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Thursday, January 11, 2018

एक ऐसा योद्धा जिसे शायद भूल गया भारत


क्या आपने कभी सोचा है कि पूरे उत्तर भारत पर अत्याचार करने वाले मुस्लिम शासक और मुग़ल कभी बंगाल के आगे पूर्वोत्तर भारत पर कब्ज़ा क्यों नहीं कर सके ?
कारण था वो हिन्दू योद्धा जो की इतिहास के पन्नो से गायब है - असम के परमवीर योद्धा "लचित बोरफूकन।" अहोम राज्य (आज का आसाम या असम) के राजा थे चक्रध्वज सिंघा और दिल्ली में मुग़ल शासक था औरंगज़ेब।
औरंगज़ेब का पूरे भारत पे राज करने का सपना अधूरा ही था बिना पूर्वी भारत पर कब्ज़ा जमाये।
इसी महत्वकांक्षा के चलते औरंगज़ेब ने अहोम राज से लड़ने के लिए एक विशाल सेना भेजी। इस सेना का नेतृत्व कर रहा था राजपूत राजा राजाराम सिंह। राजाराम सिंह औरंगज़ेब के साम्राज्य को विस्तार देने के लिए अपने साथ 4000 महाकौशल लड़ाके, 30000 पैदल सेना, 21 राजपूत सेनापतियों का दल, 18000 घुड़सवार सैनिक, 2000 धनुषधारी सैनिक और 40 पानी के जहाजों की विशाल सेनालेकर चल पड़ा अहोम (आसाम) पर आक्रमण करने।
अहोम राज के सेनापति का नाम था "लचित बोरफूकन।" कुछ समय पहले ही लचित बोरफूकन ने गौहाटी को दिल्ली के मुग़ल शासन से आज़ाद करा लिया था।
इससे बौखलाया औरंगज़ेब जल्द से जल्द पूरे पूर्वी भारत पर कब्ज़ा कर लेना चाहता था।
राजाराम सिंह ने जब गौहाटी पर आक्रमण किया तो विशाल मुग़ल सेना का सामना किया अहोम के वीर सेनापति "लचित बोरफूकन" ने।
मुग़ल सेना का ब्रम्हपुत्र नदी के किनारे रास्ता रोक दिया गया। इस लड़ाई में अहोम राज्य के 10000 सैनिक मारे गए और "लचित बोरफूकन" बुरी तरह जख्मी होने के कारण बीमार पड़ गये। अहोम सेना का बुरी तरह नुकसान हुआ।
राजाराम सिंह ने अहोम के राजा को आत्मसमर्पण ने लिए कहा। जिसको राजा चक्रध्वज ने "आखरी जीवित अहोमी भी मुग़ल सेना से लडेगा" कहकर प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया।
लचित बोरफुकन जैसे जांबाज सेनापति के घायल और बीमार होने से अहोम सेना मायूस हो गयी थी। अगले दिन ही लचित बोरफुकन ने राजा को कहा कि जब मेरा देश, मेरा राज्य आक्रांताओं द्वारा कब्ज़ा किये जाने के खतरे से जूझ रहा है, जब हमारी संस्कृति, मान और सम्मान खतरे में हैं तो मैं बीमार होकर भी आराम कैसे कर सकता हूँ ? मैं युद्ध भूमि से बीमार और लाचार होकर घर कैसे जा सकता हूँ ? हे राजा युद्ध की आज्ञा दें....
इसके बाद ब्रम्हपुत्र नदी के किनारे सरायघाट पर वो ऐतिहासिक युद्ध लड़ा गया, जिसमे "लचित बोरफुकन" ने सीमित संसाधनों के होते हुए भी मुग़ल सेना को रौंद डाला। अनेकों मुग़ल कमांडर मारे गए और मुग़ल सेना भाग खड़ी हुई। जिसका पीछा करके "लचित बोफुकन" की सेना ने मुग़ल सेना को अहोम राज के सीमाओं से काफी दूर खदेड़ दिया। इस युद्ध के बाद कभी मुग़ल सेना की पूर्वोत्तर पर आक्रमण करने की हिम्मत नहीं हुई। ये क्षेत्र कभी गुलाम नहीं बना।
लोगों को मालूम नहीं कि आज के समय जो NDA कैडेट बेस्ट होता है अर्थात् जो सबसे अच्छा सैनिक NDA पास कर सेना में जाता है उसको "लचित बोरफुकन" मैडल मिलता है।
आज के आसाम में जोरहट शहर में "लचित बोरफुकन" की प्रतिमा है। कभी जोरहट जाएँ तो इस योद्धा को नमन जरूर करें.....

