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Monday, September 19, 2016

Pakistan to get destroyed in 2017. 2017 तक पाकिस्तान ख़त्म हो सकता है ।

2017 तक पाकिस्तान ख़त्म हो सकता है ।

ज्योतिष के अनुसार पाकिस्तान के भविष्य पर चर्चा करें जिसका निर्माण दिनांक १४-०८ -१९४७ समय सुबह ९.३० बजे स्थान कराची में हुआ था जिसमें भाग्य स्थान से पूर्ण कालसर्प योग भी है । इस के आधार पर पाकिस्तान की कुंडली कन्या लगन तथा मिथुन राशी की बनती है.लगन कुंडली के अनुसार नावें घर में बैठा हुआ राहु पाकिस्तान की मानवता विरोधी ताकत तथा हिंसात्मक रवैये को दर्शाता है।

दसवें घर अष्टमेश मंगल का एकादशेश चन्द्र के साथ युति पाक सरकार की शान्ति विरोधी नीति व भारत के प्रति प्रतिशोध तथा कानून व्यवस्था को प्रकट करता है .लग्नेश बुध का सूर्य और शुक्र के साथ एकादश भावः में युति बनाना मानव विरोधी ताकत के प्रति शक्ति का प्रयोग तथा उसमे अन्य राष्ट्रों का सहयोग भी दर्शाता है। इसी लिए ज्योतिष आधार पर कुंडली विवेचन से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि पाकिस्तान मानव विरोधी जिन ताकतों का भारत के साथ प्रयोग करता आ रहा है उसमे उसे पडोसी देशों से लाभ हो सकता है।

भारत एवम् पाक की प्रचलित नाम राशि क्रमश: धनु एवम् कन्या है। धनु एवम् कन्या राशि के स्वामी क्रमश: देव गुरू-बृहस्पति एवम् असुर-कुमार बुध है।बुध एवम् बृहस्पति में परस्पर शत्रुता है। देवगुरू बृहस्पति क्षमावान, ज्ञानवान, अहिंसावादी एवम् सात्विक ग्रह है, जबकि इसके विपरीत बुध बेहद चालक-अवसरवादी-बेईमान एवम् समयानुसार बदलाव की प्रकृति के मालिक है।

स्वतंत्र भारत की जन्मकुंडली में कर्क राशिस्थ होकर मूलभाव से सटाष्टक योग बना रहा है। पाकिस्तान के कुटिल सैन्य तंत्र के कारण आतंकवादी तत्व महाविनाशकारी परमाणु अस्त्रों को प्राप्त कर सकते है, जिससे भारत के गुजरात प्रांत में अहमदाबाद एवम् राजकोट क्षेत्र विशेष प्रभावित होंगे। पाकिस्तान आयोजित आतंकवादी आक्रमण के कारण भारत-पाक संबंधों में तनाव चरम सीमा पर होगा।

भारत-पाकिस्तान व्यापार संधि खटाई में पड़ सकती है। पाक का नापाक गणित: 2017 में हो सकता है इसका परिणाम भारत-पाक युद्ध में पाक को चीन का पूर्ण सहयोग होगा !चीन की बढ़ती ताकत के मद्देनजर पाकिस्तान में भारत-चीन संबंध को अलग नजरिए से देखा जाने लगेगा । इसमें 2017 तक भारत- पाक युद्ध की आशंका है किन्तु बाद में अंतर्राष्ट्रीय दबाव के चलते चीन पीछे हटेगा और पाकिस्तान ख़त्म हो सकता है ।



Sunday, July 24, 2016

भारत पर इस्लामिक आक्रमण

–भारत पर इस्लामिक आक्रमण——
सन 632 ईस्वी में मौहम्मद की मृत्यु के उपरांत छ: वर्षों के अंदर ही अरबों ने सीरिया,मिस्र,ईरान,इराक,उत्तरी अफ्रीका,स्पेन को जीत लिया था और उनका इस्लामिक साम्राज्य फ़्रांस के लायर नामक स्थान से लेकर भारत के काबुल नदी तक पहुँच गया था,एक दशक के भीतर ही उन्होंने लगभग समूचे मध्य पूर्व का इस्लामीकरण कर दिया था और इस्लाम की जोशीली धारा स्पेन,फ़्रांस में घुसकर यूरोप तक में दस्तक दे रही थी,अब एशिया में चीन और भारतवर्ष ही इससे अछूते थे.
सन 712 ईस्वी में खलीफा के आदेश पर मुहम्मद बिन कासिम के नेत्रत्व में भारत के सिंध राज्य पर हमला किया गया जिसमे सिंध के राजा दाहिर की हार हुई और सिंध पर अरबों का अधिकार हो गया
अरबों ने इसके बाद भारत के भीतरी इलाको में राजस्थान,गुजरात तक हमले किये,पर प्रतिहार राजपूत नागभट और बाप्पा रावल गुहिलौत ने संयुक्त मौर्चा बनाकर अरबों को करारी मात दी,अरबों ने चित्तौड के मौर्य,वल्लभी के मैत्रक,भीनमाल के चावड़ा,साम्भर के चौहान राजपूत, राज्यों पर भी हमले किये मगर उन्हें सफलता नहीं मिली,

दक्षिण के राष्ट्रकूट और चालुक्य शासको ने भी अरबो के विरुद्ध संघर्ष में सहायता की,कुछ समय पश्चात् सिंध पुन: सुमरा और सम्मा राजपूतो के नेत्रत्व में स्वाधीन हो गया और अरबों का राज बहुत थोड़े से क्षेत्र पर रह गया.
किसी मुस्लिम इतिहासकार ने लिखा भी है कि “इस्लाम की जोशीली धारा जो हिन्द को डुबाने आई थी वो सिंध के छोटे से इलाके में एक नाले के रूप में बहने लगी,अरबों की सिंध विजय के कई सौ वर्ष बाद भी न तो यहाँ किसी भारतीय ने इस्लाम धर्म अपनाया है न ही यहाँ कोई अरबी भाषा जानता है”
अरब तो भारत में सफल नहीं हुए पर मध्य एशिया से तुर्क नामक एक नई शक्ति आई जिसने कुछ समय पूर्व ही बौद्ध धर्म छोडकर इस्लाम धर्म ग्रहण किया था,
अल्पतगीन नाम के तुर्क सरदार ने गजनी में राज्य स्थापित किया,फिर उसके दामाद सुबुक्तगीन ने काबुल और जाबुल के हिन्दू शाही जंजुआ राजपूत राजा जयपाल पर हमला किया,
जंजुआ राजपूत वंश भी तोमर वंश की शाखा है और अब अधिकतर पाकिस्तान के पंजाब में मिलते हैं और अब मुस्लिम हैं कुछ थोड़े से हिन्दू जंजुआ राजपूत भारतीय पंजाब में भी मिलते हैं ।
उस समय अधिकांश अफगानिस्तान(उपगणस्तान),और समूचे पंजाब पर जंजुआ शाही राजपूतो का शासन था,
सुबुक्तगीन के बाद उसके पुत्र महमूद गजनवी ने इस्लाम के प्रचार और धन लूटने के उद्देश्य से भारत पर सन 1000 ईस्वी से लेकर 1026 ईस्वी तक कुल 17 हमले किये,जिनमे पंजाब का शाही जंजुआ राजपूत राज्य पूरी तरह समाप्त हो गया और उसने सोमनाथ मन्दिर गुजरात, कन्नौज, मथुरा,कालिंजर,नगरकोट(कटोच),थानेश्वर तक हमले किये और लाखो हिन्दुओं की हत्याएं,बलात धर्मपरिवर्तन,लूटपाट हुई,
ऐसे में दिल्ली के तंवर/तोमर राजपूत वंश ने अन्य राजपूतो के साथ मिलकर इसका सामना करने का निश्चय किया,
दिल्लीपति राजा जयपालदेव तोमर(1005-1021)—–
गज़नवी वंश के आरंभिक आक्रमणों के समय दिल्ली-थानेश्वर का तोमर वंश पर्याप्त समुन्नत अवस्था में था।महमूद गजनवी ने जब सुना कि थानेश्वर में बहुत से हिन्दू मंदिर हैं और उनमे खूब सारा सोना है तो उन्हें लूटने की लालसा लिए उसने थानेश्वर की और कूच किया,थानेश्वर के मंदिरों की रक्षा के लिए दिल्ली के राजा जयपालदेव तोमर ने उससे कड़ा संघर्ष किया,किन्तु दुश्मन की अधिक संख्या होने के कारण उसकी हार हुई,तोमरराज ने थानेश्वर को महमूद से बचाने का प्रयत्न भी किया, यद्यपि उसे सफलता न मिली।और महमूद ने थानेश्वर में जमकर रक्तपात और लूटपाट की.
दिल्लीपति राजा कुमार देव तोमर(1021-1051)—-
सन् 1038 ईo (संo १०९५) महमूद के भानजे मसूद ने हांसी पर अधिकार कर लिया। और थानेश्वर को हस्तगत किया। दिल्ली पर आक्रमण की तैयारी होने लगी। ऐसा प्रतीत होता था कि मुसलमान दिल्ली राज्य की समाप्ति किए बिना चैन न लेंगे।किंतु तोमरों ने साहस से काम लिया।
गजनी के सुल्तान को मार भगाने वाले कुमारपाल तोमर ने दुसरे राजपूत राजाओं के साथ मिलकर हांसी और आसपास से मुसलमानों को मार भगाया.
अब भारत के वीरो ने आगे बढकर पहाड़ो में स्थित कांगड़ा का किला जा घेरा जो तुर्कों के कब्जे में चला गया था,चार माह के घेरे के बाद नगरकोट(कांगड़ा)का किला जिसे भीमनगर भी कहा जाता है को राजपूत वीरो ने तुर्कों से मुक्त करा लिया और वहां पुन:मंदिरों की स्थापना की.
लाहौर का घेरा——
इ सके बाद कुमारपाल देव तोमर की सेना ने लाहौर का घेरा डाल दिया,वो भारत से तुर्कों को पूरी तरह बाहर निकालने के लिए कटिबद्ध था.इतिहासकार गांगुली का अनुमान है कि इस अभियान में राजा भोज परमार,कर्ण कलचुरी,राजा अनहिल चौहान ने भी कुमारपाल तोमर की सहायता की थी.किन्तु गजनी से अतिरिक्त सेना आ जाने के कारण यह घेरा सफल नहीं रहा.
नगरकोट कांगड़ा का द्वितीय घेरा(1051 ईस्वी)—–
गजनी के सुल्तान अब्दुलरशीद ने पंजाब के सूबेदार हाजिब को कांगड़ा का किला दोबारा जीतने का निर्देश दिया,मुसलमानों ने दुर्ग का घेरा डाला और छठे दिन दुर्ग की दीवार टूटी,विकट युद्ध हुआ और इतिहासकार हरिहर दिवेदी के अनुसार कुमारपाल देव तोमर बहादुरी से लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ.अब रावी नदी गजनी और भारत के मध्य की सीमा बन गई.
मुस्लिम इतिहासकार बैहाकी के अनुसार “राजपूतो ने इस युद्ध में प्राणप्रण से युद्ध किया,यह युद्ध उनकी वीरता के अनुरूप था,अंत में पांच सुरंग लगाकर किले की दीवारों को गिराया गया,जिसके बाद हुए युद्ध में तुर्कों की जीत हुई और उनका किले पर अधिकार हो गया.”
इस प्रकार हम देखते हैं कि दिल्लीपति कुमारपाल देव तोमर एक महान नायक था उसकी सेना ने न केवल हांसी और थानेश्वर के दुर्ग ही हस्तगत न किए; उसकी वीर वाहिनी ने काँगड़े पर भी अपनी विजयध्वजा कुछ समय के लिये फहरा दी। लाहौर भी तँवरों के हाथों से भाग्यवशात् ही बच गया।
दिल्लीपती राजाअनंगपाल-II ( 1051-1081 )—–
उनके समय तुर्क इबराहीम ने हमला किया जिसमें अनगपाल द्वितीय खुद युद्ध लड़ने गये,,,, युद्ध में एक समय आया कि तुर्क इबराहीम ओर अनगपाल कि आमना सामना हो गया। अनंगपाल ने अपनी तलवार से इबराहीम की गर्दन ऊडा दि थी। एक राजा द्वारा किसी तुर्क बादशाह की युद्ध में गर्दन उडाना भी एक महान उपलब्धि है तभी तो अनंगपाल की तलवार पर कई कहावत प्रचलित हैं।
जहिं असिवर तोडिय रिउ कवालु, णरणाहु पसिद्धउ अणंगवालु ||
वलभर कम्पाविउ णायरायु, माणिणियण मणसंजनीय ||
The ruler Anangapal is famous; he can slay his enemies with his sword. The weight (of the Iron pillar) caused the Nagaraj to shake.
तुर्क हमलावर मौहम्मद गौरी के विरुद्ध तराइन के युद्ध में तोमर राजपूतो की वीरता—
दिल्लीपति राजा चाहाडपाल/गोविंदराज तोमर (1189-1192)—–
गोविन्दराज तोमर पृथ्वीराज चौहान के साथ मिलकर तराइन के दोनों युद्धों में लड़ें,
पृथ्वीराज रासो के अनुसार तराईन के पहले युद्ध में मौहम्मद गौरी और गोविन्दराज तोमर का आमना सामना हुआ था,जिसमे दोनों घायल हुए थे और गौरी हारकर भाग रहा था। भागते हुए गौरी को धीरसिंह पुंडीर ने पकडकर बंदी बना लिया था। जिसे उदारता दिखाते हुए पृथ्वीराज चौहान ने छोड़ दिया। हालाँकि गौरी के मुस्लिम इतिहासकार इस घटना को छिपाते हैं।
पृथ्वीराज चौहान के साथ मिलकर गोरी के साथ युद्ध किया,तराईन दुसरे युद्ध मे मारे गए.
तेजपाल द्वितीय (1192-1193 ई)——-
दिल्ली का अन्तिम तोमर राजा,जिन्होंने स्वतन्त्र 15 दिन तक शासन किया,इन्ही के पास पृथ्वीराज चौहान की रानी(पुंडीर राजा चन्द्र पुंडीर की पुत्री) से उत्पन्न पुत्र रैणसी उर्फ़ रणजीत सिंह था,तेजपाल ने बची हुई सेना की मदद से गौरी का सामना करने की गोपनीय रणनीति बनाई,युद्ध से बची हुई कुछ सेना भी उसके पास आ गई थी.
मगर तुर्कों को इसका पता चल गया और कुतुबुद्दीन ने दिल्ली पर आक्रमण कर हमेशा के लिए दिल्ली पर कब्जा कर लिया।इस हमले में रैणसी मारे गए.
इसके बाद भी हांसी में और हरियाणा में अचल ब्रह्म के नेत्रत्व में तुर्कों से युद्ध किया गया,इस युद्ध में मुस्लिम इतिहासकार हसन निजामी किसी जाटवान नाम के व्यक्ति का उल्लेख करता है जिसे आजकल हरियाणा के जाट बताते हैं जबकि वो राजपूत थे और संभवत इस क्षेत्र में आज भी पाए जाने वाले तंवर/तोमर राजपूतो की जाटू शाखा से थे,
इस प्रकार हम देखते हैं कि दिल्ली के तोमर राजवंश ने तुर्कों के विरुद्ध बार बार युद्ध करके महान बलिदान दिए किन्तु खेद का विषय है कि संभवत: कोई तोमर राजपूत भी दिल्लीपति कुमारपाल देव तोमर जैसे वीर नायक के बारे में नहीं जानता होगा जिसने राष्ट्र और धर्म की रक्षा के लिए अपने राज्य से आगे बढकर कांगड़ा,लाहौर तक जाकर तुर्कों को मार लगाई और अपना जीवन धर्मरक्षा के लिए न्योछावर कर दिया.
दिल्ली के तोमर राजवंश की वीरता को समग्र राष्ट्र की और से शत शत नमन.
सन्दर्भ—
1-राजेन्द्र सिंह राठौर कृत राजपूतो की गौरवगाथा पृष्ठ संख्या 113,116,117
2-डा० अशोक कुमार सिंह कृत सल्तनत काल में हिन्दू प्रतिरोध पृष्ठ संख्या 48,68,69,70
3-देवी सिंह मंडावा कृत सम्राट पृथ्वीराज चौहान पृष्ठ संख्या 94-98
4-दशरथ शर्मा कृत EARLY CHAUHAN DYNASTIES
5- महेंद्र सिंह तंवर खेतासर कृत तंवर/तोमर राजवंश का सांस्कृतिक एवम् राजनितिक इतिहास।
6-दशरथ शर्मा-लेक्चर्स ऑन राजपूत हिस्टरी एंड कल्चर (आर पी नोपानी भाषणमाला १९६९) प्रकाशक: मोतीलाल बनारसीदास, जवाहर नगर, दिल्ली
-BY Manisha Singh

