Showing posts with label k4 missile. Show all posts
Showing posts with label k4 missile. Show all posts

Friday, April 22, 2016

के-4 मिसाइल , आइएनएस अरिहंत पनडुब्बी -दुनिया को चौंकाया भारत ने, उठाया बेहद ताकतवर कदम ! हिल गया चीन

भारत ने परमाणु हथियारों को ले जाने में सक्षम के-4 मिसाइल को अरिहंत पनडुब्बी से लांच कर सफल परीक्षण किया। सबसे खास बात यह है कि के-4 मिसाइल और अरिहंत पनडुब्बी दोनों को स्वदेश में ही विकसित किया गया है। के-4 की रेंज 3,500 किलोमीटर है, साथ ही यह दो हजार किलोग्राम गोला-बारूद अपने साथ ले जाने में सक्षम है। बंगाल की खाड़ी में अज्ञात जगह से मिसाइल को लॉन्च किया गया।


के-4 मिसाइल का नाम पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर रखा गया है, जिसमें के-4 मिसाइल का कोड नेम है। मिसाइल की कामयाब लॉन्चिंग के साथ ही भारत पानी के भीतर मिसाइल दागने की ताकत रखने वाला दुनिया का पांचवां देश बन गया है। इससे पहले ये तकनीक अमेरिका, रूस, फ्रांस और चीन के ही पास थी। मिसाइल के सफल परीक्षण से भारत के परमाणु हथियार कार्यक्रम को और ज्यादा मजबूती मिलेगी। इसके साथ ही भारत ने जमीन, हवा और पानी के भीतर से लंबी दूरी की न्यूक्लियर मिसाइल दागने की क्षमता विकसित कर ली है। के-4 बैलेस्टिक मिसाइल को पानी के भीतर 20 फीट नीचे से भी दागा जा सकता है।




आइएनएस अरिहंत पनडुब्बी को एक बार में चार के-4 मिसाइल से लैस किया जा सकता है।  के-4 मिसाइल को डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन यानी डीआरडीओ ने विकसित किया है। अब डीआरडीओ के सीरीज की तीन और मिसाइलों को विकसित करने पर काम कर रहा है। अगले कुछ साल में सेना, एयरफोर्स और नेवी को के-4 की सेवाएं हासिल हो सकेंगी।


पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल अरुण प्रकाश (सेवानिवृत्त) ने इसे एक बड़ा कदम करार दिया है, लेकिन उनके मुताबिक जल्द ही अरिहंत को 5000 किलोमीटर से ज्यादा रेंज की अंतर प्राद्वीपीय मिसाइल (इंटर बैलेस्टिक मिसाइल) से लैस करने की जरूरत है, ताकि यह पनडुब्बी भारतीय समुद्र के किसी भी हिस्से में अपने लक्ष्य के लिए खतरा साबित हो सके।


अंतर्राष्ट्रीय दबाव की वजह से के-4 के परीक्षण को पिछले दिनों गुप्त रूप से किया गया और रक्षा अनुसंधान व विकास संगठन (डीआरडीओ) ने आधिकारिक रूप से इस बारे में कोई टिप्पणी नहीं की है। फिलहाल यह परीक्षण पूरी तरह कामयाब रहा। दावा किया जा रहा है कि यह मिसाइल सिस्ट‍म बेहद खतरनाक है और दुनिया में अपने किस्म का पहला है।


मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार टेस्ट टू स्ट्रैटेजिक फोर्सेज कमांड और डीआरडीओ के अधिकारियों की देखरेख में यह परीक्षण पिछले दिनों बंगाल की खाड़ी में किया गया। मिसाइल को पानी के 20 मीटर नीचे से दागा गया। लक्ष्य को भेदने से पहले मिसाइल ने 700 किमी की दूरी तय की। यह मिसाइल 3500 किमी दूरी तक के लक्ष्य को भेद सकता है।




मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एक टेस्ट आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम तट से 45 नॉटिकल मील दूर समुद्र में किया गया। टेस्ट के दौरान डमी पेलोड का इस्तेमाल किया गया। विशेषज्ञों के अनुसार के-4 मिसाइल को अभी दो और तीन बार और ट्रायल से गुजरकर विकसित होना है ताकि इसे सेना में शामिल किया जा सके। इससे पहले, सात मार्च को इस मिसाइल का डमी टेस्ट फायर किया गया था।


बीते साल नवंबर में अरिहंत से के-15 मिसाइल के प्रोटोटाइप का भी कामयाब टेस्ट हुआ था। के-15 , के-4 का छोटा वर्जन ही है। बाद में इसका नाम बदलकर B-05 कर दिया गया। यह अब सेना में शामिल किए जाने के लिए तैयार है। डीआरडीओ अब के-5 मिसाइल वि‍कसित कर रहा है, इसकी रेंज 5000 किमी होगी, जिसमें चीन के भीतरी हिस्सों में अपने लक्ष्य को भेदने की क्षमता होगी।


के-4 की ऑपरेशनल रेंज 3500 किमी, लंबाई-12 मीटर, चौड़ाई-1.3 मीटर, वजन-17 टन, ढोए जा सकने वाले आयुध का वजन 2000 किलोग्राम है। रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि के-4 मिसाइल में बूस्टर ग्लारइड फ्लाइट प्रोफाइल्सी का फीचर है। इसकी मदद से यह किसी भी एंटी बैलेस्टिक मिसाइल सिस्टम को चकमा दे सकता है। इसके नैविगेशन सिस्टम हैवस्थाम में सैटलाइट अपडेट की भी सुविधा है, जिसकी वजह से लक्ष्य को सटीकता से भेदना मुमकिन है।


के-4 मिसाइल को खासतौर पर अरिहंत के लिए ही विकसित किया गया है। परमाणु क्षमता वाली अग्नि-3 मिसाइल को इस सबमरीन में फिट होने लायक छोटा नहीं बनाया जा सका था । आईएनएस अरिहंत की खासियत 111 मीटर लंबे आईएनएस अरिहंत में 17 मीटर व्यास वाला ढांचा है। इसमें चार सीधी लांच ट्यूब लगी हुई है। इनमें 12 छोटी K-15 जबकि चार बड़ी K-4 मिसाइलें रखी जा सकती हैं।


आईएनएस पनडुब्बी में 85 मेगावॉट क्षमता वाला न्यूक्लिंयर रीयेक्शन लगा हुआ है। यह पनडुब्बी सतह पर 12 नॉट से 15 नॉट की स्पीड से चल सकती है। पानी के अंदर इसकी स्पी्ड 24 नॉट तक है। इसमें 95 लोग शामिल हो सकते हैं।  फ़िलहाल भारत के लिए सबमरीन के लिए यह परीक्षण बहुत जरूरी हो गया था, क्योंकि चीन और पाकिस्तान लगातार अपने मिसाइल कार्यक्रमों को बढ़ावा दे रहे हैं। चीन के पास बैलेस्टिक मिसाइलों का अम्बार लगा हुआ है, ऐसे में अपनी सुरक्षा के लिए यह जरूरी हो गया था कि भारत समुद्र में भी अपनी ताकत बढ़ाए।


From