assassination of Shivaji Maharaj's son Sambhaji. Aurangzeb, then Mughal emperor, renamed this fort Futulgaib (Language unknown: Divine victory), in recognition of the difficult defense the Mughals had to overcome to capture this fort. It was restored to the Maratha confederacy by the Treaty of Purandar.
 

Thursday, November 27, 2014

BRAVE 20 HINDU KINGS SAVED INDIA FROM ISLAMIST

India would have been another Iran, Indonesia, Malaysia, and North America, where people were converted to either Muslims ,if not were slaughtered. In North America, Columbus open doors for Christian Missionary and killed many originals called Red Indians. What is difference between Christian and Islamist is that they are both Abraham cult  , brothers and their work is conversion and looting as was done in past and are being done now. Future is not bright as this Kalyug will see many more like what started.Longest war in history was 800 years of Islamist rule come to end by MARATHAS- SRI SHIVAJI and few Rajput Kings.



TOP 20 KINGS OF ANCIENT INDIA-

Sunday, October 19, 2014

अफ्रीका में मिला ६००० साल पुराना शिवलिंग

 shiva in Hindu Religion
अभी हाल में दक्षिण अफ्रीका में खुदाई के दौरान भगवान शिव का प्रतीक एक बड़ा शिवलिंग मिला है।
दक्षिण अफ्रीका की किसी गुफा की खुदाई करते हुए पुरातत्त्वविदों को ग्रेनाइट से बना ६ हजार वर्ष पुराना शिवलिंग मिला है। पुरातत्त्वविद हैरान हैं कि इतने वर्षों तक शिवलिंग जमीन में सुरक्षित रहा और उसे कोई नुकसान नहीं पहुंचा। इससे यह अंदाजा लगाया जा रहा है कि ६  हजार साल पहले दक्षिण अफ्रीका में भी हिंदू धर्म को मानने वाले रहे होंगे या संभव है किसी खास संप्रदाय के लोग भगवान शिव को मानते होंगे। गौरतलब है कि भगवान शिव की सबसे बड़ी मूर्ति भी दक्षिण अफ्रीका में ही है। १०  मजदूरों द्वारा १०  महीनों में बनाई गई इस मूर्ति का अनावरण बेनोनी शहर के एकटोनविले में किया गया है।
स्त्रोत : जागरण 

Tuesday, June 10, 2014

वीर शिवाजी जी मुस्लिम नीति एवं औरंगज़ेब की धर्मान्धता- एक तुलनात्मक अध्ययन

वीर शिवाजी जी मुस्लिम नीति एवं औरंगज़ेब की धर्मान्धता- एक तुलनात्मक अध्ययन
महाराष्ट्र के पुणे से सोशल मीडिया में शिवाजी को अपमानित करने की मंशा से उनका चित्र डालना और उसकी प्रतिक्रिया में एक इंजीनियर की हत्या इस समय की सबसे प्रचलित खबर हैं। दोषी कौन हैं और उन्हें क्या दंड मिलना चाहिए यह तो न्यायालय तय करेगा जिसमें हमारी पूर्ण आस्था हैं। परन्तु सत्य यह हैं की जो लोग गलती कर रहे हैं वे शिवाजी की मुस्लिम नीति, उनकी न्यायप्रियता, उनकी निष्पक्षता, उनकी निरपराधी के प्रति संवेदना से परिचित नहीं हैं। सबसे अधिक विडंबना का कारण इतिहास ज्ञान से शुन्य होना हैं। मुस्लिम समाज के कुछ सदस्य शिवाजी की इसलिए विरोध करते हैं क्यूंकि उन्हें यह बताया गया हैं की शिवाजी ने औरंगज़ेब जिसे आलमगीर अर्थात इस्लाम का रखवाला भी कहा जाता था का विरोध किया था। शिवाजी ने औरंगज़ेब की मध्य भारत से पकड़ ढीली कर दी जिसके कारण उनके कई किले और इलाकें उनके हाथ से निकल गए। यह सब घंटनाएँ ३०० वर्ष से भी पहले हुई और इनके कारण लोग अभी भी संघर्ष कर रहे हैं। यह संघर्ष इस्लामिक साम्राज्यवाद की उस मानसिकता का वह पहलु हैं जिसके कारण भारत देश में पैदा होने वाला मुसलमान जिसके पूर्वज हिन्दू थे जिन्हे कभी बलात इस्लाम में दीक्षित किया गया था, आज भारतीय होने से अधिक इस्लामिक सोच, इस्लामिक पहनावे, इस्लामिक खान-पान, अरब की भूमि से न केवल अधिक प्रभावित हैं अपितु उसे आदर्श भी मानता हैं। सत्य इतिहास के गर्भ में हैं की औरंगज़ेब कितना इस्लाम की शिक्षाओं के निकट था और शिवाजी का मुसलमानों के प्रति व्यवहार कैसा था। दोनों की तुलना करने से उत्तर स्पष्ट सिद्ध हो जायेगा।

