Friday, November 27, 2015

हकीम खान सूरी -महाराणा प्रताप

हकीम खान सूरी -
इनका जन्म 1538 ई. में हुआ | ये अफगान बादशाह शेरशाह सूरी के वंशज थे | महाराणा प्रताप का साथ देने के लिए ये बिहार से मेवाड़ आए व अपने 800 से 1000 अफगान सैनिकों के साथ महाराणा के सामने प्रस्तुत हुए | हकीम खान सूरी को महाराणा ने मेवाड़ का सेनापति घोषित किया | हकीम खान हरावल (सेना की सबसे आगे वाली पंक्ति) का नेतृत्व करते थे | ये मेवाड़ के शस्त्रागार (मायरा) के प्रमुख थे | मेवाड़ के सैनिकों के पगड़ी के स्थान पर शिरस्त्राण पहन कर युद्ध लड़ने का श्रेय इन्हें ही जाता है |
1573 ई.
महाराणा प्रताप ने एक ब्राह्मण को भूमि दान की व कुछ समय बाद लखा बारठ को मनसुओं का गाँव प्रदान किया
इसी वर्ष अकबर ने खुद गुजरात विजय के लिए कूच किया और इसी दौरान अकबर ने गुजरात में पहली बार समन्दर देखा | अकबर ने गुजरात विजय की याद में बुलन्द दरवाजा बनवाया |
इसी वर्ष गुजरात में ईडर की राजगद्दी पर राय नारायणदास बैठे | ये महाराणा प्रताप के ससुर थे व इन्होंने महाराणा प्रताप का खूब साथ दिया | इन्होंने भी महाराणा की तरह घास की रोटियाँ खाई थीं |
अबुल फजल लिखता है "ईडर के राय नारायणदास को घास-फूस खाना मंजूर था, पर बादशाही मातहती कुबूल करना नहीं"
1574 ई.
अकबर की बंगाल व बिहार विजय
इसी वर्ष आमेर के राजा भारमल का देहान्त हुआ | भगवानदास आमेर का शासक बना |
इसी वर्ष बीकानेर नरेश राव कल्याणमल का देहान्त हुआ | राजा रायसिंह (महाराणा प्रताप के बहनोई) बीकानेर के शासक बने | इन्होंने अकबर का साथ दिया |
इसी वर्ष अकबर ने मारवाड़ के राव चन्द्रसेन को दण्डित करने के लिए राजा रायसिंह को भेजा, पर रायसिंह को सफलता नहीं मिली |
यूरोप के साथ मुगलों का व्यापार मेवाड़ के भीतर होकर सूरत या किसी और बन्दरगाह से होता था | महाराणा प्रताप और उनके साथी गुजरात मार्ग को आए दिन बन्द कर देते थे व मुगलों की सामग्री लूट लेते, जिससे अकबर का यूरोप के साथ व्यापार ठप्प होने लगा | अकबर ने राजा रायसिंह को गुजरात मार्ग खोलने व लूटमार रोकने के लिए नियुक्त किया | महाराणा प्रताप ने अपने बहनोई से लड़ना ठीक न समझा, पर राजा रायसिंह के जाते ही महाराणा ने फिर गुजरात मार्ग बन्द कर लूटमार शुरु की |
(हल्दीघाटी युद्ध का ये एक महत्वपूर्ण कारण था)
1575 ई.
इसी वर्ष अकबर ने चित्तौड़ को अजमेर सूबे का हिस्सा बनाया | अकबर ने महाराणा के खिलाफ अपनी जंग को धर्म से जोड़ते हुए मेवाड़ के रायला, बदनोर, शाहपुरा, अरनेता, कटड़ी, कान्या आदि इलाकों को सूफी सन्त मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह (अजमेर) के हिस्से में दे दिये |
इसी वर्ष अकबर ने महाराणा प्रताप पर बादशाही मातहती कुबूल करने का दबाव बढ़ाने के लिए फिर से जजिया कर लागू कर दिया |
(अकबर ने जजिया कर लगाने के लिए ही मेवाड़ के इलाके अजमेर के हिस्से में दिये थे)....(हालांकि कुछ समय बाद उसने जजिया कर हटा दिया)
इसी वर्ष अकबर ने महाराणा प्रताप व राव चन्द्रसेन की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए सैयद हाशिम व जलाल खान कोरची को भेजा |
मारवाड़ के राव चन्द्रसेन, जिन्हें मारवाड़ का राणा प्रताप, प्रताप का अग्रगामी, भूला बिसरा राजा भी कहा जाता है, उन्होंने जलाल खान कोरची की हत्या कर दी |

हल्दीघाटी का युद्ध, Haldighati war

हल्दीघाटी का युद्ध मुग़ल बादशाह अकबर औरमहाराणा प्रताप के बीच 18 जून, 1576 ई. को लड़ा गया था। अकबर और राणा के बीच यह युद्धमहाभारत युद्ध की तरह विनाशकारी सिद्ध हुआ था। ऐसा माना जाता है कि इस युद्ध में न तो अकबर जीत सका और न ही राणा हारे। मुग़लों के पास सैन्य शक्ति अधिक थी तो राणा प्रताप के पास जुझारू शक्ति की कोई कमी नहीं थी। उन्होंने आखिरी समय तक अकबर से सन्धि की बात स्वीकार नहीं की और मान-सम्मान के साथ जीवन व्यतीत करते हुए लड़ाईयाँ लड़ते रहे।
मुग़ल आक्रमणउदयसिंह वर्ष 1541 ई. में मेवाड़ के राणा हुए थे, जब कुछ ही दिनों के बाद अकबर ने मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ पर चढ़ाई की। मुग़ल सेना ने आक्रमण कर चित्तौड़ को घेर लिया था, लेकिन राणा उदयसिंह ने अकबर अधीनता स्वीकार नहीं की। हज़ारों मेवाड़ियों की मृत्यु के बाद जब उन्हें लगा कि चित्तौड़गढ़ अब नहीं बचेगा, तब उदयसिंह ने चित्तौड़ को 'जयमल' और 'पत्ता' आदि वीरों के हाथ में छोड़ दिया और स्व्यं अरावली के घने जंगलों में चले गए। वहाँ उन्होंने नदी की बाढ़ रोक 'उदयसागर' नामक सरोवर का निर्माण किया था। वहीं उदयसिंह ने अपनी नई राजधानी उदयपुर बसाई। चित्तौड़ के विध्वंस के चार वर्ष बाद ही उदयसिंह का देहांत हो गया। उनके बाद महाराणा प्रताप ने भी युद्ध जारी रखा और मुग़ल अधीनता स्वीकार नहीं की।
==========युद्धभूमि पर महाराणा प्रताप के चेतक (घोड़े) की मौत=============
'हल्दीघाटी का युद्ध' भारतीय इतिहास में प्रसिद्ध है। इस युद्ध के बाद महाराणा प्रताप की युद्ध-नीति छापामार लड़ाई की रही थी।अकबर ने मेवाड़ को पूर्णरूप से जीतने के लिए 18 जून, 1576 ई. में आमेर के राजा मानसिंह एवं आसफ ख़ाँ के नेतृत्व में मुग़लसेना को आक्रमण के लिए भेजा। दोनों सेनाओं के मध्य गोगुडा के निकट अरावली पहाड़ी की हल्दीघाटी शाखा के मध्य युद्ध हुआ। इस युद्ध में राणा प्रताप पराजित हुए। लड़ाई के दौरान अकबर ने कुम्भलमेर दुर्ग से महाराणा प्रताप को खदेड़ दिया तथा मेवाड़ पर अनेक आक्रमण करवाये, किंतु प्रताप ने अधीनता स्वीकार नहीं की। युद्ध राणा प्रताप के पक्ष में निर्णायक नहीं हो सका। खुला युद्ध समाप्त हो गया था, किंतु संघर्ष समाप्त नहीं हुआ था। भविष्य में संघर्षो को अंजाम देने के लिए प्रताप एवं उसकी सेना युद्ध स्थल से हट कर पहाड़ी प्रदेश में आ गयी थी। मुग़लों के पास सैन्य शक्ति अधिक थी तो राणा प्रताप के पास जुझारू शक्ति अधिक थी।
====================राजपूतों की वीरता=============================
युद्ध में 'सलीम' (बाद में जहाँगीर) पर राणा प्रताप के आक्रमण को देखकर असंख्य मुग़ल सैनिक उसी तरफ़ बढ़े और प्रताप को घेरकर चारों तरफ़ से प्रहार करने लगे। प्रताप के सिर पर मेवाड़ का राजमुकुट लगा हुआ था। इसलिए मुग़ल सैनिक उसी को निशाना बनाकर वार कर रहे थे। राजपूत सैनिक भी राणा को बचाने के लिए प्राण हथेली पर रखकर संघर्ष कर रहे थे। परन्तु धीरे-धीरे प्रताप संकट में फँसते ही चले जा रहे थे। स्थिति की गम्भीरता को परखकर झाला सरदार मन्नाजी ने स्वामिभक्ति का एक अपूर्व आदर्श प्रस्तुत करते हुए अपने प्राणों की बाजी लगा दी।
=====================मन्नाजी का बलिदान=========================
झाला सरदार मन्नाजी तेज़ी के साथ आगे बढ़ा और उसने राणा प्रताप के सिर से मुकुट उतार कर अपने सिर पर रख लिया। वह तेज़ी के साथ कुछ दूरी पर जाकर घमासान युद्ध करने लगा। मुग़ल सैनिक उसे ही प्रताप समझकर उस पर टूट पड़े। राणा प्रताप जो कि इस समय तक बहुत बुरी तरह घायल हो चुके थे, उन्हें युद्ध भूमि से दूर निकल जाने का अवसर मिल गया। उनका सारा शरीर अगणित घावों से लहूलुहान हो चुका था। युद्ध भूमि से जाते-जाते प्रताप ने मन्नाजी को मरते देखा। राजपूतों ने बहादुरी के साथ मुग़लों का मुक़ाबला किया, परन्तु मैदानी तोपों तथा बन्दूकधारियों से सुसज्जित शत्रु की विशाल सेना के सामने समूचा पराक्रम निष्फल रहा। युद्ध भूमि पर उपस्थित बाईस हज़ार राजपूत सैनिकों में से केवल आठ हज़ार जीवित सैनिक युद्ध भूमि से किसी प्रकार बचकर निकल पाये।
इस प्रकार हल्दीघाटी के इस भयंकर युद्ध में बड़ी सादड़ी के जुझारू झाला सरदार मान या मन्नाजी ने राणा की पाग (पगड़ी) लेकर उनका शीश बचाया। राणा अपने बहादुर सरदार का जुझारूपन कभी नहीं भूल सके। इसी युद्ध में राणा का प्राणप्रिय घोड़ा चेतक अपने स्वामी की रक्षा करते हुए शहीद हो गया और इसी युद्ध में उनका अपना बागी भाई शक्तिसिंह भी उनसे आ मिला और उनकी रक्षा में उसका भाई-प्रेम उजागर हो उठा था। अंत में सन 1542 के बाद में महाराणा प्रताप जी ने अपने अदम्य साहस का परिचय देते हुए अपने साम्राज्य को फिर से स्वतंत्र करा लिया..!!
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भदौरिया वंश (Bhadhauriya Vansh)

