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Sunday, November 4, 2018

The Peshva kingdom of India


17वी से 18वी सती तक चित्पावन ब्राह्मणों की शौर्यपूर्ण पराक्रम एवं कूटनीतिज्ञता के बल पर संपूर्ण अटक , कटक से लेकर अफ़ग़ान , सिंध , रावी , बंगाल की खाड़ी तक पेशवाओं ने एकछत्र हिन्दू स्वराज्य की स्थापना किया पेशवा अर्थात प्रधानमंत्री क्षत्रिय राजा महाराजों ने प्रधानमंत्री के स्थान पर सदैव चित्पावन ब्राह्मण को नियुक्त किया क्योंकि प्रधानमंत्री (पेशवा) सबसे महत्वपूर्ण पद होता था जिसमे केवल चित्पावन ब्राह्मण को नियुक्त किया जाता था क्योंकि इस पद की विशेषता थी शास्त्र एवं शस्त्र दोनों से शत्रु एवं मित्र को उत्तर देना पहले के समय में भी इस पद पर ब्राह्मण को ही नियुक्त किया जाता था (अयाचक एवं याचक दोनों को) । क्षत्रिय और चित्पावन ब्राह्मण की एकत्रीकरण से तुर्क ,मुग़ल , निज़ाम, नवाब सबके पसीने छूट गए थे तभी तो क्षत्रिय राजा छत्रपति महाराजा शिवाजी के साम्राज्य का पेशवा श्रीमंत मोरोपंत त्र्यम्बंक पिंगले जी ने संपूर्ण दक्कन से लेकर सूरत तक केसरिया पताका फैराया था । शिवाजी महाराज के बाद उनके वंशज छत्रपति शाहूजी महाराज के शासन काल तक पेशवाओं ने संपूर्ण धरा को भगवामयी कर दिए थे एवं हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना कर चुके थे । क्षत्रिय राजा सर्वोच्च पद सलाहकार के पद पर याचक ब्राह्मण को एवं प्रधानमंत्री के पद पर चित्पावन ब्राह्मण को नियुक्त करते थे ।
मोरोपन्त त्रयम्बक पिंगले (1620 – 1683), मराठा साम्राज्य के प्रथम पेशवा थे। उन्हें 'मोरोपन्त पेशवा' भी कहते हैं। वे छत्रपति शिवाजी के अष्टप्रधानों में से एक थे।
प्रारंभिक जीवन
मोरोपन्त त्रयम्बक पिंगले जी का जन्म 1620 निमगांव में देशस्थ ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
पेशवा मोरोपंत जी ने छत्रपति शिवाजी महाराज के शासनकाल में राजस्व प्रणाली की शुरुआत की, और छत्रपति शिवाजी महाराज पेशवा मोरोपंत की कुशल रणनीतिज्ञता से प्रशन्न होकर उन्हें रणनीति विशेषज्ञ एवं रक्षा सलाहकार के पद पर भी पेशवा मोरोपंत जी को नियुक्त कर दिया । पेशवा मोरोपंत उनके अष्ट प्रधान में से सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं महाराज के निकटवर्ती थे पेशवा मोरोपंत जी महाराज छत्रपति शिवाजी ने उनके संरक्षण में किला , मंदिर एवं मठों का निर्माण, मरम्मत एवं देखरेख का दायित्व सौंप दिए थे इनसबके उपरांत संसाधन योजना बनाने का दायित्व भी पेशवा मोरोपंत जी के उपर था ।
मोरोपंत जी एक योद्धा एवं अभियंता के रूप में- पेशवा ने किला निर्माण कार्य एवं रणभूमि में योद्धाओं की भांति युद्ध करने जैसी अतिमहत्वपूर्ण भूमिका निभाई,
यह कहना कतई गलत नहीं होगा कि पेशवा मोरोपंत जी एक कुशल वास्तुशिल्प अभियन्ता थे और इस बात का पता हमें इन संदर्भों से प्राप्त होता है कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने प्रतापगढ़ के निर्माण और प्रशासनिक कार्य की ज़िम्मेदारी पेशवा मोरोपंत को दिया था एवं छत्रपति शिवाजी की असमय देहत्याग करने पर मोरोपंत पिंगले नाल जिले में साल्हेर-मुल्हर किलों के विकास कार्य एवं निर्माण कार्य एवं किले का शिल्पकार करने का दायित्व पेशवा मोरोपंत को दिया गया था ,पेशवा मोरोपंत जी किले निर्माणकार्य में एक पर्यवेक्षक के रूप में काम कर रहे थे । अब उनका दूसरा एवं सबसे महत्वपूर्ण स्वरूप जिनकी वजह से वो महाराज छत्रपति के सर्वाधिक प्रिय थे वो है एक योद्धा का स्वरूप वो युद्धकला में दक्षता प्राप्त किये थे पेशवा (अयाचक ब्राह्मण) केवल शास्त्र के नहीं शस्त्र के भी धनी थे ।
