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Friday, February 12, 2016

JNU - a den of ISI , CIA, Marxists, anti india activity center

Binayak Sen was a Professor at the Centre for Social Medicine and Community Health at NU.  On May 14, 2007, Dr Sen, was arrested under the provisions of the Chhattisgarh Special Public Security Act, 2005, (CSPSA) and the Unlawful Activities (Prevention) Act, 1967. The allegations claimed that he had acted as a courier for a Maoist leader Narayan Sanyal lodged in the Raipur Jail and then absconded. 

The charges against him were as follows:
a) Treason
b) Criminal Conspiracy
c) Sedition, anti-national activities and making war against the nation
d) Knowingly using the proceeds of terrorism
e) Links with the Maoists
DIVIDE EVERY WHICH WAY is a method used in the JNU campus.  

The latest example is foreign forces want NE Christian students also to behave like Kashmiri Muslim students . The Commie professors and students have NO fear of Indian law , as they feel that foreign forces will handle everything using their contacts with politicians, police and “collegium” judiciary.

Recently Baba Ramdev was insulted by the JNU Commie students .

Binayak Sen is now the national Vice-President of the People's Union for Civil Liberties (PUCL).  He is a member of the policy group for Police Reforms of Aam Aadmi Party and he has the support of BIG BROTHER who uses his DOUBLE AGENT Noam Chomsky.

The whole of India knows that JNU is known to be a red bastion who cultivates  Communism and lack of attachment to the motherland and Indian culture .  A lot of JNU students are in the campus and hostels for years.  Some of them continue even after double PHD.  The professors with Communist leanings sponsor them and requiRe them to be ANTI-HINDU . The main stream media sponsors these anti-national professors .  These professors live far beyond their month end salaries.  The students say that living is cheap inside the hostels .  The real reason is that they get enormous amount of foreign money MONTHLY from Trojan Horse NGOs and they make more money inside the campus than taking up a job outside – and a lot of USEFUL IDIOTS are hooked on to expensive cocaine and synthetic drugs that they really cant leave ”
For the first year students to get a hostel is an uphill task unless you are on a Communist Students Union recommendation .  Even to get a cheap residence / cheap transport outside the campus , it is easy if you are a Communist Student “

It rang a bell , because I know for sure from another JNU student , that this Commie sponsoring link was broken for a while due to Lyngdoh commission stopping Students Union activities in JNU.


“ Commie male students get enough good quality liquor from Trojan Horse NGOs – the BAR used to be at the  Parthasarathy Hill rock , a water source area etc.   Commie student activists are provided “female services” on weekends outside the campus FREE. The more you distort ancient Indian history , the more you ridicule Hindu culture the better the FREE perks , all from these NGOs.  The professors know that drugs are almost in every Commie students rooms , but they do nothing.  Even girls roll and smoke drugs and have sex with boys. The Maoist-Naxalites students’ wings is AISA (All India Student Associations).  AISA cry is, ‘Naxalbari lal Salam’ (Naxalbari Red Salute) . This cry is often heard even in girl student hostels"




ajitvadakayil

Sunday, November 30, 2014

ANTI HINDU PROPAGANDA- TRUTH IS HERE.

Photo: =============झूठ का पर्दाफाश============
====हिंदू विरोधियों द्वारा वेदों के श्लोकों का गलत प्रचार===
“ओम नमो भगवते वासुदेवायः”

प्रिय भक्तों जैसा कि हम सब जानते हैं विगत समय में कई हिंदू विरोधी शक्तियों द्वारा सनातन धर्म की कई ग्रंथों के कुछ श्लोकों का गलत अनुवाद करके प्रचारित किया जा रहा है| उन हिंदू विरोधियों में अति धूर्त और झूठ बोलने में माहिर जाकिर नाईक सबसे आगे है| जाकिर नाईक ने झूठ बोलने के कई नए तरीकों की खोज की है | वह विस्तृत फैले कई ग्रंथों से कुछ ऐसे शब्दों को चुनता है जिसका अरब, इस्लाम या उनके पैगम्बर से कोई भी जुड़े किसी भी शब्द, घटना या अर्थ से समानता हो जाये | फिर वह उन शब्दों का अपनी सुविधानुसार अर्थ निकालकर लोगों के सामने झूठ रख देता है| चूँकि वेद और दूसरे सनातन ग्रन्थ इतने विस्तृत हैं और कई लोग अपने साधारण जीवन में वेद नहीं पढते इसलिए किसी साधरण व्यक्ति के लिए उन झूठ को पकड़ना एकदम से संभव नहीं होता |दूसरी बात इन्टरनेट पर सनातन ग्रन्थ बहुतायत में उपलब्ध नहीं है उनके झूठ को पकडना और भी कठिन हो जाता है|