Monday, April 18, 2016

महाराणा राजसिंह

महाराणा राजसिंह-- मुगलों को मात पर मात देते रहे----------------!



महाराणा राजसिंह हिन्दू कुल गौरव हिन्दू धर्म रक्षक थे दक्षिण क्षत्रपति शिवाजी तो उत्तर मे महाराणा राजसिंह थे, इनका जन्म 24 सितंबर 1629 मे महाराणा जगत सिंह माता महारानी मेडतड़ी जी थी, मात्र 23 वर्ष की आयु 1652-53 ईसवी मे उनका राज्यारोहण हुआ वे धर्माभिमानी थे जब औरंगजेब ने कट्टरता की सीमा पार कर हिन्दू मंदिरों को तोड़वाने लगा बलात जज़िया कर लगाने लगा उस समय महाराणा ने मथुरा भगवान श्रीनाथजी की रक्षा कैसे हो पूरे भारतवर्ष मे औरंगजेब की भय के कारण कोई जगह नहीं दे रहा था महाराणा ने अपने राज्य मे श्रीनाथ द्वारा मंदिर बनवाया और औरंगजेब की चुनौती स्वीकार की, आज भी नाथद्वारा दर्शन हेतु सम्पूर्ण विश्व का हिन्दू जाता है, कहते हैं महाराणा राजसिंह महाराणा जैसे ही थे वे महाराणा प्रताप जैसे संगठक भी और योद्धा भी जिन्होने बार-बार मुगल सत्ता को पराजित कर महाराणा सांगा, महाराणा प्रताप द्वारा निर्मित हिंदुत्व पथ को आगे--- ।
''हल्दी घाटी के युद्ध के पश्चात अकबर की हिम्मत नहीं पड़ी की वह मेवाण पर आक्रमण कर सके, अकबर के बाद जहाँगीर दिल्ली के सिंहासन पर बैठा चार साल बाद उसने मेवाण पर हमला किया आक्रमण का समाचार मिलने के पश्चात भी राणा महल मे मस्त पड़ा रहा अंत मे रालमबरा के सरदार ने महलो मे प्रबेश कर महाराणा को बाहर निकाला और युद्ध क्षेत्र मे ले गया इस लड़ाई मे सरदार कहण सिंह ने मुस्लिम सेना को पराजित कर दिया, एक वर्ष पश्चात विशाल सेना लेकर अपने सेनापति के नेतृत्व मे मेवाण पर आक्रमण किया महाराणा ने उसे पराजित कर अपने राज्य मिला लिया बार-बार पराजय के पश्चात राणा अमरसिंह ने चित्तौण को जीत लिया और अपने राज्य मे मिला लिया इससे हिन्दू समाज को कितनी खुशी हुई होगी हम इसकी कल्पना कर सकते हैं, महाराणा अमरसिंह ने जहाँगीर को सत्रह बार पराजित किया''।
शाहजहाँ के अंत समय मे दिल्ली मे सत्ता संघर्ष के समय महाराणा राजसिंह ने औरंगजेब की कोई सहायता नहीं की जबकि औरंगजेब ने महाराणा से सहायता मांगी थी, उसी समय महाराणा ने रामपुरा क्षेत्र को अपने अधिकार मे ले लिया, औरंगजेब मुगल सुल्तान बन गया परंतु राजसिंह के कृत्य पर ध्यान नहीं दिया, जयपुर के राजा जयसिंह और जोधपुर के राजा जसवंत सिंह के देहावसान होने के पश्चात औरंगजेब निश्चिंत होकर हिंदुओं पर जज़िया कर लगा दिया महाराणा राजसिंह ने इसका बिरोध किया, औरंगजेब जोधपुर पर हमला के दौरान रूपगढ़ की राजकुमारी जजल कुमारी का डोला उठवाने हेतु पाँच हज़ार की लस्कर लेकर भेजा उस राजकुमारी ने बुद्धिमत्ता पूर्वक महाराणा को याद किया, महाराणा ने एक बड़ी फौज लेकार उस राजकुमारी की रक्षा की औरंगजेब की सारी फौज मारी गयी, जोधपुर के अल्प बयस्क राजा अजीत सिंह को औरंगजेब गिरफ्तार करना चाहा