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Thursday, October 1, 2015

Execution of Sambhaji by Aurangzeb

Execution of Sambhaji by Aurangzeb
ShankhNaad's photo.

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Chatrapati Shivaji Maharaj was one of the first persons who presented an open threat to Aurangzeb, harassing the Mughals with his guerilla tactics. He was one of the few who stood up to Aurangzeb's harassment of Hindus, opposed the re introduction of Jiziya tax, and was a thorn in his flesh, in the Deccans,turning the Marathas from a fighting force into a full fledged kingdom.
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When Shivaji passed away in 1680, his son Sambhaji took over as the ruler, and continued his father's relentless struggle against the Mughal empire. Sambhaji giving shelter to Md.Akbar, Aurangzeb's 4th son, during his revolt against his father, only aggravated the hatred he had for the Marathas.
After his defeat at Wai in 1687, Sambhaji took refuge in the Western Ghats along with his friend and advisor Kavi Kalash. However when some of the Marathas betrayed Sambhaji's position, he was captured by the Mughals and bought before Aurangzeb. Sambhaji along with Kavi Kalash was dressed as a buffoon, and made to endure mockery and insults from the Mughal soldiers there.
Sambhaji was given a choice to convert to Islam and spare his life, which he refused. Sambhaji was tortured to death, in the worst possible manner, his eyes and tongue plucked out first,nails removed, then being skinned alive. And finally along with Kavi Kalash, his limbs were hacked one by one, and finally his corpse being thrown. The severed heads of Sambhaji and Kavi Kalash were stuffed with straw and displayed as a warning.
Post independence, our history was written by leftists. They referred to the cruel Aurangzeb as the - Last Great Mughal Emperor, in our school books. Aren't we insulting our great warrior Chatrapati Sambhaji Maharaj and every Hindu by allowing them to do this ?

Tuesday, September 8, 2015

Aurangjeb

हमारे पूर्वजो ने ये अत्याचार भोगा था ये त्रासदी झेली थी मृत्यु तुल्य कष्ट और अनाचार से को सनातन को छोड़कर इस्लाम कबूलने के लिए मजबूर हुए वो ही मुसलमान है इस देश में इस लिए दोनो को संबोधित किया है)
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हमारे पूर्वजो पर हुए अत्याचार....

1- हम कैसे भूल जाएँ... उस कामपिपासु अलाउद्दिन खिलजी को, जिससे अपने सतीत्व को बचाने के लिये रानी पद्ममिनी 14000 महिलाओं के साथ जलते हुए अग्निकुंड में कूद गयी थीं।

2- हम कैसे भूल जाएँ... उस जालिम औरंगजेब को, जिसने संभाजी महाराज को इस्लाम स्वीकारने से मना करने पर तडपा तडपा कर मारा था।

3- हम कैसे भूल जाएँ... उस जिहादी टीपु सुल्तान को, जिसने एक एक दिन में लाखों हिंदुओ का नरसंहार किया था।

4- हम कैसे भूल जाएँ... उस जल्लाद शाहजहाँ को, जिसने 14 बर्ष की एक ब्राह्मण बालिका के साथ अपने महल में जबरन बलात्कार किया।

5- हम कैसे भूल जाएँ... उस बर्बर बाबर को, जिसने मेरे श्री राम प्रभु का मंदिर तोड़ा और लाखों निर्दोष हिंदुओ का कत्ल किया था।

6- हम कैसे भूल जाएँ... उस शैतान सिकन्दर लोदी को, जिसने नगरकोट के ज्वालामुखी मंदिर की माँ दुर्गा की मूर्ति के टुकड़े कर उन्हें कसाइयों को मांस तोलने के लिये दे दिया था।

7- हम कैसे भूल जाएँ... उस धूर्त ख्वाजा मोइन्निद्दिन चिस्ती को, जिसने संयोगीता को इस्लाम कबूल ना करने पर नग्न कर मुगल सैनिको के सामने फेंक दिया था।