महाराजा बघेलसिंह – दिल्ली जीती, “मुग़लों” को हराया और कर वसूला

॥ महाराजा बघेलसिंह – दिल्ली जीती, “मुग़लों” को हराया और कर वसूला ॥
महान योद्धा महाराजा बघेलसिंह धालीवाल जिन्होंने दिल्ली और सीमावर्ती क्षेत्रों को जीता , “मुग़ल सत्ता” को परास्त किया और सशक्त “हिन्दू साम्राज्य” की स्थापना की । इन्होने उत्तर भारत के लगभग सभी “नवाबों” को विवश कर दिया था और “भारतीय संस्कृति” की रक्षा की थी । आज इन्हें कितने लोग जानते हैं ?
इनका जन्म १७३० इसवी में हुआ था । इन्होने स्वयं को करोर सिंघिया मिसल से जोड़ लिया था । १७६५ में करोर सिंघिया मिसल के अधिपति सरदार करोरा सिंघजी के असाम्योक निधन के बाद ये मिसल के अधिपति बने । बघेलसिंहजी एक उत्तम योद्धा होने के साथ साथ राजनीति एवं कूटनीति के भी निष्णात पंडित थे ।

उस समय भारतवर्ष पर “अहमद शाह अब्दाली” के नेतृत्व में अफगानों के आक्रमण हुआ करते थे। बघेलसिंहजी के करोर सिंघिया मिसल का सीधा सामना “अब्दाली” से हुआ जिसमे की “अब्दाली” ने एक ही दिन में धोखे से ३०,००० से ४०,००० हिन्दू-सिख बूढ़े-बच्चे और महिलाओं की ह्त्या कर दी । इस घटनाक्रम के उपरांत सिखों ने संगठित होना प्रारंभ किया ।
बघेलसिंहजी ने अम्बाला , करनाल , हिसार , थानेसर , जालंधर दोआब और होशियारपुर पर नियंत्रण कर लिया । बघेलसिंहजी ने पंजाब को “मुग़लों” से स्वतंत्र करा लिया । इसके उपरांत बघेलसिंहजी ने हिन्दू-साम्राज्य का विस्तार प्रारंभ किया । बघेलसिंहजी ने दिल्ली से जुड़े हुए क्षेत्रों जैसे मेरठ , सहारनपुर , शाहदरा और अवध के नवाबों को पराजित किया और उनसे भारी मात्र में कर वसूला ।
३०००० सिपाहियों के साथ बघेलसिंहजी ने यमुना को पार किया और सहारनपुर पर नियंत्रण कर लिया और वहाँ के नवाब “नजीब-उद्-दौला” से ११,००,००० का कर वसूला । इसी क्रम में उन्होंने “ज़बिता खान” को भी परास्त किया और कर प्राप्त किया । मार्च १९७६ , में इन्होने “मुग़ल-शहंशाह शाह आलम द्वितीय” की “शाही मुग़ल सेना” को मुजफ्फरनगर के निकट परास्त किया ।
इससे बौखला कर १७७८ में “शाह आलम द्वितीय” ने ३,००,००० से अधिक “शाही मुग़ल सेना” को “शाही वजीर” “नवाब मजाद-उद्-दौला” के सेनापतित्व में हिन्दू-सिख सेना को कुचलने को भेजा । किन्तु बघेलसिंहजी एक उत्तम रणनीतिकार और राजनीतिज्ञ थे । उन्होंने मुगलों की प्रत्येक चाल को मात दी और मुग़ल सेना को घनौर के निकट बुरी तरह परास्त किया । विराट मुग़ल सेना ने इनके सामने आत्म-समर्पण किया ।
अप्रैल १७८१ में मुगलों के “शाही वजीर” के निकट सम्बन्धी “मिर्ज़ा शफी” ने धोखे से हिन्दू-सिख सैनिक छावनी हथिया ली , "बघेलसिंहजी" ने इसका प्रतिकार शाहाबाद के “खलील बेग खान” को हराकर किया जिसने बड़े भारी सैन्य बल के साथ "बघेलसिंहजी" के समक्ष आत्मसमर्पण किया ।
अब तो सिखों ने दिल्ली पर विजय प्राप्ति की ठान ली और ११, मार्च १७८३ को विजय प्राप्त करके लाल किले में प्रवेश किया । “दीवान –ए-आम” जहां अकबर , शाहजहाँ , जहाँगीर और औरंगजेब दरबार लगाया करते थे वहां “बघेलसिंहजी” का दरबार सजा । "मुग़ल शहंशाह शाह आलम द्वितीय" हाथ बांधे सामने खड़ा था ।
मुग़ल शहंशाह और महल के स्त्री-पुरुषों के प्रार्थना करने पर "बघेल सिंह जी" ने दिल्ली की कुल आय का ३७.५% कर निश्चित करके फिर दिल्ली को छोड़ा । बस , तभी से मुग़ल शहंशाह नाममात्र के शासक रह गए । जब तक हिन्दू साम्राज्य रहा तब तक निर्बाध रूप से कर हिन्दू साम्राज्य को पंहुचता रहा ।
इतिहास में पढाया यह जाता हैं की औरंगजेब के बाद मुग़ल शासन कमज़ोर पड़ गया । अरे , अपनेआप कमज़ोर पडा क्या ? हमारे योद्धाओं ने उन्हें बुरी तरह हराकर कमज़ोर किया । हमारे बच्चों को बताया ही नहीं जा रहा हैं की हमारा गौरव कैसा हुआ करता था (वस्तुतः हम कभी गुलाम रहे ही नहीं)।
किन्तु , सत्य अब अधिक देर तक छिप नहीं सकता ।
-Manisha Singh

तक्षक- कन्नौज नरेश नागभट्ट -मोहम्मद बिन कासिम , islamic terrorism and Raput's resistance


