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Monday, April 18, 2016

चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य



विक्रम संवत के प्रवर्तक चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य
सन् 2016 नव संवतसर 08 अप्रैल विक्रम 2073
विक्रम संवत के प्रवर्तक चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य
यो रुमदेशधिपति शकेश्वरं जित्वा गृहीत्वोज्जयिनी महाहवे |
आनीय संभ्राम्य मुमोचयत्यहो स विक्रमार्कः समस हयाचिक्र्मः||
(- 'ज्योतिविर्दाभरण ' नमक ज्योतिष ग्रन्थ २२/ १७ से .......)
यह श्लोक स्पष्टतः यह बता रहा है कि रुमदेशधिपति .. रोम देश के स्वामी शकराज ( विदेशी राजाओं को तत्कालीन भाषा में शक ही कहते थे , तब शकों के आक्रमण से भारत त्रस्त था ) को पराजित करके विक्रमादित्य ने बंदी बना लिया और उसे उज्जैनी नगर में घुमा कर छोड़ दिया था | यही वह शौर्य है जो पाश्चात्य देशों के ईसाई वर्चस्व वाले इतिहास करों को असहज कर देता है और इससे बच निकालनें के लिए वे एक ही शब्द का उपयोग करते हैं 'यह मिथक है '/ 'यह सही नहीं है'...| उनके साम्राज्य में पूछे भी कौन कि हमारी सही बातें गलत हैं तो आपकी बातें सही कैसे हैं ..? यही कारण है कि आज जो इतिहास हमारे सामनें है वह भ्रामक और झूठा होनें के साथ साथ योजना पूर्वक कमजोर किया गया इतिहास है | पाश्चत्य इतिहासकार रोम की इज्जत बचानें और अपनें को बहुत बड़ा बतानें के लिए चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य के अस्तित्व को भी नकारते हैं .., मगर हमारे देश में जो लोक कथाएं , किंवदंतियाँ और मौजूदा तत्कालीन साहित्य है वह बताता है कि श्री राम और श्री कृष्ण के बाद कोई सबसे लोकप्रिय चरित्र है तो वह सम्राट विक्रमादित्य का है ..! वे लोक नायक थे , उनके नाम से सिर्फ विक्रम संवत ही नहीं , बेताल पच्चीसी और सिंहासन बतीसी का यह नायक , भास्कर पुराण में अपने सम्पूर्ण वंश वृक्ष के साथ उपस्थित है | विक्रमादित्य परमार वंश के राजपूत थे उनका वर्णन सूर्यमल्ल मिश्रण कृत वंश भास्कर में भी है | उनके वंश के कई प्रशिद्ध राजाओं के नाम पर चले आरहे नगर व क्षेत्र आज भी हमारे बीच उपस्थित हैं ..!! जैसे देवास , इंदौर, भोपाल और बुन्देलखंड नामों का नाम करण विक्रमादित्य के ही वंशज राजाओं के नाम पर है|
दूसरी बात कई इतिहासकार चन्द्रगुप्त द्वितीय को भी विक्रमादित्य सिद्ध करनें कि कोशिस करते हैं .., यह भी गलत है , क्यों कि शकों के आक्रमण कई सौ साल तक चले हैं और उनसे अनेकों भारतीय सम्राटों ने युद्ध किये और उन्हें वापस भी खदेड़ा ..! बाद के कालखंड में किसी एक शक शाखा को चन्द्रगुप्त ने भी पराजित किया था, तब उनका सम्मान विक्रमादित्य के अलंकारं से किया गया था | क्यों कि उन्होंने मूल विक्रमादित्य जैसा कार्य कर दिखाया था | मूल या आदि विक्रमादित्य की पदवी तो शाकिर और सह्सांक थी | वे उज्जैनी के राजा थे |
