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Monday, December 24, 2018

हिन्दू ह्रदय सम्राट महाराजा सूरजमल

हिन्दू ह्रदय सम्राट महाराजा सूरजमल


महाराजा सूरजमल एक ऐसे सम्राट थे जिन्हें पूरा हिंदुस्तान एक हिंदुआ सूरज के रूप में जानता है।
उन्होंने मुगलों पठानों अफगानों रुहेलों ब्लुचों आदि सभी मुस्लिमो से लोहा लिया और उन्हें हराया।
उनका साम्राज्य राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली तक फैला हुआ था।और जटवाड़ा कहलाता था।
उन्होंने मंदिरों, गौमाता, सनातन संस्कृति के प्रतीक पीपल के पेड़, महिलाओं व हिन्दू धर्म की जीवनपर्यंत रक्षा की।
उनके राज्य में गौहत्या और पीपल के पेड़ काटने पर प्रतिबंध था और मृत्युदंड का प्रावधान था।
कुछ मुस्लिम शासकों में उनका इतना खौफ था कि उन्होंने अपने क्षेत्र में भी गौहत्या बन्द कर दी थी व गौहत्या करने वालों को फांसी की सजा देनी शुरू कर दी थी व वे इसकी जानकारी उन्हे पत्र लिखकर सौंपते थे।
उनके होते हुए किसी भी महिला पर आंख उठाकर देखने की हिम्मत नहीं होती थी।उन्होंने एक हिन्दू लड़की हरदौल की इज्जत की रक्षा के लिए दिल्ली पर आक्रमण कर दिया था व उन्हें मुगलों से बचाया।
उन्हें हिन्दू एकता करने के लिए जाना जाता है उनका खजांची दलित था, उनका गुरु व सलाहकार ब्राह्मण था व उनकी सेना में सब जातियों के लोग थे।उनकी स्थायी सेना के अतिरिक्त उनके राज्य का हर नागरिक अस्थाई सैनिक था।
उन्होंने कई दूसरे राज्यों को भी जरूरत पड़ने पर सहायता की।उन्होंने मराठा, राजपूत समेत सब हिन्दू राजाओ की सहायता की।
वे बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति के धनी थे।उन्होंने मथुरा भरतपुर गोवर्धन आदि समेत ब्रज क्षेत्र में सैंकड़ो मन्दिर तीर्थ स्थान घाट बनवाये।
उन्होंने अपनी राजधानी भरतपुर का नाम भगवान श्री राम के छोटे भाई भरत के नाम पर रखा। वे श्री कृष्ण भगवान के वंशज थे, बजरंग बली व भगवान लक्ष्मण के बहुत बड़े भक्त थे,और शूरसेन महाराज उनके कुलदेवता है एवं केला देवी माता उनकी कुलदेवी है।
उनके युद्ध का झंडा कपिध्वज था जिस पर हनुमान जी की मूर्ति अंकित थी।उनकी रियासत के केसरिया झंडा हमेशा शान से लहराता रहा।
उन्हें दिल्ली में मुगलो का राज बीलकुल न सुहाता था उन्होंएँ दो बार दिल्ली में भगवा फहराया और मुगलो की ईंट से ईंट बजाकर बहुत बड़े क्षेत्र पर अधिकार कर लिया था।
वे दोनों हाथों से तलवार चलाना जानते थे व उन्होंने छोटे बड़े लगभग 80 युद्ध किये थे जिनमे वे हमेशा विजयी रहे जिसके कारण उन्हें एक अजेय महाराजा के तौर पर जाना जाता है।
उनके बनाये गया भरतपुर का लोहागढ़ किला देश का एकमात्र अजेय किला है जिसे न मुगल जीत पाये और न ही बाद में अंग्रेज।
उनका राज्य बहुत ही विशाल, समृद्ध न्यायप्रिय और खुशहाल था। वे सादगी के प्रतीक थे व सिर्फ विशेष अवसरों पर ही मुकुट और राजशाही पौशाक पहनते थे।उनकी पगड़ी हमेशा मोरपंख से सजी रहती थी।
वो जनता के बीच रहना पसंद करते थे व ज्यादातर अपनी लोकभाषा का ही प्रयोग करते थे।