प्राचीन भारत का पश्चिमोत्तर सीमांत!मोहम्मद बिन कासिम के आक्रमण से एक चौथाई सदी बीत चुकी थी। तोड़े गए मन्दिरों, मठों और चैत्यों के ध्वंसावशेष अब टीले का रूप ले चुके थे, और उनमे उपजे वन में विषैले जीवोँ का आवास था। यहां के वायुमण्डल में अब भी कासिम की सेना का अत्याचार पसरा था और जैसे बलत्कृता कुमारियों और सरकटे युवाओं का चीत्कार गूंजता था।कासिम ने अपने अभियान में युवा आयु वाले एक भी व्यक्ति को जीवित नही छोड़ा था, अस्तु अब इस क्षेत्र में हिन्दू प्रजा अत्यल्प ही थी। संहार के भय से इस्लाम स्वीकार कर चुके कुछ निरीह परिवार यत्र तत्र दिखाई दे जाते थे, पर कहीं उल्लास का कोई चिन्ह नही था। कुल मिला कर यह एक शमशान था।
इस कथा का इस शमशान से मात्र इतना सम्बंध है, कि इसी शमशान में जन्मा एक बालक जो कासिम के अभियान के समय मात्र आठ वर्ष का था, वह इस कथा का मुख्य पात्र है। उसका नाम था तक्षक। मुल्तान विजय के बाद कासिम के सम्प्रदायोन्मत्त आतंकवादियों ने गांवो शहरों में भीषण रक्तपात मचाया था। हजारों स्त्रियों की छातियाँ नोची गयीं, और हजारों अपनी शील की रक्षा के लिए कुंए तालाब में डूब मरीं।लगभग सभी युवाओं को या तो मार डाला गया या गुलाम बना लिया गया। अरब ने पहली बार भारत को अपना धर्म दिखया था, और भारत ने पहली बार मानवता की हत्या देखी थी।
तक्षक के पिता सिंधु नरेश दाहिर के सैनिक थे जो इसी कासिम की सेना के साथ हुए युद्ध में वीरगति पा चुके थे। लूटती अरब सेना जब तक्षक के गांव में पहुची तो हाहाकार मच गया। स्त्रियों को घरों से खींच खींच कर उनकी देह लूटी जाने लगी।भय से आक्रांत तक्षक के घर में भी सब चिल्ला उठे। तक्षक और उसकी दो बहनें भय से कांप उठी थीं। तक्षक की माँ पूरी परिस्थिति समझ चुकी थी, उसने कुछ देर तक अपने बच्चों को देखा और जैसे एक निर्णय पर पहुच गयी। माँ ने अपने तीनों बच्चों को खींच कर छाती में चिपका लिया और रो पड़ी। फिर देखते देखते उस क्षत्राणी ने म्यान से तलवार खीचा और अपनी दोनों बेटियों का सर काट डाला। उसके बाद काटी जा रही गाय की तरह बेटे की ओर अंतिम दृष्टि डाली, और तलवार को अपनी छाती में उतार लिया। आठ वर्ष का बालक एकाएक समय को पढ़ना सीख गया था, उसने भूमि पर पड़ी मृत माँ के आँचल से अंतिम बार अपनी आँखे पोंछी, और घर के पिछले द्वार से निकल कर खेतों से होकर जंगल में भागा..............
पचीस वर्ष बीत गए। तब का अष्टवर्षीय तक्षक अब बत्तीस वर्ष का पुरुष हो कर कन्नौज के प्रतापी शासक नागभट्ट द्वितीय का मुख्य अंगरक्षक था। वर्षों से किसी ने उसके चेहरे पर भावना का कोई चिन्ह नही देखा था। वह न कभी खुश होता था न कभी दुखी, उसकी आँखे सदैव अंगारे की तरह लाल रहती थीं। उसके पराक्रम के किस्से पूरी सेना में सुने सुनाये जाते थे। अपनी तलवार के एक वार से हाथी को मार डालने वाला तक्षक सैनिकों के लिए आदर्श था।
कन्नौज नरेश नागभट्ट अपने अतुल्य पराक्रम, विशाल सैन्यशक्ति और अरबों के सफल प्रतिरोध के लिए ख्यात थे। सिंध पर शासन कर रहे अरब कई बार कन्नौज पर आक्रमण कर चुके थे, पर हर बार योद्धा राजपूत उन्हें खदेड़ देते। युद्ध के सनातन नियमों का पालन करते नागभट्ट कभी उनका पीछा नहीं करते, जिसके कारण बार बार वे मजबूत हो कर पुनः आक्रमण करते थे। ऐसा पंद्रह वर्षों से हो रहा था।
आज महाराज की सभा लगी थी। कुछ ही समय पुर्व गुप्तचर ने सुचना दी थी, कि अरब के खलीफा से सहयोग ले कर सिंध की विशाल सेना कन्नौज पर आक्रमण के लिए प्रस्थान कर चुकी है, और संभवत: दो से तीन दिन के अंदर यह सेना कन्नौज की सीमा पर होगी। इसी सम्बंध में रणनीति बनाने के लिए महाराज नागभट्ट ने यह सभा बैठाई थी।नागभट्ट का सबसे बड़ा गुण यह था, कि वे अपने सभी सेनानायकों का विचार लेकर ही कोई निर्णय करते थे। आज भी इस सभा में सभी सेनानायक अपना विचार रख रहे थे। अंत में तक्षक उठ खड़ा हुआ और बोला- महाराज, हमे इस बार वैरी को उसी की शैली में उत्तर देना होगा।
महाराज ने ध्यान से देखा अपने इस अंगरक्षक की ओर, बोले- अपनी बात खुल कर कहो तक्षक, हम कुछ समझ नही पा रहे।
- महाराज, अरब सैनिक महा बर्बर हैं, उनके साथ सनातन नियमों के अनुरूप युद्ध कर के हम अपनी प्रजा के साथ घात ही करेंगे। उनको उन्ही की शैली में हराना होगा।
महाराज के माथे पर लकीरें उभर आयीं, बोले- किन्तु हम धर्म और मर्यादा नही छोड़ सकते सैनिक।
तक्षक ने कहा- मर्यादा का निर्वाह उसके साथ किया जाता है जो मर्यादा का अर्थ समझते हों। ये बर्बर धर्मोन्मत्त राक्षस हैं महाराज। इनके लिए हत्या और बलात्कार ही धर्म है।
- पर यह हमारा धर्म नही हैं बीर,
- राजा का केवल एक ही धर्म होता है महाराज, और वह है प्रजा की रक्षा। देवल और मुल्तान का युद्ध याद करें महाराज, जब कासिम की सेना ने दाहिर को पराजित करने के पश्चात प्रजा पर कितना अत्याचार किया था। ईश्वर न करे, यदि हम पराजित हुए तो बर्बर अत्याचारी अरब हमारी स्त्रियों, बच्चों और निरीह प्रजा के साथ कैसा व्यवहार करेंगे, यह महाराज जानते हैं।
महाराज ने एक बार पूरी सभा की ओर निहारा, सबका मौन तक्षक के तर्कों से सहमत दिख रहा था। महाराज अपने मुख्य सेनापतियों मंत्रियों और तक्षक के साथ गुप्त सभाकक्ष की ओर बढ़ गए।
अगले दिवस की संध्या तक कन्नौज की पश्चिम सीमा पर दोनों सेनाओं का पड़ाव हो चूका था, और आशा थी कि अगला प्रभात एक भीषण युद्ध का साक्षी होगा।
आधी रात्रि बीत चुकी थी। अरब सेना अपने शिविर में निश्चिन्त सो रही थी। अचानक तक्षक के संचालन में कन्नौज की एक चौथाई सेना अरब शिविर पर टूट पड़ी। अरबों को किसी हिन्दू शासक से रात्रि युद्ध की आशा न थी। वे उठते,सावधान होते और हथियार सँभालते इसके पुर्व ही आधे अरब गाजर मूली की तरह काट डाले गए। इस भयावह निशा में तक्षक का सौर्य अपनी पराकाष्ठा पर था। वह घोडा दौड़ाते जिधर निकल पड़ता उधर की भूमि शवों से पट जाती थी। उषा की प्रथम किरण से पुर्व अरबों की दो तिहाई सेना मारी जा चुकी थी। सुबह होते ही बची सेना पीछे भागी, किन्तु आश्चर्य! महाराज नागभट्ट अपनी शेष सेना के साथ उधर तैयार खड़े थे। दोपहर होते होते समूची अरब सेना काट डाली गयी। अपनी बर्बरता के बल पर विश्वविजय का स्वप्न देखने वाले आतंकियों को पहली बार किसी ने ऐसा उत्तर दिया था।
विजय के बाद महाराज ने अपने सभी सेनानायकों की ओर देखा, उनमे तक्षक का कहीं पता नही था।सैनिकों ने युद्धभूमि में तक्षक की खोज प्रारंभ की तो देखा- लगभग हजार अरब सैनिकों के शव के बीच तक्षक की मृत देह दमक रही थी। उसे शीघ्र उठा कर महाराज के पास लाया गया। कुछ क्षण तक इस अद्भुत योद्धा की ओर चुपचाप देखने के पश्चात महाराज नागभट्ट आगे बढ़े और तक्षक के चरणों में अपनी तलवार रख कर उसकी मृत देह को प्रणाम किया। युद्ध के पश्चात युद्धभूमि में पसरी नीरवता में भारत का वह महान सम्राट गरज उठा- आप आर्यावर्त की वीरता के शिखर थे तक्षक.... भारत ने अबतक मातृभूमि की रक्षा में प्राण न्योछावर करना सीखा था, आप ने मातृभूमि के लिए प्राण लेना सिखा दिया। भारत युगों युगों तक आपका आभारी रहेगा।
इतिहास साक्षी है, इस युद्ध के बाद अगले तीन शताब्दियों तक अरबों में भारत की तरफ आँख उठा कर देखने की हिम्मत नही हुई।
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साभार- Make_In_India

Sunday, April 17, 2016

Dr Ambedkar and his word about Islam


सोर्स प्रमाण :- डा अंबेडकर सम्पूर्ण वाग्मय , खण्ड 151
हिन्दू मुस्लिम एकता एक अंसभव कार्य हैं भारत से समस्त मुसलमानों को पाकिस्तान भेजना और हिन्दुओं को वहां से बुलाना ही एक हल है । यदि यूनान तुर्की और बुल्गारिया जैसे कम साधनों वाले छोटे छोटे देश यह कर सकते हैं तो हमारे लिए कोई कठिनाई नहीं । साम्प्रदायिक शांति हेतु अदला बदली के इस महत्वपूर्ण कार्य को न अपनाना अत्यंत उपहासास्पद होगा ।
भारत विभाजन के बाद भी भारत में साम्प्रदायिक समस्या बनी रहेगी । पाकिस्तान में रुके हुए अल्पसंख्यक हिन्दुओं की सुरक्षा कैसे होगी ? मुसलमानों के लिए हिन्दू काफिर सम्मान के योग्य नहीं है ।
मुसलमान की भातृ भावना केवल मुसमलमानों के लिए है । कुरान गैर मुसलमानों को मित्र बनाने का विरोधी है , इसीलिए हिन्दू सिर्फ घृणा और शत्रुता के योग्य है । मुसलामनों के निष्ठा भी केवल मुस्लिम देश के प्रति होती है । इस्लाम सच्चे मुसलमानो हेतु भारत को अपनी मातृभूमि और हिन्दुओं को अपना निकट संबधी मानने की आज्ञा नहीं देता ।
संभवतः यही कारण था कि मौलाना मौहम्मद अली जैसे भारतीय मुसलमान भी अपेन शरीर को भारत की अपेक्षा येरूसलम में दफनाना अधिक पसन्द किया । कांग्रेस में मुसलमानों की स्थिति एक साम्प्रदायिक चौकी जैसी है । गुण्डागर्दी मुस्लिम राजनीति का एक स्थापित तरीका हो गया है । इस्लामी कानून समान सुधार के विरोधी हैं । धर्म निरपेक्षता को नहीं मानते ।
मुस्लिम कानूनों के अनुसार भारत हिन्दुओं और मुसलमानों की समान मातृभूमि नहीं हो सकती । वे भारत जैसे गैर मुस्लिम देश को इस्लामिक देश बनाने में जिहाद आतंकवाद का संकोच नहीं करते ।
:- डा अंबेडकर सम्पूर्ण वाग्मय , खण्ड 151

Saturday, March 26, 2016

हमारे पूर्वजो पर हुए इस्लाम अत्याचार

हमारे पूर्वजो पर हुए अत्याचार

1- मैं नहीं भूला उस कामपिपासु अलाउद्दिन खिलजी को, जिससे अपने सतीतव को बचाने के लिये रानी पद्ममिनी 14000 महिलाओं के साथ जलते हुए अग्निकुंड में कूद गयी थीं।
2- मैं नहीं भूला उस जालिम औरंगजेब को, जिसने संभाजी महाराज को इस्लाम स्वीकारने से मना करने पर तडपा तडपा कर मारा था।
3- मैं नहीं भूला उस जिहादी टीपु सुल्तान को, जिसने एक एक दिन में लाखों हिंदुओ का नरसंहार किया था।
4- मैं नहीं भूला उस जल्लाद शाहजहाँ को, जिसने 14 बर्ष की एक ब्राह्मण बालिका के साथ अपने महल में जबरन बलात्कार किया
5- मैं नहीं भूला उस बर्बर बाबर को, जिसने मेरे श्री राम प्रभु का मंदिर तोड़ा और लाखों निर्दोष हिंदुओ का कत्ल किया था।
6- मैं नहीं भूला उस शैतान सिकन्दर लोदी को, जिसने नगरकोट के ज्वालामुखी मंदिर की माँ दुर्गा की मूर्ति के टुकड़े कर उन्हें कसाइयों को मांस तोलने के लिये दे दिया था।
7- मैं नहीं भूला उस धूर्त ख्वाजा मोइन्निद्दिन चिस्ती को, जिसने संयोगीता को इस्लाम कबूल ना करने पर नग्न कर मुगल सैनिको के सामने फेंक दिया था।
8- मैं नहीं भूला उस निर्दयी बजीर खान को, जिसने गुरूगोविंद सिंह के दोनों मासूम बच्चों फतेहसिंह और जोरावार को मात्र 7 साल और 5 बर्ष की उम्र में इस्लाम ना मानने पर दीवार में जिन्दा चुनवा दिया था।
9- मैं नहीं भूला उस जिहादी बजीर खान को, जिसने बन्दा बैरागी की चमडी को गर्म लोहे की सलाखों से तब तक जलाया जब तक उसकी हड्डियां ना दिखने लगी मगर उस बन्दा वैरागी ने इस्लाम स्वीकार नहीं किया
10- मैं नहीं भूला उस कसाई औरंगजेब को, जिसने पहले संभाजी महाराज की आँखों मे गरम लोहे के सलिए घुसाए, बाद में उन्हीं गरम सलियों से पुरे शरीर की चमडी उधेडी, फिर भी संभाजी ने हिंदू धर्म नही छोड़ा था।
11- मैं नहीं भूला उस नापाक अकबर को, जिसने हेमू के 72 वर्षीय स्वाभिमानी बुजुर्ग पिता के इस्लाम कबूल ना करने पर उसके सिर को धड़ से अलग करवा दिया था।
12- मैं नहीं भूला उस वहशी दरिंदे औरंगजेब को, जिने धर्मवीर भाई मतिदास के इस्लाम कबूल न करने पर बीच चौराहे पर आरे से चिरवा दिया था।

Wednesday, February 17, 2016

बीजापुर स्थित ""सात कबर"" और उनका रहस्य ?




इस सवाल का जबाब जानने से पहले  ये बात अच्छी तरह से समझ लें कि .. जलन, असुरक्षा और अविश्वास.. से इस्लामी शासनकाल के पन्ने रंगे पड़े हैं. जहाँ भाई-भाई, और पिता-पुत्र में सत्ता के लिये खूनी रंजिशें की गईं!

लेकिन , क्या आप ये सोच भी सकते हैं कि. कोई शासक अपनी 63 पत्नियों को सिर्फ़ इसलिये मार डाले कि कहीं उसके मरने के बाद वे दोबारा शादी न कर लें है ना ये .एक बेहद आश्चर्यजनक और चौंकाने वाली बात ?

परन्तु जहाँ इस्लाम और उसके सरपरस्त मुस्लिम मौजूद हों. वहाँ कुछ भी असम्भव नहीं है!

यूँ तो कर्नाटक के बीजापुर में गोल गुम्बज और इब्राहीम रोज़ा जैसी कई ऐतिहासिक इमारतें और दर्शनीय स्थल हैं लेकिन, एक स्थान ऐसा भी है जहाँ पर्यटकों को ले जाकर इस्लामी आक्रांताओं के कई काले कारनामों में से एक के दर्शन करवाये जा सकते हैं।

परन्तु बीजापुर-अठानी रोड पर लगभग 5 किलोमीटर दूर एक उजाड़ स्थल पर पाँच एकड़ में फ़ैली यह ऐतिहासिक कत्लगाह “सात कबर” (साठ कब्र का अपभ्रंश) एक ऐसी ही एक जगह है..।

क्योंकि इस स्थान पर आदिलशाही सल्तनत के एक सेनापति अफ़ज़ल खान द्वारा अपनी 63 पत्नियों की हत्या के बाद बनाई गई कब्रें हैं।

इस खण्डहर में काले पत्थर के चबूतरे पर 63 कब्रें बनाई गई हैं और, आज की तारीख में इतना समय गुज़र जाने के बाद भी जीर्ण-शीर्ण खण्डहर अवस्था में यह बावड़ी और कब्रें काफ़ी ठीक-ठाक हालत में हैं।

यहाँ पहली दो लाइनों में 7-7 कब्रें, तीसरी लाइन में 5 कब्रें तथा आखिरी की चारों लाइनों में 11 कब्रें बनी हुई दिखाई देती हैं और , वहीं एक बड़ी "आर्च(Arch) (मेहराब) भी बनाई गई है!

