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Thursday, September 18, 2014

कश्मीरी संस्कृति : एक भारतीय संस्कृति !

वसुंधरापर सौंदर्यताका प्रतीक : कश्मीर, आज आतंकवादी कार्यवाहियोंका अड्डा बन गया है । १९ जनवरी १९९० को संपूर्ण कश्मीरसे हिंदुओंको निकल जानेके आदेश दिए गए थे । धर्म बचानेके लिए कश्मीरी हिंदुओंने अपनी भूमि, संपत्ति और स्मृतियां, सबका परित्याग कर दिया । होमलैंड डे (२८ दिसंबर)के उपलक्ष्यमें पू. चारुदत्त पिंगलेजी द्वारा विस्थापित कश्मीरियोंके लिए किए मार्गदर्शनके कुछ अंश

१. भारतवर्ष और कश्मीरका महत्त्व !

१ अ. भारतवर्ष

पंचखंड भूमंडलमें सबसे पवित्रतम भूमि अर्थात यह भारतवर्ष है ! अनेक ऋषिमुनि, अवतार एवं विद्वज्जनोंने भारतभूको गौरवशाली बनाया है । विश्वके सबसे सुसंस्कृत वंशके रूपमें सुप्रसिद्ध आर्य संस्कृतिका विकास इस देशमें ही हुआ । ऐसा भारतदेश हमारी सांस है, तो हिंदू संस्कृति हमारी आत्मा !

१ आ. कश्मीर

प्रारूपमें दिखनेवाला भारत, राष्ट्रपुरुषकी देह है । उसका जम्मू-कश्मीर प्रांत प्रत्यक्ष हमारा दिमाग अर्थात बुद्धि है । यदि भारतवर्ष कश्मीरविहीन हो गया, तो भारतकी अवस्था बुद्धिहीन मानव जैसी, अर्थात पशुवत हो जाएगी !

२. शारदादेशका महत्त्व तथा हिंदुओंका कर्तव्य !

कश्मीर भारतवर्षकी बुद्धि है, इसका आध्यात्मिक कारण मां सरस्वतीका शारदापीठ है ! ब्रह्मदेवने सृष्टिकी रचना की । तत्पश्चात उन्होंने मानवको पृथ्वीपर भेजा । मानवने ब्रह्मदेवसे प्रार्थना की, हे भगवन्, आप विविध देवताओंको, हमारा उत्कर्ष एवं भला हो, इस हेतु पृथ्वीवर भेजें । तदुपरांत (पृथ्वीपर ) विविध स्थानोंपर देवताओंने अपने-अपने स्थान बनाए । इसी क्रमसे ज्ञानकी देवी सरस्वतीने जो स्थान पसंद किया, वह कश्मीर है । अत: कश्मीरका नाम शारदादेश भी है ।
भारतीय संस्कृतिमें हिंदू प्रतिदिन शारदादेवीके श्लोकका पठन करते समय कहते हैं,
नमस्ते शारदे देवी काश्मीरपुरवासिनी ।
त्वामहं प्रार्थयो नित्यं विद्यादानं च देहि मे ?

अर्थ : हे कश्मीरवासिनी सरस्वती देवी, आपको मेरा प्रणाम । आप हमें ज्ञान दें, यह मेरी आपसे नित्य प्रार्थना है ।
वर्तमानमें कश्मीर स्थित यह शारदापीठ पाकिस्तान व्याप्त कश्मीrरमें है, क्या इस श्लोकका पठन करनेवाले यह बात जानते हैं ? प्रार्थनामें श्री शारदादेवीके जिस स्थानका हम निर्देश करते हैं, अब उसका पूरी तरहसे विध्वंस हो चुका है, तथा वहां जानेपर हिंदुओंको पापस्थानसे (पाकिस्तानसे ) प्रतिबंध किया जाता है, यह बडा क्लेशदायी है ।
ध्यान रखें, हम सरस्वतीपुत्र अर्थात ज्ञानके उपासक हैं । अपना शारदापीठ पुन: भारतभूमि ज्ञानकी धरोहर बनाने हेतु हमें अपना कर्तव्य करना है ।

३. कश्मीरमें अर्धिमयोंको स्थान नहीं यह बात समझ लें !

३ अ. असुरोंको नष्ट कर सज्जनोंको अभय देने हेतु कश्मीरकी स्थापना करनेवाले कश्यप ऋषि !