महाराणा ने उसकी रक्षा की वहाँ भी उसे मुहकी खानी पड़ी, औरंगजेब ने हिंदुओं पर जज़िया लगाया महाराणा ने एक कडा पत्र औरंगजेब को लिखा पत्र की भाषा और तथ्य वह पचा नहीं सका तिलमिला गया, इन सब से औरंगजेब चिढ़कर काबुल, बंगाल इत्यादि स्थानो से अपनी सारी फौज वापस मगाली और मुगल साम्राज्य की सारी शक्ति लगाकर मेवाण पर आक्रमण किया औरंगजेब चित्तौण, मदलगढ़, मंदसौर आदि दुर्गो को जीतता हुआ आगे बढ़ता चला गया किसी ने उसका बिरोध नहीं किया और विजय के आनंद मे उत्सव मानता हुआ राजस्थान के दक्षिणी -पश्चिमी पहाड़ियों तक पहुच गया वहाँ महाराणा राजासिंह उसके प्रतिरोध हेतु प्रस्तुत था।
शाहजादा अकबर 50000 की सेना लेकर उदयपुर जा पहुचा किसी ने उसे भी नहीं रोका वह निश्चिंत होकर बैठ गया तो महाराणा राजसिंह ने अचानक आक्रमण करके उसके सारे सैनिको को तलवार के घाट उतार दिया और अकबर को बंदी बना लिया शांति -संधि के पश्चात उसे छोड़ा गया, मुगल सेना के दूसरे भाग मे दिलवर खाँ सेनापति के नेतृत्व मे मारवाड़ की ओर से मेवाण पर हमला किया इसको राणा के सरदारों विक्रम सिंह सोलंकी और गोपीनाथ राठौर ने पराजित कर दिया, उनका सारा साजो सामान, हथियार और गोला, बारूद छीन कर वापस भगा दिया, उधर राणा राजसिंह ने औरंगजेब पर आक्रमण कर दिया वह दिवारी के पास छावनी लगाए बैठा था, अचानक आक्रमण कर औरंगजेब को भी महाराणा ने पराजित कर दिया, उसे भी अपना सारा गोला, बारूद, हथियार शस्त्र, अस्त्र छोडकर भागना पड़ा, बाद मे महाराणा ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर मुगल सेना को भगा दिया और क्षेत्र जो औरंगजेब ने जीता था उसे भी जीतकर पुनः अधिकार कर लिया, राजकुमार भीम सिंह विजय की ध्वजा को लहराता हुआ सूरत तक पहुच गया इसी प्रकार मालवा को विजय करता हुआ नर्मदा और बेतवा तक चला गया मांडव, उज्जैन और चँदेरी तक भगवा झण्डा मेवाण ने फ़ाहराया। सूरत से हट कर राजकुमार भीम सिंह ने साहजादा अकबर और सेनापति तहवर खाँ को कई जगहों पराजित किया, शाहजादा अकबर औरंगजेब से नाराज होकर क्षत्रपति संभाजी की शरण मे चला गया, अंत मे औरंगजेब हार मानकर महाराणा से शांति -संधि कर वापस दिली चला गया।
यह समय ऐसा था जब महाराणा राजसिंह ने पूरे राजपूताना को संगठित कर (मुगल) (कहते हैं कि राणा राजसिंह जयपुर राज़ा के यहाँ भोजन किया उसको लेकार मेवाण मे उन्हे बिरोध झेलना पड़ा) इस्लामिक सत्ता को पराजित किया, इस्लामिक सत्ता को बार-बार पराजित होना पड़ा और भारत वर्ष मे उसके पराजय का युग यहीं से प्रारम्भ हुआ, महाराणा राजसिंह 1652 से 1680 ईसवी तक शासन किया उस समय मेवाण की शासन ब्यवस्था को चुस्त दुरुस्त किया अपनी सीमा को सुरक्षित रखने हेतु किलों का निर्माण कराया, एक लाख की नियमित सेना रखने का अभ्यास किया जो रथ, हाथी के अतिरिक्त थी उन्होने बाप्पा रावल और महाराणा प्रताप की परंपरा को कायम रखी

