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Tuesday, September 8, 2015

उत्तंग मुनि

महाभारत युद्ध समाप्त हो चुका था। योगेश्वर श्रीकृष्ण द्वारका जा रहे थे। तभी रास्ते में उनकी सौजन्य भेंट उत्तंग मुनि से हूई। महाभारत युद्ध की घटना से अनजान उत्तंग मुनि ने जब श्रीकृष्ण से

हस्तिनापुर के बारे में पूछा, तब श्रीकृष्ण ने कौरवों के नाश का समाचार सुना दिया।

यह सुनकर मुनि क्रोधित हो गए उन्होंने कहा, 'हे कृष्ण अगर आप चाहते तो इस युद्ध को रोक सकते थे। में अब आपको शाप दूंगा।'

तब वासुदेव ने कहा, 'मुनिवर पहले आप मेरी पूरी बात तो सुन लें, फिर चाहे तो शाप दे दीजिएगा। यह कहकर श्रीकृष्ण ने अपना विराट रूप दिखाया और धर्म की रक्षा के लिए उन्होंने ऐसा किया।'

इसके बाद उन्होंने उत्तंग मुनि से वर मांगने को कहा, 'तब मुनि ने कहा, भगवन जब भी मुझे प्यास लगे तुरंत जल मिल जाए। भगवान यह वर देकर चले गए।'

एक दिन मुनि उत्तंग वन के रास्ते कहीं जा रहे थे, उन्हें प्यास लगी। तभी उनके सामने से आता हुआ एक चांडाल दिखाई दिया। वह हाथ में धनुष और मशक( चमड़े का पात्र, जिसमें पानी रखा जाता था) लिए हुए था।

उसने मुनि को देखकर कहा, लगता है आप काफी प्यासे हैं। लीजिए पानी पी लीजिए। लेकिन चांडाल से घृणा के कारण उन्होंने पानी नहीं पीया। उन्हें श्रीकृष्ण द्वारा दिए गए इस स्वरूप पर क्रोध आया।

तभी वहां श्रीकृष्ण प्रकट हुए, उत्तंग मुनि ने कहा, 'प्रभु आपने मेरी परीक्षा ली है। लेकिन मैं ब्राह्मण होकर चांडाल के मशक से जल कैसे पीता?'

श्रीकृष्ण ने कहा, आपने जल की इच्छा की तो मैंने इंद्र से आपको अमृत पिलाने को कहा, 'मैं निश्चिंत था कि आप जैसा ज्ञानी पुरुष ब्राह्मण और चांडाल के भेद से ऊपर उठ हो चुका होगा और आप अमृत प्राप्त कर लेंगे। लेकिन आपने मुझे इंद्र के सामने लज्जित कर दिया। यह कहकर वासुदेव अंतर्ध्‍यान हो गए।'

संक्षेप में

यथार्थ का ज्ञान होने पर जाति और वर्ण का कोई भेद नहीं रह जाता। आत्मबोध, तत्वज्ञान , जीवन मुक्ति पर हम सबका अधिकार है। जिसे पाकर व्यक्ति का अत्यंत दुःख का आभाव और शाश्वत शांति और परम् आनन्द को पाकार कृत्य कृत्य तथा निहाल हो जाता है।इसलिए इस तरह के मिथ्या अभिमान छोड़कर हमें वर्तमान में जीना चाहिए।