कश्यप ऋषिके नामसे इस भूभागको ‘कश्मीर’ नाम प्राप्त हुआ । असुरोंका नाश कर सज्जनोंको अभय देने हेतु कश्यप ऋषिने कश्मीर उत्पन्न किया । भारतके सारे क्षेत्रोंसे सुसंस्कृत तथा सुविद्य लोगोंको वहां बसनेका आमंत्रण देकर महर्षि कश्यपने यह प्रदेश बसाया है ।

३ आ. कश्मीरभूमि शिवभक्तों हेतु ही है, यह बतानेवाले भगवान श्रीकृष्ण !

महाभारतके युद्धमें सारे राजाओंने धर्मयुद्धमें हिस्सा लिया; किंतु कश्मीरके राजा गोकर्णने उसमें हिस्सा नहीं लिया । तब श्रीकृष्णने उस अधर्मीका वध किया तथा उसके स्थानपर उसकी पत्नी यशोमतीका अभिषेक किया । इस प्रकार विश्वमें पहली बार एक महिलाको शासनकर्ता बनाया गया तथा उसका आरंभ भी कश्मीरसे ही हुआ । उसका अभिषेक करते समय स्वयं श्रीकृष्णने बताया कि कश्मीरकी भूमि साक्षात पार्वतीका रूप है । इस भूमिपर केवल शिवतत्त्व प्राप्त करने हेतु प्रयत्नरत रहनेवालोंको ही राज करनेका अधिकार है । जो शिवतत्त्वकी दिशामें अर्थात धर्मकी दिशामें प्रयास नहीं करते, उन्हें इस भूमिपर रहनेका कोई अधिकार नहीं ।
आजके कश्मीरमें अधर्मी अथवा असुर 
कौन हैं, तथा शिवप्रेमी कौन हैं, सूज्ञ व्यक्तियोंको यह अलगसे बतानेकी आवश्यकता नहीं !

४. कश्मीरी संस्कृतिकी भारतीयता

४ अ. भौगोलिकदृष्टिसे

कश्मीरका निर्देश हिंदू धर्मके अनेक प्राचीन संस्कृत ग्रंथोंमें दिखता है । ‘शक्ति-संगमतंत्र’ ग्रंथमें कश्मीरकी व्याप्ति आगे दिए अनुसार है ।
शारदामठमारभ्य कुडःकुमाद्रितटान्तकम् ।
तावत्काश्मीरदेशः स्यात् पन्चाशद्योजानात्मकः ?
अर्थ : शारदा मठसे केशरके पर्वततक ५० योजन
(१ योजन ४ कोस) विस्तृत भूभाग कश्मीर देश है ।
  महाभारतमें इसका निर्देश ‘कश्मीरमंडल’ है । (भीष्म. ९.५३)

४ आ. ऐतिहासिकदृष्टिसे

१. भगवान श्रीकृष्ण तथा भगवान बुद्ध इन दो महात्माओंने कश्मीरमें रहकर सम्मान प्रदान किया है । युधिष्ठिरके राज्याभिषेकमें कश्मीरका राजा गोनंद उपस्थित था । इससे कश्मीर हिंदू संस्कृतिसे एकरूप है, यह बात आसानीसे समझमें आती है ।
२. इ.स. पूर्व २७३-२३२ की इस कालावधिमें सम्राट अशोकने श्रीनगरी राजधानीकी स्थापना की । यही श्रीनगर है ! आज जहां श्रीनगर हवाई अड्डा है, उसके बाजूमें सम्राट अशोकका पोता दामोदरका विशाल प्रासाद (भवन) था । कश्मीर स्थित सारे स्थानोंके नाम परिवर्तन किए गए अथवा उनका इस्लामीकरण किया गया; किंतु आज भी श्रीनगरका नाम परिवर्तन नहीं कर सके, यह सत्य ध्यानमें रखें ! जिस कश्मीरकी राजधानी ही श्रीनगर है, वह राज्य अपना हिंदुत्व कैसे छुपा सकता है ?
३. ख्रिस्त जन्मपूर्व ३००० वर्ष कश्मीरका अस्तित्व था, ऐसा पुरातत्वीय आधार दिया जाता है । उस समय इस्लामका कोई प्रतिनिधि अस्तित्व़में नहीं था; किंतु ओमरका कोई पूर्वज निश्चित ही उस समय कश्मीरमें रहता होगा । यदि उसे पूछा जाए, तो कश्मीर भारतमें कबका विलय हो गया, ऐसा वह बताएगा ।

