Monday, February 29, 2016

इंदिरा गाँधी की कुछ कडवी हकीकत, truth of India Gandhi

इंदिरा गाँधी को एक बहुत
ही जिम्मेदार ,
ताकतवर और राष्ट्रभक्त महिला बताया हैं ,
इसकी कुछ
कडवी हकीकत से आपको रूबरू करवा दे !

इंदिरा प्रियदर्शिनी नेहरू राजवंश में
अनैतिकता को नयी ऊँचाई पर
पहुचाया. 
बौद्धिक इंदिरा को ऑक्सफोर्ड
विश्वविद्यालय में
भर्ती कराया गया था 

लेकिन वहाँ से
जल्दी ही पढाई में खराब प्रदर्शन
के कारण बाहर निकाल दी गयी. 

उसके बाद
उनको शांतिनिकेतन
विश्वविद्यालय में भर्ती कराया गया था,

 लेकिन गुरु
देव रवीन्द्रनाथ
टैगोर ने उन्हें उसके दुराचरण के लिए बाहर कर दिया.

शान्तिनिकेतन से
बहार निकाल जाने के बाद इंदिरा अकेली हो गयी.

राजनीतिज्ञ के रूप में
पिता राजनीति के साथ व्यस्त था और

 मां तपेदिक के
स्विट्जरलैंड में
मर रही थी.

 उनके इस अकेलेपन का फायदा फ़िरोज़ खान नाम के
व्यापारी ने उठाया. 

फ़िरोज़ खान मोतीलाल नेहरु
के घर पे
मेहेंगी विदेशी शराब की आपूर्ति किया करता था.

फ़िरोज़ खान और
इंदिरा के बीच प्रेम सम्बन्ध स्थापित हो गए.

महाराष्ट्र के तत्कालीन
राज्यपाल डा. श्री प्रकाश नेहरू ने चेतावनी दी,

कि फिरोज खान के
साथ अवैध संबंध बना रहा था. 

फिरोज खान इंग्लैंड में
तो था और
इंदिरा के प्रति उसकी बहुत सहानुभूति थी. 

जल्द
ही वह अपने धर्म
का त्याग कर,

एक मुस्लिम महिला बनीं और लंदन के एक
मस्जिद में
फिरोज खान से उसकी शादी हो गयी.

इंदिरा प्रियदर्शिनी नेहरू ने
नया नाम मैमुना बेगम रख लिया.

 उनकी मां कमला नेहरू
इस शादी से
काफी नाराज़ थी जिसके कारण उनकी तबियत और
ज्यादा बिगड़ गयी.

नेहरू भी इस धर्म रूपांतरण से खुश नहीं थे क्युकी इससे
इंदिरा के
प्रधानमंत्री बनने की सम्भावना खतरे में आ गयी. 
तो,

नेहरू ने
युवा फिरोज खान से कहा कि अपना उपनाम खान से
गांधी कर लो.

परन्तु इसका इस्लाम से हिंदू धर्म में परिवर्तन के साथ
कोई लेना -
देना नहीं था. 

यह सिर्फ एक शपथ पत्र द्वारा नाम
परिवर्तन का एक
मामला था. 
और फिरोज खान 
फिरोज गांधी बन
गया है, 

हालांकि यह
बिस्मिल्लाह शर्मा की तरह एक असंगत नाम है.

दोनों ने ही भारत
की जनता को मूर्ख बनाने के लिए नाम बदला था.

 जब
वे भारत लौटे,
एक नकली वैदिक विवाह जनता के उपभोग के लिए
स्थापित
किया गया था. 

इस प्रकार, 
इंदिरा और उसके वंश
को काल्पनिक नाम
गांधी मिला.

 नेहरू और गांधी दोनों फैंसी नाम हैं.

जैसे एक गिरगिट
अपना रंग बदलती है,

 वैसे ही इन लोगो ने
अपनी असली पहचान छुपाने के
लिए नाम बदले. . 

के.एन. राव की पुस्तक "नेहरू
राजवंश"
 (10:8186092005 ISBN) में यह स्पष्ट रूप से
लिखा गया है संजय गांधी फ़िरोज़ गांधी का पुत्र
नहीं था,

जिसकी पुष्टि के लिए उस पुस्तक में अनेक
तथ्यों को सामने
रखा गया है. 

उसमे यह साफ़ तौर पे लिखा हुआ है
की संजय गाँधी 
एक और मुस्लिम मोहम्मद यूनुस नामक सज्जन का बेटा था.

दिलचस्प बात
यह है की एक सिख लड़की मेनका का विवाह भी संजय गाँधी के साथ
मोहम्मद यूनुस के घर में ही हुआ था.

 मोहम्मद यूनुस ही वह
व्यक्ति था जो संजय गाँधी की विमान दुर्घटना के
बाद सबसे
ज्यादा रोया था. 

'यूनुस की पुस्तक 
"व्यक्ति जुनून और
राजनीति" (persons passions and politics )
(ISBN-10:
में साफ़ लिखा हुआ है की संजय गाँधी के
जन्म के बाद
उनका खतना पूरे मुस्लिम रीति रिवाज़ के साथ
किया गया था. 

कैथरीन
फ्रैंक की पुस्तक "the life of Indira Nehru Gandhi

(ISBN:
9780007259304) 
में इंदिरा गांधी के अन्य प्रेम संबंधों के
कुछ पर
प्रकाश डाला है. 

यह लिखा है
कि इंदिरा का पहला प्यार शान्तिनिकेतन
में जर्मन शिक्षक के साथ था. 

बाद में वह एम.ओ मथाई,

(पिता के सचिव) धीरेंद्र ब्रह्मचारी
 (उनके योग शिक्षक) के साथ
और 
दिनेश सिंह
(विदेश मंत्री) के साथ भी अपने प्रेम संबंधो के लिए
प्रसिद्द हुई. 

पूर्व
विदेश मंत्री नटवर सिंह ने इंदिरा गांधी के मुगलों के
लिए संबंध के बारे में
एक दिलचस्प रहस्योद्घाटन किया अपनी पुस्तक

"profiles and
letters "
 (ISBN: 8129102358) में किया. 

यह
कहा गया है
कि 1968 में इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री के
रूप में
अफगानिस्तान की सरकारी यात्रा पर गयी थी .

नटवरसिंह एक
आई एफ एस अधिकारी के रूप में इस दौरे पे गए थे. 

दिन भर
के
कार्यक्रमों के होने के बाद इंदिरा गांधी को शाम में
सैर के लिए बाहर
जाना था . 

कार में एक लंबी दूरी जाने के बाद,
इंदिरा गांधी बाबर
की कब्रगाह के दर्शन करना चाहती थी,

 हालांकि यह
इस
यात्रा कार्यक्रम में शामिल नहीं किया गया.

अफगान
सुरक्षा अधिकारियों ने उनकी इस इच्छा पर
आपत्ति जताई पर
इंदिरा अपनी जिद पर अड़ी रही . 

अंत में वह उस
कब्रगाह पर गयी . 

यह
एक सुनसान जगह थी.

 वह बाबर की कब्र पर सर झुका कर
आँखें बंद
करके कड़ी रही और नटवर सिंह उसके पीछे खड़े थे . 

जब
इंदिरा ने
उसकी प्रार्थना समाप्तकर ली तब वह मुड़कर नटवर से
बोली 

"आज
मैंने अपने इतिहास को ताज़ा कर लिया (Today we
have had our
brush with history ". 

यहाँ आपको यह बता दे
की बाबर मुग़ल
साम्राज्य का संस्थापक था, 

और नेहरु खानदान
इसी मुग़ल साम्राज्य
से उत्पन्न हुआ. 

इतने सालो से भारतीय
जनता इसी धोखे में है की नेहरु
एक कश्मीरी पंडित था....

जो की सरासर गलत तथ्य
है..... 

इस तरह इन
नीचो ने भारत में अपनी जड़े जमाई जो आज एक बहुत बड़े
वृक्ष में
तब्दील हो गया हैं ,

जिसकी महत्वाकांक्षी शाखाओ ने
माँ भारती को आज बहुत जख्मी कर दिया हैं बाकी देश के
प्रति यदि आपकी भी कुछ
जिम्मेदारी बनती हो , 

तो अब आप लोग '' निःशब्द ''
ना बनियेगा ,, 

इसे
फैला दीजिए हर घर में !!!!

वन्देमातरम..

रॉबर्ट और प्रियंका की शादी सन 1997 में हुई
थी .
लेकिन अगर कोई रॉबर्ट को ध्यान से देखे तो यह
बात सोचेगा कि सोनिया ने रॉबर्ट जैसे कुरूप और
साधारण व्यक्ति से प्रियंका की शादी कैसे
करवा दी ?

क्या उसे प्रियंका के लिए कोई उपयुक्त वर नहीं मिला ,

और यह शादी जल्दी में और चुप चाप
क्यों की गयी . ???

वास्तव में सोनिया ने रॉबर्ट से
प्रियंका की शादी अपनी पोल खुलने के डर से
की थी .

क्योंकि जिस समय सोनिया इंगलैंड में एक कैंटीन में
बार गर्ल थी . 

उसी समय उसी जगह रोबट
की माँ मौरीन (Maureen)
भी यही काम करती थी .??

मौरीन को सोनिया और माधव राव की रास
लीला की बात पता थी ,

जब वह उसी कैंटीन सोनिया उनको शराब
पिलाया करती थी .

मौरीन यह भी जानती थी कि किन किन लोगों के
साथ सोनिया के अवैध सम्बन्ध थे .

जब सोनिया राजिव से शादी करके दिल्ली आ गयी ,

तो कुछ समय बाद मौरीन भी दिल्ली में बस गयी .

मौरीन जानती थी कि सोनिया सत्ता के लिए कुछ
भी कर सकती है ,

क्योंकि जो भी व्यक्ति उसके खतरा बन
सकता था सोनिया ने उसका पत्ता साफ कर दिया ,

जैसे संजय , 
माधव राव , 
पायलेट ,
जितेन्द्र प्रसाद ,
योगी , 

यहाँ तक लोग तो यह भी शक है कि राजीव
की हत्या में सोनिया का भी हाथ है ,

वर्ना वह अपने पति के हत्यारों को माफ़ क्यों कर देती ?

चूँकि मौरीन का पति और रॉबर्ट का पिता राजेंदर
वडरा पुराना जनसंघी था ,

और सोनिया को डर था कि अगर अपने पति के दवाब ने
मौरीन अपना मुंहखोल देगी तो मुझे भारत पर हुकूमत करने
और अपने नालायक कु पुत्र राहुल को प्रधानमंत्री बनाने
में सफलता नहीं मिलेगी .

इसीलिए सोनिया ने मौरीन के लडके रॉबर्ट
की शादी प्रियंका से करवा दी .

............शादी के बाद-की कहानी -..........
राजेंद्र वडरा के दो पुत्र ,
 रिचार्ड और रॉबर्ट और
 एक
पुत्री मिशेल थे .

और प्रियंका की शादी के बाद सभी एक एक कर मर गए

या मार दिएगए .

जैसे , 
मिशेल ( Michelle )सन 2001 में कार
दुर्घटना में मारी गयी ,

रिचार्ड ( Richard )ने सन 2003 में आत्मह्त्या कर ली .

और प्रियंका के ससुर सन 2009 में एक मोटेल में मरे हुए पाए
गए थे .

लेकिन इनकी मौत के कारणों की कोई जाँच नहीं कराई
गयी ,

और इसके बाद सोनिया ने रॉबर्ट को राष्ट्रपति और
प्रधान मंत्री के बराबर का दर्जा इनाम के तौर पर दे
दिया .