भदौरिया वंश (Bhadhauriya Vansh)
भदौरिया राजपूत चौहान राजपूतो की शाखा है,इनका गोत्र वत्स है और इनकी चार शाखाए राउत, मेनू, तसेला, कुल्हिया, अठभईया हैं,
भदौरिया राजपूत कुल का नाम है। इनका नाम ग्वालियर के ग्राम भदावर पर पड़ा। इस वंश के महाराजा को 'महेन्द्र' (पृथ्वी का स्वामी) की उपाधि से संबोधित किया जाता है। यह उपाधि आज भी इस कुल के मुखिया के नाम रहती है |
इस कुटुम्ब के संस्थापक मानिक राय, अजमेर के चौहान को मना जाता है, उनके पुत्र राजा चंद्रपाल देव (७९४-८१६) ने ७९३ में "चंद्रवार" (आज का फिरोजाबाद) रियासत की स्थापना की और वहां एक किले का निर्माण कराया जो आज भी फिरोजाबाद में स्थित है।
८१६ में उनके पुत्र राजा भदों राव (८१६-८४२) ने भदौरा नामक शहर की स्थापना की और अपने राज्य की सीमा को आगरा में बाह तक बढ़ा दिया,
रज्जू भदौरिया ने सदा अकबर का प्रतिरोध किया,जौनपुर के शर्की सुल्तान हुसैनशाह को भी भदौरिया राजपूतो ने हराया था,
इन्होने दिल्ली के सुल्तान सिकन्दर लोदी के विरुद्ध भी बगावत की थी,
जब मुगलों के साम्राज्य का पतन हो रहा था, तब भदौरिया प्रभावशाली व सर्वशक्तिमान थे | १७०७ में सम्राट औरंगजेब की मृत्यु के बाद हुयी लडाई में भदावर के राजा कल्याण सिंह भदौरिया ने पर धौलपुर कब्जा किया और १७६१ तक धौलपुर भदावर रियासत का हिस्सा रहा | १७०८ में भदावर सैनिक, उम्र-ऐ-उज्ज़म महाराजाधिराज श्रीमान महाराजा महेंद्र गोपाल सिंह भदौरिया ने गोंध पर धावा बोला, राणा भीम सिंह जाट को युद्ध में हरा कर गोंध के किले पर कब्जा किया और गोंध को भदावर में मिला लिया १७३८ तक गोंध भदावर की हिस्सा रहा ,
पहले इनके चार राज्य थे ,चाँदवार, भदावर, गोंध, धौलपुर,
इनमे गोंध इन्होने जाट राजाओ से जीता था,अब सिर्फ एक राज्य बचा है भदावर जो इनकी प्रमुख गद्दी है,राजा महेंद्र अरिदमन सिंह इस रियासत के राजा हैं और यूपी सरकार में मंत्री हैं.ये रियासत आगरा चम्बल इलाके में स्थित है,
अब भदौरिया राजपूत आगरा ,इटावा,भिंड,ग्वालियर में रहते हैं
(तस्वीर में भदौरिया राजपूतो का चम्बल का अटेर दुर्ग जहाँ खून का तिलक लगाकर ही राजा से मिलते थे गुप्तचर)
सोर्स- राजपूताना सोच क्षत्रिय इतिहास

चेतक जैसा शुभ्रक घोरा- राजकुंवर कर्णसिंह का

चेतक जैसा  शुभ्रक घोरा 
कुतुबुद्दीन ने राजपूताना में कहर बरपाया और राजकुंवर कर्णसिंह को बंदी बनाकर Lahore ले गया। उदयपुर के कुंवर का शुभ्रक नाम का घोड़ा स्वामिभक्त था, लेकिन कुतुबुद्दीन उसे भी साथ ले गया।
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कैद से भागने के प्रयास में एक दिन राजकुंवर को सजा ऐ मौत देने के लिए मैदान में लाया गया। यह तय हुआ कि राजकुंवर का सिर काटकर उससे खेला जाएगा। मूल खेल तो पोलो खेलना था, लेकिन राजकुंवर के सिर से खेलना था। कुतुबुद्दीन शुभ्रक घोड़े पर सवार होकर अपनी खिलाड़ी टोली के साथ जन्नत बाग में आया। शुभ्रक ने जैसे ही कैदी अवस्था में राजकुंवर को देखा उसकी आंखों से आंसू टपकने लगे और जब राजकुंवर का सिर कलम करने के लिए उसे जंजीरों से खोला गया तो शुभ्रक से रहा नहीं गया, उसे उछलकर कुतुबुद्दीन को घोड़े से गिरा दिया, उसकी छाती पर अपने पैरों के कई वार किए, जिससे उसके प्राण पखेरू वहीं उड गए और राजकुंवर के पास आकर सिपाहियों से जंग लड़ने लगा तो कुंवर शुभ्रक पर सवार हो गया और हवा की तरह उड़ने लगा। कई दिन और रात दौड़ता रहा और एक दिन बिना रुके उदयपुर के महल के सामने आ गया। राजकुंवर जैसे ही घोड़े से उतरे और अपने प्रिय अश्व को पुचकारने लगे तो देखा घोडा प्रतिमा जैसा बना खडा था, लेकिन उसमें प्राण नहीं थे। सिर पर हाथ रखते ही उसका निष्प्राण शरीर लुढक गया।
इतिहास में यह तथ्य कहीं नहीं पढ़ाया जाता, जबकि फारसी की कई प्राचीन पुस्तकों में कुतुबुद्दीन की मौत इसी तरह लिखी बताई गई है।
स्रोत: इतिहास की भूली बिसरी कहानियां, सूर्या भारती प्रकाशन दिल्ली
2. अजेय अग्नि, हिन्दी साहित्य सदन, करोल बाग नई दिल्ली
3. हिस्ट्री ऑफ लाहौर, शब्बीर पब्लिकेशंस लाहौर, 1902
4. गुलामे शाह, संस्करण 1875

राजपूत -बाल बड़े क्यों रखते थे ,युद्ध की तैयारिया

1) राजपूतो में पहले सिर के बाल बड़े रखे जाते थे जो गर्दन के नीचे तक होते थे युद्ध में जाते समय बालो के बीच में गर्दन वाली जगह पर लोहे की जाली डाली जाती थी और वहा विषेस प्रकार का चिकना प्रदार्थ लगाया जाता था इससे तलवार से गर्दन पर होने वाले वार से बचा जा सके
2) युद्ध में धोखे का संदेह होने पर घुसवार अपने घोड़ो से उतर कर जमीनी युद्ध करते थे
3) मध्य काल में देवी और देव पूजा होती थी जंग में जाने से पूर्व राजपूत अपनी कुलदेवियो की पूजा अर्चना करते थे जो ही शक्ति का प्रतिक है मेवाड़ के सिसोदिया एकलिंग जी की पूजा करते
4) हरावल - राजपूतो की सेना में युद्ध का नेतृत्व करने वाली टुकड़ी को हरावल सेना कहा जाता था जो सबसे आगे रहती थी कई बार इस सम्माननीय स्थान को पाने के लिए राजपूत आपस में ही लड़ बैठते थे इस संदर्भ में उन्टाला दुर्ग वाला चुण्डावत शक्तावत किस्सा प्रसिद्ध है
5) किसी बड़े जंग में जाते समय या नय प्रदेश की लालसा में जाते समय राजपूत अपने राज्य का ढोल , झंडा ,राज चिन्ह और कुलदेवी की मूर्ति साथ ले जाते थे
6) शाका - महिलाओं को अपनी आंखों के आगे जौहर की ज्वाला में कूदते देख पुरूष जौहर कि राख का तिलक कर के सफ़ेद कुर्ते पजमे में और केसरिया फेटा ,केसरिया साफा या खाकी साफा और नारियल कमर कसुम्बा पान कर,केशरिया वस्त्र धारण कर दुश्मन सेना पर आत्मघाती हमला कर इस निश्चय के साथ रणक्षेत्र में उतर पड़ते थे कि तो विजयी होकर लोटेंगे अन्यथा विजय की कामना हृदय में लिए अन्तिम दम तक शौर्यपूर्ण युद्ध करते हुए दुश्मन सेना का ज्यादा से ज्यादा नाश करते हुए रणभूमि में चिरनिंद्रा में शयन करेंगे | पुरुषों का यह आत्मघाती कदम शाका के नाम से विख्यात हुआ
7) जौहर : युद्ध के बाद अनिष्ट परिणाम और होने वाले अत्याचारों व व्यभिचारों से बचने और अपनी पवित्रता कायम रखने हेतु अपने सतीत्व के रक्षा के लिए राजपूतनिया अपने शादी के जोड़े वाले वस्त्र को पहन कर अपने पति के पाँव छू कर अंतिम विदा लेती है महिलाएं अपने कुल देवी-देवताओं की पूजा कर,तुलसी के साथ गंगाजल का पानकर जलती चिताओं में प्रवेश कर अपने सूरमाओं को निर्भय करती थी कि नारी समाज की पवित्रता अब अग्नि के ताप से तपित होकर कुंदन बन गई है और राजपूतनिया जिंदा अपने इज्जत कि खातिर आग में कूद कर आपने सतीत्व कि रक्षा करती थी | पुरूष इससे चिंता मुक्त हो जाते थे कि युद्ध परिणाम का अनिष्ट अब उनके स्वजनों को ग्रसित नही कर सकेगा | महिलाओं का यह आत्मघाती कृत्य जौहर के नाम से विख्यात हुआ |सबसे ज्यादा जौहर और शाके चित्तोड़ के दुर्ग में हुए
8) गर्भवती महिला को जौहर नहीं करवाया जाता था अत: उनको किले पर मौजूद अन्य बच्चों के साथ सुरंगों के रास्ते किसी गुप्त स्थान या फिर किसी दूसरे राज्य में भेज दिया जाता था ।राजपुताने में सबसे ज्यादा जौहर मेवाड़ के इतिहास में दर्ज हैं और इतिहास में लगभग सभी जौहर इस्लामिक आक्रमणों के दौरान ही हुए हैं जिसमें अकबर और ओरंगजेब के दौरान सबसे ज्यादा हुए हैं ।
9) अंतिम जौहर - पुरे विश्व के इतिहास में अंतिम जौहर अठारवी सदी में भरतपुर के जाट सूरजमल ने मुगल सेनापति के साथ मिलकर कोल के घासेड़ा के राजपूत राजा बहादुर सिंह पर हमला किया था। महाराजा बहादुर सिंह ने जबर्दस्त मुकाबला करते हुए मुगल सेनापति को मार गिराया। पर दुश्मन की संख्या अधिक होने पर किले में मौजूद सभी राजपूतानियो ने जोहर कर अग्नि में जलकर प्राण त्याग दिए उसके बाद राजा और उसके परिवारजनों ने शाका किया। इस घटना का जिकर आप "गुड़गांव जिले के गेजिएटर" में पढ़ सकते है
10) युद्ध में जाते से पूर्व "चारण/गढ़वी" कवि वीररस सुना कर राजपूतो में जोश पैदा करते और अपना कर्तव्य याद दिलाते कुछ युद्ध जो लम्बे चलते वह चारण भी साथ जाते थे चारण गढ़वी और भाट एक प्रकार के दूत होते थे जो राजपूत राजा के दरबार में बिना किसी रोक टोक आ जा सकते थे चाहे वो दुश्मन राजपूत राजा ही क्यों ना हो
11) राजपूताने के सभी बड़े किले के बनने से पूर्व एक स्वऐछिक नर बलि होती थी कुम्भलगढ़ के किले पर एक सिद्ध साधु ने स्वऐछिक दी थी
12) राजपूताने के ज्यादातर किलो में गुप्त रास्ते बने हुए है आजादी के बाद और सन 1971 के बाद सभी गुप्त रस्ते बंद कर दिए गए है

जहा मुस्लिम चादर चढ़ाते है एक राजपूत की मजार पर...वीर योद्धा डूंगर सिंह भाटी_______