४ इ. धार्मिकदृष्टिसे

१. हिंदू संस्कृतिमें १६ संस्कारोंका विशेष महत्त्व है । जो उपनयन संस्कार करते हैं, वे उसके पश्चात बच्चेको सात कदम उत्तरकी दिशामें, अर्थात कश्मीरकी दिशामें चलने हेतु कहते हैं । इससे हिंदू संस्कारोंकी दृष्टिसे कश्मीरका महत्त्व ध्यानमें आएगा ।
२. हिंदू संस्कृति, मंदिर संस्कृति है । संपूर्ण कश्मीर घाटी एक समय भव्यदिव्य तथा ऐश्वर्यशाली मंदिरों हेतु सुप्रसिद्ध था । इस्लामी कुदृष्टि पडनेसे आज सर्वत्र इन मंदिरोंके भग्नावशेष  ही देखनेको मिलते हैं । कश्मीरके गरूरा गांवमें ‘जियान मातन’ नामका दैवी तालाब था । इस तालाबके किनारे ६०० वर्षपूर्व ७ मंदिर थे । सिकंदर भूशिकन नामके काश्मीरके मुसलमान राजाने उनमेंसे ६ मंदिर गिराए । सातवां मंदिर गिरानेकी सिद्धतामें था कि उस तालाबसे खून बहने लगा । इस घटनासे सिकंदर भूशिकन आश्चर्यचकित हुआ तथा घबराकर वहांसे भाग गया । इस प्रकार उस क्रूरकर्मीके चंगुलसे सातवा मंदिर मुक्त हुआ, जो आज भी विद्यमान है । यह मंदिर आज क्यों खडा है ? कश्मीर हिंदू संस्कृति है, इसकी पहचान बताने हेतु ही !

४ ई. अध्यात्मिकदृष्टिसे

१. श्रीविष्णु-लक्ष्मी एवं शारदादेवी एकसाथ कभी भी नहीं रहतीं, ऐसा कहा जाता है; किंतु केवल कश्मीरमें ही लक्ष्मी एवं शारदादेवी एकसाथ रहती आई हैं । यहां एक स्थानपर शारदाका तथा दूसरे स्थानपर श्रीलक्ष्मीका स्थान है ।
२. कश्मीरकी नागपूजक संस्कृति : नागपूजन हिंदू धर्मका अविभाज्य अंग है । कश्मीरमें प्राचीन कालसे नागपूजा प्रचलित है । अत: अनेक तालाब तथा झरनोंको नागदेवताओंके नाम प्राप्त हुए हैं । उदा. नीलनाग, अनंतनाग, वासुकीनाग, तक्षकनाग आदि । नाग उसके संरक्षकदेवता थे । अबुल फजलने ऐने अकबरीमें कहा है कि उस क्षेत्रमें लगभग सातसौ स्थानपर नागकी आकृतियां खोदी हुई दिखती हैं । विष्णुने वासुकीनागको सपरिवार यहां रहनेकी आज्ञा दी थी तथा यहां उसे कोई मारेगा नहीं, ऐसा वचन भी दिया था ।
आप मुझे बताइए, क्या अरबस्थानमें नागपूजन होता है ? वहां तो मूर्र्तिपूजा भी नहीं होती, नागकी आकृतियां खोदनेका प्रश्न ही नहीं उठता !