8- हम कैसे भूल जाएँ... उस निर्दयी बजीर खान को, जिसने गुरूगोविंद सिंह के दोनों मासूम बच्चों फतेहसिंह और जोरावार को मात्र 7 साल और 5 बर्ष की उम्र में इस्लाम ना मानने पर दीवार में जिन्दा चुनवा दिया था।

9- हम कैसे भूल जाएँ... उस जिहादी बजीर खान को, जिसने बन्दा बैरागी की चमडी को गर्म लोहे की सलाखों से तब तक जलाया जब तक उसकी हड्डियां ना दिखने लगी मगर उस बन्दा वैरागी ने इस्लाम स्वीकार नहीं किया।

10- हम कैसे भूल जाएँ... उस कसाई औरंगजेब को, जिसने पहले संभाजी महाराज की आँखों मे गरम लोहे के सरिये घुसाए, बाद में उन्हीं गरम सरियों से पुरे शरीर की चमडी उधेडी, फिर भी संभाजी ने हिंदू धर्म नही छोड़ा था।

11- हम कैसे भूल जाएँ... उस नापाक अकबर को, जिसने हेमू के 72 वर्षीय स्वाभिमानी बुजुर्ग पिता के इस्लाम कबूल ना करने पर उसके सिर को धड़ से अलग करवा दिया था।

12- हम कैसे भूल जाएँ... उस वहशी दरिंदे औरंगजेब को, जिसने धर्मवीर भाई मतिदास के इस्लाम कबूल न करने पर बीच चौराहे पर आरे से चिरवा दिया था।

हम सनातनियो और आज के मुसलमानो पर हुए अत्याचारो को बताने के लिए शब्द और स्थान कम हैं....!!

इस पोस्ट को पढ़कर मेरी तरह आपका खून भी खौला ही होगा इसलिए आओ मिलकर इस पोस्ट को अपने मित्रों के साथ शेयर ज़रूर करें।
सब समुदायो हिन्दू मुस्लिम जैन सिख बौद्ध सबको बताये..! 

Tuesday, June 10, 2014

वीर शिवाजी जी मुस्लिम नीति एवं औरंगज़ेब की धर्मान्धता- एक तुलनात्मक अध्ययन

वीर शिवाजी जी मुस्लिम नीति एवं औरंगज़ेब की धर्मान्धता- एक तुलनात्मक अध्ययन
महाराष्ट्र के पुणे से सोशल मीडिया में शिवाजी को अपमानित करने की मंशा से उनका चित्र डालना और उसकी प्रतिक्रिया में एक इंजीनियर की हत्या इस समय की सबसे प्रचलित खबर हैं। दोषी कौन हैं और उन्हें क्या दंड मिलना चाहिए यह तो न्यायालय तय करेगा जिसमें हमारी पूर्ण आस्था हैं। परन्तु सत्य यह हैं की जो लोग गलती कर रहे हैं वे शिवाजी की मुस्लिम नीति, उनकी न्यायप्रियता, उनकी निष्पक्षता, उनकी निरपराधी के प्रति संवेदना से परिचित नहीं हैं। सबसे अधिक विडंबना का कारण इतिहास ज्ञान से शुन्य होना हैं। मुस्लिम समाज के कुछ सदस्य शिवाजी की इसलिए विरोध करते हैं क्यूंकि उन्हें यह बताया गया हैं की शिवाजी ने औरंगज़ेब जिसे आलमगीर अर्थात इस्लाम का रखवाला भी कहा जाता था का विरोध किया था। शिवाजी ने औरंगज़ेब की मध्य भारत से पकड़ ढीली कर दी जिसके कारण उनके कई किले और इलाकें उनके हाथ से निकल गए। यह सब घंटनाएँ ३०० वर्ष से भी पहले हुई और इनके कारण लोग अभी भी संघर्ष कर रहे हैं। यह संघर्ष इस्लामिक साम्राज्यवाद की उस मानसिकता का वह पहलु हैं जिसके कारण भारत देश में पैदा होने वाला मुसलमान जिसके पूर्वज हिन्दू थे जिन्हे कभी बलात इस्लाम में दीक्षित किया गया था, आज भारतीय होने से अधिक इस्लामिक सोच, इस्लामिक पहनावे, इस्लामिक खान-पान, अरब की भूमि से न केवल अधिक प्रभावित हैं अपितु उसे आदर्श भी मानता हैं। सत्य इतिहास के गर्भ में हैं की औरंगज़ेब कितना इस्लाम की शिक्षाओं के निकट था और शिवाजी का मुसलमानों के प्रति व्यवहार कैसा था। दोनों की तुलना करने से उत्तर स्पष्ट सिद्ध हो जायेगा।