जहा मुस्लिम चादर चढ़ाते है एक राजपूत की मजार पर..._वीर योद्धा डूंगर सिंह भाटी_

सिर कटे धड़ लड़े रखा रजपूती शान
"दो दो मेला नित भरे, पूजे दो दो थोर॥
सर कटियो जिण थोर पर, धड जुझ्यो जिण थोर॥ ”
मतलब :-
एक राजपूत की समाधी पे दो दो जगह मेले लगते है,
पहला जहाँ उसका सर कटा था और दूसरा जहाँ उसका धड लड़ते हुए गिरा था….
राजपुताना वीरो की भूमि है। यहाँ ऐसा कोई गाव नही जिस पर राजपूती खून न बहा हो, जहाँ किसी जुंझार का देवालय न हो, जहा कोई युद्ध न हुआ हो। भारत में मुस्लिम आक्रमणकर्ताओ कोे रोकने के लिए लाखो राजपूत योद्धाओ ने अपना खून बहाया बहुत सी वीर गाथाये इतिहास के पन्नों में दब गयी। इसी सन्दर्भ में एक सच्ची घटना-
उस वक्त जैसलमेर और बहावलपुर(वर्तमान पाकिस्तान में) दो पड़ोसी राज्य थे। बहावलपुर के नवाब की सेना आये दिन जैसलमेर राज्य के सीमावर्ती क्षेत्रो में डकैती, लूट करती थी परन्तु कभी भी जैसलमेर के भाटी वंश के शासको से टकराने की हिम्मत नही करती थी।
उन्ही दिनों एक बार जेठ की दोपहरी में दो राजपूत वीर डूंगर सिंह जी उर्फ़ पन्न राज जी, जो की जैसलमेर महारावल के छोटे भाई के पुत्र थे और उनके भतीजे चाहड़ सिंह जिसकी शादी कुछ दिन पूर्व ही हुयी थी, दोनों वीर जैसलमेर बहावलपुर की सीमा से कुछ दुरी पर तालाब में स्नान कर रहे थे। तभी अचानक बहुत जोर से शोर सुनाई दिया और कन्याओ के चिल्लाने की आवाजे आई। उन्होंने देखा की दूर
बहावलपुर के नवाब की सेना की एक टुकड़ी जैसलमेर रियासत के ही ब्राह्मणों के गाँव "काठाडी" से लूटपाट कर अपने ऊँटो पर लूटा हुआ सामान और साथ में गाय, ब्राह्मणों की औरतो को अपहरण कर जबरदस्ती ले जा रही है। तभी डूंगर सिंह उर्फ़ पनराजजी ने भतीजे चाहड़ सिंह को कहा की तुम जैसलमेर जाओ और वहा महारावल से सेना ले आओ तब तक में इन्हें यहाँ रोकता हूँ। लेकिन चाहड़ समझ गए थे की काका जी कुछ दिन पूर्व विवाह होने के कारण उन्हें भेज रहे हैँ। काफी समझाने पर भी चाहड़ नही माने और अंत में दोनों वीर क्षत्रिय धर्म के अनुरूप धर्म निभाने गौ ब्राह्मण को बचाने हेतु मुस्लिम सेना की ओर अपने घोड़ो पर तलवार लिए दौड़ पड़े।
डूंगर सिंह को एक बड़े सिद्ध पुरुष ने सुरक्षित रेगिस्तान पार कराने और अच्छे सत्कार के बदले में एक चमत्कारिक हार दिया था जिसे वो हर समय गले में पहनते थे।
दोनों वीर मुस्लिम टुकडी पर टूट पड़े और देखते ही देखते बहावलपुर सेना की टुकड़ी के लाशो के ढेर गिरने लगे। कुछ समय बाद वीर चाहड़ सिंह (भतीजे)भी वीर गति को प्राप्त हो गए जिसे देख क्रोधित डूंगर सिंह जी ने दुगुने वेश में युद्ध लड़ना शुरू कर दिया। तभी अचानक एक मुस्लिम सैनिक ने पीछे से वार किया और इसी वार के साथ उनका शीश उनके धड़ से अलग हो गया। किवदंती के अनुसार, शीश गिरते वक़्त अपने वफादार घोड़े से बोला-
"बाजू मेरा और आँखें तेरी"
घोड़े ने अपनी स्वामी भक्ति दिखाई व धड़, शीश कटने के बाद भी लड़ता रहा जिससे मुस्लिम सैनिक भयभीत होकर भाग खड़े हुए और डूंगर जी का धड़ घोड़े पर पाकिस्तान के बहावलपुर के पास पहुंच गया। तब लोग बहावलपुर नवाब के पास पहुंचे और कहा की एक बिना मुंड आदमी बहावलपुर की तरफ उनकी टुकडी को खत्म कर गांव के गांव तबाह कर जैसलमेर से आ रहा है।
वो सिद्ध पुरुष भी उसी वक़्त वही थे जिन्होंने डूंगर सिंह जी को वो हार दिया था। वह समझ गए थे कि वह कोई और नहीं डूंगर सिंह ही हैं। उन्होंने सात 7 कन्या नील ले कर पोल(दरवाजे के ऊपर) पर खडी कर दी और जैसे ही डूंगर सिंह नीचे से निकले उन कन्याओं के नील डालते ही धड़ शांत हो गया।
बहावलपुर, जो की पाकिस्तान में है जहाँ डूंगर सिंह भाटी जी का धड़ गिरा, वहाँ इस योद्धा को मुण्डापीर कहा जाता है। इस राजपूत वीर की समाधी/मजार पर उनकी याद में हर साल मेला लगता है और मुसलमानो द्वारा चादर चढ़ाई जाती है।
वहीँ दूसरी ओर भारत के जैसलमेर का मोकला गाँव है, जहाँ उनका सिर कट कर गिरा उसे डूंगरपीर कहा जाता है। वहाँ एक मंदिर बनाया हुआ है और हर रोज पूजा अर्चना की जाती है। डूंगर पीर की मान्यता दूर दूर तक है और दूर दराज से लोग मन्नत मांगने आते हैँ।

Monday, November 23, 2015

Modi 's 16 month in India

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मोदी जी के उपलब्धियों 

1. मोदी जी ने सऊदी अरब को “On-Time Delivery” Premium charges on Crude Oil  के लिए मना लिया है ।

2. India भूटान में 4 Hydropower Dams बनाएगा । जिस से Green energy मिलेगी ।

3. India नेपाल में सबसे बड़ा hydro dam बनाएगा जिस से 83% Green energy इंडिया को मिलेगी। ( इसके लिए china कब से लगा हुआ था )

4. जापान के साथ समझोता हुआ. वो भारत में 10 लाख करोड़ invest करेंगे और bullet train चलाने में मदद करेंगे।
 ( कांग्रेस के टाइम में ये समझोता सिर्फ 1000 करोड़ का था)

5. Vietnam के साथ रिश्ते सुधारे हैं और अब भारत को आयल देने और आयल रिफानरी में भारत की मदद करेगा। 
कांग्रेस के समय उसने मना कर दिया थ।

6. इरान अब डॉलर की जगह रूपये में आयल देने को राजी हो गया है । इस से काफी बचत होगी । 

7. मोदी जी 28 साल के बाद अॉस्ट्रेलिया जाने वाले प्रधनमंत्री बने । और वहां दोस्ती के रिश्ते बनाये । अब वहां से Uranium मिलेगा जिससे बिजली बनाने के लिए काफी मदद मिलेगी। 

8. मोदी जी इस साल श्रीलंका गये और टूटी हुई दोस्ती सुधारी। जो कांग्रेस ने श्रीलंका ना जाके बिगाड़ ली थी।

9. China का सामान india में बहुत बिक रहा है , इसके लिए बोल दिया की या तो इंडिया में invest करो नही तो गैर क़ानूनी माना जाएगा । अब China $20 billion Invest करेगा।

10. India ने North East and around India china border पे रोड बनाना शुरू कर दिया है ताकि हमारी army को जाने में दिक्कत न हो।
कांग्रेस इस बनाने में डरती रही।

12. India यमन से 4000+ Indians को लाने में सफल रही ।ये सब मोदी और सऊदी अरब किंग की दोस्ती की वजह से संभव हो पाया।

13. India की Air force की ताकत कमजोर हो गयी थी। इसके लिए आते ही  फ़्रांस से 36 Rafale fighter Jets खरीदने के लिए deal की है।

14. after  42 years Canada , भारत को Uranium देने के लिए राजी हो गया है । इस से बिजली की समस्या से निपटने में मदद मिलेगी ।

15. Canada अब भारतीयों को On-Arrival visa देगा।

16. अब तक हम अमेरिक और रूस से ही Nuclear Reactor खरीद सकते थे । मगर अब फ़्रांस भारतीय कम्पनी के साथ यही बनाएगी ।
 - MAKE IN INDIA 

17. बराक ओबामा से दोस्ती की और अमेरिका अब भारत में 16 Nuclear power plant लगाने में मदद करेगा । जिस से भारत में बिजली की दिक्कत ख़तम हो जाएगी ।

Sunday, November 22, 2015

Various school boards in India

Which board to choose from SSC, CBSE, ICSE and IB ?

Choosing the board most suitable for your child can be a harrowing experience.Many parents are confused with which board to choose. There are namely four common boards like the CBSE (Central Board of Secondary Education),ICSE (Indian Certificate is Secondary Education), IB (International Baccalaureate)and the SSC (State Boards).

A common misconception is that CBSE and ICSE are both education boards similar to SSC boards of state government. CBSE is an education board but ICSE is the certificate offered after completion of the course and it is not a board. Still ICSE board is commonly used to mention this course.

Secondary School Certificate, commonly known as SSC, is a public examination taken by students in Maharashtra, Madhya Pradesh, Gujarat, Andhra Pradesh and Goa in India, Bangladesh, and Pakistan , after successfully completing at least ten years of schooling. It is followed by Higher Secondary (School) Certificate (HSC). SSC is an equivalent to GCSE in the England.

State Boards are comparatively limited in the content and subjects as compared to other boards.The syllabus is easier and hence less stressful to the students.These schools being state centric are excellent for parents planning to stay in the same state for life. The State language is compulsory. As the concepts are generally lagging the kids have to be given external coaching, if planning for IIT, CAT and other competitive exams. These schools are great for kids who are focused on extracurricular activities like sports etc.

CBSE
Central Board of Secondary Education: Know as the CBSE board. It prepares the syllabus for students up to Class 12. The curriculum is set by National Council of Educational Research and Training (NCERT). The board conducts India's two nation-wide board examinations: the All India Secondary School Examination for Class 10 and the All India Senior School Certificate Examination for Class 12. 

Many schools are affiliated to CBSE syllabus.All major cities have CBSE schools, hence easy to move around in the country. The curriculum is very good when it comes to general knowledge and general subjects. It allows the kids to experience subjects without going deep into them thus helping them to choose the focus after Xth. This board prepares kids for competitive exams like the IIT, CAT, IIM and all entrance exams which are held at national level and it gives better chances for appearing for Armed Forces Exams, NDA, IAS, IFS, IPS.etc. The schools also focus a lot on extracurricular activities Most of which are compulsory thus assuring an overall growth of the child. One disadvantage is the length of the syllabus. It has vast syllabus

ICSE
The ICSE is short form of Indian Certificate for Secondary Education. It was established by the University of Cambridge Local Examinations Syndicate. The council conducts an all India exam for Class 10 called ICSE(Indian Certificate for Secondary Education) and for class 12 called the Indian School Certificate (ISC).

The ICSE board follows the basics strengthening syllabus. all the introduction is repeated and then quadratic equations are handled. Even questions are based on the basics. This makes the basics of the topic very strong. This helps the student a lot of confidence when higher studies are involved. As his basics are very strong, half the job is done. There is lot of focus on language and literature. So good for kids wanting to make a career which involves writing, reading, talking, debating, arguing, surveying, historians, geologist etc. This curriculum is very good when it comes to general knowledge and general subjects . However it is unnecessarily vast. 

This board is also good for competitive exams like IIT, IIM, CAT, All India entrance exams, but needs extra time and coaching. Even Armed forces exams can be appeared after this board. ICSE syllabus is particularly important for students who prefer higher education abroad. Exams like GRE, TOEFLand GMAT have a lot of verbal ability testing. Its also excellent for those who are migrating from abroad as the curriculum is close to international board. One important distinguishing feature in ICSE syllabus is the importance given to projects. Projects are very important and they form the basis of marking scheme in the performance of the student. This makes the student extremely active and it improves his thinking ability.

IB Board
This board is excellent for kids whose parents are globe trotters as it enables kids to get admission into any IB school across the world. There are very few students in each batch, hence ensures quality focus on each child. The syllabus is taught in most interesting and interactive way with the best of equipments. The overall atmosphere in the school is international, with kids taking teachers as their equals. However these schools can be extremely expensive!

What we have attempted here is to give an non biased analysis of each schools. However each board has its own merits and demerits. The choice is up to you to decide which syllabus is most suited for your child.

Friday, November 20, 2015

फोर्ड फाउंडेशन क्या है? What is ford foundation?

फोर्ड  फाउंडेशन क्या है? 
आज भारत में नयी सरकार बीजेपी के आने के वाद बहुत से NGO की वाट लगी उनमे ग्रीनपीस भी एक है और फोर्ड फाउंडेशन भी।।
उसके वाद से अमेरिका भी बौखलाया हुआ है और भारत सरकार से स्पष्टीकरण मांग रहा और अमेरिका की ये बोखलाहट साफ़ साफ़ दिखाती है की वे कांग्रेस राज में किस तरह देश को अस्थिर कर रहे थे।।

आज जो साहित्यकार और कुछ बड़े लोग मोदी सरकार को किसी ना किसी तरीके से कोष रहे है वो किसी न किसी रूप में फोर्ड फाउंडेशन से जुड़े हुए है ।।अब उनके NGO को पैसा मिलना बन्द हो चूका है इसलिए वो बोखलाए हुए है।

 अब उस फोर्ड फाउंडेशन की मनमानी बन्द हो चुकी है बीजेपी के आने के वाद इसलिए अब वो बोखलाए हुए है और बीजेपी को अस्थिर करने में लगे है।

फोर्ड फाउंडेशन को समझिए !

फोर्ड मोटर्स कम्पनी के मालिक व अमेरिका के मूल निवासी हेनरी फोर्ड और एडसेल फोर्ड ने 15 जनवरी 1936 में फोर्ड फाउंडेशन नामक NGO का गठन किया ! NGO मुख्य उद्देश्य वैश्विक स्तर पर मानव कल्याण को बढ़ावा देना था, फोर्ड फाउंडेशन का मुख्यालय न्यूयॉर्क में है !

