Showing posts with label rajput saint. Show all posts
Showing posts with label rajput saint. Show all posts

Wednesday, November 18, 2015

Gugga Ji Chauhan- History of great Rajput Saint

गोगा जी/गुग्गा जी चौहान (GOGA JI /GUGGA JI CHAUHAN ,STORY OF A GREAT RAJPUT SAINT)
--------जय जुझार वीर गोगा जी चौहान (जाहरवीर)जी की,जय गुरु गोरखनाथ जी की----------
चौहान वंश में सम्राट पृथ्वीराज चौहान के बाद गोगाजी वीर और ख्याति प्राप्त राजा थे। गोगाजी को लोकमान्यताओं व लोककथाओं के अनुसार साँपों के देवता के रूप में भी पूजा जाता है।लोग
उन्हें गोगाजी चौहान, गुग्गा, जाहर वीर व जाहर पीर के नामों से पुकारते हैं।यह गुरु गोरक्षनाथ के प्रमुख शिष्यों में से एक थे। राजस्थान के छह सिद्धों में गोगाजी को समय की दृष्टि से प्रथम माना गया है।आज देश भर में उनकी बहुत अधिक मान्यता है,लगभग हर प्रदेश में उनकी माढ़ी बनी हुई है इनके भक्त सभी जातियों और धर्मो में मिलते हैं,
जब महमूद गजनवी ने सोमनाथ मंदिर पर हमला किया था तब पश्चिमी राजस्थान में गोगा जी ने ही गजनी का रास्ता रोका था.घमासान युद्ध हुआ.गोगा ने अपने सभी पुत्रों, भतीजों, भांजों व अनेक रिश्तेदारों सहित जन्म भूमि और धर्म की रक्षा के लिए बलिदान दे दिया.जिस स्थान पर उनका शरीर गिरा था उसे गोगामेडी कहते हैं.यह स्थान हनुमानगढ़ जिले की नोहर तहसील में है. इसके पास में ही गोरखटीला है.
इनके भक्तों की संख्या करोडो में है,सभी उन्हें मात्र सिद्ध और चमत्कारी पुरुष के रूप में जानते हैं किन्तु उनके वास्तविक इतिहास से बहुत कम लोग परिचित हैं,बागड़ राज्य का स्वामी होने के कारण इन्हें बागड़वाला भी कहा जाता है।
विद्वानों व इतिहासकारों दशरथ शर्मा,देवी सिंह मुन्डावा जैसे इतिहासकारों ने उनके जीवन को शौर्य, धर्म, पराक्रम व उच्च जीवन आदर्शों का प्रतीक माना है। इतिहासकारों के अनुसार गोगादेव अपने बेटों सहित महमूद गजनबी के आक्रमण के समय उससे युद्ध करते हुए शहीद हो गए थे।
आज हम इनके जीवन की ऐतिहासिक घटनाओं पर प्रकाश डालेंगे.......
====गुरु गोरखनाथ जी के आशीर्वाद से जुझार वीर गोगा जी चौहान जी का जन्म =====
राजस्थान के जिला चूरू के ददरेबा ठिकाने (बागड़ राज्य) मे चौहान वंश की चाहिल अथवा साम्भर शाखा में उमर सिंह जी का शाशन था जिनके दो पुत्र हुए बडे पुत्र का नाम जेवरसिंह व छोटे पुत्र का नाम घेबरसिंह था इन दोनो का विवाह सरसा पट्टन की राजकुमारी बाछल और काछल से हुआ पर बहुत दिनो तक दोनो के कोई संतान नही हुई तब दोनो राजकुमारीयो ने गोरखनाथ जी की पूजा करनी प्रारंंभ की, जब आशिर्वाद प्राप्ति का समय आया तो काछल पहले चली जाती है जिनको गोरखनाथ जी आशीर्वाद देते है जिनसे दो पुत्र अर्जुन और सुर्जन हुए फिर बाद मे बाछल गोरखनाथ जी के पास आशीर्वाद लेने जाती है फिर उनको ज्ञात हुआ के आशीर्वाद तो काछल को प्राप्त हुआ पर फिर भी वो काछल को क्षमा करके बाछल को एक दिव्यपुत्र का आशीर्वाद देते है जिससे उनको संवत १००३ मे भादो सुदी नवमी को जाहर वीर गोगा जी के रूप मे पुत्र प्राप्त हुआ !