जाकिर नाईक ने सिर्फ झूठ ही नहीं बोला उसने यह पूरा प्लान बनाकर यह निश्चित किया किया कि उसका झूठ अधिक से अधिक लोगों तक पहुँच सके| वह हजारों लोगों की सभा में बेधड़क वेद के श्लोकों का नंबर पढता है और अपनी सुविधा के अनुसार अर्थ बताकर लोगों को प्रभित करता है| इस प्रकार उसके दो लक्ष पुरे होतें हैं, एक तो यह को उसका झूठ अधिक लोगों तक पहुंचाता है, दूसरा यह कि वह प्रसिद्ध होता है| उसके झूठ के विडियो youtube पर हर जगह पाए जा सकते हैं| पुस्तकों के रूप में भी उसके भाषण सब जगह उपलब्ध हैं|
कई लोगों ने उसके झूठ को उजागर किया है हमने भी उसके कई झूठ को इस पेज पर पोस्ट किया है| इस पोस्ट में भी हम उसके एक झूठ को उजागर करेंगे:

झूठ : वेद में मोहम्मद की भविष्यवाणी की गयी है
---------------------------------------------------------
जाकिर नाईक ने कई प्रकार के झूठ बोले हैं लेकिन उनमे से एक प्रमुख यह कि वेदों और पुरानों में मोहम्मद की भविष्यवाणी की गयी है|हजारों लोगों के सामने कई बार उसने इस बात को दुहराया है|वेद के कई श्लोकों को वह लोगों के सामने रखकर ऐसा दवा करता है, उन वेद श्लोकों में से कुछ निम्न हैं

ऋग वेद
---------- 
Rig Veda: (1/13/3), (1/18/9), (1/106/4), (1/142/3), (2/3/2), (5/5/2), (7/2/2), (10/64/3) and (10/182/2),(8/1/1)

Samveda :2.6.8

Atharva veda: 10.2.33

हम ऊपर के सभी श्लोकों का बारी बारी से विवेचन करेंगे, चूँकि झूठ बोले गए श्लोकों की संख्या बहुत ज्यादा है इसलिए सबको एक ही पोस्ट में नहीं लिखा जा सकता | इस पोस्ट में रिग वेद (1/13/3) का निरीक्षण करेंगे|

दावा
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यह है ऋग वेद 1/13/3 का श्लोक

नराशंसमिह प्रियमस्मिन यज्ञ उप ह्वये | मधुजिह्वंहविष्कृतम् || 3||

जाकिर नाईक का यह दावा है कि इस श्लोक में मोहम्मद की भविष्य वाणी की गयी है| उसका यह दावा श्लोक में उपस्थित एक शब्द “नराशंस” के आधार पर है, उसका यह कहना है कि नराशंस का अर्थ “मोहम्मद” होता है और इसलिए यह निष्कर्ष निकलता हि कि इस श्लोक में मोहम्मद की भविष्यवाणी की गयी है| यह सरासर झूठ और हास्यापद है|

नराशंस का अर्थ क्या होता है?
----------------------------------
यह कहना कि नराशंस का अर्थ “मोहम्मद” होता है एक सरासर झूठ है|
नराशंस कर अर्थ निम्न होता है
नराशंस : पूजनीय, पूजने योग्य आदि(Praiseworthy, worthy of worship etc) |

यह एक विशेष युक्त समास है, जो दो शब्दों से बना है
नराशंस = नर + आशंस = नरो(मनुष्यों) के पूजनीय हैं जो है जो अर्थात = देवता

कुछ जो हिंदी या संस्कृत व्याकरण जानते हैं बहुब्रीही समास से अवश्य परिचित होंगे और इस प्रकार के कई शब्दों को भी जानते होंगे, मैं कुछ उदहारण दे देता हूँ(याद दिलाने के लिए):

चंद्रशेखर=चंद्र + शेखर = चन्द्रमा है जिसके सिर पर अर्थात = शिव
दशानन = दश + आनन = दस मुह हैं जिसके अर्थात = रावण
लम्बोदर = लम्ब + उदर = लंबा हा उदर जिसका अर्थात = गणेश
इसी प्रकार नराशंस कर अर्थ निकालता है , नरों के पूजनीय हैं जो अर्थात देवता|

नराशंस संस्कृत का एक साधारण शब्द है जिसका प्रयोग किसी के लिए आदर, पूजनीय भाव प्रदर्शित करने के लिए होता है| हिंदी में यह शब्द “पूजनीय” या “आदरणीय” इतना आम है कि इसका प्रयोग बच्चों के द्वार लिखे गए दरखास्त में भी होता है| बड़ों के लिए, शिक्षकों के लिए, और यहाँ तक के नेताओं के लिए भी इन शब्दों का प्रयोग होता है| “पूजनीय”, “आदरणीय” व्याकरण के हिसाब से विशेषण या समास हो सकते हैं जिसका प्रयोग किसी के लिए आदर का भाव प्रकट करने के लिए होता है | यह स्वाभाविक है कि हम सभी देवताओं के नाम आदर से लेते हैं और विभिन्न आदरसूचक शब्दों का प्रयोग करते हैं| यह सिर्फ वेद में ही नहीं साधारण बोलचाल में भी हम आदरणीय मनुष्यों के लिए भी ऐसे आदरसूचक शब्दों का प्रयोग करंते हैं|