तब इस अधिकार को जिस रॉबर्ट को कोई
पडौसी भी नहीं जानता था ,

उसने मात्र आठ महीनों में
करोड़ों की संपत्ति बना ली ,

और कई
कंपनियों का मालिक बन गया , 

साथ ही सैकड़ों एकड़
कीमती जमीने भी हथिया ली 

"अगर
 जानकारी अच्छी लगे
तो प्लीज शेयर करना न भूले
Jai hind
🇮🇳🇮🇳🇮🇳

Saturday, February 27, 2016

'अल-तकिया' ll Al Taquia

ll 'अल-तकिया' ll
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गजवा-ए-हिन्द (हिन्दुस्तान को मुग्लिस्तान बनाना मकसद)
* इसने इस्लाम के प्रचार प्रसार में जितना योगदान दिया है उतना इनकी सैंकड़ों हजारों कायरों की सेनायें नहीं कर पायीं ।

* इस अचूक हथियार का नाम है "अल - तकिया" । 

** आज मै आपको इसके बारे में बताने जा रहा हूँ भाईयों इग्नोर न करना ध्यान से जरुर पढ़ना **

--> ये " अल तकीय " जिहाद का सबसे खतरनाक रूप है ये एक मीठा जहर है यह " अल तकिया " सभी तरह के जिहादों का समावेस है जैसे की -- 
● लव जिहाद ,
● भक्ती जिहाद,
● ब्लोगिंग जिहाद,
● भाषा जिहाद,
● सांस्कृतिक जिहाद
इसमे न जाने कौन कौन और किस किस तरह के सैकड़ों जिहाद और भी सामिल है 

--> अल- तकिया के अनुसार यदि इस्लाम के प्रचार , प्रसार अथवा बचाव के लिए किसी भी प्रकार का झूठ, धोखा , द्वेष अपने वादे से मुकर जाना काफिरों (हिन्दू) का विस्वास जितना और उनको घात लगाकर पीछे से हमला करना यहाँ तक की कुरआन की झूठी कसमे खाना - सब धर्म स्वीकृत है । और ये इनके अल्लाह का फरमान है 

--> इस प्रकार अल - तकिया ने मुसलामानों को सदियों से बचाए रखा है ।
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मुसलमानों के विश्वासघात के अन्य उदाहरण --->
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1 -मुहम्मद गौरी ने 17 बार कुरआन की कसम खाई थी कि भारत पर हमला नहीं करेगा,  लेकिन हमला किया ।

2 -अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तोड़ के राणा रतन सिंह को दोस्ती के बहाने बुलाया फिर क़त्ल कर दिया ।

3 -औरंगजेब ने शिवाजी को दोस्ती के बहाने आगरा बुलाया फिर धोखे से कैद कर लिया ।

4 -औरंगजेब ने कुरआन की कसम खाकर शिखों के गुरु श्री गोविन्द सिघ जी को आनंद पुर से सुरक्षित जाने देने का वादा किया था. 
फिर पीछे से हमला किया था और निर्मम हत्या की थी

5 -अफजल खान ने दोस्ती के बहाने
शिवाजी की ह्त्या का प्रयत्न किया था ।

6-मित्रता की बातें कहकर पाकिस्तान ने कारगिल पर हमला किया था ।

सावधान रहें और अपने आस पास नजर बनाएं रखें 
धन्यवाद जय श्रीराम

Tuesday, February 23, 2016

Brave Kshatriyas Rajput who liberated Goa

The BRAVE KSHATRIYA NAIR WARRIOR from KERALA 
Lieutenant General Kunhiraman Palat CANDETH Who Liberated Goa 
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Kunhiraman Palat Candeth (23 October 1916 – 19 May 2003) was a Lieutenant General in the Indian army. In 1961, the then Major General Candeth led Operation Vijay to annex Goa from the Portuguese colonial rule and served briefly as the Lieutenant Governor of the state. Subsequently, he rose to Deputy Chief of Army Staff at the time of the 1965 war and commanded the Western Army during the Indo-Pakistani War of 1971.

He was born in Ottapalam, Madras Presidency (now Kerala) in British India (now India) to MA Candeth, being the grandson of the renowned barrister and writer Vengayil Kunhiraman Nayanar. His maternal grandfather was Sir C. Sankaran Nair, who was the President of the Indian National Congress.[
 He told a reporter during the Indo-Pakistani War of 1971 that "I am a Nair from Kerala. I am a Kshatriya".
 He had done his training at the Prince of Wales Royal Indian Military College, Dehradun, where he was highly rated in the classroom and on the playing field. Candeth was commissioned in the British Indian Army on 30 August 1936 in 28 Field Brigade of the Royal Indian Artillery.

Commissioned into the Royal Artillery in 1936, Candeth saw action in West Asia during the Second World War. And, shortly before India's independence from colonial rule, he was deployed in the North West Frontier Province, bordering Afghanistan, to quell local tribes. The mountainous terrain gave Candeth the experience for his later operations against Nagaland separatists in the North East. He attended the Military Services Staff College at Quetta, capital of Baluchistan in 1945.

Kashmir 1947
After Independence, Candeth was commanding an artillery regiment that was deployed to Jammu and Kashmir after Pakistan-backed tribesmen attacked and captured a third of the province before being forced back by the Indian Army. Thereafter, Candeth held a series of senior appointments, including that of Director General of Artillery at Army Headquarters in Delhi.

Goa
Following Indian independence from British rule, certain parts of India were still under foreign rule. While the French left India in 1954, the Portuguese, however, refused to leave. After complex diplomatic pressure and negotiations had failed, finally on December 18, 1961 the Indian prime minister Jawaharlal Nehru's patience ran out and he sanctioned military action. Kunhiraman Candeth earned his name in Operation Vijay—the Liberation of Goa, Daman and Diu from Portuguese rule. 
As 17 Infantry Division commander, Candeth took the colony within a day and was immediately appointed Goa's first Indian administrator (acting as the Military Governor), a post he held till 1963.

North East
After relinquishing charge as Goa's Military Governor in 1963, Candeth took command of the newly raised 8 Mountain Division in the North-East, where he battled, although with little success, the highly organised Naga insurgents. The insurgency in the North East has not been quelled completely to this day.

Indo-Pakistani War of 1971
During the Indo-Pakistani War of 1971 that led to East Pakistan breaking away to become Bangladesh, Candeth (at that stage a lieutenant-general), was the Western Army commander responsible for planning and overseeing operations in the strategically crucial regions of Kashmir, Punjab and Rajasthan where the fiercest fighting took place.

Awards
Lt. Gen. Kunhiraman Palat Candeth was awarded the Param Vishisht Seva Medal and also the Padma Bhushan by the Government of India.
He remained a bachelor till the end.
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* Lft.Gen. K.P. Candeth >

Monday, February 22, 2016

Did an Indian fly first unmanned aircraft?

Did an Indian fly first unmanned aircraft?

Shivkar Bāpuji Talpade (1864–1916) and Subbarāya Shāstry were two Indian scientists, who have constructed and flown modern world’s first unmanned airplane in the year 1895 to a height of 1500 feet.Wright brothers did it in the year 1903 (8 years later) and got recognized as the inventors of modern day Aeroplane.

Shivkar flew an unmanned flying machine which was an mercury ion plasma , imploding and expanding vortex noiseless flying machine, which could move in all directions*(citation needed).Accelerated pressurized Mercury when spun and thus heated gives out latent energy.Infact mercury was the fuel of many ancent vimanas*(citation needed), including the one described in ‘Samarangana Sutradhara‘, which was written by Paramara King, Raja Bhoja during 1050 AD.

Shivkar’s feat was witnessed by more than three thousand people including Britishers at Chowpatty beach in 1895.(Unfortunately, Indian science was not given prominence by the british, so few inventions like this and Jagadish Chandra Bose, who demonstrated publicly the use of radio waves in Calcutta in 1894, but he was not interested in patenting his work.)He was threatened by britishers for flying an unmanned plane in public.
Rukma vimana maruthsakhaTalpade’s airplane was named Marutsakhā, a term used for the goddess Sarasvati in the Rigveda (RV 7.96.2) – a portmanteau of Marut meaning stream of air and Sakha meaning friend.This was built under the guidance of Pandit Subbarāya Shāstry.It was airborne for 18 minutes and after that the Naksha Rasa accumulators ran out of energy*(citation needed).

Bal Gangadhara Tilak the editor of Kesari Pune had put in an editorial . It was also reported by two other English newspapers, a terse account. Eminent Indian judge Mahadeva Govin-da Ranade and King of Baroda H H Sayaji Rao Gaekwad witessed the flight.

Shivakar’s wife was very technie savvy and was his partner on the day the flight of MARUTSAKHA took place.One of Talpade’s students, Pt. S. D. Satawlekar, wrote that Marutsakhā sustained flight for a few minutes.

Deccan Herald in 2003 stated “scholarly audience headed by a famous Indian judge and a nationalist, Mahadeva Govin-da Ranade and H H Sayaji Rao Gaekwad, respectively, had the good fortune to see the unmanned aircraft named as ‘Marutsakha’ take off, fly to a height of 1500 feet and then fall down to earth“.

Few days after this first flight, Talpade’s wife, who was his partner in this experiment, died mysteriously !After her death, Talpade went into depression, ran out of finances and ultimatelt died in 1916.However, Marutsakhā was stored at Talpade’s house until well after his death. Velakara quotes one of Talpade’s nieces, Roshan Talpade, as saying the family used to sit in the aircraft’s frame and imagine they were flying.
A model reconstruction of Marutsakhā was exhibited at an exhibition on aviation at Vile Parle, and Hindustan Aeronautics Limited has preserved documents relating to the experiment.

Hawaaizaada is a 2015 Hindi film directed by Vibhu Puri. The film stars Ayushmann Khurrana, Mithun Chakraborty and Pallavi Sharda in pivotal roles. The film is based on the life of scientist Shivkar Bapuji Talpade.

https://en.wikipedia.org/wiki/Shivkar_Bapuji_Talpade
https://en.wikipedia.org/wiki/Hawaizaada

Friday, February 19, 2016

Modi power will return back per horoscope

PM Narendra Modiमोदी के बदले सितारे, अब बनेगें दुनिया के हीरो

पं० धनंजय शर्मा वैदिक ज्योतिषाचार्य 
प्रधानमंत्री के सितारे जल्द ही मजबूत स्थिति में आने वाले हैं। मोदी जी जबसे प्रधानमंत्री बने तब से उनका मूल स्वाभाव काफी बदला-बदला सा नजर आ रहा था। ऐसे में मोदी समर्थक मोदी जी की चुप्पी को लेकर काफी समय से असमंजस की स्थिति में थे लेकिन अब उनके लिये खुशी की बात है की भारत का शेर जल्द ही गरर्जने वाला है।

narendra-modi-birth-chart (1)

जी हां मोदी जी के ग्रह इस समय बडे परिवर्तन की ओर इशारा कर रहे हैं। मंगल का वृश्चिक संचार उन्हे कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाने की प्रेरणा देगा तथा शनि व मंगल की युति मोदी जी के विरोधियों को बडा सबक सिखाने वाली है। दूसरी ओर मोदी जी की दशा उन्हे कडे और नपे-तुले फैसले लेते हुये दिखायेगी।

अगले चार माह मोदी जी के लिये निर्णायक साबित होंगे। इस समय मोदी जी आतंकवाद और भ्रष्टाचार पर खुलकर सामने आयेंगे। पाकिस्तानी और आईएस0आईएस0 आतंकवादी संगठनों के लिये मोदी जी इस समय बडे फैसले लेते हुये दिखेंगे, इसके अतिरिक्त वे धर्म पर भी खुलकर बोलेंगे। मोदी जी की वर्तमान दशा और गोचर उन्हे को हीरों के रूप में दुनिया के सामने लेकर आयेंगे।

Wednesday, February 17, 2016

बीजापुर स्थित ""सात कबर"" और उनका रहस्य ?