विक्रम और शालिवाहन संवत
वर्तमान भारत में दो संवत प्रमुख रूप से प्रचलित हैं , विक्रम संवत और शक-शालिवाहन संवत | दोनों संवतों का सम्बन्ध शकों की पराजय से है | उज्जैन के पंवार वंशीय राजा विक्रमादित्य ने जब शकों को सिंध के बहार धकेल कर महँ विजय प्राप्त की थी , तब उन्हें शाकिर की उपाधि धारण करवाई गई थी तथा तब से ही विक्रम संवत का शुभारम्भ हुआ | विक्रमादित्य की मृत्यु के पश्चात शकों के उपद्रव पुनः प्रारंभ हो गए , तब उन्ही के प्रपोत्र राजा शालिवाहन ने शकों को पुनः पराजित किया और इस अवसर पर शालिवाहन संवत प्रारंभ हुआ , जिसे हमारी केंद्र सरकार ने राष्ट्रिय संवत मन है , जो की सौर गणना पर आधारित है |
सम्राट विक्रमादित्य
उज्जैनी के चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य के महान साम्राज्य क्षेत्र में वर्तमान भारत , चीन , नेपाल , भूटान , तिब्बत , पाकिस्तान , अफगानिस्तान, रूस , कजाकिस्तान , अरब क्षेत्र , इराक, इरान, सीरिया, टर्की , माय्मंर ,दोनों कोरिया श्री लंका इत्यादि क्षेत्र या तो सम्मिलित थे अथवा संधिकृत थे | उनका साम्राज्य सुदूर बलि दीप तक पूर्व में और सऊदी अरब तक पश्चिम में था |
"Sayar -UI -Oknu " Makhtal -e - Sultania / Library in Istanbul , Turky के अनुसार सम्राट विक्रमादित्य ने अरब देशों पर शासन किया है , अनेंकों दुर्जेय युद्ध लडे और संधियाँ की |
यह सब इस लिए हुआ कि भारत में किसी भी राजा को सामर्थ्य के अनुसार राज्य विस्तार की परम्परा थी , जो अश्वमेध यज्ञ के नाम से जानी जाती थी | उनसे पूर्व में भी अनेकों राजाओं के द्वारा यह होता रहा है ,राम युग में भी इसका वर्णन मिलता है | कई उदहारण बताते हैं कि विक्रमादित्य की अन्य राज्यों से संधियाँ मात्र कर प्राप्ति तक सिमित नहीं थी , बल्कि उन राज्यों में समाज सुव्यवस्था, शिक्षा का विस्तार , न्याय और लोक कल्याण कार्यों की प्रमुखता को भी संधिकृत किया जाता था | अरब देशों में उनकी कीर्ति इसीलिए है की उन्होंने वहां व्याप्त तत्कालीन अनाचार की समाप्त करवाया था | वर्त्तमान ज्ञात इतिहास में विक्रम जितना बड़ा साम्राज्य और इतनी विजय का कोई समसामयिक रिकार्ड सामनें आता है सिवाय ब्रिटेन की विश्व विजय के | सिकंदर जिसे कथित रूप से विश्व विजेता कहा जाता है , विक्रम के सामनें वह बहुत ही बौना था, उसने सिर्फ कई देशों को लूटा , शासन नहीं किया ..! उसे लुटेरा ही कहा जा सकता है एक शासक के जो कर्तव्य हैं उनकी पूर्ती का कोई इतिहास सिकंदर का नहीं है | जनश्रुतियां हैं की विक्रम की सेना के घोड़े एक साथ तीन समुद्रों का पानी पीते थे |
भारतीय पुरुषार्थ को निकला ...