वीरवर कल्ला जी राठौड़, Kalla ji rathod and Akbar

वीरवर कल्ला जी राठौड़ !!

आगरा के किले में अकबर का खास दरबार लगा हुआ था आज म्लेच्छ बादशाह अकबर बहुत खुश था, सयंत रूप से
आपस में हंसी- मजाक चल रहा था | तभी म्लेच्छ अकबर ने अनुकूल अवसर देख बूंदी के राजा भोज से कहा - "
राजा साहब हम चाहते है आपकी छोटी राजकुमारी की सगाई शाहजादा सलीम के साथ हो जाये |"
राजा भोज ने तो अपनी पुत्री किसी मलेच्छ को दे दे ऐसी कभी कल्पना भी नहीं की थी |
उसकी कन्या एक मलेच्छ के साथ ब्याही जाये उसे वह अपने हाड़ावंश
की प्रतिष्ठा के खिलाफ समझते थे | इसलिए राजा भोज ने मन ही मन निश्चय किया कि- वे अपनी पुत्री की सगाई शाहजादा सलीम के साथ
हरगिज नहीं करेंगे |
यदि एसा प्रस्ताव कोई और रखता तो राजा भोज उसकी जबान काट लेते पर ये प्रस्ताव रखने वाला भारत का क्रूर म्लेच्छ अकबर था जिसने छल कर के हिन्दू राजा महाराजा को बंदी बनाया है | राजा भोज से प्रति उत्तर सुनने के लिए म्लेच्छ अकबर ने अपनी निगाहें राजा भोज के चेहरे पर गड़ा दी | राजा भोज को कुछ ही क्षण में उत्तर देना था वे समझ नहीं पा रहे थे कि -बादशाह को क्या उत्तर दिया जाये | इसी उहापोह में उन्होंने सहायता के लिए दरबार में बैठे क्षत्रिय राजाओं व योद्धाओं पर दृष्टि डाली और उनकी नजरे "कल्ला जी राठौड़ "" पर जाकर ठहर गयी |
कल्ला जी राठौड़ राजा भोज की तरफ देखता हुआ अपनी भोंहों तक लगी मूंछों पर
निर्भीकतापूर्वक बल दे रहा था | | राजा भोज को अब उत्तर मिल चुका था उन्होंने म्लेच्छ अकबर से कहा - " जहाँपनाह
मेरी छोटी राजकुमारी की तो सगाई हो चुकी है |"
"किसके साथ ?" म्लेच्छ अकबर ने कड़क कर पूछा |
" जहाँपनाह मेरे साथ,बूंदी की छोटी राजकुमारी मेरी मांग है |"
अपनी मूंछों पर बल देते हुए कल्ला जी राठौड़ ने दृढ़ता के साथ कहा | यह सुनते ही सभी दरबारियों की नजरें कल्ला जी को देखने लगी इस तरह भरे दरबार में म्लेच्छ अकबर बादशाह के आगे मूंछों पर ताव देना अशिष्टता ही नहीं बादशाह का अपमान भी था। साले सूअर के पिल्ले(शहंशाह) की ।
म्लेच्छ अकबर भी समझ गया था कि ये कहानी अभी अभी घड़ी गयी है
पर चतुर म्लेच्छ अकबर बादशाह ने नीतिवश जबाब दिया _ "
फिर कोई बात नहीं |
हमें पहले मालूम होता तो हम ये प्रस्ताव ही नहीं रखते |" और दुसरे ही क्षण म्लेच्छ अकबर बादशाह ने वार्तालाप का विषय बदल दिया | यह घटना सभी दरबारियों के बीच चर्चा का विषय
बन गयी कई दरबारियों ने इस घटना के बाद के बाद म्लेच्छ अकबर बादशाह को कल्ला के खिलाफ उकसाया तो कईयों ने कल्ला जी राठौड़ को सलाह दी आगे से बादशाह के आगे मूंछें नीची करके जाना बादशाह तुमसे बहुत नाराज है |
पर कल्ला को उनकी किसी बात की परवाह नहीं थी |
लोगों की बातों के कारण दुसरे दिन जब कल्ला दरबार में हाजिर हुआ तो केसरिया वस्त्र (युद्ध कर मृत्यु के लिए तैयारी के प्रतीक )धारण किये हुए था | उसकी मूंछे आज और
भी ज्यादा तानी हुई थी | म्लेच्छ अकबर बादशाह उसके रंग ढंग देख समझ गया था और मन ही मन सोच रहा था -"
एसा बांका जवान बिगड़ बैठे तो क्या करदे |" दुसरे ही दिन कल्ला बिना छुट्टी लिए सीधा बूंदी की राजकुमारी हाड़ी को ब्याहने चला गया और उसके साथ फेरे लेकर आगरा के लिए रवाना हो गया | हाड़ी ने भी कल्ला के हाव-भाव देख और