इस प्रकार के शब्द का प्रयोग सभी भाषाओँ में अपने अपने हिसाब से विभिन्न व्यक्तियों या उचित आराध्य के लिए होता होगा | इस शब्द का प्रयोग किसके लिए हो रहा है उसका निर्धारण वाक्य में उल्लेखित नाम को जानकार ही किया जा सकता है या उस भाषा के अंदर निहित व्याकरण के नियम को जानकर| 

नराशंस एक विशेषण और समास है जिसका प्रयोग वेद में देवताओं की प्रति आदर का भाव प्रकट करने के लिए होता है| किस किस देवता के लिए यह शब्द प्रयोग हो रहा है वह वाक्य में आगे या पीछे वर्णित देवता के नाम को देखकर ही बताया जा सकता है| कोई यह कह दे कि नराशंस का अर्थ “मोहम्मद” या “इसा मसीह” या “गौतम बुद्ध “ है यह सरासर गलत है|  

(इस शब्द के सम्बंधित व्याकरण का विवरण मैं अगल पोस्ट में दूँगा)

श्री ऋग विद 1.13
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यह सूक्त अग्नि देव को समर्पित है, अग्नि देव जिन्हें कई नामो से पुकारा जाता है जैसे मधुर जिव्हा,पवित्रकर्ता आदि, को यज्ञ का संपादक भी मन जाता है| यह अग्नि देव ही हैं जो सभी प्रकार के यज्ञों में अर्पित हवन को ग्रहण करते हैं| भले ही किसी देवता को हवन अर्पित किया जाये वह हवन अग्नि देव के द्वारा ही देवताओं तक पहुंचती हैं| इसलिए उन्हें मित्र, देवताओं के प्रिय आदि नामो से भी जाना जाता है| पुरे सनातन धर्म में अग्नि सबसे अधिक पूजे जाने वाले देवताओं में से एक हैं| एक छोटी पूजा से लेकर विशाल यज्ञ का प्रतिपादन अग्नि देव को समपित हवन से ही किया जाता है| इस प्रकार पुरे वेद में भी एक बहुत बड़ा भाग अग्नि देव की साधना के लिए समर्पित है| यह सूक्त भी अग्नि देव को यज्ञ में आहवान और उनकी महिमा मंडन के लिए है| इस सूक्त का विवरण और अर्थ इस प्रकार हैं

ऋषि : मेधातिथि कान्व्
देवता:अग्नि, इला, सरसवती, भारती|
छंद:गायत्री

श्लोक और अर्थ
-------------------
इस सूक्त के सभी श्लोक और उनके अर्थ इस प्रकार हैं

ऋग्वेद 1.13.3 
-----------------
सुसमिद्धो न आ वह देवानग्ने हविष्मते |होतः पावक यक्षि च || 1||
मधुमन्तं तनूनपाद् यज्ञं देवेषु नः कवे | अद्या कर्णुहि वीतये || 2||
नराशंसमिह प्रियमस्मिन यज्ञ उप ह्वये | मधुजिह्वंहविष्कृतम् || 3||
अग्ने सुखतमे रथे देवाँ ईळित आ वह | असि होता मनुर्हितः || 4||
सत्र्णीत बर्हिरानुषग घर्तप्र्ष्ठं मनीषिणः | यत्राम्र्तस्य चक्षणम || 5||
वि शरयन्तां रताव्र्धो दवारो देवीरसश्चतः | अद्या नूनं च यष्टवे ||6|| 
नक्तोषासा सुपेशसास्मिन यज्ञ उप हवये | इदं नो बर्हिरासदे || 7||
ता सुजिह्वा उप हवये होतारा दैव्या कवी |यज्ञं नो यक्षतामिमम ||8| 
इळा सरस्वती मही तिस्रो देवीर्मयोभुवः | बर्हिः सीदन्त्वस्रिधः || 9||
इह तवष्टारमग्रियं विश्वरूपमुप हवये | अस्माकमस्तुकेवलः || 10||
अव सर्जा वनस्पते देव देवेभ्यो हविः | पर दातुरस्तु चेतनम || 11||
सवाहा यज्ञं कर्णोतनेन्द्राय यज्वनो गर्हे |तत्र देवानुप हवये ||12||
अर्थ
-----
१. पवित्रकर्ता,यज्ञ संपादनकर्ता, हे अग्निदेव! [दिव्य रूप से] प्रज्वल्लित होकर यग्यमान(यजमान) के लिए देवताओं का आह्वाहन करें और उनको लक्ष्य करके यज्ञ संपन्न करें, अर्थात देवताओं के पोषण के लिए हविष्यान्न(हवन में अर्पित अन्न आदि) ग्रहण करें|

२.उर्ध्वागामी, मेधावी, हे अग्निदेव! हमारी रक्षा के लिए प्राणवर्धक मधुर हवियों(हवन) को देवताओं के लिए निमित्त(देवताओं के प्रतिनिधि बनकर) प्राप्त करे  और उन तक(देवताओं तक) पहुंचाएं|

३. [मनुष्यों के] पूजनीय (नाराशंस), देवताओं के प्रिय और आह्लादक (मधुजिव्ह) अग्नि देव का हम इस यज्ञ में आह्वान करते हैं| वह हमारे हवियों (हवन) को देवताओं तक पहुँचाने वाले हैं,अस्तु, स्तुत्य हैं| 