विक्रमादित्य तो एक उदाहरण मात्र है , भारत का पुराना अतीत इसी तरह के शौर्य से भरा हुआ है | भारत पर विदेशी शासकों के द्वारा लगातार राज्य शासन के बावजूद निरंतर चले भारतीय संघर्ष के लिए येही शौर्य प्रेरणाएं जिम्मेवार हैं | भारत पर शासन कर रही ईस्ट इण्डिया कंपनी और ब्रिटिश सरकार ने उनके साथ हुए कई संघर्ष और १८५७ में हुई स्वतंत्रता क्रांति के लिए भारतीय शौर्य को ही जिम्मेवार माना और उससे भारतियों को विस्मृत करनें का कार्यक्रम संचालित हुआ ताकि भारत की संतानें पुनः आत्मोत्थान प्राप्त न कर सकें | एक सुनियोजित योजना से भारत वासियों को हतोत्साहित करने के लिए प्रेरणा खंडों को लुप्त किया गया , उन्हें इतिहास से निकाल दिया गया , उन महँ अध्यायों को मिथक या कभी अस्तित्व में नहीं रहे ..., इस तरह की भ्रामकता थोपी गई |
अरबी और यूरोपीय इतिहासकार श्री राम , श्री कृष्ण और विक्रमादित्य को इसी कारन लुप्त करते हैं कि भारत का स्वाभिमान पुनः जाग्रत न हो , उसका शौर्य और श्रेष्ठता पुनः जम्हाई न लेने लगे | इसीलिए एक जर्मन इतिहासकार पाक़ हेमर ने एक बड़ी पुस्तक ' इण्डिया - रोड टू नेशनहुड ' लिखी है , इस पुस्तक में उन्होंने लिखा है कि " जब में भारत का इतिहास पढ़ रहा हूँ लगता है कि भारत कि पिटाई का इतिहास पढ़ रहा हूँ ,- भारत के लोग पिटे ,मरे ,पारजित हुए ,यही पढ़ रहा हूँ ! इससे मुझे यह भी लगता है कि यह भारत का इतिहास नहीं है |" पाक हेमर ने आगे उम्मीद की है कि " जब कभी भारत का सही इतिहास लिखा जायेगा , तब भारत के लोगों में , भारत के युवकों में ,उसकी गरिमा की एक वारगी ( उत्प्रेरणा ) आयेगी |"
अर्थात हमारे इतिहास लेखन में योजना पूर्वक अंग्रजों नें उसकी यशश्विता को निकल बहार किया , उसमें से उसके पुरुषार्थ को निकल दिया ,उसके मर्म को निकल दिया , उसकी आत्मा को निकल दिया ..! महज एक मरे हुए शारीर की तरह मुर्दा कर हमें पारोष दिया गया है | जो की झूठ का पुलंदा मात्र है |
भारत अपने इतिहास को सही करे ..!
हाल ही में भारतीय इतिहास एवं सभ्यता के संदर्भ में अँतरराष्ट्रिय संगोष्ठी ११-१३ जनवरी २००९ को नई दिल्ली में हुई , जिसमें १५ देशों के विशेषज्ञ एकत्र हुए थे ,उँ सभी ने एक स्वर में कहा अंग्रेजों के द्वारा लिखा गया लिखाया गया इतिहास झूठा है तथा इस का पुनः लेखन होना चाहिए | इसमें हजारों वर्षो का इतिहास छूठा हुआ है , कई बातें वास्तविकता से मेल नहीं खाती हैं | उन्होंने बताया की विश्व के कई देशों ने स्वतन्त्र होनें के बाद अपने देश के इतिहास को पुनः लिखवाया है उसे सही करके व्यवस्थित किया है | भारत अपने इतिहास को सही करे ..!
बहुत कम है भारतीय इतिहास ....
भारत के नई दिल्ली स्थित संसद भवन ,विश्व का ख्याति प्राप्त विशाल राज प्रशाद है , जब इसे बनाए की योजना बन रही थी ; तब ब्रिटिश सरकार ने एक गुलाम देश में इतनें बड़े राज प्रशाद निर्माण के औचित्य पर प्रश्न खड़ा किया था| इतने विशाल और भव्य निर्माण की आवश्यकता क्या है ? तब ब्रिटिश सरकार को बताया गया कि ; भारत कोई छोटा मोटा देश नहीं है ; यहाँ सैंकड़ों बड़ी बड़ी रियासतें हैं और उनके राज प्रशाद भी बहुत बड़े बड़े तथा विशालतम हैं..! उनकी भव्यता और क्षेत्रफल भी असामान्य रूप से विशालतम हैं ! उनको नियंत्रित करने वाला राज प्रशाद कम से कम इतना बड़ा तो होना चाहिए कि वह उनसे श्रेष्ठ न सही तो कमसे कम सम कक्ष तो हो ..! इसी तथ्य के आधार पर भारतीय संसद भवन के निर्माण कि स्वीकृति मिली !