"मानव कल्याण" का मुखौटा लेकर पूरे विश्व में पहचान बनाने वाली फोर्ड फाउंडेशन का असली उद्देश्य कुछ और है ! फोर्ड फाउंडेशन को अमेरिकन ख़ुफ़िया एजेंसी CIA का रणनीतिक भागीदार माना जाता है ! 

फोर्ड फाउंडेशन के मुख्य काम है ___

1. CIA के इशारे पर विभिन्न देशो में चुनी हुई सरकार को अस्थिर करना !

2. विभिन्न देशो में सरकार के विरुद्ध कुछ विशेष राजनितिक आंदोलन को तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करना !

3. सरकार के विरुद्ध काम कर रही NGO को धन उपलब्ध कराना !
4. अमेरिकी हितो के लिए गुटबाज़ी करना !

5. CIA के इशारे पर लोकतांत्रिक सरकारों के विरुद्ध दुर्भावनापूर्ण आंदोलन खड़ा करना !

6. अमेरिका के लिए पूरे विश्व में राजनितिक स्तर पर स्लीपर सेल तैयार करना !

भारत में अन्ना हज़ारे के आंदोलन को फोर्ड फाउंडेशन का समर्थन था व अरविन्द केजरीवाल की NGO "परिवर्तन" को फोर्ड फाउंडेशन से भारी मात्रा में अनुदान प्राप्त हुए ! 

फोर्ड फाउंडेशन बिना किसी स्वार्थ के किसी को एक पैसा नहीं देता फिर अरविन्द केजरीवाल की NGO को अनुदान किस आधार पर दिया गया? 

क्या अरविन्द केजरीवाल CIA या फोर्ड फाउंडेशन की राजनितिक कठपुतली है? 

जब इसी प्रकार के कयास भारत में लगाये जाने लगे तो फोर्ड फाउंडेशन ने अरविन्द केजरीवाल की NGO को अनुदान देने का विवरण ही अपनी आधिकारिक वेबसाइट से हटा दिया !

फोर्ड फाउंडेशन द्वारा भारत में रचे गए कुछ षडयन्त्रों का विवरण ____
1. भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी IB (Intelligence Bureau) की रिपोर्ट के अनुसार फोर्ड फाउंडेशन भारत में सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने के लिए निरंतर कार्यरत है !

2. IB (Intelligence Bureau) की रिपोर्ट के अनुसार फोर्ड फाउंडेशन भारत के अंदरुनी मामलो में और न्यायिक व्यवस्था में अवांछित घुसपैठ कर चुका है !

3. IB (Intelligence Bureau) की रिपोर्ट के अनुसार फोर्ड फाउंडेशन ने भारतीय सेना के विरुद्ध साज़िश रची और सेना की छवि को धूमिल करने के उद्देश्य से लगातार काम किया !

4. IB (Intelligence Bureau) की रिपोर्ट के अनुसार फोर्ड फाउंडेशन ने गुजरात की मोदी सरकार को अस्थिर करने व नरेंदर मोदी के विरुद्ध दुष्प्रचार करने व घृणास्प्रद अभियान चलाने के लिए तीस्ता सीतलवाड की NGO को लगभग 10 लाख अमेरिकी डॉलर का भारी भरकम अनुदान दिया !

5. गुजरात सरकार की विवेचना के अनुसार फोर्ड फाउंडेशन ने तीस्ता सीतलवाड को केवल मुस्लिम हितो की पैरवाई के लिए यह कहकर उकसाया की इससे सांप्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा मिलेगा !

6. फाउंडेशन ने अपने प्रभाव का प्रयोग कर पाकिस्तानी मानवाधिकार संगठन की भारत यात्रा करवाकर अपनी सीमाओ का उल्लंघन किया।

7. IB (Intelligence Bureau) की रिपोर्ट के अनुसार फोर्ड फाउंडेशन ने भारत की लगभग सभी बड़ी और महत्त्वकांशी परियोजनाओं में बाधा डालने की पुरजोर कोशिश की इसके लिए सैकड़ो NGO का मकड़जाल बुना गया और उनको भारी अनुदान देकर कभी पर्यावरण सुरक्षा के नाम पर तो कभी अन्य काल्पनिक भय दिखाकर परियोजनाओं का विरोध करवाया गया धरने प्रदर्शन करवाये गए !

8. जिन परियोजनाओं का विरोध किया गया उनमे बिजली उत्पादन परियोजना और खनन उद्योग से जुडी परियोजनाएं शामिल थी ! इस विरोध का अंतिम और एक मात्र उद्देश्य भारत की विकास की गति में अवरोध उत्त्पन्न करना था !

यह तो केवल झांकी मात्र है ! 

IB की यह रिपोर्ट केवल पिछले 10 सालो में फोर्ड फाउंडेशन द्वारा किये गए कुकर्मो का लेखा जोखा है ! उस से पहले फोर्ड फाउंडेशन ने क्या क्या किया होगा उसकी जानकारी अभी सार्वजानिक नहीं की गयी है ! 

चीन सीमा और कश्मीर जैसे घाव देने वाले नेहरू और कांग्रेस की यह एक और ऐतिहासिक विफलता है की एक विदेशी NGO और ख़ुफ़िया एजेंसी ने देश में जमकर कोहराम मचाया इनको भनक तक नहीं लगी अथवा ये भी हो सकता है की इनको सबकुछ पता हो पर इनके विरुद्ध कार्यवाही ही न की गयी हो ! सच भी है ___ जिस पार्टी खून में ही सुभाष चन्द्र बॉस जैसे पूजनीय देशभक्तो की जासूसी करने का कीड़ा हो उनको इस बात से क्या फर्क पड़ता है कोई उनकी जासूसी कर रहा है !

आम आदमी पार्टी के जन्म के समय इसे फोर्ड फाउंडेशन की भारतीय शाखा कहा गया था और अरविन्द केजरीवाल को फोर्ड फाउंडेशन की भारतीय शाखा का प्रभारी ! 

अब IB की रिपोर्ट के आने पर स्पष्ट रूप से समझ आ रहा है की आम आदमी पार्टी का जन्म ही शायद लोकसभा चुनाओ में मोदी की संभावित जीत को रोकना था ! लेकिन वो कामयाब नहीं हो पाये।

आम आदमी पार्टी, अन्ना हज़ारे, अरविन्द केजरीवाल, तीस्ता सीतलवाड, मेधा पाटेकर जैसे छदम क्रांतिजनक और समाजसेवियों के अलावा भी कुकुरमुत्ते की तरह देश में फ़ैल चुकी करोडो NGO का मकड़जाल सब एक सुनियोजित षड्यंत्र का हिस्सा है जो केवल राजनितिक विरोधी ही नहीं राष्ट्र विरोधी भी है !

एक मात्र अच्छी खबर यह है की गुजरात सरकार की अनुशंसा और IB की रिपोर्ट को आधार मानकर गृह मंत्रालय ने फोर्ड फाउंडेशन के विरुद्ध जांच के आदेश दे दिए है ! गृहमंत्री राजनाथ सिंह जी को नमन !

केवल जन जागरण ही क्रांति ला सकता है और षडयंत्रो को विफल कर सकता है !

Thursday, November 19, 2015

ISIL is Nostradamus's anti-christ, WW3 and Nostradamus predictions for 2015

वर्ष 2015 में एंटीक्रिस्ट का जन्म होगा जो ईसाईयों और मानवता का घोर विरोधी होगा और पूरी दुनिया को अपने कदमों में झुकाने के लिए तत्पर होगा। एंटीक्रिस्ट जल्दी ही एक या अनेक देशों पर कब्जा कर वहां की जमीन खून से लाल कर देगा। इसकी क्रूरता हिटलर को भी पीछे छोड़ देगी। यदि नास्त्रेदमस की भविष्यवाणियों पर काम करने वाले विशेषज्ञों की राय मानी जाए तो यह यह एंटीक्रिस्ट धार्मिक कट्टरपंथ के रूप में आईएसआईएस के रूप में जन्म ले चुका है। यह आतंकी संगठन किसी धर्म को नहीं मानता वरन स्वयं के खलीफा होने का दावा करता है। धर्म के नाम पर आईएस के सदस्यों ने अरब जगत में तबाही मचा दी है।

वैज्ञानिक ढूंढ लेंगे बड़ी बीमारियों का इलाज

नास्त्रेदमस के अनुसार वर्ष 2015 वैज्ञानिकों को बड़ी बीमारियों के इलाज में सफलता मिलेगी। उल्लेखनीय है कि इस वर्ष वैज्ञानिकों ने एक नया शक्तिशाली एंटीबॉयोटिक टिक्सोबेक्टिन ढूंढा है। इससे पहले आखिरी एंटीबॉयोटिक आज से 25 वर्ष पहले बनाया गया था।
इस वर्ष तीसरे विश्वयुद्ध की भूमिका बननी शुरू हो जाएगी। मिडिल ईस्ट दुनिया की जंग का मैदान बन जाएगा जहां दुनिया भर की ताकतें अपनी शक्ति का प्रदर्शन करेंगी। यहां विश्व की कट्टर विरोधी ताकतें यथा अमरीका और रूस भी मिलकर एक हो जाएंगे और दुनिया में शांति लाने के लिए आतंकवाद के खिलाफ खड़े हो जाएंगे।..

 आगे पढिए ज्वालामुखी फटने से मचेगी तबाही.

माउंट विसुवियस पर स्थित ज्वालामुखी फटेगा और अपने आस-पास की सभी जगह को बरबाद कर देगा। यह घटना वर्ष 2015 के अंत में तथा वर्ष 2016 के शुरू में होने की संभावना है।..

आगे जानिए, यूरोप पर मंडराएगा संकट

यूरोप आर्थिक संकट में घिर जाएगा। फ्रांस, जर्मनी सहित कई बड़े यूरोपियन राष्ट्रों की अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में आ जाएगी। हालांकि आम जनता की समृदि्ध बढ़ेगी परन्तु बड़े राष्ट्रों की समस्याएं भी उसी अनुपात में बढ़ जाएंगी। बेरोजगारी, मुद्रास्फीति और आर्थिक मंदी का भयावह दौर शुरू होगा।.
 
आगे पढिए अमरीका में मचेगी तबाही -

वर्ष 2015 अमरीका के लिए अति महत्वपूर्ण होगा। इस वर्ष अमरीका को न केवल विश्व की उभरती शक्तियों यथा चीन, रूस और ईरान से चुनौती मिलेगी वरन प्राकृतिक संकटों से भी जूझना पड़ेगा। नास्त्रेदमस के अनुसार अमरीका को इस वर्ष भयावह भूकंप का सामना करना पड़ेगा। इस भूकंप के फलस्वरूप अमरीका का एक हिस्सा पूरी तरह तबाह हो जाएगा। -