औरंगजेब द्वारा हिन्दू मंदिरों को तोड़ने के लिए जारी किये गए फरमानों का कच्चाचिट्ठा

१. १३ अक्तूबर,१६६६- औरंगजेब ने मथुरा के केशव राय मंदिर से नक्काशीदार जालियों को जोकि उसके बड़े भाई दारा शिको द्वारा भेंट की गयी थी को तोड़ने का हुक्म यह कहते हुए दिया की किसी भी मुसलमान के लिए एक मंदिर की तरफ देखने तक की मनाही हैंऔर दारा शिको ने जो किया वह एक मुसलमान के लिए नाजायज हैं।
२. ३,१२ सितम्बर १६६७- औरंगजेब के आदेश पर दिल्ली के प्रसिद्द कालकाजी मंदिर को तोड़ दिया गया।
३. ९ अप्रैल १६६९ को मिर्जा राजा जय सिंह अम्बेर की मौत के बाद औरंगजेब के हुक्म से उसके पूरे राज्य में जितने भी हिन्दू मंदिर थे उनको तोड़ने का हुक्म दे दिया गया और किसी भी प्रकार की हिन्दू पूजा पर पाबन्दी लगा दी गयी जिसके बाद केशव देव राय के मंदिर को तोड़ दिया गया और उसके स्थान पर मस्जिद बना दी गयी। मंदिर की मूर्तियों को तोड़ कर आगरा लेकर जाया गया और उन्हें मस्जिद की सीढियों में दफ़न करदिया गया और मथुरा का नाम बदल कर इस्लामाबाद कर दिया गया। इसके बाद औरंगजेब ने गुजरात में सोमनाथ मंदिर का भी विध्वंश कर दिया।
४. ५ दिसम्बर १६७१ औरंगजेब के शरीया को लागु करने के फरमान से गोवर्धन स्थित श्री नाथ जी की मूर्ति को पंडित लोग मेवाड़ राजस्थान के सिहाद गाँव ले गए जहाँ के राणा जी ने उन्हें आश्वासन दिया की औरंगजेब की इस मूर्ति तक पहुँचने से पहले एक लाख वीर राजपूत योद्धाओं को मरना पड़ेगा।
५. २५ मई १६७९ को जोधपुर से लूटकर लाई गयी मूर्तियों के बारे में औरंगजेब ने हुकुम दिया की सोने-चाँदी-हीरे से सज्जित मूर्तियों को जिलालखाना में सुसज्जित कर दिया जाये और बाकि मूर्तियों को जमा मस्जिद की सीढियों में गाड़ दिया जाये।
६ . २३ दिसम्बर १६७९ औरंगजेब के हुक्म से उदयपुर के महाराणा झील के किनारे बनाये गए मंदिरों को तोड़ा गया। महाराणा के महल के सामने बने जगन्नाथ के मंदिर को मुट्ठी भर वीर राजपूत सिपाहियों ने अपनी बहादुरी से बचा लिया।
७ . २२ फरवरी १६८० को औरंगजेब ने चित्तोड़ पर आक्रमण कर महाराणा कुम्भा द्वाराबनाएँ गए ६३ मंदिरों को तोड़ डाला।
८. १ जून १६८१ औरंगजेब ने प्रसिद्द पूरी का जगन्नाथ मंदिर को तोड़ने का हुकुम दिया।
९. १३ अक्टूबर १६८१ को बुरहानपुर में स्थित मंदिर को मस्जिद बनाने का हुकुमऔरंगजेब द्वारा दिया गया।
१०. १३ सितम्बर १६८२ को मथुरा के नन्द माधव मंदिर को तोड़ने का हुकुम औरंगजेब द्वारा दिया गया। इस प्रकार अनेक फरमान औरंगजेब द्वारा हिन्दू मंदिरों को तोड़ने के लिए जारी किये गए।