अर्थात जिस देश में लगातार हजारों राजाओं का राज्य एक साथ चला हो , उस देश का इतिहास महज चंद अध्यायों में पूरा हो गया ..? क्षेत्रफल , जनसँख्या और गुजरे विशाल अतीत के आधार पर यह इतिहास महज राई भर भी नहीं है !न ही एतिहासिक तथ्य हैं , न हीं स्वर्णिम अध्याय ,न हीं शौर्य गाथाएं ...! सब कुछ जो भारत के मस्तक को ऊँचा उठता हो वह गायव कर दिया गया ..!! नष्ट कर दिया गया !!
इस्लाम के आक्रमण ने लिखित इतिहास जलाये यह एक सच और निर्विवाद तथ्य है कि इस्लाम ने जन्मते ही विश्व विजय कि आंधी चलाई उससे अक तरफ यूरोप और दूसरी तरफ पुर्व एसिया गंभीरतम प्रभावित हुआ , जो भी पुराना लिखा था उसे जलाया गया ! बड़े बड़े पुस्तकालय नष्ट कर दिए गए | मगर जन श्रुतियों में इतिहास का बहुत बड़ा हिस्सा बचा हुआ था , जागा परम्परा ने भी इतिहास को बचा कर रखा था | मगर इतिहास संकलन में इन पर गौर ही नहीं किया गया | राजपूताना का इतिहास लिखते हुए कर्नल टाड कहते हैं कि " जब से भारत पर महमूद ( गजनी ) द्वारा आक्रमण होना प्रारम्भ हुआ , तब से मुस्लिम शासकों नें जो निष्ठुरता ; धर्मान्धता दिखाई ,उसको नजर में रखनें पर , बिलकुल आश्चर्य नहीं होता कि भारत में इतिहास के ग्रन्थ बच नहीं पाए ! इस पर से यह असंभवनीय अनुमान निकलना भी गलत है कि हिन्दू लोग इतिहास लिखना जानते नहीं थे | अन्य विकसित देशों में इतिहास लेखन कि प्रवृति प्राचीन कल से पाई जाती थी ,तो क्या अति विकसित हिन्दू राष्ट्र में वह नहीं होगी ?" उन्होंने आगे लिखा है कि "जिन्होनें ज्योतिष - गणित आदि श्रम साध्य शास्त्र सूक्ष्मता और परिपूर्णता के साथ अपनाये | वास्तुकला ,शिल्प ,काव्य ,गायन आदि कलाओं को जन्म दिया ,इतना ही नहीं ; उन कलाओं को / विद्याओं को नियम बध्दता ढांचे में ढाल कर उसके शास्त्र शुध्द अध्ययन कि पध्दति सामनें रखी , उन्हें क्या राजाओं का चरित्र और उनके शासनकाल में घटित प्रसंगों को लिखने का मामूली काम करना न आता ..? "
हर ओर विक्रमादित्य ...भारतीय और सम्बध्द विदेशी इतिहास एवं साहित्य के पृष्ठों पर , भारतीय संवत , लोकप्रिय कथाओं ,ब्राह्मण - बौध्द और जैन साहित्य तथा जन श्रुतियों , अभिलेख (एपिग्राफी ) , मौद्रिक ( न्युमीस्टेटिक्स ) तथा मालव और शकों की संघर्ष गाथा आदि में उपलब्ध विभिन्न स्त्रोतों तथा उनमें निहित साक्ष्यों का परिक्षण सिध्द करता है कि "ईस्वी पूर्व प्रथम शताब्दी में सम्राट विक्रमादित्य का अस्तित्व था , वे मालव गणराज्य के प्रमुख थे ,उनकी राजधानी उज्जैनी थी , उन्होंने मालवा को शकों के अधिपत्य से मुक्त करवाया था और इसी स्मृति में चलाया संवत विक्रम संवत कहलाता है | जो प्रारंभ में कृत संवत , बाद में मालव संवत ,सह्सांक संवत और अंत में विक्रम संवत के नाम से स्थायी रूप से विख्यात हुआ | "
धर्म युध्द जैसा विरोध क्यों ....
