Thursday, February 23, 2017

शिवरात्रि पर देखें : सऊदी अरब के मक्का में कैसे दूध, घी से होता है शिवलिंग का अभिषेक

आप जानते ही है शिवलिंग का अभिषेक कैसे होता है, जल से, दूध से, घी से, दही है कई तरीके है, आपने अक्सर देखा होगा भारत में हम दही को शिवलिंग पर डालते है फिर हाथ से उसे शिवलिंग पर लगाते हैये सारी चीजे और शिवलिंग की पूजा पद्धत्ति कोई आज की नहीं बल्कि हज़ारो वर्ष पुरानी है
मक्का में भी  360 मूर्तियां थी और मुहम्मद के चाचा स्वयं मूर्तिकार थे और भगवान् शिव के शिवलिंग की पूजा करते थे, ये जानकारी तो आप सबको है की 

और आप सभी जानते है की मदीना से अपने साथियों के साथ जब मुहम्मद ने मक्का पर हमला किया तो 360 में से 359 मूर्तियां तोड़ दी, केवल एक को छोड़कर जो की शिवलिंग थी 

बाद में उसी पर मुहम्मद के साथियों ने चांदी की परत लगा दी फिर काबा नामक स्ट्रक्चर का निर्माण हुआ जो आज भी मेक्का में है आप सब उसे पहचानते भी होंगे 
और उसी उसी काबा में आज भी वो शिवलिंग मौजूद है, जिसे मुस्लिम "ब्लैक स्टोन" यानि काला पत्थर बोलते है 

मुस्लिम वैसे मूर्ति पूजा का विरोध करते है पर इस "काले पत्थर" यानि शिवलिंग से उनको बेहद प्रेम है वो इसे चूमते है और देखें इसका अभिषेक कैसे करते है 

ड़ा ही साफ़ विडियो है, एक मुस्लिम पुरुष शिवलिंग का वैसे ही अभिषेक कर रहा है जैसे भारत में शिवलिंग का किया जाता है, क्योंकि मक्का में भी तो वही हज़ारो वर्षो वाली पद्धति थी 
मुस्लिम पुरुष नंगे पैर भी है 


आपको एक और बात बता दें की, जैसे हिन्दू लोग मंदिर के दर्शन के बाद मंदिर के चक्कर लगाते है वैसे मुस्लिम भी काबा जिसके अंदर शिवलिंग है उसके चक्कर लगाते है 

ये पद्धत्ति भी हज़ारो वर्ष पुरानी है, भले ही मुहम्मद के आक्रमण के बाद मस्जिदे तोड़ दी गयी परंतु शिवलिंग की पूजा पद्धत्ति आज भी उसी तरह से कायम है 

Tuesday, February 21, 2017

विश्वव्यापी श्रीराम कथा

विश्वव्यापी श्रीराम कथा- By मनीषा सिंह
श्रीराम कथाकी व्यापकता को देखकर पाश्चात्य विद्वानोंने रामायण को ई पू ३०० से १०० ई पू की रचना कहकर काल्पनिक घोषित करने का षड्यंत्र रचा , रामायण को बुद्धकी प्रतिक्रिया में उत्पन्न भक्ति महाकाव्य ही माना इतिहास नहीं ।
तथाकथित भारतीय विद्वान् तो पाश्चात्योंसे भी आगे निकले
पाश्चात्योंके इन अनुयायियोंने तो रामायण को मात्र २००० वर्ष (ई की पहली शतीकी रचना ) प्राचीन माना है ।
इतिहासकारोंने श्रीरामसे जुड़े साक्ष्योंकी अनदेखी नहीं की अपितु साक्ष्योंको छिपाने का पूरा प्रयत्न किया है , जो कि एक अक्षम्य अपराध है । भारतमें जहाँ किष्किन्धामें ६४८५ (४४०१ ई पू का ) पुराना गदा प्राप्त हुआ था वहीं गान्धार में ६००० (४००० ई पू ) वर्ष पुरानी सूर्य छापकी स्वर्ण रजत मुद्राएँ । हरयाणा के भिवानी में भी स्वर्ण मुद्राएँ प्राप्त हुईं जिनपर एक तरफ सूर्य और दूसरी तरफ श्रीराम-सीता-लक्ष्मण बने हुए थे । अयोध्यामें ६००० वर्ष पुरानी (४००० ई पू की ) तीन चमकीली धातु के वर्तन प्राप्त हुए ,दो थाली एक कटोरी जिनपर सूर्यकी छाप थी । ७००० वर्ष पुराने (५००० ई पू से पहले के) ताम्बे के धनुष बाण प्राप्त हुए थे । श्रीलंका में अशोक वाटिका से १२ किलोमीटर दूर दमबुल्ला सिगिरिया पर्वत शिखर पर ३५० मीटर की ऊंचाई पर ५ गुफाएं हैं जिनपर प्राप्त हजारों वर्ष प्राचीन भित्तिचित्र रामायण की कथासे सम्बंधित हैं ।
उदयवर्ष (जापान ) से यूरोप ,अफ्रीका से अमेरिका सब जगह रामायण और श्रीरामके चिन्ह प्राप्त हुए हैं जिनका विस्तारसे यहाँ वर्णन भी नही किया जा सकता ।

