Saturday, January 17, 2015

JESUS BLUFF =STOP CHRISTIAN MISSIONARY ALL OVER WORLD.GRAND HINDUISM NEEDS A KING

"मैं इन हिन्दुओं को मंदिरों में चढ़ाव और प्रसाद चढाते देखता हूँ।
मैं प्रभु ईशु से प्रार्थना करता हूँ की वो इन हिन्दुओं का विशवास ख़त्म करें,उनकी इस दिनचर्या पे रोक लगायें।
हिन्दुओं को इनके राक्षसी देवी - देवों की पूजा से मुक्ति दिलाएं और उन्हें ईशु की प्रभुता में प्रवेश करवाएं ।"
-- एकेबालो ईशु प्रोजेक्ट भारत ।
बड़े दुःख की बात है की यह वो भाषा एवं भाव है जो इसाई मिशनरी भारतियों के लिए भारत में प्रयोग करते हैं।
अजीब बात ये है की १५ सदी (जब ये पहली बार भारत आये थे), से आज तक कुछ भी नहीं बदला।
अभी भी उतनी ही घृणा एवं हेय दृष्टिकोण है दूसरे मनुष्यों के लिए ।
उससे भी बड़ी दुःख की बात है की यही भाव और यही सोच ये भारत के कोने-कोने में प्रसारित कर रहे हैं ।
क्या कोई भी अच्छा इसाई इनका समर्थन करेगा ?
संभवतः नहीं , लेकिन पता नहीं क्यों आजतक किसी भी इसाई संगठन ने इन सब का विरोध नहीं किया।
ये जो धर्मपरिवर्तन की जल्दबाजी है,जो दूसरे पंथों के लिए द्वेष है - यह विकसित देशों में प्रायः देखने को नहीं मिलता लेकिन अविकसित देशों में अब आम बात होती जा रही है, इस विषय पे भारत के सन्दर्भ में बात करें तो पायेंगे की विदेशी चंदा जो की FCRA पालिसी के तहत आता है, उसमें देश के सर्वोच्च 10 संगठनों में से 8 इसाई संगठन हैं (गृह मंत्रालय के अनुसार )।
इस हज़ारों करोड़ों के विदेशी चंदे, चर्च की संपत्ति एवं धर्मान्तरण में सीधा सम्बन्ध दिखता है।
और ये धार्मिक कट्टरता ठीक वैसे ही है जैसे आज से सदियों पहले श्वेत नस्ल के कुछ लोग कहा करते थे "प्रभु ने दुनिया को सभ्यता देने का बोझ उनके कन्धों पे डाला है।"
उनके इस कट्टरता का एक उदहारण देखने को तब मिला जब कुछ समाजसेवी पाकिस्तान से विस्थापित शरणार्थियों से मिलने गए।
उन्होंने इस सन्दर्भ में अपना अनुभव बताया, कहा की जब वे अत्यंत विकट परिस्थितियों में घिरे थे तब समीप के चर्च से कुछ इसाई एजेंट उनके पास आये तथा उन्हें रुपये, नौकरी,धन-जायदाद आदि का आश्वाशन दिया था । यह आश्वासन सुन के सभी शरणार्थी अत्यंत प्रसन्न हुए किन्तु तब ज्ञात हुआ की एक शर्त है - उन्हें अपना धर्म परिवर्तित कर इसाई बनाना होगा; परधार्मियों के लिए कोई सहायता नहीं की जाएगी।
उन्हें अपने हिन्दू भगवानो की भर्त्सना भी करनी होगी।
जो शरणार्थी पकिस्तान से भीषण धर्मभेद देख कर आये थे उनके लिए ये पुनः वही तालिबानी मानसिकता थी! उसे कहने वाले बाहर से उतना सख्त नहीं दीखते थे, परन्तु अन्दर से वैसा ही परधार्मियों से घृणा करने वाला, उन्हें हेय दृष्टि से देखने वाला मन साफ़ झलकता था ।
शरणार्थीयों ने स्पष्ट मना कर दिया, उस पे जाते-जाते इसाई मिशनरी कहते गए की "देखना कोई तुम्हारी सहायता नहीं करने वाला"।
विडियो लिंक : https://www।youtube।com/watch?v=Ev4sRIVtwKk
विडियो में एक शरणार्थी को दुःख एवं क्रोध से कहते देखा जा सकता है की "एक और दूसरे धर्म के लोग अपने धर्म की और परिवर्तित के लिए करोड़ों व्यय करने को तत्पर हैं लेकिन दूसरी और हमारे हिन्दू भाई हैं जो दुसरे धर्म में जाने वालों की घर वापसी करवाना तो दूर, जो मात्र धन की आवश्यकता हेतु धर्मान्तरण को प्रेरित किये जा रहे हैं उनके भी सहायता करने के लिए सामने नहीं आ रहे ।