ऐसा क्यों और किस गणित के आधार पर किया गया ये तो वो अफ़ज़ल खान ही बता सकता है ।
साथ ही अफ़ज़ल खान ने खुद अपने लिये भी एक कब्र यहीं पहले से बनवाकर रखी थी. परन्तु उसके शव को यहाँ तक नहीं लाया जा सका और मौत के बाद प्रतापगढ़ के किले में ही उसे दफना दिया गया था, जिससे यह साबित होता है कि.वीर शिवाजी के हाथों अपनी मौत को लेकर वो अफजल खान नमक सूअर बेहद आश्वस्त था,!

भला ऐसी मानसिकता में वह वीर शिवाजी से युद्ध कैसे लड़ता????

खैर  अंततः , महान मराठा योद्धा शिवाजी ने इस सूअर अफ़ज़ल खान का वध .प्रतापगढ़ के किले में 1659 में कर ही दिया ।

इन सब बातों में सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि.वामपंथियों और कांग्रेसियों ने .हमारे इतिहास में मुगल बादशाहों के अच्छे-अच्छे, नर्म-नर्म, मुलायम-मुलायम किस्से-कहानी ही भर रखे हैं, जिनके द्वारा उन्हें सतत महान, सदभावनापूर्ण और दयालु(?) बताया है, लेकिन इस प्रकार 63 पत्नियों की हत्या वाली बातें जानबूझकर छुपाकर रखी गई हैं.।

यही कारण है कि.आज बीजापुर में इस स्थान तक पहुँचने के लिये ऊबड़-खाबड़ सड़कों से होकर जाना पड़ता है. और, वहाँ अधिकतर लोगों को इसके बारे में विस्तार से कुछ पता नहीं है (साठ कब्र का नाम भी अपभ्रंश होते-होते "सात-कबर" हो गया),

खैर जो भी हो लेकिन , है तो यह एक ऐतिहासिक स्थल ही, सरकार को इस तरफ़ ध्यान देना चाहिये और इसे एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करना चाहिये ताकि , लोगों को मुगलकाल के राजाओं द्वारा की गई क्रूरता का पता लग सके ।

सिर्फ ये ही नहीं बल्कि. खोजबीन करके भारत के खूनी इतिहास में से मुगल बादशाहों द्वारा किये गये सभी अत्याचारों को बाकायदा पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाना चाहिए ताकि, कम से कम अगली पीढ़ी को उनके कारनामों के बारे में तो पता लग सके ,वरना ,मैकाले-मार्क्स के प्रभाव में वे तो यही सोचते रहेंगे कि 

अकबर एक दयालु बादशाह था (भले ही उसने सैकड़ों हिन्दुओं का कत्ल किया हो),

और, शाहजहाँ अपनी बेगम से बहुत प्यार करता था ( भले ही मुमताज़ ने 14 बच्चे पैदा किये और उसकी मौत भी एक डिलेवरी के दौरान ही हुई, ऐसा भयानक प्यार..????

या, औरंगज़ेब ने जज़िया खत्म किया और वह टोपियाँ सिलकर खुद का खर्च निकालता था (भले ही उसने हजारों मन्दिर तुड़वाये हों, बेटी ज़ेबुन्निसा शायर और पेंटर थी इसलिये उससे नफ़रत करता था, भाई दाराशिकोह हिन्दू धर्म की ओर झुकाव रखने लगा तो उसे मरवा दिया… इतना महान मुगल शासक?

तात्पर्य यह कि .अब इस दयालु मुगल शासक वाले वामपंथी मिथक को तोड़ना बहुत ज़रूरी है.. और, बच्चों को उनके व्यक्तित्व के उचित विकास के लिये सही इतिहास बताना ही चाहिये… वरना उन्हें 63 पत्नियों के हत्यारे के बारे में कैसे पता चलेगा ??.

इसीलिए, बड़े शहरों की कूल डूड हिन्दू युवतियाँ किसी भी मुस्लिम से दोस्ती अथवा प्यार की पींगें बढ़ने से पहले हजार बार जरुर सोच लें कि बाबर और चंगेज खां के वंशजों से निकटता बढ़ाने के क्या परिणाम हो सकते हैं!

Saturday, December 19, 2015

Why Boar or Pork iS Ha-Ram for Muslims




























There is an instance that a Mussulman was attacked by a boar.
A wild boar. So when the boar attacked him, the Musselmans, when they do not like they say, “Haram. Haram.” Condemn means haram. So when the boar attacked him he said haram. “Haram!” But it acted, ha rama, and he got salvation. Do you follow what I say? A Mussulman said, ’ha ram. Ha ram, he condemned. It is abominable. That is the meaning of Urdu, haram. But at the time of death, when the boar attacked him, he said, “Haram.” So it acted ha rama. Ha, he rama. It acted, chanting the name of Rama, Hare Rama. He meant something else, but it acted as beneficial as chanting He rama. So therefore this Hare Krsna mantra, either you chant seriously, or those who are criticizing us, jokingly, the effect will be same. So anyway let them chant Hare Krsna. Do you follow? Even they do not take it seriously, if they imitate, joke, still they’ll be benefited .

Room Conversation
with His Divine Grace A. C. Bhaktivedanta Swami Prabhupada
August 15, 1971, London

Thursday, December 3, 2015

Night of Jan, 19,1990 when Hindus were murdered in Kashmir of India

Kashmir: Night of Jan, 19, 1990
On Jan, 04, 1990, a local Urdu newspaper, Aftab,published a press release issued by Hizb-ul-
Mujahideen, asking all Pandits to leave the Valleyimmediately. Al Safa, another local daily repeated
the warning.These warnings were followed byKalashnikov-wielding masked Jehadis carrying
out military-type marches openly. Reports ofkilling of Kashmiri Pandits continued to pour in.
Bomb explosions and sporadic firing by militantsbecame a daily occurrence.Explosive and inflammatory speeches beingbroadcast from the public address systems of themosques became frequent. Thousands of audiocassettes, carrying similar propaganda, wereplayed at numerous places in the Valley, in orderto instill fear into the already terrified KashmiriPandit community. Recalling these events, theformer Director General of Jammu and KashmirPolice, Shri M M Khajooria says, “The mischief ofthe summer of 1989 started with serving noticeto the prominent members of the minoritycommunity to quit Kashmir .

The letter said, ‘We order you to leave Kashmirimmediately, otherwise your children will be
harmed- we are not scaring you but this land isonly for Muslims, and is the land of Allah. Sikhs
and Hindus cannot stay here’. The threateningnote ended with a warning, ‘If you do not obey,
we will start with your children. KashmirLiberation, Zindabad”. They signaled the
implementation of their intentions quite blatantly.M. L. Bhan of Khonmoh, Srinagar, a government
employee, was killed on Jan 15, 1990. Baldev RajDutta, an operator in Lal chowk, Srinagar, was
kidnapped on the same day. His dead body wasfound four days later, on Jan 19, 1990, at Nai
Sarak, Srinagar.The body bore tell-tale marks ofbrutal torture.

Night of Jan, 19, 1990
The night witnessed macabre happenings, thelike of which had not been witnessed by Kashmiri
Pandits after the Afghan rule.Those thatexperienced the fear of that night are unlikely to
forget it in their life time. For future generations,it will be a constant reminder of the brutality of
Islamic radicals, who had chosen the timing verycarefully. “Farooq Abdullah, whose government
had all but seized to exist, resigned. Jagmohanarrived during the day to take charge as theGovernor of the State.”2 He took over the chargeof the Governor just the previous night atJammu.He had made efforts to reach Srinagarduring the previous day, but the plane had toreturn to Jammu from Pir Panjal Pass, due toextremely bad weather. Though curfew wasimposed to restore some semblance of order, ithad little effect. The mosque pulpits continued tobe used to exhort people to defy curfew and join
Jehad against the Pandits, while armed cadres ofJKLF marched through the streets of the Valley,
terrorizing them no end.

As the night fell, the microscopic communitybecame panic-stricken when the Valley began
reverberating with the war-cries of Islamists,who had stage-managed the whole event withgreat care; choosing its timing and the slogansto be used. A host of highly provocative,communal and threatening slogans, interspersedwith martial songs, incited the Muslims to comeout on the streets and break the chains of‘slavery’. These exhortations urged the faithful togive a final push to the Kafir in order to ring inthe true Islamic order. These slogans were mixedwith precise and unambiguous threats toPandits.They were presented with three choices— Ralive, Tsaliv ya Galive (convert to Islam,leave the place or prish). Tens of thousands ofKashmiri Muslims poured into the streets of the
Valley, shouting ‘death to India’ and death toKafirs.These slogans, broadcast from the loud speakers
of every mosque, numbering roughly 1100,exhorted the hysterical mobs to embark onJehad. All male Muslims, including their childrenand the aged, wanted to be seen to beparticipating in this Jehad.Those who hadorganized such a show of force in the middle of acold winter night, had only one objective; to putthe fear of death into the hearts of the alreadyfrightened Pandits. In this moment of collectivehysteria, gone was the facade of secular, tolerant,cultured, peaceful and educated outlook ofKashmiri Muslims, which the Indian intelligentsiaand the liberal media had made them to wear for
their own reasons.
Most of the Kashmiri Muslims behaved as if theydid not know who the Pandits were. This frenzied
mass hysteria went on till Kashmiri Pandits’despondency turned into desperation, as the
night wore itself out.For the first time after independence of Indiafrom the British rule, Kashmiri Pandits foundthemselves abandoned to their fate, stranded intheir own homes, encircled by rampaging mobs.Through the frenzied shouts and blood-curdlingsloganeering of the assembled mobs, Panditssaw the true face of in¬tolerant and radicalIslam. It represented the complete antithesis ofthe over-rated ethos of Kashmiriyat that wassupposed to define Kashmiri ethos.The pusillanimous Central Government wascaught napping and its agencies in the State,particularly the army and other para militaryforces, did not consider it necessary to intervene,in the absence of any orders. The State
Government had been so extensively subvertedthat the skeleton staff of the administration atSrinagar (the winter capital of the State hadshifted to Jammu in November 1989) decided notto confront the huge mobs. Delhi was too faraway, anyway.

Hundreds of Kashmiri Pandits phoned everyone inauthority at Jammu, Srinagar and Delhi, to save
them from the sure catastrophe that awaitedthem. The pleadings for help were incessant. But
not a soldier came to their rescue. Therefore,Kashmiri Pandits found best protection inhuddling together indoors, frozen with fear,praying for the night to pass. The foreboding ofthe impending doom was too over-powering tolet them have even a wink of sleep.The Pandits could see the writing on the wall. Ifthey were lucky enough to see the night through,they would have to vacate the place before theymet the same fate as Tikka Lal Taploo and many others. The Seventh Exodus was surely staringthem in the face. By morning, it became apparentto Pandits that Kashmiri Muslims had decided tothrow them out from the Valley. Broadcastingvicious Jehadi sermons and revolutionary songs,interspersed with blood curdling shouts andshrieks, threatening Kashmiri Pandits with dire
consequences, became a routine ‘Mantra’ of theMuslims of the Valley, to force them to flee from
Kashmir. Some of the slogans used were:“Zalimo, O Kafiro, Kashmir harmara chod do”.
(O! Merciless, O! Kafirs leave our Kashmir)“Kashmir mein agar rehna hai, Allah-ho-Akbar
kahna hoga”(Any one wanting to live in Kashmir will have toconvert to Islam)La Sharqia la gharbia, Islamia! Islamia!From East to West, there will be only Islam“Musalmano jago, Kafiro bhago”,
(O! Muslims, Arise, O! Kafirs, scoot)“Islam hamara maqsad hai, Quran hamara dasturhai, jehad hamara Rasta hai”(Islam is our objective, Q’uran is ourconstitution, Jehad is our way of our life)
“Kashmir banega Pakistan”(Kashmir will become Pakistan)“Kashir banawon Pakistan, Bataw varaie, Batneiwsaan”(We will turn Kashmir into Pakistan alongwithKashmiri Pandit women, but without their menfolk)“Pakistan se kya Rishta? La Ilah-e- Illalah”(Islam defines our relationship with Pakistan)Dil mein rakho Allah ka khauf; Hath mein rakhoKalashnikov.(With fear of Allah ruling your hearts, wield aKalashnikov)“Yahan kya chalega, Nizam-e- Mustafa”(We want to be ruled under Shari’ah)(We want to be ruled under Shari’ah)“People’s League ka kya paigam, Fateh, Azadi
aur Islam”(“What is the message of People’s League?Victory, Freedom and Islam.”)Wall posters in fairly large letters, proclaimingKashmir as ‘Islamic Republic of Kashmir’,became a com¬mon sight in the entire Valley. Sowere the big and prominent advertisements inlocal dailies, proclaiming their intent. ‘Aim of thepresent struggle is the supremacy of Islam inKashmir, in all walks of life and nothing else. Anyone who puts a hurdle in our way will beannihilated’.Press release of Hizb-ul-Mujahideen (HM)published in the morning edition of Urdu Daily‘Aftab’ of April, 01, 1990. ‘Kashmiri Panditsresponsible for duress against Muslims shouldleave the Valley within two days’. Head lines ofUrdu Daily, Al Safa, of April, 14, 1990.
‘With Kalashnikov in one hand and Quran in the
other the Mujahids would openly roam the
streets singing the Tarana-e- Kashmir
economictimes
wikipedia

California Bernardino terrorism is Islamic terrorism as was in Paris Terrorist attack