औरंगजेब द्वारा हिन्दू मंदिरों को तोड़ने के लिए जारी किये गए फरमानों का कच्चाचिट्ठा

१. १३ अक्तूबर,१६६६- औरंगजेब ने मथुरा के केशव राय मंदिर से नक्काशीदार जालियों को जोकि उसके बड़े भाई दारा शिको द्वारा भेंट की गयी थी को तोड़ने का हुक्म यह कहते हुए दिया की किसी भी मुसलमान के लिए एक मंदिर की तरफ देखने तक की मनाही हैंऔर दारा शिको ने जो किया वह एक मुसलमान के लिए नाजायज हैं।
२. ३,१२ सितम्बर १६६७- औरंगजेब के आदेश पर दिल्ली के प्रसिद्द कालकाजी मंदिर को तोड़ दिया गया।
३. ९ अप्रैल १६६९ को मिर्जा राजा जय सिंह अम्बेर की मौत के बाद औरंगजेब के हुक्म से उसके पूरे राज्य में जितने भी हिन्दू मंदिर थे उनको तोड़ने का हुक्म दे दिया गया और किसी भी प्रकार की हिन्दू पूजा पर पाबन्दी लगा दी गयी जिसके बाद केशव देव राय के मंदिर को तोड़ दिया गया और उसके स्थान पर मस्जिद बना दी गयी। मंदिर की मूर्तियों को तोड़ कर आगरा लेकर जाया गया और उन्हें मस्जिद की सीढियों में दफ़न करदिया गया और मथुरा का नाम बदल कर इस्लामाबाद कर दिया गया। इसके बाद औरंगजेब ने गुजरात में सोमनाथ मंदिर का भी विध्वंश कर दिया।
४. ५ दिसम्बर १६७१ औरंगजेब के शरीया को लागु करने के फरमान से गोवर्धन स्थित श्री नाथ जी की मूर्ति को पंडित लोग मेवाड़ राजस्थान के सिहाद गाँव ले गए जहाँ के राणा जी ने उन्हें आश्वासन दिया की औरंगजेब की इस मूर्ति तक पहुँचने से पहले एक लाख वीर राजपूत योद्धाओं को मरना पड़ेगा।
५. २५ मई १६७९ को जोधपुर से लूटकर लाई गयी मूर्तियों के बारे में औरंगजेब ने हुकुम दिया की सोने-चाँदी-हीरे से सज्जित मूर्तियों को जिलालखाना में सुसज्जित कर दिया जाये और बाकि मूर्तियों को जमा मस्जिद की सीढियों में गाड़ दिया जाये।
६ . २३ दिसम्बर १६७९ औरंगजेब के हुक्म से उदयपुर के महाराणा झील के किनारे बनाये गए मंदिरों को तोड़ा गया। महाराणा के महल के सामने बने जगन्नाथ के मंदिर को मुट्ठी भर वीर राजपूत सिपाहियों ने अपनी बहादुरी से बचा लिया।
७ . २२ फरवरी १६८० को औरंगजेब ने चित्तोड़ पर आक्रमण कर महाराणा कुम्भा द्वाराबनाएँ गए ६३ मंदिरों को तोड़ डाला।
८. १ जून १६८१ औरंगजेब ने प्रसिद्द पूरी का जगन्नाथ मंदिर को तोड़ने का हुकुम दिया।
९. १३ अक्टूबर १६८१ को बुरहानपुर में स्थित मंदिर को मस्जिद बनाने का हुकुमऔरंगजेब द्वारा दिया गया।
१०. १३ सितम्बर १६८२ को मथुरा के नन्द माधव मंदिर को तोड़ने का हुकुम औरंगजेब द्वारा दिया गया। इस प्रकार अनेक फरमान औरंगजेब द्वारा हिन्दू मंदिरों को तोड़ने के लिए जारी किये गए।


