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Friday, October 30, 2015

मर्दानी किरणदेवी और महाविलासी अकबर की दास्तां\ Kiran Devi and Akbar

मर्दानी किरणदेवी और महाविलासी अकबर की दास्तां
अकबर प्रतिवर्ष नौरोज के मेले का आयोजन करता था, जिसमें वह सुंदर युवतियों को खोजता था, और उनसे अपने शरीर की भूख शांत करता है।
एक बार अकबर नौरोज के मेले में बुरका पहनकर सुंदर स्त्रियों की खोज कर ही रहा था, कि उसकी नजर मेले में घूम रही किरणदेवी पर जा पड़ी। वह किरणदेवी के रमणीय रूप पर मोहित हो गया। किरणदेवी मेवाड़ के महाराणा प्रतापसिंह के छोटे भाई शक्तिसिंह की पुत्री थी और उसका विवाह बीकानेर के प्रसिद्ध राजपूत वंश में उत्पन्न पृथ्वीराज राठौर के साथ हुआ था। अकबर ने बाद में किरणदेवी का पता लगा लिया कि यह तो तुम्हारे ही गुलाम की बीबी है, तो उसने पृथ्वीराज राठौर को जंग पर भेज दिया और किरण देवी को अपनी दूतियों के द्वारा बहाने से महल में आने का निमंत्रण दिया। अब किरणदेवी पहुंची अकबर के महल में, तो स्वागत तो होना ही था और इन शब्दो में हुआ, ‘‘हम तुम्हें अपनी बेगम बनाना चाहते हैं।’’ कहता हुआ अकबर आगे बढ़ा, तो किरणदेवी पीछे को हटी…अकबर आगे बढ़ते गया और किरणदेवी उल्टे पांव पीछे हटती गयी…लेकिन कब तक हटती बेचारी पीछे को…उसकी कमर दीवार से जा ली।
‘‘बचकर कहाँ जाओगी,’’ अकबर मुस्कुराया, ‘‘ऐसा मौका फिर कब मिलेगा, तुम्हारी जगह पृथ्वीराज के झोंपड़ा में नहीं हमारा ही महल में है’’
‘‘हे भगवान, ’’ किरणदेवी ने मन-ही-मन में सोचा, ‘‘इस राक्षस से अपनी इज्जत आबरू कैसे बचाउ?’’
‘‘हे धरती माता, किसी म्लेच्छ के हाथों अपवित्र होने से पहले मुझे सीता की तरह अपनी गोद में ले लो।’’ व्यथा से कहते हुए उसकी आँखों से अश्रूधारा बहने लगी और निसहाय बनी धरती की ओर देखने लगी, तभी उसकी नजर कालीन पर पड़ी। उसने कालीन का किनारा पकड़कर उसे जोरदार झटका दिया। उसके ऐसा करते ही अकबर जो कालीन पर चल रहा था, पैर उलझने पर वह पीछे को सरपट गिर पड़ गया, ‘‘या अल्लाह!’’
उसके इतना कहते ही किरणदेवी को संभलने का मौका मिल गया और वह उछलकर अकबर की छाती पर जा बैठी और अपनी आंगी से कटार निकालकर उसे अकबर की गर्दन पर रखकर बोली, ‘‘अब बोलो शहंशाह, तुम्हारी आखिरी इच्छा क्या है? किसी स्त्री से अपनी हवश मिटाने की या कुछ ओर?’’