मोरोपंत जी द्वारा लड़ा गया प्रमुख युद्ध - पेशवा मोरोपंत जी के नेतृत्व में दो निर्णायक युद्ध लड़ा गया जिसके लिए उनको महाराजा छत्रपति शिवाजी ने उनको सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान पर नियुक्त किया ।त्रयम्बकेश्वर किला विजय अभियान एवं वानी-डिंडोरी का युद्ध सन 1670 ईसवी में लड़े जानेवाली ऐतिहासिक युद्ध था जिसमें मुग़ल सल्तनत की और से दाऊद ख़ाँ , इखलास ख़ाँ , मीर अब्दुल माबूद लड़ रहे थे। मुग़ल सल्तनत के प्रमुख सेनापति की तीन टुकड़ी बनी जिसमें त्रयम्बकेश्वर किले को मुग़ल के अधीनस्थ करने का दायित्व दाऊद ख़ाँ को मिला उसके नेतृत्व में 52,000 सैन्यबल था और दाऊद ख़ाँ के समक्ष थे श्री मोरोपंत पिंगले पेशवा , छत्रपति शिवाजी ने त्रयम्बकेश्वर किले पर हिन्दवी स्वराज्य का ध्वज फहराने का दायित्व पेशवा को दिया था। पेशवा के नेतृत्व में 1200 के संख्या में सैन्यबल था जिन्हें घात लगाकर युद्ध करने की पद्धति एवं मनोवैज्ञानिक युद्ध पद्धत्ति में महारथ हासिल थी ।
पेशवा मोरोपंत पिंगले जी मनोवैज्ञानिक युद्ध कला के जनक - पेशवा मोरोपंत जी का मुख्य हथियार था मनोवैज्ञानिक युद्ध पद्धत्ति इसी युद्ध पद्धत्ति के बल पर उन्होंने दाऊद ख़ाँ को परास्त करके शिवाजी महाराज के हिन्दवी स्वराज्य के साम्राज्य में त्र्यम्बकेश्वर किले को सम्मिलित करने का कर्तव्य निभाया।
पेशवा मोरोपंत पिंगले जी को मनोवैज्ञानिक युद्धकला का जनकपिता माना जाता हैं ।
निष्कर्ष:- सिर्फ इतना ही नहीं बंगाल में प्रतिहार राजपूत राजाओं के साथ संयुक्त मोर्चा बनाकर पेशवा मोरोपंत जी ने बंगाल को अबीसीनिया के अरबी लूटेरों आक्रांताओं से मुक्त करवाया , महाराज सवाई जय सिंह के साथ संयुक्त मोर्चा कर पेशवा बाजी राव ने मुग़ल सल्तनत की साम्राज्य पर आखरी कील ठोका था। यह तो केवल एक झलक है पेशवाओं के वीरगाथा की ऐसे सैकड़ो सफल युद्ध अभियान कर पेशवाओं ने हिन्दू स्वराज्य की स्थापना में एवं धर्म रक्षा में अपना योगदान दिया था।
लेकिन आज के समय के हालात ये हैं कि वर्तमान सरकार के आँखों मे चुभ रहा है ब्राह्मण वर्ण यही नहीं कुछ लोगों ने चित्पावन ब्राह्मण को विदेशी भी बताना शुरू कर दिया है परंतु यह कथन "पेशवा की पेशवाई ना होता तो अटक- कटक से लेकर रावी-सिंध भगवामयी ना होता" उतना ही सत्य है जितना अंधेरे के बाद उजाले का होना । पेशवाओं को विदेशी बताने वाले लोगों और उन्हें लुटेरे की संज्ञा देने वाले कुछ इतिहासविदुरों से एक सवाल है कि पेशवाओं के साथ किसी आक्रमणकारी की व्यक्तिगतरूप से तो शत्रुता नहीं थी फ़िर क्यों पेशवाओं ने निरंतर युद्ध कर भारतवर्ष से आक्रमणकारियों को खदेड़ कर भारतवर्ष पर हिन्दू साम्राज्य का स्थापना किया आखिर किसके लिए खुद के लिए या सम्पूर्ण आर्यवर्त के लिए ???
आज की परिस्थिति ऐसी है कि महाराष्ट्र जो कि पेशवाओं की प्रमुख कर्मभूमि एवं जन्मभूमि रही है वहां कोरेगांव जयंती जैसी शर्मनाक कार्यक्रम का आयोजन करके पेशवाओं के साथ गद्दारी करके हरा के उनकी हार का जश्न मनाया जाता है तब किसी पार्टी का मुंह नहीं खुलता है लेकिन जब सर्वोच्च न्यायालय के एक सही निर्णय के खिलाफ यही तथाकथित शोषित वर्ग जब पब्लिक प्रॉपर्टी को नष्ट करते हुए हल्ला बोलते हैं तब तुरंत वर्तमान सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के खिलाफ दो दो बार पुनर्विचार याचिका दायर कर दिया जाता है, अंत में बस भारत सरकार से यही एक अनुरोध है कि 125 करोड़ भारतीय आपके सन्तानतुल्य है और पिता का कर्तव्य होता है कि सन्तान जब मार्ग से भटके तो उसे सही मार्ग बताये ना कि मार्ग भटकाये और भ्रम पैदा करे क्योंकि वर्तमान भारत सरकार ने न्यायालय के फैसले के खिलाफ जो पुनर्विचार याचिका दायर की है वो आग में घी डालने का कार्य कर रही है और इससे यह भी सिद्ध होता है कि भारत सरकार भी इतिहास शायद बॉलीवुड के उन फिल्मों से सीखते हैं जिसमें मनगढंत कहानी बनाकर ब्राह्मणों और क्षत्रियों को हमेशा विलेन बताया जाता है ।
© COPYRIGHT मनीषा सिंह सूर्यवंशी (इतिहासकार) की कलम से ✍️✍️