Showing posts with label Bijapur and 7 kabra. Show all posts
Showing posts with label Bijapur and 7 kabra. Show all posts

Wednesday, February 17, 2016

बीजापुर स्थित ""सात कबर"" और उनका रहस्य ?




इस सवाल का जबाब जानने से पहले  ये बात अच्छी तरह से समझ लें कि .. जलन, असुरक्षा और अविश्वास.. से इस्लामी शासनकाल के पन्ने रंगे पड़े हैं. जहाँ भाई-भाई, और पिता-पुत्र में सत्ता के लिये खूनी रंजिशें की गईं!

लेकिन , क्या आप ये सोच भी सकते हैं कि. कोई शासक अपनी 63 पत्नियों को सिर्फ़ इसलिये मार डाले कि कहीं उसके मरने के बाद वे दोबारा शादी न कर लें है ना ये .एक बेहद आश्चर्यजनक और चौंकाने वाली बात ?

परन्तु जहाँ इस्लाम और उसके सरपरस्त मुस्लिम मौजूद हों. वहाँ कुछ भी असम्भव नहीं है!

यूँ तो कर्नाटक के बीजापुर में गोल गुम्बज और इब्राहीम रोज़ा जैसी कई ऐतिहासिक इमारतें और दर्शनीय स्थल हैं लेकिन, एक स्थान ऐसा भी है जहाँ पर्यटकों को ले जाकर इस्लामी आक्रांताओं के कई काले कारनामों में से एक के दर्शन करवाये जा सकते हैं।

परन्तु बीजापुर-अठानी रोड पर लगभग 5 किलोमीटर दूर एक उजाड़ स्थल पर पाँच एकड़ में फ़ैली यह ऐतिहासिक कत्लगाह “सात कबर” (साठ कब्र का अपभ्रंश) एक ऐसी ही एक जगह है..।

क्योंकि इस स्थान पर आदिलशाही सल्तनत के एक सेनापति अफ़ज़ल खान द्वारा अपनी 63 पत्नियों की हत्या के बाद बनाई गई कब्रें हैं।

इस खण्डहर में काले पत्थर के चबूतरे पर 63 कब्रें बनाई गई हैं और, आज की तारीख में इतना समय गुज़र जाने के बाद भी जीर्ण-शीर्ण खण्डहर अवस्था में यह बावड़ी और कब्रें काफ़ी ठीक-ठाक हालत में हैं।

यहाँ पहली दो लाइनों में 7-7 कब्रें, तीसरी लाइन में 5 कब्रें तथा आखिरी की चारों लाइनों में 11 कब्रें बनी हुई दिखाई देती हैं और , वहीं एक बड़ी "आर्च(Arch) (मेहराब) भी बनाई गई है!

ऐसा क्यों और किस गणित के आधार पर किया गया ये तो वो अफ़ज़ल खान ही बता सकता है ।
साथ ही अफ़ज़ल खान ने खुद अपने लिये भी एक कब्र यहीं पहले से बनवाकर रखी थी. परन्तु उसके शव को यहाँ तक नहीं लाया जा सका और मौत के बाद प्रतापगढ़ के किले में ही उसे दफना दिया गया था, जिससे यह साबित होता है कि.वीर शिवाजी के हाथों अपनी मौत को लेकर वो अफजल खान नमक सूअर बेहद आश्वस्त था,!

भला ऐसी मानसिकता में वह वीर शिवाजी से युद्ध कैसे लड़ता????

खैर  अंततः , महान मराठा योद्धा शिवाजी ने इस सूअर अफ़ज़ल खान का वध .प्रतापगढ़ के किले में 1659 में कर ही दिया ।

इन सब बातों में सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि.वामपंथियों और कांग्रेसियों ने .हमारे इतिहास में मुगल बादशाहों के अच्छे-अच्छे, नर्म-नर्म, मुलायम-मुलायम किस्से-कहानी ही भर रखे हैं, जिनके द्वारा उन्हें सतत महान, सदभावनापूर्ण और दयालु(?) बताया है, लेकिन इस प्रकार 63 पत्नियों की हत्या वाली बातें जानबूझकर छुपाकर रखी गई हैं.।

यही कारण है कि.आज बीजापुर में इस स्थान तक पहुँचने के लिये ऊबड़-खाबड़ सड़कों से होकर जाना पड़ता है. और, वहाँ अधिकतर लोगों को इसके बारे में विस्तार से कुछ पता नहीं है (साठ कब्र का नाम भी अपभ्रंश होते-होते "सात-कबर" हो गया),

खैर जो भी हो लेकिन , है तो यह एक ऐतिहासिक स्थल ही, सरकार को इस तरफ़ ध्यान देना चाहिये और इसे एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करना चाहिये ताकि , लोगों को मुगलकाल के राजाओं द्वारा की गई क्रूरता का पता लग सके ।

सिर्फ ये ही नहीं बल्कि. खोजबीन करके भारत के खूनी इतिहास में से मुगल बादशाहों द्वारा किये गये सभी अत्याचारों को बाकायदा पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाना चाहिए ताकि, कम से कम अगली पीढ़ी को उनके कारनामों के बारे में तो पता लग सके ,वरना ,मैकाले-मार्क्स के प्रभाव में वे तो यही सोचते रहेंगे कि 

अकबर एक दयालु बादशाह था (भले ही उसने सैकड़ों हिन्दुओं का कत्ल किया हो),

और, शाहजहाँ अपनी बेगम से बहुत प्यार करता था ( भले ही मुमताज़ ने 14 बच्चे पैदा किये और उसकी मौत भी एक डिलेवरी के दौरान ही हुई, ऐसा भयानक प्यार..????

या, औरंगज़ेब ने जज़िया खत्म किया और वह टोपियाँ सिलकर खुद का खर्च निकालता था (भले ही उसने हजारों मन्दिर तुड़वाये हों, बेटी ज़ेबुन्निसा शायर और पेंटर थी इसलिये उससे नफ़रत करता था, भाई दाराशिकोह हिन्दू धर्म की ओर झुकाव रखने लगा तो उसे मरवा दिया… इतना महान मुगल शासक?

तात्पर्य यह कि .अब इस दयालु मुगल शासक वाले वामपंथी मिथक को तोड़ना बहुत ज़रूरी है.. और, बच्चों को उनके व्यक्तित्व के उचित विकास के लिये सही इतिहास बताना ही चाहिये… वरना उन्हें 63 पत्नियों के हत्यारे के बारे में कैसे पता चलेगा ??.

इसीलिए, बड़े शहरों की कूल डूड हिन्दू युवतियाँ किसी भी मुस्लिम से दोस्ती अथवा प्यार की पींगें बढ़ने से पहले हजार बार जरुर सोच लें कि बाबर और चंगेज खां के वंशजों से निकटता बढ़ाने के क्या परिणाम हो सकते हैं!