From what we know so far, it seems unlikely that the prime suspect in the San Bernardino shootings had any kind of legitimate workplace grievance. He had also been in contact with international terror suspects being watched by the FBI.
http://graphics.latimes.com/san-bernardino-shooting/

Thursday, October 29, 2015

औरंगजेब,के हिन्दुओं पर अत्याचार----- इंडियन मुस्लिम व्हू आर दे

औरंगजेब क्रूर शासक था कितना कत्लेआम किया था ये लोगो को शायद पता नहीं । औरंगज़ेब ने मंदिर भी तुड़वाये, जबरन धर्मांतरण भी करवाया , हिन्दू औरतों से क्या-क्या नहीं किया गया । आज जो ISIS कर रहा है उससे भी ज्यादा खतरनाक था औरेंजेब।
औरंगजेब (१६५८-१७०७)
——————————
इस बादशाह के हिन्दुओं पर अत्याचारों पर एक अलग ही पुस्तक लिखी जा सकती है। नमूने के तौर पर उसके कुछ कारनामों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित हैं :
अनेक लोग, जो मुसलमान बनने को तैयार नहीं हुए, नौकरी से निकाल दिये गये। नामदेव को इस्लाम ग्रहण करने पर ४०० का कमाण्डर बना दिया गया और अमरोहे के राजा किशनदास के पोते द्गिावसिंह को इस्लाम स्वीकार करने पर इम्तियाज गढ़ का मुशरिफ बना दिया गया। ‘समाचार पत्रों में नेकराम के धर्मान्तरण का जो राजा बना दिया गया और दिलावर का, जो १०००० का कमाण्डर बना दिया गया का वर्णन है।(१७) के.एस. लाल अपनी पुस्तक ‘इंडियन मुस्लिम व्हू आर दे’ में अनेकों उदाहरण देकर सिद्ध करते हैं कि इस प्रकार के लोभ के कारण और जिजिया कर से बचने के लिये बड़ी संखया में हिन्दुओं का धर्मान्तरण हुआ।
हिन्दू गृहस्थों और रजवाड़ों की लड़कियाँ, किस प्रकार दिन में उठाकर गुलाम रखैल बना ली जाती थी, उसका एक उदाहरण मनुक्की की आँखों देखा अनुभव है। वह नाचने वाली लड़कियों की एक लम्बी सूची देता है जैसे – हीरा बाई, सुन्दर बाई, नैन ज्योति बाई, चंचल बाई, अफसरा बाई, खुशहाल बाई, केसा बाई, गुलाल, चम्पा, चमेली, एलौनी, मधुमति, कोयल, मेंहदी, मोती, किशमिश, पिस्ता, इत्यादि। वह कहता है कि ये सभी नाम हिन्दू हैं और साधारणतया वे हिन्दू हैं जिनको बचपन में विद्रोही हिन्दू राजाओं के घरानों में से बलात उठा लिया गया था। नाम हिन्दू जरूर है, अब पर वे सब मुसलमान हैं।(९७क)
मराठों के जंजीरा के दुर्ग को जीतने के बाद सिद्‌दी याकूब ने उसके अंदर की सेना को सुरक्षा का वचन दिया था। ७०० व्यक्ति जब बाहर आ गये तो उसने सब पुरुषों को कत्ल कर दिया। परन्तु स्त्रियों और बच्चों को गुलाम बनाकर उनके मुसलमान बनने पर मजबूर किया।(९७ख)
औरंगजेब के गद्‌दी पर आते ही लोभ और बल प्रयोग द्वारा धर्मान्तरण ने भीषण रूप धारण किया। अप्रैल १६६७ में चार हिन्दू कानूनगो बरखास्त किये गये। मुसलमान हो जाने पर वापिस ले लिये गये। औरंगजेब कीघोषित नीति थी ‘कानूनगो बशर्ते इस्लाम’ अर्थात्‌ मुसलमान बनने पर कानूनगोई।(९९)
पंजाब से बंगाल तक, अनेक मुस्लिम परिवारों में ऐसे नियुक्ति पत्र अब भी विद्यमान हैं जिनसे यह नीति स्पष्ट सिद्ध होती है। नियुक्तियों और पदोन्नतियों दोनों के द्वारा इस्लाम स्वीकार करने का प्रलोभन दिया जाता था।(१००)
सन्‌ १६४८ ई. में जब वह शहजादा था, गुजरात में सीताराम जौहरी द्वारा बनवाया गया चिन्तामणि मंदिर उसने तुड़वाया। उसके स्थान पर ‘कुव्वतुल इस्लाम’ मस्जिद बनवाई गई और वहाँ एक गार्य कुर्बान की गई। (१०१)
सन्‌ १६४८ ई. में मीर जुमला को कूच बिहार भेजा गया। उसने वहाँ के तमाम मंदिरों को तोड़कर उनके स्थान पर मस्जिदें बना दी।(१०२)
सन्‌ १६६६ ई. में कृष्ण जन्मभूमि मंदिर मथुरा में दारा द्वारा लगाई गई पत्थर की जाली हटाने का आदेश दिया-‘इस्लाम में मंदिर को देखना भी पाप है और इस दारा ने मंदिर में जाली लगवाई?'(१०३)
सन्‌ १६६९ ई. में ठट्‌टा, मुल्तान और बनारस में पाठशालाएँ और मंदिर तोड़ने के आदेश दिये। काशी में विद्गवनाथ का मंदिर तोड़ा गया और उसके स्थान पर मस्जिद का निर्माण किया गया।(१०४)
सन्‌ १६७० ई. में कृष्णजन्मभूमि मंदिर, मथुरा, तोड़ा गया। उस पर मस्जिद बनाई गई। मूर्तियाँ जहाँनारा मस्जिद, आगरा, की सीढ़ियों पर बिछा दी गई।(१०५)
सोरों में रामचंद्र जी का मंदिर, गोंडा में देवी पाटन का मंदिर, उज्जैन के समस्त मंदिर, मेदनीपुर बंगाल के समस्त मंदिर, तोड़े गये।(१०६)
सन्‌ १६७२ ई. में हजारों सतनामी कत्ल कर दिये गये। गुरु तेग बहादुर का काद्गमीर के ब्राहम्णों के बलात्‌ धर्म परिवर्तन का विरोध करने के कारण वध करवाया गया।(१०७)
सन्‌ १६७९ ई. में हिन्दुओं पर जिजिया कर फिर लगा दिया गया जो अकबर ने माफ़ कर दिया था। दिल्ली में जिजिया के विरोध में प्रार्थना करने वालों को हाथी से कुचलवाया गया। खंडेला में मंदिर तुड़वाये गये।(१०८)
जोधपुर से मंदिरों की टूटी मूर्तियों से भरी कई गाड़ियाँ दिल्ली लाई गईं और उनको मस्जिदों की सीढ़ियों पर बिछाने के आदेश दिये गये।(१०९)
सन्‌ १६८० ई. में ‘उदयपुर के मंदिरों को नष्ट किया गया। १७२ मंदिरों को तोड़ने की सूचना दरबार में आई। ६२ मंदिर चित्तौड़ में तोड़े गये। ६६ मंदिर अम्बेर में तोड़े गये। सोमेद्गवर का मंदिर मेवाड़ में तोड़ा गया। सतारा में खांडेराव का मंदिर तुड़वायागया।'(११०)
सन्‌ १६९० ई. में एलौरा, त्रयम्वकेद्गवर, नरसिंहपुर एवं पंढारपुर के मंदिर तुड़वाये गये।(१११)
सन्‌ १६९८ ई. में बीजापुर के मंदिर ध्वस्त किये गये। उन पर मस्जिदें बनाई गई।(११२)
प्रो. मौहम्मद हबीब के अनुसार १३३० ई. में मंगोलों ने आक्रमण किया। पूरी कशमीर घाटी में उन्होंने आग लगाने बलात्कार और कत्ल करने जैसे कार्य किये। राजा और ब्राहम्ण (द्गिाक्षक) तो भाग गये। परन्तु साधारण नागरिक, जो रह गये, दूसरा कोई विकल्प न देखकर धीरे-धीरे मुसलमान हो गये।(११३)
इस प्रकार युद्ध से कैदी प्राप्त होते थे। कैदी गुलाम और फिर मुसलमान बना लिये जाते थे। नये मुसलमान दूसरे हिन्दुओं की लूट, बलात्कार और बलात्‌ धर्मान्तरण में उत्साहपूर्वक लग जाते थे क्योंकि वह अपने समाज द्वारा घृणित समझे जाने लगते थे।
मुस्लिम इतिहासकारों द्वारा दी गई उपरोक्त घटनाओं के विवरण को पढ़कर जिनके अनेक बार वे प्रत्यक्ष दद्गर्ाी थे, किसी भी मनुष्य का मन अपने अभागे हिन्दू पूर्वजों के प्रति द्रवित होकर करुणा से भर जाना स्वाभाविक है।
यह संसार का अद्‌भुत आद्गचर्य ही है कि इस्लाम के जिस आतंक से पूरा मध्य पूर्व और मध्य एद्गिाया कुछ दशाब्दियों में ही मुसलमान हो गया वह १००० वर्द्गा तक पूरा बल लगाकर भारत की आबादी के केवल १/५ भाग ही धर्म परिवर्तन कर सका।
इन बलात्‌ धर्म परिवर्तित लोगों में कुछ ऐसे भी थे जो अपनी संतानों के नाम एक लिखित अथवा अलिखित पैगाम छोड़ गये-‘हमने स्वेच्छा से अपने धर्म का त्याग नहीं किया है। यदि कभी ऐसा समय आवे जब तुम फिर अपने धर्म में वापिस जा सको तो देर मत लगाना। हमारे ऊपर किये गये अत्याचारों को भी भुलाना मत।’
बताया जाता है कि जम्मू में तो एक ऐसा परिवार है जिसके पास ताम्र पत्र पर खुदा यह पैगाम आज भी सुरक्षित है। किन्तु हिन्दू समाज उन लाखों उत्पीड़ित लोगों की आत्माओं की आकांक्षाओं को पूरा करने में असमर्थ रहा है। काद्गमीर के ब्रहाम्णों जैसे अनेक दृद्गटांत है जहाँ हिन्दूओं ने उन पूर्वकाल के बलात्‌ धर्मान्तरित बंधुओं के वंशजों को लेने के प्रद्गन पर आत्म हत्या करने की भी धमकी दे डाली और उनकी वापसी असंभव बना दी और हमारे इस धर्मनिरपेक्ष शासन को तो देखो जो मुस्लिम द्यशासकों के इन कुकृत्यों को छिपाना और झुठलाना एक राष्ट्रीय कर्तव्य समझता है।
राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में विद्गनोई संप्रदाय के अनेक परिवार रहते हैं। इस सम्प्रदाय के लोगों की धार्मिक प्रतिबद्धता है कि हरे वृक्ष न काटे जाये और किसी भी जीवधारी का वध न किया जाये।
राजस्थान में इस प्रकार की अनेक घटनाएँ हैं, जब एक-एक वृक्ष को काटने से बचाने के लिये पूरा परिवार बलिदान हो गया।सऊदी अरब के कुछ विद्गिाद्गट आगुन्तकों को ग्रेट बस्टर्ड नामक पक्षी का राजस्थान में द्गिाकार करने की जब भारत सरकार द्वारा अनुमति दी गई तो इन विद्गनोइयों के तीव्र विरोध के कारण यह प्रोग्राम रद्‌द हो गया था। वह विद्गनोई सम्प्रदाय के प्रवर्तक संत जाम्भी जी की समाधि पर बनी छतरी पर मुस्लिम काल में लोधी मुस्लिम सुल्तानों द्वारा अधिकार कर लिया गया था। अकबर जैसे उदार बादशाह से जब फरियाद की गई तो उसने भी इन पाँच शर्तों पर यह छतरी विद्गनोई सम्प्रदाय को वापिस की-
१. मुर्दा गाड़ो,
२. चोटी न रखो,
३. जनेऊ धारण न करो,
४. दाढ़ी रखो,
५. विद्गणु के नाम लेते समय विस्मिल्लाह बोलो।
विद्गनोइयों ने मजबूरी की दशा में यह सब स्वीकार कर लिया। धीरे-धीरे जैसा कि अकबर को अभिद्गट था, विद्गनोई दो तीन सौ वर्ष में मुसलमान अधिक, हिन्दू कम दिखाई देने लगे। हिन्दुओं के लिये वह अछूत हो गये। परन्तु उन्होंने अपनी मजबूरी को भुलाया नहीं। आर्य समाज के जन्म के तुरंत बाद ही उन्होंने उसे अपना लिया। बिजनौर जनपद के मौहम्मदपुर देवमल ग्राम के द्गोख परिवार और नगीना के विद्गनोई सराय के विद्गनोई इसके उदाहरणहैं।
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Tuesday, October 27, 2015

आतंकवाद पाकिस्तान की पैदाइश है--परवेज मुशर्रफ

पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने मंगलवार को वे सारी बातें खुलकर कबूल ली जिन पर आज तक यह मुल्क पर्दा डालता आया है. मुशर्रफ ने कबूल किया कि आतंकवाद पाकिस्तान की पैदाइश है. वह यहीं नहीं रुके. कबूल किया कि कश्मीर में आतंकी भी पाकिस्तान ने ही भेजे थे.
मुशर्रफ ने ये सारी बातें पाकिस्तानी न्यूज चैनल दुनिया टीवी को दिए इंटरव्यू में कहीं. इस इंटरव्यू में मुशर्रफ ने जो कहा, उसके प्रमुख अंशः मुशर्रफ ने कहा, 'माहौल 1979 से बदला हुआ था. हम रिलिजियस मिलिटेंसी पाकिस्तान के हक में शुरू की. हम मुजाहिदीन लेकर आए थे पूरी दुनिया से. सोवियत यूनियन से लड़ने के लिए. तालिबान को हमने ट्रेंड किया था. हक्कानी हमारा हीरो है. ओसामा हमारा हीरो था. जवाहिरी हमारा हीरो था. अब माहौल बदल गया है. हीरो अब विलेन हो गया था.'
मुशर्रफ ने कहा, 'कश्मीर में फ्रीडम स्ट्रगल शुरू हुआ 1990 में. वो वहां से भाग कर यहां पाकिस्तान आए. पाकिस्तान ने उनको हीरो रिसेप्शन दिया था. मुजाहीदीनों को हमने ट्रेनिंग दी. फिर भेजा. लश्कर-ए-तैयबा वगैरह बना. वो हमारे हीरो थे. वो कश्मीर में जान पर खेलकर लड़ रहे थे. अब माहौल बदल गया था. रिलिजियस मिलिटेंसी अब टेररिज्म में बदल गया है. अब निगेटिव हो गया है. अब हम खुद विक्टिम हो गए हैं.

