Friday, May 22, 2015

‎रंगीन चच्चा नेहरू के कुछ रंगीन और अनसुने किस्से‬

 
सरदार पटेल की पुत्री मणिबेन ने अपनी आत्मकथा "मणिबेन की डायरी" में घनश्याम दास बिरला से अपनी बातचीत का कुछ हिस्सा लिखा है ... घनश्याम दास बिरला ने मणिबेन से कहा था कि यदि नेहरुद्दीन जवाहिरी गंधासुर के सम्पर्क में नहीं आते तो वो इस्लाम स्वीकार कर लेते .. (उन्हें क्या पता था कि ये हरामी सुवर पहले से ही मुस्लिम है)! पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने अपनी किताब "मेरा जीवन वृतांत" में पेज नम्बर 456 पर लिखा है "पता नहीं क्यों नेहरुद्दीन जवाहिरी को हिन्दू धर्म के प्रति एक पूर्वाग्रह था" नेहरुद्दीन जवाहिरी ने हिन्दुओं को दोगला नागरिक बनाने के लिए हिन्दू कोड बिल लाने की बड़ी कोशिश की थी .. लेकिन सरदार पटेल ने नेहरुद्दीन जवाहिरी को चेतावनी देते हुए कहा था कि यदि मेरे जीते जी आपने हिन्दू कोड बिल के बारे में सोचा भी तो मैं खान्ग्रेस से इस्तीफ़ा दे दूंगा और इस बिल के खिलाफ सड़कों पर हिन्दुओं को लेकर उतर जाऊँगा ... फिर पटेल की धमकी से ग़द्दार नेहरुद्दीन जवाहिरी डर गया था ... और उसने सरकार पटेल जी के देहांत के बाद हिन्दू कोड बिल संसद में पास किया था ... इस बिल पर चर्चा के दौरान आचार्य जे. बी. कृपलानी ने नेहरुद्दीन जवाहिरी को कौमवादी और मुस्लिम परस्त कहा था .. उन्होंने कहा था की आप हिन्दुओं को धोखा देने के लिए ही जनेऊ पहनते हो .. वरना आपमें हिन्दुओं वाली कोई बात नहीं है यदि आप सच में धर्म निरपेक्ष होते तो हिन्दू कोड बिल के बजाय सभी धर्मों के लिए कॉमन कोड बिल लाते!
- जोश की 'सनक', जिससे नेहरुद्दीन भी नहीं बच पाए....नेहरुद्दीन जवाहिरी को जब जोश मलीहाबादी ने अपनी एक किताब दी तो उन्होंने कहा,"मैं आपका मशकूर हूँ." जोश ने उन्हें फ़ौरन टोका, "आपको कहना चाहिए था शाकिर हूँ."हर दिसंबर को यूनाइटेड कॉफ़ी हाउस के मालिक किशनलाल एक मुशायरे का आयोजन करते थे. उसमें जोश के अलावा फ़िराक़, साहिर लुधियानवी, महेंदर सिंह बेदी और कैफ़ी आज़मी जैसे शायर आते थे. नेहरुद्दीन जवाहिरी उस मुशायरे में ज़रूर आते थे. मुशायरे के बाद चुनिंदा स्कॉच, शामी क़बाब और लज़ीज़ खाना खिलाया जाता था. किशनलाल कालरा का 2009 में निधन हो गया.
लिंक -http://www.bbc.co.uk/…/12/141205_vivechana_josh_malihabadi_…
- बाबर महान, अकबर महान तथा औरंगजेब महान जैसी आधुनिक शेखुलर शिक्षा की आधारशिला रखने वाले भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को नेहरुद्दीन अपना माँ-जाया भाई मानते थे....
- अभिनेत्री देविका रानी से भी चचा हरामी का टांका भिड़ा था अपने पति हिमांशु राय को चकमा देकर देविका आनंद भवन का हफ़्तों आतिथ्य ग्रहण किया करती थीं. लम्पट-कामुक नेहरुद्दीन की कृपा से देविका को सन् 1958 में पद्मश्री सम्मान प्रदान कर ही दिया गया था
-नेहरू के सुरक्षा अधिकारी रह चुके के एफ़ रुस्तम जी अपनी किताब 'आई वाज़ नेहरूज़ शैडो' में लिखते हैं कि 1953 में जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मोहम्मद अली अपनी पत्नी के साथ दिल्ली हवाई अड्डे पर उतरे तो उन्हें नेहरू के मशहूर गुस्से का नज़ारा अपनी आँखों से देखने का मौका मिला. हुआ ये कि जैसे ही जहाज़ की सीढ़ियाँ लगाई गईं, वहाँ मौजूद करीब पचास कैमरामैन मक्खियों की तरह जहाज़ के चारों तरफ़ खड़े हो गए. जैसे ही पाकिस्तानी प्रधानमंत्री उतरे, पीछे खड़ी भीड़ भी आगे आ गई और धक्का मुक्की होने लगी. नेहरू का पारा चढ़ा तो चढ़ता ही चला गया. उन्होंने गुस्से में चिल्लाते हुए कैमरामैन के पीछे दौड़ना शुरू कर दिया. किसी एक शख़्स ने नेहरू के लिए कार का दरवाज़ा खोला. नेहरू ने गुस्से में वो दरवाज़ा बंद कर दिया और फूल के एक बड़े बूके से लोगों की पिटाई करने दौड़े. रुस्तम जी ने बहुत मुश्किल से उन्हें जीप पर सवार होने के लिए मनाया. नाराज़ नेहरू और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री जीप पर राष्ट्रपति भवन गए और उनकी लंबी कार जीप के पीछे-पीछे बिना किसी सवारी के आई.