हिन्दुओं पर औरंगजेब द्वारा अत्याचार करना


२ अप्रैल १६७९ को औरंगजेब द्वारा हिन्दुओं पर जजिया कर लगाया गया जिसका हिन्दुओं ने दिल्ली में बड़े पैमाने पर शांतिपूर्वक विरोध किया परन्तु उसे बेरहमी से कुचल दिया गया। इसके साथ-साथ मुसलमानों को करों में छूट दे दी गयी जिससे हिन्दू अपनी निर्धनता और कर न चूका पाने की दशा में इस्लाम ग्रहण कर ले। १६ अप्रैल १६६७ को औरंगजेब ने दिवाली के अवसर पर आतिशबाजी चलाने से और त्यौहार बनाने से मना कर दिया गया। इसके बाद सभी सरकारी नौकरियों से हिन्दू क्रमचारियों को निकाल कर उनके स्थान पर मुस्लिम क्रमचारियों की भरती का फरमान भी जारी कर दिया गया। हिन्दुओं को शीतला माता, पीर प्रभु आदि के मेलों में इकठ्ठा न होने का हुकुम दिया गया। हिन्दुओं को पालकी, हाथी, घोड़े की सवारी की मनाई कर दी गयी। कोई हिन्दू अगर इस्लाम ग्रहण करता तो उसे कानूनगो बनाया जाता और हिन्दू पुरुष को इस्लाम ग्रहण करनेपर ४ रुपये और हिन्दू स्त्री को २ रुपये मुसलमान बनने के लिए दिए जाते थे। ऐसे न जाने कितने अत्याचार औरंगजेब ने हिन्दू जनता पर किये और आज उसी द्वारा जबरन मुस्लिम बनाये गए लोगों के वंशज उसका गुण गान करते नहीं थकते हैं।

वीर शिवाजी द्वारा औरंगज़ेब को पत्र लिखकर उसके अत्याचारों के प्रति आगाह करना


वीर शिवाजी ने हिन्दुओं की ऐसी दशा को देखकर व्यथित मन से औरंगजेब को उसके अत्याचारों से अवगत करने के लिए एक पत्र लिखा था। इस पत्र को सर जदुनाथ सरकार अपने शब्दों में तार्किक, शांत प्रबोधन एवं राजनितिक सूझ बुझ से बुना गया बताया हैं।
वीर शिवाजी लिखते हैं की सभी जगत के प्राणी ईश्वर की संतान हैं। कोई भी राज्य तब उन्नति करता हैं जब उसके सभी सदस्य सुख शांति एवं सुरक्षा की भावना से वहाँ पर निवास करते हैं। इस्लाम अथवा हिन्दू एक ही सिक्के के दो पहलु हैं। कोई मस्जिद में पूजा करता हैं , कोई मंदिर में पूजा करता हैं पर सभी उस एक ईश्वर की पूजा करते हैं। यहाँ तक की कुरान में भी उसी एक खुदा या ईश्वर के विषय में कहा गया हैं जो केवल मुसलमानों का खुदा नहीं हैं बल्कि सभी का खुदा हैं। मुग़ल राज्य में जजिया एक नाजायज़, अविवेकपूर्ण, अनुपयुक्त अत्याचार हैं जो तभी उचित होता जब राज्य की प्रजा सुरक्षित एवं सुखी होती पर सत्य यह हैं की हिन्दुओं पर जबरदस्ती जजिया के नाम पर भारी कर लगाकर उन्हें गरीब से गरीब बनाया जा रहा हैं। धरती के सबसे अमीर सम्राट के लिए गरीब भिखारियों, साधुओं ,ब्राह्मणों, अकाल पीड़ितो पर कर लगाना अशोभनीय हैं।मच्छर और मक्खियों को मारना कोई बहादुरी का काम नहीं हैं।
अगर औरंगजेब में कोई वीरता हैं तो उदयपुर के राणा और इस पत्र के लेखक से जजिया वसूल कर दिखाए।
अपने अहंकार और धर्मान्धता में चूर औरंगजेब ने शिवाजी के पत्र का कोई उत्तर न दिया पर शिवाजी ने एक ऐसी जन चेतना और अग्नि प्रजलवित कर दी थी जिसको बुझाना आसान नहीं था।
वीर शिवाजी हिन्दू धर्म के लिए उतने ही समर्पित थे जितना औरंगजेब इस्लाम के लिए समर्पित था परन्तु दोनों में एक भारी भेद था।
शिवाजी अपने राज्य में किसी भी धर्म अथवा मत को मानने वालों पर किसी भी का अत्याचार करते थे एवं उन्हें अपने धर्म को मानने में किसी भी प्रकार की कोई मनाही नहीं थी।

