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Tuesday, July 5, 2016

Jewel of Pratihar Rajput saved Bharat from Mohammed गुर्जर सम्राट नागभट प्रतिहार

-------गुर्जर सम्राट नागभट प्रतिहार ----

वीर गुर्जर यौद्धा जिसने अरबो को अपने बाजुओं से मथडाला एवं इतना भयाक्रांत कर दिया था की जब गुर्जरेन्द्र नागभट्ट की गुर्जरसेना गुर्जर रणनृत्य करती हुई ,जय भौणा ( गुर्जरो का युद्ध का देवता) व जय गुर्जरेश कहती हुई जोश व वीरता से अरबो से युद्ध के लिए जाए तो अरबी लोग मुल्तान में बने एक शिव मंदिर को नष्ट करने की धमकी देकर अपनी जान बचाते थे और जिससे सैनिक युद्ध क्षेत्र से लौट आते थे। गुर्जरेन्द्र नागभट्ट प्रतिहार वीर साहसी थे जिन्हें इतिहास में नागावलोक व गुर्जरेन्द्र ( गुर्जरो के इन्द्र) के नाम से भी जाना जाता है।

के.एम.पन्निकर ने अपनी पुस्तक "सर्वे ऑफ़ इंडियन हिस्ट्री "में लिखा है -जो शक्ति मोहम्मद साहिब की मृत्यु के सौ साल के अंदर एक तरफ चीन की दिवार तक पंहुच गयी थी ,तथा दूसरी और मिश्र को पराजित करते हुए उतरी अफ्रिका को पार कर के स्पेन को पद दलित करते हुए दक्षिणी फ़्रांस तक पंहुच गयी थी जिस ताकत के पास अनगिनित सेना थी तथा जिसकी सम्पति का कोई अनुमान नही था जिसने रेगिस्तानी प्रदेशों को जीता तथा पहाड़ी व् दुर्लभ प्रांतों को भी फतह किया था। 

इन अरब सेनाओं ने जिन जिन देशों व् साम्राज्यों को विजय किया वंहा कितनी भी सम्पन्न संस्कृति थी उसे समाप्त किया तथा वहां के निवासियों को अपना धर्म छोड़ कर इस्लाम स्वीकार करना पड़ा। ईरान , मिश्र आदि मुल्कों की संस्कृति जो बड़ी प्राचीन व विकसित थी वह इतिहास की वस्तु बन कर रह गयी। अगर अरब हिंदुस्तान को भी विजय कर लेते तो यहां की वैदिक संस्कृति व धर्म भी उन्ही देशों की तरह एक भूतकालीन संस्कृति के रूप में ही शेष रहता।। 

इस सबसे बचाने का भारत में कार्य वीर गुर्जरेन्द्र नागभट्ट व गुर्जरो ने किया प्रतिहार की उपाधि पायी। गुर्जरेन्द्र ने खलीफाओं की महान आंधी को देश में घुसने से रोका और इस प्रकार इस देश की प्राचीन संस्कृति व धर्म को अक्षुण रखा। देश के लिए यह उसकी महान देन है। गुर्जरो में वैसे तो कई महान राजा हुए पर सबसे ज्यादा शक्तिशाली कनिष्क महान,कल्किराज मिहिरकुल हूण,सम्राट तोरमाण हूण , गुर्जर सम्राट खुशनवाज हूण,गुर्जरेन्द्र नागभट्ट प्रथम , गुर्जरेश मिहिरभोज , दहाडता हुआ गुर्जर सम्राट महिपालदेव,सम्राट हुविष्क कसाणा,महाराजा दद्दा चपोतकट, जयभट गुर्जर,वत्सराज रणहस्तिन थे  जिन्होने अपने जीवन मे कभी भी चीनी साम्राज्य,फारस के शहंसाह , मंगोल,तुर्की,रोमन ,मुगल और अरबों को भारत पर पैर जमाने का मौका नहीं दिया । इसीलिए आप सभी मित्रों ने कई प्रसिद्ध ऐतिहासिक किताबो पर भी पढा होगा की गुर्जरो का भारत का प्रतिहार यानी राष्ट्र रक्षक व द्वारपाल व  ईसलाम का सबसे बड़ा दुश्मन बताया गया है।।