आगरा किले में हुई घटना के बारे में सुनकर अनुमान लगा लिया था कि -उसका सुहाग ज्यादा दिन तक रहने वाला नहीं | सो उसने आगरा जाते
कल्ला को संदेश भिजवाया - " हे प्राणनाथ ! आज तो बिना मिले ही छोड़ कर आगरा पधार रहे है पर
स्वर्ग में साथ चलने का सौभाग्य
जरुर देना |" "अवश्य एसा ही होगा |" जबाब दे
कल्ला आगरा आ गया | उसके हाव-भाव देखकर म्लेच्छ अकबर बादशाह अकबर ने उसे काबुल के उपद्रव दबाने के लिए लाहौर भेज दिया ,लाहौर में उसे
केसरिया वस्त्र पहने देख एक मुग़ल सेनापति ने व्यंग्य से कहा - " कल्ला जी अब ये केसरिया वस्त्र धारण कर क्यों स्वांग बनाये हुए हो ?"
"राजपूत एक बार केसरिया धारण कर लेता है तो उसे बिना निर्णय के उतारता नहीं| यदि तुम में हिम्मत है तो उतरवा दो |" कल्ला ने कड़क कर
कहा | इसी बात पर विवाद हो गया ।और विवाद होने पर कल्ला ने उस मुग़ल सेनापति का एक झटके में सिर धड़ से अलग कर दिया और वहां से बागी हो सीधा बीकानेर आ पहुंचा | उस समय बादशाह के दरबार में रहने वाले प्रसिद्ध कवि बीकानेर के राजकुमार पृथ्वीराज राठौड़ जो इतिहास में पीथल के नाम से
प्रसिद्ध है बीकानेर आये हुए थे,कल्ला ने उनसे कहा -
"काकाजी मारवाड़ जा रहा हूँ वहां चंद्रसेन जी राठौड़ की अकबर के विरुद्ध सहायतार्थ युद्ध करूँगा |
आप मेरे मरसिया (मृत्यु गीत) बनाकर सुना दीजिये |" पृथ्वीराज जी ने कहा -"मरसिया तो मरने के उपरांत बनाये जाते है तुम तो अभी जिन्दा हो तुम्हारे मरसिया कैसे
बनाये जा सकते है।
"काकाजी आप मेरे मरसिया में जैसे युद्ध का वर्णन करेंगे मैं आपको वचन देता हूँ कि मैं उसी अनुरूप युद्ध में
पराक्रम दिखा कर वीरगति को प्राप्त
होवुंगा |" कल्ला ने दृढ निश्चय से कहा |
हालाँकि पृथ्वीराजजी के आगे ये एक विचित्र स्थिति थी । लेकिन कल्ला जी के जिद के सामने उन्हें मरसिया गीत बना कर गाना पडा और
कल्ला जी वही गीत गुनगुनाते हुए निकल पड़े जब वो मारवाड़ के सिवाने के तरफ जा रहे थे तभी उन्हें
सुचना मिली की अकबर की एक
सेना की टुकड़ी उनके मामा के सिरोही के सुल्तान देवड़ा पर आक्रमण करने जा रही है।
कल्ला जी उस सेना से बिच में ही भीड़ गुए और देखते ही देखते अकबर की उस टुकड़ी को बिच में ही ख़त्म कर दिया या यूँ कहलो चुन चुन
के ख़त्म कर दिया। जब ए बात अकबर को मालूम पड़ी तू उसने कल्ला जी दंडित करने के लिए
मोटा रजा उदयसिंह से कहा जो की जोधपुर के थे। और मोटाराजा उदयसिंह ने अपने दलबल के साथ
जाकर सिवाना पर आक्रमण किया जहाँ कल्ला अद्वितीय वीरता के साथ
लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ | कहते है कि "कल्ला का लड़ते लड़ते सिर कट गया था फिर भी वह मारकाट मचाता रहा आखिर घोड़े पर
सवार उसका धड़ उसकी पत्नी हाड़ी के पास गया,उसकी पत्नी ने जैसे गंगाजल के छींटे उसके धड़ पर डाले उसी वक्त उसका धड़ घोड़े से गिर
गया जिसे लेकर हाड़ी चिता में प्रवेश कर उसके साथ स्वर्ग सिधार गयी |
आज भी राजस्थान में मूंछो की मरोड़
का उदहारण दिया जाता है तो कहा जाता है -
" मूंछों की मरोड़ हो तो कल्ला जी राठौड़ जैसी