हिन्दुओं पर औरंगजेब द्वारा अत्याचार करना


२ अप्रैल १६७९ को औरंगजेब द्वारा हिन्दुओं पर जजिया कर लगाया गया जिसका हिन्दुओं ने दिल्ली में बड़े पैमाने पर शांतिपूर्वक विरोध किया परन्तु उसे बेरहमी से कुचल दिया गया। इसके साथ-साथ मुसलमानों को करों में छूट दे दी गयी जिससे हिन्दू अपनी निर्धनता और कर न चूका पाने की दशा में इस्लाम ग्रहण कर ले। १६ अप्रैल १६६७ को औरंगजेब ने दिवाली के अवसर पर आतिशबाजी चलाने से और त्यौहार बनाने से मना कर दिया गया। इसके बाद सभी सरकारी नौकरियों से हिन्दू क्रमचारियों को निकाल कर उनके स्थान पर मुस्लिम क्रमचारियों की भरती का फरमान भी जारी कर दिया गया। हिन्दुओं को शीतला माता, पीर प्रभु आदि के मेलों में इकठ्ठा न होने का हुकुम दिया गया। हिन्दुओं को पालकी, हाथी, घोड़े की सवारी की मनाई कर दी गयी। कोई हिन्दू अगर इस्लाम ग्रहण करता तो उसे कानूनगो बनाया जाता और हिन्दू पुरुष को इस्लाम ग्रहण करनेपर ४ रुपये और हिन्दू स्त्री को २ रुपये मुसलमान बनने के लिए दिए जाते थे। ऐसे न जाने कितने अत्याचार औरंगजेब ने हिन्दू जनता पर किये और आज उसी द्वारा जबरन मुस्लिम बनाये गए लोगों के वंशज उसका गुण गान करते नहीं थकते हैं।

वीर शिवाजी द्वारा औरंगज़ेब को पत्र लिखकर उसके अत्याचारों के प्रति आगाह करना


वीर शिवाजी ने हिन्दुओं की ऐसी दशा को देखकर व्यथित मन से औरंगजेब को उसके अत्याचारों से अवगत करने के लिए एक पत्र लिखा था। इस पत्र को सर जदुनाथ सरकार अपने शब्दों में तार्किक, शांत प्रबोधन एवं राजनितिक सूझ बुझ से बुना गया बताया हैं।
वीर शिवाजी लिखते हैं की सभी जगत के प्राणी ईश्वर की संतान हैं। कोई भी राज्य तब उन्नति करता हैं जब उसके सभी सदस्य सुख शांति एवं सुरक्षा की भावना से वहाँ पर निवास करते हैं। इस्लाम अथवा हिन्दू एक ही सिक्के के दो पहलु हैं। कोई मस्जिद में पूजा करता हैं , कोई मंदिर में पूजा करता हैं पर सभी उस एक ईश्वर की पूजा करते हैं। यहाँ तक की कुरान में भी उसी एक खुदा या ईश्वर के विषय में कहा गया हैं जो केवल मुसलमानों का खुदा नहीं हैं बल्कि सभी का खुदा हैं। मुग़ल राज्य में जजिया एक नाजायज़, अविवेकपूर्ण, अनुपयुक्त अत्याचार हैं जो तभी उचित होता जब राज्य की प्रजा सुरक्षित एवं सुखी होती पर सत्य यह हैं की हिन्दुओं पर जबरदस्ती जजिया के नाम पर भारी कर लगाकर उन्हें गरीब से गरीब बनाया जा रहा हैं। धरती के सबसे अमीर सम्राट के लिए गरीब भिखारियों, साधुओं ,ब्राह्मणों, अकाल पीड़ितो पर कर लगाना अशोभनीय हैं।मच्छर और मक्खियों को मारना कोई बहादुरी का काम नहीं हैं।
अगर औरंगजेब में कोई वीरता हैं तो उदयपुर के राणा और इस पत्र के लेखक से जजिया वसूल कर दिखाए।
अपने अहंकार और धर्मान्धता में चूर औरंगजेब ने शिवाजी के पत्र का कोई उत्तर न दिया पर शिवाजी ने एक ऐसी जन चेतना और अग्नि प्रजलवित कर दी थी जिसको बुझाना आसान नहीं था।
वीर शिवाजी हिन्दू धर्म के लिए उतने ही समर्पित थे जितना औरंगजेब इस्लाम के लिए समर्पित था परन्तु दोनों में एक भारी भेद था।
शिवाजी अपने राज्य में किसी भी धर्म अथवा मत को मानने वालों पर किसी भी का अत्याचार करते थे एवं उन्हें अपने धर्म को मानने में किसी भी प्रकार की कोई मनाही नहीं थी।