इस्लाम के विषय में शिवाजी की निति


१. अफजल खान को मरने के बाद उसके पूना, इन्दापुर, सुपा, बारामती आदि इलाकों पर शिवाजी का राज स्थापित हो गया। एक ओर तो अफजल खान ने धर्मान्धता में तुलजापुर और पंडरपुर के मंदिरों का संहार किया था दूसरी और शिवाजी ने अपने अधिकारीयों को सभी मंदिर के साथ साथ मस्जिदों को भी पहले की ही तरह दान देने की आज्ञा जारी की थी।

२. बहुत कम लोगों को यह ज्ञात हैं की औरंगजेब ने स्वयं शिवाजी को चार बार अपने पत्रों में इस्लाम का संरक्षक बताया था। ये पत्र १४ जुलाई १६५९, २६ अगस्त एवं २८ अगस्त १६६६ एवं ५ मार्च १६६८ को लिखे गए थे। (सन्दर्भ Raj Vlll, 14,15,16 Documents )

३. डॉ फ्रायर ने कल्याण जाकर शिवाजी की धर्म निरपेक्ष नीति की अपने लेखों में प्रशंसा की हैं। Fryer, Vol I, p. 41n

४. ग्रांट डफ़ लिखते हैं की शिवाजी ने अपने जीवन में कभी भी मुस्लिम सुल्तान द्वारा दरगाहों ,मस्जिदों , पीर मज़ारों आदि को दिए जाने वाले दान को नहीं लूटा। सन्दर्भ History of the Mahrattas, p 104

५. डॉ दिल्लों लिखते हैं की वीर शिवाजी को उस काल के सभी राज नीतिज्ञों में सबसे उदार समझा जाता था।सन्दर्भ Eng.Records II,348

६. शिवाजी के सबसे बड़े आलोचकों में से एक खाफी खाँ जिसने शिवाजी की मृत्यु पर यह लिखा था की अच्छा हुआ एक काफ़िर का भार धरती से कम हुआ भी शिवाजी की तारीफ़ करते हुए अपनी पुस्तक के दुसरे भाग के पृष्ठ 110 पर लिखता हैं की शिवाजी का आम नियम था की कोई मनुष्य मस्जिद को हानि न पहुँचायेगा , लड़की को न छेड़े , मुसलमानों के धर्म की हँसी न करे तथा उसको जब कभी कही कुरान हाथ आता तो वह उसको किसी न किसी मुस्लमान को दे देता था। औरतों का अत्यंत आदर करता था और उनको उनके रिश्तेदारों के पास पहुँचा देता था। अगर कोई लड़की हाथ आती तो उसके बाप के पास पहुँचा देता। लूट खसोट में गरीबों और काश्तकारों की रक्षा करता था। ब्राह्मणों और गौ के लिए तो वह एक देवता था। यद्यपि बहुत से मनुष्य उसको लालची बताते हैं परन्तु उसके जीवन के कामों को देखने से विदित हो जाता हैं की वह जुल्म और अन्याय से धन इकठ्ठा करना अत्यंत नीच समझता था।
सन्दर्भ लाला लाजपत राय कृत छत्रपती शिवाजी पृष्ठ 132 ,संस्करण चतुर्थ, संवत 1983