Friday, November 27, 2015

हकीम खान सूरी -महाराणा प्रताप

हकीम खान सूरी -
इनका जन्म 1538 ई. में हुआ | ये अफगान बादशाह शेरशाह सूरी के वंशज थे | महाराणा प्रताप का साथ देने के लिए ये बिहार से मेवाड़ आए व अपने 800 से 1000 अफगान सैनिकों के साथ महाराणा के सामने प्रस्तुत हुए | हकीम खान सूरी को महाराणा ने मेवाड़ का सेनापति घोषित किया | हकीम खान हरावल (सेना की सबसे आगे वाली पंक्ति) का नेतृत्व करते थे | ये मेवाड़ के शस्त्रागार (मायरा) के प्रमुख थे | मेवाड़ के सैनिकों के पगड़ी के स्थान पर शिरस्त्राण पहन कर युद्ध लड़ने का श्रेय इन्हें ही जाता है |
1573 ई.
महाराणा प्रताप ने एक ब्राह्मण को भूमि दान की व कुछ समय बाद लखा बारठ को मनसुओं का गाँव प्रदान किया
इसी वर्ष अकबर ने खुद गुजरात विजय के लिए कूच किया और इसी दौरान अकबर ने गुजरात में पहली बार समन्दर देखा | अकबर ने गुजरात विजय की याद में बुलन्द दरवाजा बनवाया |
इसी वर्ष गुजरात में ईडर की राजगद्दी पर राय नारायणदास बैठे | ये महाराणा प्रताप के ससुर थे व इन्होंने महाराणा प्रताप का खूब साथ दिया | इन्होंने भी महाराणा की तरह घास की रोटियाँ खाई थीं |
अबुल फजल लिखता है "ईडर के राय नारायणदास को घास-फूस खाना मंजूर था, पर बादशाही मातहती कुबूल करना नहीं"
1574 ई.
अकबर की बंगाल व बिहार विजय
इसी वर्ष आमेर के राजा भारमल का देहान्त हुआ | भगवानदास आमेर का शासक बना |
इसी वर्ष बीकानेर नरेश राव कल्याणमल का देहान्त हुआ | राजा रायसिंह (महाराणा प्रताप के बहनोई) बीकानेर के शासक बने | इन्होंने अकबर का साथ दिया |
इसी वर्ष अकबर ने मारवाड़ के राव चन्द्रसेन को दण्डित करने के लिए राजा रायसिंह को भेजा, पर रायसिंह को सफलता नहीं मिली |
यूरोप के साथ मुगलों का व्यापार मेवाड़ के भीतर होकर सूरत या किसी और बन्दरगाह से होता था | महाराणा प्रताप और उनके साथी गुजरात मार्ग को आए दिन बन्द कर देते थे व मुगलों की सामग्री लूट लेते, जिससे अकबर का यूरोप के साथ व्यापार ठप्प होने लगा | अकबर ने राजा रायसिंह को गुजरात मार्ग खोलने व लूटमार रोकने के लिए नियुक्त किया | महाराणा प्रताप ने अपने बहनोई से लड़ना ठीक न समझा, पर राजा रायसिंह के जाते ही महाराणा ने फिर गुजरात मार्ग बन्द कर लूटमार शुरु की |
(हल्दीघाटी युद्ध का ये एक महत्वपूर्ण कारण था)
1575 ई.
इसी वर्ष अकबर ने चित्तौड़ को अजमेर सूबे का हिस्सा बनाया | अकबर ने महाराणा के खिलाफ अपनी जंग को धर्म से जोड़ते हुए मेवाड़ के रायला, बदनोर, शाहपुरा, अरनेता, कटड़ी, कान्या आदि इलाकों को सूफी सन्त मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह (अजमेर) के हिस्से में दे दिये |
इसी वर्ष अकबर ने महाराणा प्रताप पर बादशाही मातहती कुबूल करने का दबाव बढ़ाने के लिए फिर से जजिया कर लागू कर दिया |
(अकबर ने जजिया कर लगाने के लिए ही मेवाड़ के इलाके अजमेर के हिस्से में दिये थे)....(हालांकि कुछ समय बाद उसने जजिया कर हटा दिया)
इसी वर्ष अकबर ने महाराणा प्रताप व राव चन्द्रसेन की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए सैयद हाशिम व जलाल खान कोरची को भेजा |
मारवाड़ के राव चन्द्रसेन, जिन्हें मारवाड़ का राणा प्रताप, प्रताप का अग्रगामी, भूला बिसरा राजा भी कहा जाता है, उन्होंने जलाल खान कोरची की हत्या कर दी |

Wednesday, November 18, 2015

तुर्क-मुगल-अफगान हमलावरो को खदेड़ने वाले गुजरात के वीर राजपूत -Rajput -mughal-turk wars