इस्लाम के विषय में शिवाजी की निति


१. अफजल खान को मरने के बाद उसके पूना, इन्दापुर, सुपा, बारामती आदि इलाकों पर शिवाजी का राज स्थापित हो गया। एक ओर तो अफजल खान ने धर्मान्धता में तुलजापुर और पंडरपुर के मंदिरों का संहार किया था दूसरी और शिवाजी ने अपने अधिकारीयों को सभी मंदिर के साथ साथ मस्जिदों को भी पहले की ही तरह दान देने की आज्ञा जारी की थी।

२. बहुत कम लोगों को यह ज्ञात हैं की औरंगजेब ने स्वयं शिवाजी को चार बार अपने पत्रों में इस्लाम का संरक्षक बताया था। ये पत्र १४ जुलाई १६५९, २६ अगस्त एवं २८ अगस्त १६६६ एवं ५ मार्च १६६८ को लिखे गए थे। (सन्दर्भ Raj Vlll, 14,15,16 Documents )

३. डॉ फ्रायर ने कल्याण जाकर शिवाजी की धर्म निरपेक्ष नीति की अपने लेखों में प्रशंसा की हैं। Fryer, Vol I, p. 41n

४. ग्रांट डफ़ लिखते हैं की शिवाजी ने अपने जीवन में कभी भी मुस्लिम सुल्तान द्वारा दरगाहों ,मस्जिदों , पीर मज़ारों आदि को दिए जाने वाले दान को नहीं लूटा। सन्दर्भ History of the Mahrattas, p 104

५. डॉ दिल्लों लिखते हैं की वीर शिवाजी को उस काल के सभी राज नीतिज्ञों में सबसे उदार समझा जाता था।सन्दर्भ Eng.Records II,348

६. शिवाजी के सबसे बड़े आलोचकों में से एक खाफी खाँ जिसने शिवाजी की मृत्यु पर यह लिखा था की अच्छा हुआ एक काफ़िर का भार धरती से कम हुआ भी शिवाजी की तारीफ़ करते हुए अपनी पुस्तक के दुसरे भाग के पृष्ठ 110 पर लिखता हैं की शिवाजी का आम नियम था की कोई मनुष्य मस्जिद को हानि न पहुँचायेगा , लड़की को न छेड़े , मुसलमानों के धर्म की हँसी न करे तथा उसको जब कभी कही कुरान हाथ आता तो वह उसको किसी न किसी मुस्लमान को दे देता था। औरतों का अत्यंत आदर करता था और उनको उनके रिश्तेदारों के पास पहुँचा देता था। अगर कोई लड़की हाथ आती तो उसके बाप के पास पहुँचा देता। लूट खसोट में गरीबों और काश्तकारों की रक्षा करता था। ब्राह्मणों और गौ के लिए तो वह एक देवता था। यद्यपि बहुत से मनुष्य उसको लालची बताते हैं परन्तु उसके जीवन के कामों को देखने से विदित हो जाता हैं की वह जुल्म और अन्याय से धन इकठ्ठा करना अत्यंत नीच समझता था।
सन्दर्भ लाला लाजपत राय कृत छत्रपती शिवाजी पृष्ठ 132 ,संस्करण चतुर्थ, संवत 1983