जिस समय गोगाजी का जन्म हुआ उसी समय एक ब्राह्मण के घर नरसिंह पांडे का जन्म हुआ।ठीक उसी समय एक हरिजन के घर भज्जू कोतवाल का जन्म हुआ और एक भंगी के घर रत्ना जी भंगी का जन्म हुआ। यह सभी गुरु गोरखनाथ जी के शिष्य हुए।
उसी समय उनकी बंध्या घोडी ने भी एक नीले घोड़े को जन्म दिया।ये सब गोगा जी के आजीवन के साथी हुए।गोगा जी के साथ साथ इन सबकी भी बहुत मान्यता है।
महान इतिहासकार देवीसिंह मंडावा लिखते हैं कि "चौहानो की साम्भर शाखा में एक घंघ ने चुरू से चार कोस पूर्व में घांघू बसाकर अपना राज्यस्थापित किया. उसके पांच पुत्र और एक पुत्री थी. उसने अपने बड़े पुत्र हर्ष को न बनाकर दूसरी रानी के बड़े पुत्र कन्हो को उत्तराधिकारी बनाया. हर्ष और जीण ने सीकर के दक्षिण में पहाड़ों पर तपस्या की.जीण बड़ी प्रसिद्ध हुई और देवत्व प्राप्त किया. कन्हो की तीन पीढ़ी बाद जीवराज (जेवर) राणा हुए. उनकी पत्नी बाछल से गोगादेव पैदा हुए"........
====गोगा जी का विवाह और चचेरे भाईयो का वीरगति पाना====
कोलमंड की राजकुमारी कंसलमदे सिरियल को सांप काट लिया था और वह मरणास्न हो गई थी पर गोगा जी ने मंत्र उच्चारण से उस सर्प को बुलाकर जहर चुसवाया जिससे सिरियल पुऩ: जीवित हो गई , इसी कारण इन्हें उत्तर प्रदेश में इन्हें जहरपीर या जाहरवीर तथा मुसलमान इन्हें गोगा पीर कहते हैं. सिरियल का विवाह गोगा जी के साथ हुआ!
मूसलमान आक्रमणकारीयो से युद्ध करने के बाद जेबर सिंह ने वीरगति प्राप्त की फिर घेबर सिंह जी ने भी मुगलो के साथ युद्ध करके वीरगती प्राप्त की उसके बाद गोगा जी ददरेबा के शासक बने और ये महमूद गजनवी के समकालीन हुए और गोगा जी ने अरब से आए आक्रमणकारीयो को ग्यारह बार परास्त किया !
गोगा जी के सम्बंधी नाहरसिंह ने उनके चचेरे भाई अर्जुन सुर्जन को गोगा जी के खिलाफ भडकाया के तुम दोनो बडे हो, गोगा कैसे राजा बन सकता है इस बात से युद्ध छिड गया जिसमे गोगा जी ने दोनो का सिर काटकर माता बाछल को भेट कर दिया जिससे नाराज होकर माता ने उनको राज्य से निकाल दिया तब वो गोरखनाथ जी के आश्रम मे चले जाते है और वहां योग और सिद्धी से अपनी पत्नी के पास चले जाते थे बाद मे ये बात बाछल माता को पता चलती है वो उनको फिर पुन: ऱाज्य आसीन करती है!