४, मानवमात्र के हितैषी हे अग्निदेव! आप अपने श्रेष्ठ सुखदायी रथ से देवतों को लेकर [यज्ञ स्थल पर ] पधारं  | हम आपकी वंदना करते हैं|

५. हे मेधावी पुरुषों! आप इस यज्ञ में कुश के आसनों को परस्पर मिलकर ऐसे बिछाएं कि उसपर धृत-पात्र को भली भांति रखा जा सके, जिससे अमृत-तुल्य धृत का सम्यक दर्शन हो सके|

६. आज यज्ञ करने के लिए निश्चित रूप से ऋत(यज्ञीय वातावरण) की वृद्धि करने वाले अविनाशी दिव्य-द्वार खुल जाएँ |

७.सुंदर रूपवती रात्रि और उषा(प्रभात) का हम इस यज्ञ में आह्वाहन करते हैं | हमारी ओर से आसान रूप में या बरही (कुश) प्रस्तुत है||७||

८. उन उत्तम वचन वाले और मेधावी दों(अग्नियों) दिव्या होताओं(हवन करने वाले) को यज्ञ में यजन के निमित्त(यज्ञ करने के लिए) हम बुलाते हैं|

९ इला, सरस्वती और मही ये तीन देवियाँ सुखकारी और क्श्यरहित) हैं | ये तीनो दीप्तमान दिव्य कुश आसन पर विराजमान हों|

10 प्रथम पूज्य, विविध रूप वाले त्वष्टादेव का इस यज्ञ में आह्वाहन करते हैं, वे देव केवल हमारे ही हों |

११ हे वनस्पति देव! आप देवों के लिए नित्य हविष्यान्न प्रदान करने वाले दाता को प्राण रूप उत्साह प्रदान करें||११||

१२.(हे अध्वर्यु!) आप याजकों के घर में इन्द्रदेव की तुष्टि के लिए आहुतियाँ समर्पित करें | हम होता(हवन देने वाले) वहाँ देवों को आमंत्रित करते हैं||१२|| 

ऊपर में इस सूक्त के सभी श्लोकों को पढकर कोई मुर्ख भी बता सकता है कि किस चीज़ की बात हो रही है| इस सूक्त में यज्ञ से सम्बंधित मन्त्र हैं जिसमे यग्य के लिए और यजमान के कल्याण के लिए अग्नि का आह्वाहन किया गया है उनका आदर किया गया है| अग्निदेव यज्ञ के अग्रिम देवता हैं और उनसे से यज्ञ आरम्भ और पूर्ण होता है| हवन चाहे किसी और देवता को हि क्यों न दी जाये, किसी और देवता का अहवाहन ही क्यों न किया जाये लेकिन वह अग्नि देव के द्वारा ही सम्पन्न होती है| अग्नि देव की सभी देवताओं के प्रतिनिधि के तौर प् हवन ग्रहण करते हैं और उनके द्वारा ही देवता यज्ञ में सम्मिल्लित होते हैं| इस पूरी बात को इस सूक्त में बताया गया है| अग्नि देव को प्रसन्न करने के लिए उनकी प्रशंसा में कई आदरणीय शब्दों का प्रयोग है, जैसे 
मधुजिह्वं(मधुर जिव्हा युक्त), तनूनपाद् (उर्ध्वगामी), नराशंस(मनुष्यों के पूजनीय) , सुखतमे(सुख प्रदान करने वाले या हितैषी), मधुमन्तं(मेधावी) आदि| यह सभी शब्द समासीय विशेषण(qualifying adjective) हैं| 
जो लोग व्याकरण का थोडा भी जानते हैं उन्हें मालूम होना चाहिए कि विशेषण और संज्ञा में क्या अंतर होता है? 

ऊपर के सूक्त में यह सभी शब्द “अग्निदेव” के सम्मान में सभी आदरणीय शब्दों का प्रयोग है | नराशंस भी उसमे से एक है| दूसरे स्थान पर इस शब्द नराशंस(पूजनीय) शब्द का प्रयोग दूसरे देवतों के सम्मान में भी किया गया है क्योंकि दूसरे देवता भी पूजनीय हैं|
लंबा, छोटा , मोटा, काला, गोरा, हंसमुख आदि विशेषण हैं जो संज्ञा की विशेषता बताने के लिए प्रयुक्त होते हैं| कहीं किसी पुस्तक में “काला” लिखा हो और कोई आकर यह कहना शुरू कर दे की उस पुस्तक ने “ओबामा” की भविष्यवाणी की है तो इसे मूर्खता की हद ही समझना चाहिए|

Rig Ved 1.13.3
------------------
इस पुरे सूक्त में से तीसरे श्लोक का गलत अर्थ निकला गया है, वह श्लोक यह है

नराशंसमिह प्रियमस्मिन यज्ञ उप ह्वये | मधुजिह्वंहविष्कृतम् || 3||

और उसका सही अर्थ यह है
३. [मनुष्यों के] पूजनीय (नाराशंस), देवताओं के प्रिय और आह्लादक (मधुजिव्ह) [अग्नि] देव का हम इस यज्ञ में आह्वान करते हैं| वह हमारे हवियों (हवन) को देवताओं तक पहुँचाने वाले हैं,अस्तु, स्तुत्य हैं|