उनका धर्म रुपये के लालच के सामने नष्ट हो रहा है, क्या ये उन्हें स्वीकार है ?"
हिन्दुओं की ये समस्या मात्र इच्छा के कमी की नहीं होकर सूचना एवं ज्ञान के लोप की भी है।
वैसे तो हिन्दू अपने धर्म के नाम पर मंदिरों - मठों में हजारों लाखों दान करते हैं ; उनका सोचना है की ऐसा करने से अपने धर्म-समाज का कल्याण हो जायेगा। मंदिर संचालन एवं मठाधीश सभी हिन्दुओं के लिए कल्याण कार्य करेंगे । इन दान-दक्षिनाओं के पश्चात ज्यादातर हिन्दुओं के पास बचा धन घर-गृहस्थी इत्यादि के लिए ही बाख पाटा है इसलिए उनसे और की अपेक्षा करना व्यर्थ होगा ।
लेकिन यहीं पे हिन्दुओं की समस्या का आरम्भ होता है।
मंदिरों में दिए गए धन का सबसे बड़ा हिस्सा मंदिर बोर्ड के द्वारा सरकार को चला जाता है, बचे हुए धन का एक बड़ा भाग मंदिर के महन्तों-पुजारियों में बंट जाता है। अतः इन सब के पश्चात मंदिरों में आसपास के निर्धन हिन्दुओं के लिए ज्याद कुछ शेष नहीं बचता।
और यही कारण है की इतने दान दक्षिणा के पश्चात भी आपका धन निर्धन और असहाय के पास नहीं पहुँच पाता, आपके धर्म की रक्षा के लिए उपयोग नहीं होता।
मठों में भी यही विधान है , बस अंतर ये है की यहाँ थोडा हिस्सा सरकार को जाता है और बड़ा हिस्सा बाबा एवं मठाधीशों को जाता है।
इन्हीं सब कारणों से हिन्दू समाज के निम्न वर्ग में धन का सदा अभाव बना रहता है जिस बात का लाभ उठा कर अन्य धर्म हिंसा अथवा धन के बल पे उन्हें धर्मान्तरित कर देते हैं।
तो इस समस्या से कैसे निबटा जाए ?
समाधान ये है की या तो हिन्दू मंदिर - मठों में दान तो करे परन्तु कुछ धन को अपने आस पास के निर्धन हिन्दुओं को, गौशालाओं को एवं अन्य धर्म कार्यों में भी दान दें ।
(मंदिर में दिया तो सरकार उठा ले जाएगी ।)
अथवा,हिन्दुओं के मंदिरों का सरकार द्वारा अधिग्रहण बंद करवाना होगा।
सभी मंदिरों को हिन्दुओं के प्रति जवाबदेह बनाने की व्यवस्था स्थापित करवानी होगी । उनमें आनेवाला धन और उनके द्वारा किया जाने वाला व्यय का लेखा जोखा होना चाहिए जिसे जो भी चाहे जांच सके।
यही सनातन धर्म की रीत है की मंदिर अथवा धर्मस्थल धन उपार्जन का कार्य नहीं करेंगे,उनका कार्य है आते हुए धन-दान से समाजकल्याण करना। समय आ गया है की इस नियम का पालन हो,यही धर्मोचित है ।
एक समाज जो सच्चे रूप में स्वतंत्र हो उसमें किसी को भी अपने विश्वास एवं आस्था (या आस्था के अभाव) के पालन का सम्पूर्ण अधिकार होना चाहिए।
लेकिन इसके साथ ही किसी धर्म के लोगों का धर्मान्तरण सिर्फ इसलिए हो जाये क्योंकि उनके पास खाने के पैसे नहीं थे, तो ये देश के मूलधर्म एवं उनके अनुयायियों के लिए लज्जा का विषय है।
समाज के इसी विपन्नता, असमानता का लाभ कुछ धर्म के ठेकेदार उठा ले जाते हैं जिनका उद्देश्य धर्म तक सीमित नहीं रह जाता - देर सवेर अर्थ एवं राजनीति का समावेश हो ही जाता है।
ऐसे में जोमो केन्याटा की कही हुई बात स्मरण
हो जाती है :"..जब इसाई मिशनरी अफ्रीका में आये तो उनके पास बाइबिल थी और हमारे पास जमीन।
उन्होंने हमसे कहा प्रभु ईशु की आँख बंद कर प्रार्थना करो।
जब हमने आँखें खोली तो पाया, हमारे पास बाइबिल थी और उनके पास जमीन।"
JESUS BLUFF

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