 
Patrika.com

Wednesday, November 18, 2015

Gugga Ji Chauhan- History of great Rajput Saint

गोगा जी/गुग्गा जी चौहान (GOGA JI /GUGGA JI CHAUHAN ,STORY OF A GREAT RAJPUT SAINT)
--------जय जुझार वीर गोगा जी चौहान (जाहरवीर)जी की,जय गुरु गोरखनाथ जी की----------
चौहान वंश में सम्राट पृथ्वीराज चौहान के बाद गोगाजी वीर और ख्याति प्राप्त राजा थे। गोगाजी को लोकमान्यताओं व लोककथाओं के अनुसार साँपों के देवता के रूप में भी पूजा जाता है।लोग
उन्हें गोगाजी चौहान, गुग्गा, जाहर वीर व जाहर पीर के नामों से पुकारते हैं।यह गुरु गोरक्षनाथ के प्रमुख शिष्यों में से एक थे। राजस्थान के छह सिद्धों में गोगाजी को समय की दृष्टि से प्रथम माना गया है।आज देश भर में उनकी बहुत अधिक मान्यता है,लगभग हर प्रदेश में उनकी माढ़ी बनी हुई है इनके भक्त सभी जातियों और धर्मो में मिलते हैं,
जब महमूद गजनवी ने सोमनाथ मंदिर पर हमला किया था तब पश्चिमी राजस्थान में गोगा जी ने ही गजनी का रास्ता रोका था.घमासान युद्ध हुआ.गोगा ने अपने सभी पुत्रों, भतीजों, भांजों व अनेक रिश्तेदारों सहित जन्म भूमि और धर्म की रक्षा के लिए बलिदान दे दिया.जिस स्थान पर उनका शरीर गिरा था उसे गोगामेडी कहते हैं.यह स्थान हनुमानगढ़ जिले की नोहर तहसील में है. इसके पास में ही गोरखटीला है.
इनके भक्तों की संख्या करोडो में है,सभी उन्हें मात्र सिद्ध और चमत्कारी पुरुष के रूप में जानते हैं किन्तु उनके वास्तविक इतिहास से बहुत कम लोग परिचित हैं,बागड़ राज्य का स्वामी होने के कारण इन्हें बागड़वाला भी कहा जाता है।
विद्वानों व इतिहासकारों दशरथ शर्मा,देवी सिंह मुन्डावा जैसे इतिहासकारों ने उनके जीवन को शौर्य, धर्म, पराक्रम व उच्च जीवन आदर्शों का प्रतीक माना है। इतिहासकारों के अनुसार गोगादेव अपने बेटों सहित महमूद गजनबी के आक्रमण के समय उससे युद्ध करते हुए शहीद हो गए थे।
आज हम इनके जीवन की ऐतिहासिक घटनाओं पर प्रकाश डालेंगे.......
====गुरु गोरखनाथ जी के आशीर्वाद से जुझार वीर गोगा जी चौहान जी का जन्म =====
राजस्थान के जिला चूरू के ददरेबा ठिकाने (बागड़ राज्य) मे चौहान वंश की चाहिल अथवा साम्भर शाखा में उमर सिंह जी का शाशन था जिनके दो पुत्र हुए बडे पुत्र का नाम जेवरसिंह व छोटे पुत्र का नाम घेबरसिंह था इन दोनो का विवाह सरसा पट्टन की राजकुमारी बाछल और काछल से हुआ पर बहुत दिनो तक दोनो के कोई संतान नही हुई तब दोनो राजकुमारीयो ने गोरखनाथ जी की पूजा करनी प्रारंंभ की, जब आशिर्वाद प्राप्ति का समय आया तो काछल पहले चली जाती है जिनको गोरखनाथ जी आशीर्वाद देते है जिनसे दो पुत्र अर्जुन और सुर्जन हुए फिर बाद मे बाछल गोरखनाथ जी के पास आशीर्वाद लेने जाती है फिर उनको ज्ञात हुआ के आशीर्वाद तो काछल को प्राप्त हुआ पर फिर भी वो काछल को क्षमा करके बाछल को एक दिव्यपुत्र का आशीर्वाद देते है जिससे उनको संवत १००३ मे भादो सुदी नवमी को जाहर वीर गोगा जी के रूप मे पुत्र प्राप्त हुआ !
जिस समय गोगाजी का जन्म हुआ उसी समय एक ब्राह्मण के घर नरसिंह पांडे का जन्म हुआ।ठीक उसी समय एक हरिजन के घर भज्जू कोतवाल का जन्म हुआ और एक भंगी के घर रत्ना जी भंगी का जन्म हुआ। यह सभी गुरु गोरखनाथ जी के शिष्य हुए।
उसी समय उनकी बंध्या घोडी ने भी एक नीले घोड़े को जन्म दिया।ये सब गोगा जी के आजीवन के साथी हुए।गोगा जी के साथ साथ इन सबकी भी बहुत मान्यता है।
महान इतिहासकार देवीसिंह मंडावा लिखते हैं कि "चौहानो की साम्भर शाखा में एक घंघ ने चुरू से चार कोस पूर्व में घांघू बसाकर अपना राज्यस्थापित किया. उसके पांच पुत्र और एक पुत्री थी. उसने अपने बड़े पुत्र हर्ष को न बनाकर दूसरी रानी के बड़े पुत्र कन्हो को उत्तराधिकारी बनाया. हर्ष और जीण ने सीकर के दक्षिण में पहाड़ों पर तपस्या की.जीण बड़ी प्रसिद्ध हुई और देवत्व प्राप्त किया. कन्हो की तीन पीढ़ी बाद जीवराज (जेवर) राणा हुए. उनकी पत्नी बाछल से गोगादेव पैदा हुए"........
====गोगा जी का विवाह और चचेरे भाईयो का वीरगति पाना====
कोलमंड की राजकुमारी कंसलमदे सिरियल को सांप काट लिया था और वह मरणास्न हो गई थी पर गोगा जी ने मंत्र उच्चारण से उस सर्प को बुलाकर जहर चुसवाया जिससे सिरियल पुऩ: जीवित हो गई , इसी कारण इन्हें उत्तर प्रदेश में इन्हें जहरपीर या जाहरवीर तथा मुसलमान इन्हें गोगा पीर कहते हैं. सिरियल का विवाह गोगा जी के साथ हुआ!
मूसलमान आक्रमणकारीयो से युद्ध करने के बाद जेबर सिंह ने वीरगति प्राप्त की फिर घेबर सिंह जी ने भी मुगलो के साथ युद्ध करके वीरगती प्राप्त की उसके बाद गोगा जी ददरेबा के शासक बने और ये महमूद गजनवी के समकालीन हुए और गोगा जी ने अरब से आए आक्रमणकारीयो को ग्यारह बार परास्त किया !
गोगा जी के सम्बंधी नाहरसिंह ने उनके चचेरे भाई अर्जुन सुर्जन को गोगा जी के खिलाफ भडकाया के तुम दोनो बडे हो, गोगा कैसे राजा बन सकता है इस बात से युद्ध छिड गया जिसमे गोगा जी ने दोनो का सिर काटकर माता बाछल को भेट कर दिया जिससे नाराज होकर माता ने उनको राज्य से निकाल दिया तब वो गोरखनाथ जी के आश्रम मे चले जाते है और वहां योग और सिद्धी से अपनी पत्नी के पास चले जाते थे बाद मे ये बात बाछल माता को पता चलती है वो उनको फिर पुन: ऱाज्य आसीन करती है!
===गोगा जी द्वारा गौरक्षा,राज्य विस्तार,विधर्मियों से संघर्ष और अध्यात्मिक साधना ===
गोगा जी ने अरब आक्रमणकारीयो से 11 बार युद्ध करके उनको परास्त किया और अफगानिस्तान के बादशाह द्वारा लूटी हुई हजारो गायो को बचाया.अफगानिस्तान का शाह रेगिस्तान से हजारो गायो को लूटकर ले जा रहा था उसी समय गोगा जी ने उसपर आक्रमण करके हजारो गायो को छुडा लिया,इससे डरकर अरब के लूटेरो ने गाय धन को लूटना बंद कर दिया !
महमूद गजनवी ने सन १००० से १०२६ ईस्वी तक भारत पर १७ बार चढाई कर के लूट खसोट और अत्याचार किये उस समय गोगा जी ही थे जिन्होने महमूद गजनवी को कई बार मात दी थी जिससे गोगा जी का राज्य और शक्तिशाली हो गया और उसका नाम ददरेबा सेे बदलकर गोगागढ रख दिया!राज्य सतलुज सें हांसी (हरियाणा) तक फ़ैल गया था.रणकपुर शिलालेख में गोगाजी को एक लोकप्रिय वीर माना है.यह शिलालेख वि.1496 (1439 ई.) का है.
गोगा जी की आध्यात्मिक साधना भी साथ साथ चलती थी वो सर्पदंश का इलाज कर देते थे तथा जो सांप काटता था उसको बुलाकर उसको जहर चुसने पर बाध्य कर देते थे -!जल्दी ही उनकी ख्यांति दूर दूर तक फ़ैल गयी....
===महमूद गजनवी से संघर्ष और गोगा जी को वीरगति प्राप्त होना===
राजा हर्षवर्धन के समय में ही हिन्दुस्तान के पश्चिमी भूभाग बलूचिस्तान के कोने में एक बादल मंडरा ने लगा था। ये संकेत था हिन्दुस्तान पर आने वाले उस मजहबी बवण्डर का जिसका इंसानियत से कोई वास्ता ही नहीं था।लूटमार दरिद्रता वेश्यावृत्ति की कुरीतियों से जकङे तुर्क कबीलो ने इस मजहब का नकाब पहनकर हिन्दुस्तान मे जो हैवानियत का खेल खेला,उसे युगों युगों तक भुलाया नहीं जा सकता । एक हाथ में इस्लाम का झंडा व दुसरे हाथ में तलवार से बेगुनाह इन्सानो के खुन की नदियाँ बहाता हिन्दुस्तान आया वो था गजनी का सुल्तान महमूद गजनवी.वो हर साल हिन्दुस्तान आता था आैर लूटमार कर गजनी भाग जाता था!
पहली बार जब महमूद हिन्दुस्तान में लूट के इरादे से आया तो उसका मुकाबला तंवर वंशी जंजुआ राजपूत राजा जयपाल शाही से हुआ। धोखाधड़ी से उसने जयपाल को हराया था.राजा जयपाल शाही ने अपनी सेना के साथ अन्तिम साँस तक मुकाबला किया और वीरगती प्राप्त की.
महमूद गजनवी ने सन 1024 ईस्वी में गुजरात में सोमनाथ के मंदिर को लूटकर रक्त की नदियाँ बहा दी और मंदिर को भी तोड़ दिया,जब यह समाचार गोगा जी को मिला तो बूढे गोगा बप्पा का शरीर क्रोध से थर्राने लगा और उनका खून खोलने लगा...
महमूद सोमनाथ पर आक्रमण कर उस अद्वितीय धरोहर को नष्ट करने में सफल रहा लेकिन उसको इतनी घबराहट थी कि वापसी के समय बहुत तेज गति से चलकर अनुमानित समय व रणयोजना से पूर्व गोगा के राज्य के दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र मे प्रवेश कर गया।
गोगा जी ने महमूद की फौज से लोहा लेने का निश्चय किया।उन्होंने अपने पोते को (जिनका नाम सामंत चौहान था) जो बहुत ही चतुर था उन सभी राजाओं के पास सहायता हेतु भेजा जिनके राज्यों के रास्ते लूटमार करते हुए महमूद को सोमनाथ मन्दिर लूटने जाना था। सामंत सहायता के लिए सभी राजाओ से मिला लेकिन हर जगह उसे निराशा ही हाथ लगी।महमूद की फौज गोगामढी से गुजर रही थी। मदद की कोई आशा नहीं देखकर गोगा बप्पा ने अपने चौहान भाईयो के साथ केसरिया बाना पहनकर 900 सिपाहियों के साथ महमूद की फौज का पीछा किया और रास्ता रोका .भयंकर युद्ध हुआ महमूद के लाखों सिपाहियों से लोहा लेते हुए और उनका संहार करते हुए अपनी छोटी सी सेना के साथ गोगा बप्पा भी वीरगती को प्राप्त हो गये।
ये समाचार जब सामंत को मिला तो महमूद की फौज का खात्मा करने की योजना बनाई।उसने ऊटनी पर सवार होकर महमूद की फौज का पीछा किया और मुहम्मद की फौज में रास्ता बताने का बहाना बनाकर शामिल हो गया .भीषण तेज गर्मी और आँधियों के कारण महमूद और उसकी फौज सोमनाथ का रास्ता भटक गयी .
तब सामंत ने कहा कि वो सोमनाथ मन्दिर का दूसरा एक और रास्ता जानता है जो कम समय मे ही सोमनाथ मन्दिर पहुंचा जा सकता है.महमूद के पास कोई चारा न था। उसने पैदल फौज को सामंत के साथ जाने का हुक्म दिया.फिर क्या था सामंत चौहान अपनी योजना अनुसार फौज को गुमराह करते हुए जैसलमेर के रेतीले टीलों में ले गया जहां कोसो की दूरी तय करने पर पानी नसीब न हो सके.. अवसर मिला और सावंत चौहान ने अपना खांडा निकाल ली और हर हर महादेव का नारा बुलंद करते हुए शत्रुओ पर भूखे शेर की तरह टूट पड़ा।।
तभी आँधी ने भी विकराल रूप धारण कर लिया रेतीले टीलों में पहले पीले साँप पाये जाते थे जिन्होंने शत्रुओ का डस डस कर वध कर दिया। । जो बचे वे रेतीले तूफान भीषण गर्मी में जलकर स्वाहा हो गये.इस प्रकार सावंत चौहान महमूद की आधी फौज के साथ लङता हुआ रेगिस्तान में धरती माता की गोद में समा गया।।
====गोगा जी के वंशज और उनके बारे में मिथ्या प्रचार का खंडन=====
ये प्रचार बिल्कुल गलत है कि गोगा जी कलमा पढकर मुसलमान बन गए थे बल्की वो तो गायो को बचाते हुए और तुर्क मुस्लिम हमलावरों से जूझते हुए खुद वीरगति को प्राप्त हो गए थे !
गोगाजी के कोई पुत्र जीवित न होने से उसके भाई बैरसी या उसके पुत्र उदयराज ददरेवा के राणा बने.. गोगाजी के बाद बैरसी , उदयराज ,जसकरण , केसोराई, विजयराज, मदनसी, पृथ्वीराज, लालचंद, अजयचंद, गोपाल, जैतसी, ददरेवा की गद्दी पर बैठे. जैतसी का शिलालेख प्राप्त हुआ है जो वि.स. 1270 (1213 ई.) का है. इसे वस्तुत: 1273 वि.स. का होना बताया है.
जैतसी के बाद पुनपाल, रूप, रावन, तिहुंपाल, मोटेराव, यह वंशक्रम कायम खान रासोकार ने माना है. जैतसी के शिलालेख से एक निश्चित तिथि ज्ञात होती है. जैतसी गोपाल का पुत्र था जिसने ददरेवा में एक कुआ बनाया. गोगाजी महमूद गजनवी से 1024 में लड़ते हुए मारे गए थे. गोगाजी से जैतसी तक का समय 9 राणाओं का प्राय: 192 वर्ष आता है जो औसत 20 वर्ष से कुछ अधिक है. जैतसी के आगे के राणाओं का इसी औसत से मोटेराव चौहान का समय प्राय: 1315 ई. होता है जो फिरोज तुग़लक के काल के नजदीक है. इससे स्पस्ट होता है कि मोटा राव का पुत्र कर्म सी उर्फ़ कायम खां फीरोज तुग़लक (1309-1388) के समय में मुसलमान बना ......
सत्य ये है कि उनके तेहरवे वंशधर कर्मसी(कर्मचन्द) जो उस समय बालक था को चौहानो से लड़ाई के बाद जंगल मे से दिल्ली का फिरोजशाह तुगलक(१३५१-१३८८) उठाकर ले गया था ! फिरोजशाह ने उसे जबरदस्ती मुसलमान बनाकर अपनी पुत्री उससे ब्याह दी और उसका नाम कायंम खान रख दिया और बाद मे ये ही कायंम खान बहलोल लोदी के शासनकाल मे हिसार का नवाब बना था इसी कायम खां के वंशज कायम खानी चौहान (मुसलमान) कहलाए और ये अभी भी गौगा जी की पूजा करते है!
कायम खां यद्यपि धर्म परिवर्तन कर मुसलमान हो गया था पर उसके हिन्दू संस्कार प्रबल थे. उसका संपर्क भी अपने जन्म स्थान के आसपास की शासक जातियों से बना रहा था.
श्री ईश्वर सिंह मंडाढ कृत राजपूत वंशावली के अनुसार गोगा जी के वंशज मोटा राव के एक पुत्र जगमाल हिन्दू रह गए थे.जिनके वंशज शिवदयाल सिंह और पहाड़ सिंह जीवित हैं.
===चौहान वंश की चाहिल शाखा का संक्षिप्त विवरण===
चौहान वंश मे अरिमुनि, मुनि, मानिक व जैंपाल चार भाई हुए ! अरिमुनि के वंशज राठ के चौहान हुए ! मानक (माणिक्य) के वंशज शाकम्भरी (सांभर) रहे ! मुनि के वंशजो मे कान्ह हुआ ! कान्ह के पुत्र अजरा के वंशज चाहिल से चाहिलो की उतपत्ति हुई! (क्यामखां रासा छन्द सं. १०८) रिणी (वर्तमान तारानगर) के आसपास के क्षेत्रो मे १२ वी १३ वी शताब्दी मे चाहिल शासन करते थे और यह क्षेत्र चाहिलवाडा कहलाता था ! आजकल चाहिल प्राय: मुसलमान है! गूगामेढी (हनुमानगढ़) के पूजारे चाहिल मुसलमान है!
कायमखानी जहाँ गोगा जी के वंश को चाहिल शाखा से बताते हैं वहीँ देवी सिंह मुंडावा जी के अनुसार ददेरवा के चौहान साम्भर शाखा से मानते थे....
====गोगा जी की मान्यता====
गोगा जी चौहान को उत्तर भारत मे लोक देवता के रूप मे पूजा जाता है,गोगामेढी पर हर साल भाद्र पद कृष्ण नवमी को मेला लगता है जहां दूर दूर से हिन्दू और मुसलमान पूजा करने आते है!आज भी सर्पदंश से मुक्ति के लिए गोगाजी की पूजा की जाती है. गोगाजी के प्रतीक के रूप में पत्थर या लकडी पर सर्प मूर्ती उत्कीर्ण की जाती है. लोक धारणा है कि सर्प दंश से प्रभावित व्यक्ति को यदि गोगाजी की मेडी तक लाया जाये तो वह व्यक्ति सर्प विष से मुक्त हो जाता है.
===भिवानी में कलिंगा स्थित गोगा जी की महाडी===
गोगादेव की जन्मभूमि पर आज भी उनके घोड़े का अस्तबल है और सैकड़ों वर्ष बीत गए, लेकिन उनके घोड़े की रकाब अभी भी वहीं पर विद्यमान है। उक्त जन्म स्थान पर गुरु गोरक्षनाथ का आश्रम भी है और वहीं गोगादेव की घोड़े पर सवार मूर्ति है.हनुमानगढ़ जिले के नोहर उपखंड में स्थित गोगाजी के पावन धाम गोगामेड़ी स्थित गोगाजी का समाधि स्थल जन्म स्थान से लगभग 80 किमी की दूरी पर स्थित है.
गोगामेडी में गोगाजी का मंदिर एक ऊंचे टीले पर मस्जिदनुमा बना हुआ है, इसकी मीनारें मुस्लिम स्थापत्य कला का बोध कराती हैं। कहा जाता है कि फिरोजशाह तुगलक सिंध प्रदेश को विजयी करने जाते समय गोगामेडी में ठहरा था। रात के समय बादशाह तुगलक व उसकी सेना ने एक चमत्कारी दृश्य देखा कि मशालें लिए घोड़ों पर सेना आ रही है।तुगलक की सेना में हाहाकार मच गया। तुगलक की सेना के साथ आए धार्मिक विद्वानों ने बताया कि यहां कोई महान सिद्ध है जो प्रकट होना चाहता है। फिरोज तुगलक ने लड़ाई के बाद आते समय गोगामेडी में मस्जिदनुमा मंदिर का निर्माण करवाया।
हरियाणा पंजाब उत्तर प्रदेश राजस्थान में हजारो गाँव में गोगा जी की माडी बनी हुई हैं और उनकी हर जगह हर धर्म और जाति के लोगो द्वारा पूजा की जाती है,उनकी ध्वजा नेजा कहलाती है,गोगा जाहरवीर जी की छड़ी का बहुत महत्त्व होता है और जो साधक छड़ी की साधना नहीं करता उसकी साधना अधूरी ही मानी जाती है क्योंकि मान्यता के अनुसार जाहरवीर जी के वीर छड़ी में निवास करते है।
गौरक्षक,धर्मरक्षक,सिद्ध पुरुष गोगा जी को कोटि कोटि नमन----------
जय जुझार वीर गोगा जी चौहान (जाहरवीर)जी की,जय गुरु गोरखनाथ जी की
सन्दर्भ-------
1-मुह्नौत नैनसी की ख्यांत पृष्ठ संख्या 194-195
2-ठाकुर त्रिलोक सिंह धाकरे कृत राजपूतों की वंशावली एवं इतिहास महागाथा पृष्ठ संख्या 630-631
3-Early chauhan dynasty by Dashrath sharma page no-365-366
4-ईश्वर सिंह मंडाढ कृत राजपूत वंशावली पृष्ठ संख्या 198-199
5-देवी सिंह मुन्डावा कृत सम्राट पृथ्वीराज चौहान पृष्ठ संख्या 134
6-रघुनाथ सिंह कालीपहाड़ी कृत क्षत्रिय राजवंश पृष्ठ संख्या 203
7-कायमखान रासो पृष्ठ संख्या 10
8-श्री सार्वजनिक पुस्तकालय तारानगर' की स्मारिका 2013-14: 'अर्चना' में प्रकाशित मातुसिंह राठोड़ के लेख 'चमत्कारिक पर्यटन स्थल ददरेवा' (पृ. 21-25)
9-कर्नल जेम्स टॉड
10- गोविंद अग्रवाल: चूरू मण्डल का शोधपूर्ण इतिहास, पृ. 51
11-गोरी शंकर हीराचंद ओझा: बीकानेर राज्य का इरिहास भाग प्रथम, पृ. 64
12- A glossary of the Tribes and Castes of the Punjab and North-West Frontier Province By H.A. Rose Vol II/C, p.210