उत्तरी अफ्रीकाका मिश्रदेश भगवान् श्रीरामके नामसे बसाया गया था । जैसे रघुवंशी होने से भगवान् रघुपति कहलाते हैं वैसे ही अजके पौत्र होने से प्राचीन समय में अजपति कहलाते थे ।इसी अजपति से Egypt शब्द बना है जो पहले Eagypt था ।
राजा दशरथ Egypt के प्राचीन राजा थे इसका उल्लेख Ezypt के इतिहास में मिलता है , वहीं सबसे लोकप्रिय राजा रैमशश भगवान् राम का अपभ्रंश है ।
यूरोप का रोम नगर से सभी परिचित है जो यूरोपकी राजधानी रहा था । २१ अप्रैल ७५३ ई पू (२७६९ वर्ष पहले ) रोम नगर की स्थापना हुई थी । विश्व इतिहास के किसी भी प्राचीन नगर की स्थापना की निश्चित तिथि किसी को आजतक ज्ञात नहीं केवल रोम को छोड़कर , जानते हैं इसका कारण ?
इसका कारण रोम को भगवान् श्रीरामके नामसे चैत्र शुक्ल नवमी (श्रीराम जन्म दिवस पर) २१ अप्रैल को स्थापित किया गया था इसीलिए इस महानगर की तिथि आजतक ज्ञात है सभी को । यही नहीं इस नगर के ठीक विपरीत दिशा में रावण का नगर Ravenna भी स्थापित किया गया था जो आज भी विद्यमान है ।
रावण सीताजी को डरा धमका रहा है साथ में विभीषण जी हैं
यूरोप के प्राचीन विद्वान् एड्वर्ड पोकाँक लिखते हैं -
"Behold the memory of......... Ravan still preserved in the city of Ravenna, and see on the western coast ,its great Rival Rama or Roma "
पोकाँक रचित भूगोल के पृष्ठ १७२ से
इटली से प्राप्त प्राचीन रामायण के चित्र अनेक भ्रांतियों को ध्वस्त कर देते हैं ये चित्र ७०० ई पू (२७०० वर्ष पहले ) के हैं जिनमें रामायण कथा के सभी चित्र तो हैं ही उत्तर काण्ड के लवकुश चरित्र के भी चित्र हैं यहीं नहीं लवकुश के द्वारा श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ के घोड़े का पकड़ने की लीला के चित्र भी अंकित हैं वाल्मीकिकृत रामायण के न होकर पद्मपुराणकी लीला के हैं जो ये सिद्ध करते हैं न रामायण २००० पहले रची गयी न उत्तर काण्ड प्रक्षिप्त है और न ही पद्मपुराण ११ वी सदी की रचना ये साक्ष्य सिद्ध कर रहे हैं उत्तर काण्ड सहित रामायण और पद्मपुराण २७०० वर्ष पहले भी इसी रूप में विद्यमान इसकी रचना तो व्यासजी और वाल्मीकिके समय की है है ।
यही नहीं प्राचीन रोम के सन्त और राजा भारतीय परिधान ,कण्ठी और उर्ध्वपुण्ड्र तिलक भी लगाया करते थे जो उनके वैष्णव होने के प्रमाण हैं । बाइबल में भी जिन सन्त का चित्र अंकित था वो भी धोती ,कण्ठी धारण किये और उर्ध्वपुण्ड्र लगाये हुए थे । अब इन पाश्चात्यों और तदानुयायी भारतीय विद्वानोंने किस आधार पर रामायण को बुद्ध की प्रतिक्रया स्वरूप मात्र २००० वर्ष पुरानी रचना कहा है ??? जबकि सहस्रों वर्ष प्राचीन प्रमाण विद्यमान हैं ।
२७०० वर्ष प्राचीन इटली से प्राप्त रामायण के चित्र ।
बाली द्वारा सुग्रीब् की पत्नी का हरण

