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Sunday, December 2, 2018

राजा महेन्द्र प्रताप सिंह-अखंड भारत के प्रथम राष्ट्रपति

आजाद हिंद सरकार के संस्थापक महान स्वतन्त्रता सेनानी राजा महेंद्र प्रताप सिंह(1 दिसम्बर 1886-29 अप्रैल1979) जयंती
राजा महेंद्र प्रताप का जन्म मुरसान के राजा बहादुर घनश्याम सिंह के यहाँ खड्ग सिंह के रूप में हुआ।
बाद में उन्हें #हाथरस के राजा हरिनारायण सिंह ने गोद ले लिया व उनका नाम महेंद्र प्रताप रखा।
उन्होने #निर्बल समाचार पत्र की स्थापना की व भारतीयों में स्वतन्त्रता के प्रति जागरूकता लाने का काम किया।
वे विदेश गए कई देशों से भारत की स्वतंत्रता के लिए सहयोग मांगा और इसके बाद #काबुलअफगानिस्तान में देश की प्रथम #आजाद_हिंद_सरकार की स्थापना की।
वहां आजाद हिंद फौज बनाई और अखंड भारत के प्रथम राष्ट्रपति के मानक पद पर आसीन हुए। लेकिन सु वे वहां कामयाब नहीं हो सके।
अंग्रेजों ने इनके #सिर पर इनमे रख दिया था व इसके बाद उनका राज्य हड़प लिया था।
इसके बाद वे दुनिया भर के देशों में समर्थन के लिए घूमे जापान में उन्होंने एग्जेक्युटिव बोर्ड ऑफ इंडिया की स्थापना की और रास बिहारी बोस उनके उपाध्यक्ष थे।
इस दौरान उन्हें
जापान से मार्को पोलो, जर्मनी ने ऑर्डर ऑफ रेड ईगल की उपाधि दी थी। वे चीन की संसद में भाषण देने वाले पहले भारतीय थे।
वे दलाई लामा से भी मिले थे।
बहुत से देशों में पहुँचे व भारतीयों पर हो रहे अत्याचार के बारे में विश्व को जागृत किया।दुनियाभर में फैले भारतीयों व उनके संगठनों को एक किया व फौज के निर्माण के।लिए प्रोत्साहित किया
उन्होंने ग़दर पार्टी के साथ मिलकर भी आजादी के लिए कार्य किया व फौज तैयार करने के लिए सारी योजनाएं बना ली।
फिर जापान से सब तैयार कर लिया लेकिन ऐन मौके पर जापानी मनमानी करते दिखे और अपमानजनक शर्ते रखने लगे तो राजा साहब ने उन्हें फटकार दिया और कहा कि वे अपने अनुसार कार्य करेंगे वे देश को आजाद कराने के लिए लड़ रहे हैं न कि फिर से गुलाम करने के लिए। इस पर जापानी बिफर पड़े उन्हके नजरबंद कर दिया। उसके बाद राजा साहब की सहमति से रास बिहारी बोस जी अध्यक्ष बने। इसी बोर्ड का नाम योजना के हिसाब से आजाद हिंद फौज रखा गया और दूसरी आजाद हिंद फौज तैयार हुई। इस तरह यह फौज एक दिन में नहीं बनी थी बल्कि राजा साहब के पूरे जीवनकाल का तप थी। उसके कुछ समय बाद आजाद हिंद फौज की बागडोर संभालने के लिए नेताजी को बुलाया गया था।
वे विश्वयुद्ध में अंग्रेजो का साथ देने के विरुद्ध थे और उन्होंने इस पर गांधी जी का विरोध किया।
उन्होंने विश्व मैत्री संघ की स्थापना की,उसी तर्ज पर आज uno बनने की शुरुआत हुई थी।
वे 32 सालों तक देश के लिए अपना परिवार छोड़कर दुनिया भर की खाक छानते रहे।
जब वे वापिस भारत पहुंचे तो #सरदार_पटेल जी की बेटी #मणिकाबेन उन्हें हवाई अड्डे पर लेने पहुंची थी।
1952 में उन्हें #नोबल पुरस्कार के लिए भी नामित किया गया था।
1909 में वृन्दावन में #प्रेम महाविद्यालय की स्थापना की जो तकनीकी शिक्षा के लिए भारत में प्रथम केन्द्र था। मदनमोहन मालवीय इसके उद्धाटन समारोह में उपस्थित रहे। ट्रस्ट का निर्माण हुआ-अपने पांच गाँव, वृन्दावन का राजमहल और चल संपत्ति का दान दिया। राजा साहब #श्रीकृष्ण भक्त थे उन्ही के नाम पर उन्होंने देश का यह प्रथम तकनीकी प्रेम महाविद्दालय खोला था।उन्होंने अपनी आधी सम्पति इस विद्यालय को दान कर दी थी।
बनारस #हिंदू विश्वद्यालय, अलीगढ़ विद्द्यालय, #कायस्थ पाठशाला के लिए जमीन दान में दी। हिन्दू विश्वविद्यालय के बोर्ड के #सदस्य भी रहे।
उनकी दृष्टि विशाल थी। वे जाति, वर्ग, रंग, देश आदि के द्वारा मानवता को विभक्त करना घोर अन्याय, पाप और अत्याचार मानते थे। ब्राह्मण-भंगी को भेद बुद्धि से देखने के पक्ष में नहीं थे।
वृन्दावन में ही एक विशाल फलवाले उद्यान को जो 80 एकड़ में था, 1911 में #आर्य_प्रतिनिधि_सभा उत्तर प्रदेश को दान में दे दिया। जिसमें आर्य समाज गुरुकुल है और राष्ट्रीय विश्वविद्यालय भी है।
मथुरा में किसानों के लिए #बैंक खोला, अपने राज्य के गांवों में प्रारंभिक #पाठशालाएंखुलवाई।
उनकी राष्ट्रवादी सोच के कारण कांग्रेस के नेता उन पर RSS का #एजेंट होने का आरोप लगाते रहते थे।
उन्होंने चुनावों में बड़े बड़े दिग्गजों को धूल चटा दी थी।
उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार होते हुए भी भारत के पूर्व प्रधानमंत्री #अटल बिहारी वाजपेयी जी की जमानत जब्त करवा दी थी।
उन्होंने छुआछूत को कम करने के लिए दलितों के साथ एक राजा होते हुए भी खाना खाया जो उस समय एक असामान्य बात थी।उन्होके #चर्मकार समाज को जाटव की उपाधि दी थी।
उन्होंने अपनी सारी #संपत्ति देश और शिक्षा के लिए दान कर दी थी।
अपनी अफगानिस्तान यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी जी ने भी अपने भाषण में इनको नमन किया था।
ऐसे महान दानवीर स्वतन्त्रता सेनानी राष्ट्रवादी समाज सुधारक राजा महेंद्र प्रताप को उनकी जयंती पर उन्हें कोटि कोटि नमन।