Tuesday, October 13, 2015

क्या अकबर महान था?




क्या अकबर महान था?

भारत में प्रचलित इतिहास के लेखक मुग़ल सल्तनत के सभी शासकों के मध्य अकबर को विशिष्ट स्थान देते हुए अकबर "महान" के नाम से सम्बोधित करते हैं। किसी भी हस्ती को "महान" बताने के लिए उसका जीवन, उसका आचरण महान लोगों के जैसा होना चाहिए। अकबर के जीवन के एक आध पहलु जैसे दीन-ए-इलाही मत चलाना, हिन्दुओं से कर आदि हटाना को ये लेखक बढ़ा चढ़ाकर बताने में कोई कसर नहीं छोड़ते मगर अकबर के जीवन के अनेक ऐसे पहलु है जिनसे भारतीय जनमानस का परिचय नहीं हैं। इस लेख के माध्यम से हम अकबर के महान होने की समीक्षा करेंगे।

व्यक्तिगत जीवन में महान अकबर

  कई इतिहासकार अकबर को सबसे सुन्दर आदमी घोषित करते हैं । विन्सेंट स्मिथ इस सुंदरता का वर्णन यूँ करते हैं-

“अकबर एक औसत दर्जे की लम्बाई का था । उसके बाएं पैर में लंगड़ापन था । उसका सिर अपने दायें कंधे की तरफ झुका रहता था। उसकी नाक छोटी थी जिसकी हड्डी बाहर को निकली हुई थी। उसके नाक के नथुने ऐसे दीखते थे जैसे वो गुस्से में हो। आधे मटर के दाने के बराबर एक मस्सा उसके होंठ और नथुनों को मिलाता था। वह गहरे रंग का था।”

अबुल फज़ल ने अकबर के हरम को इस तरह वर्णित किया है- “अकबर के हरम में पांच हजार औरतें थी और हर एक का अपना अलग घर था।” ये पांच हजार औरतें उसकी 36 पत्नियों से अलग थी।

बाबर शराब का शौक़ीन था, इतना कि अधिकतर समय धुत रहता था। [बाबरनामा] हुमायूं अफीम का शौक़ीन था और इस वजह से बहुत लाचार भी हो गया था। अकबर ने ये दोनों आदतें अपने पिता और दादा से विरासत में ली थी।

नेक दिल अकबर ग़ाजी का आगाज़


6 नवम्बर 1556 को 14 साल की आयु में अकबर ने पानीपत की लड़ाई में भाग लिया था। हिंदू राजा हेमू की सेना मुग़ल सेना को खदेड़ रही थी कि अचानक हेमू को आँख में तीर लगा और वह बेहोश हो गया। उसे मरा सोचकर उसकी सेना में भगदड़ मच गयी। तब हेमू को बेहोशी की हालत में अकबर के सामने लाया गया और इसने बहादुरी से बेहोश हेमू का सिर काट लिया। एक गैर मुस्लिम को मौत के घाट उतारने के कारण अकबर को गाजी के खिताब से नवाजा गया। हेमू के सिर को काबुल भिजा दिया गया एवं उसके धड़ को दिल्ली के दरवाजे से लटका दिया गया। जिससे नए बादशाह की रहमदिली सब को पता चल सके। अकबर की सेना दिल्ली में मारकाट कर अपने पूर्वजों की विरासत का पालन करते हुए काफिरों के सिरों से मीनार बनाकर जीत का जश्न बनाया गया। अकबर ने हेमू के बूढ़े पिता को भी कटवा डाला और औरतों को शाही हरम में भिजवा दिया। अपने आपको गाज़ी सिद्ध कर अकबर ने अपनी “महानता” का परिचय दिया था[i]

अकबर और बैरम खान 

हुमायूँ की बहन की बेटी सलीमा जो अकबर की रिश्ते में बहन थी का निकाह अकबर के पालनहार और हुमायूँ के विश्वस्त बैरम खान के साथ हुआ था। इसी बैरम खान ने अकबर को युद्ध पर युद्ध जीतकर भारत का शासक बनाया था। एक बार बैरम खान से अकबर किसी कारण से रुष्ट हो गया। अकबर ने अपने पिता तुल्य बैरम खान को देश निकाला दे दिया। निर्वासित जीवन में बैरम खान की हत्या हो गई। पाठक इस हत्या के कारण पर विचार कर सकते है। अकबर यहाँ तक भी नहीं रुका। उसने बैरम खान की विधवा, हुमायूँ की बहन और बाबर की पोती सलीमा के साथ निकाह कर अपनी “महानता” को सिद्ध किया[ii]

स्त्रियों के संग व्यवहार

बुंदेलखंड की रानी दुर्गावती की छोटी सी रियासत थी। न्यायप्रिय रानी के राज्य में प्रजा सुखी थी। अकबर की टेढ़ी नज़र से रानी की छोटी सी रियासत भी बच न सकी। अकबर अपनी बड़ी से फौज लेकर रानी के राज्य पर चढ़ आया। रानी के अनेक सैनिक अकबर की फौज देखकर उसका साथ छोड़ भाग खड़े हुए। पर फिर हिम्मत न हारी। युद्ध क्षेत्र में लड़ते हुए रानी तीर लगने से घायल हो गई। घायल रानी ने अपवित्र होने से अच्छा वीरगति को प्राप्त होना स्वीकार किया। अपने हृदय में खंजर मारकर रानी ने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। अकबर का रानी की रियासत पर अधिकार तो हो गया। मगर रानी की वीरता और साहस से उसके कठोर हृदय नहीं पिघला। अपने से कहीं कमजोर पर अत्याचार कर अकबर ने अपनी “महानता” को सिद्ध किया था[iii]

न्यायकारी अकबर

थानेश्वर में दो संप्रदायों कुरु और पुरी के बीच पूजा की जगह को लेकर विवाद चल रहा था। दोनों ने अकबर के समक्ष विवाद सुलझाने का निवेदन किया। अकबर ने आदेश दिया कि दोनों आपस में लड़ें और जीतने वाला जगह पर कब्ज़ा कर ले। उन मूर्ख आत्मघाती लोगों ने आपस में ही अस्त्र शस्त्रों से लड़ाई शुरू कर दी। जब पुरी पक्ष जीतने लगा तो अकबर ने अपने सैनिकों को कुरु पक्ष की तरफ से लड़ने का आदेश दिया। और अंत में इसने दोनों तरफ के लोगों को ही अपने सैनिकों से मरवा डाला। फिर अकबर महान जोर से हंसा। अकबर के जीवनी लेखक के अनुसार अकबर ने इस संघर्ष में खूब आनंद लिया। इतिहासकार विन्सेंट स्मिथ अकबर के इस कुकृत्य की आलोचना करते हुए उसकी इस “महानता” की भर्तसना करते है[iv]

चित्तौड़गढ़ का कत्लेआम

अकबर ने इतिहास के सबसे बड़े कत्लेआम में से एक चित्तौड़गढ़ का कत्लेआम अपने हाथों से अंजाम दिया था। चित्तोड़ के किले में 8000 वीर राजपूत योद्धा के साथ 40000 सहायक रुके हुए थे। लगातार संघर्ष के पश्चात भी अकबर को सफलता नहीं मिली। एक दिन अकबर ने किले की दीवार का निरिक्षण करते हुए एक प्रभावशाली पुरुष को देखा। अपनी बन्दुक का निशाना लगाकर अकबर ने गोली चला दी। वह वीर योद्धा जयमल थे। अकबर की गोली लगने से उनकी अकाल मृत्यु हो गई। राजपूतों ने केसरिया बाना पहना। चित्तोड़ की किले से धुँए की लपटे दूर दूर तक उठने लगी। यह वीर क्षत्राणीयों के जौहर की लपटे थी। अकबर के जीवनी लेखक अबुल फ़ज़ल के अनुसार करीब 300 राजपूत औरतों ने आग में कूद कर अपने सतीत्व की रक्षा करी थी। राजपूतों की रक्षा पंक्ति को तोड़ पाने में असफल रहने पर अकबर ने पागल हाथी राजपूतों को कुचलने के लिए छोड़ दिए। तब कहीं वीर राजपूत झुंके थे। राजपूत सेना के संहार के पश्चात भी अकबर का दिल नहीं भरा और उसने अपनी दरियादिली का प्रदर्शन करते हुए किले के सहायकों के कत्लेआम का हुकुम दे दिया। इतिहासकार उस दिन मरने वालों की संख्या 30,000 लिखते हैं। बचे हुए लोगों को बंदी बना लिया गया। कत्लेआम के पश्चात वीर राजपूतों के शरीर से उतारे गए जनेऊ का भार 74 मन निकला था। इस कत्लेआम से अकबर ने अपने आपको “महान” सिद्ध किया था[v]

शराब का शौक़ीन अकबर

सूरत की एक घटना का अबुल फजल ने अपने लेखों में वर्णन किया हैं। एक रात अकबर ने जम कर शराब पी। शराब के नशे में उसे शरारत सूझी और उसने दो राजपूतों को विपरीत दिशा से भाग कर वापिस आएंगे और मध्य में हथियार लेकर खड़े हुए व्यक्ति को स्पर्श करेंगे। जब अकबर की बारी आई तो नशे में वह एक तलवार को अपने शरीर में घोंपने ही वाला था तभी अपनी स्वामी भक्ति का प्रदर्शन करते हुए राजा मान सिंह ने अपने पैर से तलवार को लात मार कर सरका दिया। अन्यथा बाबर के कुल के दीपक का वही अस्त हो गया होता। नशे में धूत अकबर ने इसे बदतमीजी समझ मान सिंह पर हमला बोल दिया और उसकी गर्दन पकड़ ली। मान सिंह के उस दिन प्राण निकल गए होते अगर मुजफ्फर ने अकबर की ऊँगली को मरोड़ कर उसे चोटिल न कर दिया होता। हालांकि कुछ दिनों में अकबर की ऊँगली पर लगी चोट ठीक हो गई। मजे अपने पूर्वजों की मर्यादा का पालन करते हुए "महान" अकबर ने यह सिद्ध कर दिया की वह तब तक पीता था जब तक उससे न संभला जाता था[vi]

खूंखार अकबर


एक युद्ध से अकबर ने लौटकर हुसैन कुली खान द्वारा लाये गए युद्ध बंधकों को सजा सुनाई। मसूद हुसैन मिर्जा जिसकी आँखेँ सील दी गई थी की आँखें खोलने का आदेश देकर अकबर साक्षात पिशाच के समान बंधकों पर टूट पड़ा। उन्हें घोड़े,गधे और कुत्तों की खाल में लपेट कर घुमाना, उन पर मरते तक अत्याचार करना, हाथियों से कुचलवाना आदि अकबर के प्रिय दंड थे। निस्संदेह उसके इन विभित्स अत्याचारों में कहीं न कहीं उसके तातार पूर्वजों का खूंखार लहू बोलता था। जो उससे निश्चित रूप "महान" सिद्ध करता था[vii]

अय्याश महान अकबर

अकबर घोर विलासी, अय्याश बादशाह था। वह सुन्दर हिन्दू युवतियों को अपनी यौनेच्छा का शिकार बनाने की जुगत में रहता था। वह एक "मीना बाजार" लगवाता था। उस बाजार में केवल महिलाओं का प्रवेश हो सकता था और केवल महिलाएं ही समान बेचती थी। अकबर छिप कर मीणा बाज़ार में आने वाली हिन्दू युवतियों पर निगाह रखता था। जिसे पसन्द करता था उसे बुलावा भेजता था। डिंगल काव्य सुकवि बीकानेर के क्षत्रिय पृथ्वीराज उन दिनों दिल्ली में रहते थे। उनकी नवविवाहिता पत्नी किरण देवी परम धार्मिक, हिन्दुत्वाभिमानी, पत्नीव्रता नारी थी। वह सौन्दर्य की साकार प्रतिमा थी। उसने अकबर के मीना बाजार के बारे में तरह-तरह की बातें सुनीं। एक दिन वह वीरांगना कटार छिपाकर मीना बाजार जा पहुंची। धूर्त अकबर पास ही में एक परदे के पीछे बैठा हुआ आने-जाने वाली युवतियों को देख रहा था। अकबर की निगाह जैसे ही किरण देवी के सौन्दर्य पर पड़ी वह पागल हो उठा। अपनी सेविका को संकेत कर बोला "किसी भी तरह इस मृगनयनी को लेकर मेरे पास आओ मुंह मांगा इनाम मिलेगा।" किरण देवी बाजार की एक आभूषण की दुकान पर खड़ी कुछ कंगन देख रही थी। अकबर की सेविका वहां पहुंची। धीरे से बोली-"इस दुकान पर साधारण कंगन हैं। चलो, मैं आपको अच्छे कंगन दिखाऊंगी।" किरण देवी उसके पीछे-पीछे चल दी। उसे एक कमरे में ले गई।