७. शिवाजी जंजिरा पर विजय प्राप्त करने के लिए केलशी के मुस्लिम बाबा याकूत से आशीर्वाद तक मांगने गए थे।
सन्दर्भ – Vakaskar,91 Q , bakshi p.130
८. शिवाजी ने अपनी सेना में अनेक मुस्लिमों को रोजगार दिया था।

१६५० के पश्चात बीजापुर, गोलकोंडा, मुग़लों की रियासत से भागे अनेक मुस्लिम , पठान व फारसी सैनिकों को विभिन्न ओहदों पर शिवाजी द्वारा रखा गया था जिनकी धर्म सम्बन्धी आस्थायों में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं किया जाता था और कई तो अपनी मृत्यु तक शिवाजी की सेना में ही कार्यरत रहे। कभी शिवाजी के विरोधी रहे सिद्दी संबल ने शिवाजी की अधीनता स्वीकार कर की थी और उसके पुत्र सिद्दी मिसरी ने शिवाजी के पुत्र शम्भा जी की सेना में काम किया था। शिवाजी की दो टुकड़ियों के सरदारों का नाम इब्राहीम खान और दौलत खान था जो मुग़लों के साथ शिवाजी के युद्ध में भाग लेते थे। क़ाज़ी हैदर के नाम से शिवाजी के पास एक मुस्लिम था जो की ऊँचे ओहदे पर था। फोंडा के किले पर अधिकार करने के बाद शिवाजी ने उसकी रक्षा की जिम्मेदारी एक मुस्लिम फौजदार को दी थी। बखर्स के अनुसार जब आगरा में शिवाजी को कैद कर लिया गया था तब उनकी सेवा में एक मुस्लिम लड़का भी था जिसे शिवाजी के बच निकलने का पूरा वृतांत मालूम था। शिवाजी के बच निकलने के पश्चात उसे अत्यंत मार मारने के बाद भी स्वामी भक्ति का परिचय देते हुए अपना मुँह कभी नहीं खोला था। शिवाजी के सेना में कार्यरत हर मुस्लिम सिपाही चाहे किसी भी पद पर हो , शिवाजी की न्याय प्रिय एवं सेक्युलर नीति के कारण उनके जीवन भर सहयोगी बने रहे।
सन्दर्भ Shivaji the great -Dr Bal Kishan vol 1 page 177

शिवाजी सर्वदा इस्लामिक विद्वानों और पीरों की इज्ज़त करते थे। उन्हें धन,उपहार आदि देकर सम्मानित करते थे। उनके राज्य में हिन्दू-मुस्लिम के मध्य किसी भी प्रकार का कोई भेद नहीं था। जहाँ हिन्दुओं को मंदिरों में पूजा करने में कोई रोक टोक नहीं थी वहीँ मुसलमानों को मस्जिद में नमाज़ अदा करने से कोई भी नहीं रोकता था। किसी दरगाह, मस्जिद आदि को अगर मरम्मत की आवश्यकता होती तो उसके लिए राज कोष से धन आदि का सहयोग भी शिवाजी द्वारा दिया जाता था। इसीलिए शिवाजी के काल में न केवल हिन्दू अपितु अनेक मुस्लिम राज्यों से मुस्लिम भी शिवाजी के राज्य में आकर बसे थे।

शिवाजी की मुस्लिम नीति और न्याप्रियता की जीती जागती मिसाल हैं। पाठक मुस्लिम परस्त औरंगज़ेब की धर्मांध नीति एवं न्यायप्रिय शिवाजी की धर्म नीति में भेद को भली प्रकार से समझ सकते हैं। फिर भी मुस्लिम समाज के कुछ सदस्य औरंगज़ेब के पैरोकार बने फिरते हैं और शिवाजी की आलोचना करते घूमते हैं। सत्य के दर्शन होने पर सत्य को स्वीकार करने वाला जीवन में प्रगति करता हैं।

डॉ विवेक आर्य