इस सवाल का जबाब जानने से पहले  ये बात अच्छी तरह से समझ लें कि .. जलन, असुरक्षा और अविश्वास.. से इस्लामी शासनकाल के पन्ने रंगे पड़े हैं. जहाँ भाई-भाई, और पिता-पुत्र में सत्ता के लिये खूनी रंजिशें की गईं!

लेकिन , क्या आप ये सोच भी सकते हैं कि. कोई शासक अपनी 63 पत्नियों को सिर्फ़ इसलिये मार डाले कि कहीं उसके मरने के बाद वे दोबारा शादी न कर लें है ना ये .एक बेहद आश्चर्यजनक और चौंकाने वाली बात ?

परन्तु जहाँ इस्लाम और उसके सरपरस्त मुस्लिम मौजूद हों. वहाँ कुछ भी असम्भव नहीं है!

यूँ तो कर्नाटक के बीजापुर में गोल गुम्बज और इब्राहीम रोज़ा जैसी कई ऐतिहासिक इमारतें और दर्शनीय स्थल हैं लेकिन, एक स्थान ऐसा भी है जहाँ पर्यटकों को ले जाकर इस्लामी आक्रांताओं के कई काले कारनामों में से एक के दर्शन करवाये जा सकते हैं।

परन्तु बीजापुर-अठानी रोड पर लगभग 5 किलोमीटर दूर एक उजाड़ स्थल पर पाँच एकड़ में फ़ैली यह ऐतिहासिक कत्लगाह “सात कबर” (साठ कब्र का अपभ्रंश) एक ऐसी ही एक जगह है..।

क्योंकि इस स्थान पर आदिलशाही सल्तनत के एक सेनापति अफ़ज़ल खान द्वारा अपनी 63 पत्नियों की हत्या के बाद बनाई गई कब्रें हैं।

इस खण्डहर में काले पत्थर के चबूतरे पर 63 कब्रें बनाई गई हैं और, आज की तारीख में इतना समय गुज़र जाने के बाद भी जीर्ण-शीर्ण खण्डहर अवस्था में यह बावड़ी और कब्रें काफ़ी ठीक-ठाक हालत में हैं।

यहाँ पहली दो लाइनों में 7-7 कब्रें, तीसरी लाइन में 5 कब्रें तथा आखिरी की चारों लाइनों में 11 कब्रें बनी हुई दिखाई देती हैं और , वहीं एक बड़ी "आर्च(Arch) (मेहराब) भी बनाई गई है!

ऐसा क्यों और किस गणित के आधार पर किया गया ये तो वो अफ़ज़ल खान ही बता सकता है ।
साथ ही अफ़ज़ल खान ने खुद अपने लिये भी एक कब्र यहीं पहले से बनवाकर रखी थी. परन्तु उसके शव को यहाँ तक नहीं लाया जा सका और मौत के बाद प्रतापगढ़ के किले में ही उसे दफना दिया गया था, जिससे यह साबित होता है कि.वीर शिवाजी के हाथों अपनी मौत को लेकर वो अफजल खान नमक सूअर बेहद आश्वस्त था,!

भला ऐसी मानसिकता में वह वीर शिवाजी से युद्ध कैसे लड़ता????

खैर  अंततः , महान मराठा योद्धा शिवाजी ने इस सूअर अफ़ज़ल खान का वध .प्रतापगढ़ के किले में 1659 में कर ही दिया ।

इन सब बातों में सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि.वामपंथियों और कांग्रेसियों ने .हमारे इतिहास में मुगल बादशाहों के अच्छे-अच्छे, नर्म-नर्म, मुलायम-मुलायम किस्से-कहानी ही भर रखे हैं, जिनके द्वारा उन्हें सतत महान, सदभावनापूर्ण और दयालु(?) बताया है, लेकिन इस प्रकार 63 पत्नियों की हत्या वाली बातें जानबूझकर छुपाकर रखी गई हैं.।

यही कारण है कि.आज बीजापुर में इस स्थान तक पहुँचने के लिये ऊबड़-खाबड़ सड़कों से होकर जाना पड़ता है. और, वहाँ अधिकतर लोगों को इसके बारे में विस्तार से कुछ पता नहीं है (साठ कब्र का नाम भी अपभ्रंश होते-होते "सात-कबर" हो गया),

खैर जो भी हो लेकिन , है तो यह एक ऐतिहासिक स्थल ही, सरकार को इस तरफ़ ध्यान देना चाहिये और इसे एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करना चाहिये ताकि , लोगों को मुगलकाल के राजाओं द्वारा की गई क्रूरता का पता लग सके ।

सिर्फ ये ही नहीं बल्कि. खोजबीन करके भारत के खूनी इतिहास में से मुगल बादशाहों द्वारा किये गये सभी अत्याचारों को बाकायदा पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाना चाहिए ताकि, कम से कम अगली पीढ़ी को उनके कारनामों के बारे में तो पता लग सके ,वरना ,मैकाले-मार्क्स के प्रभाव में वे तो यही सोचते रहेंगे कि 

अकबर एक दयालु बादशाह था (भले ही उसने सैकड़ों हिन्दुओं का कत्ल किया हो),

और, शाहजहाँ अपनी बेगम से बहुत प्यार करता था ( भले ही मुमताज़ ने 14 बच्चे पैदा किये और उसकी मौत भी एक डिलेवरी के दौरान ही हुई, ऐसा भयानक प्यार..????

या, औरंगज़ेब ने जज़िया खत्म किया और वह टोपियाँ सिलकर खुद का खर्च निकालता था (भले ही उसने हजारों मन्दिर तुड़वाये हों, बेटी ज़ेबुन्निसा शायर और पेंटर थी इसलिये उससे नफ़रत करता था, भाई दाराशिकोह हिन्दू धर्म की ओर झुकाव रखने लगा तो उसे मरवा दिया… इतना महान मुगल शासक?

तात्पर्य यह कि .अब इस दयालु मुगल शासक वाले वामपंथी मिथक को तोड़ना बहुत ज़रूरी है.. और, बच्चों को उनके व्यक्तित्व के उचित विकास के लिये सही इतिहास बताना ही चाहिये… वरना उन्हें 63 पत्नियों के हत्यारे के बारे में कैसे पता चलेगा ??.

इसीलिए, बड़े शहरों की कूल डूड हिन्दू युवतियाँ किसी भी मुस्लिम से दोस्ती अथवा प्यार की पींगें बढ़ने से पहले हजार बार जरुर सोच लें कि बाबर और चंगेज खां के वंशजों से निकटता बढ़ाने के क्या परिणाम हो सकते हैं!

Tuesday, February 16, 2016

History of Pratihar/ Parihar Rajput

== = क्षत्रिय सम्राट वत्सराज प्रतिहार === 

प्रतिहार एक ऐसा वंश है जिसकी उत्पत्ति पर कई महान इतिहासकारों ने शोध किए जिनमे से कुछ अंग्रेज भी थे और वे अपनी सीमित मानसिक क्षमताओं तथा भारतीय समाज के ढांचे को न समझने के कारण इस वंश की उतपत्ति पर कई तरह के विरोधाभास उतपन्न कर गए।

प्रतिहार एक शुद्ध क्षत्रिय वंश है जिसने गुर्जरा
देश से गुज्जरों को खदेड़ने व राज करने के कारण गुर्जरा सम्राट की भी उपाधि पाई। आये
जानिए प्रतिहार वंश और सम्राट वत्सराज
को।                        

= = = सम्राट वत्सराज प्रतिहार ===  

सम्राट वत्सराज (775 से 800 ईस्वीं तक) प्रतिहार\परिहार राजवंश का संस्थापक एवं वह देवराज एवं भूमिका देवी का प्रबल प्रतापी पुत्र थे । उसने शास्त्र सूत्र ग्रहण करते ही अपने पूर्वज सम्राट नागभट्ट की भांति राज्य की चारों दिशाओं में वृद्धि करने का निश्चय किया । उस समय उज्जैन में श्रीहर्ष का ममेरा भाई भण्डि शासन कर रहा था, वह बार बार जालौर राज्य को आधीनता में लेने का पैगाम भेज रहा था। देवराज प्रतिहार उससे डर रहा था। वत्सराज ने शासन ग्रहण करते ही उज्जैन पर आक्रमण कर दिया, राजा भण्डि को कैद कर लिया और उसके संपूर्ण परिवार को राज्य से बाहर कर दिया। वत्सराज ने ही प्रतिहार साम्राज्य की राजधानी उज्जैन को बनाया।

ख्यानादि भण्डिकुलां मदोत्कट काटि प्रकार लुलंघतो।
यः साम्राज्य मरधाज्य कारमुक सखां सख्य हहादग्रहीत।।

मण्डौर राज्य के कमजोर हो जाने के बाद भारत में तीन महाशक्तियां अस्तित्व में थीं।

प्रतिहार साम्राज्य - उज्जैन, राजा वत्सराज
पाल साम्राज्य - गौड़, राजा धर्मपाल
राष्ट्रकूट साम्राज्य - दक्षिण भारत राजा धु्रव

वत्सराज ने सम्मुख साम्राज्य के लिए पाल और राष्ट्रकूट दोनों ही समान खतरे थे। दोनों की निगाहें उज्जैन पर लगी थी । वत्सराज भी अवसर व साधन की प्रतिक्षा कर रहा था। भण्डि पर विजय प्राप्त होने से ववत्सराज को पर्याप्त धन युद्ध सामग्री और सैन्य बल पप्राप्त हो गया। इससे संपन्न होकर प्रतिहार वंश के प्रमुख शत्रु धर्मपाल पर वत्सराज ने ही आक्रमण कर दिया। गंगा यमुना के दोआब मे लडा गया युद्ध अति भयानक था, अंततः धर्मपाल पीछे हटने लगा, वत्सराज ने उसे बंगाल की खाडी तक खदेडा, यहां पर पुनः एक निर्णायक युद्ध हुआ। इस युद्ध में धर्मपाल ने ही संधि प्रस्ताव भेजा और उज्जैन साम्राज्य की आधीनता स्वीकार कर ली। गौड राज्य की विजय से सम्राट वत्सराज प्रतिहार का हौसला इतना बुलंद हुआ कि धर्मपाल ने और ध्रुव(राष्ट्रकूट) ने एक - एक राजछत्र और राज्यलक्ष्मी उसे भेंट कर दिया।

"हैसा स्वीकृत गौड़ राज्य कमलां मनतं प्रवेश्या विरात"

सन् 780 से 781 की महान विजय के समानांतर सन् 798 अर्थात 18 वर्ष तक उज्जैन साम्राज्य का अकंटक यह काल न केवल राजस्थान वरन संपूर्ण उत्तरी भारत का वैभव काल था। प्रशासन की स्वच्छता न्याय की आस्था और कृषि व्यापार की संपन्नता ने उज्जैन को भारत का मुकुट और वत्सराज प्रतिहार को राजाधिराज का पद दिया।।

Pratihara / Pratihar / Parihar Rulers of india

जय माँ भवानी।।
जय क्षात्र धर्म।।
नागौद रियासत।।

John Paul II had 'intense' friendship with MARRIED woman: But no UPROAR among christians.