===गोगा जी द्वारा गौरक्षा,राज्य विस्तार,विधर्मियों से संघर्ष और अध्यात्मिक साधना ===
गोगा जी ने अरब आक्रमणकारीयो से 11 बार युद्ध करके उनको परास्त किया और अफगानिस्तान के बादशाह द्वारा लूटी हुई हजारो गायो को बचाया.अफगानिस्तान का शाह रेगिस्तान से हजारो गायो को लूटकर ले जा रहा था उसी समय गोगा जी ने उसपर आक्रमण करके हजारो गायो को छुडा लिया,इससे डरकर अरब के लूटेरो ने गाय धन को लूटना बंद कर दिया !
महमूद गजनवी ने सन १००० से १०२६ ईस्वी तक भारत पर १७ बार चढाई कर के लूट खसोट और अत्याचार किये उस समय गोगा जी ही थे जिन्होने महमूद गजनवी को कई बार मात दी थी जिससे गोगा जी का राज्य और शक्तिशाली हो गया और उसका नाम ददरेबा सेे बदलकर गोगागढ रख दिया!राज्य सतलुज सें हांसी (हरियाणा) तक फ़ैल गया था.रणकपुर शिलालेख में गोगाजी को एक लोकप्रिय वीर माना है.यह शिलालेख वि.1496 (1439 ई.) का है.
गोगा जी की आध्यात्मिक साधना भी साथ साथ चलती थी वो सर्पदंश का इलाज कर देते थे तथा जो सांप काटता था उसको बुलाकर उसको जहर चुसने पर बाध्य कर देते थे -!जल्दी ही उनकी ख्यांति दूर दूर तक फ़ैल गयी....
===महमूद गजनवी से संघर्ष और गोगा जी को वीरगति प्राप्त होना===
राजा हर्षवर्धन के समय में ही हिन्दुस्तान के पश्चिमी भूभाग बलूचिस्तान के कोने में एक बादल मंडरा ने लगा था। ये संकेत था हिन्दुस्तान पर आने वाले उस मजहबी बवण्डर का जिसका इंसानियत से कोई वास्ता ही नहीं था।लूटमार दरिद्रता वेश्यावृत्ति की कुरीतियों से जकङे तुर्क कबीलो ने इस मजहब का नकाब पहनकर हिन्दुस्तान मे जो हैवानियत का खेल खेला,उसे युगों युगों तक भुलाया नहीं जा सकता । एक हाथ में इस्लाम का झंडा व दुसरे हाथ में तलवार से बेगुनाह इन्सानो के खुन की नदियाँ बहाता हिन्दुस्तान आया वो था गजनी का सुल्तान महमूद गजनवी.वो हर साल हिन्दुस्तान आता था आैर लूटमार कर गजनी भाग जाता था!
पहली बार जब महमूद हिन्दुस्तान में लूट के इरादे से आया तो उसका मुकाबला तंवर वंशी जंजुआ राजपूत राजा जयपाल शाही से हुआ। धोखाधड़ी से उसने जयपाल को हराया था.राजा जयपाल शाही ने अपनी सेना के साथ अन्तिम साँस तक मुकाबला किया और वीरगती प्राप्त की.
महमूद गजनवी ने सन 1024 ईस्वी में गुजरात में सोमनाथ के मंदिर को लूटकर रक्त की नदियाँ बहा दी और मंदिर को भी तोड़ दिया,जब यह समाचार गोगा जी को मिला तो बूढे गोगा बप्पा का शरीर क्रोध से थर्राने लगा और उनका खून खोलने लगा...