Friday, June 24, 2016

ललितादित्य मुक्तापीड (राज्यकाल 724-761 ई)कश्मीर के हिन्दू सम्राट

ललितादित्य मुक्तापीड (राज्यकाल 724-761 ई)कश्मीर के कर्कोटा वंश के हिन्दू सम्राट थे। उनके काल में कश्मीर का विस्तार मध्य एशिया और रूस,पीकिंग तक पहुंच गया।


कश्मीर के इतिहास के उज्ज्वल पृष्ठों पर ‘कक्रोटा वंश’ का 245 वर्ष का राज्य स्वर्णिम अक्षरों में वर्णित है।
इस वंश के राजाओं ने अरब हमलावरों को अपनी तलवार की नोक पर कई वर्षों तक रोके रखा था। कक्रोटा की माताएं अपने बच्चों को रामायण और महाभारत की कथाएं सुनाकर राष्ट्रवाद की प्रचंड आग से उद्भासित करती थीं। यज्ञोपवीत धारण के साथ शस्त्र धारण के समारोह भी होते थे, जिनमें माताएं अपने पुत्रों के मस्तक पर खून का तिलक लगाकर मातृभूमि और धर्म की रक्षा की सौगंध दिलाती थीं। अपराजेय राज्य कश्मीर इसी कक्रोटा वंश में चन्द्रापीड़ नामक राजा ने सन् 711 से 719 ई.तक कश्मीर में एक आदर्श एवं शक्तिशाली राज्य की स्थापना की। यह राजा इतना शक्तिशाली था कि चीन का राजा भी इसकी महत्ता को स्वीकार करता था।
इससे कश्मीरियों की दिग्विजयी मनोवृत्ति का परिचय मिलता है। अरब देशों तक जाकर अपनी तलवार के जौहर दिखाने की दृढ़ इच्छा और चीन जैसे देशों के साथ सैन्य संधि जैसी कूटनीतिज्ञता का आभास भी दृष्टिगोचर होता है। उन्होने अरब के मुसलमान आक्रान्ताओं को सफलतापूर्वक दबाया तथा चीन सैनिकों को भी पीछे धकेला।
ललितादित्य मुक्तापीड के साथ चीन के सम्राट का सैनिक संधि के परिणामस्वरूप, चीन से सैनिक टुकड़ियां कश्मीर के राजा चन्द्रापीड़ की सहायतार्थ पहुंची थीं। इसका प्रमाण चीन के एक राज्य वंश ‘ता-आंग’ के सरकारी उल्लेखों में मिलता है।
साहस और पराक्रम की प्रतिमूर्ति सम्राट ललितादित्य मुक्तापीढ़ का नाम कश्मीर के इतिहास में सर्वोच्च स्थान पर है। उसका सैंतीस वर्ष का राज्य उसके सफल सैनिक अभियानों, उसकी सर्वधर्मसमभाव पर आधारित जीवन प्रणाली, उसके अद्भुत कला कौशल और विश्व विजेता बनने की उसकी चाह से पहचाना जाता है। लगातार बिना थके युद्धों में व्यस्त रहना और रणक्षेत्र में अपने अनूठे सैन्य कौशल से विजय प्राप्त करना उसके स्वभाव का साक्षात्कार है।
उनका राज्य पूर्व में बंगाल तक, दक्षिण में कोंकण तक पश्चिम में तुर्किस्तान और उत्तर-पूर्व में चीन और रूस,पीकिंग तक फैला था। उन्होने अनेक भव्य भवनों का निर्माण किया।
ललितादित्य ने दक्षिण की महत्वपूर्ण विजयों के पश्चात अपना ध्यान उत्तर की तरफ लगाया जिससे उनका साम्राज्य काराकोरम पर्वत शृंखला के सूदूरवर्ती कोने तक जा पहुँचा।
साहस और पराक्रम की प्रतिमूर्ति सम्राट ललितादित्य मुक्तापीड का नाम कश्मीर के इतिहास में सर्वोच्च स्थान पर है। उसका सैंतीस वर्ष का राज्य उसके सफल सैनिक अभियानों, उसके अद्भुत कला-कौशल-प्रेम और विश्व विजेता बनने की उसकी चाह से पहचाना जाता है। लगातार बिना थके युद्धों में व्यस्त रहना और रणक्षेत्र में अपने अनूठे सैन्य कौशल से विजय प्राप्त करना उसके स्वभाव का साक्षात्कार है। ललितादित्य ने रूस,पीकिंग को भी जीता और 12 वर्ष के पश्चात् कश्मीर लौटा।
कश्मीर उस समय सबसे शक्तिशाली राज्य था। उत्तर में तिब्बत से लेकर द्वारिका और उड़ीसा के सागर तट और दक्षिण तक, पूर्व में बंगाल, पश्चिम में विदिशा और मध्य एशिया तक कश्मीर का राज्य फैला हुआ था जिसकी राजधानी प्रकरसेन नगर थी। ललितादित्य की सेना की पदचाप अरण्यक (ईरान) और रूस,पीकिंग तक पहुंच गई थी ।
–जय श्री राम
-वंदे मातरम
-भारत माता की जय