Monday, June 13, 2016

राजा विक्रमादित्य और राजा भोज परमार वंश के दो महान सम्राट

राजा विक्रमादित्य और राजा भोज 

उनके म्यूजियम उनके स्मारक क्यों नहीं है ?
जब हम कहते हैं राजनेता गलत है पर राजनेताओं के अंध भक्त दुहाई देते हैं कि वो बहुत पहले थे ऐसा कहा जाता है,
लेकिन यह गलत है चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य और महाराजा भोज अगर ना होत तो हमारा आज नहीं होता।
मित्रो राजा विक्रमादित्य और राजा भोज की प्रतिमाएँ बनाई जाए।आज देश में ऐसे नेताओं की प्रतिमा है जो कि उस काबिल भी नहीं है।

और राजा महाराजा की बात करे तो महाराणा प्रताप शिवाजी महाराज भी महानतम यौद्धाओं में हैं,उनकी प्रतिमाएँ है,हम ने उनका तो सम्मान कर दिया पर भारतीय इतिहास के दो स्तंभ राजा विक्रमादित्य और राजा भोज जिनके उपर देश टिका हुआ है हम ने उन्हीं को भुला दिया।


======शूरवीर सम्राट विक्रमादित्य=====


अंग्रेज और वामपंथी इतिहासकार उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य को एतिहासिक शासक न मानकर एक मिथक मानते हैं।
जबकि कल्हण की राजतरंगनी,कालिदास,नेपाल की वंशावलिया और अरब लेखक,अलबरूनी उन्हें वास्तविक महापुरुष मानते हैं।विक्रमादित्य के बारे में प्राचीन अरब साहित्य में वर्णन मिलता है।

उनके समय शको ने देश के बड़े भू भाग पर कब्जा जमा लिया था।विक्रम ने शको को भारत से मार भगाया और अपना राज्य अरब देशो तक फैला दिया था। उनके नाम पर विक्रम सम्वत चलाया गया। विक्रमादित्य ईसा मसीह के समकालीन थे.विक्रमादित्य के समय ज्योतिषाचार्य मिहिर, महान कवि कालिदास थे। 
राजा विक्रम उनकी वीरता, उदारता, दया, क्षमा आदि गुणों की अनेक गाथाएं भारतीय साहित्य में भरी पड़ी हैं।