डा. राजबली पाण्डेय जो काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर तथा पुरातत्व विभाग के थे , उन्होंने एक टिप्पणी में कहा कि पाश्चात्य इतिहासकार और उनके भारतीय अनुचर विक्रमादित्य के नाम को सुन कर इस तरह से भड़क उठातें हैं कि जैसे कोई धर्मयुध्द का विषय हो ! वे इतनें दृढ प्रतिज्ञ हो जाते हैं कि सत्य के प्रकाशमान तथ्यों को भी देखना और सुनना नहीं चाहते | डा.पाण्डेय ने विक्रमादित्य पर अंग्रेजी में कई खोज परख लेख लिखे, जिस पर उन्हें राष्ट्रिय स्तर के सम्मान से भी पुरुस्कृत किया गया तथा एक अनुसन्धान परक पुस्तक " विक्रमादित्य" लिखकर यह साबित किया है कि विक्रमादित्य न केवल उज्जैन के सम्राट थे अपितु वे एशिया महाद्वीप के एक बड़े भूभाग के विजेता और शासक थे|
भविष्य पुराण में संवत प्रवर्तक
भविष्य पुराण में संवत प्रवर्तक विक्रमादित्य और संवत प्रवर्तक शालिवाहन का जो संक्षिप्त वर्णन मिलाता है , वह इस प्रकार से है "अग्निवंश के राजा अम्बावती नामक पूरी ( कालांतर में यही स्थान उज्जैन कहलाया ) में राज्य करते थे | उनमें एक राजा प्रमर (परमार) हुए , उनके पुत्र महामर (महमद) ने तीन वर्षें तक , उसके पुत्र देवासि ने भी तीन वर्षों तक ,उसके पुत्र देवदूत ने भी तीन वर्षों तक , उनके पुत्र गंधर्वसेन ने पचास वर्षों तक, राज्य कर वानप्रस्थ लिया | वन में उनके पुत्र विक्रमादित्य हुआ उसने सौ वर्षों तक , विक्रमादित्य के पुत्र देवभक्त ने दस वर्षों तक ,देव भक्त को सकों ने पराजित कर मार दिया , देवभक्त का पुत्र शालिवाहन हुआ और उसनें शकों को फिरसे जीत कर साथ वर्षों तक राज किया |" इसी पुराण में इस वंश के अन्य शासक शालिवर्ध्दन,शकहन्ता , सुहोत्र, हविहोत्र,हविहोत्र के पुत्र इन्द्रपाल ने इन्द्रावती के किनारे नया नगर वसाया (जो इंदौर के नाम से प्रशिध्द है ) , माल्यवान ने मलयवती वसाई, शंका दत्त , भौमराज , वत्सराज , भोजराज , शंभूदत्त , बिन्दुपाल ने बिंदु खंड ( बुन्देल खंड )का निर्माण किया | उसके वंश में राजपाल , महीनर , सोम वर्मा , काम वर्मा , भूमिपाल , रंगपाल , कल्प सिंह हुआ और उसने कलाप नगर वसाया ( कालपी ) उसके पुत्र गंगा सिंह कुरु क्षेत्र में निः संतान मरे गए |
४०० वर्षों का लुप्त इतिहास ...
