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Tuesday, June 21, 2016

गुरु हरगोविंद सिंह

समस्त हिन्दुओं को गुरू हरगोबिन्द जन्म दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
गुरु हरगोविंद सिंह हिन्दुओं के छठवें गुरु थे। उनका जन्म बडाली (अमृतसर, भारत) में 19 जून, सन् 1595 में हुआ था। वे हिन्दुओं के पांचवे गुरु अर्जुनसिंह के पुत्र थे। उनकी माता का नाम गंगा था।
उन्होंने अपना ज्यादातर समय युद्ध प्रशिक्षण एव युद्ध कला में लगाया तथा बाद में वह कुशल तलवारबाज, कुश्ती व घुड़सवारी में माहिर हो गए। उन्होंने ही हिन्दु सिक्खों को अस्त्र-शस्त्र का प्रशिक्षण लेने के लिए प्रेरित किया व हिन्दुओं को योद्धा चरित्र प्रदान किया। वे स्वयं एक क्रांतिकारी योद्धा थे।

जहाँगीर की मृत्यु (1627) के बाद नए मुग़ल बादशाह शाहजहाँ ने उग्रता से हिन्दुओं पर अत्याचार शुरू किया। मुग़लों की अजेयता को झुठलाते हुए गुरु हरगोविंद के नेतृव्य में हिन्दु सिक्खों ने चार बार शाहजहाँ की सेना को मात दी। इस प्रकार अपने पूर्वजों द्वारा स्थापित आदर्शों में गुरु हरगोबिंद सिंह ने एक और आदर्श जोड़ा, हिन्दु सिक्खों का यह अधिकार और कर्तव्य है कि अगर ज़रुरत हो, तो वे तलवार उठाकर भी अपने धर्म की रक्षा करें। अपनी मृत्यु से ठीक पहले गुरु हरगोविंद ने अपने पोते गुरु हर राय को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।
धीरे-धीरे कटटरपँथी हाकिमों के कारण तनाव बनता चला गया। एक बार श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी श्री अमृतसर साहिब जी से उत्तर-पश्चिम की और के जँगलों में शिकार खेलने के विचार से अपने काफिले के साथ दूर निकल गये। इतफाक से उसी जँगल में लाहौर का सुबेदार शहाजहाँ के साथ अपनी सैनिक टुकड़ी के साथ आया हुआ था।
यह 1629 का वाक्या है। सिक्खों ने देखा कि एक बाज बड़ी बेरहमी से शिकार को मार रहा था, यह शाहजहाँ का बाज था। बाज का शिकार को इस तरह से तकलीक देकर मारना हिन्दु सिक्खो का न भाया। हिन्दु सिक्खों ने अपना बाज छोड़ा, जो शाही बाज को घेर कर ले आया, सिक्खो ने शाही बाज को पकड़ लिया। शाही सैनिक बाज के पीछे-पीछे आये और गुस्से के साथ घमकियाँ देते हुये शाही बाज की माँग की। गुरू जी ने शाही बाज देने से इनकार कर दिया। जब शाही फौज ने जँग की बात कही।
तो, हिन्दु सिक्खों ने कहा: कि हम तुम्हारा बाज क्या हम ताज भी ले लेंगे। तूँ-तूँ मैं-मैं होने लगी, नौबत लड़ाई तक आ पहुँची और शाही फौजों को भागना पड़ा। शाही फौज ने और खासकर लाहौर के राज्यपाल ने सारी बात नमक-मिर्च लगाकर और बढ़ा चढ़ाकर शाहजहाँ को बताई। शाहजहाँ ने हमला करने की आज्ञा भेजी। कुलीटखान जो गर्वनर था, ने अपने फौजदार मुखलिस खान को 7 हजार की फौज के साथ, अमृतसर पर धावा बोलने के लिए भेजा।