तुर्क-मुगल-अफगान हमलावरो को खदेड़ने वाले गुजरात के वीर राजपूत - पार्ट 2 🔸
 ठाकोर रणमलजी जाडेजा (खीरसरा) - जूनागढ़ के नवाब ने खीरसरा पर दो बार हमला किया लेकिन रणमलजी ने उसे हरा दिया, युद्ध की जीत की याद मे जूनागढ की दो तोपे खीरसरा के गढ़ मे मौजूद हैँ ||
 राणा वाघोजी झाला (कुवा) - मुस्लिम सुल्तान के खिलाफ बगावत करी, सुल्तान ने खलिल खाँ को भेजा लेकिन वाघोजी ने उसे मार भगाया, तब सुल्तान खुद बडी सेना लेकर आया, वाघोजी रण मे वीरगति को प्राप्त हुए और उनकी रानीयां सती हुई ||
 राणा श्री विकमातजी || जेठवा (छाया) - खीमोजी के पुत्र विकमातजी द्वितीय ने पोरबंदर को मुगलो से जीत लिया। वहां पर गढ का निर्माण कराया। तब से आज तक पोरबंदर जेठवाओ की गद्दी रही है ||
 राव रणमल राठोर (ईडर) - जफर खाँ ने ईडर को जीतने के लिये हमला किया लेकिन राव रणमल ने उसे हरा दिया. श्रीधर व्यासने राव रणमल के युद्ध का वर्णन 'रणमल छंद' मे किया है ||
 तेजमलजी, सारंगजी, वेजरोजी सोलंकी (कालरी) - सुल्तान अहमदशाह ने कालरी पर आक्रमण किया, काफी दिनो तक घेराबंदी चली, खाद्यसामग्री खत्म होने पर सोलंकीओ ने शाका किया, सुल्तान की सेना के मोघल अली खान समेत 42 बडे सरदार, 1300 सैनिक और 17 हाथी मारे गये। तेजमलजी, सारंगजी और वेजरोजी वीरगति को प्राप्त हुए ||
 ठाकुर सरतानजी वाला (ढांक) - तातरखां घोरी ने ढांक पर हमला किया, सरतानजी ने सामना किया पर संख्या कम होने की वजह से समाधान कर ढांक तातर खां को सोंप ढांक के पीछे पर्वतो मे चले गये, बाद मे चारण आई नागबाई के आशिर्वाद से अपने 500 साथियो के साथ ढांक पर हमला किया और तातर खां और उसकी सेना को भगा दिया, मुस्लिमो की सेना के नगाडे आज भी उस युद्ध की याद दिलाते ढांक दरबारगढ मे मोजूद है ||
 ठाकोर वखतसिंहजी गोहिल (भावनगर) - भावनगर के पास ही तलाजा पर नूरूद्दीन का अधिकार था, ठाकोर वखतसिंहजी ने तलाजा पर आक्रमण किया। नूरुद्दीन की सेना के पास बंदूके थी लेकिन राजपूतो की तलवार के सामने टिक ना सकी। वखतसिंहजी ने खुद अपने हाथो नुरुदीन को मार तलाजा पर कब्जा किया ||