ब्रिटिश इतिहासकार कहते थे कि भारत कभी एक  राष्ट्र था ही नहीं वामी इतिहासकार कहते हैं कि भारत राष्ट्रीयता की भावना से एक हुआ ही नहीं धर्म निरपेक्ष इतिहासकार कहते हैं कि हिंदुत्व और इस्लाम में कोई संघर्ष था ही नहीं मुस्लिम कहते है कि इस्लाम के शेरों के सामने निर्वीर्य हिंदू कभी टिके ही नहीं हमें तो यही बताया गया है यही पढाया गया है कि हिंदू सदैव हारते आये हैं .. They are born looser , और आप भी शायद ऐसा ही मानते हों पर क्या ये सच है ?
मानोगे भी क्यों नहीं जब यहाँ के राजा  खुद ही अपनी बेटियाँ पीढीदर पीढी अपने कट्टर दुश्मनो के यहाँ ब्याह के हैं, जिन अत्याचार मुगलो का सिर काटना था उन्हीं की सेनाओ के प्रधान सेनापति हो,सेनाओ में लडते हो, दामाद बनवाकर बारात मंगवाते हो व दामाद जी कहकर खुशामद व गुलामी करते हो वहाँ के लोगो को हारा व हताश ही कहा जायेगा। जहाँ के राजा व उनके सामन्त अंग्रेजो की जय जयकार करते हो व जनता का खून चूसकर कर वसूलते हो वहाँ भारत के स्वर्णिम समय गुर्जर काल यानी गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य के काल को बस चार लाइनो में निपटा देते हैं ।

................ बिलकुल भी नहीं ...............

तो फिर सच क्या है ? क्या हमारे पूर्वजों के भी कुछ कारनामे हैं ? कुछ ऐसे कारनामे जिनपर हम गर्व कर सकें ? जवाब है .हाँ ...ऐसे ढेर सारे कारनामे जिन्होंने इस देश ही नहीं विश्व इतिहास को भी प्रभावित किया और जिनके कारण आज हम हमारी संस्कृति जीवित है और हम अपना सिर ऊंचा करके खडे हो सकते हैं क्या थे वे कारनामे ? कौन थे वे जिन्होंने इन्हें अंजाम दिया और हम उनसे अंजान हैं ??

समय - 730 ई.

मुहम्मद बिन कासिम की पराजय के बाद खलीफा हाशिम के आदेश पर जुनैद इब्न अब्द ने मुहम्मद बिन कासिम के अधूरे काम को पूरा करने का बीडा उठाया बेहद शातिर दिमाग जुनैद समझ गया था कि कश्मीर के महान योद्धा शासक ललितादित्य मुक्तापीड और कन्नौज के यशोवर्मन से वह नहीं जीत सकता , इसीलिये उसने दक्षिण में गुर्जरत्रा (गुजरात, वह भूमि जिसकी रक्षा गुर्जर करते थे व शासक थे।) के रास्ते से राजस्थान और फिर मध्यभारत को जीतकर ( और शायद फिर कन्नौज की ओर) आगे बढने की योजना बनाई और अपनी सेना के दो भाग किये -

1- अल रहमान अल मुर्री के नेतृत्व में गुजरात की ओर
2 - स्वयं जुनैद के नेतृत्व में मालवा की ओर