इस श्लोक में नराशंस का प्रयोग अग्नि देव के लिए किया गया है| अग्नि देव के नाम का सीधा प्रयोग इस पहले ही शलोक में है, फिर तीसरे श्लोक में भी है| इस श्लोक में ही यज्ञ के लिए अग्नि देव का बहुत आदर के साथ आह्वान किया गया है और इसलिए इस शब्द “नराशंस” अर्थात सबके पूजनीय का प्रयोग है| किसी प्रकार अगर कोई नराशंस के अर्थ पर शंका भी कर ले तो उसे यह जानने मे कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए कि यज्ञ के लिए किसका अहवान होता है? अगर यहाँ यह शब्द नराशंस नहीं भी होता और एकदम खाली जगह होती तब भी इस श्लोक से अग्नि देव का ही अर्थ निकलता है क्योंकि यग्य में अग्नि का ही अहवान होता है|

इस शब्द का व्याकरण के अनुसार व्याख्या मैं आगे के पोस्ट में दूँगा| बाकि शेष सूक्तों का अर्थ भी प्रस्तुत किया जायेगा |लेकिन सभी से मैं यह आग्रह करता हूँ कि वेद के सही अर्थ को स्वयं पढ़ें और दूसरों तक पहुंचाएं| झूठ को परास्त करने का सबसे उत्तम उपाय यह है कि सत्य को फैलाया जाये| 

“श्री हरि ओम तत् सत्”=============झूठ का पर्दाफाश============
====हिंदू विरोधियों द्वारा वेदों के श्लोकों का गलत प्रचार===
“ओम नमो भगवते वासुदेवायः”

प्रिय भक्तों जैसा कि हम सब जानते हैं विगत समय में कई हिंदू विरोधी शक्तियों द्वारा सनातन धर्म की कई ग्रंथों के कुछ श्लोकों का गलत अनुवाद करके प्रचारित किया जा रहा है| उन हिंदू विरोधियों में अति धूर्त और झूठ बोलने में माहिर जाकिर नाईक सबसे आगे है| जाकिर नाईक ने झूठ बोलने के कई नए तरीकों की खोज की है | वह विस्तृत फैले कई ग्रंथों से कुछ ऐसे शब्दों को चुनता है जिसका अरब, इस्लाम या उनके पैगम्बर से कोई भी जुड़े किसी भी शब्द, घटना या अर्थ से समानता हो जाये | फिर वह उन शब्दों का अपनी सुविधानुसार अर्थ निकालकर लोगों के सामने झूठ रख देता है| चूँकि वेद और दूसरे सनातन ग्रन्थ इतने विस्तृत हैं और कई लोग अपने साधारण जीवन में वेद नहीं पढते इसलिए किसी साधरण व्यक्ति के लिए उन झूठ को पकड़ना एकदम से संभव नहीं होता |दूसरी बात इन्टरनेट पर सनातन ग्रन्थ बहुतायत में उपलब्ध नहीं है उनके झूठ को पकडना और भी कठिन हो जाता है|

जाकिर नाईक ने सिर्फ झूठ ही नहीं बोला उसने यह पूरा प्लान बनाकर यह निश्चित किया किया कि उसका झूठ अधिक से अधिक लोगों तक पहुँच सके| वह हजारों लोगों की सभा में बेधड़क वेद के श्लोकों का नंबर पढता है और अपनी सुविधा के अनुसार अर्थ बताकर लोगों को प्रभित करता है| इस प्रकार उसके दो लक्ष पुरे होतें हैं, एक तो यह को उसका झूठ अधिक लोगों तक पहुंचाता है, दूसरा यह कि वह प्रसिद्ध होता है| उसके झूठ के विडियो youtube पर हर जगह पाए जा सकते हैं| पुस्तकों के रूप में भी उसके भाषण सब जगह उपलब्ध हैं|
कई लोगों ने उसके झूठ को उजागर किया है हमने भी उसके कई झूठ को इस पेज पर पोस्ट किया है| इस पोस्ट में भी हम उसके एक झूठ को उजागर करेंगे:

झूठ : वेद में मोहम्मद की भविष्यवाणी की गयी है
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जाकिर नाईक ने कई प्रकार के झूठ बोले हैं लेकिन उनमे से एक प्रमुख यह कि वेदों और पुरानों में मोहम्मद की भविष्यवाणी की गयी है|हजारों लोगों के सामने कई बार उसने इस बात को दुहराया है|वेद के कई श्लोकों को वह लोगों के सामने रखकर ऐसा दवा करता है, उन वेद श्लोकों में से कुछ निम्न हैं

ऋग वेद
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Rig Veda: (1/13/3), (1/18/9), (1/106/4), (1/142/3), (2/3/2), (5/5/2), (7/2/2), (10/64/3) and (10/182/2),(8/1/1)

