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Thursday, December 4, 2014

RAMDEV JI

रामदेव जी राजस्थान के एक लोक देवता हैं। 15वी. शताब्दी के आरम्भ में पश्चिम राजस्थान के पोकरण नामक प्रसिद्ध नगर के पास रुणिचा नामक स्थान में तोमर वंशीय राजपूत और रुणिचा के शासक अजमाल जी के घर चैत्र शुक्ला पंचमी वि.स. 1409 को बाबा रामदेव पीर अवतरित हुए

बाबा रामदेव की ख्याति बढ़ती गयी और चमत्कार होने से लोग गांव गांव से रूणिचा आने लगे। यह बात मौलवियों और पीरों को नहीं भाई। जब उन्होंने देखा कि इस्लाम खतरे में पड़ गया और मुसलमान बने हिन्दू फिर से हिन्दू बन रहे हैं और सोचने लगे कि किस प्रकार रामदेव जी को नीचा दिखाया जाय और उनकी अपकीर्ति हो। उधर भगवान श्री रामदेव जी घर घर जाते और लोगों को उपदेश देते कि उँच-नीच, जात-पात कुछ नहीं है, हर जाति को बराबर अधिकार मिलना चाहिये। पीरों ने श्री रामदेव जी को नीचा दिखाने के कई प्रयास किये पर वे सफल नहीं हुए। अन्त में सब पीरों ने विचार किया कि अपने जो सबसे बड़े पीर जो मक्का में रहते हैं उनको बुलाओ वरना इस्लाम नष्ट हो जाएगा। तब सब पीर व मौल्वियों ने मिलकर मक्का मदीना में खबर दी कि हिन्दुओं में एक महान पीर पैदा हो गया है, जो हनारे द्वारा बहला फुसलाकर हिन्दूओ को मुसलमान बनाये गए है उनको वापस हिन्दू बना रहा है, अन्धे को अपने तप, और ईश्वर की क्रपा से आंखे दे रहा है, अतिथियों की सेवा करना ही अपना धर्म समझता है, उसे रोका नहीं गया तो इस्लाम संकट में पड़ जाएगा। यह खबर जब मक्का पहुँची तो पाँचों पीर मक्का से रवाना होने की तैयारी करने लगे। कुछ दिनों में वे पीर रूणिचा की ओर पहुँचे। पांचों पीरों ने भगवान रामदेव जी से पूछा कि हे भाई रूणिचा यहां से कितनी दूर है, तब भगवान रामदेवजी ने कहा कि यह जो गांव सामने दिखाई दे रहा है वही रूणिचा है, क्या मैं आपके रूणिचा आने का कारण पूछ सकता हूँ ? तब उन पाँचों में एक पीर बोला हमें यहां रामदेव जी से मिलना है और उसकी पीराई देखनी है। जब प्रभु बोले हे पीरजी मैं ही रामदेव हूँ आपके समाने खड़ा हूँ कहिये मेरे योग्य क्या सेवा है।


श्री रामदेव जी के वचन सुनकर कुछ देर पाँचों पीर प्रभु की ओर देखते र
हे और मन ही मन हँसने लगे। रामदेवजी ने पाँचों पीरों का बहुत सेवा सत्कार किया। प्रभू पांचों पीरों को लेकर महल पधारे, वहां पर गद्दी, तकिया और जाजम बिछाई गई और पीरजी गद्दी तकियों पर विराजे मगर श्री रामदेव जी जाजम पर बैठ गए और बोले हे पीरजी आप हमारे मेहमान हैं, हमारे घर पधारे हैं आप हमारे यहां भोजन करके ही पधारना। इतना सुनकर पीरों ने कहा कि हे रामदेव भोजन करने वाले कटोरे हम मक्का में ही भूलकर आ गए हैं। हम उसी कटोरे में ही भोजन करते हैं दूसरा बर्तन वर्जित है। हमारे इस्लाम में लिखा हुआ है और पीर बोले हम अपना इस्लाम नहीं छोड़ सकते आपको भोजन कराना है तो वो ही कटोरा जो हम मक्का में भूलकर आये हैं मंगवा दीजिये तो हम भोजन कर सकते हैं वरना हम भोजन नहीं करेंगे। तब रामदेव जी ने कहा कि अगर ऐसा है तो मैं आपके कटोरे मंगा देता हूँ। ऐसा कहकर भगवान रामदेव जी ने अपने ईश्वर को याद किया और भगवान की क्रपा से एक ही पल में पाँचों कटोरे पीरों के सामने रख दिये और कहा पीर जी अब आप इस कटोरे को पहचान लो और भोजन करो। जब पीरों ने पाँचों कटोरे मक्का वाले देखे तो पाँचों पीरों को अचम्भा हुआ और मन में सोचने लगे कि मक्का कितना दूर है। यह कटोरे हम मक्का में छोड़कर आये थे। यह कटोरे यहां कैसे आये तब पाँचों पीर श्री रामदेव जी के चरणों में गिर पड़े और क्षमा माँगने लगे और कहने लगे हम पीर हैं मगर आप महान् पीर हैं। आज से आपको दुनिया रामापीर के नाम से पूजेगी। इस तरह से पीरों ने भोजन किया और श्री रामदेवजी को पीर की पदवी मिली और रामसापीर, रामापीर कहलाए।

आज भी मुस्लिम रामदेवरा में उन्हें पीर मान कर शीश झुकाते है