एकांत महल में गर्दन से सटी कटार को और क्रोध में दहाडती किरणदेवी को देखकर अकबर भयभीत हो गया।
एक कवि ने उस स्थिति का चित्र इन शब्दों में खींचा है:
सिंहनी-सी झपट, दपट चढ़ी छाती पर,
मानो शठ दानव पर दुर्गा तेजधारी है।
गर्जकर बोली दुष्ट! मीना के बाजार में मिस,
छीना अबलाओं का सतीत्व दुराचारी है।
अकबर! आज राजपूतानी से पाला पड़ा,
पाजी चालबाजी सब भूलती तिहारी है।
करले खुदा को याद भेजती यमालय को,
देख! यह प्यासी तेरे खून की कटारी है।
‘‘मुझे माफ कर दो दुर्गा माता,’’ मुगल सम्राट अकबर गिड़गिड़ाया, ‘‘तुम निश्चय ही दुर्गा हो, कोई साधारण नारी नहीं, मैं तुमसे प्राणों की भीख माँगता हूँ। यही मैं मर गया तो यह देश अनाथ हो जाएगा।’’
‘‘ओह!’’ किरणदेवी बोली, ‘‘देश अनाथ हो जाएगा, जब इस देश में म्लेच्छ आक्रांता नहीं आए थे, तब क्या इसके सिर पर किसी के आशीष का हाथ नहीं था?’’
‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं है,’’ अकबर फिर गिड़गिड़ाया, ‘‘पर आज देश की ऐसी स्थिति है कि मुझे कुछ हो गया तो यह बर्बाद हो जाएगा।’’
‘‘अरे मूर्ख देश को बर्बाद तो तुम कर रहे हो, तुम्हारे जाने से तो यह आबाद हो जाएगा। महाराणा जैसे बहुत हैं, अभी यहाँ स्वतंत्रता के उपासक।’’
‘‘हाँ हैं,’’ वह फिर बोला, ‘‘लेकिन आर्य कभी किसी का नमक खाकर नमक हरामी नहीं करते।’’
‘‘नमक हमारी,’’ किरणदेवी बोली, ‘‘तुम कहना क्या चाहते हो?’’
‘‘तुम्हारे पति ने रामायण पर हाथ रखकर मरते समय तक वफादारी का कसम खायी थी और तुमने भी प्रीतिभोज में मेरे यहाँ भोजन किया था, फिर यदि तुम मेरी हत्या कर दोगी तो क्या यह विश्वासघात या नमकहरामी नहीं होगी।’’
‘‘विश्वासघाती से विश्वासघात करना कोई अधर्म नहीं राजन,’’ किरणदेवी फिर गरजी, ‘‘तुम कौनसे दूध के धुले हो?’’
‘‘हाँ मैं दूध का धुला हुआ नहीं, पर मुझे क्षमा कर दो, हिन्दुओं के धर्म के दस लक्षणों मेें क्षमा भी एक है, इसलिए तुम्हें तुम्हारे धर्म की कसम, मुझे अपनी गौ समझकर क्षमा कर दो।’’
‘‘पापी अपनी तुलना हमारी पवित्र गौ से मत करो,’’ फिर वह थोड़ी सी नरम पड़ गयी, ‘‘यदि तुम आज अपनी मौत और मेरी कटारी के बीच में धर्म और गाय को नहीं लाते तो मैं सचमुच तुम्हें मारकर धरती का भार हल्का कर देती।’’ फिर चेतावनी देते हुए बोली, ‘‘आज भले ही सारा भारत तुम्हारे पांवों पर शीश झुकाता हो? किंतु मेवाड़ का सिसोदिया वंश आज भी अपना सिर उचा किए खड़ा है। मैं उसी राजवंश की कन्या हूँ। मेरी धमनियों में बप्पा रावल और राणा सांगा का रक्त बह रहा है। हम राजपूत रमणियाँ अपने प्राणों से अधिक अपनी मर्यादा को मानती हैं और उसके लिए मर भी सकती हैं और मार भी सकती हैं। यदि तु आज बचना चाहता है तो अपनी माँ और कुरान की सच्ची कसम खाकर प्रतिज्ञा कर कि आगे से नौरोज मेला नहीं लगाएगा और किसी महिला की इज्जत नहीं लूटेगा। यदि तुझे यह स्वीकार नहीं है, तो मैं अभी तेरे प्राण ले लूंगी, भले ही तूने हिन्दू धर्म और गौ की दुहाई दी हो। मुझे अपनी मृत्यु का भय नहीं है।’’
अकबर को वास्तव में अनुभव हुआ कि तू मृत्यु के पाश में जकड़ा जा चुका है। जीवन और मौत का फासला मिट गया था। उसने माँ की कसम खाकर किरणदेवी की बात को माँ लिया, ‘‘मुझे मेरी माँ की सौगंध, मैं आज से संसार की सब स्त्राी जाति को अपनी बेटी समझूँगा और किसी भी स्त्राी के सामने आते ही मेरा सिर झुका जाएगा, भले ही कोई नवजात कन्या भी हो और कुरान-ए-पाक की कसम खाकर कहता हूँ कि आज ही नौरोज मेला बंद कराने का फरमान जारी कर दूँगा।’’