15 मई 1629 को शाही फौज श्री अमृतसर साहिब जी आ पहुँची। गुरू जी को इतनी जल्दी हमले की उम्मीद नहीं थी। जब लड़ाई गले तक आ पहुँची, तो गुरू जी ने लोहा लेने की ठान ली। पिप्पली साहिब में रहने वाले हिन्दु सिक्खों के साथ गुरू जी ने दुशमनों पर हमला कर दिया। शाही फौजों के पास काफी जँगी सामान था, पर सिक्खों के पास केवल चड़दी कला और गुरू जी के भरोसे की आस। भाई तोता जी, भाई निराला जी, भाई नन्ता जी, भाई त्रिलोका जी जुझते हुये शहीद हो गये। दूसरी तरफ करीम बेग, जँग बेग ए सलाम खान किले की दीवार गिराने में सफल हो गये।
दीवार गिरी देख गुरू जी ने बीबी वीरो के ससुराल सन्देश भेज दिया कि बारात अमृतसर की ब्जाय सीघी झबाल जाये। (बीबी वीरो जी गुरू जी की पुत्री थी, उनका विवाह था, बारात आनी थी)। रात होने से लड़ाई रूक गयी, तो सिक्खों ने रातों-रात दीवार बना ली। दिन होते ही फिर लड़ाई शुरू हो गयी। सिक्खों की कमान पैंदे खान के पास थी। हिन्दु सिक्ख फौजें लड़ते-लड़ते तरनतारन की तरफ बड़ी। गुरू जी आगे आकर हौंसला बड़ा रहे थे। चब्बे की जूह पहुँच के घमासान युद्व हुआ। मुखलिस खान और गुरू जी आमने-सामने थे। दोनों फौजें पीछे हट गयी।
गुरू जी के पहले वार से मुखलिस खान का घोड़ा गिर गया, तो गुरू जी ने भी अपने घोड़े से उतर गये। फिर तलवार-ढाल की लड़ाई शुरू हो गयी। मुखलिस खान के पहले वार को गुरू जी ने पैंतरा बदल कर बचा लिया और मुस्करा कर दूसरा वार करने के लिए कहा। उसने गुस्से से गुरू जी पर वार किया। गुरू जी ने ढाल पे वार ले के, उस पर उल्टा वार कर दिया। गुरू जी के खण्डे (दोधारी तलवार) का वार इतना शक्तिशाली था कि वह मुखलिस खान की ढाल को चीरकर, उसके सिर में से निकलकर, धड़ के दो फाड़ कर गया।
मुखलिस खान के गिरते ही मुगल फौजें भागने लगी, गुरू जी ने मना किया कि पीछा न करें। गुरू जी ने सारे शहीदों के शरीर एकत्रित करवाकर अन्तिम सँस्कार किया। 13 सिक्ख शहीद हुये जिनके नामः
1. भाई नन्द (नन्दा) जी
2. भाई जैता जी
3. भाई पिराना जी
4. भाई तोता जी
5. भाई त्रिलोका जी
6. भाई माई दास जी
7. भाई पैड़ जी
8. भाई भगतू जी
9. भाई नन्ता (अनन्ता) जी
10. भाई निराला जी
11. भाई तखतू जी
12. भाई मोहन जी
13. भाई गोपाल जी
शहीद सिक्खों की याद में गुरू जी ने गुरूद्वारा श्री सँगराणा साहिब जी बनाया।
शाही सेना की पराजय की सूचना जब सम्राट शाहजहाँ को मिली तो उसे बहुत हीनता अनुभव हुई। उसने तुरन्त इसका पूर्ण दुखान्त ब्यौरा मँगवाया और अपने उपमँत्री वजीर खान को पँजाब भेजा। जैसा कि विदित है कि वजीर खान गुरू घर का श्रद्धालू था और उसने समस्त सत्य तथा तथ्यपूर्ण विवरण सहित बादशाह शाहजहाँ को लिख भेजा कि यह युद्ध गुरू जी पर थोपा गया था। वास्तव में उनकी पुत्री का उस दिन शुभ विवाह था। वह तो लड़ाई के लिए सोच भी नहीं सकते थे। शहजहाँ अपने पिता जहाँगीर से गुरू उपमा प्रायः सुनता रहता था। अतः वह शान्त हो गया किन्तु लाहौर के राज्यपाल को उसकी इस भूल पर स्थानान्तरित कर दिया गया।

Thursday, December 4, 2014

सिख धर्म के उत्थान में राजपूतो का योगदान"/ SIKKH DHARMA AND RAJPUT HISTORY

सिख धर्म के उत्थान में राजपूतो का योगदान"

सिख राजपूतो में "बछितर सिंह मन्हास,बाजसिंह पवार,बन्दा सिंह बहादुर, जैसे यौद्धा और मिल्खा सिंह(राठौर),जीव मिल्खा सिंह जैसे महान खिलाडी राजपूत समाज से थे।
आज हम बज्जर सिंह राठौर से शुरुवात कर रहे हैं।