७. शिवाजी जंजिरा पर विजय प्राप्त करने के लिए केलशी के मुस्लिम बाबा याकूत से आशीर्वाद तक मांगने गए थे।
सन्दर्भ – Vakaskar,91 Q , bakshi p.130
८. शिवाजी ने अपनी सेना में अनेक मुस्लिमों को रोजगार दिया था।

१६५० के पश्चात बीजापुर, गोलकोंडा, मुग़लों की रियासत से भागे अनेक मुस्लिम , पठान व फारसी सैनिकों को विभिन्न ओहदों पर शिवाजी द्वारा रखा गया था जिनकी धर्म सम्बन्धी आस्थायों में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं किया जाता था और कई तो अपनी मृत्यु तक शिवाजी की सेना में ही कार्यरत रहे। कभी शिवाजी के विरोधी रहे सिद्दी संबल ने शिवाजी की अधीनता स्वीकार कर की थी और उसके पुत्र सिद्दी मिसरी ने शिवाजी के पुत्र शम्भा जी की सेना में काम किया था। शिवाजी की दो टुकड़ियों के सरदारों का नाम इब्राहीम खान और दौलत खान था जो मुग़लों के साथ शिवाजी के युद्ध में भाग लेते थे। क़ाज़ी हैदर के नाम से शिवाजी के पास एक मुस्लिम था जो की ऊँचे ओहदे पर था। फोंडा के किले पर अधिकार करने के बाद शिवाजी ने उसकी रक्षा की जिम्मेदारी एक मुस्लिम फौजदार को दी थी। बखर्स के अनुसार जब आगरा में शिवाजी को कैद कर लिया गया था तब उनकी सेवा में एक मुस्लिम लड़का भी था जिसे शिवाजी के बच निकलने का पूरा वृतांत मालूम था। शिवाजी के बच निकलने के पश्चात उसे अत्यंत मार मारने के बाद भी स्वामी भक्ति का परिचय देते हुए अपना मुँह कभी नहीं खोला था। शिवाजी के सेना में कार्यरत हर मुस्लिम सिपाही चाहे किसी भी पद पर हो , शिवाजी की न्याय प्रिय एवं सेक्युलर नीति के कारण उनके जीवन भर सहयोगी बने रहे।
सन्दर्भ Shivaji the great -Dr Bal Kishan vol 1 page 177

शिवाजी सर्वदा इस्लामिक विद्वानों और पीरों की इज्ज़त करते थे। उन्हें धन,उपहार आदि देकर सम्मानित करते थे। उनके राज्य में हिन्दू-मुस्लिम के मध्य किसी भी प्रकार का कोई भेद नहीं था। जहाँ हिन्दुओं को मंदिरों में पूजा करने में कोई रोक टोक नहीं थी वहीँ मुसलमानों को मस्जिद में नमाज़ अदा करने से कोई भी नहीं रोकता था। किसी दरगाह, मस्जिद आदि को अगर मरम्मत की आवश्यकता होती तो उसके लिए राज कोष से धन आदि का सहयोग भी शिवाजी द्वारा दिया जाता था। इसीलिए शिवाजी के काल में न केवल हिन्दू अपितु अनेक मुस्लिम राज्यों से मुस्लिम भी शिवाजी के राज्य में आकर बसे थे।

शिवाजी की मुस्लिम नीति और न्याप्रियता की जीती जागती मिसाल हैं। पाठक मुस्लिम परस्त औरंगज़ेब की धर्मांध नीति एवं न्यायप्रिय शिवाजी की धर्म नीति में भेद को भली प्रकार से समझ सकते हैं। फिर भी मुस्लिम समाज के कुछ सदस्य औरंगज़ेब के पैरोकार बने फिरते हैं और शिवाजी की आलोचना करते घूमते हैं। सत्य के दर्शन होने पर सत्य को स्वीकार करने वाला जीवन में प्रगति करता हैं।

डॉ विवेक आर्य