अरब तूफान की तरह आगे बढे नांदीपुरी में दद्द द्वारा स्थापित प्राचीन राज्य ,राजस्थान में मंडोर का हरिश्चंद्र द्वारा स्थापित प्राचीन राज्य , चित्तौड का मोरी राज्य इस तूफान में उखड गये और यहाँ तक की अरब उज्जैन तक आ पहुँचे और अरबों को लगने लगा कि वे स्पेन ,ईरान और सिंध की कहानी भी यहाँ बस दुहराने ही वाले हैं ..स्थित सचमुच भयावनी हो चुकी थी और तब भारत के गौरव को बचाने के लिये अपने यशस्वी पूर्वजों  कनिष्क महान व मिहिरकुल हूण, श्रीराम व लक्ष्मण के नाम पर गुज्जर यानी गुर्जर अपने सुयोग्य गुर्जर युवक  नागभट्ट प्रथम के नेतृत्व में उठ खडे हुए वे थे ---

-------गुर्जर कैसे बने भारतवर्ष के प्रतिहार ----------

- प्रतिहार सूर्यवंशी ( मिहिर यानी हूणो के वंशज) थे।।
- गुर्जर राष्ट्र रक्षक व प्रतिहार उपाधि से नवाजे गये।।
- गुर्जरो को शत्रु संहारक कहा गया । 

वे भारतीय इतिहास के रंगमंच पर ऐसे समय प्रकट हुए जब भारत अब तक के ज्ञात सबसे भयंकर खतरे का सामना कर रहा था . भारत संस्कृति और धर्म , उसकी ' हिंद ' के रूप में पहचान खतरे में थी अरबों के रूप में " इस्लाम " हिंदुत्व " को निगलने के लिये बेचैन था। गुर्जरेन्द्र  नागभट्ट प्रतिहार के नेतृत्व में दक्षिण के गुर्जर चालुक्य राजा विक्रमादित्य द्वितीय, वल्लभी के गुर्जरराज शिलादित्य मैत्रक और उन्हीं गुर्जर मैत्रक वंश  के गुहिलौत वंश के राणा खुम्माण जिन्हें इतिहास " बप्पा रावल " के नाम से जानता है , के साथ एक संघ बनाया गया संभवतः यशोवर्मन और ललितादित्य भी अपने राष्ट्रीय कर्तव्य से पीछे नहीं हटे और उन्होंने भी इस संघ को सैन्य सहायता भेजी . मुकाबला फिर भी गैरबराबरी का था ----

--- 100000 अरबी योद्धा v/s 40000 गुर्जर सैनिक .

और फिर शुरू हुयी कई युद्धों की श्रंखला जिसे भारत के व विश्व  के  इतिहासकार छुपाते आये हैं  व भारत में मुगलो व तुर्को के आगे झुकने वालो का , अकबर जैसे मुगलो को दामाद बनाने वालो का,हारे हुए छोटे रजवाडे के राजाओ का व हारा हुआ व  छोटे युद्धो का इतिहास पढाकर भारत को नपुंसक का देश व पराजितो का दे श बताकर किरकिरी करवा रखी है, कनिष्क महान जैसे सम्राटो जिन्होंने चीन को हराया, खुशनवाज हूण जैसे परम प्रतापी जिन्होंने फारस के बादशाह फिरोज को तीन बार हराया, मिहिरकुल हूण जैसे सम्राट को जिनका शासन मध्यएशिया तक था व गुर्जर सम्राट मिहिरभोज महान व गुर्जरेन्द्र नागभट प्रतिहार जैसे महान शासको को पढा ने से बचते रहे हैं  बस छोटी मोटी हारो पर कलम घिसते रहे हैं।-

........... "गुर्जरत्रा का युद्ध " .............