Friday, October 30, 2015

हिन्दू समाज अपने इतिहास के प्रति ही नकारात्मक

हिन्दू समाज अपने इतिहास के प्रति ही नकारात्मक
हो गया है। जिस को देखो वो 800 साल या 1300 साल
की गुलामी की बात करता है।
लोग अपने इतिहास से इतने अनभिज्ञ है की भले
ही उनके पूर्वज गुलाम न रहे हो लेकिन वो खुद
मानसिक रूप से गुलाम हो गए है। ये मानसिक
गुलामी 800 साल या 1300 साल
नही बल्कि 60 साल
पुरानी ही हैँ।
भारत अगर 800 या 1300 साल ग़ुलाम रहता तो आज देश में
हिन्दुओ का नामो निशान ना होता। लेकिन दुर्भाग्य है
की औपनिवेशिक और वामपंथी इतिहास पढ़
पढ़ के हमारी मानसिकता अपने
ही पूर्वजो के गौरवशाली संघर्ष को अपमानित
करने की हो गई हैँ।
दुनिया की किसी और सभ्यता ने इस्लाम
का इतनी सफलतापूर्वक
सामना नही किया जैसा हमने किया है।
भारत में इस्लाम के आगमन के 1100 वर्ष के बाद
भी 1800ई में भारतीय उपमहाद्विप में
मुसलमानों की संख्या 15% से भी कम
थी, बटवारे के समय यह 25% तक पहुँच गई
थी जो आज 40% से ऊपर है। साफ़ है भारत में
मुस्लिम जनसँख्या के बढ़ने का कारण धर्म परिवर्तन से
ज्यादा उनकी जन्म दर है। बहरहाल, हमें
हमेशा 800 साल या 1300
की ग़ुलामी का पाठ जो अँगरेज़ हमे पढ़ा गये,
हम उसे ही पढ़े जा रहे है और इसमें वामपंथियो और
AMU वालोँ ने ये और जोड़ दिया की भारत में इस्लाम के
आगमन से ही आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक
क्रांति हुई, उससे पहले भारत में घोर अंधकार युग था।
हमारी पाठ्य पुस्तकों में
7वीं शताब्दी में सिंध पर अरबो का आक्रमण
और हिंदुओं की हार पढ़ाया जाता है,फिर
सीधे 12वीं शताब्दी में
तुर्को की जीत। बीच में ये जरूर
बता दिया जाता है की इस काल में बहुत सारे राजपूत
राज्य थे जो आपस में लड़ते रहते थे। लेकिन ये
नहीँ बताया जाता की स्पेन तक विजय करने
वाले अरब 7वीं शताब्दी में सिंध में आकर
आगे क्यों नही बढ़ पाए? सिंध में पहली बार
मुसलमानों के आक्रमण के बाद उन्हें 500 साल क्यों लग गए
दिल्ली तक पहुँचने में? अनगिनत बार
राजपूतों द्वारा अरबो और तुर्को की पराजय के बारे में
नही बताया जाता। हां महमूद ग़जनी के
आक्रमणों की चर्चा जरूर होती है लेकिन
उनकी नही जिसमे उसकी हार
हो।
फिर 1204 से 1526 के युग को भारत में सल्तनत युग बता कर
पढ़ाया जाता है जबकि इस काल में इस सल्तनत का वास्तविक शाशन
दिल्ली से 100 कोस तक ही था और इस
100 कोस की सल्तनत का इतिहास
ही भारत का इतिहास बन जाता है। इस दौरान अनेक छोटे
छोटे राज्य स्थापित हुए। लेकिन उनके बारे में बहुत कम
बताया जाता है। उस काल में उत्तर भारत में हिंदुओं का सबसे
बड़ा राज्य मेवाड़ था। उसके बारे में पहला उल्लेख मिलता है जब
ख़िलजी के हाथो मेवाड़ का विध्वंस होता है, उसके बाद
सीधे 1526 में अचानक से राणा सांगा पैदा हो जाते हैँ,
जो दिल्ली की मुस्लिम
सत्ता को चुनौती दे रहे होते हैं। ये मेवाड़
जिसका विध्वंस हो गया था ये इतना ताकतवर कब हो गया?
मालवा और ग्वालियर में इतने ताकतवर हिन्दू राज्य कब और कैसे बन
गए? मारवाड़ और आमेर का उतथान कब हुआ? कितने अनगिनत
युद्धों में राजपूतो ने मुस्लिम शाशकों को हराया,
13वीं सदी के setback के बाद
14वीं-15वीं सदी में कितने
संघर्षो के बाद उत्तर और दक्षिण भारत में सफलतापूर्वक हिन्दू
राज्य बनाए गए, इनके बारे में
कहीँ नही बताया जाता। हम लोगो को सिर्फ
हमारी हार पढाई जाती है।
ना हमारी उससे ज्यादा मिली हुई
जीत के बारे में बताया जाता और ना हमारे सफल संघर्ष के
बारे में।
जागो हिन्दू जागो।

