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Monday, July 4, 2016

Licensed prostitution in shivapuri in MP India

शिवपुरी। बेशक भारत प्रथाओं और परम्पराओं का देश है। यहां अलग-अलग धर्म और जगहों पर अनेक प्रथाएं प्रचलित हैं। लेकिन क्या आपने किसी ऐसी प्रथा के बारे में सुना है, जिसमें औरतों की खरीद फरोख्त होती हो। वह भी दस रुपये के स्टाम्प पर। अगर नही तो हम आपको बता रहे हैं एक ऐसी ही प्रथा के बारे में जो कुप्रथा बन गयी है। यह प्रथा मध्य प्रदेश के शिवपुरी में प्रचलित है और खूब फल-फूल रही है। यह धड़ीचा प्रथा के नाम से प्रचलित है।


इसी प्रथा की शिकार कल्पना अब तक दो पति बदल चुकी है। और दो साल से दूसरे पति रमेश के साथ रह रही है। इसी तरह रज्जो पहले पति को छोड़कर अब दूसरे पति के साथ है।

दरअसल यहां प्रथा की आड़ में गरीब लड़कियों का सौदा होता है। यह सौदा स्थाई और अस्थाई दोनों तरह का होता है। प्रथा की आड़ में यहां एक तरह से औरतों की मंडी लगती है। इसमें क्षेत्र के पुरुष अपनी पसंदीदा औरत की बोली लगाते हैं। सौदा तय होने के बाद बिकने वाली औरत और खरीदने वाले पुरुष के बीच एक अनुबन्ध किया जाता है। यह अनुबन्ध खरीद की रकम के मुताबिक 10 रुपये से लेकर 100 तक के स्टाम्प पर किया जाता है। घटता लिंगानुपात और गरीबी इस प्रथा के फलने-फूलने का मुख्य कारण है। ।

सामान्य तौर पर अनुबंध छह माह से कुछ वर्ष तक के होते हैं। अनुबंध बीच में छोड़ने का भी रिवाज है। इसे छोड़- छुट्टी कहते हैं। इसमें भी अनुबंधित महिला स्टांप पर शपथपत्र देती है कि वह अब अनुबंधित पति के साथ नहीं रहेगी। ऐसे भी बहुत मामले हैं, जिसमें अनुबंध के माध्यम से एक के बाद एक आठ से दस अलग-अलग धड़ीचा प्रथा के विवाह हुए हैं। अनुबंध बीच में तोड़ने पर कई बार अनुबंधित पति को तय राशि लौटानी पड़ती है। कई बार किसी दूसरे पुरुष से ज्यादा रूपये मिलने पर महिलाएं अनुबंध तोड़ देती हैं। रकम बढ़ने पर पति को सहमति से छोड़ने में महिला को कोई परेशानी नहीं होती है।

यहां हर साल करीब 300 से ज्यादा महिलाओं को दस से 100 रूपये तक के स्टांप पर खरीदा और बेचा जाता है। स्टांप पर शर्त के अनुसार खरीदने वाले व्यक्ति को महिला या उसके परिवार को एक निश्चित रकम अदा करनी पड़ती है। रकम अदा करने व स्टांप पर अनुबंध होने के बाद महिला निश्चित समय के लिए उसकी बहू या व्यक्ति की पत्नी बन जाती है। मोटी रकम पर संबंध स्थायी होते हैं, वरना संबंध समाप्त। अनुबंध समाप्त होने के बाद मायके लौटी महिला का दूसरा सौदा कर दिया जाता है। अनुबंध की राशि समयानुसार 50 हजार से 4 लाख रूपये तक हो सकती है।

धड़ीचा प्रथा: घटता लिंगानुपात बड़ा कारण 

यहां प्रति हजार पुरूषों पर 852 महिलाएं हैं। यही कारण है कि यहां बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा जैसे गरीब राज्यों से महिलाओं को लाकर धड़ीचा के जरिये बेचा जाता है। सामान्य वर्ग से लेकर कोली, धाकड़, लोधी आदिवासी आदि जातियों में यह चलन जारी है। इसमें सबसे ज्यादा परेशानी बच्चों को उठानी पड़ती है। स्टांप पर लिखा जाता है कि महिला स्वेच्छा से उस व्यक्ति के साथ जीवनयापन करना चाहती है। और वह उसकी पत्नी के रूप में अनुबंध की शर्तों के मुताबिक रहेगी। इस बात का भी उल्लेख होता है, इस रिश्ते से जन्मे बच्चों का अनुबंधित पति की संपत्ति पर हक होगा। फिर भी सबसे ज्यादा नुकसान तब होता है, जब मां बाप अनुबंध खत्म कर अलग हो जाते हैं। और बच्चे किसी एक के पास रह जाते हैं। यदि बच्चे महिला के पास रहते हैं तो वह धड़ीचा प्रथा के तहत दोबारा शादी कर बच्चों को अपने साथ ले जाती है, या नही तो अपने नाना नानी के पास छोड़ जाती है।

जानवरों की तरह होती है खरीद-फरोख्त 

गर्ल्स काउंट के प्रमुख रिजवान परवेज बताते हैं कि लिंग अनुपात कम होने से ढेर सारी सामाजिक बुराईंया जन्म लेती हैं। इन्हीं में से एक औरतों को जानवरों की तरह खरीद फरोख्त करना भी है।

सामाजिक कार्यकर्ता और एडवोकेट शैला अग्रवाल का कहना है कि यह अनुबंध पूरी तरह से गैरकानूनी है, कई बार इसे सरकार के समक्ष उठाया गया। लेकिन, महिलाएं या पीड़ित सामने नहीं आती हैं। जिस कारण यह प्रथा चल रही है।