तुर्क-मुगल-अफगान हमलावरो को खदेड़ने वाले गुजरात के वीर राजपूत -Rajput -mughal-turk wars

तुर्क-मुगल-अफगान हमलावरो को खदेड़ने वाले गुजरात के वीर राजपूत - पार्ट 2 🔸
 ठाकोर रणमलजी जाडेजा (खीरसरा) - जूनागढ़ के नवाब ने खीरसरा पर दो बार हमला किया लेकिन रणमलजी ने उसे हरा दिया, युद्ध की जीत की याद मे जूनागढ की दो तोपे खीरसरा के गढ़ मे मौजूद हैँ ||
 राणा वाघोजी झाला (कुवा) - मुस्लिम सुल्तान के खिलाफ बगावत करी, सुल्तान ने खलिल खाँ को भेजा लेकिन वाघोजी ने उसे मार भगाया, तब सुल्तान खुद बडी सेना लेकर आया, वाघोजी रण मे वीरगति को प्राप्त हुए और उनकी रानीयां सती हुई ||
 राणा श्री विकमातजी || जेठवा (छाया) - खीमोजी के पुत्र विकमातजी द्वितीय ने पोरबंदर को मुगलो से जीत लिया। वहां पर गढ का निर्माण कराया। तब से आज तक पोरबंदर जेठवाओ की गद्दी रही है ||
 राव रणमल राठोर (ईडर) - जफर खाँ ने ईडर को जीतने के लिये हमला किया लेकिन राव रणमल ने उसे हरा दिया. श्रीधर व्यासने राव रणमल के युद्ध का वर्णन 'रणमल छंद' मे किया है ||
 तेजमलजी, सारंगजी, वेजरोजी सोलंकी (कालरी) - सुल्तान अहमदशाह ने कालरी पर आक्रमण किया, काफी दिनो तक घेराबंदी चली, खाद्यसामग्री खत्म होने पर सोलंकीओ ने शाका किया, सुल्तान की सेना के मोघल अली खान समेत 42 बडे सरदार, 1300 सैनिक और 17 हाथी मारे गये। तेजमलजी, सारंगजी और वेजरोजी वीरगति को प्राप्त हुए ||
 ठाकुर सरतानजी वाला (ढांक) - तातरखां घोरी ने ढांक पर हमला किया, सरतानजी ने सामना किया पर संख्या कम होने की वजह से समाधान कर ढांक तातर खां को सोंप ढांक के पीछे पर्वतो मे चले गये, बाद मे चारण आई नागबाई के आशिर्वाद से अपने 500 साथियो के साथ ढांक पर हमला किया और तातर खां और उसकी सेना को भगा दिया, मुस्लिमो की सेना के नगाडे आज भी उस युद्ध की याद दिलाते ढांक दरबारगढ मे मोजूद है ||
 ठाकोर वखतसिंहजी गोहिल (भावनगर) - भावनगर के पास ही तलाजा पर नूरूद्दीन का अधिकार था, ठाकोर वखतसिंहजी ने तलाजा पर आक्रमण किया। नूरुद्दीन की सेना के पास बंदूके थी लेकिन राजपूतो की तलवार के सामने टिक ना सकी। वखतसिंहजी ने खुद अपने हाथो नुरुदीन को मार तलाजा पर कब्जा किया ||
 रणमलजी जाडेजा (राजकोट) - राजकोट ठाकोर महेरामनजी को मार कर मासूमखान ने राजकोट को 'मासूमाबाद' बनाया. महेरामनजी के बडे पुत्र रणमलजी और उनके 6 भाईओने 12 वर्षो बाद मासूम खान को मार राजकोट और सरधार जीत लिया, अपने 6 भाईओ को 6-6 गांव की जागीर सोंप खुद राजकोट गद्दी पर बैठे ||
 जेसाजी और वेजाजी सरवैया (अमरेली) - जुनागढ के बादशाह ने जब इनकी जागीरे हडप ली तब बागी बनकर ये बादशाह के गांव और खजाने को लूटते रहे लेकिन कभी गरीब प्रजा को परेशान नही किया | बगावत से थककर बादशाह ने इनसे समझौता कर लिया और जागीर वापिस दे दी ||
10  रा' मांडलिक (जूनागढ) - महमूद बेगडा ने जुनागढ पर आक्रमण कर जीतना चाहा पर कई महिनो तक उपरकोट को जीत नही सका। इससे चिढ़कर जुनागढ के गांवो को लूटने लगा और प्रजा का कत्लेआम करने लगा, तब रा' मांडलिक और उनकी राजपूती सेना ने शाका कर बेगडा की सेना पर हमला कर दिया। संख्या कम होने की वजह से रा' मांडलिक ईडर की ओर सहायता प्राप्त करने निकल गये, बेगडा ने वहा उनका पीछा किया, रा' मांडलिक और उनके साथी बहादुरी से लडते हुए वीरगति को प्राप्त हुए ||
11  कनकदास चौहान (चांपानेर) - गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर शाह ने चांपानेर पर हमला कर उस पर मुस्लिम सल्तनत स्थापित करने की सोची लेकिन चौहानो की तलवारो ने उसको ऐसा स्वाद चखाया की हार कर लौटते समय ही मुजफ्फर शाह की मृत्यु हो गई ||
12  विजयदास वाजा (सोमनाथ) - सुल्तान मुजफ्फरशाह ने सोमनाथ को लुंटने के लिये आक्रमण किया लेकिन विजयदास वाजा ने उसका सामना करते हुए उसे वापिस लौटने को मजबूर कर दिया, दो साल बाद सुल्तान बडी सेना लेकर आया, विजयदास ने बडी वीरता से उसका सामना कर वीरगति प्राप्त की ||
👆👆👆👆 ये तो सिर्फ गिने चुने नाम है, ऐसे वीरो के निशान आपको यहां हर कदम, हर गांव मिल जायेगे.