Samveda :2.6.8

Atharva veda: 10.2.33

हम ऊपर के सभी श्लोकों का बारी बारी से विवेचन करेंगे, चूँकि झूठ बोले गए श्लोकों की संख्या बहुत ज्यादा है इसलिए सबको एक ही पोस्ट में नहीं लिखा जा सकता | इस पोस्ट में रिग वेद (1/13/3) का निरीक्षण करेंगे|

दावा
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यह है ऋग वेद 1/13/3 का श्लोक

नराशंसमिह प्रियमस्मिन यज्ञ उप ह्वये | मधुजिह्वंहविष्कृतम् || 3||

जाकिर नाईक का यह दावा है कि इस श्लोक में मोहम्मद की भविष्य वाणी की गयी है| उसका यह दावा श्लोक में उपस्थित एक शब्द “नराशंस” के आधार पर है, उसका यह कहना है कि नराशंस का अर्थ “मोहम्मद” होता है और इसलिए यह निष्कर्ष निकलता हि कि इस श्लोक में मोहम्मद की भविष्यवाणी की गयी है| यह सरासर झूठ और हास्यापद है|

नराशंस का अर्थ क्या होता है?
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यह कहना कि नराशंस का अर्थ “मोहम्मद” होता है एक सरासर झूठ है|
नराशंस कर अर्थ निम्न होता है
नराशंस : पूजनीय, पूजने योग्य आदि(Praiseworthy, worthy of worship etc) |

यह एक विशेष युक्त समास है, जो दो शब्दों से बना है
नराशंस = नर + आशंस = नरो(मनुष्यों) के पूजनीय हैं जो है जो अर्थात = देवता

कुछ जो हिंदी या संस्कृत व्याकरण जानते हैं बहुब्रीही समास से अवश्य परिचित होंगे और इस प्रकार के कई शब्दों को भी जानते होंगे, मैं कुछ उदहारण दे देता हूँ(याद दिलाने के लिए):

चंद्रशेखर=चंद्र + शेखर = चन्द्रमा है जिसके सिर पर अर्थात = शिव
दशानन = दश + आनन = दस मुह हैं जिसके अर्थात = रावण
लम्बोदर = लम्ब + उदर = लंबा हा उदर जिसका अर्थात = गणेश
इसी प्रकार नराशंस कर अर्थ निकालता है , नरों के पूजनीय हैं जो अर्थात देवता|

नराशंस संस्कृत का एक साधारण शब्द है जिसका प्रयोग किसी के लिए आदर, पूजनीय भाव प्रदर्शित करने के लिए होता है| हिंदी में यह शब्द “पूजनीय” या “आदरणीय” इतना आम है कि इसका प्रयोग बच्चों के द्वार लिखे गए दरखास्त में भी होता है| बड़ों के लिए, शिक्षकों के लिए, और यहाँ तक के नेताओं के लिए भी इन शब्दों का प्रयोग होता है| “पूजनीय”, “आदरणीय” व्याकरण के हिसाब से विशेषण या समास हो सकते हैं जिसका प्रयोग किसी के लिए आदर का भाव प्रकट करने के लिए होता है | यह स्वाभाविक है कि हम सभी देवताओं के नाम आदर से लेते हैं और विभिन्न आदरसूचक शब्दों का प्रयोग करते हैं| यह सिर्फ वेद में ही नहीं साधारण बोलचाल में भी हम आदरणीय मनुष्यों के लिए भी ऐसे आदरसूचक शब्दों का प्रयोग करंते हैं|

इस प्रकार के शब्द का प्रयोग सभी भाषाओँ में अपने अपने हिसाब से विभिन्न व्यक्तियों या उचित आराध्य के लिए होता होगा | इस शब्द का प्रयोग किसके लिए हो रहा है उसका निर्धारण वाक्य में उल्लेखित नाम को जानकार ही किया जा सकता है या उस भाषा के अंदर निहित व्याकरण के नियम को जानकर|

नराशंस एक विशेषण और समास है जिसका प्रयोग वेद में देवताओं की प्रति आदर का भाव प्रकट करने के लिए होता है| किस किस देवता के लिए यह शब्द प्रयोग हो रहा है वह वाक्य में आगे या पीछे वर्णित देवता के नाम को देखकर ही बताया जा सकता है| कोई यह कह दे कि नराशंस का अर्थ “मोहम्मद” या “इसा मसीह” या “गौतम बुद्ध “ है यह सरासर गलत है|

(इस शब्द के सम्बंधित व्याकरण का विवरण मैं अगल पोस्ट में दूँगा)

श्री ऋग विद 1.13
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यह सूक्त अग्नि देव को समर्पित है, अग्नि देव जिन्हें कई नामो से पुकारा जाता है जैसे मधुर जिव्हा,पवित्रकर्ता आदि, को यज्ञ का संपादक भी मन जाता है| यह अग्नि देव ही हैं जो सभी प्रकार के यज्ञों में अर्पित हवन को ग्रहण करते हैं| भले ही किसी देवता को हवन अर्पित किया जाये वह हवन अग्नि देव के द्वारा ही देवताओं तक पहुंचती हैं| इसलिए उन्हें मित्र, देवताओं के प्रिय आदि नामो से भी जाना जाता है| पुरे सनातन धर्म में अग्नि सबसे अधिक पूजे जाने वाले देवताओं में से एक हैं| एक छोटी पूजा से लेकर विशाल यज्ञ का प्रतिपादन अग्नि देव को समपित हवन से ही किया जाता है| इस प्रकार पुरे वेद में भी एक बहुत बड़ा भाग अग्नि देव की साधना के लिए समर्पित है| यह सूक्त भी अग्नि देव को यज्ञ में आहवान और उनकी महिमा मंडन के लिए है| इस सूक्त का विवरण और अर्थ इस प्रकार हैं