- एक बार पटेल से किसी ने पूछा कि इस समय भारत में सबसे बड़ा राष्ट्रवादी मुस्लिम कौन है. सब सोच रहे थे कि पटेल मौलाना आज़ाद या रफ़ी अहमद किदवई का नाम लेंगे, लेकिन पटेल का जवाब था, ‘मौलाना नेहरू.’
- 1937 में नेहरू ने पद्मजा को लिखा था, "तुम 19 साल की हो (जबकि वो उस समय 37 साल की थीं)... और मैं 100 या उससे भी से ज़्यादा. क्या मुझे कभी पता चल पाएगा कि तुम मुझे कितना प्यार करती हो." एक बार और मलाया से नेहरू ने पद्मजा को लिखा था, "मैं तुम्हारे बारे में जानने के लिए मरा जा रहा हूँ.. मैं तुम्हें देखने, तुम्हें अपनी बाहों में लेने और तुम्हारी आँखों में देखने के लिए तड़प रहा हूँ."(सेलेक्टेड वर्क्स ऑफ़ नेहरू, सर्वपल्ली गोपाल, पृष्ठ 694)
- नेताजी के भाई शरत बोस की बेटी चित्रा ने नेहरू से हुई एक मुलाकात का जिक्र करते हुए मीडिया को बताया है कि कलकत्ता दौरे पर आये पीएम नेहरू उनके आवास 1, वुडवर्न पार्क पर उनके पिता से मिले थे। उस मुलाकात में पं. नेहरू ने आंसू भरी आंखों के साथ एक आयताकार डायल वाली कलाई घड़ी देते हुए कहा था कि यह वही घड़ी है,जो सुभाष ने विमान दुर्घटना के दौरान पहनी हुई थ। इस पर उनके पिता ने साफ कहा, 'जवाहर, मुझे इस दुर्घटना वाली कहानी पर यकीन नहीं है, और सुभाष कभी ऐसी घड़ी नहीं पहनते थे। वे सिर्फ अपनी मां की दी हुई गोल डायल वाली घड़ी ही पहनते थे। अर्थात इस बयान के मायने यही हैं कि नेहरू वहां झूठ बोल रहे थे।
- जब कोई व्यक्ति किसी देश का प्रतिनिधित्व करने लग जाता है तो उस देश की आने वाली नस्लें स्वतः ही उसका अनुसरण करने लग जाती हैं. ऐसी स्थिति में यदि वह उत्तम चरित्र का स्वामी है तो देश आध्यात्मिक प्रगति के साथ-साथ भौतिक-उन्नति की तरफ अग्रसर होने लगता है और यदि वह चरित्रहीन है तो नैतिक ह्रास होने के साथ-साथ उस देश का भविष्य अंधकारमय होकर तीव्र गति से गर्त की और पतनोन्मुख होने लगता है. एक प्रधानमंत्री जब अपने कार्यालय में बैठा होता है न केवल तब वह प्रधानमंत्री होता है वरन जब वह अपने घर में नहा रहा, खाना खा रहा या कोई और कार्य भी कर रहा होता है तब भी वह प्रधानमंत्री ही होता है. अतः एक आम इंसान की निजी ज़िन्दगी से एक राष्ट्राध्यक्ष की निजी ज़िन्दगी को तुलना कदापि नहीं की जा सकती है. उसके ऊपर सम्पूर्ण विश्व की निगाहें लगीं होती हैं और वह राष्ट्र की गरिमा और अस्मिता का सीधे-सीधे प्रतिनिधित्व करता है.
(अन्तिम चित्र में:- अखिल भारतीय खान्ग्रेस अधिवेशन, नयी दिल्ली, सन १९५१ के दौरान भोजनावकाश के दौरान भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री व खान्ग्रेस अध्यक्ष जनाब नेहरुद्दीन जवाहिरी)
अभी के लिए इतने ही किस्से और फिर कभी धन्यवाद !!
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