गुर्जर सम्राट नागभट्ट प्रतिहार ने 730 ई. में अपनी राजधानी भीनमाल जालौर को बनाकर एक शक्तिशाली नये गुर्जर राज्य की नींव डाली।  गुर्जरसेना ने सम्राट के रूप में नागभट्ट का राज्याभिषेक किया। वह कुशल सेनापति एवं प्रबल देशभक्त थे। गुर्जरेन्द्र नागभट्ट का ही काल वह कुसमय था जब अरब लुटेरों का आक्रमण भारत पर प्रारम्भ हो गया। अरबों ने सिंध प्रांत जीत लिया और फिर मालवा और अन्य राज्यों पर आक्रमण करना प्रारम्भ किया। सिंध पर शासन करने वाला राज्यपाल जुनैद एक खतरनाक अरबी था।उसके पास घोडो और डाकुओं की भारी सेना थी। वह तूफान की तरह सारे पश्चिमी भारत को रौंदता हुआ जालौर की ओर आ रहा था।सभी छोटे - छोटे राज्यों में रहने वाले, व्यक्ति अपना स्थान छोडकर भाग रहे थे। गुर्जर सम्राट नागभट्ट  व भडौच के महाराजा जयभट चपोत्कट ही वे प्रथम योद्धाथे जिन्होने गुर्जरत्रा ( गुर्जरदेश,गुर्जरभूमि, गुर्जरराष्ट्र,गुर्जरधरा, गुर्जरमण्डल) ही नहीं अपने भारत देश को अरबों से मुक्त कराने का बीडा उठाया था।नागभट्ट की गुर्जरसेना छोटी थी, किंतु वह स्वयं जितना साहसी, दिलेर और विवेकशील था, वैसे ही उसकी सेना थी। गुर्जरो का गुर्जर रणनृत्य इन युद्धो में बडा  काम आया इस रणनृत्य के जरिये गुर्जर बडी भयंकर व भयभीत करने वाली आवाजे निकालते थे जिससे शत्रु सेना घबरा उठती थी। गुर्जराधिराज नागभट्ट ने जुनैद के विरूद्ध अपनी मुठ्ठी भर  गुर्जरसेना को खडा कर दिया - पहली ही लडाई में ही जुनैद को करारी शिकस्त झेलनी पडी। 

अरबों के खिलाफ गुर्जरेन्द्र की सफलता अल्पकालिक मात्र न थी, बल्कि उसने अरबों की सेनाओं को बहुत पीछे खदेड दिया था। इस विजय का ऐसा प्रभाव पडा की अनेक भयभीत राजा नागभट्ट से आकर मिल गये। एक वर्ष के बाद ही नागभट्ट गुर्जरेन्द्र ने सिंध पर आक्रमण कर दिया और जुनैद का सिर काट लिया। सारी अरब सेना तितर - बितर होकर भाग खडी हुई, दुश्मनो के हाथ से नागभट्ट ने सैनधक, सुराष्ट्र, उज्जैन, मालवा, भड़ौच आदि राज्यों को मुक्त करा लिया। सन 750 में अरब लोग पुनः एकत्र हो गये। भारत विजय का अभियान छेड दिया। सारी पश्चिमी सीमा अरबो के अत्याचार से त्राहि-त्राहि कर उठी। नागभट्ट आग बबूला होकर युद्ध के लिए आक्रोशित हुआ, उसने तुरंत सीमा की रक्षा के लिए कूच कर दिया। 3000 से ऊपर अरब शत्रुओं को मौत के घाट उतार दिया और देश ने चैन की सांस ली, अपने को नागभट्ट नारायण देव के नाम से अलंकृत किया।

तंदूशे प्रतिहार के तनभृति त्रलोक्यरक्षास्पदे। 
देवो नागभट्ट: पुरातन पुने मुतिवर्षे भूणाद भुतम ।।

मर्तवढ चौहान नागभट्ट का सामंत था वह जैसा वीर था वैसा ही सुयोग्य कवि भी। उसने नागभट्ट प्रशस्ति नामक अच्छे ग्रंथ की रचना की है जो इतिहास और काव्य दोनों है। उसने गुर्जरेन्द्र नागभट्ट को वामन अवतार नाम दिया है। जिन्होने राक्षसों से धरती का उद्धार किया था। चौहान सामंत ने, जुनैद के उत्तराधिकारी तमीम को जिस वीरता से पराजित कर चमोत्कट और भड़ौच से मार भगाया कि नागभट्ट प्रतिहार ने उसे सामंत से भड़ौच का राजा ही बना दिया। सन 760 ई. में गुर्जरेन्द्र का स्वर्गवास हो गया । सन 760 - 775 तक उसके पुत्र कक्कुस्थ और पौत्र देवराज प्रतिहार ने गुर्जर राज्य को संभाला।।