John Paul II had 'intense' friendship with married woman: BBC
If that happens for Indian saints , it would have been nightmare, uproar all over world. This is difference between Christians, Muslims v/s illiterate Hindus. While John Paul is considered a messiah , and given saint ,almost equal to GOD figure, his acts first of protection of pedophiles and black money laundering in Vatican is a something HORROR movie for me ,as it should be for molested children of Christians but they still follow as blind as they were to their POPE, as any devout Muslin to evil Quran that teaches pedophilia by its own prophet by setting example by marrying Ayesha at age of 6 years.
Pope John Paul II had a close relationship with a married woman which lasted over 30 years according to letters which feature in a documentary being shown by the BBC.The two spent camping and skiing holidays together and went on country walks and BBC was short of telling if they broke sex between them.
"My dear Teresa," he writes. "You write about being torn apart, but I could find no answer to these words."
John Paul II was pope from 1978 to 2005 and was made a saint by the Catholic Church after his death. (AFP Photo/Derrick Ceyrac) Pope John Paul II.


John Paul II was pope from 1978 to 2005 and was made a saint by the Catholic Church after his death.
In 2014 he was declared a saint by the current Pope Francis.
In a 116-page autobiography released in 1996, entitled "The Gift and Mystery," the then-pope dismissed suggestions that romance delayed his commitment to a life in the Roman Catholic Church following an earlier denial by the Vatican that the pope had once had a "fiancee."
Original article

Friday, February 12, 2016

अखण्ड भारत ,Ancient Undivided India

गूगल पर अखण्ड भारत के टुकड़ों के बारे में पढ़कर आज सकते
में हूँ ........ 1947 में ये भारत का 24 वां विभाजन था .........
और ये पोस्ट शायद मेरे जैसों को हिंदुत्व का
 परचम लहराने की
मुहिम तेज करने का कार्य करेगी और सेक्युलर हिंदुओं की
आँख खोलने का कार्य जो अधिकतर 25 बाई 60 फ़ीट के घर
में महफूज रहने को ही काफी मानकर कबूतर की तरह आँख बन्द
किये बैठे हैं , उन सभी भाई-बहन मित्रों , बच्चों से अनुरोध है
कि इसे जरूर पढ़ें ..... ये पोस्ट दिल्ली ब्यूरो चीफ मिस्टर
निगम द्वारा लिखी गयी है ...... इस लेख के लिए उन्हें
धन्यवाद
अखंड भारत की पूरी कहानी
आज तक किसी भी इतिहास की पुस्तक में इस बात का उल्लेख
नहीं मिलता की बीते 2500 सालों में हिंदुस्तान पर जो आक्रमण
हुए उनमें किसी भी आक्रमणकारी ने अफगानिस्तान, म्यांमार,
श्रीलंका, नेपाल, तिब्बत, भूटान, पाकिस्तान, मालद्वीप या
बांग्लादेश पर आक्रमण किया हो। अब यहां एक प्रश्न खड़ा
होता है कि यह देश कैसे गुलाम और आजाद हुए। पाकिस्तान व
बांग्लादेश निर्माण का इतिहास तो सभी जानते हैं। बाकी देशों के
इतिहास की चर्चा नहीं होती। हकीकत में अंखड भारत की
सीमाएं विश्व के बहुत बड़े भू-भाग तक फैली हुई थीं।
एवरेस्ट का नाम था सागरमाथा, गौरीशंकर चोटी
पृथ्वी का जब जल और थल इन दो तत्वों में वर्गीकरण करते
हैं, तब सात द्वीप एवं सात महासमुद्र माने जाते हैं। हम इसमें
से प्राचीन नाम जम्बूद्वीप जिसे आज एशिया द्वीप कहते हैं
तथा इन्दू सरोवरम् जिसे आज हिन्दू महासागर कहते हैं, के
निवासी हैं। इस जम्बूद्वीप (एशिया) के लगभग मध्य में हिमालय
पर्वत स्थित है। हिमालय पर्वत में विश्व की सर्वाधिक ऊंची
चोटी सागरमाथा, गौरीशंकर हैं, जिसे 1835 में अंग्रेज शासकों ने
एवरेस्ट नाम देकर इसकी प्राचीनता व पहचान को बदल दिया।
ये थीं अखंड भारत की सीमाएं
akhand-bharatइतिहास की किताबों में हिंदुस्तान की सीमाओं
का उत्तर में हिमालय व दक्षिण में हिंद महासागर का वर्णन है,
परंतु पूर्व व पश्चिम का वर्णन नहीं है। परंतु जब श्लोकों की
गहराई में जाएं और भूगोल की पुस्तकों और एटलस का
अध्ययन करें तभी ध्यान में आ जाता है कि श्लोक में पूर्व व
पश्चिम दिशा का वर्णन है। कैलाश मानसरोवर‘ से पूर्व की ओर
जाएं तो वर्तमान का इंडोनेशिया और पश्चिम की ओर जाएं तो
वर्तमान में ईरान देश या आर्यान प्रदेश हिमालय के अंतिम छोर
पर हैं।
एटलस के अनुसार जब हम श्रीलंका या कन्याकुमारी से पूर्व व
पश्चिम की ओर देखेंगे तो हिंद महासागर इंडोनेशिया व आर्यान
(ईरान) तक ही है। इन मिलन बिंदुओं के बाद ही दोनों ओर
महासागर का नाम बदलता है। इस प्रकार से हिमालय, हिंद
महासागर, आर्यान (ईरान) व इंडोनेशिया के बीच का पूरे भू-भाग
को आर्यावर्त अथवा भारतवर्ष या हिंदुस्तान कहा जाता है।
अब तक 24 विभाजन
सन 1947 में भारतवर्ष का पिछले 2500 सालों में 24वां
विभाजन है। अंग्रेज का 350 वर्ष पूर्व के लगभग ईस्ट
इण्डिया कम्पनी के रूप में व्यापारी बनकर भारत आना, फिर
धीरे-धीरे शासक बनना और उसके बाद 1857 से 1947 तक
उनके द्वारा किया गया भारत का 7वां विभाजन है। 1857 में
भारत का क्षेत्रफल 83 लाख वर्ग किमी था। वर्तमान भारत
का क्षेत्रफल 33 लाख वर्ग किमी है। पड़ोसी 9 देशों का
क्षेत्रफल 50 लाख वर्ग किमी बनता है।
क्या थी अखंड भारत की स्थिति
सन 1800 से पहले विश्व के देशों की सूची में वर्तमान भारत
के चारों ओर जो आज देश माने जाते हैं उस समय ये देश थे ही
नहीं। यहां राजाओं का शासन था। इन सभी राज्यों की भाषा
अधिकांश शब्द संस्कृत के ही हैं। मान्यताएं व परंपराएं बाकी
भारत जैसी ही हैं। खान-पान, भाषा-बोली, वेशभूषा, संगीत-
नृत्य, पूजापाठ, पंथ के तरीके सब एकसे थे। जैसे-जैसे इनमें से
कुछ राज्यों में भारत के इतर यानि विदेशी मजहब आए तब यहां
की संस्कृति बदलने लगी।
2500 सालों के इतिहास में सिर्फ हिंदुस्तान पर हुए हमले
इतिहास की पुस्तकों में पिछले 2500 वर्ष में जो भी आक्रमण
हुए (यूनानी, यवन, हूण, शक, कुषाण, सिरयन, पुर्तगाली, फेंच,
डच, अरब, तुर्क, तातार, मुगल व अंग्रेज) इन सभी ने
हिंदुस्तान पर आक्रमण किया ऐसा इतिहासकारों ने अपनी
पुस्तकों में कहा है। किसी ने भी अफगानिस्तान, म्यांमार,
श्रीलंका, नेपाल, तिब्बत, भूटान, पाकिस्तान, मालद्वीप या
बांग्लादेश पर आक्रमण का उल्लेख नहीं किया है।
रूस और ब्रिटिश शासकों ने बनाया अफगानिस्तान
1834 में प्रकिया शुरु हुई और 26 मई 1876 को रूसी व
ब्रिटिश शासकों (भारत) के बीच गंडामक संधि के रूप में निर्णय
हुआ और अफगानिस्तान नाम से एक बफर स्टेट अर्थात्
राजनैतिक देश को दोनों ताकतों के बीच स्थापित किया गया।
इससे अफगानिस्तान अर्थात पठान भारतीय स्वतंत्रतता
संग्राम से अलग हो गए। दोनों ताकतों ने एक-दूसरे से अपनी
रक्षा का मार्ग भी खोज लिया। परंतु इन दोनों पूंजीवादी व
मार्क्सवादी ताकतों में अंदरूनी संघर्ष सदैव बना रहा कि
अफगानिस्तान पर नियंत्रण किसका हो? अफगानिस्तान शैव व
प्रकृति पूजक मत से बौद्ध मतावलम्बी और फिर विदेशी पंथ
इस्लाम मतावलम्बी हो चुका था। बादशाह शाहजहां, शेरशाह सूरी
व महाराजा रणजीत सिंह के शासनकाल में उनके राज्य में कंधार
(गंधार) आदि का स्पष्ट वर्णन मिलता है।
1904 में दिया आजाद रेजीडेंट का दर्जा
मध्य हिमालय के 46 से अधिक छोटे-बडे राज्यों को संगठित
कर पृथ्वी नारायण शाह नेपाल नाम से एक राज्य बना चुके थे।
स्वतंत्रतता संग्राम के सेनानियों ने इस क्षेत्र में अंग्रेजों के
विरुद्ध लडते समय-समय पर शरण ली थी। अंग्रेज ने
विचारपूर्वक 1904 में वर्तमान के बिहार स्थित सुगौली नामक
स्थान पर उस समय के पहाड़ी राजाओं के नरेश से संधी कर
नेपाल को एक आजाद देश का दर्जा प्रदान कर अपना रेजीडेंट
बैठा दिया। इस प्रकार से नेपाल स्वतन्त्र राज्य होने पर भी
अंग्रेज के अप्रत्यक्ष अधीन ही था। रेजीडेंट के बिना महाराजा
को कुछ भी खरीदने तक की अनुमति नहीं थी। इस कारण राजा-
महाराजाओं में यहां तनाव था। नेपाल 1947 में ही अंग्रेजी
रेजीडेंसी से मुक्त हुआ।
भूटान के लिए ये चाल चली गई
1906 में सिक्किम व भूटान जो कि वैदिक-बौद्ध मान्यताओं के
मिले-जुले समाज के छोटे भू-भाग थे इन्हें स्वतन्त्रता संग्राम
से लगकर अपने प्रत्यक्ष नियंत्रण से रेजीडेंट के माध्यम से
रखकर चीन के विस्तारवाद पर अंग्रेज ने नजर रखना शुरु
किया। यहां के लोग ज्ञान (सत्य, अहिंसा, करुणा) के उपासक
थे। यहां खनिज व वनस्पति प्रचुर मात्रा में थी। यहां के जातीय
जीवन को धीरे-धीरे मुख्य भारतीय धारा से अलग कर मतांतरित
किया गया। 1836 में उत्तर भारत में चर्च ने अत्यधिक
विस्तार कर नए आयामों की रचना कर डाली। फिर एक नए टेश
का निर्माण हो गया।
चीन ने किया कब्जा
1914 में तिब्बत को केवल एक पार्टी मानते हुए चीन भारत की
ब्रिटिश सरकार के बीच एक समझौता हुआ। भारत और चीन के
बीच तिब्बत को एक बफर स्टेट के रूप में मान्यता देते हुए
हिमालय को विभाजित करने के लिए मैकमोहन रेखा निर्माण
करने का निर्णय हुआ। हिमालय को बांटना और तिब्बत व
भारतीय को अलग करना यह षड्यंत्र रचा गया। चीनी और
अंग्रेज शासकों ने एक-दूसरों के विस्तारवादी, साम्राज्यवादी
मनसूबों को लगाम लगाने के लिए कूटनीतिक खेल खेला।
अंग्रेजों ने अपने लिए बनाया रास्ता
1935 व 1937 में ईसाई ताकतों को लगा कि उन्हें कभी भी
भारत व एशिया से जाना पड़ सकता है। समुद्र में अपना
नौसैनिक बेड़ा बैठाने, उसके समर्थक राज्य स्थापित करने तथा
स्वतंत्रता संग्राम से उन भू-भागों व समाजों को अलग करने
हेतु सन 1935 में श्रीलंका व सन 1937 में म्यांमार को अलग
राजनीतिक देश की मान्यता दी। म्यांमार व श्रीलंका का अलग
अस्तित्व प्रदान करते ही मतान्तरण का पूरा ताना-बाना जो
पहले तैयार था उसे अधिक विस्तार व सुदृढ़ता भी इन देशों में
प्रदान की गई। ये दोनों देश वैदिक, बौद्ध धार्मिक परम्पराओं
को मानने वाले हैं। म्यांमार के अनेक स्थान विशेष रूप से रंगून
का अंग्रेज द्वारा देशभक्त भारतीयों को कालेपानी की सजा देने
के लिए जेल के रूप में भी उपयोग होता रहा है।
दो देश से हुए तीन
1947 में भारत पाकिस्तान का बंटवारा हुआ। इसकी पटकथा
अंग्रेजों ने पहले ही लिख दी थी। सबसे ज्यादा खराब स्थिति
भौगोलिक रूप से पाकिस्तान की थी। ये देश दो भागों में बंटा हुआ
था और दोनों के बीच की दूरी थी 2500 किलो मीटर। 16
दिसंबर 1971 को भारत के सहयोग से एक अलग देश बांग्लादेश
अस्तित्व में आया।
तथाकथित इतिहासकार भी दोषी
यह कैसी विडंबना है कि जिस लंका पर पुरुषोत्तम श्री राम ने
विजय प्राप्त की ,उसी लंका को विदेशी बना दिया। रचते हैं हर
वर्ष रामलीला। वास्तव में दोषी है हमारा इतिहासकार समाज
,जिसने वोट-बैंक के भूखे नेताओं से मालपुए खाने के लालच में
भारत के वास्तविक इतिहास को इतना धूमिल कर दिया है,
उसकी धूल साफ करने में इन इतिहासकारों और इनके आकाओं
को साम्प्रदायिकता दिखने लगती है। यदि इन तथाकथित
इतिहासकारों ने अपने आकाओं ने वोट-बैंक राज+नीति खेलने
वालों का साथ नही छोड़ा, देश को पुनः विभाजन की ओर धकेल
दिया जायेगा। इन तथाकथित इतिहासकारो ने कभी वास्तविक
भूगोल एवं इतिहास से देशवासिओं को अवगत करवाने का साहस
नही किया।