वन जाते हुए भगवान् श्रीसीता-राम-लक्ष्मणजी
भगवान् श्रीराम का जन्म वैवस्वत मन्वन्तर के २४वे त्रेतायुग के उत्तरार्द्ध में १८१६०१६० वर्ष पूर्व चैत्र शुक्ल नवमी ,कर्क लग्न पुनर्वसु नक्षत्र में हुआ था । श्रीराम ब्रह्मर्षि विश्वामित्र के साथ यज्ञ रक्षा के लिये १५ वे वर्ष में १८१६०१४६ वर्ष पूर्व में गए थे । श्रीराम जानकी विवाह १६वे वर्षमें मार्घशीर्ष शुक्ल पञ्चमी को १८१६०१४५ वर्ष पूर्व में हुआ था ! विवाह के १२ वर्ष बाद वैशाख शुक्ल पञ्चमी पुष्य नक्षत्र में श्रीरामका २७ वर्ष की आयु में १८१६०१३३ वर्ष पूर्व वनवास हुआ था । माघ शुक्ल अष्टमी को रावण माता सीता का १८१६०१२०वर्ष पूर्व हरण किया और माघ शुक्ल दशमी को अशोक वाटिका में ले गया । ६ मास बाद भगवान् श्रीरामकी सुग्रीवकी मित्रता श्रावण मास के शुक्ल पक्ष के प्रारंभ में १८१६०११९ वर्ष पूर्व हुई थी ! तभी बाली का वध और सुग्रीव का राज्याभिषेक हुआ था । ४ मास बाद मार्घशीर्ष शुक्ल प्रतिपदाको समस्त वानर हनुमान् जी अंगदादि के नेतृत्व में सीता अन्वेषण के लिये प्रस्थान किया । दशवे दिन मार्घशीर्ष शुक्ल दशमीको सम्पाती से संवाद और एकादशी के दिन हनुमान् जी महेंद्र पर्वत से कूदकर १०० योजन समुद्र पारकर लङ्का गये ! उसी रात सीताजीके दर्शन हुए । द्वादशीको शिंशपा में हनुमान् जी स्थित रहे । उसी रात्रि को सीता माता से वार्तालाप हुआ । त्रयोदशी को अक्षकुमार का वध किया । चतुर्दशी को इन्द्रजित के ब्रह्मास्त्र से बन्धन और लङ्का दहन हुआ । मार्घशीर्ष कृष्ण सप्तमीको हनुमान् जी वापस श्रीरामसे मिले । अष्टमी उत्तराफाल्गुनी में अभिजित मुहूर्त में लङ्काके लिये श्रीराम प्रस्थान किये । सातवे दिन मार्घशीर्ष की अमावस्या के दिन समुद्रके किनारे सेनानिवेश हुआ । पौषशुक्ल प्रतिपदा से ४ दिन तक समुद्र के प्रति प्रायोपवेशन , दशमी से त्रयोदशी तक सेतुबन्ध , चतुर्दशी को सुवेलारोहण ,पौष मास की पूर्णिमासे पौष कृष्ण द्वितीया तक सैन्यतारण ,तृतीया से दशमी तक मन्त्रणा , पौष शुक्ल द्वादशी को सारण ने सेना की संख्या की ,फिर सारण ने वानरों के सारासार का वर्णन किया । माघ शुक्ल प्रतिपदा को अंगद