४ उ. सांस्कृतिकदृष्टिसे

प्राचीन कालसे कश्मीरमें उच्च संस्कृतिकी देखभाल होती आ रही है । विद्या एवं कलाओंका उत्कर्ष वहां दो सहस्र वर्षोंसे चला आ रहा है ।
१. संस्कृत भाषा हिंदू संस्कृतिका केंद्रबिंदू है । इस देववाणीमें सब धार्मिक विधियोंकी रचना हुई है । ये सारी धार्मिक विधियां कश्मीरसे केरलतक केवल संस्कृत भाषामें ही पठन की जाती हैं । इससे कश्मीरका केवल केरलसे ही नहीं, अपितु सारे भारतवर्षसे भाषिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक संबंध समझमें आएगा ।
२. क्षेमेंद्र, मम्मट, अभिनवगुप्त, रुद्रट, कल्हण जैसे पंडितोंने अनेक विद्वत्तापूर्ण संस्कृत ग्रंथोंकी रचना की । धर्म तथा तत्त्वज्ञानके क्षेत्रोंमें कश्मीरी लोगोंने प्रशंसनीय कार्य किया था । पंचतंत्र, यह सुबोध देनेवाला हिंदू संस्कृतिका ग्रंथ कश्मीरमें लिखा गया, यह बात कितने लोग जानते हैं ?
३. कुछ सहस्र वर्ष कश्मीर संस्कृत भाषा एवं विद्याका सबसे बडा तथा श्रेष्ठ अध्ययन केंद्र था । दसवें शतकतक भारतके सारे क्षेत्रोंसे छात्र अध्ययन हेतु वहां जाते थे । तत्त्वज्ञान, धर्म, वैद्यक, ज्योतिर्शास्त्र, शिल्प, अभियांत्रिकी, चित्रकला, संगीत, नृत्य आदि अनेक विषयोंमें कश्मीर निष्णात था ।
हिंदुओंके सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक ग्रंथोंमें उनका अभिमानपूर्ण निर्देश है; किंतु आज इस गौरवशाली इतिहासको भीषण एव प्रचंड वर्तमानने पोंछ दिया है । हमें यह परिस्थिति परिवर्तन करनी है ।
४. ललितादित्य, अवंतिवर्मा, यशस्कर, हर्ष इन राजाओंने अनेक विद्वानों तथा कलाकारोंको आश्रय देकर संस्कृतिके विकासमें सहयोग लिया । अनेक भव्य सुंदर मंदिर निमार्ण कर शिल्पकलाके स्मारक बनाकर रखे हैं ।
५. ‘प्रत्यभिज्ञादर्शन’ नामक एक नया दर्शन कश्मीरमें ही उत्पन्न हुआ । अत: वह ‘काश्मीरीय’ नामसे प्रसिद्ध हुआ । वसुगुप्त (इ.स. का ८ वा शतक) कश्मीरी महापंडित इस दर्शनके मूल प्रवर्तक हैं ।
६. कश्मीरी क्रियापदमें भारतीय आर्य विशेषताएं स्पष्ट रूपसे समझमें आती हैं । कश्मीरी साहित्यका विकास भी उसकी भारतीय आर्य परंपराका निदर्शक है । यह भाषा अरबी अथवा जंगली उर्दू से उत्पन्न नहीं है, अपितु देववाणी संस्कृतकी कन्या है, यह ध्यानमें रखें !

४ ऊ. नैसर्गिकदृष्टिसे

१. भारतका नंदनवन : कालिदासने कश्मीर अर्थात दूसरा स्वर्ग ही है, ऐसा लिखकर रखा है । पृथ्वीपर कैलास सर्वोत्तम स्थान, कैलासपर हिमालय सर्वोत्तम स्थान तथा हिमालयमें कश्मीर सर्वोत्तम स्थान, इतिहासकार कल्हणने कश्मीरका ऐसा ही वर्णन लिखकर रखा है ।
२. सर वाल्टर लॉरेन्सने कहा है कि एक समय काश्मीरमें इतनी समृद्धि तथा निरामयता थी कि वहांकी स्त्रियां सृजनशीलतामें जैसे भूमिसे स्पर्धा करती थीं । भूमि जैसे सकस धानसंपदा देती है, वहांकी स्त्रियां वैसी ही सुदृढ संततिको जनम देती थीं । किंतु आज क्या हो रहा है ? उसी कश्मीर घाटीमें ३० वर्षकी इन महिलाओंकी माहवारी बंद हो रही है । यह सब दुर्भाग्यपूर्ण है !

५. भारतीय संस्कृति हेतु कश्मीरी संस्कृतिका अमूल्य योगदान !

५ अ. स्त्रियोंको राज्यकर्ताका पद देनेकी परंपरा देनेवाला कश्मीर !

दिद्दा, सुगंधा, सूर्यमती जैसी अनेक कर्तव्यनिष्ठ राज्यकर्ता स्त्रियां भी कश्मीरके इतिहासमें प्रसिद्ध हुर्इं । उन्होंने बडी कुशलतासे राजकारोबार किया तथा प्रजाको सुखी रखा ।

५ आ. पूरे विश्वमें हिंदू धर्मप्रचारक भेजनेवाला देश !