पहले से छुपा अकबर उस कमरे में आ पहुंचा। पलक झपकते ही किरण देवी सब कुछ समझ गई। बोली "ओह मैं आज दिल्ली के बादशाह के सामने खड़ी हूं।" अकबर ने मीठी मीठी बातें कर जैसे ही हिन्दू ललना का हाथ पकड़ना चाहा कि उसने सिंहनी का रूप धारण कर, उसकी टांग में ऐसी लात मारी कि वह जमीन पर आ पड़ा। किरण देवी ने अकबर की छाती पर अपना पैर रखा और कटार हाथ में लेकर दहाड़ पड़ी-"कामी आज मैं तुझे हिन्दू ललनाओं की आबरू लूटने का मजा चखाये देती हूं। तेरा पेट फाड़कर रक्तपान करूंगी।"

धूर्त अकबर पसीने से तरबतर हो उठा। हाथ जोड़कर बोला, "मुझे माफ करो, रानी। मैं भविष्य में कभी ऐसा अक्षम्य अपराध नहीं करूंगा।"

किरण देवी बोली-"बादशाह अकबर, यह ध्यान रखना कि हिन्दू नारी का सतीत्व खेलने की नहीं उसके सामने सिर झुकाने की बात है।"

अकबर किरण देवी के चरणों में पड़ा थर-थर कांप रहा था। उसने किरण देवी से अपने प्राणों की भीख मांगी और मीना बाजार को सदा के लिए बंद करना स्वीकार किया। इस प्रकार से मीना बाजार के नाटक पर सदा सदा के लिए पटाक्षेप पड़ गया था। भारत के शहंशाह अकबर हिन्दू ललना के पांव तले रुदते हुए अपनी महानता को सिद्ध कर रहा था[viii]

एक कवि ने उस स्थिति का चित्र इन शब्दों में खींचा है

सिंहनी-सी झपट, दपट चढ़ी छाती पर,

मानो शठ दानव पर दुर्गा तेजधारी है।

गर्जकर बोली दुष्ट! मीना के बाजार में मिस,

छीना अबलाओं का सतीत्व दुराचारी है।

अकबर! आज राजपूतानी से पाला पड़ा,

पाजी चालबाजी सब भूलती तिहारी है।

करले खुदा को याद भेजती यमालय को,

देख! यह प्यासी तेरे खून की कटारी है।

ऐसे महान दादा के महान पोते स्वनामधन्य अकबर “महान” के जीवन के कुछ दृश्य आपके सामने रखे। इस काम में हम किसी हिन्दुवादी इतिहासकार के प्रमाण देते तो हम पर दोषारोपण लगता कि आप अकबर “महान” से चिढ़ते हैं। हमने प्रमाण रूप में अबुल फज़ल (अकबर का खास दरबारी) की आइन ए अकबरी और अकबरनामा के आधार पर अकबर के जीवन पर सबसे ज्यादा प्रामाणिक इतिहासकार विन्सेंट स्मिथ की अंग्रेजी की किताब “अकबर- द ग्रेट मुग़ल” से सभी प्रमाण लिए हैं। यहाँ याद रहे कि ये दोनों लेखक सदा यह प्रयास करते रहे कि इन्होने अकबर की प्रशंसा में अनेक अतिश्योक्ति पूर्ण बातें लिखी और अकबर की बहुत सी कमियां छुपाई। मगर अकबर के "महान" कर्मों का प्रताप ही कुछ ऐसा था कि सच्चाई सौ परदे फाड़ कर उसी तरह सामने आ जाती है जैसे कि अँधेरे को चीर कर उजाला आ जाता हैं।

अब भी अगर कोई अकबर को महान कहना चाहेगा तो उसे संतुष्ट करने के लिए महान की परिभाषा को ही बदलना पड़ेगा।


[i] Akbar the Great Mogul- Vincent Smith page No 38-40


[ii] Ibid p.40


[iii] Ibid p.71


[iv] Ibid p.78,79


[v] Ibid p.89-91


[vi] Ibid p.89-91


[vii] Ibid p.116


[viii] Glimpses of glory by Santosh Shailja, Chap. Meena Bazar p.122-124

Saturday, October 10, 2015

India's pseudo secularism- Hindus are enemy of Hindus


















In April 2003, Late Jagjit Singh along with singer Abhijeet had met the then Dy PM LK Advani to demand ban on Pakistani singers performing in India.

"The Indian high commission in Pakistan invited me for the Republic Day celebrations in 1980. That was the only time I performed there. An ISI agent kept an eye on us and, after 15 days, we were told to pack up and leave. It was only when I was leaving Pakistan that I realized the man was a senior ISI officer -- everyone saluted him when he came to see me off," Singh added.

"While Pakistan-sponsored terrorists were gunning down innocents in Kashmir and carrying out massacres, Indian television channels were busy airing songs of Pakistani singers"
Singh added.
------------------------------------
Now it is upto all of us to decide whether to support Jagjit Singh or the Pakistani Singers.

Ref
http://www.rediff.com/movies/2003/apr/04abhi.html

Some Celebrities crib about a Problem.
Some celebrities use a problem to get Famous
But there are people who extend a helping hand without much ado.
Good job Akshay for helping our farmers.
 




 Hindu Terror !! Hindu Terror !!
Oh wait, let us first take some efforts to know the truth.

Two days ago, there was a news all over the media that a mob killed a man from peace loving community simply because he ate beef.

Turns out, the man was actually accused of stealing a cow and calf. When villagers went to check his home, they found remains of calf. This made mob angry and they beat him by which the man died.

We do not support mob justice. But we also oppose Media trail.
Dear Prestitutes, please come prepared next time



 While the bollywood is desperate to prove that the faith of India's 70% population is 'wrong number', the real life experiences of people have a different tale to tell.
Steve jobs is said to have visited India and traveled in pursuit of spiritual guidance which he did get eventually. The guidance helped shape his vision for his company, Apple- a company that revolutionised the way world looked at personal computing.
When Mark Zuckerberg was going through difficult times in early days of his company Facebook, he visited his mentor Jobs for advice. Jobs asked him to travel to India and visit the temple he used to visit. Zuckerberg did as adviced and recently, in a conversation with PM Narendra Modi, revealed how it helped him find hie way back to his mission for his company and turn it into one of the biggest success of the silicon valley.

Going to temples is a matter of faith, those who possess it in their heart find what they go looking for. Those who are full of doubt, ego or other wrong intentions, will inevitably draw blanks.

But then, ridiculing this faith? of course.. our film industry the p-intellectuals, the leftists, the anti-indic forces are at it for decades and centuries.
As a result, it takes someone from west to come and narrate their stories, or we in India continue seeing our own roots as frivolous.
That's India we live in.







In an unexpected move, UN has chosen Saudi Arabia to head Human Rights Council Panel.
Its not only funny but also a tragic move given a fact that Saudi Arabia has arguably the worst record in the world on freedoms for women, minorities and dissidents.

For instance, women in Saudi do not have driving rights and they can not go anywhere without a male guardian. In one extreme case, a teenager reported that she had been gang-raped, but because she was not with a mahram when it occurred, she was punished by the court. The victim was given more lashes than one of her alleged rapists received.

When lakhs of Syrian refugees were seeking shelter, Saudi Arabia did not let a single one to enter their nation even though the refugees were of same faith. Saudi did however offered to build mosques for refugees in Germany.

Saudi Arabia also funds Wahabism across the world to spread Islam.
And talking about Islam, Saudi Arabia is governed by Sharia Law. A single insult to Quran can lead to death sentence. And all these are the qualities which UN saw in Saudi Arabia after which they decided to make Saudi a head of Human Rights Council Panel when Saudi itself has no Human Rights for their own people.


Wednesday, October 7, 2015

टीपू सुल्तान -सत्य और असत्य ,Tipu Sultan was a islamic terrorist


टीपू सुल्तान मतान्ध एवं अत्याचारी शासक था। अकबर और औरंगज़ेब के विषय में अलग से लेख लिखा जायेगा। इस लेख का मूल उद्देश्य किसी भी मुस्लिम शासक के प्रति द्वेष भावना का प्रदर्शन करना नहीं अपितु जो जैसा है उसे वैसा बताना हैं।
भ्रान्ति नं 1. टीपु सुल्तान के राज्य में हिन्दुओं को सरकारी नौकरी में भरपूर मौका मिलता था। उदहारण के रूप में टीपू के प्रधानमंत्री का नाम पूर्णया था और वह एक ब्राह्मण था।

निवारण- टीपू सुल्तान की नौकरी में मुसलमानों को प्राथमिकता दी जाती थी। यहाँ तक कि अयोग्य होने पर भी मुसलमान होने के कारण बड़ी से बड़ी नौकरी पर एक मुसलमान को बैठाया जाता था। इससे प्रजा की दशा ओर अधिक शोचनीय हो गई। टीपू सुल्तान के मंत्रियों में केवल पुर्णिया एकमात्र हिन्दू था। मुसलमानों को गृह कर, संपत्ति कर से छूट थी। जो हिन्दू मुसलमान बन जाता था। उसे भी यह छूट प्राप्त हो जाती थी[ii]। टीपू सुल्तान की मृत्यु के पश्चात अंग्रेजों द्वारा नियुक्त किये गए मैसूर के भू राजस्व विभाग के अधिकारी मक्लॉयड भी लिखते है कि टीपू सुल्तान के राज्य में सभी अधिकारीयों के केवल मुस्लिम नाम हैं जैसे शेख अली, शेर खान, मुहम्मद सैय्यद, मीर हुसैन,सैयद पीर आदि[iii]।

भ्रान्ति नं 2- टीपू सुल्तान अनेक मंदिरों को वार्षिक अनुदान दिया करता था।

निवारण- विलियम लोगन[iv] एवं लेविस राइस[v] के अनुसार टीपू सुल्तान के पूरे राज्य में उसकी मृत्यु के समय केवल दो मंदिरों में दैनिक पूजा होती थी। उनके अनुसार टीपू सुल्तान ने दक्षिण भारत में 800 मंदिरों का विध्वंश किया था[vi]।

टीपू द्वारा मन्दिरों का विध्वंस-
दी मैसूर गज़टियर बताता है कि "टीपू ने दक्षिण भारत में आठ सौ से अधिक मन्दिर नष्ट किये थे।”

के.पी. पद्‌मानाभ मैनन[viii] और श्रीधरन मैनन[ix] द्वारा लिखित पुस्तकों में उन भग्न, नष्ट किये गये, मन्दिरों में से कुछ का वर्णन करते हैं-

“चिन्गम महीना 952 मलयालम ऐरा तदुनसार अगस्त 1786 में टीपू की फौज ने प्रसिद्ध पेरुमनम मन्दिर की मूर्तियों का ध्वंस किया और त्रिचूर ओर करवन्नूर नदी के मध्य के सभी मन्दिरों का ध्वंस कर दिया। इरिनेजालाकुडा और थिरुवांचीकुलम मन्दिरों को भी टीपू की सेना द्वारा खण्डित किया गया और नष्ट किया गया।” अन्य प्रसिद्ध मन्दिरों में से कुछ, जिन्हें लूटा गया, और नष्ट किया गया, था, वे थे- त्रिप्रंगोट, थ्रिचैम्बरम्‌, थिरुमवाया, थिरवन्नूर, कालीकट थाली, हेमम्बिका मन्दिरपालघाट का जैन मन्दिर, माम्मियूर, परम्बाताली, पेम्मायान्दु, थिरवनजीकुलम, त्रिचूर का बडक्खुमन्नाथन मन्दिर, बैलूर शिवा मन्दिर आदि।”

“टीपू की व्यक्तिगत डायरी के अनुसार चिराकुल राजा ने टीपू सेना द्वारा स्थानीय मन्दिरों को विनाश से बचाने के लिए, टीपू सुल्तान को चार लाख रुपये का सोना चाँदी देने का प्रस्ताव रखा था। किन्तु टीपू ने उत्तर दिया था, ”यदि सारी दुनिया भी मुझे दे दी जाए तो भी मैं हिन्दू मन्दिरों को ध्वंस करने से नहीं रुकूँगा [x]”


भ्रान्ति नं 3. टीपू सुल्तान के श्रंगेरी मठ के जगद्गुरू शंकराचार्य से अति घनिष्ठ मैत्री सम्बन्ध थे। दोनों के मध्य पत्र व्यवहार मिलता है।

निवारण- जहाँ तक श्रृंगेरी मठ से सम्बन्ध हैं डॉ ऍम गंगाधरन[xi] लिखते है की टीपू सुल्तान भूत प्रेत आदि में विश्वास रखता था। उसने श्रृंगेरी मठ के आचार्यों को धार्मिक अनुष्ठान करने के लिए दान भेजा जिससे उसकी सेना पर भूत- प्रेत आदि का कूप्रभाव न पड़े।

भ्रान्ति नं 4. टीपु सुल्तान प्रतिदिन नाश्ता करने के पहले रंगनाथ जी के मंदिर में जाता था जो श्रीरंगापटनम के क़िले में था।