अरब सदैव के लिये सिंधु के उस पार धकेल दिये गये और मात्र टापूनुमा शहर " मनसुरा " तक सीमित होकर रह गये इस तरह ना केवल विश्व को यह बताया गया कि हिंदुस्तान के योद्धा शारीरिक बल में श्रेष्ठ हैं बल्कि यह भी कि उनके हथियार उनकी युद्ध तकनीक और रणनीति विश्व में सर्वश्रेष्ठ है।। 

इस तरह भारत की सीमाओं को सुरक्षित रखते हुए उन्होंने अपना नाम सार्थक किया --

जय सम्राट कनिष्क महान 
जय गुर्जरराज मिहिरकुल हूण 
जय गुर्जरेश मिहिरभोज महान 
जय गुर्जरेन्द्र नागभट प्रतिहार 
जय गुर्जरत्रा,जय हिन्द।।।।।।।।।।।।।।।

Tuesday, October 20, 2015

सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार, mihir bhoj pratihar

सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार का जीवन परिचय ~~
मिहिर भोज परिहार जी का जन्म सम्राट रामभद्र परिहार की महारानी अप्पा देवी के द्वारा सूर्यदेव
की उपासना के प्रतिफल के रूप में हुआ माना जाता है। सम्राट मिहिर भोज के बारे में इतिहास की पुस्तकों के अलावा बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। मिहिर भोज ने 836 ईस्वीं से 885 ईस्वीं तक
49 साल तक राज किया। मिहिर भोज के
साम्राज्य का विस्तार आज के मुलतान से पश्चिम बंगाल तक ओर कश्मीर से कर्नाटक तक था।
सम्राट मिहिर भोज बलवान, न्यायप्रिय और
धर्म रक्षक थे। मिहिर भोज शिव शक्ति के उपासक थे। स्कंध पुराण के प्रभास खंड में भगवान शिव के प्रभास क्षेत्र में स्थित शिवालयों व पीठों का उल्लेख है। प्रतिहार साम्राज्य के काल में सोमनाथ को भारतवर्ष के प्रमुख तीर्थ स्थानों में माना जाता था। प्रभास क्षेत्र की प्रतिष्ठा काशी विश्वनाथ के समान थी। स्कंध पुराण के प्रभास खंड में सम्राट मिहिर भोज के जीवन के बारे में विवरण मिलता है। मिहिर भोज के संबंध में कहा जाता है कि वे सोमनाथ के परम भक्त थे उनका विवाह भी सौराष्ट्र में ही हुआ
था। उन्होंने मलेच्छों से पृथ्वी की रक्षा की। 50
वर्ष तक राज्य करने के पश्चात वे अपने बेटे महेंद्रपाल को राज सिंहासन सौंपकर सन्यासवृति के लिए वन में चले गए थे।सम्राट मिहिर भोज का सिक्का जो की मुद्रा थी उसको सम्राट मिहिर भोज ने 836 ईस्वीं में कन्नौज को देश की राजधानी बनाने पर चलाया था। सम्राट मिहिर भोज महान के सिक्के पर वाराह भगवान जिन्हें कि भगवान विष्णू के अवतार के तौर पर जाना जाता है। वाराह
भगवान ने हिरण्याक्ष राक्षस को मारकर पृथ्वी को पाताल से निकालकर उसकी रक्षा की थी।सम्राट मिहिर भोज का नाम आदिवाराह भी है। ऐसा होने के पीछे दो कारण हैं पहला जिस प्रकार वाराह भगवान ने पृथ्वी की रक्षा की थी और हिरण्याक्ष का वध किया था ठीक उसी प्रकार सम्राट भोज ने