The hero who won a Param Vir Chakra on Siachen

The hero who won a Param Vir Chakra on Siachen

February 11, 2016 
Honorary Captain Bana Singh won the Param Vir Chakra, India's highest ranking gallantry award, for recapturing a Pakistani post on the Siachen Glacier.
Living a retired life in a quiet village in Jammu and Kashmir, he makes you feel that his act of phenomenal courage was part of a soldier's day at work.
Words: Archana Masih/Rediff.com. Images: Rajesh Karkera/Rediff.com

Honorary Captain Bana Singh, Param Vir Chakra, outside his modest village home in Kadyal. Photograph: Rajesh Karkera/Rediff.com

IMAGE: Honorary Captain Bana Singh, Param Vir Chakra, outside his modest village home in Kadyal. Photograph: Rajesh Karkera/Rediff.com
 

In a country which has only three living winners of the Param Vir Chakra, it is a rare honour to meet one.

"It is an honour to meet you, Sir," we say and Param Vir Chakra winner Honorary Captain Bana Singh replies, "What I did was my duty to the country. I was given a task and I did it."

There is no trace of arrogance that a decorated soldier would perhaps be fully entitled to -- he should after all be an icon of courage in a nation woefully short of heroes -- but Captain Bana Singh makes you feel that what he did was part of a soldier's day at work.

The difference being that when he set out for work that morning 29 years ago he was at the world's highest battlefield on the Siachen Glacier, leading an operation to recapture a Pakistani post at a height of 21,000 feet, scaling vertical walls of ice 1,500 feet high under blinding snowfall.

Pakistani troops sat on top of this brutal climb as Bana Singh and his men launched a brilliant attack, clearing the post of every Pakistani soldier, setting an example in high altitude warfare which would bring him the country's highest ranking gallantry award.

The man sitting in front of us in his modest village home flanked with green fields, dressed in a simple pyjama and light sweater, had not only defeated the enemy but nature itself on the most vicious battle terrain known to man, one that has taken the lives of countless Indian and Pakistani soldiers.

"'Three months in Siachen are like 30 years', a colonel once told me and asked, 'How did you do it?'" remembers Bana Singh who some years ago was invited to speak to young men in Siachen, soldiers not even born when he had won the Param Vir Chakra on that ruthless terrain.

Much has changed at the glacier since Bana Singh's time; men now have better gear, equipment and food, but Siachen continues to be an unimaginable challenge for military and human survival. A landscape where men guard the frontlines at temperatures below minus 52 degrees Celsius that saps the body of energy and hunger.

It was here that Naib Subedar Bana Singh fought the battle of his life.

Honorary Captain Bana Singh, Param Vir Chakra, Bana Singh, 8 J&K Light Infantry, with then President K R Narayanan. Photograph: Kind Courtesy, Captain Bana Singh.

IMAGE: Honorary Captain Bana Singh, Param Vir Chakra, Bana Singh, 8 J&K Light Infantry, with then President K R Narayanan. Photograph: Kind Courtesy, Captain Bana Singh
 

The scale of his heroic accomplishment cannot be understood without the back story.

Pakistani soldiers were entrenched on the highest post in the Siachen Glacier, so important that it was named the Quaid Post, after the founder of Pakistan, Mohammad Ali Jinnah.

From here the Pakistanis had a vantage point, with a clear view of Indian posts that were supplied only by helicopters. By controlling that post Pakistani soldiers targeted the Indian supply lines on the Soltoro range.

India had failed to recapture the post in two previous attempts; a reconnaissance patrol under young Lieutenant Rajiv Pande was gunned down by the Pakistanis, leaving only three survivors.

In a do or die attempt, then Subedar Bana Singh and 6 men were tasked to recapture the post once again on June 26, 1987. If the mission had to succeed it had to be completed before sunset that day -- and by 5 o'clock that evening, the Indian flag was flying at the top.

,font size=7>India had won back the Quaid Post in a battle so heroic that the post was renamed Bana Post, by which it is known till today.

'There was a single bunker on the top. I threw a grenade inside and closed the door. At the end, a total of six Pakistanis were killed,' he had told Rediff.com contributor Claude Arpi in 2007.

Claude's wife Abha Tiwari's maternal uncle, Major Somnath Sharma, incidentally won the first Param Vir Chakra. Major Sharma died fighting Pakistani intruders in Badgam in the Kashmir valley in November 1947.

Major Sharma's last words, inscribed below his bust in Palampur, Himachal Pradesh, were: 'The enemy is only 50 yards from us. We are heavily outnumbered...I shall not withdraw an inch but will fight to the last man and last round.'

Honorary Captain Bana Singh, Param Vir Chakra, Bana Singh, 8 J&K Light Infantry, with then prime minister Rajiv Gandhi. Photograph: Kind Courtesy, Captain Bana Singh.

IMAGE: Honorary Captain Bana Singh, Param Vir Chakra, Bana Singh, 8 J&K Light Infantry, with then prime minister Rajiv Gandhi. Photograph: Kind Courtesy, Captain Bana Singh
 

Captain Bana Singh is the only soldier along with the late Major Ramaswamy Parmeswaram, to be awarded the Param Vir Chakra in peacetime, an award which is otherwise only given for exemplary military courage during war.

Major Parmeswaram, 41, was martyred during the Indian Peace Keeping Operation in Sri Lanka in 1987, five months after Bana Singh's heroism in Siachen.

The last time the Param Vir Chakra was awarded was in the Kargil war in July 1999; at that time Bana Singh was the only serving Param Vir Chakra winner in the Indian Army.

Looking back at the Kargil conflict in which India lost 527 soldiers, he feels that that war changed many things for the armed forces and compliments then prime minister Atal Bihari Vajpayee and then defence minister George Fernandes.

"It was only in Vajpayeeji's time that we acquired the facilities of proper transportation of the bodies of fallen soldiers home," he says, surrounded in his home by India war memorabilia like the historic surrender of the Pakistani forces in Dhaka after the 1971 war and photographs of two famous Indian generals -- Field Marshals K M Cariappa and S H F J 'Sam' Manekshaw.

"The Kargil war highlighted the entire fauj. The media also played a role and as a result martyrs' families are looked after much better than before."

A year after Kargil, he retired after 32 years of service to the nation and went home to his village of Kadyal near Jammu where he was born. His son Rajinder Singh now serves the Indian Army.

For a decade after his retirement, apart from his pension from the Indian Army, Captain Bana Singh would receive Rs 160 as pension from the Jammu and Kashmir government. A sorry comment on that state's regard for the only Param Vir Chakra from Jammu and Kashmir.

It was only after a long and sustained effort that the Jammu and Kashmir pension was raised to Rs 10,400 in 2010. His pension from the army is Rs 32,000 per month.

"People say I have set an example and I say I don't know how I did it, but I am proud to have successfully fulfilled the task my unit gave me," says Captain Bana Singh in his small drawing room festooned with army felicitations.

"I have received a lot of respect and fame from my country. It is a blessing."

Every year, Bana Singh is invited by the government to be part of the Republic Day parade, in the small contingent of soldiers awarded the highest gallantry award.

It is a day when the soldier, who retired from the Indian Army in 2000, wears his full uniform, puts his Param Vir Chakra medal and salutes the President on Rajpath in the country's grandest parade.

In all these years, he has missed just two parades, he says and tells us a story reminiscent of days past when some men lived their whole lives on words like honour, duty and discipline.

Honorary Captain Bana Singh, Param Vir Chakra, retired from the Indian Army after 32 years of service and returned to his village. Photograph: Rajesh Karkera/Rediff.com

IMAGE: Honorary Captain Bana Singh, Param Vir Chakra, outside his modest village home in Kadyal. Photograph: Rajesh Karkera/Rediff.com
 

Sitting on a small water tank in a field behind his house, Captain Bana Singh speaks of one such incident when a few years after his retirement, a retired senior army officer whom he had served under stopped by at his home.

"He looked at me and asked 'Bana, do you remember me?' and I said 'Sir, if an Indian soldier cannot recognise an officer who has commanded him, he has no right to this country'."

In a nation overdone with places named after politicians, the long overdue Bana Singh stadium in his native tehsil may yet not be fully functional -- but Captain Bana Singh Param Vir Chakra is not one to get perturbed about any such lack of recognition.

That afternoon when we had came looking for his home, we only had to ask for his name and people would lead the way.

Later, as he bade us good bye, the postman dropped by with an envelope, bearing only his name and the village name as the address.

"Someone is inviting me to speak to their students and inspire them. I travel at least ten times a year for interactions in schools and colleges," he smiles, folding the letter neatly, overwhelmed with the respect he has got from people over the years.

On his school visits, children want to know how he won that battle in Siachen for India; how he conquered fear. At other functions, people touch his feet in respect of his valour.

The recognition is unbridled and comes to him spontaneously. No officially named plaque, road, bridge or stadium can rival that.