महमूद सोमनाथ पर आक्रमण कर उस अद्वितीय धरोहर को नष्ट करने में सफल रहा लेकिन उसको इतनी घबराहट थी कि वापसी के समय बहुत तेज गति से चलकर अनुमानित समय व रणयोजना से पूर्व गोगा के राज्य के दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र मे प्रवेश कर गया।
गोगा जी ने महमूद की फौज से लोहा लेने का निश्चय किया।उन्होंने अपने पोते को (जिनका नाम सामंत चौहान था) जो बहुत ही चतुर था उन सभी राजाओं के पास सहायता हेतु भेजा जिनके राज्यों के रास्ते लूटमार करते हुए महमूद को सोमनाथ मन्दिर लूटने जाना था। सामंत सहायता के लिए सभी राजाओ से मिला लेकिन हर जगह उसे निराशा ही हाथ लगी।महमूद की फौज गोगामढी से गुजर रही थी। मदद की कोई आशा नहीं देखकर गोगा बप्पा ने अपने चौहान भाईयो के साथ केसरिया बाना पहनकर 900 सिपाहियों के साथ महमूद की फौज का पीछा किया और रास्ता रोका .भयंकर युद्ध हुआ महमूद के लाखों सिपाहियों से लोहा लेते हुए और उनका संहार करते हुए अपनी छोटी सी सेना के साथ गोगा बप्पा भी वीरगती को प्राप्त हो गये।
ये समाचार जब सामंत को मिला तो महमूद की फौज का खात्मा करने की योजना बनाई।उसने ऊटनी पर सवार होकर महमूद की फौज का पीछा किया और मुहम्मद की फौज में रास्ता बताने का बहाना बनाकर शामिल हो गया .भीषण तेज गर्मी और आँधियों के कारण महमूद और उसकी फौज सोमनाथ का रास्ता भटक गयी .
तब सामंत ने कहा कि वो सोमनाथ मन्दिर का दूसरा एक और रास्ता जानता है जो कम समय मे ही सोमनाथ मन्दिर पहुंचा जा सकता है.महमूद के पास कोई चारा न था। उसने पैदल फौज को सामंत के साथ जाने का हुक्म दिया.फिर क्या था सामंत चौहान अपनी योजना अनुसार फौज को गुमराह करते हुए जैसलमेर के रेतीले टीलों में ले गया जहां कोसो की दूरी तय करने पर पानी नसीब न हो सके.. अवसर मिला और सावंत चौहान ने अपना खांडा निकाल ली और हर हर महादेव का नारा बुलंद करते हुए शत्रुओ पर भूखे शेर की तरह टूट पड़ा।।
तभी आँधी ने भी विकराल रूप धारण कर लिया रेतीले टीलों में पहले पीले साँप पाये जाते थे जिन्होंने शत्रुओ का डस डस कर वध कर दिया। । जो बचे वे रेतीले तूफान भीषण गर्मी में जलकर स्वाहा हो गये.इस प्रकार सावंत चौहान महमूद की आधी फौज के साथ लङता हुआ रेगिस्तान में धरती माता की गोद में समा गया।।
====गोगा जी के वंशज और उनके बारे में मिथ्या प्रचार का खंडन=====
ये प्रचार बिल्कुल गलत है कि गोगा जी कलमा पढकर मुसलमान बन गए थे बल्की वो तो गायो को बचाते हुए और तुर्क मुस्लिम हमलावरों से जूझते हुए खुद वीरगति को प्राप्त हो गए थे !
गोगाजी के कोई पुत्र जीवित न होने से उसके भाई बैरसी या उसके पुत्र उदयराज ददरेवा के राणा बने.. गोगाजी के बाद बैरसी , उदयराज ,जसकरण , केसोराई, विजयराज, मदनसी, पृथ्वीराज, लालचंद, अजयचंद, गोपाल, जैतसी, ददरेवा की गद्दी पर बैठे. जैतसी का शिलालेख प्राप्त हुआ है जो वि.स. 1270 (1213 ई.) का है. इसे वस्तुत: 1273 वि.स. का होना बताया है.