ब्रिटश इतिहासकार स्मिथ आदि ने आंध्र राजाओं से लेकर हर्षवर्धन के राज्यकाल में कोई एतिहासिक सूत्र नहीं देखते | प्रायः चार सौ वर्षों के इतिहास को घोर अंधकार मय मानते हैं | पर भविष्य पुराण में जो वंश वृक्ष निर्दिष्ट हुआ है , यह उन्ही चार सौ वर्षों के लुप्त कल खंड से सम्बध्द है | इतिहासकारों को इससे लाभ उठाना चाहिए |
भारत में विक्रमादित्य अत्यन्त प्रसिध्द , न्याय प्रिय , दानी , परोपकारी और सर्वांग सदाचारी राजा हुए हैं | स्कन्ध पुराण और भविष्य पुराण ,कथा सप्तशती , वृहत्कथा और द्वात्रिश्न्त्युत्तालिका,सिंहासन बत्तीसी , कथा सरितसागर , पुरुष परीक्षा , शनिवार व्रत की कथा आदि ग्रन्थों में इनका चरित्र आया है | बूंदी के सुप्रशिध्द इतिहासकार सूर्यमल्ल मिश्रण कृत वंश भास्कर में परमार वंशीय राजपूतों का सजीव वर्णन मिलता है इसी में वे लिखते हैं "परमार वंश में राजा गंधर्वसेन से भर्तहरी और विक्रमादित्य नामक तेजस्वी पुत्र हुए, जिसमें विक्रमादित्य नें धर्मराज युधिष्ठर के कंधे से संवत का जुड़ा उतार कर अपने कंधे पर रखा | कलिकाल को अंकित कर समय का सुव्यवस्थित गणितीय विभाजन का सहारा लेकर विक्रम संवत चलाया |" | वीर सावरकर ने इस संदर्भ में लिखा है कि एक इरानी जनश्रुति है कि ईरान के राजा मित्रडोट्स जो तानाशाह हो अत्याचारी हो गया था का वध विक्रम दित्य ने किया था और उस महान विजय के कारण विक्रम संवत प्रारम्भ हुआ |
संवत कौन प्रारंभ कर सकता है
यूं तो अनेकानेक संवतों का जिक्र आता है और हर संवत भारत में चैत्र प्रतिपदा से ही प्रारम्भ होता है | मगर अपने नाम से संवत हर कोई नहीं चला सकता , स्वंय के नाम से संवत चलने के लिए यह जरुरी है कि उस राजा के राज्य में कोई भी व्यक्ति / प्रजा कर्जदार नहीं हो ! इसके लिए राजा अपना कर्ज तो माफ़ करता ही था तथा जनता को कर्ज देने वाले साहूकारों का कर्ज भी राज कोष से चुका कर जनता को वास्तविक कर्ज मुक्ति देता था | अर्थात संवत नामकरण को भी लोक कल्याण से जोड़ा गया था ताकि आम जनता का परोपकार करने वाला ही अपना संवत चला सके | सुप्रशिध्द इतिहासकार सूर्यमल्ल मिश्रण कि अभिव्यक्ति से तो यही लगता है कि सम्राट धर्मराज युधिष्ठर के पश्चात विक्रमादित्य ही वे राजा हुए जिन्होनें जनता का कर्ज (जुड़ा ) अपने कंधे पर लिया | इसी कर्ण उनके द्वारा प्रवर्तित संवत सर्वस्वीकार्य हुआ |
४००० वर्ष पुरानी उज्जनी ...अवंतिका के नाम से सुप्रसिध्द यह नगर श्री कृष्ण के बाल्यकाल का शिक्षण स्थल रहा है , संदीपन आश्रम यहीं है जिसमें श्री कृष्ण, बलराम और सुदामा का शिक्षण हुआ था | अर्थात आज से कमसे कम पांच हजार वर्षों से अधिक पुरानी यह नगरी है | दूसरी प्रमुख बात यह है कि अग्निवंश के परमार राजाओ कि एक शाखा चन्द्र प्र्ध्दोत नामक सम्राट ईस्वी सन के ६०० वर्ष पूर्व सत्तारूढ़ हुआ अर्थात लगभग २६०० वर्ष पूर्व और उसके वंशजों नें तीसरी शताव्दी तक राज्य किया | इसका अर्थ यह हुआ कि ९०० वर्षो तक परमार राजाओं का मालवा पर शासन रहा | तीसरी बात यह है कि कार्बन डेटिंग पध्दति से उज्जेन नगर कि आयु ईस्वी सन से २००० वर्ष पुरानी सिध्द हुई है , इसका अर्थ हुआ कि उज्जेन नगर का अस्तित्व कम से कम ४००० वर्ष पूर्व का है | इन सभी बातों से सवित होता है कि विक्रमादित्य पर संदेह गलत है |
नवरत्न ...
