Showing posts with label श्री छत्रपति शिवाजी.. Show all posts
Showing posts with label श्री छत्रपति शिवाजी.. Show all posts

Tuesday, September 8, 2015

श्री छत्रपति शिवाजी.

 
ॐ...श्री छत्रपति शिवाजी..शासन और व्यक्तित्व

शिवाजी को एक कुशल और प्रबुद्ध सम्राट के रूप में जाने जाते है हँलांकि उनको अपने बचपन में पारम्परिक शिक्षा कुछ खास नहीं मिली थी। पर वे भारतीय इतिहास और राजनीति से वाकिफ़ थे। उनने शुक्राचार्य तथा कौटिल्य को आदर्श मानकर कूटनीति का सहारा लेना कई बार उचित समझा था। अपने समकालीन मुगलों की तरह वह् भी निरंकुश शासक थ, अर्थात शासन की समूची बागडोर राजा के हाथ में ही थी। पर उस्के प्रशासकीय कार्यों में मदद के लिए आठ मंत्रियों की एक परिषद थी जिन्हें अष्टप्रधान कहा जाता था। इसमें मंत्रियों के प्रधान को पेशवा कहते थे जो राजा के बाद सबसे प्रमुख हस्ती था। अमात्य वित्त और राजस्व के कार्यों को देखता था तो मंत्री राजा की व्यक्तिगत दैनन्दिनी का खयाल रखाता था। सचिव दफ़ातरी काम करते थे जिसमे शाही मुहर लगाना और सन्धि पत्रों का आलेख तैयार करना शामिल होते थे। सुमन्त विदेश मंत्री था। सेना के प्रधान को सेनापति कहते थे। दान और धार्मिक मामलों के प्रमुख को पण्डितराव कहते थे। न्यायाधीश न्यायिक मामलों का प्रधान था।

न्यायव्यवस्था प्राचीन पद्धति पर आधारित थी। शुक्राचार्य, कौटिल्य और हिन्दू धर्म शास्त्रों को आधार मानकर निर्णय दिया जाता था। गाँव के पटेल फौजदारी मुकदमों की जाँच करते थे। राज्य की आय का साधन भूमिकर था पर चौथ और सरदेशमुखी से भी राजस्व वसूला जाता था। चौथ पड़ोसी राज्यों की सुरक्षा की गारंटी के लिया वसूलेजाने वाला कर था। शिवाजी अपने को मराठों का सरदेशमुख कहता थ और इसी हैसियत से सरदेशमुखी कर वसूला जाता था।

धार्मिक नीति संपादित करें
शिवाजी एक समर्पित हिन्दु थे तथा वह् धार्मिक सहिष्णु भी थे। उस्के साम्राज्य में मुसलमानों को धार्मिक स्वतंत्रता थी। कई मस्जिदों के निर्माण के लिए शिवाजी ने अनुदान दिया। हिन्दू पण्डितों की तरह मुसलमान सन्तों और फ़कीरों को भी सम्मान प्राप्त था। उन िक सेना में मुसलमान सैिनीक भी थे । शिवाजी हिन्दू संकृती को बढ़ावा देते थे। पारम्परिक हिन्दू मूल्यों तथा शिक्षा पर बल दिया जाता था। वह् अपने अभियानों का आरंभ भी अक्सर दशहरा के मौके पर करते थे

शिवाजी महाराज को अपने पिता से स्वराज कि शिक्शा ही मिली जब बीजापुर के सुल्तान ने शाहजी राजे को बन्दी बना लिया तो एक आदर्श पुत्र ती तरह उस्ने बीजापुर के शाह से सन्धि कर शाहजी राजे को छुड़वा लिया। इससे उनके चरित्र में एक उदार अवयव ऩजर आता है। उसेक बाद उन्होने पिता की हत्या नहीं करवाई जैसाकि अन्य सम्राट किया करते थे। शाहजी राजे के मरने के बाद ही उन्होने अपना राज्याभिषेक करवाया हँलांकि वो उस समय तक अपने पिता से स्वतंत्र होकर एक बड़े साम्राज्य के अधिपति हो गये थे। उनके नेतृत्व को सब लोग स्वीकार करते थे यही कारण है कि उनके शासनकाल में कोई आन्तरिक विद्रोह जैसी प्रमुख घटना नहीं हुई थी।

वह् एक अच्छे सेनानायक के साथ एक अछा कूटनीतिज्ञ भी थे। कई जगहों पर उन्होने सीधे युद्ध लड़ने की बजाय भग लिया था। लेकिन येही उनकी कुट निती थी, जो हर बार बडेसे बडे शत्रुको मात देनेमे उनका साथ देती रही।

शिवाजी महाराज की "गनिमी कावा" नामक कुट निती, जिसमे शत्रुपर अचानक आक्रमण करके उसे हराया जाता है, विलोभनियतासे और आदरसहित याद किया जाता है।

शिवाजी महाराज के गौरव मे ये पन्क्तियान लिख गई है :-

"शिवरायांचे आठवावे स्वरुप। शिवरायांचा आठवावा साक्षेप।
शिवरायांचा आठवावा प्रताप। भूमंडळी ॥
 Meenu Ahuja