ऋषि : मेधातिथि कान्व्
देवता:अग्नि, इला, सरसवती, भारती|
छंद:गायत्री

श्लोक और अर्थ
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इस सूक्त के सभी श्लोक और उनके अर्थ इस प्रकार हैं

ऋग्वेद 1.13.3
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सुसमिद्धो न आ वह देवानग्ने हविष्मते |होतः पावक यक्षि च || 1||
मधुमन्तं तनूनपाद् यज्ञं देवेषु नः कवे | अद्या कर्णुहि वीतये || 2||
नराशंसमिह प्रियमस्मिन यज्ञ उप ह्वये | मधुजिह्वंहविष्कृतम् || 3||
अग्ने सुखतमे रथे देवाँ ईळित आ वह | असि होता मनुर्हितः || 4||
सत्र्णीत बर्हिरानुषग घर्तप्र्ष्ठं मनीषिणः | यत्राम्र्तस्य चक्षणम || 5||
वि शरयन्तां रताव्र्धो दवारो देवीरसश्चतः | अद्या नूनं च यष्टवे ||6||
नक्तोषासा सुपेशसास्मिन यज्ञ उप हवये | इदं नो बर्हिरासदे || 7||
ता सुजिह्वा उप हवये होतारा दैव्या कवी |यज्ञं नो यक्षतामिमम ||8|
इळा सरस्वती मही तिस्रो देवीर्मयोभुवः | बर्हिः सीदन्त्वस्रिधः || 9||
इह तवष्टारमग्रियं विश्वरूपमुप हवये | अस्माकमस्तुकेवलः || 10||
अव सर्जा वनस्पते देव देवेभ्यो हविः | पर दातुरस्तु चेतनम || 11||
सवाहा यज्ञं कर्णोतनेन्द्राय यज्वनो गर्हे |तत्र देवानुप हवये ||12||
अर्थ
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१. पवित्रकर्ता,यज्ञ संपादनकर्ता, हे अग्निदेव! [दिव्य रूप से] प्रज्वल्लित होकर यग्यमान(यजमान) के लिए देवताओं का आह्वाहन करें और उनको लक्ष्य करके यज्ञ संपन्न करें, अर्थात देवताओं के पोषण के लिए हविष्यान्न(हवन में अर्पित अन्न आदि) ग्रहण करें|

२.उर्ध्वागामी, मेधावी, हे अग्निदेव! हमारी रक्षा के लिए प्राणवर्धक मधुर हवियों(हवन) को देवताओं के लिए निमित्त(देवताओं के प्रतिनिधि बनकर) प्राप्त करे और उन तक(देवताओं तक) पहुंचाएं|

३. [मनुष्यों के] पूजनीय (नाराशंस), देवताओं के प्रिय और आह्लादक (मधुजिव्ह) अग्नि देव का हम इस यज्ञ में आह्वान करते हैं| वह हमारे हवियों (हवन) को देवताओं तक पहुँचाने वाले हैं,अस्तु, स्तुत्य हैं|

४, मानवमात्र के हितैषी हे अग्निदेव! आप अपने श्रेष्ठ सुखदायी रथ से देवतों को लेकर [यज्ञ स्थल पर ] पधारं | हम आपकी वंदना करते हैं|

५. हे मेधावी पुरुषों! आप इस यज्ञ में कुश के आसनों को परस्पर मिलकर ऐसे बिछाएं कि उसपर धृत-पात्र को भली भांति रखा जा सके, जिससे अमृत-तुल्य धृत का सम्यक दर्शन हो सके|

६. आज यज्ञ करने के लिए निश्चित रूप से ऋत(यज्ञीय वातावरण) की वृद्धि करने वाले अविनाशी दिव्य-द्वार खुल जाएँ |

७.सुंदर रूपवती रात्रि और उषा(प्रभात) का हम इस यज्ञ में आह्वाहन करते हैं | हमारी ओर से आसान रूप में या बरही (कुश) प्रस्तुत है||७||

८. उन उत्तम वचन वाले और मेधावी दों(अग्नियों) दिव्या होताओं(हवन करने वाले) को यज्ञ में यजन के निमित्त(यज्ञ करने के लिए) हम बुलाते हैं|

९ इला, सरस्वती और मही ये तीन देवियाँ सुखकारी और क्श्यरहित) हैं | ये तीनो दीप्तमान दिव्य कुश आसन पर विराजमान हों|

10 प्रथम पूज्य, विविध रूप वाले त्वष्टादेव का इस यज्ञ में आह्वाहन करते हैं, वे देव केवल हमारे ही हों |