JADEJA RAJPUTS AND THE HISTORICAL BATTLE OF BHUCHAR MORI (भूचर-मोरी का ऐतिहासिक युद्ध सम्वत 1648)

जाडेजा राजपूतों की शौर्यगाथा का प्रतीक भूचर-मोरी का ऐतिहासिक युद्ध (सम्वंत 1648)---------------

राजपूत एक वीर स्वाभिमानी और बलिदानी कौम जिनकी वीरता के दुश्मन भी कायल थे, जिनके जीते जी दुश्मन राजपूत राज्यो की प्रजा को छु तक नही पाये अपने रक्त से मातृभूमि को लाल करने वाले जिनके सिर कटने पर भी धड़ लड़ लड़ कर झुंझार हो गए।
आज हम आपको एक ऐसे युद्ध के बारे में बताएँगे जहा क्षात्र-धर्म का पालन करते हुए एक शरणार्थी मुस्लिम को दिए हुए अपने वचन के कारण हजारो राजपुतो ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए | भूचर-मोरी का युद्ध सौराष्ट्र के इतिहास का सबसे बड़ा युद्ध माना जाता हे ,जहा पश्चिम के पादशाह का बिरुद मिलने वाले जामनगर के शासक और जाडेजा राजपुत राजवी जाम श्री सताजी से अपने से कई गुना अधिक बड़े और शक्तिशाली मुग़ल रियासत के सामने नहीं झुके | यह युद्ध इतना भयंकर था की इसे सौराष्ट्र का पानीपत भी कहा जाता है |इस युद्ध में दोनों पक्षों के एक लाख से ज्यादा सैनिक शहीद हुए.

युद्ध की पृष्ठभूमि-----

विक्रम सवंत १६२९ में दिल्ही के मुग़ल बादशाह जलालुदीन महमद अकबर ने गुजरात के आखिरी बादशाह मुज्जफर शाह तृतीय से गुजरात को जीत लिया | जिसके परिणाम स्वरुप मुजफ्फर शाह राजपिपला के जंगलो में जाकर कुछ समय के लिए छिप गया, फिर उसने  गुजरात के सौराष्ट्र में स्थित जामनगर के राजा जाम सताजी तथा जूनागढ़ के नवाब दौलत खान और कुंडला के काठी लोमान खुमान के पास जाकेर उनसे सहायता लेकर ३०,००० हजार घुड़सवार और २०,००० सैनिक लेकर अहमदाबाद में भारी लुटपाट मचाई और अहमदाबाद, सूरत और भरूच ये तीन शहर कब्जे कर लिए | उस समय अहमदाबाद का मुग़ल सूबेदार मिर्ज़ा अब्दुल रहीम खान (खानेखाना) था | पर वो मुज्जफर शाह के हमले और लूटपाट को रोक नहीं सका | जिसकी वजह से अकबर ने अपने भाई मिर्ज़ा अजीज कोका को गुजरात के सूबेदार के रूप में नियुक्त किया | सूबेदार के रूप में नियुक्त होने के साथ ही उसने मुजफ्फर शाह को कद कर लिया, पर सन १५८३ (वि.सं. १६३९ )को मुजफ्फर शाह मुग़ल केद से भाग छुटा और सौराष्ट्र की तरफ भाग गया | मुजफ्फर शाह ने सौराष्ट्र के कई राजाओ से सहायता की मांग की, पर किसी ने उसकी मदद नहीं की, 

आखिर में जामनगर के जाम सताजी ने उसको ये कह के आश्रय दिया की “ शरणागत की रक्षा करना क्षत्रिय का धर्मं है “ और उसके रहने के लिए बरडा डुंगर के क्षेत्र में व्यवस्था कर दी |



     
  इस बात की खबर अहमदाबाद के सूबेदार मिर्ज़ा अजीज कोका को मिलते ही उसने मुजफ्फर शाह को पकड़ने के लिए एक बड़ा लश्कर तैयार किया और विरमगाम के पास में पड़ाव डाला, नवरोज खान तथा सैयद कासिम को एक छोटा लश्कर देकर उसने मोरवी की और इन दोनों को मजफ्फर शाह की खोज करने के लिए भेजा | मुजफ्फर शाह जामनगर में हे इस बात की खबर मिलने पर नवरोज खान ने जाम श्री सताजी को पत्र लिखा कि----

“आप गद्दार मुजफ्फर शाह को अपने राज्य में से निकल दो “ परंतु अपने पास शरणागत के लिए आये हुए को संकट के समय त्याग देना राजपूत धर्मं के खिलाफ है” ये सोच कर जाम श्री सताजी ने नवरोज खान की इस बात को ठुकरा दिया | 

इस बात से गुस्से होकर नवरोज खान ने अपने लश्कर को जामनगर की और कुच करने का आदेश दिया | इस बात का पता चलते ही जाम साहिब ने बादशाह के लश्कर को अन्न-पानी की सामग्री उपलब्ध करानी रोक दी, और लश्कर की छावनियो पे हमला करना शुरु कर दिया तथा उनके हाथी, घोड़े व ऊंट को कब्जे में करके लश्कर को काफी नुकशान पहुँचाया |

सोरठी तवारीख में लिखा गया था की “ जाम शाहीब ने मुग़ल लश्कर को इतना नुकशान पहुँचाया और खाध्य सामग्री रोक दी थी की लश्करी छावनी में अनाज की कमी की वजह से उस समय में एक रूपये के भाव से एक शेर अनाज बिकने लगा था”

       इस बात की खबर मिर्ज़ा अजीज कोका (जो विरामगाम के पास अपना लश्करी पड़ाव डालके पड़ा था) को मिलते ही उसने भी अपने बड़े लश्कर के साथ जामनगर की और कुछ कर दी और नवरोज खान और सैयद कासिम के सैन्य के साथ जुड़ गया | जाम श्री सताजी ने अपने अस्त्र-शस्त्र और अन्न सामग्री तो जामनगर में ही रखी थी इसलिए अजीज कोका ने अपने लश्कर को जामनगर की और कुच किया | जाम साहिब को जब इस बात की खबर मिली की अजीज कोका अपने सैन्य के साथ जामनगर की तरफ आ रहा हे तब उन्होंने भी अपने सैन्य को मुग़ल लश्कर की दिशा में कुच करवाया |

जामनगर से ५० किमी के अंतर पर स्थित ध्रोल के पास भूचर-मोरी के मैदान में जाम साहिब के लश्कर और मुग़ल लश्कर का आमना-सामना हुआ | उस समय जाम श्री सताजी की मदद के लिए जूनागढ़ के नवाब दौलत खान और कुंडला के काठी लोमा खुमान भी अपने सैन्य के साथ पहुच गए थे.


युद्ध की घटनाएँ----

इस ध्रोल के पास स्थित भुचर-मोरी के मैदान में दोनों लश्करो की और से छोटे छोटे हमले हुए लेकिन इन सभी हमलो में जाम साहिब का लश्कर जीत जाता था | २-३ माह तक ऐसा चलता लेकिन हर हमले में जाम साहिब के लश्कर की ही जीत होती थी | अजीज कोका समझ गया था की उसका लश्कर यहाँ नहीं जीत पाएगा | जिसके कारण उसने जाम साहिब को समाधान करने के लिए पत्र भिजवाया | इस बात की खबर जूनागढ़ के नवाब दौलत खान और काठी लोमा खुमान को पता चलने पर उन्होंने सोचा की “ अगर जाम साहिब ने समाधान से मना कर दिया और लड़ाई हुई तो जाम श्री सताजी की ही जीत होगी और वो हमारे राज्य भी अपने कब्जे में ले लेंगे, इसलिए हमे बादशाह के मुग़ल लश्कर के साथ मिल जाना चाहिए” | उन्होंने सूबे अजीज कोका को गुप्तचर द्वारा खबर भिजवाई की “ आप वापस हमला करो, लड़ाई शुरु होते ही हम आपके लश्कर के साथ मिल जाएँगे और जाम शाहीब के लश्कर पे हमला बोल देंगे” | ये खानगी खबर दौलत खान को मिलते ही उसने समाधान से मन हटाकर जाम साहिब को दुसरे दिन युद्ध का कह भिजवाया |

दूसरी दिन सुबह होते ही जाम साहिब श्री सताजी अपने लश्कर के साथ मुग़ल लश्कर पर टूट पडे और भयंकर युद्ध हुआ उसके परिणाम स्वरुप मुग़ल सैन्य हारने की कगार पर आ गया | ये देखकर नवाब दौलत खान और काठी लोमा खुमान जो जाम साहिब के लश्कर हरोड़ में खड़े थे , वो अपने २४,००० सैनिक के साथ जाम साहिब श्री सताजी को छोडकर मुग़ल लश्कर में मिल गए | जिसके वजह से लड़ाई तीन प्रहर तक लम्बी चली , 

उस समय जेसा वजीर ने जाम श्री सताजी को कहा की “ धोखेबाजो ने हमसे धोखा किया हे, हम लोग जीवित हे तब तक युद्ध को चालू रखेंगे आप अपने परिवार, वंश और गद्दी को बचाय रखने के लिए जामनगर चले जाइए | जाम साहिब को जेसा वजीर की ये सलाह योग्य लगने पर वे हाथी से उतरकर घोड़े पर चढ़ गए और अपने अंगरक्षक के साथ जामनगर की और चले गए, इस तरफ जेसा वजीर और कुमार जसाजी ने मुग़ल लश्कर के साथ लड़ाई को चालू रखा |

दूसरी तरफ इस युद्ध से अनजान जाम साहिब के पाटवी कुंवर अजाजी की शादी हो रही थी इसलिए वे भी जामनगर में ही थे | उनको जब जाम श्री सताजी के जामनगर आने की खबर मिली और पता चला की युद्ध अभी भी चालू ही हे , वे अपने ५००  राजपुत जो जानैया(शादी में दुल्हे की जान में साथ में होने वाले लोग ) थे तथा नाग वजीर को साथ में लेकर भूचर मोरी के मैदान में आ पहोचे | गौर तलब देखने वाली बात ये हे की इस जगह से अतीत साधू की जमात जो हिंगलाज माता की यात्रा पे जा रहे थे वे लश्कर को देखकर जाम साहिब के लश्कर में मिल गए थे |

दुसरे दिन सुबह दोनों लश्करो के बीच युद्ध शुरु हो गया | मुग़ल शाही लश्कर की दाईनी हरावल के सेनापति  सैयद कासिम, नवरंग खान और गुजर खान थे | वही बाई हरावल के सेनापति मशहुर सरदार महमद रफ़ी था | हुमायूँ के बेटे मिर्ज़ा मरहम बिच की हरावल का सेनापति था और उसके आगे मिर्ज़ा अनवर और नवाब आजिम था |

जाम श्री साहिब सताजी के सैन्य के अग्र भाग का आधिपत्य जेसा वजीर और कुंवर अजाजी ने किया था | दाईनी हरावल में कुंवर जसाजी और महेरामणजी दुंगरानी थे,वही बाई हरावल में नागडा वजीर , दाह्यो लाड़क, भानजी दल थे | दोनों और से तोपों के गोले दागने के साथ ही युद्ध शुरु हुआ ,जिसके साथ ही महमद रफ़ी ने अपने लश्कर के साथ की जाम श्री के लश्कर पे हमला किया | दूसरी तरफ नवाब अनवर तथा गुजर खान ने कुंवर अजाजी और जेसा वजीर और अतीत साधू की जमात जिसकी संख्या १५०० थी उन पर हमला बोल दिया |