वीर पतिव्रता किरणदेवी ने दया करके अकबर को छोड़ दिया और तुरन्त अपने महल में लौट आयी। इस प्रकार एक पतिव्रता और साहसी महिला ने प्राणों की बाजी लगाकर न केवल अपनी इज्जत की रक्षा की, अपित भविष्य में नारियों को उसकी वासना का शिकार बनने से भी बचा लिया।
और उसके बाद वास्तव में नौरोज मेला बंद हो गया। अकबर जैसे सम्राट को भी मेला बंद कर देने के लिए विवश कर देने वाली इस वीरांगना का साहस प्रशंसनीय है।

Wednesday, December 24, 2014

AKBAR AND ITS COWARDNESS OF RAPE AND CONVERSION OF HINDUS

मुगल- अकबर की महानता के लक्षण --------------!
आधुनिक भारत के बामपंथी इतिहासकार यह लिखते नहीं थकते कि अकबर महान था जबकि उसकी महानता का कोई लक्षण उसमे दिखाई नहीं देता, अकबर भारतीय शासक न होकर बिदेशी आक्रमणकारी था वह मुग़ल था उसने भारत की सबसे ताकतवर जाती जो भारत की सुरक्षा, सत्ता जिस कुल में चक्रवर्तियों का समूह रहा हो उस क्षत्रिय जाती की लड़कियों को बेगम बनाकर क्षत्रियों का अपमान यानी भारत का अपमान ही किया वह राजपूत राजाओं को मनसबदारी दे अपने दरबार में दरबारी बनाना उनकी लड़कियों को अपने हरम में रख उन्हें बार- बार अपमानित करना सभी का इस्लामी करण कर निकाह करना सभी हिन्दू नारियों का घुट- घुट कर मरने के अतिरिक्त कोई रास्ता नहीं था क्या यही उसकी महानता का लक्षण था -?
बामपंथी इतिहासकारों की दुनिया १५० वर्ष या १३०० वर्ष से अधिक २००० वर्ष तक ही जाती है उन्हें हिन्दू वांगमय, वैदिक वांगमय अथवा महाभारत, रामायण इतिहास दिखाई नहीं देता वे हमारी मान्यताओं की धज्जी उड़ाकर इसे इतिहास मानने को तैयार नहीं ''जैसे यदि मुर्गा वाग नहीं दे तो सुबह नहीं होगी'' ! इनके लिखने से कुछ नहीं होता उन्हें पता नहीं कि श्रुती यानी वेद लाखों वर्ष श्रुती के आधार पर सुरक्षित रहा भारत में उनकी कोई जगह नहीं, मुग़ल आक्रमणकारी थे यह सिद्ध हो चुका है भारतीय राजाओं ने लगातार संघर्ष कर मुगल (परकीय) सत्ता समाप्त करने का संकल्प लिया था, केवल कुछ चापलूस ही अकबर को शहंशाहे हिन्द कहते थे क्योंकि अकबर की सत्ता तो स्थिर थी नहीं, राजपूताना ने मुगलों को कभी स्वीकार नहीं किया यहाँ तककि राजा मान सिंह को अपना आवास आगरा में बनाना पड़ा वे राजस्थान में मुह दिखाने के लायक नहीं थे वे उसी प्रकार थे कि जैसे एक नककटे ब्यक्ति ने संप्रदाय चला पूरे राज्य के लोगो की नाक कटवा दी उसी प्रकार मानसिंह ने अपनी बेटी तो दी ही साथ में जागीर की लालच में बहुत से राजपूतों की राज कुमारियों को भी तुर्क हरम में पहुचायीं सभी एक से हो गए इस कारण कोई भी राणाप्रताप के सामने ठहर नहीं सकता था, गुजरात, मालवा, मराठा, बिहार, बंगाल असम तथा दक्षिण का कोई प्रदेश मुगलों के कब्जे में नहीं रहा फिर काहेका शहंशाहे हिन्द ! महाराणा प्रताप के स्वदेश, स्वधर्म संघर्ष ने उन्हे महान बना दिया प्रत्येक भारतीय उनके चित्र अपने घर मे लगा अपने को धन्य मानता है क्या कोई अकबर का भी चित्र लगता है! महान तो एक ही हो सकता है महाराणा अथवा अकबर---!