मलेच्छों(मुगलो,अरबों)को मारकर अपनी मातृभूमि की रक्षा की। दूसरा कारण सम्राट का जन्म वाराह जयंती को हुआ था जो कि भादों महीने की शुक्ल पक्ष के द्वितीय दोज को होती है। सनातन धर्म के अनुसार इस दिन चंद्रमा का दर्शन करना बहुत शुभ फलदायक माना जाता है। इस दिन के 2 दिन बाद
महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी का उत्सव प्रारंभ
हो जाता है। जिन स्थानों पर प्रतिहारों, परिहारों, पडिहारों, इंदा, राघव, अन्य शाखाओं को सम्राट भोज के जन्मदिवस का पता है वे इस वाराह जयंती को बड़े धूमधाम से मनाते हैं। जिन भाईयों को इसकी जानकारी नहीं है आप उन लोगों के
इसकी जानकारी दें और सम्राट मिहिर भोज का जन्मदिन बड़े धूमधाम से मनाने की प्रथा चालू करें।
अरब यात्रियों ने किया सम्राट मिहिर भोज का यशोगान अरब यात्री सुलेमान ने अपनी पुस्तक
सिलसिलीउत तुआरीख 851 ईस्वीं में लिखी जब वह भारत भ्रमण पर आया था। सुलेमान सम्राट मिहिर भोज के बारे में लिखता है कि परिहार सम्राट
की बड़ी भारी सेना है। उसके समान किसी राजा के पास उतनी बड़ी सेना नहीं है। सुलेमान ने यह
भी लिखा है कि भारत में सम्राट मिहिर भोज से बड़ा इस्लाम का कोई शत्रू नहीं है। मिहिर भोज के पास ऊंटों, हाथियों और घुडसवारों की सर्वश्रेष्ठ सेना है। इसके राज्य में व्यापार, सोना चांदी के सिक्कों से होता है। यह भी कहा जाता है कि उसके राज्य में सोने और चांदी की खाने
भी हैं।यह राज्य भारतवर्ष का सबसे सुरक्षित क्षेत्र है। इसमें डाकू और चोरों का भय नहीं है। मिहिर भोज राज्य की सीमाएं दक्षिण में राष्ट्रकूटों के राज्य,पूर्व में बंगाल के पाल शासक और पश्चिम में
मुलतान के शासकों की सीमाओं को छूती है। शत्रू
उनकी क्रोध अग्नि में आने के उपरांत ठहर नहीं पाते थे। धर्मात्मा, साहित्यकार व विद्वान उनकी सभा में सम्मान पाते थे। उनके दरबार में राजशेखर
कवि ने कई प्रसिद्ध ग्रंथों की रचना की। कश्मीर
के राज्य कवि कल्हण ने अपनी पुस्तक राज तरंगणी में सम्राट मिहिर भोज का उल्लेख किया है। उनका विशाल साम्राज्य बहुत से राज्य मंडलों आदि में विभक्त था। उन पर अंकुश रखने के लिए
दंडनायक स्वयं सम्राट द्वारा नियुक्त किए जाते
थे। योग्य सामंतों के सुशासन के कारण समस्त साम्राज्य में पूर्ण शांति व्याप्त थी। सामंतों पर सम्राट का दंडनायकों द्वारा पूर्ण नियंत्रण था।
किसी की आज्ञा का उल्लंघन करने व सिर उठाने
की हिम्मत नहीं होती थी। उनके पूर्वज सम्राट नागभट्ट परिहार ने स्थाई सेना संगठित कर उसको नगद वेतन देने की जो प्रथा चलाई वह इस
समय में और भी पक्की हो गई और प्रतिहार परिहार राजपूत साम्राज्य की महान सेना खड़ी हो गई। यह भारतीय इतिहास का पहला उदाहरण है,
जब किसी सेना को नगद वेतन दिया जाता हो।