Thursday, October 29, 2015

भारत में मुसलमानो के 800 वर्ष के शासन का झूठ –

भारत में मुसलमानो के 800 वर्ष के शासन का झूठ –
क्या भारत में मुसलमानो ने 800 वर्षो तक शासन किया है। सुनने में यही आता है पर न कभी कोई आत्ममंथन करता है और न इतिहास का सही अवलोकन।
प्रारम्भ करते है मुहम्मद बिन कासिम से।

भारत पर पहला आक्रमण मुहम्मद बिन ने 711 ई में सिंध पर किया। राजा दाहिर पूरी शक्ति से लड़े और मुसलमानो के धोखे के शिकार होकर वीरगति को प्राप्त हुए।
दूसरा हमला 735 में राजपुताना पर हुआ जब हज्जात ने सेना भेजकर बाप्पा रावल के राज्य पर आक्रमण किया। वीर बाप्पा रावल ने मुसलमानो को न केवल खदेड़ा बल्कि अफगानिस्तान तक मुस्लिम राज्यो को रौंदते हुए अरब की सीमा तक पहुँच गए। ईरान अफगानिस्तान के मुस्लिम सुल्तानों ने उन्हें अपनी पुत्रिया भेंट की और उन्होंने 35 मुस्लिम लड़कियो से विवाह करके सनातन धर्म का डंका पुन बजाया। बाप्पा रावल का इतिहास कही नहीं पढ़ाया जाता यहाँ तक की अधिकतर इतिहासकर उनका नाम भी छुपाते है। गिनती भर हिन्दू होंगे जो उनका नाम जानते है। दूसरे ही युद्ध में भारत से इस्लाम समाप्त हो चूका था। ये था भारत में पहली बार इस्लाम का नाश
अब आगे बढ़ते है गजनवी पर। बाप्पा रावल के आक्रमणों से मुसलमान इतने भयक्रांत हुए की अगले 300 सालो तक वे भारत से दूर रहे। इसके बाद महमूद गजनवी ने 1002 से 1017 तक भारत पर कई आक्रमण किये पर हर बार उसे भारत के हिन्दू राजाओ से कड़ा उत्तर मिला। महमूद गजनवी ने सोमनाथ पर भी कई आक्रमण किये पर 17वे युद्ध में उसे सफलता मिली थी। सोमनाथ के शिवलिंग को उसने तोडा नहीं था बल्कि उसे लूट कर वह काबा ले गया था जिसका रहस्य आपके समक्ष जल्द ही रखता हु। यहाँ से उसे शिवलिंग तो मिल गया जो चुम्बक का बना हुआ था पर खजाना नहीं मिला।
भारतीय राजाओ के निरंतर आक्रमण से वह वापिस गजनी लौट गया और अगले 100 सालो तक कोई भी मुस्लिम आक्रमणकारी भारत पकर आक्रमण न कर सका।
1098 में मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज राज चौहान को 16 युद्द के बाद परास्त किया और अजमेर व् दिल्ली पर उसके गुलाम वंश के शासक जैसे कुतुबुद्दीन इल्तुमिश व् बलबन दिल्ली से आगे न बढ़ सके। उन्हें हिन्दू राजाओ के प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। पश्चिमी द्वारा खुला रहा जहाँ से बाद में ख़िलजी लोधी तुगलक आदि आये