अकबर के पास कोई महानता का लक्षण नहीं था अकबर के हरम मे 500 बीवियाँ थीं इस्लाम मे कौन कितना वीवी रखता है उसी मे मुक़ाबला होता है अकबर की यही महानता थी, चित्तौण हमले के समय महारानी जयमल मेतावड़िया के साथ १२ हज़ार क्षत्राणियों का जौहर हुआ था क्या यही थी मु. जलालुद्दीन अकबर की महानता-? वह मीना बाज़ार लगवाता था जिसमे स्वयं महिला वेश मे जाता था जिसमे हिन्दू लडिकियाँ बेची-खरीदी जाती थी, उसने सभी क्षत्रिय राजकुमारियों से ही विवाह किया न कि किसी मुगल शाहजादी का विवाह किसी क्षत्रिय कुमार के साथ किया, मंत्रिमंडल के सभी सदस्यों राजा टोडरमल, पं तानसेन, बीरबल सभी को इस्लाम स्वीकार करवाया केवल मानसिंह ही बचा था, मुगल दरबार तुर्की, ईरानी शक्ल ले चुका था भारतीयता का कहीं नाम नहीं था, वह भारत मे लुटेरा था हमलावर था जोधाबाई तड़पती रहती थी, मुगलों की हुकूमत है उसका ईमान इस्लाम है जोधाबाई ने अपनी कोख से सलीम को पैदा किया लेकिन सलीम ने कभी भी जोधा को अपनी माँ नहीं स्वीकार किया उसकी शिक्षा -दीक्षा भारतीयता बिरोधी हुई उसी जोधाबाई की कोख द्वारा गुरु अर्जुनदेव का बधिक पैदा हुआ।
मेवाड़ के हजारों निहत्थे किसानों की हत्या यही उसकी महानता ! मेवाड़ के बिरोध मे आमेर, बीकानेर इत्यादि को राजा की उपाधि देकर राणा के समानान्तर खड़ा करने का असफल प्रयास किया क्योंकि ये कोई राजा नहीं थे ये तो मेवाण राणा सांगा के रिआया यानी जागीरदार थे, राजपूतों को मांसाहार और ऐयासी की आदत डाली, मानसिंह जब मेवाण पर हमला किया तो अकबर ने कहा की कोई भी मारे दोनों तरफ हिन्दू ही हैं मानसिंह के पराजय के पश्चात कभी भी उसने महाराणा पर हमला के लिए नहीं भेजा हमेसा मुस्लिम सेनापतियों को ही भेजा, अकबर हिन्दू संतों का अपमान करने हेतु अपने दरबार मे बुलाता कुम्हन दास और संत तुलसीदास इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं विनय पत्रिका मे प्रकारांतर से वर्णन किया है, उसका मानसिंह के संत तुलसीदास से मिलने के पश्चात मान सिंह से विस्वास उठ गया था उसने मानसिंह को दूध मे जहर दिया लेकिन गिलाश बदल गया और जहर अकबर पी गया उसी से उसकी मृत्यु हो गयी।
अकबर न तो महान था न ही शहंसाहे हिन्द वह भारत के छोटे से हिस्से मे ही संघर्ष करता हुआ आत्म हत्या को मजबूर हुआ----!