JNU - a den of ISI , CIA, Marxists, anti india activity center

Binayak Sen was a Professor at the Centre for Social Medicine and Community Health at NU.  On May 14, 2007, Dr Sen, was arrested under the provisions of the Chhattisgarh Special Public Security Act, 2005, (CSPSA) and the Unlawful Activities (Prevention) Act, 1967. The allegations claimed that he had acted as a courier for a Maoist leader Narayan Sanyal lodged in the Raipur Jail and then absconded. 

The charges against him were as follows:
a) Treason
b) Criminal Conspiracy
c) Sedition, anti-national activities and making war against the nation
d) Knowingly using the proceeds of terrorism
e) Links with the Maoists
DIVIDE EVERY WHICH WAY is a method used in the JNU campus.  

The latest example is foreign forces want NE Christian students also to behave like Kashmiri Muslim students . The Commie professors and students have NO fear of Indian law , as they feel that foreign forces will handle everything using their contacts with politicians, police and “collegium” judiciary.

Recently Baba Ramdev was insulted by the JNU Commie students .

Binayak Sen is now the national Vice-President of the People's Union for Civil Liberties (PUCL).  He is a member of the policy group for Police Reforms of Aam Aadmi Party and he has the support of BIG BROTHER who uses his DOUBLE AGENT Noam Chomsky.

The whole of India knows that JNU is known to be a red bastion who cultivates  Communism and lack of attachment to the motherland and Indian culture .  A lot of JNU students are in the campus and hostels for years.  Some of them continue even after double PHD.  The professors with Communist leanings sponsor them and requiRe them to be ANTI-HINDU . The main stream media sponsors these anti-national professors .  These professors live far beyond their month end salaries.  The students say that living is cheap inside the hostels .  The real reason is that they get enormous amount of foreign money MONTHLY from Trojan Horse NGOs and they make more money inside the campus than taking up a job outside – and a lot of USEFUL IDIOTS are hooked on to expensive cocaine and synthetic drugs that they really cant leave ”
For the first year students to get a hostel is an uphill task unless you are on a Communist Students Union recommendation .  Even to get a cheap residence / cheap transport outside the campus , it is easy if you are a Communist Student “

It rang a bell , because I know for sure from another JNU student , that this Commie sponsoring link was broken for a while due to Lyngdoh commission stopping Students Union activities in JNU.


“ Commie male students get enough good quality liquor from Trojan Horse NGOs – the BAR used to be at the  Parthasarathy Hill rock , a water source area etc.   Commie student activists are provided “female services” on weekends outside the campus FREE. The more you distort ancient Indian history , the more you ridicule Hindu culture the better the FREE perks , all from these NGOs.  The professors know that drugs are almost in every Commie students rooms , but they do nothing.  Even girls roll and smoke drugs and have sex with boys. The Maoist-Naxalites students’ wings is AISA (All India Student Associations).  AISA cry is, ‘Naxalbari lal Salam’ (Naxalbari Red Salute) . This cry is often heard even in girl student hostels"




ajitvadakayil

Thursday, February 11, 2016

हिन्दू शब्द और उसका उदगम(Hindu word and its Origin

इससे पहले में शुरू करू में यह बता दू की यह पोस्ट Dr Mahendra .Pahoja जी की शोध और मेरे सिधान्तो पर आधारित है |
Dr.Pahoja की शोध पड़ने के लिए यहाँ क्लिक करे

हिन्दू शब्द नाही फारसी मुसलमानों का दिया शब्द है और नाही अरबी मुसलमानों ।
हिन्दू शब्द के प्रमाण हमें 500 ईसापूर्व में अवेस्ता ग्रन्थ से मिलते है फारस में इस्लाम आने से पहले।
कुछ कहते है की हिन्दू शब्द फारसियो के गलत उच्चारण और 'स' को 'ह' बोलने की आदत से आया है ।
पर ये गलत है।
उस समय भारत की सीमा अफगान तक थी और भारत की सीमा के सबसे करीब काबुल नदी थी नाही सिन्धु,तो क्यों नहीं हमें काबुली कहा गया ??
फारसी भाषा के व्याकरण में हमें ये देखने नहीं मिलता।
फारस या वे खुदको परस बोलते उसमे भी 'स' है पर वे तो खुदको परह नहीं कहते थे ।
प्राचीन इराकी शहर सुमेर को सुमेर ही कहते थे फारसी।
प्राचीन समय में सिंध नामक एक राज्य था और उसे सिंध ही कहा गया साथ ही आज के पाकिस्तान में सिंध नाम का प्रान्त है पर उसे भी सिंध ही कहते है और यदि सिन्धु के दूसरी तरह रहने वालो को हिन्दू कहा गया तो सिंध को सिंध ही क्यों हिन्द क्यों नहीं।
यदि में कही बंधू शब्द संधू से आया तो ??
दोनों का उच्चारण एक ही है पर दोनों अलग है।
सतलज को भी सतलज कहा गया हतलज नहीं।
साथ ही जब यह सिधांत ख़त्म हो गया की फारसी 'स' को 'ह' बोलते थे तब नया सिधांत आया की विदेशी भारतीय नाम ठीक से नहीं ले सकते थे ।
पर फारसियो ने गंधार को गंधार ही कहा यानि वे भारतीय नाम ठीक से ले सकते थे।
फारस ने जब सिन्धु घाटी कब्जाया तो उन्होंने यहाँ के लोगो हिदू कहा
बाद में क्षेर्क्षेस ने के काल के लेख में हमें मिलता है
'इयम क़तागुविया ' (यह मध्य एशिया है)
'इयम गडरिया' (यह गंधर है)
'इयम हिदुविया'(यह हिन्दू है)
इन लेखो से पता चलता है की क्षेर्क्षेस या फारसियो ने पुरे भारत को हिन्द नहीं कहा क्युकी
गंधार को अलग राज्य बताया गया है ।
इस लेख की शुरुवात मध्य एशिया या कज़ाकिस्तान से होती है जो भारत के उत्तर में है फिर गंधार का नाम है जो अफगान में था और हिन्द पर ख़त्म होती है यानि हिन्द सिन्धु घाटी हो सकता है पर वेदों में सिन्धु घाटी को ब्रह्मवर्त कहा गया या तो म्लेच्छ देश साथ ही सिन्धु के किनारे रहने वालो ने खुदको कभी सिंधवी या सिन्धी नहीं कहा।
एक और बात क्षेर्क्षेस ने भले ही भारत के पंजाब तक की धरती जीती हो पर उसने खुदको आर्यावर्त महाराज कहा  पर लेखो में कही आर्यावर्त शब्द नहीं यानि जिस हिन्द की बात की गयी है वो असल में भारत ही है।
जुनागड़ में मिले अशोक के शिलालेख में भी हमें इस देश का नाम हिदा या हिन्द मिलता है और पुरे 70 बार ।
उसने इस देश को हिदा लोक कहा है ।
गौर करे तो इतिहासकारों ने कहा की ये फारसियो का दिया शब्द है यदि ऐसा है तो भारत के लोग फारसी नहीं बोलते थे तो उन्होंने अचानक ही एक फारसी शब्द कैसे अपना लिया।
अशोक ने अपने लेख मागधी में लिखवाए है और इससे साफ पता चलता है की हिन्दू भारतीय शब्द है।
साथ ही हिब्रू बाइबिल में सिन्धु को इंडो कहा गया है और भारत के लोगो को हिदो यानि हिन्दू शब्द सिन्धु से नहीं आया।
साथ ही फारस के पारसी धर्म में सरस्वती को उतना ही पूज्य मानते है जितना भारत में ,उनके अनुसार फारस की सीमा सारस्वत तक थी तो इस हिसाब से हम सरस्वती के दूसरी तरफ रहने वाले हो गए तो फारसियो को हमें सरस्वती के नाम से बुलाना चाहिए था |
पर गंधार के साथ कई अन्य राज्य थे जिनके नाम नहीं है |

अभी आप सोच रहे होंगे की यदि हिन्दू शब्द मुसलमानों,फारसियो का नहीं और ये वेदों में नहीं तो कहा से आया ?
इसके लिए मेरे 3 सिधांत है।
पहला हिन्दू शब्द अवेस्ता से पहले हित्तेती लोगो ने इस्तेमाल किया।
सरस्वती नदी सूखने के बाद भारत से यूरोप और तुर्क की तरफ 3 बड़े प्रवास हुए
पहला हित्तेती और मित्तानी जो सिन्धु घटी से तुर्क बसे 2000 ईसापूर्व में और वे खुद मानते है की वे सिन्धु से है।
दूसरा यूरोप की तरफ यूनान में 1500 ईसापूर्व में हुआ ,यूनानी भारतीयों को डोरियन कहते।
तीसरा 1000 ईसापूर्व में फिरसे यूरोप की तरफ हुआ।
अब इनमे हित्तेती और मित्तानी सबसे महत्वपूर्ण है।
हित्तेती और मित्तानी भारतीय देवी देवताओ को मानते जैसे इंद्र,वरुण और अग्नि।
हित्तेती और मित्तानी खुद कहते वे सिन्धु से आए है।
अब ये जो हित्तेती है इन्हें हित्तेतु या हित्तु भी कहा गया जो हिन्दू से मिलता है साथ ही चीनी हमें हेइन तू कहते और यह भी हित्तेती या हित्तेतु शब्द से मिलता है यानि हित्तेती खुदको हिन्दू कहते।
मेरे सिधांत अनुसार हिन्दू शब्द जम्बू से आया हो ।
जम्बू या जम्बू द्वीप भारतीय उपमहाद्वीप का संस्कृत नाम है।
ऐसा हो सकता है की जम्बू धीरे धीरे जिम्बू हुआ फिर हिन्बू फिर हिन्बू और फिर हिन्दू।
अब आप कहेंगे की फिर हिन्दू शब्द वेदों में क्यों नहीं ??
इसका जवाब भी मेरा सिधांत देगा
मेरे सिधांत अनुसार हिन्दू असल में सनातन धर्म का ही दूसरा नाम है ।
अब वेदों में आपको विष्णु या शिव शब्द नहीं मिलेंगा इसका यह अर्थ नहीं की विष्णु और शिव सनातन धर्म के देवता नहीं ।
वेदों में विष्णु के लिए नारायण शब्द इस्तेमाल हुआ है और शिव के लिए रूद्र शब्द।
इसिकादर बाद में जाकर हिन्दू शब्द का इस्तेमाल हुआ।
साथ ही आप जितने यह पोस्ट पड़ रहे है उनमे से मुस्किल से 1% ने ही वेद पड़े होंगे तो आप दावे से कैसे कह सकते है की वेद या पूरण में हिन्दू शब्द नहीं है ??
क्या आपने असली वेद पड़े है?
आज अधिकतर वेद जो बाज़ार में है वे केवल वेदों के श्लोक के अर्थ है जो आज से 90-100 वर्ष पूर्व लिखे गए थे और हमें वाही अंग्रेजो का अर्थ ही पढ़ायाजाता है।
हाल ही में पता चला है की पुरानो में हिन्दू शब्द है
यानि हमें फिरसे शोध कराना होगा।
ऐसा नहीं है की वेदों पर शोध नहीं हो रहे पर वे ठीक से नहीं हो रहे या हमसे छुपाया जा रहा है ।
अँगरेज़ और आज के मुसलमानों के चमचे इतिहासकारों ने पहले तो हमें विदेशी बता दिया फिर हमारा आत्मसम्मान गिराने के लिए एक और चाल चली।
क्युकी वेद और पुरानो के अलावा सनातन शब्द विदेशी लेख में नहीं मिलता और हिन्दू शब्द मिलता है तो हिन्दू को विदेशी बना दिया।
जय माँ भारतीहिन्दू शब्द और उसका उदगम(Hindu word and its Origin

हो लाल मेरी पट श्री झुलेलाल का भजन था -Myth of ho lal meri pat bhajan

"हो लाल मेरी पट रखियो बल झूले लालन 
लाल मेरी पट रखियो बल झूले लालन 
सिन्ध्ड़ी दा सेहवन दा सखी शाबाज़ कलंदर 
दमा दम मस्त कलंदर, अली दा पहला नंबर 
दमा दम मस्त कलंदर, सखी शाबाज़ कलंदर  

हो लाल मेरी पट रखियो बल झूले लालन 
लाल मेरी पट रखियो बल झूले लालन 
सिन्ध्ड़ी दा सेहवन दा सखी शाबाज़ कलंदर 
दमा दम मस्त कलंदर, अली दा पहला नंबर 
दमा दम मस्त कलंदर, सखी शाबाज़ कलंदर 
हो लाल मेरी..हो लाल मेरी..