ख़िलजी भारत के उत्तरी भाग से होते हुए बिहार बंगाल पहुँच गए। कूच बिहार व् बंगाल में मुसलमानो का राज्य हो गया पर बिहार व् अवध प्रदेश मुसलमानो से अब भी दूर थे। शेष भारत में केवल गुजरात ही मुसलमानो के अधिकार में था। अन्य भाग स्वतन्त्र थे
1526 में राणा सांगा ने इब्राहिम लोधी के विरुद्ध बाबर को बुलाया। बाबर ने लोधियों की सत्ता तो उखाड़ दी पर वो भारत की सम्पन्नता देख यही रुक गया और राणा सांगा को उसमे युद्ध में हरा दिया। चित्तोड़ तब भी स्वतंत्र रहा पर अब दिल्ली मुगलो के अधिकार में थी।
हुमायूँ दिल्ली पर अधिकार नहीं कर पाया पर उसका बेटा अवश्य दिल्ली से आगरा के भाग पर शासन करने में सफल रहा। तब तक कश्मीर भी मुसलमानो के अधिकार में आ चूका था। अकबर पुरे जीवन महाराणा प्रताप से युद्ध में व्यस्त रहा जो बाप्पा रावल के ही वंशज थे और उदय सिंह के पुत्र थे जिनके पूर्वजो ने 700 सालो तक मुस्लिम आक्रमणकारियो का सफलतापूर्वक सामना किया।
जहाँहुर व् शाहजहाँ भी राजपूतो से युद्धों में व्यस्त रहे व् भारत के बाकी भाग पर राज्य न कर पाये। दक्षिण में बीजापुर में तब तक इस्लाम शासन स्थापित हो चुका था। औरंगजेब के समय में मराठा शक्ति का उदय हुआ और शिवाजी महाराज से लेकर पेशवाओ ने मुगलो की जड़े खोद डाली। शिवाजी महाराज द्वारा स्थापित हिंदवी स्वराज्य को बाजीराव पेशवा ने भारत में हिमाचल बंगाल और पुरे दक्षिण में फैलाया। दिल्ली में उन्होंने आक्रमण से पहले गौरी शंकर भगवान् से मन्नत मांगी थी की यदि वे सफल रहे तो चांदनी चौक में वे भव्य मंदिर बनाएंगे जहाँ कभी पीपल के पेड़ के नीचे 5 शिवलिंग रखे थे। बाजीराव ने दिल्ली पर अधिकार किया और गौरी शंकर मंदिर का निर्माण किया जिसका प्रमाण मंदिर के बाहर उनके नाम का लगा हुआ शिलालेख है। बाजीराव पेशवा ने एक शक्तिशाली हिन्दुराष्ट्र की स्थापन की जो 1830 तक अंग्रेजो के आने तक स्थापित रहा। मुगल सुल्तान मराठाओ को चौथ व् कर देते रहे और केवल लालकिले तक सिमित रह गए। और वे तब तक शक्तिहीन रहे जब तक अंग्रेज भारत में नहीं आ गए। 