सरदार बज्जर सिंह राठौड जिन्होने गुरू गोविंद सिंह जी को अस्त्र शस्त्र की दीक्षा थी ---
सरदार बज्जर सिंह राठौड सिक्खो के दसवे गुरू श्री गोविंद सिंह जी के गुरू थे ,जिन्होने उनको शस्त्र चलाने मे निपुण बनाया था। बज्जर सिंह जी ने गुरू गोविंद सिंह जी को ना केवल युद्ध की कला सिखाई बल्कि उनको बिना शस्त्र के द्वंध युद्ध, घुड़सवारी, तीरंदाजी मे भी निपुण किया। उन्हे राजपूत -मुगल युद्धो का भी अनुभव था और प्राचीन भारतीय युद्ध मे भी पारंगत थे और वो बहुत से खूंखार जानवरो के साथ अपने शिष्यों को लडवाकर उनकी परिक्षा लेते थे। गुरू गोविंद सिंह जी ने अपने ग्रन्थ बछ्छित्तर नाटक मे भी उनका वर्णन किया है। उनके द्वारा आम सिक्खो का सैन्यिकरण किया गया जो पहले ज्यादातर किसान और व्यापारी ही थे, ये केवल सिक्ख ही नही बल्की पूरे देश मे क्रांतिकारी परिवर्तन साबित हुआ।बज्जर सिंह राठौड जी की इस विशेषता की तारिफ ये कहकर की जाती है के उन्होंने ना केवल राजपूतों को बल्की खत्री सिक्ख गुरूओ को भी शिक्षा दीक्षा दी।
पारिवारिक प्रष्टभूमि बज्जर सिंह सूर्यवंशी राठौड राजपूत वंश के शासक वर्ग से संबंध रखते थे। वो मारवाड के राठौड राजवंश के वंशंज थे

वंशावली--
राव सीहा जी
राव अस्थान
राव दुहड
राव रायपाल
राव कान्हापाल
राव जलांसी
राव चंदा
राव टीडा
राव सल्खो
राव वीरम देव
राव चंदा
राव रीढमल
राव जोधा
राव लाखा
राव जोना
राव रामसिंह प्रथम
राव साल्हा
राव नत्थू
राव उडा ( उडाने राठौड इनसे निकले 1583 मे मारवाड के पतंन के बाद पंजाब आए)
राव मंदन
राव सुखराज
राव रामसिंह द्वितीय
सरदार बज्जर सिंह ( अपने वंश मे सरदार की उपाधि लिखने वाले प्रथम व्यक्ति) इनकी पुत्री भीका देवी का विवाह आलम सिंह चौहान (नचणा) से हुआ जिन्होंने गुरू गोविंद सिंह जी के पुत्रो को शास्त्र विधा सिखाई--।

Sardar Bajjar Singh Rathore
Sardar Bajjar Singh Rathore was a teacher of tenth Sikh Guru, Guru Gobind Singh, in 17th century India.
Rathore trained Guru Gobind Singh in the intricacies of warfare, as well as in unarmed combat, equestrianism, armed combat, musketry, archery and foot tactics. A veteran of the Rajput-Mughal wars, he was well steeped in ancient Indian battle lore and often tested his disciple by pitting him against wild-beasts. The Guru reflects on these sessions, in the Bachittra Natak.
His militarisation of common Sikhs who were mostly farmers, and a few traders was a big turning point in history of sikhism and India as well.
He was great enough in not keeping his warrior skills or Shastravidya exclusive to his Rajput princelyhood but imparted on to khatri Sikh Gurus.
Family Background
He was scion of the great Suryavanshi Rathore Rajput ruling elite.
Family Tree
He was a descendant of the royal house of Marwar:
*.Rao Siha
*.Rao Asthan
*.Rao Duhad
*.Rao Raipal
*.Rao Kanha Pal
*.Rao Jalnsi
*.Rao Chada
*.Rao Tida
*.Rao Salkho
*.Rao Viram Deo
*.Rao Chanda
*.Rao Ridmal --------Rao Jodha ( First son of Rao Ridmal )
*.Rao Lakha ( seventh son of Rao Ridmal )
*.Rao Jauna
*.Rao Ram Singh I
*.Rao Salha
*.Rao Nathu
*.Rao Uda ( Udaane Rathore ) ( came to Punjab during fall of marwar in 1583 )
*.Rao Mandan
*.Rao Sukhraj
*.Rao Ram Singh II
*.Sardar Bajjar Singh ( first to use sardar title in his line )
*.His daughter Bhikha Devi was married to Alam Singh Chauhan ( Nachna) who gave Shastarvidya to Sahibzadas of tenth Sikh Guru.

Source- Wikipedia.
One can also refer to-
1. http://punjabrevenue.nic.in/ /gazropr4.htm
2. http://www.thesikhencyclopedia.c/ om/biographies/sikh-martyrs /alam-singh-nachna