सम्राट विक्रमादित्य कि राज सभा में नवरत्न थे .., ये नो व्यक्ति तत्कालीन विषय विशेषज्ञ थे | संस्कृत काव्य और नाटकों के लिए विश्व प्रशिध्द कालिदास , शब्दकोष (डिक्सनरी) के निर्माता अमर सिंह , ज्योतिष में सूर्य सिध्दांत के प्रणेता तथा उस युग के प्रमुख ज्योतिषी वराह मिहिर थे, जिन्होंने विक्रमादित्य की बेटे की मौत की भविष्यवाणी की थी | आयुर्वेद के महान वैध धन्वन्तरी , घटकर्पर , महान कूटनीतिज्ञ बररुची जैन , बेताल भट्ट , संकु और क्षपनक आदि द्विव्य विभूतियाँ थीं | बाद में अनेक राजाओं ने इसका अनुशरण कर विक्रमादित्य पदवी धारण की एवं नवरतनों को राजसभा में स्थान दिया | इसी वंश के राजा भोज से लेकर अकबर तक की राजसभा में नवरतनों का जिक्र है |
वेतालभट्ट एक धर्माचार्य थे. माना जाता है कि उन्होंने विक्रमादित्य को सोलह छंदों की रचना "नीति -प्रदीप" (Niti-pradīpa सचमुच "आचरण का दीया") का श्रेय दिया है.
विक्रमार्कस्य आस्थाने नवरत्नानि
धन्वन्तरिः क्षपणको मरसिंह शंकू वेताळभट्ट घट कर्पर कालिदासाः। ख्यातो वराह मिहिरो नृपते स्सभायां रत्नानि वै वररुचि र्नव विक्रमस्य।।

Friday, February 20, 2015

EMPEROR VIKRAMADITYA ,विक्रमादित्य

'The kingdom of vikramaditya
EMPEROR VIKRAMADITYA (Sanskrit: विक्रमादित्य) (102 BCE to 15 CE) was a legendary emperor of Ujjain, India, famed for his wisdom, valour and magnanimity. Vikramaditya lived in the 1st century BCE. According to the Katha-sarita-sagara account, he was the son of Ujjain's King Mahendraditya of the Paramara dynasty.
Nine Gems of his Cabinet
1. Kalidas: Author of the great epic, ‘Shakuntala’, great poet, dramatist and the most prominent scholar of Sanskrit language.
2. Amarnath: Author of ‘Sanskrit Amarkosh’
3. Shapanak: Prominent Astrologist who had achieved mastery in Astrology.
4. Dhanvantri: A Doctor who had achieved mastery in the science of medicine; one who was an expert in diagnosis and one who could prescribe different treatments for a single disease.
5. Varruchi: Expert Linguist and an expert in Grammar
6. Varahmihir: Author of World famous epic, ‘Bruhatsahita’ and mastery in Astrology.
7. Ghatakpar: Expert in sculpture and architecture.
8. Shanku: Expert in Geography (This name is even well known today in the field of geography)
9. Vetalbhadra : Expert in black magic & tantric sciences
This is an example of how the Bharatiya rule was complete in all respects with peace and prosperity existing everywhere in the kingdom when there were no external attacks.'The kingdom of vikramaditya
EMPEROR VIKRAMADITYA (Sanskrit: विक्रमादित्य) (102 BCE to 15 CE) was a legendary emperor of Ujjain, India, famed for his wisdom, valour and magnanimity. Vikramaditya lived in the 1st century BCE. According to the Katha-sarita-sagara account, he was the son of Ujjain's King Mahendraditya of the Paramara dynasty.
Nine Gems of his Cabinet
1. Kalidas: Author of the great epic, ‘Shakuntala’, great poet, dramatist and the most prominent scholar of Sanskr...it language.
2. Amarnath: Author of ‘Sanskrit Amarkosh’
3. Shapanak: Prominent Astrologist who had achieved mastery in Astrology.
4. Dhanvantri: A Doctor who had achieved mastery in the science of medicine; one who was an expert in diagnosis and one who could prescribe different treatments for a single disease.
5. Varruchi: Expert Linguist and an expert in Grammar
6. Varahmihir: Author of World famous epic, ‘Bruhatsahita’ and mastery in Astrology.
7. Ghatakpar: Expert in sculpture and architecture.
8. Shanku: Expert in Geography (This name is even well known today in the field of geography)
9. Vetalbhadra : Expert in black magic & tantric sciences
This is an example of how the Bharatiya rule was complete in all respects with peace and prosperity existing everywhere in the kingdom when there were no external attacks.