1760 के बाद भारत में मुस्लिम जनसँख्या में जबरदस्त गिरावट हुई जो 1800 तक मात्र 7 प्रतिशत तक पहुँच गयी थी। अंग्रेजो के आने के बाद मुसल्मानो को संजीवनी मिली और पुन इस्लाम को खड़ा किया गया ताकि भारत में सनातन धर्म को नष्ट किया जा सके इसलिए अंग्रेजो ने 50 साल से अधिक समय से पहले ही मुसलमानो के सहारे भारत विभाजन का षड्यंत्र रच लिया था। मुसलमानो के हिन्दुविरोधी रवैये व् उनके धार्मिक जूनून को अंग्रेजो ने सही से प्रयोग किया।
असल में पूरी दुनिया में मुस्लिम कौम सबसे मुर्ख कौम है जिसे कभी ईसाइयो ने कभी यहूदियो ने कभी अंग्रेजो ने अपने लाभ के लिए प्रयोग किया। आज उन्ही मुसलमानो को पाकिस्तान में हमारी एजेंसीज अपने लाभ के लियर प्रयोग करती है जिस पर अधिक जानने के लिए अगली पोस्ट की प्रतीक्षा करे।
ये झूठ इतिहास क्यों पढ़ाया गया।
असल में हिन्दुओ पर 1200 सालो के निरंतर आक्रमण के बाद भी जब भारत पर इस्लामिक शासन स्थापित नहीं हुआ और न ही अंग्रेज इस देश को पूरा समाप्त करे तो उन्होंने शिक्षा को अपना अस्त्र बनाया और इतिहास में फेरबदल किये। अब हिन्दुओ की मानसिकता को बसलन है तो उन्हें ये बताना होगा की तुम गुलाम हो। लगातार जब यही भाव हिन्दुओ में होगा तो वे स्वयं को कमजोर और अत्याचारी को शक्तिशाली समझेंगे। अत: भारत के हिन्दुओ को मानसिक गुलाम बनाया गया जिसके लिए झूठे इतिहास का सहारा लिया गया और परिणाम सामने है। लुटेरे और चोरो को आज हम बादशाह सुलतान नामो से पुकारते है उनके नाम पर सड़के बनाते है शहरो के नाम रखते है है और उसका कोई हिन्दू विरोध भी नहीं करता जो बिना गुलाम मानसिकता के संभव नहीं सकता था
इसलिए इतिहास बदलो
मन बदलो
और गुलाम बनाओ
यही आज तक होता आया है
जिसे हमने मित्र माना वही अंत में हमारी पीठ पर वार करता है। इसलिए झूठे इतिहास और झुठर मित्र दोनों से सावधान रहने की आवश्यकता है।
शेयर अवश्य करे।
क्या पता आप अपने किसी मित्र के मन से ये गुलामी का भाव निकाल दे की हम कभी किसी के दास नहीं बल्कि शक्तिशाली थे जिन्होंने 1200 सालो तक विदेशी मुस्लिम लुटेरो और अंग्रेजो का सामना किया और आज भी जीवित बचे हुए है।
अगर आप सहमत है तो इस सचाई “शेयर ” कर के उजागर करे।