इनके पिता का नाम गन्धर्वसेन था एवं प्रसिद्ध योगी भर्तहरी इनके भाई थे।
विक्रमादित्य के इतिहास को अंग्रेजों ने जान-बूझकर तोड़ा और भ्रमित किया और उसे एक मिथकीय चरित्र बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी, क्योंकि विक्रमादित्य उस काल में महान व्यक्तित्व और शक्ति का प्रतीक थे,जबकि अंग्रेजों को यह सिद्ध करना जरूरी था कि ईसा मसीह के काल में दुनिया अज्ञानता में जी रही थी। दरअसल, विक्रमादित्य का शासन अरब और मिस्र तक फैला था और संपूर्ण धरती के लोग उनके नाम से परिचित थे। विक्रमादित्य अपने ज्ञान, वीरता और उदारशीलता के लिए प्रसिद्ध थे जिनके दरबार में नवरत्न रहते थे। इनमें कालिदास भी थे। कहा जाता है कि विक्रमादित्य बड़े पराक्रमी थे और उन्होंने शकों को परास्त किया था।

यह निर्विवाद सत्य है कि सम्राट विक्रमादित्य भारतीय इतिहास के सर्वश्रेष्ठ शासक थे।

==हिन्दू हृदय सम्राट परमार कुलभूषण मालवा नरेश सम्राट महाराजा भोज ==


महाराजा भोज के जीवन में हिन्दुत्व की तेजस्विता रोम-रोम से प्रकट हुई ,इनके चरित्र और गाथाओं का स्मरण गौरवशाली हिंदुत्व का दर्शन कराता है। 
महाराजा भोज इतिहास प्रसिद्ध मुंजराज के भतीजे व सिंधुराज के पुत्र थे । उनका जन्म सन् 980 में महाराजा विक्रमादित्य की नगरी उज्जैनी में हुआ।राजा भोज चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य के वंशज थे।पन्द्रह वर्ष की छोटी आयु में उनका राज्य अभिषेक मालवा के राजसिंहासन पर हुआ।राजा भोज ने ग्यारहवीं शताब्दी में धारानगरी (धार) को ही नही अपितु समस्त मालवा और भारतवर्ष को अपने जन्म और कर्म से गौरवान्वित किया।

महाप्रतापी राजा भोज के पराक्रम के कारण उनके शासन काल में भारत पर साम्राज्य स्थापित करने का दुस्साहस कोई नहीं कर सका.राजा भोज ने भोपाल से 25 किलोमीटर दूर भोजपूर शहर में विश्व के सबसे बडे शिवलिंग का निर्माण कराया जो आज भोजेश्रवर के नाम से प्रसिद्ध है जिसकी उंचाई 22 फीट है । राजा भोज ने छोटे बडे लाखों मंदिर बनवाये , उन्होंने हजारों तालाब बनवाये , सैकडों नगर बसाये,कई दुर्ग बनवाये और अनेकों विद्यालय बनवाये।
राजा भोज ने ही भारत को नई पहचान दिलवाई उन्होंने ही इस देश का नाम हिंदू धर्म के नाम पर हिंदुस्तान रखा।राजा भोज ने कुशल शासक के रुप में जो हिन्दुओं को संगठित कर जो महान कार्य किया उससे राजा भोज के 250 वर्षो के बाद भी मुगल आक्रमणकारियों से हिंदुस्तान की रक्षा होती रही । राजा भोज भारतीय इतिहास के महानायक थे.
राजा भोज भारतीय इतिहास के एकमात्र ऐसे राजा हुए, जो शौर्य एवं पराक्रम के साथ धर्म विज्ञान साहित्य तथा कला के ज्ञाता थे।राजा भोज ने माँ सरस्वती की आराधना व हिन्दू जीवन दर्शन एवं संस्कृत के प्रचार- प्रसार हेतु सन् 1034 में माँ सरस्वती मंदिर भोजशाला का निर्माण करवाया।माँ सरस्वती के अनन्य भक्त राजा भोज को माँ सरस्वती का अनेक बार साक्षातकार हुआ,

माँ सरस्वती की आराधना एवं उनके साधकों की साधना के लिए स्वंय की परिकल्पना एवं वास्तु से विश्व के सर्वश्रेष्ठ मंदिर का निर्माण धार में कराया गया जो आज भोजशाला के नाम से प्रसिद्ध है । उन्होंने भोजपाल (भोपाल) में भारत का सबसे बडा तालाब का निर्माण कराया जो आज भोजताल के नाम से प्रसिद्ध है.
Rajputana Soch राजपूताना सोच और क्षत्रिय इतिहास श्री नीरज राजपुरोहित जी