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Wednesday, July 2, 2014

स्वामी श्रद्धानंद : स्वधर्मार्थ प्राण त्याग करनेवाले हिंदू नेता !

१. परिचय   

        स्वामी श्रद्धानंद एक ऐसे हिंदू नेता थे, जिनका प्राणहरण अब्दुल रशीद नामक एक कट्टरपंथी द्वारा, हिंदू घृणाकी प्राणहारी हत्यारी परंपराके कारण २३ दिसंबर १९२६ में हुआ । हिंदू अपने नेताकी हत्या होनेकी स्थितिमें, दिशाहीन हो जाते हैं, इस तथ्यको समझकर हिंदू नेताओंकी हत्यायें हिंदू घृणाके कारण बहुत सूझ-बूझके साथ की जा रहीं हैं । संघ परिवारके १२५ लोगोंकी हत्यायें केरल राज्यमें पिछले कुछ वर्षोंमे की जा चुकी हैं । स्वामी लक्ष्मणानंदकी हत्या ओडीशामें सन् २००८ की गई थी ।

२. संपूर्ण जीवन वैदिक परंपरा एवं वैदिक धर्मके

उत्कर्षके लिए समर्पित कर, अपना नामकरण स्वामी श्रद्धानंद किया

        स्वामी श्रद्धानंद उर्फ लाला मुंशीरामने अपनी आयुके ३५वें वर्षमें वानप्रस्थ आश्रम (मानव जीवनका तृतीय सोपान ) कर वे महात्मा मुंशीराम बने । उन्होंने हरिद्वारके समीप कांगडी क्षेत्रमें सन् १९०२ में एक गुरुकुलकी ( पुरातन भारत की परंपराके अनुसार एक निवासी शैक्षणिक संस्थान, जहां अध्यात्मके साथ-साथ शिक्षाके अन्य विषयभी पढाये जाते हैं ।) स्थापना की । प्रारंभमे उनके दो पुत्र हरिशचंद्र एवं इंद्र उनके विद्यार्थी तथा महात्मा स्वयं उनके आचार्य थे । वर्तमानमें सैकडों विद्यार्थी वहां शिक्षा ले रहे हैं एवं गुरुकुल कांगडी अब एक विश्वविद्यालय है ।
        महात्मा मुंशीराम गुरुकुलमें लगातार १५ वर्षोंतक कार्यरत रहे । तदुपरांत सन् १९१७ मे उन्होंने सन्यास आश्रम ( मानव जीवनके चार आश्रमोंका अंतिम सोपान - सर्वत्यागकी अवस्था ) स्वीकार किया । सन्यास आश्रमके स्वीकार समारोहमें भाषण देते समय वे बोले, मैं स्वयं अपना नामकरण करूंगा । चुकी मैने अपना संपूर्ण जीवन वेद एवं वैदिक धर्मके उत्कर्षमें व्यतीत किया है, तथा भविष्यमें भी वही कार्य करूंगा, इसलिये मैं अपना नामकरण; श्रद्धानंद कर रहा हूं ।

३. स्वामी श्रद्धानंदका स्वतंत्रता संग्राममें सक्रिय सहभाग !   

        राष्ट्रको स्वतंत्र करवाना स्वामी श्रद्धानंदका अमूल्य संकल्प था । भारतीय जनसमुदायपर पजाबमें ’मार्शल ला ‘ एवं ‘रोलेट ऐक्ट ’ थोप दिये गये थे । दिल्लीमें दमनकारी रोलेट ऐक्टके विरोधमें जनआक्रोश चरमपर था और आनंदोलन हो रहे थे । स्वामी श्रद्धानंद जनांदोलनकी नेतृत्व कर रहे थे । उस समय जुलूस निकालनेपर बंदी लगादी गई थी । स्वामीजीने बंदीको चुनौती देकर दिल्लीमें जुलूस निकालनेकी घोषणा की । तदानुसार सहस्त्रोंकी संख्यामें देशभक्त जुलूसमें सहभागी हुए । जब तक जुलूस चांदनी चौक में पहुंचता, गुरखा रेजिमेंटकी टुकडी बंदूकों आदिके साथ अंग्रेजोंके आदेशपर तैयार थी । साहसी श्रद्धानंद हजारों अनुयायियोंके साथ सभा स्थलपर पहुंचे । जब सैनिक गोलियां चलाने वालेही थे, कि वह निर्भय होकर आगे बडे और जोर से गर्जना करते हुए ललकारा कि, निरीह जनसमुदायको मारनेके पहले, मुझे मारो । बंदूकें त्वरित नीचे झुकादी गयीं तथा जुलूस शांतिपूर्वक आगे बढ गया ।

४. साहसी त्यागमुर्ति का दिल्लीकी जामा मस्जिदमें वैदिक मंत्रोंके पठनसे ओत प्रोत भाषण   

        सन् १९२२ में स्वामी श्रद्धानंदने दिल्लीकी जामा मस्जिदमें एक भाषण दिया था । उन्होंने प्रारंभमें वेद मेंत्रोंका पठन किया तदनंतर प्रेरणादायी भाषण दिया । स्वामी श्रद्धानंद ही मात्र एक ऐसे वक्ता थे, जिन्होंने वैदिक मंत्रोच्चारके साथ अपना भाषण दिया । जागतिक इतिहासका यह अभूतपूर्व क्षण था ।