दूत बनकर रावण के दरवार में गए । माघ शुक्ल द्वितीया से युद्ध प्रारम्भ हुआ । माघ शुक्ल नवमी युद्धके आठवे दिन श्रीराम-लक्ष्मणका नागपाश बन्धन हुआ । दशमी को गरुड़जी द्वारा बन्धन मुक्ति ,दो दिन युद्ध बन्द रहा । द्वादशीको धूम्राक्ष वध ,त्रयोदशी को अकम्पन का हनुमान् द्वारा वध , माघ शुक्ल चतुर्दशी से ३ दिन में प्रहस्त वध हुआ। माघ कृष्ण द्वितीया से चतुर्थी तक श्रीराम से रावण का युद्ध हुआ । पञ्चमी से अष्टमी तक ४ दिनों में कुम्भकर्ण को जगाया गया । नवमी से चतुर्दशी तक ६ दिनों में कुम्भकर्ण वध हुआ । माघ अमावस्या को युद्ध बन्द रहा । फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा से चतुर्थी तक नारान्तक वध ,पञ्चमी से सप्तमी तक ३ दिन में अतिकाय वध , अष्टमी से द्वादशी तक निकुम्भादि वध , ४ दिनों में फाल्गुन कृष्ण प्रतिपदा को मकराक्ष वध ,फाल्गुन कृष्ण द्वितीया इन्द्रजित विजय ,तृतीया को औषधि अनयन ,तदन्तर ५ दिनों तक युद्ध बन्द रहा ।
फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी से ६ दिन में इंद्रजीत का वध , अमावस्या को रावण की युद्ध यात्रा । चैत्र शुक्ल शुक्ल तृतीया से पाँच दिनों में १८१६०११९ वर्ष पूर्व रावण के प्रधानों का वध किया । चैत्र शुक्ल नवमी को भगवान् श्रीरामके ४२ वे जन्म दिवस पर लक्ष्मण शक्ति हुई । दशमी को युद्ध बन्द रहा एकादशी को मातलि का स्वर्ग से आगमन ,तदन्तर १८ दिनों में रावण तक श्रीराम-रावण में घोर युद्ध । चैत्र कृष्ण चतुर्दशी को रावण वध । इस तरह माघ शुक्ल द्वितीया से चैत्र कृष्ण चतुर्दशी तक ८७ दिन युद्ध चला । बीच में १५ दिन युद्ध बन्द रहा । चैत्र अमावस्या को रावण का संस्कार किया । वैशाख शुक्ल द्वितीय को विभीषण का राज्याभिषेक , तृतीया को माता सीता की अग्नि परीक्षा हुई । चतुर्थी को पुष्पकारोहण । वैशाख शुक्ल पञ्चमी १४ वर्ष वनवास पूर्ण हुए ,भरद्वाज ऋषि के आश्रम पर आगमन । वैशाख शुक्ल सप्तमी को श्रीराम का राज्याभिषेक हुआ । ११००० वर्ष ११ मास और ११ दिन तक राज्य करके भगवान् श्रीराम चैत्र कृष्ण तृतीय को १८१४९११८ वर्ष पूर्व में साकेत धाम के चले गए ।
जय श्री राम