सम्राट कनिष्कके राजमें विद्वान वसुमित्रकी अध्यक्षतामें एक विशाल धर्मपरिषद आयोजित की गई थी । भारतके कोने-कोनेसे ५०० धर्मपंडित वहां नीतीनियमोंका विचार-विमर्श करने हेतु गए थे । परिषद संपन्न होनेके पश्चात वहींसे युवा धर्मपंडित तिब्बत, चीन एवं मध्य एशिया गए तथा उन्होंने हिंदू दर्शनके सत्यज्ञानका प्रसार किया । चीनमें भारतके अन्य क्षेत्रोंसे जितने धर्मप्रसारक गए, उससे अधिक धर्मप्रसारक केवल कश्मीरसे गए हैं, एक समय उस क्षेत्रमें ऐसा अभिमानसे कहा जाता था ।

६. कश्मीरी हिंदुओंका स्वभूमिसे विस्थापन, यह पूरे भारतके हिंदुओं हेतु धोखेकी घंटी !

६ अ. कश्मीरी हिंदुओंका धर्मके लिए विलक्षण त्याग !

एक समय सुंदरताकी धरोहरके रूपमें भारतकी प्रतिष्ठामें सम्मानका सिरपेंच धारण करनेवाला कश्मीर आज आतंकवादियोंकी कार्यवाहियोंका केंद्र बन गया है । कश्मीरका वर्तमान राजनैतिक, सामाजिक एवं शैक्षणिक जीवन देखें, तो ६५ वर्ष स्वतंत्रताका उपभोग लेनेवाले भारतकी दृष्टिसे कश्मीर एक कलंक ही होगा ।
अतीतकी जो बातें अपने सामने आती रहती हैं, उन्हें सुनकर भी अनसुना करना, समझकर भी नासमझ बनना, तथा देखकर भी अनदेखा करना, इसके जैसा दूसरा भ्रम नहीं होगा । १९ जनवरी १९९० को संपूर्ण कश्मीरसे हिंदू निकल जाएं, स्थान-स्थानपर ऐसा आदेश दिया गया । खुले आम कहा गया, समाचारपत्रोंमें आवेदन दिए गए, और पूरे हिंदू समाजको वहांसे निकल जाना पडा । उनके सामने तीन पर्याय थे । एकतो धर्म बदलें, जिहादमें सम्मिलित हों, अथवा वहांसे चले जाएं । उन हिंदुओंने बहुत बडा त्याग किया । धर्म बचाने हेतु अपनी भूमि, सम्पत्ति, अपनी यादें, बचपन, सारे मृदु (नाजुक) धागे अपने हाथोंसे तोडकर ये लोग दूसरे स्थानपर जाकर रहे ।
धर्महेतु त्याग आज भी किया जाता है, यह एक दृष्टिसे स्पृहणीय है; किंतु दूसरे अर्थमें हमें उसका दुख भी होना चाहिए । हमें दुख होना चाहिए कि यह सब करना पडता है, इसे हम सुसंस्कृत दुनिया कहेंगे या कुसंस्कृत ? तथा यह सब हिंदुओंके राष्ट्रमें हिंदुओंको ही करना पड रहा है, इसका कारण क्या है ? .

६ आ. २३ वर्षोंमें कश्मीरमें हिंदु नामशेष

प्रश्न उत्पन्न होता है कि इस कालमें सबके सामने इतनी बडी मात्रामें अत्याचार हो रहे थे और हम क्या कर रहे थे ? ये बातें हमतक पहुंचीं वैâसे नहीं ? पहुंचीं भी, तो उनकी तीव्रता हम क्यों समझ नहीं पाए ? हमारी नींद क्यों नहीं खुली ? इसका एक कारण है, जो यह सब समझ रहे थे, वे चुप रहे । उन्होंने देखकर अनदेखा किया, सुनकर अनसुना किया तथा समझकर भी नासमझ बने रहे, उसकी परिणति १९९० से आज २०१३ तक चल रही है । २३ वर्ष पश्चात वहां नामके लिए भी हिंदू शेष नहीं है ।

६ इ. हिंदू धर्म जीवित रखनेका दायित्व भाग्यका नहीं !

हम यदि केवल अपने लिए जीवन जीकर हिंदू धर्म हेतु कुछ भी नहीं करेंगे, तो हिंदू धर्म जीवित रखनेका दायित्व ईश्वरपर नहीं । ईश्वरका नियम है कि जो अपनी जडें दृढ पकडकर खडा होता है, वही टिक पाता है । जो अपनी जडें दृढतासे पकडकर खडा नहीं होता, उसे अस्तित्वकाकोई अधिकार नहीं । हम उस हेतु क्या प्रयास करनेवाले हैं, यह महत्त्वपूर्ण बात है ।

स्त्रोत : हिंदी सनातन प्रभात