जैतसी के बाद पुनपाल, रूप, रावन, तिहुंपाल, मोटेराव, यह वंशक्रम कायम खान रासोकार ने माना है. जैतसी के शिलालेख से एक निश्चित तिथि ज्ञात होती है. जैतसी गोपाल का पुत्र था जिसने ददरेवा में एक कुआ बनाया. गोगाजी महमूद गजनवी से 1024 में लड़ते हुए मारे गए थे. गोगाजी से जैतसी तक का समय 9 राणाओं का प्राय: 192 वर्ष आता है जो औसत 20 वर्ष से कुछ अधिक है. जैतसी के आगे के राणाओं का इसी औसत से मोटेराव चौहान का समय प्राय: 1315 ई. होता है जो फिरोज तुग़लक के काल के नजदीक है. इससे स्पस्ट होता है कि मोटा राव का पुत्र कर्म सी उर्फ़ कायम खां फीरोज तुग़लक (1309-1388) के समय में मुसलमान बना ......
सत्य ये है कि उनके तेहरवे वंशधर कर्मसी(कर्मचन्द) जो उस समय बालक था को चौहानो से लड़ाई के बाद जंगल मे से दिल्ली का फिरोजशाह तुगलक(१३५१-१३८८) उठाकर ले गया था ! फिरोजशाह ने उसे जबरदस्ती मुसलमान बनाकर अपनी पुत्री उससे ब्याह दी और उसका नाम कायंम खान रख दिया और बाद मे ये ही कायंम खान बहलोल लोदी के शासनकाल मे हिसार का नवाब बना था इसी कायम खां के वंशज कायम खानी चौहान (मुसलमान) कहलाए और ये अभी भी गौगा जी की पूजा करते है!
कायम खां यद्यपि धर्म परिवर्तन कर मुसलमान हो गया था पर उसके हिन्दू संस्कार प्रबल थे. उसका संपर्क भी अपने जन्म स्थान के आसपास की शासक जातियों से बना रहा था.
श्री ईश्वर सिंह मंडाढ कृत राजपूत वंशावली के अनुसार गोगा जी के वंशज मोटा राव के एक पुत्र जगमाल हिन्दू रह गए थे.जिनके वंशज शिवदयाल सिंह और पहाड़ सिंह जीवित हैं.
===चौहान वंश की चाहिल शाखा का संक्षिप्त विवरण===
चौहान वंश मे अरिमुनि, मुनि, मानिक व जैंपाल चार भाई हुए ! अरिमुनि के वंशज राठ के चौहान हुए ! मानक (माणिक्य) के वंशज शाकम्भरी (सांभर) रहे ! मुनि के वंशजो मे कान्ह हुआ ! कान्ह के पुत्र अजरा के वंशज चाहिल से चाहिलो की उतपत्ति हुई! (क्यामखां रासा छन्द सं. १०८) रिणी (वर्तमान तारानगर) के आसपास के क्षेत्रो मे १२ वी १३ वी शताब्दी मे चाहिल शासन करते थे और यह क्षेत्र चाहिलवाडा कहलाता था ! आजकल चाहिल प्राय: मुसलमान है! गूगामेढी (हनुमानगढ़) के पूजारे चाहिल मुसलमान है!
कायमखानी जहाँ गोगा जी के वंश को चाहिल शाखा से बताते हैं वहीँ देवी सिंह मुंडावा जी के अनुसार ददेरवा के चौहान साम्भर शाखा से मानते थे....
====गोगा जी की मान्यता====
गोगा जी चौहान को उत्तर भारत मे लोक देवता के रूप मे पूजा जाता है,गोगामेढी पर हर साल भाद्र पद कृष्ण नवमी को मेला लगता है जहां दूर दूर से हिन्दू और मुसलमान पूजा करने आते है!आज भी सर्पदंश से मुक्ति के लिए गोगाजी की पूजा की जाती है. गोगाजी के प्रतीक के रूप में पत्थर या लकडी पर सर्प मूर्ती उत्कीर्ण की जाती है. लोक धारणा है कि सर्प दंश से प्रभावित व्यक्ति को यदि गोगाजी की मेडी तक लाया जाये तो वह व्यक्ति सर्प विष से मुक्त हो जाता है.