हो चार चराग तेरे बलां हमेशा 
हो चार चराग तेरे बलां हमेशा 
चार चराग तेरे बलां हमेशा 
पंजवा में बलां आई आन बला झूले लालन 
हो पंजवान में बालन 

हो पंजवान में बालन आई आन बलां झूले लालन 
सिन्ध्ड़ी दा सेहवन दा सखी शाबाज़ कलंदर 

दमा दम मस्त कलंदर, अली दा पहला नंबर 
दमा दम मस्त कलंदर, सखी शाबाज़ कलंदर 
हो लाल मेरी..हाय लाल मेरी..

हो झनन झनन तेरी नोबत बाजे 
हो झनन झनन तेरी नोबत बाजे 
झनन झनन तेरी नोबत बाजे 
नाल बाजे घड्याल बलां झूले लालन 
हो नाल बाजे..

नाल बजे घड़ियाल बला झूले लालन 
सिन्ध्ड़ी दा सेहवन दा सखी शाबाज़ कलंदर 
दमा दम मस्त कलंदर, अली दा पहला नंबर 
दमा दम मस्त कलंदर, सखी शाबाज़ कलंदर
कलंदर..(हो लाल मेरी, हाय लाल मेरी..)"

हिंदी में अर्थ :
" ओ सिंध के राजा ,झुलेलाल , शेवन के पिता
 लाल पगड़ी वाले ,तुम्हारी महिमा सदा कायम रहे
कृपया मुझपर सदा कृपा बनाये रखना 


तुम्हारा मंदिर सदा प्रकाशमय रहता है उन चार चिरागों के कारण
इसीलिए मैं पंचा चिराग जलाने आया हु आपकी पूजा के लिए

आपका नाम हिंद और सिंध में गूंजे
आपके संमान में घंटिया जोर जोर से बजे

ओ मेरे इश्वर , आपकी महिमा यु ही बदती रहे हर बार ,हर जगह
मैं आपसे प्राथना करता हु की आप मेरी नाव नदी के पार लगा दे  "


आज कल या कवाली हिंदी फिल्मो में काफी प्रसिद्ध हो रही है और कई फिल्मो में यह कवाली ली जा चुकी है |यह कवाली असल में सिंध के हिंदू संत श्री झुलेलाल का भजन था जिसे कवाली का रूप दे दिया गया है |
संत झुलेलाल 


संत झुलेलालसंत झुलेलाल का जन्म सिंध में 1007 इसवी में हुआ था |वे नसरपुर के रतनचंद लोहालो और माता देवकी के घर जन्मे थे , मान्यता यह है की वे वरुण के अवतार थे | उस समय सिंध पर मिर्कशाह नाम का मुस्लिम राजा राज कर रहा था जिसने यह हुक्म दिया था हिन्दुओ को की मरो या इस्लाम काबुल कर लो | तब सिंध के हिंदुओ ने 40 दिनों तक उपवास रखा और इश्वर से प्राथना की ,इसीलिए वरुण देव झुलेलाल के रूप में अवतरित हुए | संत झुलेलाल ने गुरु गोरखनाथ से 'अलख निरंजन ' गुरु मन्त्र प्राप्त किया | जब मिर्कशाह ने संत झुलेलाल के बारे में सुना तो उसने उन्हें अपने पास बुलवाया , उस समय संत झुलेलाल 13 वर्ष के ही थे |मिर्कशाह के सामने आने पर मिर्कशाह ने उन्हें बंदी बनाने का आदेश दिया पर तभी मिर्कशाह का महल आग की लपटों से घिर गया , तब मिर्कशाह को अपनी गलती कहा एहसास हुआ और उसने संत झुलेलाल से क्षमा मांगी ,इसके बाद पास ही के गाँव थिजाहर में 13 वर्ष की आयु में संत झुलेलाल ने समाधी ले ली |

काफ़िर किला ,प्राचीन शिव मंदिर 

सिंध प्राचीन काल से ही हिन्दुओ की भूमि थी ,इसका एक उधारण है काफ़िर किला जो पहले एक शिव मंदिर था ,700 इसवी के बाद अरबी मुसलमानों भारत पर हमला किया और अफगान और सिंध में इस्लाम का प्रचार शुरू कर दिया |
यह काम तलवार की नोक पर होता और इस काम के लिए सूफियो का सहारा भी लिया जाता था |
संत झुलेलाल सिंध में काफी प्रसिद्ध थे और वहा इस्लाम फ़ैलाने के लिए मुसलमानों ने शहबाज़ कलंदर को झुलेलाल जैसा बनाने की कोशिस की |
अब यदि आप उस कवाली का अर्थ पड़े तो आपको घंटियों का उल्लेख मिलेगा और दरगाह ,मस्जिद या मजार में तो घंटिया होती ही नहीं ,यह तो मंदिरों में होती है ,साथ ही चिराग या दियो से किसी सूफी की पूजा नही की जाती |
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की इस कवाली में झुलेलाल शब्द भी है सो प्रमाण है की यह कवाली असल में झुलेलाल का भजन था और मुसलमानों ने संत झुलेलाल के इस्लामीकरण की कोशिस की |
आज कई हिंदू इस कवाली को गा रहे है जबकि कई इस कवाली का अर्थ तक नहीं पता (क्युकी कवाली हिंदी में नहीं है ) ,वे नहीं जानते की एक तरह से वे इस्लामीकरण को बढावा दे रहे है |

प्राचीन दुनिया


USA was wrong about Allepo,Syria-There is ONLY military solution for terrorist.



The USA says there could be no military solution to Syria. The Russians may be proving the United States wrong. There may be a military solution, one senior American official conceded Wednesday, “just not our solution,” but that of President Vladimir V. Putin of Russia.
Terrorist learns only their own language- military extermination and in past and present it proves. USA is playing game in Syria with elected government for Saudi Wahabi regime, seems like Saudi has bought USA'S ARAB FOREIGN POLICY but they were not aware of fact that Russia will not leave any stone unearthed if it comes to its friends- IRAN,INDIA, SYRIA etc.
The Russian military action has changed the shape of a conflict that had effectively been stalemated for years. Suddenly, Mr. Assad and his allies have momentum, and the United States-backed rebels are on the run. If a cease-fire is negotiated here, it will probably come at a moment when Mr. Assad holds more territory, and more sway, than since the outbreak of the uprisings in 2011.

Mr. Kerry enters the negotiations with very little leverage: The Russians have cut off many of the pathways the C.I.A. has been using for a not-very-secret effort to arm rebel groups, according to several current and former officials. Mr. Kerry’s supporters inside the administration say he has been increasingly frustrated by the low level of American military activity, which he views as essential to bolstering his negotiation effort.

At the core of the American strategic dilemma is that the Russian military adventure, which Mr. Obama dismissed last year as ill-thought-out muscle flexing, has been surprising effective in helping Mr. Assad reclaim the central cities he needs to hold power, at least in a rump-state version of Syria.

Battle maps from the Institute for the Study of War show, in fact, that it is: The Russians, with Iranian help on the ground, appear to be handing Mr. Assad enough key cities that his government can hang on.
Days of intense bombing that could soon put the critical city of Aleppo back into the hands of Syrian President Assad’s forces.

Tuesday, February 9, 2016

Mahesh bhatt. Nexus of ISI,and mahesh bhatt

Mahesh bhatt. Nexus of ISI,and mahesh bhatt 
It was Mahesh Bhatts son Rahul  whom David Headly befriended while in India and he goes on to release a book that 26/11 is a RSS conspiracy 
Wah re #adarshliberals

A trend in India's intellectual thought is to blame the RSS for everything. I want Indian youths to recognize this trend. As David Headley testifies to Mumbai court in the 26/11 case, I want you to look at the faces of these individuals: Mahesh Bhatt, Aziz Burney, Digvijay Singh, Maulana Mahmood Madani, and others. These were people who blamed the RSS for 26/11 attacks and there are others. How to recognize them? Usually, they are prominent people who are masquerading as seculars, liberals, Islamists and leftists.