Tuesday, February 14, 2017

मुहम्मद स्वयं हिन्दू ही जन्मे थे, होती थी महादेव की पूजा, इसके तथ्य भी हैं मौजूद

इराक का एक पुस्तक है जिसे इराकी सरकार ने खुद छपवाया था। इस किताब में 622 ई से पहले के अरबजगत का जिक्र है। आपको बता दें कि ईस्लाम धर्म की स्थापना इसी साल हुई थी। किताब में बताया गया है कि मक्का में पहले शिवजी का एक विशाल मंदिर था जिसके अंदर एक शिवलिंग थी जो आज भी मक्का के काबा में एक काले पत्थर के रूप में मौजूद है। पुस्तक में लिखा है कि मंदिर में कविता पाठ और भजन हुआ करता था।
प्राचीन अरबी काव्य संग्रह गंथ ‘सेअरूल-ओकुल’ के 257वें पृष्ठ पर मोहम्मद से 2300 वर्ष पूर्व एवं ईसा मसीह से 1800 वर्ष पूर्व पैदा हुए लबी-बिन-ए-अरव्तब-बिन-ए-तुरफा ने अपनी सुप्रसिद्ध कविता में भारत भूमि एवं वेदों को जो सम्मान दिया है, वह इस प्रकार है-
“अया मुबारेकल अरज मुशैये नोंहा मिनार हिंदे।
व अरादकल्लाह मज्जोनज्जे जिकरतुन।1।
वह लवज्जलीयतुन ऐनाने सहबी अरवे अतुन जिकरा।
वहाजेही योनज्जेलुर्ररसूल मिनल हिंदतुन।2।
यकूलूनल्लाहः या अहलल अरज आलमीन फुल्लहुम।
फत्तेबेऊ जिकरतुल वेद हुक्कुन मालन योनज्वेलतुन।3।
वहोबा आलमुस्साम वल यजुरमिनल्लाहे तनजीलन।
फऐ नोमा या अरवीयो मुत्तवअन योवसीरीयोनजातुन।4।
जइसनैन हुमारिक अतर नासेहीन का-अ-खुबातुन।
व असनात अलाऊढ़न व होवा मश-ए-रतुन।5।”
अर्थात-(1) हे भारत की पुण्य भूमि (मिनार हिंदे) तू धन्य है, क्योंकि ईश्वर ने अपने ज्ञान के लिए तुझ को चुना। (2) वह ईश्वर का ज्ञान प्रकाश, जो चार प्रकाश स्तम्भों के सदृश्य सम्पूर्ण जगत् को प्रकाशित करता है, यह भारतवर्ष (हिंद तुन) में ऋषियों द्वारा चार रूप में प्रकट हुआ।
(3) और परमात्मा समस्त संसार के मनुष्यों को आज्ञा देता है कि वेद, जो मेरे ज्ञान है, इनकेअनुसार आचरण करो।(4) वह ज्ञान के भण्डार साम और यजुर है, जो ईश्वर ने प्रदान किये। इसलिए, हे मेरे भाइयों! इनको मानो, क्योंकि ये हमें मोक्ष का मार्ग बताते है।
(5) और दो उनमें से रिक्, अतर (ऋग्वेद, अथर्ववेद) जो हमें भ्रातृत्व की शिक्षा देते है, और जो इनकी शरण में आ गया, वह कभी अन्धकार को प्राप्त नहीं होता।
इस्लाम मजहब के प्रवर्तक मोहम्मद स्वयं भी वैदिक परिवार में हिन्दू के रूप में जन्में थे, और जब उन्होंने अपने हिन्दू परिवार की परम्परा और वंश से संबंध तोड़ने और स्वयं को पैगम्बर घोषित करना निश्चित किया, तब संयुक्त हिन्दू परिवार छिन्न-भिन्न हो गया
और काबा में स्थित महाकाय शिवलिंग (संगेअस्वद) के रक्षार्थ हुए युद्ध में पैगम्बर मोहम्मद के चाचा उमर-बिन-ए-हश्शाम को भी अपने प्राण गंवाने पड़े।
उमर-बिन-ए-हश्शाम का अरब में एवं केन्द्र काबा (मक्का) में इतना अधिक सम्मान होता था कि सम्पूर्ण अरबी समाज, जो कि भगवान शिव के भक्त थे एवं वेदों के उत्सुक गायक तथा हिन्दू देवी-देवताओं के अनन्य उपासक थे, उन्हें अबुल हाकम अर्थात ‘ज्ञान का पिता’ कहते थे। बाद में मोहम्मद के नये सम्प्रदाय ने उन्हें ईर्ष्यावश अबुलजिहाल ‘अज्ञान का पिता’ कहकर उनकी निन्दा की।
http://allindiapos