 रणमलजी जाडेजा (राजकोट) - राजकोट ठाकोर महेरामनजी को मार कर मासूमखान ने राजकोट को 'मासूमाबाद' बनाया. महेरामनजी के बडे पुत्र रणमलजी और उनके 6 भाईओने 12 वर्षो बाद मासूम खान को मार राजकोट और सरधार जीत लिया, अपने 6 भाईओ को 6-6 गांव की जागीर सोंप खुद राजकोट गद्दी पर बैठे ||
 जेसाजी और वेजाजी सरवैया (अमरेली) - जुनागढ के बादशाह ने जब इनकी जागीरे हडप ली तब बागी बनकर ये बादशाह के गांव और खजाने को लूटते रहे लेकिन कभी गरीब प्रजा को परेशान नही किया | बगावत से थककर बादशाह ने इनसे समझौता कर लिया और जागीर वापिस दे दी ||
10  रा' मांडलिक (जूनागढ) - महमूद बेगडा ने जुनागढ पर आक्रमण कर जीतना चाहा पर कई महिनो तक उपरकोट को जीत नही सका। इससे चिढ़कर जुनागढ के गांवो को लूटने लगा और प्रजा का कत्लेआम करने लगा, तब रा' मांडलिक और उनकी राजपूती सेना ने शाका कर बेगडा की सेना पर हमला कर दिया। संख्या कम होने की वजह से रा' मांडलिक ईडर की ओर सहायता प्राप्त करने निकल गये, बेगडा ने वहा उनका पीछा किया, रा' मांडलिक और उनके साथी बहादुरी से लडते हुए वीरगति को प्राप्त हुए ||
11  कनकदास चौहान (चांपानेर) - गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर शाह ने चांपानेर पर हमला कर उस पर मुस्लिम सल्तनत स्थापित करने की सोची लेकिन चौहानो की तलवारो ने उसको ऐसा स्वाद चखाया की हार कर लौटते समय ही मुजफ्फर शाह की मृत्यु हो गई ||
12  विजयदास वाजा (सोमनाथ) - सुल्तान मुजफ्फरशाह ने सोमनाथ को लुंटने के लिये आक्रमण किया लेकिन विजयदास वाजा ने उसका सामना करते हुए उसे वापिस लौटने को मजबूर कर दिया, दो साल बाद सुल्तान बडी सेना लेकर आया, विजयदास ने बडी वीरता से उसका सामना कर वीरगति प्राप्त की ||
👆👆👆👆 ये तो सिर्फ गिने चुने नाम है, ऐसे वीरो के निशान आपको यहां हर कदम, हर गांव मिल जायेगे.