===भिवानी में कलिंगा स्थित गोगा जी की महाडी===
गोगादेव की जन्मभूमि पर आज भी उनके घोड़े का अस्तबल है और सैकड़ों वर्ष बीत गए, लेकिन उनके घोड़े की रकाब अभी भी वहीं पर विद्यमान है। उक्त जन्म स्थान पर गुरु गोरक्षनाथ का आश्रम भी है और वहीं गोगादेव की घोड़े पर सवार मूर्ति है.हनुमानगढ़ जिले के नोहर उपखंड में स्थित गोगाजी के पावन धाम गोगामेड़ी स्थित गोगाजी का समाधि स्थल जन्म स्थान से लगभग 80 किमी की दूरी पर स्थित है.
गोगामेडी में गोगाजी का मंदिर एक ऊंचे टीले पर मस्जिदनुमा बना हुआ है, इसकी मीनारें मुस्लिम स्थापत्य कला का बोध कराती हैं। कहा जाता है कि फिरोजशाह तुगलक सिंध प्रदेश को विजयी करने जाते समय गोगामेडी में ठहरा था। रात के समय बादशाह तुगलक व उसकी सेना ने एक चमत्कारी दृश्य देखा कि मशालें लिए घोड़ों पर सेना आ रही है।तुगलक की सेना में हाहाकार मच गया। तुगलक की सेना के साथ आए धार्मिक विद्वानों ने बताया कि यहां कोई महान सिद्ध है जो प्रकट होना चाहता है। फिरोज तुगलक ने लड़ाई के बाद आते समय गोगामेडी में मस्जिदनुमा मंदिर का निर्माण करवाया।
हरियाणा पंजाब उत्तर प्रदेश राजस्थान में हजारो गाँव में गोगा जी की माडी बनी हुई हैं और उनकी हर जगह हर धर्म और जाति के लोगो द्वारा पूजा की जाती है,उनकी ध्वजा नेजा कहलाती है,गोगा जाहरवीर जी की छड़ी का बहुत महत्त्व होता है और जो साधक छड़ी की साधना नहीं करता उसकी साधना अधूरी ही मानी जाती है क्योंकि मान्यता के अनुसार जाहरवीर जी के वीर छड़ी में निवास करते है।
गौरक्षक,धर्मरक्षक,सिद्ध पुरुष गोगा जी को कोटि कोटि नमन----------
जय जुझार वीर गोगा जी चौहान (जाहरवीर)जी की,जय गुरु गोरखनाथ जी की
सन्दर्भ-------
1-मुह्नौत नैनसी की ख्यांत पृष्ठ संख्या 194-195
2-ठाकुर त्रिलोक सिंह धाकरे कृत राजपूतों की वंशावली एवं इतिहास महागाथा पृष्ठ संख्या 630-631
3-Early chauhan dynasty by Dashrath sharma page no-365-366
4-ईश्वर सिंह मंडाढ कृत राजपूत वंशावली पृष्ठ संख्या 198-199
5-देवी सिंह मुन्डावा कृत सम्राट पृथ्वीराज चौहान पृष्ठ संख्या 134
6-रघुनाथ सिंह कालीपहाड़ी कृत क्षत्रिय राजवंश पृष्ठ संख्या 203
7-कायमखान रासो पृष्ठ संख्या 10
8-श्री सार्वजनिक पुस्तकालय तारानगर' की स्मारिका 2013-14: 'अर्चना' में प्रकाशित मातुसिंह राठोड़ के लेख 'चमत्कारिक पर्यटन स्थल ददरेवा' (पृ. 21-25)
9-कर्नल जेम्स टॉड
10- गोविंद अग्रवाल: चूरू मण्डल का शोधपूर्ण इतिहास, पृ. 51
11-गोरी शंकर हीराचंद ओझा: बीकानेर राज्य का इरिहास भाग प्रथम, पृ. 64
12- A glossary of the Tribes and Castes of the Punjab and North-West Frontier Province By H.A. Rose Vol II/C, p.210