जब मोहम्मद ने मक्का पर आक्रमण किया, उस समय वहाँ बृहस्पति, मंगल, अश्विनीकुमार, गरूड़, नृसिंह की मूर्तियाँ प्रतिष्ठित थी। साथ ही एक मूर्ति वहाँ विश्वविजेता महाराजा बलि की भी थी, और दानी होने की प्रसिद्धि से उसका एक हाथ सोने का बना था।
‘Holul’ के नाम से अभिहित यह मूर्ति वहां इब्राहम और इस्माइल की मूर्त्तियों के बराबर रखी थी। मोहम्मद ने उन सब मूर्त्तियों को तोड़कर वहां बने कुएं में फेंक दिया, किन्तु तोड़े गये शिवलिंग का एक टुकडा आज भी काबा में सम्मानपूर्वक न केवल प्रतिष्ठित है, वरन् हज करने जाने वाले मुसलमान उस काले (अश्वेत) प्रस्तर खण्ड अर्थात ‘संगे अस्वद’ को आदर मान देते हुए चूमते है।
जबकि इस्लाम में मूर्ति पूजा या अल्लाह के अलावा किसी की भी स्तुति हराम है
प्राचीन अरबों ने सिन्ध को सिन्ध ही कहा तथा भारत वर्ष के अन्य प्रदेशों को हिन्द निश्चित किया। सिन्ध से हिन्द होने की बात बहुत ही अवैज्ञानिक है। इस्लाम मत के प्रवर्तक मोहम्मद के पैदा होने से 2300 वर्ष पूर्व यानि लगभग 1800 ईश्वी पूर्व भी अरब में हिंद एवं हिंदू शब्द का व्यवहार ज्यों कात्यों आज ही के अर्थ में प्रयुक्त होता था।
अरब की प्राचीन समृद्ध संस्कृति वैदिक थी तथा उस समय ज्ञान-विज्ञान, कला-कौशल, धर्म-संस्कृति आदि में भारत (हिंद) के साथ उसके प्रगाढ़ संबंध थे। हिंद नाम अरबों को इतना प्यारा लगा कि उन्होंने उस देश के नाम पर अपनी स्त्रियों एवं बच्चों के नाम भी हिंद पर रखे।
अरबी काव्य संग्रह ग्रंथ ‘ से अरूल-ओकुल’ के 253वें पृष्ठ पर हजरत मोहम्मद के चाचा उमर-बिन-ए-हश्शाम की कविता है जिसमें उन्होंने हिन्दे यौमन एवं गबुल हिन्दू का प्रयोग बड़े आदर से किया है। ‘उमर-बिन-ए-हश्शाम’ की कविता नई दिल्ली स्थित मन्दिर मार्ग पर श्री लक्ष्मीनारायण मन्दिर (बिड़लामन्दिर) की वाटिका में यज्ञशाला के लाल पत्थर के स्तम्भ (खम्बे) पर कालीस्याही से लिखी हुई है, जो इस प्रकार है –
” कफविनक जिकरा मिन उलुमिन तब असेक ।
कलुवन अमातातुल हवा व तजक्करू ।1।
न तज खेरोहा उड़न एललवदए लिलवरा ।
वलुकएने जातल्लाहे औम असेरू ।2।
व अहालोलहा अजहू अरानीमन महादेव ओ ।
मनोजेल इलमुद्दीन मीनहुम व सयत्तरू ।3।
व सहबी वे याम फीम कामिल हिन्दे यौमन ।
व यकुलून न लातहजन फइन्नक तवज्जरू ।4।
मअस्सयरे अरव्लाकन हसनन कुल्लहूम ।
नजुमुन अजा अत सुम्मा गबुल हिन्दू ।5।
अर्थात् –(1) वह मनुष्य, जिसने सारा जीवन पाप व अधर्म में बिताया हो, काम, क्रोध में अपने यौवन को नष्ट किया हो। (2) यदि अन्त में उसको पश्चाताप हो, और भलाई की ओर लौटना चाहे, तो क्या उसका कल्याण हो सकता है ?
(3) एक बार भी सच्चे हृदय से वह महादेव जी की पूजा करे, तो धर्म-मार्ग में उच्च से उच्चपद को पा सकता है। (4) हे प्रभु ! मेरा समस्त जीवन लेकर केवल एक दिन भारत (हिंद) के निवास का दे दो, क्योंकि वहां पहुंचकर मनुष्य जीवन-मुक्त हो जाता है।
(5) वहां की यात्रा से सारे शुभ कर्मो की प्राप्ति होती है, और आदर्शगुरूजनों (गबुल हिन्दू) का सत्संग मिलता है।
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