११ हे वनस्पति देव! आप देवों के लिए नित्य हविष्यान्न प्रदान करने वाले दाता को प्राण रूप उत्साह प्रदान करें||११||

१२.(हे अध्वर्यु!) आप याजकों के घर में इन्द्रदेव की तुष्टि के लिए आहुतियाँ समर्पित करें | हम होता(हवन देने वाले) वहाँ देवों को आमंत्रित करते हैं||१२||

ऊपर में इस सूक्त के सभी श्लोकों को पढकर कोई मुर्ख भी बता सकता है कि किस चीज़ की बात हो रही है| इस सूक्त में यज्ञ से सम्बंधित मन्त्र हैं जिसमे यग्य के लिए और यजमान के कल्याण के लिए अग्नि का आह्वाहन किया गया है उनका आदर किया गया है| अग्निदेव यज्ञ के अग्रिम देवता हैं और उनसे से यज्ञ आरम्भ और पूर्ण होता है| हवन चाहे किसी और देवता को हि क्यों न दी जाये, किसी और देवता का अहवाहन ही क्यों न किया जाये लेकिन वह अग्नि देव के द्वारा ही सम्पन्न होती है| अग्नि देव की सभी देवताओं के प्रतिनिधि के तौर प् हवन ग्रहण करते हैं और उनके द्वारा ही देवता यज्ञ में सम्मिल्लित होते हैं| इस पूरी बात को इस सूक्त में बताया गया है| अग्नि देव को प्रसन्न करने के लिए उनकी प्रशंसा में कई आदरणीय शब्दों का प्रयोग है, जैसे
मधुजिह्वं(मधुर जिव्हा युक्त), तनूनपाद् (उर्ध्वगामी), नराशंस(मनुष्यों के पूजनीय) , सुखतमे(सुख प्रदान करने वाले या हितैषी), मधुमन्तं(मेधावी) आदि| यह सभी शब्द समासीय विशेषण(qualifying adjective) हैं|
जो लोग व्याकरण का थोडा भी जानते हैं उन्हें मालूम होना चाहिए कि विशेषण और संज्ञा में क्या अंतर होता है?

ऊपर के सूक्त में यह सभी शब्द “अग्निदेव” के सम्मान में सभी आदरणीय शब्दों का प्रयोग है | नराशंस भी उसमे से एक है| दूसरे स्थान पर इस शब्द नराशंस(पूजनीय) शब्द का प्रयोग दूसरे देवतों के सम्मान में भी किया गया है क्योंकि दूसरे देवता भी पूजनीय हैं|
लंबा, छोटा , मोटा, काला, गोरा, हंसमुख आदि विशेषण हैं जो संज्ञा की विशेषता बताने के लिए प्रयुक्त होते हैं| कहीं किसी पुस्तक में “काला” लिखा हो और कोई आकर यह कहना शुरू कर दे की उस पुस्तक ने “ओबामा” की भविष्यवाणी की है तो इसे मूर्खता की हद ही समझना चाहिए|

Rig Ved 1.13.3
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इस पुरे सूक्त में से तीसरे श्लोक का गलत अर्थ निकला गया है, वह श्लोक यह है

नराशंसमिह प्रियमस्मिन यज्ञ उप ह्वये | मधुजिह्वंहविष्कृतम् || 3||

और उसका सही अर्थ यह है
३. [मनुष्यों के] पूजनीय (नाराशंस), देवताओं के प्रिय और आह्लादक (मधुजिव्ह) [अग्नि] देव का हम इस यज्ञ में आह्वान करते हैं| वह हमारे हवियों (हवन) को देवताओं तक पहुँचाने वाले हैं,अस्तु, स्तुत्य हैं|

इस श्लोक में नराशंस का प्रयोग अग्नि देव के लिए किया गया है| अग्नि देव के नाम का सीधा प्रयोग इस पहले ही शलोक में है, फिर तीसरे श्लोक में भी है| इस श्लोक में ही यज्ञ के लिए अग्नि देव का बहुत आदर के साथ आह्वान किया गया है और इसलिए इस शब्द “नराशंस” अर्थात सबके पूजनीय का प्रयोग है| किसी प्रकार अगर कोई नराशंस के अर्थ पर शंका भी कर ले तो उसे यह जानने मे कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए कि यज्ञ के लिए किसका अहवान होता है? अगर यहाँ यह शब्द नराशंस नहीं भी होता और एकदम खाली जगह होती तब भी इस श्लोक से अग्नि देव का ही अर्थ निकलता है क्योंकि यग्य में अग्नि का ही अहवान होता है|

इस शब्द का व्याकरण के अनुसार व्याख्या मैं आगे के पोस्ट में दूँगा| बाकि शेष सूक्तों का अर्थ भी प्रस्तुत किया जायेगा |लेकिन सभी से मैं यह आग्रह करता हूँ कि वेद के सही अर्थ को स्वयं पढ़ें और दूसरों तक पहुंचाएं| झूठ को परास्त करने का सबसे उत्तम उपाय यह है कि सत्य को फैलाया जाये|

“श्री हरि ओम तत् सत्”