एक लाख से ज्यादा सैनिक मुग़ल के शाही के लश्कर में थे ,जिसमे हिन्दू और मुस्लिम दोनों थे | जाम साहिब के सैनिक की संख्या इनके मुकाबले बहुत कम होने साथ ही में अपने २४,००० साथियो द्वारा धोखा होने पर मुग़ल लश्कर धीरे धीरे जीत की तरफ बढ़ रहा था | इस बात को देखकर कुंवर श्री अजाजी ने अपने घोड़े को दौड़ाकर मिर्ज़ा अजीज कोका के हाथी के पास ला खड़ा किया | उन्होंने अपने घोड़े से लम्बी छलांग मराके घोड़े के अगले दोनों पाव अजीज कोका के हाथी के दांत पर टिका दिए, और अपने भाले से सूबेदार पर ज़ोरदार वार किया जिसके ऊपर एक प्राचीन दोहा भी है की:-
अजमलियो अलंधे, लायो लाखासर धणि  ||
दंतूशळ पग दे, अंबाडी अणिऐ हणि || १ ||

      पर अजीज कोका हाथी की अंबाडी की कोठी में छुप गया, जिससे भाला अंबाडी के किनारे को चीरते हुए हाथी की पीठ के आरपार निकल के निचे जमीन में घुस गया | उसी समय एक मुग़ल सैनिक ने अजाजी के पीछे से आके तलवार का वार कर दिया इसे देखकर सभी राजपुत हर हर महादेव के नाद के साथ मुग़ल सैनिक पर टूट पडे | युद्ध में हजारो लोगो की क़त्ल करने के बाद जेसा वजीर , महेरामणजी दुंगराणी, भानजी दल, दह्यो लाडक, नाग वजीर और तोगाजी सोढा वीरगति को प्राप्त हुए | वही उसी तरफ मुग़ल शाही लश्कर में महमद रफ़ी, सैयद सफुर्दीन, सैयद कबीर, सैयद अली खान मारे गए |
      शाही लश्कर में मुख्य सूबा मिर्ज़ा अजीज कोका और जाम श्री के लश्कर में कुमार श्री जसाजी और थोड़े सैनिक ही बचे थे |
      युद्ध के बारे में वहा पे एक शिलालेख भी जाम अजाजी की डेरी में हे , वही बाजूमे दीवार पर एक पुरातन चित्र भी है जिसमे जाम अजाजी अपने घोड़े को कुदाकर हाथी के ऊपर बैठे हुए सूबे की तरफ भाला का प्रहार करते हे... 
                                      
                                        

सवंत सोळ अड़तालमें , श्रावण मास उदार |
          जाम अजो सुरपुर गया, वद सातम बुधवार || १ ||
                        ओगणीसे चौदह परा, विभो जाम विचार |
          महामास सुद पांचमे कीनो जिर्नोध्धार || २ ||
          जेसो, दाह्यो, नागडो, महेरामण, दलभाण |
          अजमल भेला आवटे, पांचे बौध प्रमाण || ३ ||
          आजम कोको मारिओ, सुबो मन पसताईं |
          दल केता गारत करे, रन घण जंग रचाय || ४ ||

निजामुदीन अहमद लिखते हे की ये लड़ाई हिजरी सवंत १००१ के रजब माह की तारीख ६ को हुई थी | और जामनगर के पुरातन दस्तावेज में भुचर-मोरी की लड़ाई की तारीख विक्रम सवंत १६४८ में हालारी श्रावन वाद ७ को होने को लिखी हे...|
      युध्ध में नागडा वजीर ने भी अदभुत शौर्य दिखाया था | कहते हे की जब वह छोटा था तब जब उसकी माँ बैठी हुई होती थी तब उसके स्तन को पीछे खड़ा होकर स्तन से दूध पिता था | इस घटना को एक बार जाम सताजी ने देखा तो उनको बहुत हसी आई थी |  जब नागडा वजीर युद्ध में लड़ने के लिए आया था तब उसके पिता जेसा वजीर ने कहा था की “हे नागडा तू जब छोटा था तब जाम साहिब ने तुझे तेरी मा को खड़े होकर स्तनपान करता हुआ देखा था और हस पडे थे, अब समय आ गया हे अपनी मा के दूध की ताकत दिखने का, वो दूध एक शेरनी का हे इस बात को रणभूमि में साबित करना” | 

जब युद्ध चल रहा था तब नागडा वजीर ने अदभुत शौर्य दिखाया था | उसके दोनों हाथ के पंजे कट चुके थे लेकिन उसने अपने दोनों हाथ की कलाई की हड्डी में भाले को ठुसकर दुश्मनों को मरना चालू रखा था, इतना ही नही उसकी ऊंचाई भी बहुत होने के कारण उसने बादशाही लश्कर के हाथी के पेट में अपने कटे हुए हाथ को घुसाकर हाथी के पेट में बड़े बड़े घाव(खड्डे की तरह) कर दिए थे जिसके कारण हाथी के पेट से लहू की धारा बहने लगी थी...नागडा वजीर के ऊपर दुहे भी रचे हुए हे की...

               भलीए पखे भलां, नर नागडा निपजे नहीं ||
               जोयो जोमांना,  कुंताना जेवो करण || १ ||

अर्थ:- कुंताजी से जैसे कर्ण जैसा महा पराक्रमी पुत्र उत्पन हुआ, वैसे ही जोमा से नागडा वजीर जैसा महा पराक्रमी पुत्र उत्पन हुआ, इसिलिए कहेते हे की वीरांगनाओ के सिवा महापराक्रमी वीर पुरुष उत्पन नहीं होते...||

              जहां पड़ दीठस नाग जबान, सकोकर उभगयंद समान ||
            पड़ी सहजोई सचीपहचाण, पट्टकिय नागह लोथ प्रमाण || १ ||

अर्थ:- भुचर-मोरी के मैदान में जब नागडा वजीर के लोथ अर्थात मृत शरीर को उठाया तब गयंद नामके हाथी के समान उसकी उंचाय मालुम होने से सूबेदार को उसकी ऊँचाई का विश्वास हुआ था | 

  कुमार श्री अजाजी  युद्धभूमि में शहीद हो गए और बादशाह का लश्कर नगर की तरफ आ रहा हे यह खबर मिलते ही जाम सताजी ने जनान की सभी राणी को जहाज़ में बिठाकर सुचना दी की अगर मुस्लिम सैन्य आपकी तरफ आए तो अपने जहाज़ को समुद्र में डूबा देना, और अपने कुछ बाकि बचे सैन्य के साथ पहाड़ी इलाके में बदला लेने के लिए निकल पडे क्योकि ज़्यादातर सैन्य भूचर मोरी में शहीद हो गया था |
      इस तरफ राणियो का जहाज बंदरगाह  से निकले इससे पहेले सचाणा के बारोट इसरदासजी के पुत्र गोपाल बारोट ने कुमार श्री अजाजी (जो रणक्षेत्र में शहीद हुए थे उनकी) की पगड़ी को लाकर राणी को दिखा दी | ये देखकर राणी को सत चड़ा और उन्होंने सैनिको को आज्ञा देकर अपना रथ लेकर भूचर-मोरी के रणक्षेत्र की और चल पड़ी | इस तरफ बादशाह के मुस्लिम सैनिक नगर की और आ रहे थे | उन्होंने राणी के रथ को देखकर उनपर आक्रमण कर दिया, लेकिन उस समय ध्रोल के ठाकोर साहिब अपने भायती राजपुतो के साथ वहा आ पहुचे और मुस्लिम सैन्य को बताया की ये राणी सती होने के लिए आई हे उन्होंने मुस्लिम सैन्य के साथ समझौता  करके कुंवर अजाजी की राणी जिनकी शादी भी पूरी नहीं हुई थी उनको सती होने में पूरी मदद की |

      इस युद्ध के अंत में सूबा अजीज कोका जामनगर में आया, और वह पर आके उसने भारी लुटफात मचाई | बाद में उसे पता चला की मुज्जफर शाह जूनागढ़ की और भाग गया हे | उसने नवरंग खान, सैयद कासम और गुज्जरखान को साथ में लेकर जूनागढ़ की और प्रयाण किया | इस बात की खबर जाम सताजी को मिलते ही उसने मुज्जफर शाह को बरडा डुंगर के विस्तार में शरणागत दी...

धन्य हे ऐसे राजपुत जाम सत्रसाल (सताजी) को जिन्होंने क्षत्रिय धर्म का पालन करते हुए अपने राजपाट को त्याग करके एक शरणार्थी की रक्षा की |
      बादशाही लश्कर का बारूद और अन्न सामग्री पूरी होने के वजह से उन्होंने जूनागढ़ से लश्कर हटाकर जामनगर में सूबा रखकर बाकि के लश्कर को अहमदाबाद भेज दिया | मुजफ्फर शाह को अहसास हुआ की मेरे लिए जिसने अपने लाखो को शहीद कर दिया और इतनी तकलीफ उठाई उनको अब ज्यादा परेशान नहीं करना चाहिए, इसलिए वो बरडा डुंगर से भाग गया और कच्छ में राव भारमल के शरण में गया |


      जामनगर में जाम सताजी की गैरहाजरी का लाभ लेकर राणपुर के जेठवा राणा रामदेवजी के कुंवर राणा भाणजी के राणी कलाबाई ने अपनी फ़ौज से अपना गया हुआ प्रदेश जो जाम साहब में जीत लिया था उसको वापस कब्जे में कर लिया और छाया में राजधानी की स्थापना कर कुंवर खिमाजी को गद्दी पे बिठा दिया |

      जब सूबेदार को ऐसी खबर मिली की मुजफ्फर शाह जुनागढ़ में हे तो उसने वहां पर फ़ौज को भेजकर जाम सताजी को पत्र मारफत संदेसा भिजवाया की “जूनागढ़ के नवाब के ऊपर जब तक हमारा सैन्य रहे तब तक आपको शाही लश्कर के अन्न-पानी और राशन की सामग्री मोहैया करानी होगी और इस बात से जाम सताजी के साथ सुलह करके जाम सताजी को वापस वि.सं. १६४९ के माह सुद ३ को जामनगर की गद्दी को सताजी पर बिठाया |
      सूबेदार को जब पता चला की मुज्जफर शाह कच्छ में हे तो उन्होंने कच्छ के राव भारमल को संदेसा भिजवाया कच्छ के राव भारमल ने संदेसा मिलते ही मुजफ्फर शाह को अबदल्ला खान की फ़ौज में हाजिर होने के लिए भेजा, और उसे अहमदाबाद की और भेजा लेकिन रास्ते में मुज्जफर शाह ने ध्रोल के पास आत्महत्या कर ली.|

      इस तरह जाम सताजी ने एक मुस्लिम सरणार्थी को दिए हुए वचन को निभाते हुए अपनी राजपाट गवाकर और हजारो राजपूतों  की सेना के शहीद होते हुए भी अपने क्षात्र-धर्म का पालन किया |||
      ध्रोल के पादर में भुचर-मोरी के मैदान में आज भी हर साल श्रावण वद सातम को हज़ारों की संख्या में राजपुत इकठ्ठे होते हे और इन वीर शहीदों की श्रधांजली अर्पण करते हे यहाँ पर बड़ी मात्र में अन्य जाती के लोग भी इन शहीदों को श्रंधाजली अर्पण करते हे | युध्ध में इतनी भारी मात्रा में शहादत हुई थी की आज की तारीख में भी भूचर-मोरी के मैदान की मिट्टी लहू के लाल रंग की है |||


संदर्भ:-  
1. “यदुवंश प्रकाश” -- लेखक जामनगर स्टेट राजकवि “मावदानजी भीमजी रत्नु” -- पृष्ठ संख्या 191 से 228…
                2. विभा-विलास” -- देवनागरी लिपि में लिखा हुआ यदुवंश का पुष्तक जिसके लेखक हे -- चारण कवि “व्रजमालजी परबतजी माहेडू”
      3. “नगर-नवानगर-जामनगर”--- लेखस इतिहासकार हरकिशन जोषी – पृष्ठ संख्या71 से 76...
       4.  सौराष्ट्र का इतिहास” – लेखक इतिहासकार शंभूप्रसाद हरप्रसाद देसाई – पृष्ठ संख्या 563 से 567…
                5.  निजामुदीन अहमद लिखित मुग़लो के शाही दस्तावेज
      6. तारीखे सोरठ” – जूनागढ़ के नवाबी शाशन का इतिहास
      7. “मिरांते सिकंदरी” – मुग़ल शाही दस्तावेज

8-http://rajputanasoch-kshatriyaitihas.blogspot.in/2015/09/the-historical-battle-of-bhuchar-mori.html