५. कांग्रेस छोडकर हिंदू महासभामें शामिल होना   

        स्वामी श्रद्धानंदने जब परिस्थितिका गहराईसे अध्ययन किया तो उन्हें इसका बोध हुआ कि, मुसलमान कांग्रेसमें शामिल होनेपर भी मुसलमान ही रहता है । वे नमाज पढनेके लिए कांग्रेस सत्रको भी रोक सकते थे । हिंदू धर्मपर कांग्रेसमें अन्याय हो रहा था । जब उन्हें सत्यका पता लगा, उन्होंने त्वरित कांग्रेसका त्याग किया एवं पं. मदन मोहन मालवीयकी सहायतासे ‘हिंदू महासभा’ की स्थापना की ।

६. स्वामी श्रद्धानंदका धर्मांतरित हिंदुओंको स्वधर्ममे वापस लानेका महान कार्य   

        हिंदुओंके सापेक्ष मुसलमानोंकी बढती संख्याको रोकने के लिए, उन्होंने धर्मांतरित हिंदुओंके शुदि्धकरणका पवित्र अभियान प्रारंभ किया । उन्होंने आगरामें एक कार्यालय खोला । आगरा, भरतपूर, मथुरा आदि स्थानोंमे अनेक राजपूत थे, जिन्हें उसी समय इस्लाममें धर्मांतरित किया गया था किन्तु वे हिंदू धर्ममें वापस आना चाहते थे । पांच लाख राजपूत हिंदू धर्म स्वीकारने के लिए तैयार थे । स्वामी श्रद्धानंद इस अभियानका नेतृत्व कर रहे थे । उन्हों इस प्रयोजनार्थ एक बहुत बडी सभाका आयोजन किया एवं उन राजपूतोंका शुद्धीकरण किया । उनके नेतृत्वमें अनेक गांवोंका शुद्धिकरण हुआ । इस अभियानने हिंदुओंमे एक नवीन चेतना, शक्ति एवं उत्साहका निर्माण किया । इसके साथ ही हिंदु संस्थांओंका भी विस्तार हुआ । कराची निवासी एक मुसलमान महिला जिनका नाम अजगरी बेगम था, उन्हें हिंदू धर्ममें समाहित किया गया । इस घटनाने मुसलमानोंके बीच एक हंगामा खडा कर दिया एवं स्वामीजी विश्वमें प्रसिद्ध हो गए ।

७. प्राणहारी परंपराके शिकार   

        अब्दुल रशीद नामक एक कट्टरपंथी मुसलमान स्वामीजीके दिल्ली स्थित निवासपर २३ दिसंबरको पंहुंचा और उसने कहा कि, उसे स्वामी जीके साथ इस्लामपर चर्चा करनी है । उसने अपने आपको एक कंबलसे ढक रखा था । श्री धर्मपाल जो स्वामीजीकी सेवामें थे, वे स्वामीजीके साथ थे, फलस्वरूप वह कुछ न कर सका । उसने एक प्याला पानी मांगा । उसे पानी देकर जब धर्मपाल प्याला लेकर अंदर गए, रशीदने स्वामीजीपर गोली दागदी । धर्मपालने रशीदको पकड लिया । जबतक अन्य लोग वहांपर पहुचते स्वामीजी प्राणार्पण कर चुके थे । रशीदके विरुद्ध कार्यवाही हुई । इस प्रकार स्वामी श्रद्धानंदजी इस्लामकी हत्यारी परंपराके शिकार हुए किन्तु उन्होंने शहादत देकर अपना नाम अमर कर दिया ।

स्वामी श्रद्धानंदने जैसे ही इस्लाममें धर्मांतरणका विरोध किया,

गांधीजी एवं मुसलमानोंकी उनके प्रति रुचि समाप्त एवं कट्टरवादी द्वारा उनकी हत्या

        गांधीजी स्वामी श्रद्धानंदको बहुत चाहते थे, किंतु जबसे उन्होंने हिंदुओंका हिंदुत्वमें पुर्नपरिवर्तन करनेका अभियान प्रारंभ किया, गांधीजी और मुसलमानोंकी उनमें रुचि समाप्त हो गई । इतना ही नहीं अब्दुल रशीदने बंदूकसे उनकी अति समीपसे हत्या कर दी । स्वामी श्रद्धानंदके हत्यारे अब्दुल रशीदको, गांधीजीने अति सन्मानसे संबोधित करते हुए ‘मेरा भाई !‘ कहा । इससे यह स्पष्ट होता है कि, यदि एक हिंदूभी किसी घटनामें मारा जाता तो गांधीजी उसे राजनैतिक मुद्दा बना देते ।

        स्वयंका संपूर्ण जीवन वैदिक परंपरा एवं वैदिक धर्मके उत्कर्षके लिए समर्पित करनेवाले तथा धर्मांतरित हिंदुओंको स्वधर्ममे वापस लानेवाले साहसी त्यागमुर्ति स्वामी श्रद्धानंदजी का महान कार्य आगे बढाना, यहीं उनके चरणोंमें यथार्थ रूपसे श्रद्धांजली अर्पण करने जैसे होगी !