Says Tufail Ahmad

Monday, February 8, 2016

M K Gandhi decoded-गांधीः नैक्ड ऐंबिशन, Mahatma Gandi -Truth uncovered

अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड (1919) से समस्त देशवासी आक्रोश में थे तथा चाहते थे कि इस नरसंहार के खलनायक जनरल डायर पर अभियोग चलाया जाए।
गान्धी ने भार...तवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से मना कर दिया।
2. भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के निर्णय से सारा देश क्षुब्ध था व गान्धी की ओर देख रहा था कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु से बचाएं, किन्तु गान्धी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए जनसामान्य की इस माँग को अस्वीकार कर दिया। क्या आश्चर्य कि आज भी भगत सिंह वे अन्य क्रान्तिकारियों को आतंकवादी कहा जाता है।
3. 6 मई 1946 को समाजवादी कार्यकर्ताओं को अपने सम्बोधन में गान्धी ने मुस्लिम लीग की हिंसा के समक्ष अपनी आहुति देने की प्रेरणा दी।
4.मोहम्मद अली जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं के विरोध को अनदेखा करते हुए 1921 में गान्धी ने खिलाफ़त आन्दोलन को समर्थन देने की घोषणा की। तो भी केरल के मोपला में मुसलमानों द्वारा वहाँ के हिन्दुओं की मारकाट की जिसमें लगभग 1500 हिन्दु मारे गए व 2000 से अधिक को मुसलमान बना लिया गया। गान्धी ने इस हिंसा का विरोध नहीं किया, वरन् खुदा के बहादुर बन्दों की बहादुरी के रूप में वर्णन किया।
5.1926 में आर्य समाज द्वारा चलाए गए शुद्धि आन्दोलन में लगे स्वामी श्रद्धानन्द जी की हत्या अब्दुल रशीद नामक एक मुस्लिम युवक ने कर दी, इसकी प्रतिक्रियास्वरूप गान्धी ने अब्दुल रशीद को अपना भाई कह कर उसके इस कृत्य को उचित ठहराया व शुद्धि आन्दोलन को अनर्गल राष्ट्र-विरोधी तथा हिन्दु-मुस्लिम एकता के लिए अहितकारी घोषित किया।
6.गान्धी ने अनेक अवसरों पर छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू गोविन्द सिंह जी को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।
7.गान्धी ने जहाँ एक ओर काश्मीर के हिन्दु राजा हरि सिंह को काश्मीर मुस्लिम बहुल होने से शासन छोड़ने व काशी जाकर प्रायश्चित करने का परामर्श दिया, वहीं दूसरी ओर हैदराबाद के निज़ाम के शासन का हिन्दु बहुल हैदराबाद में समर्थन किया।
8. यह गान्धी ही था जिसने मोहम्मद अली जिन्ना को कायदे-आज़म की उपाधि दी।
9. कॉंग्रेस के ध्वज निर्धारण के लिए बनी समिति (1931) ने सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र पर निर्णय लिया किन्तु गाँधी कि जिद के कारण उसे तिरंगा कर दिया गया।
10. कॉंग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गान्धी पट्टभि सीतारमय्या का समर्थन कर रहा था, अत: सुभाष बाबू ने निरन्तर विरोध व असहयोग के कारण पदत्याग कर दिया।
11. लाहोर कॉंग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से चुनाव सम्पन्न हुआ किन्तु गान्धी की जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया।
12. 14-15 जून, 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कॉंग्रेस समिति की बैठक
में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, किन्तु गान्धी ने वहाँ पहुंच प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा।
13. मोहम्मद अली जिन्ना ने गान्धी से विभाजन के समय हिन्दु मुस्लिम जनसँख्या की
सम्पूर्ण अदला बदली का आग्रह किया था जिसे गान्धी ने अस्वीकार कर दिया।
14. जवाहरलाल की अध्यक्षता में मन्त्रीमण्डल ने सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया, किन्तु गान्धी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त करवाया और 13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला।
15. पाकिस्तान से आए विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली तो गान्धी ने उन उजड़े हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया।
16. 22 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान ने काश्मीर पर आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व माउँटबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को 55 करोड़ रुपए की राशि देने का परामर्श दिया था। केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल ने आक्रमण के दृष्टिगत यह राशि देने को टालने का निर्णय लिया किन्तु गान्धी ने उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन किया- फलस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी।17.गाँधी ने गौ हत्या पर पर्तिबंध लगाने का विरोध किया
18. द्वितीया विश्वा युध मे गाँधी ने भारतीय सैनिको को ब्रिटेन का लिए हथियार उठा कर लड़ने के लिए प्रेरित किया , जबकि वो हमेशा अहिंसा की पीपनी बजाते है
.19. क्या ५०००० हिंदू की जान से बढ़ कर थी मुसलमान की ५ टाइम की नमाज़ ?????
विभाजन के बाद दिल्ली की जमा मस्जिद मे पानी और ठंड से बचने के लिए ५००० हिंदू ने जामा मस्जिद मे पनाह ले रखी थी…मुसलमानो ने इसका विरोध किया पर हिंदू को ५ टाइम नमाज़ से ज़यादा कीमती अपनी जान लगी.. इसलिए उस ने माना कर दिया. .. उस समय गाँधी नाम का वो शैतान बरसते पानी मे बैठ गया धरने पर की जब तक हिंदू को मस्जिद से भगाया नही जाता तब तक गाँधी यहा से नही जाएगा….फिर पुलिस ने मजबूर हो कर उन हिंदू को मार मार कर बरसते पानी मे भगाया…. और वो हिंदू— गाँधी मरता है तो मरने दो —- के नारे लगा कर वाहा से भीगते हुए गये थे…,,,
रिपोर्ट — जस्टिस कपूर.. सुप्रीम कोर्ट….. फॉर गाँधी वध क्यो ?
२०. भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 24 मार्च 1931 को फांसी लगाई जानी थी, सुबह करीब 8 बजे। लेकिन 23 मार्च 1931 को ही इन तीनों को देर शाम करीब सात बजे फांसी लगा दी गई और शव रिश्तेदारों को न देकर रातोंरात ले जाकर ब्यास नदी के किनारे जला दिए गए। असल में मुकदमे की पूरी कार्यवाही के दौरान भगत सिंह ने जिस तरह अपने विचार सबके सामने रखे थे और अखबारों ने जिस तरह इन विचारों को तवज्जो दी थी, उससे ये तीनों, खासकर भगत सिंह हिंदुस्तानी अवाम के नायक बन गए थे। उनकी लोकप्रियता से राजनीतिक लोभियों को समस्या होने लगी थी।
उनकी लोकप्रियता महात्मा गांधी को मात देनी लगी थी। कांग्रेस तक में अंदरूनी दबाव था कि इनकी फांसी की सज़ा कम से कम कुछ दिन बाद होने वाले पार्टी के सम्मेलन तक टलवा दी जाए। लेकिन अड़ियल महात्मा ने ऐसा नहीं होने दिया। चंद दिनों के भीतर ही ऐतिहासिक गांधी-इरविन समझौता हुआ जिसमें ब्रिटिश सरकार सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा करने पर राज़ी हो गई। सोचिए, अगर गांधी ने दबाव बनाया होता तो भगत सिंह भी रिहा हो सकते थे क्योंकि हिंदुस्तानी जनता सड़कों पर उतरकर उन्हें ज़रूर राजनीतिक कैदी मनवाने में कामयाब रहती। लेकिन गांधी दिल से ऐसा नहीं चाहते थे क्योंकि तब भगत सिंह के आगे इन्हें किनारे होना पड़ता.|


गांधीजी की सेक्स लाइफ...
जी हां, महात्मा गांधी के सेक्स-जीवन को केंद्र बनाकर लिखी गई किताब “गांधीः नैक्ड ऐंबिशन” में एक ब्रिटिश प्रधानमंत्री के हवाले से ऐसा ही कहा गया है।

मशहूर ब्रिटिश इतिहासकार जैड ऐडम्स ने पंद्रह साल के अध्ययन और शोध के बाद “गांधीः नैक्ड ऐंबिशन” को किताब का रूप दिया है।
किताब में वैसे तो नया कुछ नहीं है। राष्ट्रपिता के जीवन में आने वाली महिलाओं और लड़कियों के साथ गांधी केआत्मीय और मधुर रिश्तों पर ख़ास प्रकाश डाला गया है।जैड ऐडम्स ने लिखा है कि गांधी नग्न होकर लड़कियोंऔर महिलाओं के साथ सोते ही नहीं थे बल्कि उनके साथ बाथरूम में “नग्न स्नान” भी करते थे।नई किताब यह खुलासा करती है कि गांधी उन युवा महिलाओं के साथ ख़ुद को संतप्त किया जो उनकी पूजा करती थीं और अकसर उनके साथ बिस्तर शेयर करती थीं|

ब्रिटिश हिस्टोरियन के मुताबिक महात्मा गांधी सेक्स के बारे लिखना या बातें करना बेहद पसंद करते थे। किताब के मुताबिक हालांकि अन्य उच्चाकाक्षी पुरुषों की तरह गांधी कामुक भी थे और सेक्स से जुड़े तत्थों के बारे में आमतौर पर खुल कर लिखते थे। अपनी इच्छा को दमित करने के लिए ही उन्होंने कठोर परिश्रम का अनोखा स्वाभाव अपनाया जो कई लोगों कोस्वीकार नहीं हो सकता।

किताब की शुरुआत ही गांधी की उस स्वीकारोक्ति से हुई है जिसमें गांधी ख़ुद लिखा या कहा करते थे कि उनके अंदर सेक्स-ऑब्सेशन का बीजारोपण किशोरावस्था में हुआ और वह बहुत कामुक हो गए थे। 13 साल की उम्रमें 12 साल की कस्तूरबा से विवाह होने के बाद गांधी अकसर बेडरूम में होते थे। यहां तक कि उनके पिता कर्मचंद उर्फ कबा गांधी जब मृत्यु-शैया पर पड़े मौत से जूझ रहे थे उस समय किशोर मोहनदास पत्नी कस्तूरबा के साथ अपने बेडरूम में सेक्स का आनंद ले रहे थे।
किताब में कहा गया है कि विभाजन के दौरान नेहरू गांधी को अप्राकृतिक और असामान्य आदत वाला इंसान मानने लगे थे। सीनियर लीडर जेबी कृपलानी और वल्लभभाई पटेल ने गांधी के कामुक व्यवहार के चलते ही उनसे दूरी बना ली। यहां तक कि उनके परिवार के सदस्य और अन्य राजनीतिक साथी भी इससे ख़फ़ा थे। कई लोगों ने गांधी के प्रयोगों के चलते आश्रम छोड़ दिया।
किताब में पंचगनी में ब्रह्मचर्य का प्रयोग का भी वर्णन किया है, जहां गांधी की सहयोगी सुशीला नायर गांधी के साथ निर्वस्त्र होकर सोती थीं और उनके साथ निर्वस्त्र होकर नहाती भी थीं।

किताब में गांधी के ही वक्तव्य को उद्धरित किया गया है। मसलन इस बारे में गांधी ने ख़ुद लिखा है, “नहाते समय जब सुशीला निर्वस्त्र मेरे सामने होती है तो मेरी आंखें कसकर बंद हो जाती हैं। मुझे कुछ भी नज़र नहीं आता। मुझे बस केवल साबुन लगाने की आहट सुनाई देती है। मुझे कतई पता नहीं चलता कि कब वह पूरी तरह से नग्न हो गई है और कब वह सिर्फ अंतःवस्त्र पहनी होती है।”

किताब के ही मुताबिक जब बंगाल में दंगे हो रहे थे गांधी ने 18 साल की मनु को बुलाया और कहा “अगर तुम साथ नहीं होती तो मुस्लिम चरमपंथी हमारा क़त्ल कर देते। आओ आज से हम दोनों निर्वस्त्र होकर एक दूसरे के साथ सोएं और अपने शुद्ध होने और ब्रह्मचर्य का परीक्षण करें।”

ऐडम का दावा है कि गांधी के साथ सोने वाली सुशीला, मनु और आभा ने गांधी के साथ शारीरिक संबंधों के बारे हमेशा अस्पष्ट बात कही।जब भी पूछा गया तब केवल यही कहा कि वह ब्रह्मचर्य के प्रयोग के सिद्धांतों का अभिन्न अंग है।

हत्या के बाद गांधी को महिमामंडित करने और राष्ट्रपिता बनाने के लिए उनदस्तावेजों, तथ्यों और सबूतों को नष्ट कर दिया, जिनसे साबित किया जा सकता था कि संत गांधी दरअसल सेक्स मैनियैक थे।

कांग्रेस भी स्वार्थों के लिए अब तक गांधी और उनके सेक्स-एक्सपेरिमेंट से जुड़े सच को छुपाती रही है। गांधीजी की हत्या के बाद मनु को मुंह बंद रखने की सलाह दी गई। सुशीला भी इस मसले पर हमेशा चुप ही रहीं।
बंगाली परिवार की विद्वान और ख़ूबसूरत महिला सरलादेवी चौधरी से गांधी का संबंध जगज़ाहिर है।
हालांकि गांधी केवल यही कहते रहे कि सरलादेवी उनकी “आध्यात्मिक पत्नी” हैं।

ऐडम्स ने स्वीकार किया है कि यह किताब विवाद से घिरेगी। उन्होंने कहा, “मैं जानता हूं इस एक किताब को पढ़कर भारत के लोग मुझसे नाराज़ हो सकते हैं लेकिन जब मेरी किताब का लंदन विश्वविद्यालय में विमोचन हुआ तो तमाम भारतीय छात्रों ने मेरे प्रयास की सराहना की, मुझे बधाई दी।” 288 पेज की करीब आठ सौ रुपए मूल्य कीयह किताब जल्द ही भारतीय बाज़ार में उपलब्ध होगी। 'गांधीः नैक्ड ऐंबिशन' का लंदन यूनिवर्सिटी में विमोचन हो चुका है। किताब में गांधी की जीवन की तक़रीबन हर अहम घटना को समाहित करने की कोशिश की गई है। जैड ऐडम्स ने गांधी के महाव्यक्तित्व को महिमामंडित करने की पूरी कोशिश की है। हालांकि उनके सेक्स-जीवन की इस तरह व्याख्या की है कि गांधीवादियों और कांग्रेसियों को इस पर सख़्त ऐतराज़ हो सकता है।