निवारण- पि.सी.न राजा[xii] में लिखते हैं की श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर के पुजारियों द्वारा टीपू सुल्तान के लिए एक भविष्यवाणी करी थी। जिसके अनुसार अगर टीपू सुल्तान मंदिर में एक विशेष धार्मिक अनुष्ठान करवाता था जिससे उसे दक्षिण भारत का सुलतान बनने से कोई रोक नहीं सकता। अंग्रेजों से एक बार युद्ध में विजय प्राप्त होने का श्रेय टीपू ने ज्योतिषों की उस सलाह को दिया था। जिसके कारण उसे युद्ध में विजय प्राप्त हुई, इसी कारण से टीपू ने उन ज्योतिषियों को और मंदिर को ईनाम रुपी सहयोग देकर सम्मानित किया था। श्रृंगेरी मठ और श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर का नाम लेकर टीपू को उदारवादी सिद्ध करना अपने आपको धोखा देने के समान हैं।

भ्रान्ति 5. टीपू सुल्तान ने कभी हिन्दुओं को प्रताड़ित नहीं किया। कभी हिन्दुओं पर अत्याचार नहीं किया।

निवारण- टीपू सुल्तान के पत्र और तलवार पर अंकित शब्दों को पढ़कर टीपू सुल्तान का असली चेहरा सामने आ जाता हैं।

टीपू के पत्र

टीपू द्वारा लिखित कुछ पत्रों, संदेशों, और सूचनाओं, के कुछ अंश निम्नांकित हैं। विखयात इतिहासज्ञ, सरदार पाणिक्कर, ने लन्दन के इण्डिया ऑफिस लाइब्रेरी से इन सन्देशों, सूचनाओं व पत्रों के मूलों को खोजा था।

(1) अब्दुल खादर को लिखित पत्र 22 मार्च 1788

“बारह हजार से अधिक, हिन्दुओं को इ्रस्लाम से सम्मानित किया गया (धर्मान्तरित किया गया)। इनमें अनेकों नम्बूदिरी थे। इस उपलब्धि का हिन्दुओं के मध्य व्यापक प्रचार किया जाए। स्थानीय हिन्दुओं को आपके पास लाया जाए, और उन्हें इस्लाम में धर्मान्तरित किया जाए। किसी भी नम्बूदिरी को छोड़ा न जाए[xiii]।”


(2) कालीकट के अपने सेना नायक को लिखित पत्र दिनांक 14 दिसम्बर 1788

“मैं तुम्हारे पास मीर हुसैन अली के साथ अपने दो अनुयायी भेज रहा हूँ। उनके साथ तुम सभी हिन्दुओं को बन्दी बना लेना और वध कर देना…”। मेरे आदेश हैं कि बीस वर्ष से कम उम्र वालों को काराग्रह में रख लेना और शेष में से पाँच हजार का पेड़ पर लटकाकार वध कर देना।[xiv]”

(3) बदरुज़ समाँ खान को लिखित पत्र (दिनांक 19 जनवरी 1790)

“क्या तुम्हें ज्ञात नहीं है निकट समय में मैंने मलाबार में एक बड़ी विजय प्राप्त की है चार लाख से अधिक हिन्दुओं को मूसलमान बना लिया गया था। मेरा अब अति शीघ्र ही उस पानी रमन नायर की ओर अग्रसर होने का निश्चय हैं यह विचार कर कि कालान्तर में वह और उसकी प्रजा इस्लाम में धर्मान्तरित कर लिए जाएँगे, मैंने श्री रंगापटनम वापस जाने का विचार त्याग दिया है।[xv]”

टीपू ने हिन्दुओं के प्रति यातना के लिए मलाबार के विभिन्न क्षेत्रों के अपने सेना नायकों को अनेकों पत्र लिखे थे।

“जिले के प्रत्येक हिन्दू का इस्लाम में आदर (धर्मान्तरण) किया जाना चाहिए; उन्हें उनके छिपने के स्थान में खोजा जाना चाहिए; उनके इस्लाम में सर्वव्यापी धर्मान्तरण के लिए सभी मार्ग व युक्तियाँ- सत्य और असत्य, कपट और बल-सभी का प्रयोग किया जाना चाहिए।[xvi]”
मैसूर के तृतीय युद्ध (1792) के पूर्व से लेकर निरन्तर 1798 तक अफगानिस्तान के शासक, अहमदशाह अब्दाली के प्रपौत्र, जमनशाह, के साथ टीपू ने पत्र व्यवहार स्थापित कर लिया था। कबीर कौसर द्वारा लिखित, ‘हिस्ट्री ऑफ टीपू सुल्तान’ (पृ’ 141-147) में इस पत्र व्यवहार का अनुवाद हुआ है। उस पत्र व्यवहार के कुछ अंश नीचे दिये गये हैं।

टीपू के ज़मन शाह के लिए पत्र

(1) “महामहिम आपको सूचित किया गया होगा कि, मेरी महान अभिलाषा का उद्देश्य जिहाद (धर्म युद्ध) है। इस युक्ति का इस भूमि पर परिणाम यह है कि अल्लाह, इस भूमि के मध्य, मुहम्मदीय उपनिवेश के चिह्न की रक्षा करता रहता है, ‘नोआ के आर्क’ की भाँति रक्षा करता है और त्यागे हुए अविश्वासियों की बढ़ी हुई भुजाओं को काटता रहता है।”

(2) “टीपू से जमनशाह को, पत्र दिनांक शहबान का सातवाँ 1211 हिजरी (तदनुसार 5 फरवरी 1789) ”….इन परिस्थितियों में जो, पूर्व से लेकर पश्चित तक, सूर्य के स्वर्ग के केन्द्र में होने के कारण, सभी को ज्ञात हैं। मैं विचार करता हूँ कि अल्लाह और उसके पैगम्बर के आदेशों से एक मत हो हमें अपने धर्म के शत्रुओं के विरुद्ध धर्म युद्ध क्रियान्वित करने के लिए, संगठित हो जाना चाहिए। इस क्षेत्र के पन्थ के अनुयाई, शुक्रवार के दिन एक निश्चित किये हुए स्थान पर सदैव एकत्र होकर इन शब्दों में प्रार्थना करते हैं। ”हे अल्लाह! उन लोगों को, जिन्होंने पन्थ का मार्ग रोक रखा है, कत्ल कर दो। उनके पापों को लिए, उनके निश्चित दण्ड द्वारा, उनके शिरों को दण्ड दो।”

मेरा पूरा विश्वास है कि सर्वशक्तिमान अल्लाह अपने प्रियजनों के हित के लिए उनकी प्रार्थनाएं स्वीकार कर लेगा और पवित्र उद्‌देश्य की गुणवत्ता के कारण हमारे सामूहिक प्रयासों को उस उद्‌देश्य के लिए फलीभूत कर देगा। और इन शब्दों के, ”तेरी (अल्लाह की) सेनायें ही विजयी होगी”, तेरे प्रभाव से हम विजयी और सफल होंगे।

टीपू द्वारा हिन्दुओं पर किया गए अत्याचार उसकी निष्पक्ष होने की भली प्रकार से पोल खोलते हैं।

1. डॉ गंगाधरन जी ब्रिटिश कमीशन कि रिपोर्ट के आधार पर लिखते है की ज़मोरियन राजा के परिवार के सदस्यों को और अनेक नायर हिन्दुओं को टीपू द्वारा जबरदस्ती सुन्नत कर मुसलमान बना दिया गया था और गौ मांस खाने के लिए मजबूर भी किया गया था।
2. ब्रिटिश कमीशन रिपोर्ट के आधार पर टीपू सुल्तान के मालाबार हमलों 1783-1791 के समय करीब 30,000 हिन्दू नम्बूदरी मालाबार में अपनी सारी धनदौलत और घर-बार छोड़कर त्रावनकोर राज्य में आकर बस गए थे।

3. इलान्कुलम कुंजन पिल्लई लिखते है की टीपू सुल्तान के मालाबार आक्रमण के समय कोझीकोड में 7000 ब्राह्मणों के घर थे जिसमे से 2000 को टीपू ने नष्ट कर दिया था और टीपू के अत्याचार से लोग अपने अपने घरों को छोड़ कर जंगलों में भाग गए थे। टीपू ने औरतों और बच्चों तक को नहीं बक्शा था। जबरन धर्म परिवर्तन के कारण मापला मुसलमानों की संख्या में अत्यंत वृद्धि हुई जबकि हिन्दू जनसंख्या न्यून हो गई[xvii]।

4. राजा वर्मा केरल में संस्कृत साहित्य का इतिहास में मंदिरों के टूटने का अत्यंत वीभत्स विवरण करते हुए लिखते हैं की हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियों को तोड़कर व पशुओं के सर काटकर मंदिरों को अपवित्र किया जाता था[xviii]।
5. बिदुर, उत्तर कर्नाटक का शासक अयाज़ खान था जो पूर्व में कामरान नाम्बियार था, उसे हैदर अली ने इस्लाम में दीक्षित कर मुसलमान बनाया था। टीपू सुल्तान अयाज़ खान को शुरू से पसंद नहीं करता था इसलिए उसने अयाज़ पर हमला करने का मन बना लिया। जब अयाज़ खान को इसका पता चला तो वह बम्बई भाग गया. टीपू बिद्नुर आया और वहाँ की सारी जनता को इस्लाम कबूल करने पर मजबूर कर दिया था। जो न बदले उन पर भयानक अत्याचार किये गए थे। कुर्ग पर टीपू साक्षात् राक्षस बन कर टूटा था। वह करीब 10,000 हिन्दुओं को इस्लाम में जबरदस्ती परिवर्तित किया गया। कुर्ग के करीब 1000 हिन्दुओं को पकड़ कर श्री रंगपटनम के किले में बंद कर दिया गया जिन पर इस्लाम कबूल करने के लिए अत्याचार किया गया बाद में अंग्रेजों ने जब टीपू को मार डाला तब जाकर वे जेल से छुटे और फिर से हिन्दू बन गए। कुर्ग राज परिवार की एक कन्या को टीपू ने जबरन मुसलमान बना कर निकाह तक कर लिया था[xix]।
6. मुस्लिम इतिहासकार पि. स. सैयद मुहम्मद केरला मुस्लिम चरित्रम में लिखते हैं की टीपू का केरल पर आक्रमण हमें भारत पर आक्रमण करने वाले चंगेज़ खान और तिमूर लंग की याद दिलाता हैं।

इस लेख में टीपू के अत्याचारों का अत्यंत संक्षेप में विवरण दिया गया हैं।

भ्रान्ति 6. टीपू सुल्तान देश भक्त था। उसने अपने राज्य की रक्षा के लिए अपने प्राण देकर वीरगति प्राप्त की थी।

निवारण- सर्वप्रथम तो टीपू सुल्तान के पिता हैदर अली ने सर्वप्रथम तो मैसूर के वाडियार राजा को हटाकर अपनी सत्ता ग्रहण करी थी। इसलिए मैसूर को टीपू सुल्तान का राज्य कहना गलत है। दूसरे टीपू का सपना दक्षिण का औरंगज़ेब बनने का था। टीपू पादशाह बनना चाहता था। उसका स्वपन देशवासियों के लिए एक उन्नत देश का निर्माण करने नहीं अपितु दक्षिण भारत को दारुल इस्लाम में बदलना था। मालाबार जैसे सुन्दर प्रदेश का टीपू ने जिस प्रकार विनाश किया। उसे पढ़ कर कोई भी निष्पक्ष व्यक्ति कह सकता है वह एक देशभक्त नहीं अपितु एक दुर्दांत, मतान्ध,कट्टर अत्याचारी का लक्षण हैं।


सन्दर्भ सूची

[i] इतिहास के साथ यह अन्याय: प्रो बी एन पाण्डेय

[ii]MH Gopal in Tipu Sultan's Mysore: An Economic History

[iii] Tipu Sultan X-Rayed: Dr. I M Muthanna

[iv] William Logan Malabar Manual

[v] Lewis Rice Mysore Gazetteer

[vi] Colonel RD Palsokar confirms it in his writings.

[vii] Hindu Temples: What happened to them (Volumes 1 and 2), Sitaram Goel

·Indian Muslims: Who are they, K.S. Lal
·Nationalism and Distortions of Indian history, Dr. N.S. Rajaram
·Negationism in India - Concealing the Record of Islam, Dr. Koenraad Elst
·Perversion of India's Political Parlance, Sitaram Goel

[viii] हिस्ट्री ऑफ कोचीन

[ix] हिस्ट्री ऑफ केरल

[x] फ्रीडम स्ट्रगिल इन केरल:सरदार के.एम. पाणिक्कर

[xi] डॉ ऍम गंगाधरन मातृभूमि साप्ताहिक जनवरी 14-20,1990

[xii] केसरी वार्षिक 1964

[xiii] भाषा पोशनी-मलयालम जर्नल, अगस्त 1923

[xiv] उसी पुस्तक में

[xv] उसी पुस्तक में

[xvi] हिस्टौरीकल स्कैचैज ऑफ दी साउथ ऑफ इण्डिया इन एन अटेम्पट टूट्रेस दी हिस्ट्री ऑफ मैसूर- मार्क विल्क्स, खण्ड 2 पृष्ठ 120

[xvii] Elamkulam Kunjan Pillai wrote in the Mathrubhoomi Weekly of December 25, 1955

[xviii] Vatakkankoor Raja Raja Varma in his famous literary work, History of Sanskrit Literature in Kerala

[xix] पि.सी.न राजा केसरी वार्षिक 1964